Tatpurush Samas तत्पुरुष समास - परिभाषा, उदाहरण, सूत्र, अर्थ - हिन्दी

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तत्पुरुष समास – Tatpurush Samas

वह समास, जिसका उत्तरपद या अंतिम पद प्रधान हो। अर्थात् प्रथम पद गौण हो और उत्तरपद की प्रधानता हो। जैसे–राजकुमार सख्त बीमार था। इस वाक्य में समस्तपद ‘राजकुमार’ जिसका विग्रह है–राजा का कुमार इस विग्रह पद में ‘राजा’ पहला पद और ‘कुमार’ (पुत्र) उत्तर पद है। अब प्रश्न है–कौन बीमार था, राजा या कुमार?

उत्तर मिलता है–कुमार स्पष्ट है कि उत्तरपद की ही प्रधानता है।

कुछ और उदाहरण देखते हैं-
राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। – (उत्तरपद प्रधान)
पॉकेटमार पकड़ा गया। – (पॉकेट नहीं उसको मारनेवाला)
रामचरितमानस तुलसीकृत है। – (‘कृत’ पद की प्रधानता)

अवयव की दृष्टि से तत्पुरुष समास के दो भेद हैं-

A. व्यधिकरण तत्पुरुष

वह तत्पुरुष, जिसमें प्रयुक्त पदों में से पहला पद कर्ताकारक का नहीं हो। ‘इस तत्पुरुष को केवल तत्पुरुष भी कहा जाता है। इस समास को पहले पद में लगे कारक चिह्नों के नाम पर ही पुकारा जाता है। ‘कर्ता’ और ‘संबोधन’ को छोड़कर बाकी सभी कारकों से संबद्ध तत्पुरुष समास बनाए जाते हैं। इसके निम्नलिखित प्रकार होते हैं

1. कर्म या द्वितीया तत्पुरुष : इसमें पद के साथ कर्म कारक के चिह्न (o, को) लगे रहते हैं। जैसे-

  • गृहागत = गृह को आगत
  • पॉकेटमार = पॉकेट को मारनेवाला आदि।

2. करण या तृतीया तत्पुरुष : जिसके पहले पद के साथ करण कारक की विभक्ति (से/द्वारा) लगी हो। जैसे-

  • कष्टसाध्य = कष्ट से साध्य
  • तुलसीकृत = तुलसी द्वारा कृत आदि।

3. सम्प्रदान या चतुर्थी तत्पुरुष : जिसके प्रथम पद के साथ सम्प्रदान कारक के चिह्न (को/के लिए) लगे हों। जैसे-

  • देशार्पण = देश के लिए अर्पण।
  • विद्यालय = विद्या के लिए आलय आदि।

4. अपादान या पंचमी तत्पुरुष : जिसका प्रथम पद अपादान के चिह्न से युक्त हो। जैसे-

  • पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
  • देशनिकाला = देश से निकाला आदि।

5. संबंध तत्पुरुष या षष्ठी तत्पुरुष : जिसके प्रथम पद के साथ संबंधकारक के चिह्न (का, के, की) लगे हों। जैसे-

  • राजकुमार = राजा का कुमार
  • पराधीन = पर के अधीन आदि।

6. अधिकरण या सप्तमी तत्पुरुष : जिसके पहले पद के साथ अधिकरण के चिह्न (में, पर) लगे हों। जैसे-

  • कलाप्रवीण = कला में प्रवीण
  • आपबीती = आप पर बीती आदि।

B. समानाधिकरण तत्पुरुष

जिस तत्पुरुष के सभी पदों में समान कारक (कर्ता) पाया जाय। इस समास के अन्तर्गत निम्नलिखित समास आते हैं-

1. कर्मधारय समास (Appositional):समानाधिकरण तत्पुरुष का ही दूसरा नाम ‘कर्मधारय’ है। जिस तत्पुरुष समास के समस्तपद समानाधिकरण हों अर्थात् विशेष-विशेषण भाव को प्राप्त हों, कर्ता कारक के हों और लिंग-वचन में भी समान हों। दूसरे शब्दों में वह समास जिसमें विशेषण तथा विशेष्य अथवा उपमान तथा उपमेय का मेल हो और विग्रह करने पर दोनों खंडों में एक ही कर्ताकारक की विभक्ति रहे।

कर्मधारण समास की निम्नलिखित स्थितियाँ होती हैं-
(a) पहला पद विशेषण दूसरा विशेष्य :

