Utpreksha Alankar In Sanskrit - उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण - (संस्कृत व्याकरण)

उत्प्रेक्षा अलंकार – Utpreksha Alankar

उत्प्रेक्षा अलंकार: जब उपमेय में गुण-धर्म की समानता के कारण उपमान की संभावना कर ली जाए, तो उसे उत्प्रेक्षा अलंकार कहते हैं; जैसे-

कहती हुई यूँ उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम कणों से पूर्ण मानों हो गए पंकज नए।।

यहाँ उत्तरा के जल (आँसू) भरे नयनों (उपमेय) में हिमकणों से परिपूर्ण कमल (उपमान) की संभावना प्रकट की गई है। अतः उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान-मनहुँ, मानो, जानो, जनहुँ, ज्यों, जनु आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है।

उत्प्रेक्षा अलंकार अन्य उदाहरण – Examples Of Utpreksha Alankar

  • धाए धाम काम सब त्यागी। मनहुँ रंक निधि लूटन लागी।
    यहाँ राम के रूप-सौंदर्य (उपमेय) में निधि (उपमान) की संभावना।
  • दादुर धुनि चहुँ दिशा सुहाई।
    बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई।।
    यहाँ मेंढकों की आवाज़ (उपमेय) में ब्रह्मचारी समुदाय द्वारा वेद पढ़ने की संभावना प्रकट की गई है।
  • देखि रूप लोचन ललचाने। हरषे जनु निजनिधि पहिचाने।।
    यहाँ राम के रूप सौंदर्य (उपमेय) में निधियाँ (उपमान) की संभावना प्रकट की गई है।
  • अति कटु वचन कहत कैकेयी। मानहु लोन जरे पर देई।
    यहाँ कटुवचन से उत्पन्न पीड़ा (उपमेय) में जलने पर नमक छिड़कने से हुए कष्ट की संभावना प्रकट की गई है।
  • चमचमात चंचल नयन, बिच चूंघट पर झीन।
    मानहुँ सुरसरिता विमल, जल उछरत जुगमीन।।

यहाँ घूघट के झीने परों से ढके दोनों नयनों (उपमेय) में गंगा जी में उछलती युगलमीन (उपमान) की संभावना प्रकट की गई है।

Utpreksha Alankar In Sanskrit