सार्वनामिक विशेषण
हम जानते हैं कि विशेषण के प्रयोग से विशेष्य का क्षेत्र सीमित हो जाता है। जैसे— ‘गाय’ कहने से उसके व्यापक क्षेत्र का बोध होता है; किन्तु ‘काली गाय’ कहने से गाय का क्षेत्र सीमित हो जाता है। इसी तरह “जब किसी सर्वनाम का मौलिक या यौगिक रूप किसी संज्ञा के पहले आकर उसके क्षेत्र को सीमित कर दे, तब वह सर्वनाम न रहकर ‘सार्वनामिक विशेषण‘ बन जाता है।”
जैसे-
- यह गाय है।
- वह आदमी है।
इन वाक्यों में ‘यह’ एवं ‘वह’ गाय तथा आदमी की निश्चितता का बोध कराने के कारण निश्चयवाचक सर्वनाम हुए; किन्तु यदि ‘यह’ एवं ‘वह’ का प्रयोग इस रूप में किया जाय-
- यह गाय बहुत दूध देती है।
- वह आदमी बड़ा मेहनती है।
तो ‘यह’ और ‘वह’ ‘गाय’ एवं आदमी के विशेषण बन जाते हैं। इसी तरह अन्य उदाहरणों को देखें-
- वह गदहा भागा जा रहा है।
- जैसा काम वैसा ही दाम, यही तो नियम है।
- जितनी आमद है उतना ही खर्च भी करो।
वाक्यों में विशेषण के स्थानों के आधार पर उन्हें दो भागों में बाँटा गया है-
1. सामान्य विशेषण : जिस विशेषण का प्रयोग विशेष्य के पहले हो, वह ‘सामान्य विशेषण’ कहलाता है।
जैसे
- काली गाय बहुत सुन्दर लगती है।
- मेहनती आदमी कहीं भूखों नहीं मरता।
2. विधेय विशेषण : जिस विशेषण का प्रयोग अपने विशेष्य के बाद हो, वह ‘विधेय विशेषण’ कहलाता है।
जैसे-
- वह गाय बहुत काली है।
- आदमी बड़ा मेहनती था।
प्रविशेषण या अंतरविशेषण
विशेषण तो किसी संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताता है; परन्तु कुछ शब्द विशेषण एवं क्रियाविशेषण (Adverb) की विशेषता बताने के कारण ‘प्रविशेषण’ या अंतरविशेषण’ कहलाते हैं। नीचे लिखे उदाहरणों को ध्यानपूर्वक देखें-
1. विश्वजीत डरपोक लड़का है। (विशेषण)
विश्वजीत बड़ा डरपोक लड़का है। (प्रविशेषण)
2. सौरभ धीरे-धीरे पढ़ता है। (क्रियाविशेषण)
सौरभ बहुत धीरे-धीरे पढ़ता है। (प्रविशेषण)
उपर्युक्त वाक्यों में ‘बड़ा’, ‘डरपोक’ विशेषण की और ‘बहुत’ शब्द ‘धीरे-धीरे’ क्रिया विशेषण की विशेषता बताने के कारण ‘प्रविशेषण’ हुए।
नीचे लिखे वाक्यों में प्रयुक्त प्रविशेषणों को रेखांकित करें :
- बहुत कड़ी धूप है, थोड़ा आराम तो कर लीजिए।
- पिछले साल बहुत अच्छी वर्षा होने के कारण फसल भी काफी अच्छी हुई।
- ऐसा अवारा लड़का मैंने कहीं नहीं देखा है।
- वह किसान काफी मेहनती और धनी है।
- बहुत कमजोर लड़का काफी सुस्त हो जाता है।
- गंगा का जल अब बहुत पवित्र नहीं रहा।
- चिड़िया बहुत मधुर स्वर में चहचहा रही है।
- बचपन बड़ा उम्दा होता है।
- साहस जिन्दगी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गुण है।
- हँसती-मुस्कराती प्राकृतिक सुषमा कितनी प्रदूषित हो चुकी है!