  • महान्, पुरुष = महापुरुष
  • पक्व अन्न = पक्वान्न

(b) दोनों पद विशेषण :

  • श्वेत और रक्त = श्वेतरक्त
  • भला और बुरा = भलाबुरा
  • कृष्ण और लोहित = कृष्णलोहित

(c) पहला पद विशेष्य दूसरा विशेषण :

  • श्याम जो सुन्दर है = श्यामसुन्दर

(d) दोनों पद विशेष्य :

  • आम्र जो वृक्ष है = आम्रवृक्ष

(e) पहला पद उपमान :

  • घन की भाँति श्याम = घनश्याम
  • वज्र के समान कठोर = वज्रकठोर

(f) पहला पद उपमेय :

  • सिंह के समान नर = नरसिंह

(g) उपमान के बाद उपमेय :

  • चन्द्र के समान मुख = चन्द्रमुख

(h) रूपक कर्मधारय :

  • मुखरूपी चन्द्र = मुखचन्द्र

(i) पहला पद कु :

  • कुत्सित पुत्र = कुपुत्र

2. नञ् तत्पुरुष समास : जिसका पहला पद निषेधवाचक रहे। इसका समस्तपद ‘अ’ या ‘अन्’ से शुरु होता है। जैसे-

  • न ज्ञान = अज्ञान
  • न अवसर = अनवसर
  • न अधिकार = अनधिकार आदि।

3. द्विगु समास (Numeral Compound) : इस समास को संख्यापूर्वपद कर्मधारय कहा जाता है। इसका पहला पद संख्यावाची और दूसरा पद संज्ञा होता है। इसके भी दो भेद होते हैं-

(a) समाहार द्विगु : समाहार का अर्थ है—समुदाय, इकट्ठा होना या समेटना। जैसे-

  • पंचवटी = पाँच वटों का समाहार
  • चौराहा = चार राहों का समाहार

(b) उत्तरपद प्रधान द्विगु : इसका दूसरा पद प्रधान रहता है और पहला पद संख्यावाची। इसमें समाहार नहीं जोड़ा जाता। जैसे-

  • पंचप्रमाण = पाँच प्रमाण

नोट : यदि दोनों पद संख्यावाची हों तो कर्मधारय समास हो जाएगा। जैसे-

  • छत्तीस = छ: और तीस इकत्तीस = एक और तीस
  • चौंतीस = चार और तीस चौबीस = चार और बीस

4. मध्यमपदलोपी समास :
इसमें बीच के पदों का लोप हो जाया करता है। पहला और अंतिम पद ही जुड़कर समस्तपद का निर्माण करता है। जैसे-

5. प्रादि तत्पुरुष : इस समास में ‘प्र’ आदि उपसर्गों तथा दूसरे शब्दों का समास होता है। ‘प्र’ आदि के साथ उन्हीं के रूप से दूसरे शब्द भी जुड़े रहते हैं, परन्तु समास करने पर वे लुप्त हो जाते हैं। जैसे-

  • प्रकृष्ट आचार्य = प्राचार्य

6. उपपद तत्पुरुष :
जिस समास का अंतिम पद ऐसा कृदन्त होता है, जिसका स्वतंत्र रूप से (कृदन्त के रूप में) प्रयोग नहीं होता। जैसे-

  • कुंभ को करनेवाला = कुंभकार
  • जल में जनमनेवाला = जलज।

इन उदाहरणों में ‘कार’ और ‘ज’ दोनों अप्रचलित कृदन्त हैं।

7. अलुक् तत्पुरुष : जिस तत्पुरुष के पहले पद की विभक्ति (कारक-चिह्न) का लोप न होकर उसी में तिरोहित हो जाती है। जैसे-

  • युद्ध में स्थिर रहनेवाला = युधिष्ठिर

इस उदाहरण में-‘युद्ध में’ की जगह पर ‘युधि’ हो गया है यानी ‘में’ चिह्न मिल गया है।

  • इसी तरह-चूहे को मारनेवाला = चूहेमार

8. मयूरव्यंसकादि तत्पुरुष :
इसके समस्तपद का विग्रह करने पर अंतिम पद पहले आ जाता है। जैसे-

  • देशान्तर = भिन्न देश
  • विषयान्तर = अन्य विषय
  • एकमात्र = केवल एक

नोट : मध्यमपदलोपी, प्रादि, उपपद, अलुक् और मयूरव्यंसकादि का अस्तित्व संस्कृत में है हिन्दी में ऐसे उदाहरण बहुत ही कम हैं।