Shlesh Alankar - श्लेष अलंकार, परिभाषा उदाहरण अर्थ हिन्दी एवं संस्कृत

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श्लेष अलंकार की परिभाषा

‘श्लेष’ का अर्थ चिपकना। जिस शब्द में एकाधिक अर्थ हों, उसे ही श्लिष्ट शब्द कहते हैं। श्लेष के दो भेद होते हैं–शब्द-श्लेष और अर्थ-श्लेष

(a) शब्द श्लेष :
जहाँ एक शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है, वहाँ शब्द-श्लेष होता है।

जैसे-
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुस, चून।।
यहाँ दूसरी पंक्ति में ‘पानी’ श्लिष्ट शब्द है, जो प्रसंग के अनुसार तीन अर्थ दे। रहा है-
मोती के अर्थ में – चमक
मनुष्य के अर्थ में – प्रतिष्ठा और
चूने के अर्थ में – जल

इस एक शब्द के द्वारा अनेक अर्थों का बोध कराए जाने के कारण यहाँ श्लेष अलंकार है।

(b) अर्थ श्लेष :
जहाँ सामान्यतः एकार्थक शब्द के द्वारा एक से अधिक अर्थों का बोध हो, उसे अर्थ-श्लेष कहते हैं।

जैसे-

नर की अरु नलनीर की गति एकै कर जोय।
जेतो नीचो ह्वै चले, तेतो ऊँचो हो।।

उक्त उदाहरण की दूसरी पंक्ति में ‘नीचो हवै चले’ और ऊँचो होय’ शब्द सामान्यतः एक ही अर्थ का बोध कराते हैं, लेकिन ‘नर’ और ‘नलनीर’ के प्रसंग में दो भिन्नार्थों की प्रतीति कराते हैं।

कुछ अन्य उदाहरण :

(a) पी तुम्हारी मुख बास तरंग
आज बौरे भौरे सहकार।

बौर-भौंर के प्रसंग में मस्त होना
आम के प्रसंग में–मंजरी निकलना

(b) जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारे करै, बढ़े अँधेरो होय।।
‘बारे’ का अर्थ-जलाना और बचपन
‘बढ़े’ का अर्थ-बुझने पर और बड़े होने पर

(c) जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति-सी छाई।
दुर्दिन में आँसू बनकर आज बरसने आई।।

‘घनीभूत’ के अर्थ–इकट्ठी और मेघ बनी हुई
दुर्दिन के अर्थ-बुरे दिन और मेघाच्छन्न दिन।

(d) रावन सिर सरोज बनचारी चलि रघुवीर सिलीमुख धारी।
सिलीमुख’ के अर्थ-बाण, भ्रमर

(e) सुबरन को ढूँढ़त फिरत कवि, व्यभिचारी, चोर।
‘सुबरन’ के अर्थ–सुन्दर वर्ण, सुन्दर स्त्री और सोना।

(f) रंचहि सो ऊँचो चढ़े, रंचहि सो घटि जाय।
तुलाकोटि खल दुहुन की, एकै रीति लखाय।।

(g) या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोई।
ज्यों-ज्यों बूडे स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होई।

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