विशेषणों की तुलना (Comparison of Adjectives)
“जिन विशेषणों के द्वारा दो या अधिक विशेष्यों के गुण-अवगुण की तुलना की जाती है, उन्हें ‘तुलनाबोधक विशेषण’ कहते हैं।”
तुलनात्मक दृष्टि से एक ही प्रकार की विशेषता बतानेवाले पदार्थों या व्यक्तियों में मात्रा का अन्तर होता है। तुलना के विचार से विशेषणों की तीन अवस्थाएँ होती हैं
1. मूलावस्था (Positive Degree) : इसके अंतर्गत विशेषणों का मूल रूप आता है। इस अवस्था में तुलना नहीं होती, सामान्य विशेषताओं का उल्लेख मात्र होता है।
जैसे-
- अंशु अच्छी लड़की है।
- आशु सुन्दर है।
2. उत्तरावस्था (Comparative Degree) : जब दो व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच अधिकता या न्यूनता की तुलना होती है, तब उसे विशेषण की उत्तरावस्था कहते हैं।
जैसे-
- अंशु आशु से अच्छी लड़की है।
- आशु अंशु से सुन्दर है।
उत्तरावस्था में केवल तत्सम शब्दों में ‘तर’ प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे-
- सुन्दर + तर > सुन्दरतर
- महत् + तर > महत्तर
- लघु + तर > लघुतर
- अधिक + तर > अधिकतर
- दीर्घ + तर > दीर्घतर
हिन्दी में उत्तरावस्था का बोध कराने के लिए ‘से’ और ‘में’ चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
- बच्ची फूल से भी कोमल है।
- इन दोनों लड़कियों में वह सुन्दर है।
विशेषण की उत्तरावस्था का बोध कराने के लिए ‘के अलावा’, ‘की तुलना में’, ‘के मुकाबले’ आदि पदों का प्रयोग भी किया जाता है।
जैसे-
- पटना के मुकाबले जमशेदपुर अधिक स्वच्छ है।
- संस्कृत की तुलना में अंग्रेजी कम कठिन है।
- आपके अलावा वहाँ कोई उपस्थित नहीं था।
3. उत्तमावस्था (Superlative Degree) : यह विशेषण की सर्वोत्तम अवस्था है। जब दो से अधिक व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच तुलना की जाती है और उनमें से एक को श्रेष्ठता या निम्नता दी जाती है, तब विशेषण की उत्तमावस्था कहलाती है।
जैसे-
- कपिल सबसे या सबों में अच्छा है।
- दीपू सबसे घटिया विचारवाला लड़का है।
तत्सम शब्दों की उत्तमावस्था के लिए ‘तम’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे-
- सुन्दर + तम > सुन्दरतम
- महत् + तम > महत्तम।
- लघु + तम > लघुतम
- अधिक + तम > अधिकतम
- श्रेष्ठ + तम > श्रेष्ठतम
‘श्रेष्ठ’, के पूर्व, ‘सर्व’ जोड़कर भी इसकी उत्तमावस्था दर्शायी जाती है।
जैसे-
- नीरज सर्वश्रेष्ठ लड़का है।
फारसी के ‘ईन’ प्रत्यय जोड़कर भी उत्तमावस्था दर्शायी जाती है।
जैसे-
- बगदाद बेहतरीन शहर है।
विशेषणों की रचना
विशेषण पदों की रचना प्रायः सभी प्रकार के शब्दों से होती है। शब्दों के अन्त में ई, इक, . मान्, वान्, हार, वाला, आ, ईय, शाली, हीन, युक्त, ईला प्रत्यय लगाने से और कई बार अंतिम प्रत्यय का लोप करने से विशेषण बनते हैं।
- ‘ई’ प्रत्यय : शहर-शहरी, भीतर-भीतरी, क्रोध-क्रोधी ‘इक’
- प्रत्यय : शरीर-शारीरिक, मन—मानसिक, अंतर-आंतरिक ‘मान्’
- प्रत्यय : श्री–श्रीमान्, बुद्धि—बुद्धिमान्, शक्ति-शक्तिमान् ‘वान्’
- प्रत्यय : धन-धनवान्, रूप-रूपवान्, बल-बलवान् ‘हार’ या ‘हार’
- प्रत्यय : सृजन-सृजनहार, पालन-पालनहार ‘वाला’
- प्रत्यय : रथ रथवाला, दूध-दूधवाला ‘आ’
- प्रत्यय : भूख-भूखा, प्यास-प्यासा ‘ईय’
