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उत्प्रेक्षा अलंकार
जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना का वर्णन हो, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उत्प्रेक्षा के वाचक पद (लक्षण) :
यदि पंक्ति में ज्यों, मानो, जानो, इव, मनु, जनु, जान पड़ता है–इत्यादि हो तो मानना चाहिए कि वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है। जैसे
सखि ! सोहत गोपाल के उर गुंजन की माल।
बाहर लसत मनो पिए दावानल की ज्वाल।।
यहाँ उपमेय ‘गुंजन की माल’ में उपमान ‘ज्वाला’ की संभावना प्रकट की गई है।
कुछ अन्य उदाहरण :
(a) नील परिधान बीच सुकुमारि
खुल रहा था मृदुल अधखुला अंग,
खिला हों ज्यों बिजली के फूल
मेघवन बीच गुलाबी रंग।
(b) पदमावती सब सखी बुलायी।
जनु फुलवारी सबै चली आई।।
(c) सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।।
मनो नीलमणि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात।।
(d) लता भवन ते प्रकट भे, तेहि अवसर दोउ भाय।
मनु निकसे जुग बिमल बिधु, जलद पटल बिलगाय।।
(e) कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिमकणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।।
(f) पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से।
मानो झूम रहे हैं तरु भी मंद पवन के झोंकों से।।
(g) जान पड़ता है नेत्र देख बड़े-बड़े
हीरकों में गोल नीलम हैं जड़े।
(h) उस असीम नीले अंचल में, देख किसी की मृदु मुसकान।
मानो हँसी हिमालय की है, फूट चली करती कल गान।