Vatsalya Ras - वात्सल्य रस परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण

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Vatsalya Ras – वात्सल्य रस परिभाषा

वात्सल्य रस का सम्बन्ध छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति माता-पिता एवं सगे-सम्बन्धियों का प्रेम एवं ममता के भाव से है। हिन्दी कवियों में सूरदास ने वात्सल्य रस को पूर्ण प्रतिष्ठा दी है। तुलसीदास की विभिन्न कृतियों के बालकाण्ड में वात्सल्य रस की सुन्दर व्यंजना द्रष्टव्य है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सलता या स्नेह है।

उदाहरण-

“किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत।
मनिमय कनक नन्द के आँगन बिम्ब पकरिबे धावत।
कबहुँ निरखि हरि आप छाँह को कर सो पकरन चाहत।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ पुनि पुनि तिहि अवगाहत।।”

यहाँ स्थायी भाव वत्सलता या स्नेह, आलम्बन कृष्ण की बाल सुलभ चेष्टाएँ, उद्दीपन किलकना, बिम्ब को पकड़ना, अनुभाव रोमांचित होना, मुख चूमना, संचारी भाव हर्ष, गर्व, चपलता, उत्सुकता आदि हैं, अत: यहाँ वात्सल्य रस है।