- प्रत्यय : भारत-भारतीय, स्वर्ग–स्वर्गीय ‘ईला’
- प्रत्यय : चमक-चमकीला, नोंक-नुकीला ‘हीन’
- प्रत्यय : धन-धनहीन, तेज-तेजहीन, दया—दयाहीन
- धातुज : नहाना—नहाया, खाना-खाया, खाऊ, चलना—चलता, बिकना—बिकाऊ
- अव्ययज : ऊपर-ऊपरी, भीतर-भीतर-भीतरी, बाहर–बाहरी
संबंध की विभक्ति लगाकार—लाल रंग की साड़ी, तेज बुद्धि का आदमी, सोनू का घर, गरीबों की दुनिया।
नोट : विशेषण पदों के निर्माण से संबंधित बातों की विस्तृत चर्चा ‘प्रत्यय-प्रकरण’ में की जा चुकी है। विशेषणों का रूपान्तर
विशेषण का अपना
लिंग-वचन नहीं होता। वह प्रायः अपने विशेष्य के अनुसार अपने रूपों को परिवर्तित करता है। हिन्दी के सभी विशेषण दोनों लिंगों में समान रूप से बने रहते हैं; केवल आकारान्त विशेषण स्त्री० में ईकारान्त हो जाया करता है।
अपरिवर्तित रूप
- बिहारी लड़के भी कम प्रतिभावान् नहीं होते।
- बिहारी लड़कियाँ भी कम सुन्दर नहीं होती।
- वह अपने परिवार की भीतरी कलह से परेशान है।
- उसका पति बड़ा उड़ाऊ है।
- उसकी पत्नी भी उड़ाऊ ही है।
परिवर्तित रूप
- अच्छा लड़का सर्वत्र आदर का पात्र होता है।
- अच्छी लड़की सर्वत्र आदर की पात्रा होती है।
- बच्चा बहुत भोला-भाला था।
- बच्ची बहुत भोली-भाली थी।
- हमारे वेद में ज्ञान की बातें भरी-पड़ी हैं।
- हमारी गीता में कर्मनिरत रहने की प्रेरणा दी गई है।
- महान आयोजन महती सभा
- विद्वान सर्वत्र पूजे जाते हैं।
- विदुषी स्त्री समादरणीया होती है।
- राक्षस मायावी होता था।
- राक्षसी मायाविनी होती थी।
जिन विशेषण शब्दों के अन्त में ‘इया’ रहता है, उनमें लिंग के कारण रूप-परिवर्तन नहीं होता।
जैसे-
- मुखिया, दुखिया, बढ़िया, घटिया, छलिया।
- दुखिया मर्दो की कमी नहीं है इस देश में।
- दुखिया औरतों की भी कमी कहाँ है इस देश में।
उर्दू के उम्दा, ताजा, जरा, जिंदा आदि विशेषणों का रूप भी अपरिवर्तित रहता है।
जैसे-
- आज की ताजा खबर सुनो।
- पिताजी ताजा सब्जी लाये हैं।
- वह आदमी अब तलक जिंदा है।
- वह लड़की अभी तक जिंदा है।
सार्वनामिक विशेषणों के रूप भी विशेष्यों के अनुसार ही होते हैं।
जैसे-
- जैसी करनी वैसी भरनी
- यह लड़का—वह लड़की
- ये लड़के-वे लड़कियाँ
जो तद्भव विशेषण ‘आ’ नहीं रखते उन्हें ईकारान्त नहीं किया जाता है। स्त्री० एवं पुं० बहुवचन में भी उनका प्रयोग वैसा ही होता है।
जैसे
- ढीठ लड़का कहीं भी कुछ बोल जाता है।
- ढीठ लड़की कुछ-न-कुछ करती रहती है।
- वहाँ के लड़के बहुत ही ढीठ हैं।
जब किसी विशेषण का जातिवाचक संज्ञा की तरह प्रयोग होता है तब स्त्री.- पुं. भेद बराबर स्पष्ट रहता है।
जैसे-
- उस सुन्दरी ने पृथ्वीराज चौहान को ही वरण किया।
- उन सुन्दरियों ने मंगलगीत प्रारंभ कर दिए।
परन्तु, जब विशेषण के रूप में इनका प्रयोग होता है तब स्त्रीत्व-सूचक ‘ई’ का लोप हो जाता है।
जैसे-
- उन सुन्दर बालिकाओं ने गीत गाए।
- चंचल लहरें अठखेलियाँ कर रही हैं।
- मधुर ध्वनि सुनाई पड़ रही थी।
जिन विशेषणों के अंत में ‘वान्’ या ‘मान्’ होता है, उनके पुँल्लिंग दोनों वचनों में ‘वान्’ या ‘मान्’ और स्त्रीलिंग दोनों वचनों में ‘वती’ या ‘मती’ होता है।
जैसे-
- गुणवान लड़का : गुणवान् लड़के
- गुणवती लड़की : गुणवती लड़कियाँ
- बुद्धिमान लड़का : बुद्धिमान लड़के
- बुद्धिमती लड़की : बुद्धिमती लड़कियाँ