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सन्देह अलंकार
सन्देह अलंकार परिभाषा
न्देह अलंकार उपमेय में जब उपमान का संशय हो तब संदेह अलंकार होता है। जैसे- कहूँ मानवी यदि मैं तुमको तो ऐसा संकोच कहाँ? कहूँ दानवी तो उसमें है यह लावण्य की लोच कहाँ?
वन देवी सम तो वह तो होती है भोली-भाली। तुम्ही बताओ अतः कौन हो तुम हे रंजित रहस्य वाली? (लक्ष्मण ने जब शूर्पणखा को देखा तो उन्हें मानवी, दानवी और वन देवी का संदेह हुआ)।
जहाँ अति सादृश्य के कारण उपमेय और उपमान में अनिश्चय की स्थिति बनी रहे अर्थात् जब उपमेय में अन्य किसी वस्तु का संशय उत्पन्न हो जाए, तो वहाँ सन्देह अलंकार होता है;
कुछ अन्य उदाहरण :
(a) विरह है अथवा यह वरदान !
(b) है उदित पूर्णेन्दु वह अथवा किसी
कामिनी के वदन की छिटकी छटा?
मिट गया संदेह क्षण भर बाद ही
पान कर संगीत की स्वर माधुरी।
“सारी बीच नारी है या नारी बीच सारी है,
कि सारी की नारी है कि नारी की ही सारी।”
यहाँ उपमेय में उपमान का संशयात्मक ज्ञान है अतः यहाँ सन्देह अलंकार है। 6. दृष्टान्त जहाँ किसी बात को स्पष्ट करने के लिए सादृश्यमूलक दृष्टान्त प्रस्तुत किया जाता है, वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है;
जैसे-
“मन मलीन तन सुन्दर कैसे।
विषरस भरा कनक घट जैसे।।”
यहाँ उपमेय वाक्य और उपमान वाक्य में बिम्ब-प्रतिबिम्ब का भाव है अतः यहाँ दृष्टान्त अलंकार है।