तद्धित प्रत्ययाः – Taddhit Pratya in Sanskrit
Taddhit Pratya in Sanskrit: यः – ‘वह इसका है ‘ अथवा ‘वाला’ अथवा ‘इसमें इन अर्थों में तद्धित से मतुप् प्रत्यय होता है। (कृत् प्रत्यय) इसका ‘मत्’ भाग शेष रहता है, ‘उ’ तथा ‘प्’ का लोप हो जाता है मर्तुप् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुल्लिंग में ‘भगवत्’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘ङीप्’ प्रत्यय जोड़कर ‘नदी’ के समान तथा नपुंसकलिंग में ‘जगत्’ के समान चलते हैं।
तद्धित प्रत्ययाः के भेद-
यहाँ इस प्रकार जानना चाहिए
1. ‘मत्’ प्रत्यय का प्रयोग
प्रायः झयन्त शब्दों अथवा अकारान्त शब्दों के साथ ही होता है। जैसे –
झयन्तेभ्यः
- विद्युत् + मतुप् = विद्युत्वत् अकारान्तेभ्यः
- धन + मतुप् = धनवत्
- विद्या + मतुप् = विद्यावत्।
2. ‘मत्’ प्रत्यय का प्रयोग प्रायः इकारान्त शब्दों के साथ होता है। जैसे –
- श्री + मसुँप् = श्रीमत्
- बुद्धि + मतुप् = बुद्धिमत्।
2. इन् – ठन् प्रत्ययौ
‘अत इनिठनौ’ – अकारान्त शब्दों ‘वाला’ या ‘युक्त’ अर्थ में ‘इनि’ और ‘ठन्’ प्रत्यय होता है। इनि का ‘इन्’ और ठन् का ‘ठ’ शेष रहता है।
- इनि प्रत्यय अकारान्त के अतिरिक्त आकारान्त शब्दों में भी लग सकता है, यथा– मया + इनि = मायिन्, शिखा + इनि = शिखिन्, वीणा + इनि = वीणिन् इत्यादि।
3. त्व तथा तल् प्रत्यय
“तस्य भावः त्व – तलौ” – विशेषणवाची शब्दों से भाववाचक संज्ञाएँ बनाने के लिए त्व तथा तल प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं। त्व प्रत्ययान्त शब्द नपुंसकलिंग होते हैं तथा उनके रूप ‘फल’ शब्द के समान बनते हैं। ‘तल’ प्रत्यय में शब्द के अन्त में ‘ता’ लगता है तथा वे स्त्रीलिङ्ग होते हैं एवं उनके रूप ‘लता’ के समान चलते हैं। यथा–