Virodhabhash Alankar - विरोधाभाष अलंकार परिभाषा, भेद और उदाहरण - हिन्दी

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विरोधाभास अलंकार

विरोधाभाष अलंकार परिभाषा

जहाँ बाहर से तो विरोध जान पड़े, किन्तु यथार्थ में विरोध न हो। जहाँ वास्तविक विरोध न होने पर भी विरोध का आभास हो वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है;

जैसे-

  • जब से है आँख लगी तबसे न आँख लगी।
  • यह अथाह पानी रखता है यह सूखा-सा गात्र।
  • प्रियतम को समक्ष पा कामिनी
    न जा सकी न ठहर सकी।
  • आई ऐसी अद्भुत बेला
    ना रो सका न विहँस सका।
  • ना खुदा ही मिला ना बिसाले सनम
    ना इधर के रहे ना उधर के रहे।

“या अनुरागी चित्त की, गति सम्झै नहिं कोय।
ज्यों ज्यों बूडै स्याम रंग, त्यों त्यों उज्ज्वल होय।।”

यहाँ पर श्याम (काला) रंग में डूबने से उज्ज्वल होने का वर्णन है अतः यहाँ विरोधाभास अलंकार है।

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