Kerala Plus Two Hindi Textbook Answers Unit 1 Chapter 1 मातृभूमि (कविता)
प्रश्न 1.
यह चित्र किससे संबंधित है?
उत्तर:
नमक सत्याग्रह से संबन्धित है।
प्रश्न 2.
यह यात्रा किसके लिए थी? (Page 9)
उत्तर:
यह ऐतिहासिक दण्डी यात्रा नमक कानून को तोड़कर नमक बनाने केलिए थी।
प्रश्न 3.
दो शब्दों के मेल से बने हुए अनेक शब्द कविता में हैं। उन्हें चुनकर लिखें।
जैसेः नीलांबर – नीले रंग का अंबर
उत्तर:
हरित तट | हरित रंग का तट |
सूर्य-चन्द्र | सूर्य और चन्द्र |
शेषफन | शेष का फन |
खग- वृद | खगों का वृंद |
हर्षयुत | हर्ष से युक्त |
खेलकूद | खेल और कूद |
प्रेम प्रवाह | प्रेम का प्रवाह |
प्रश्न 4.
कवि ने मातृभूमि का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तरः
मातृभूमि के हरे-भरे तट पर आकाश नीले रंग के वस्त्र की तरह शोभित है। सूर्य और चन्द्र इस भूमि का मुकुट है और समुद्र करधनी है। नदियाँ प्रेम प्रवाह है और फूल-तारे आभूषण है। बंदीजन पक्षियों का समूह है और शेष नाग का फन सिंहासन है। बादल पानी बरसाकर उसका अभिषेक करते रहते हैं। इस तरह की सगुण साकार मूर्ति है मातृभूमि।
प्रश्न 5.
मातृभूमि से कवि का बचपन कैसे जुडा है?
उत्तरः
मातृभूमि की धूली में लोट-लोट कर कवि बडे हुए है। इसी धरती पर घुटनों के बल पर रेंगकर वे धीरे-धीरे पौरों पर खडा रहना सीख लिया है। इसी पुण्य भूमि में रहकर उसने श्रीरामकृष्ण परमहंस की तरह सब सुखों को बाल्यकाल में ही भोगा है। इसके कारण ही उसे धूल भरे हीरे कहलाए।
प्रश्न 6.
तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा – कवि इस प्रकार क्यों सोचता है?
उत्तरः
माता द्वारा अपने बच्चों केलिए किए गए कार्यों केलिए प्रत्युपकार करना आसान नहीं है। माँ का स्नेह असीम है। यहाँ मातृभूमि माँ का प्रतीक है। माँ की निस्वार्थ सेवाओं केलिए प्रस्तुपकार कभी नहीं कर सकता।
मातृभूमि अनुवर्ती कार्य:
प्रश्न 1.
कविता की अस्वादन टिप्पणी लिखें।
उत्तरः
द्विवेदी युग के प्रसिद्ध कवि है श्री मैधिली शरण गुप्त। वे राष्ट्रकवि माने जाते हैं। मातृभूमि गुप्त जी की एक प्रसिद्ध कविता है, जिसमें अपने जन्मभूमि का गुणगान करके उसकेलिए अपने जान भी देना का आह्वान करते हैं। मातृभूमि के हरियाली केलिए नीलाकाश एक सुंदर वस्त्र की तरह शोभित है। सूरज और चाँद इसकी मुकुट है, सागर इसकी करधनी है। यहाँ बहनेवाली नदियाँ प्रेम का प्रवाह है। तारे और फूल इसके आभूषण है। पक्षियाँ स्तुतिपाठक है, आदिशेष का सहस्र फन सिंहासन है। बादलों पानी बरसाकर इसका अभिषेक करते हैं। कवि अपनी मातृभूमि के इस सुंदर रूप पर आत्मसमर्पण करते हैं। वे कहते हैं वास्तव में तू सगुण-साकार मूर्ती है।
