स्वर संधि – अच् संधि – संस्कृत व्याकरण (Swar Sandhi – Ach Sandhi – Sanskrit Vyakaran)
जब दो स्वरों का सन्धान अथवा मेल होता है, तब वह सन्धान स्वर – सन्धि या अच् सन्धि कही जाती है। यहाँ अच् – सन्धि में स्वर के स्थान पर आदेश होता है। स्वर – सन्धियाँ आठ प्रकार की होती हैं। जैसे –
स्वर सन्धि मे सन्धियाँ 7 प्रकार की होती हैंस्वर संधि – अच् संधि-
1. यण – सन्धि
‘इको यणचि’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में अच् (स्वर) परे रहने पर ‘इक्’ के स्थान पर ‘यण’ होता है। माहेश्वर सूत्र के अनुसार ‘इ/ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ , लु’_ये वर्ण ‘इक्’ वर्ण कहलाते हैं। इसी प्रकार ‘य, व, र, ल’—इन वर्गों को ‘यण’ वर्ण कहते हैं। अतः इक् वर्गों के स्थान पर जहाँ क्रमशः यण वर्ण होते हैं, वहाँ ‘यण् सन्धि’ होती है। इनके क्रमशः
उदाहरण-
(अ) इ/ई + अच् = य् + अच्
- अति + उत्तमः = अत्युत्तमः
- इति + अत्र = इत्यत्र
- इति + आदि = इत्यादि
- इति + अलम् = इत्यलम्
- यदि + अपि = यद्यपि
- प्रति + एकम् = प्रत्येकम्
- नदी + उदकम् = नधुदकम्
- स्त्री + उत्सवः = स्त्र्युत्सवः
- सुधी + उपास्यः = सुध्युपास्यः
2. अयादि सन्धि
“एचोऽयवायावः” सत्र द्वारा संहिता के विषय में अच (कोई भी असमान स्वर) सामने होने पर ‘एच’ (ए, ओ, ऐ, औ) के स्थान पर क्रमशः अयादि (अय्, अव्, आय, आव्) आदेश होते हैं। यथा –
(अ) ए + अच् = अय् + अच्
- ने + अनम् = नयनम्
- कवे + ए = कवये
- हरे + ए = हरये
- शे + अनम् = शयनम्
- हरे + एहि = हरयेहि
- चे + अनम् = चयनम्
3. गुण – सन्धि
‘आद्गुणः’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में अ/आ वर्ण से परे इ/ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ, लु वर्गों में से कोई वर्ण होने पर पूर्व – पर वर्गों के स्थान पर गुण एकादेश (अ, ए, ओ) होता है। इनके क्रमशः
उदाहर-
(अ) अ+इ – ए
- उप + इन्द्रः = उपेन्द्रः
- गज + इन्द्रः = गजेन्द्रः
- न + इति = नेति
- देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
- विकल:+ इन्द्रियः = विकलेन्द्रियः
- राम + इतिहासः = रामेतिहास:
4. वृद्धि सन्धि
‘वृद्धिरेचि’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में अ/आ वर्ण से परे ‘एच’ (ए, ओ, ऐ, औ) होने पर पूर्व एवं पर के स्थान पर वृद्धि एकादेश (आ, ऐ,
औ) होते हैं। इनके क्रमशः
उदाहरण –
(अ) अ/आ + ए = ऐ
- जन + एकता = जनैकता
- एक + एकः = एकैकः
- अत्र + एकमत्यम् = अत्रैकमत्यम्
- राज + एषः राजैषः
- बाला + एषा = बालैषा
- तथा + एव = तथैव
- गंगा + एषा = गंगैषा
- सदा + एव = सदैव
5. सवर्णदीर्घ सन्धि
‘अकः सवर्णे दीर्घः’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में ‘अक्’ प्रत्याहार (अ, इ, उ, ऋ, लु) से परे सवर्ण अच् (स्वर) होने पर पूर्व – पर वर्णों
के स्थान पर दीर्घ एकादेश होता है। इनके क्रमशः उदाहरण यथा –
(अ) अ/आ + अ/आ = आ
- दैत्य + अरिः = दैत्यारिः
- शश + अङ्कः = शशाङ्क:
- गौर + अङ्गः = गौराङ्गः
- विद्या + आलयः = विद्यालयः
- रत्न + आकरः = रत्नाकरः
- यथा + अर्थः = यथार्थः
- विद्या + अभ्यासः = विद्याभ्यासः
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
6. पूर्वरूप सन्धि
‘एङः पदान्तादति’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में यदि पद के अन्त में एङ् (ए, ओ) आए और उसके बाद ह्रस्व ‘अ’ आए तो पूर्व एवं पर वर्गों के स्थान पर पूर्वरूप एकादेश होता है, तथा अकार की स्पष्ट प्रतीति के लिए अवग्रह चिह्न (ऽ) हो जाता है। इनके क्रमशः उदाहरण यथा –
(अ) ए + अ = ए
- अन्ते + अपि = अन्तेऽपि
- ते + अत्र = तेऽत्र
- हरे + अव = हरेऽव
- मे + अन्तिके = मेऽन्तिके
- दीर्घ + अहनि = दीर्घऽहनि
(आ) ओ + अ = ओ
- विष्णो + अत्र = विष्णोऽत्र
- सो + अवदत् = सोऽवदत्
- रामो + अहसत् = रामोऽहसत्
- को + अपि = कोऽपि
7. पररूप सन्धि
(i) ‘एङि पररूपम्’ सूत्र द्वारा यदि अकारान्त उपसर्ग के बाद एङ् (ए, ओ) स्वर जिसके प्रारम्भ में हो ऐसी धातु आए तो दोनों स्वरों (पूर्व – पर) के स्थान पर पररूप एकादेश अर्थात् क्रमशः ए और औ हो जाता है। क्रमशः उदाहरण यथा –
(अ) अ + ए = ए
- प्र + एजते = प्रेजते