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रूपक अलंकार
जब उपमेय पर उपमान का निषेध-रहित आरोप करते हैं, तब रूपक अलंकार होता है। उपमेय में उपमान के आरोप का अर्थ है–दोनों में अभिन्नता या अभेद दिखाना। इस आरोप में निषेध नहीं होता है। जैसे-
- “यह जीवन क्या है? निर्झर है।”
इस उदाहरण में जीवन को निर्झर के समान न बताकर जीवन को ही निर्झर कहा गया है। अतएव, यहाँ रूपक अलंकार हुआ।
दूसरा उदाहरण-
बीती विभावरी जागरी !
अम्बर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी।
यहाँ, ऊषा में नागरी का, अम्बर में पनघट का और तारा में घट का निषेध-रहित आरोप हुआ है। अतः, यहाँ रूपक अलंकार है।
कुछ अन्य उदाहरण :
- मैया ! मैं तो चन्द्र-खिलौना लैहों।
- चरण-कमल बन्दौं हरिराई।
- राम कृपा भव-निसा सिरानी।
- प्रेम-सलिल से द्वेष का सारा मल धुल जाएगा।
- चरण-सरोज पखारन लागा।
- प्रभात यौवन है वक्ष-सर में
कमल भी विकसित हुआ है कैसा। - बंदौं गुरुपद-पदुम परागा
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा। - पायो जी मैंने नाम-रतन धन पायो।
- एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास।
- कर जाते हो व्यथा भार लघु
बार-बार कर-कंज बढ़ाकर।