Veer Ras - वीर रस परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण

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Veer Ras – वीर रस परिभाषा

युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में निहित ‘उत्साह’ स्थायी भाव के जाग्रत होने के प्रभावस्वरूप जो भाव उत्पन्न होता है, उसे वीर रस कहा जाता है।

उत्साह स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है, तब वीर रस उत्पन्न होता है। उदाहरण

“मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा जानो मुझे।।
हे सारथे! हैं द्रोण क्या? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।
वे भी न जीतेंगे समर में आज क्या मुझसे कभी।।”

यहाँ स्थायी भाव उत्साह आश्रय अभिमन्युद्ध आलम्बन द्रोण आदि कौरव पक्ष, अनुभाव अभिमन्यु के वचन और संचारी भाव गर्व, हर्ष, उत्सुकता, कम्प मद, आवेग, उन्माद आदि हैं, अत: यहाँ वीर रस है।।