जन्मभूमि से कवि का बचपन का संबंध व्यक्त करते हुए कवि कहते हैं कि इसके धूली में लोट-लोटकर बडे हुए है। इसी भूमि पर घुटनों के बल पर सरक सरक कर ही पैरों पर खड़ा रहना सीखा। यहाँ रखकर ही बचनप में उसने श्रीरामकृष्ण परमहंस की तरह सभी आनंद पाया। इसके कारण ही उसे धूली भरे हीरे कहलाये। इस जन्मभूमि के गोदी में खेलकूद करके हर्ष का अनुभव किया है। एसी मातृभूमि को देखकर हम आनंद से मग्न हो जाते हैं। कवि कहते हैं – जो सुख शाँती हमने भोगा है, वे सब तुम्हारी ही देन है। तुझसे किए गए उपकारों का बदला देना आसान नहीं है। यह देह तेरा है, तुझसे ही बनी हुई है। तेरे ही जीव-जल से सनी हुई है। अंत में मृत्यु होने पर यह निर्जीव शरीर तू ही अपनाएगा। हे मातृभूमि। अंत में हम सब तेरी ही मिट्टी में विलीन हो जाएगा। सरल शब्दों में कवि मातृभूमि केलिए अपनी जान अर्पित करने की प्रेरणा देती है। आधुनिक समाज में देशप्रेम की ज़रूरत बड़ते जा रहे हैं। आतंकवाद, सांप्रदायिकता आदि को रोकने केलिए देशप्रम की ज़रूरत हैं।
मातृभूमि कविता पढ़कर प्रश्नों का उत्तर लिखें।
प्रश्न 1.
धरती का परिधान क्या है?
उत्तर:
नीलांबर।
प्रश्न 2.
मातृभूमि का मुकुट क्या है?
उत्तरः
सूर्य और चंन्द्र मातृभूमि के मुकुड है।
प्रश्न 3.
मातृभूमि का करधनी क्या है?
उत्तरः
मातृभूमि का करधनी समुद्र है।
प्रश्न 4.
कौन मातृभूमि के स्तुति गीत गाते है?
उत्तरः
पक्षियों का समूह।
प्रश्न 5.
कवि अपनी मातृभूमि केलिए क्या करना चाहते हैं?
उत्तरः
कवि अपनी मातृभूमि के लिए आत्मसमर्पण करना चाहते हैं।
प्रश्न 6.
कवि कैसे बड़े हुए हैं?
उत्तरः
इस धरती की धूली में लोट-लोट कर बड़े हुए है।
प्रश्न 7.
कवि पैरों पर खडा रहना कैसे सीखा है?
उत्तरः
इस धरती में घुटनों के बल पर रेंगकर पैरों पर खड़ा रहना सीखा।
Plus Two Hindi मातृभूमि Questions and Answers
सूचनाः
निम्नलिखित कवितांश पढ़ें और 1 से 4 तक के प्रश्नों के उत्तर लिखें।
नीलांबर परिधान हरित तट पर सुंदर है।
सूर्य-चंद्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।।
नदियाँ प्रेम प्रवाह फूल तारे मंडन हैं।
बंदीजन खग-वृंद, शेषफन सिंहासन है।।
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।।
प्रश्न 1.
इसके रचनाकर कौन है? (आनंद बख्शी, कुँवर नारायण, मैथिलीशरण गुप्त, जगदीश गुप्त
उत्तरः
मैथिलीशरण गुप्त
प्रश्न 2.
“रत्नाकर’ शब्द का समानार्थी शब्द कोष्ठक से चुनकर लिखें। (नदी, समुद्र, तालाब, नाला)
उत्तरः
समुद्र
प्रश्न 3.
मातृभूमि के आभूषण क्या-क्या हैं?
उत्तरः
नीलांबर, सूर्य-चन्द्र युग, रत्नाकर, नदियाँ, फूल तारे, खग – वृंद, शेषफन आदि मातृभूमि के आभूषण है।
प्रश्न 4.
