Ktin Pratyay in Sanskrit - क्तिन् प्रत्ययः - Ktin Pratyay ke Udaharan - संस्कृत में प्रत्यय
क्तिन् प्रत्ययः – Ktin Pratyay in SanskritKtin Pratyay in Sanskrit: भाववाचक शब्द की रचना के लिए सभी (कृत् प्रत्यय) धातुओं से क्तिन् प्रत्यय होता है। इसका ‘ति’ भाग शेष रहता है, ‘क्’ और ‘न्’ का लोप हो जाता है। क्तिन – प्रत्ययान्त शब्द स्त्रीलिङ्ग में ही होते हैं। इनके रूप ‘मति…
Aniyar Pratyay in Sanskrit - अनीयर् प्रत्ययः - Aniyar Pratyay ke Udaharan - संस्कृत में प्रत्यय
अनीयर् प्रत्ययः – Aniyar Pratyay in SanskritAniyar Pratyay in Sanskrit: अनीयर् प्रत्यय तव्यत् प्रत्यय के समानार्थक है। इसका प्रयोग (कृत् प्रत्यय) हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में होता है। इसका ‘अनीय’ भाग शेष रहता है और ‘र’ का लोप हो जाता है। यह प्रत्यय कर्मवाच्य …
Tavyat Pratyay - तव्यत प्रत्ययः - Tavyat Pratyay ke Udaharan - संस्कृत में प्रत्यय
तव्यत प्रत्ययः – Tavyat Pratyay in Sanskritतव्यत् प्रत्यय का प्रयोग हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इस अर्थ में होता है। इसका ‘तव्य’ भाग शेष रहता है और ‘त्’ का लोप हो जाता है। यह प्रत्यय भाववाच्य अथवा कर्मवाच्य में ही होता है। (कृत् प्रत्यय) तव्यत्’ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप प…
Shanach Pratyay in Sanskrit - शानच प्रत्ययः - Shanach Pratyay ke Udaharan - संस्कृत में प्रत्यय
शानच प्रत्ययः – Shanach Pratyay in SanskritShanach Pratyay in Sanskrit: वर्तमान काल के अर्थ में आत्मनेपदी धातुओं के साथ शानच् प्रत्यय लगता है। इसके ‘श्’ तथा ‘च’ का लोप हो जाता है, आन’ शेष रहता है। शानच् प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग विशेषण के समान होता है। (कृत् प्रत्यय) इसक…
Shatru Pratyay in Sanskrit - शतृप्रत्ययः प्रत्यय - Shatru Pratyay ke Udaharan - संस्कृत में प्रत्यय
शतृप्रत्ययः प्रत्यय – Shatru Pratyay in SanskritShatru Pratyay in Sanskrit: शतृप्रत्ययः – वर्तमान काल के अर्थ में अर्थात् ‘गच्छन्’ (कृत् प्रत्यय) (जाते हुए), ‘लिखन्’ (लिखते हुए) इस अर्थ में परस्मैपद की धातुओं के साथ शतृ प्रत्यय लगता है। इसका ‘अत्’ भाग शेष रहता है और ऋकार का…
Adhikaran Karak in Sanskrit - अधिकरण कारक (में, पर) - Adhikaran Karak ke Udaharan - सप्तमी विभक्ति - संस्कृत
अधिकरण कारक – Adhikaran Karak in Sanskritअधिकरण कारक – सप्तमी विभक्तिः – Adhikaran Karak in Sanskrit (1) आधारोऽधिकरणम् सप्तम्यधिकरणे च – क्रिया की सिद्धि में जो आधार होता है, (कारक) उसकी अधिकरण संज्ञा होती है और अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है। यथा- नृपः सिंहास…
Sambandh Karak in Sanskrit - संबंध कारक (का, के, की, रा...) - Sambandh Karak Ke Udaharan - षष्ठी विभक्ति - संस्कृत
संबंध कारक – Sambandh Karak in Sanskritसंबंध कारक – षष्ठी विभक्तिः – Sambandh Karak in Sanskrit (1) षष्ठी शेषे – सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा- रमेशः संस्कृतस्य पुस्तकं पठति। (रमेश संस्कृत की पुस्तक पढ़ता है।)(2) यतश्च निर्धारणम् – जब बहुत में से किसी ए…
Apadan Karak in Sanskrit - अपादान कारक (से) - पंचमी विभक्ति - Apadan Karak ke Udaharan - संस्कृत
अपादान कारक – Apadan Karak in Sanskritअपादान कारक – पंचमी विभक्तिः – Apadan Karak in Sanskrit (1) ध्रुवमपायेऽपादानम् अपादाने पञ्चमी – पृथक् होने पर जो स्थिर है (कारक) उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा- वृक्षात् पत्रं पतति। (…
Sampradan Karak in Sanskrit - सम्प्रदान कारक (के लिए) - चतुर्थी विभक्ति - Sampradan Karak Ke Udaharan - संस्कृत, हिन्दी
सम्प्रदान कारक – Sampradan Karak in Sanskritसम्प्रदान कारक – चतुर्थी विभक्तिः – Sampradan Karak in Sanskrit(1) दानस्य कर्मणा कर्ता यं सन्तुष्टं कर्तुम् इच्छति सः सम्प्रदानम् इति कथ्यते (कारक) (कर्मणा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम्।) सम्प्रदाने च (‘चतुर्थी समप्रदाने’) चतुर्थी विभक्तिः भवति…
Karan Karak in Sanskrit - करण कारक (से) - Karan Karak ke Udaharan - तृतीया विभक्ति - संस्कृत
करण कारक – Karan Karak in Sanskritकरण कारक – तृतीया विभक्तिः – Karan Karak in Sanskrit (1) (क) (साधकतमं करणम्) “कर्तृकरणयोस्तृतीया” क्रिया की सिद्धि में जो सर्वाधिक सहायक होता है, उस कारक की करण संज्ञा होती है और उसमें तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा जागृतिः …