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Swar Sandhi – स्वर संधि – अच् संधि – हिन्दी व्याकरण
स्वर के साथ स्वर का मेल होने पर जो विकार होता है, उसे स्वर सन्धि कहते हैं। स्वर सन्धि के पाँच भेद हैं-
(i) दीर्घ सन्धि सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ स्वरों के मिलने से उनके स्थान में सवर्ण दीर्घ स्वर हो जाता है। वर्गों का संयोग चाहे ह्रस्व + ह्रस्व हो या ह्रस्व + दीर्घ और चाहे दीर्घ + दीर्घ हो, यदि सवर्ण स्वर है तो दीर्घ हो जाएगा। इस सन्धि को दीर्घ सन्धि कहते हैं; जैसे
सन्धि – उदाहरण
- अ + अ = आ – पुष्प + अवली = पुष्पावली
- अ + आ = आ – हिम + आलय = हिमालय
- आ + अ = आ – माया + अधीन = मायाधीन
- आ + आ = आ – विद्या + आलय = विद्यालय
- इ + इ = ई – कवि + इच्छा = कवीच्छा
- इ + ई = ई – हरी + ईश = हरीश
- इ + इ = ई – मही + इन्द्र = महीन्द्र
- इ + ई = ई – नदी + ईश = नदीश
- उ + उ = ऊ – सु + उक्ति = सूक्ति
- उ + ऊ = ऊ – सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूमि
- ऊ + उ = ऊ – वधू + उत्सव = वधूत्सव
- ऊ + ऊ = ऊ – भू + ऊर्ध्व = भूल
- ऋ+ ऋ = ऋ – मात + ऋण = मातण
गुण सन्धि
जब अ अथवा आ के आगे ‘इ’ अथवा ‘ई’ आता है तो इनके स्थान पर ए हो जाता है। इसी प्रकार अ या आ के आगे उ या ऊ आता है तो ओ हो जाता है तथा अ या आ के आगे ऋ आने पर अर् हो जाता है। दूसरे शब्दों में, हम इस प्रकार कह सकते हैं कि जब अ, आ के आगे इ, ई या ‘उ’, ‘ऊ’ तथा ‘ऋ’ हो तो क्रमश: ए, ओ और अर् हो जाता है, इसे गुण सन्धि कहते हैं;
जैसे-
- अ, आ + ई, ई = ए
- अ, आ + उ, ऊ = ओ
- अ, आ + ऋ = अर्
सन्धि – उदाहरण
- अ + इ = ए – उप + इन्द्र = उपेन्द्र
- अ + ई = ए – गण + ईश = गणेश
- आ + इ = ए – महा + इन्द्र = महेन्द्र
- आ + ई = ए – रमा + ईश = रमेश
- अ + उ = ओ – चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
- अ + ऊ = ओ – समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
- आ + उ = ओ – महा + उत्सव = महोत्सव
- आ + ऊ = ओ – गंगा + उर्मि = गंगोर्मि
- अ + ऋ = अर् – देव + ऋषि = देवर्षि
- आ + ऋ = अर – महा + ऋषि = महर्षि
वृद्धि सन्धि
जब अ या आ के आगे ‘ए’ या ‘ऐ’ आता है तो दोनों का ऐ हो जाता है। इसी प्रकार अ या आ के आगे ‘ओ’ या ‘औ’ आता है तो दोनों का औ हो जाता है, इसे वृद्धि सन्धि कहते हैं;
जैसे-
सन्धि – उदाहरण
- अ + ए = ऐ – पुत्र + एषणा = पुत्रैषणा
- अ + ऐ = ऐ – मत + ऐक्य = मतैक्य
- आ + ए = ऐ – सदा + एव = सदैव
- आ + ऐ = ऐ – महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
- अ + ओ = औ – जल + ओकस = जलौकस
- अ + औ = औ – परम + औषध = परमौषध
- आ + ओ = औ – महा + ओषधि = महौषधि
- आ + औ = औ – महा + औदार्य = महौदार्य
यण सन्धि
जब इ, ई, उ, ऊ, ऋ के आगे कोई भिन्न स्वर आता है तो ये क्रमश: य, व, र, ल् में परिवर्तित हो जाते हैं, इस परिवर्तन को यण सन्धि कहते हैं;
जैसे-
- इ, ई + भिन्न स्वर = व
- उ, ऊ + भिन्न स्वर = व
- ऋ + भिन्न स्वर = र
सन्धि – उदाहरण
- इ + अ = य् – अति + अल्प = अत्यल्प
- ई + अ = य् – देवी + अर्पण = देव्यर्पण
- उ + अ = व् – सु + आगत = स्वागत
- ऊ + आ = व – वधू + आगमन = वध्वागमन
- ऋ + अ = र् – पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
(v) अयादि सन्धि जब ए, ऐ, ओ और औ के बाद कोई भिन्न स्वर आता है तो ‘ए’ का अय, ‘ऐ’ का आय् , ‘ओ’ का अव् और ‘औ’ का आव् हो जाता है;
जैसे-
- ए + भिन्न स्वर = अय्
- ऐ + भिन्न स्वर = आय्
- ओ + भिन्न स्वर = अव्
- औ + भिन्न स्वर = आव्
सन्धि – उदाहरण
- ए + अ = अय् – ने + अयन = नयन
- ऐ + अ = आय् – नै + अक = नायक
- ओ + अ = अव् – पो + अन = पवन
- औ + अ = आव् – पौ + अक = पावक