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Visarga Sandhi – विसर्ग संधि – हिन्दी व्याकरण
विसर्गों का प्रयोग संस्कृत को छोड़कर संसार की किसी भी भाषा में नहीं होता है। हिन्दी में भी विसर्गों का प्रयोग नहीं के बराबर होता है। कुछ इने-गिने विसर्गयुक्त शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होते हैं;
जैसे-
- अत:, पुनः, प्रायः, शनैः शनैः आदि।
हिन्दी में मनः, तेजः, आयुः, हरिः के स्थान पर मन, तेज, आयु, हरि शब्द चलते हैं, इसलिए यहाँ विसर्ग सन्धि का प्रश्न ही नहीं उठता। फिर भी हिन्दी पर संस्कृत का सबसे अधिक प्रभाव है। संस्कृत के अधिकांश विधि निषेध हिन्दी में प्रचलित हैं। विसर्ग सन्धि के ज्ञान के अभाव में हम वर्तनी की अशुद्धियों से मुक्त नहीं हो सकते। अत: इसका ज्ञान होना आवश्यक है।
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के संयोग से जो विकार होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। इसके प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं-
(क) यदि विसर्ग के आगे श, ष, स आए तो वह क्रमशः श्, ए, स्, में बदल जाता है;
जैसे
- निः + शंक = निश्शंक
- दुः + शासन = दुश्शासन
- निः + सन्देह = निस्सन्देह
- नि: + संग = निस्संग
- निः + शब्द = निश्शब्द
- निः + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
(ख) यदि विसर्ग से पहले इ या उ हो और बाद में र आए तो विसर्ग का लोप हो जाएगा और इ तथा उ दीर्घ ई, ऊ में बदल जाएँगे;
जैसे-
- निः + रव = नीरव
- निः + रोग = नीरोग
- निः + रस = नीरस
(ग) यदि विसर्ग के बाद ‘च-छ’, ‘ट-ठ’ तथा ‘त-थ’ आए तो विसर्ग क्रमशः ‘श्’, ‘ष’, ‘स्’ में बदल जाते हैं;
जैसे-
- निः + तार = निस्तार
- दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
- निः + छल = निश्छल
- धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
- निः + ठुर = निष्ठुर
(घ) विसर्ग के बाद क, ख, प, फ रहने पर विसर्ग में कोई विकार (परिवर्तन) नहीं होता;
जैसे-
- प्रात: + काल = प्रात:काल
- पयः + पान = पयःपान
- अन्तः + करण = अन्तःकरण
(ङ) यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ या ‘आ’ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में वर्ग के तृतीय, चतुर्थ और पंचम वर्ण अथवा य, र, ल, व में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग ‘र’ में बदल जाता है;
जैसे-
- दुः + निवार = दुर्निवार
- दुः + बोध = दुर्बोध
- निः + गुण = निर्गुण
- नि: + आधार = निराधार
- निः + धन = निर्धन
- निः + झर = निर्झर
(च) यदि विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर आए और बाद में कोई भी स्वर आए तो भी विसर्ग र् में बदल जाता है;
जैसे-
- नि: + आशा = निराशा
- निः + ईह = निरीह
- निः + उपाय = निरुपाय
- निः + अर्थक = निरर्थक
(छ) यदि विसर्ग से पहले अ आए और बाद में य, र, ल, व या ह आए तो विसर्ग का लोप हो जाता है तथा विसर्ग ‘ओ’ में बदल जाता है;
जैसे-
- मनः + विकार = मनोविकार
- मन: + रथ = मनोरथ
- पुरः + हित = पुरोहित
- मनः + रम = मनोरम
(ज) यदि विसर्ग से पहले इ या उ आए और बाद में क, ख, प, फ में से कोई वर्ण आए तो विसर्ग ‘ष्’ में बदल जाता है;
जैसे-
- निः + कर्म = निष्कर्म
- निः + काम = निष्काम
- नि: + करुण = निष्करुण
- निः + पाप = निष्पाप
- निः + कपट = निष्कपट
- निः + फल = निष्फल