कवितांश की आस्वादन-टिप्पणी लिखें।
उत्तरः
द्विवेदी युग के प्रसिद्ध कवि है श्री मैथिलीशरण गुप्त। वे राष्ट्रकवि माने जाते हैं। प्रस्तुत कविताँश में कवि मातृभूमि भारत के गुणगान करते हैं। मातृभूमि के हरियाली में नीलाकाश एक सुंदर वस्त्र की तरह शोभित है। सूरज और चाँद इसकी मुकुट है। सागर इसकी करधनी है। यहाँ बहनेवाली नदियाँ प्रेम का प्रवाह है। पक्षियों मातृभूमि के गुणगान करते है, अदिशेष का सहस्र फन सिंहासन है, बादलों पानी बरसाकर इसका अभिषेक करते है। कवि अपनी मातृभूमि के इस सुंदर रूप पर आत्मसमर्पण करते हैं। कवि कहते हैं वास्तव में तू सगुण-साकार मूर्ती है। यहाँ कवि तत्सम शब्दों के साथ भारतीय दर्शन को साथ लिया है। धरती माँ के समान है। वह जीवनदायिनी है। हमें उसकी गरिमा पर गर्व करना चाहिए। इतना सुंदर रूप के साथ धरती माता सजा हुआ है। आज के प्रदूषित जीवन में इस कविता की प्रासंगिकता बहुत बड़ा है।
सूचनाः
निम्नलिखित कवितांश पढ़ें और 1 से 4 तक के प्रश्नों के उत्तर लिखें।
पाकर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा।
तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?
तेरी ही यह देह, तुझी से बनी हुई है।
बस तेरे ही सुरस-सार से सनी हुई है।।
प्रश्न 1.
यह किस कविता का अंश है? (मातृभूमि, सपने का भी हक नहीं, कुमुद फूल बेचनेवाली लड़की, आदमी का चेहरा)
उत्तरः
मातृभूमि
प्रश्न 2
कवि की राय में भारवासियों की देह किससे बनी हुई है?
उत्तरः
मातृभूमि से/ मिट्टी से
प्रश्न 3.
तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा? ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तरः
मातृभूमि माँ के समान है। जिस प्रकार माँ की ममता का प्रत्युपकार कर नहीं सकता है उसी प्रकार मातृभूमि का भी प्रत्युपकार हम नहीं कर सकते। मातृभूमि का स्थान हम मानव से भी श्रेष्ठ है।
प्रश्न 4.
कवितांश की आस्वादन-टिप्पणी लिखें।
उत्तरः
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की विख्यात कविता है “मातृभूमि”। इसमें मातृभूमि को हमने जननी का स्थान दिया है। मातृभूमि के लिए हमें अपना जीवन अर्पित करना है।
मातृभूमि के महत्व के बारे में याद करते हुए गुप्तजी कह रहे हैं आज तक जिन सुखों को हमने प्राप्त किया है, वह मातृभूमि का देन है। कवि कह रहे हैं, मातृभूमि माँ जैसी है। ऐसी मातृभूमि का प्रत्युपकार कभी भी हमसे नहीं हो सकता। हमारा शरीर जो है, तुम्हारी मिट्टी से बनी हुई है। तेरे ही जीव-जल से सनी हुई है। तुझसे किए गए उपकारों का बदला देना आसान नहीं है।
सरल शब्दों में कवि मातृभूमि के लिए अपनी जान अर्पित करने की प्रेरणा दे रही है। कविता की भाषा एवं भाव अत्यंत सरल एवं सारगर्भित है।
सूचनाः
निम्नलिखित कवितांश पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर लिखें।
नीलंबर परिधान हरित पट पर सुंदर है।
सूर्य-चंद्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।।
नदियाँ प्रेम प्रवाह फूल तारे मंडन हैं।
बंदीजन खग-वृंद, शेषफन सिंहासन है।।
करत अभिषेक पयोद हैं, बलिदारी इस वेष की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।।
प्रश्न 1.
मातृभूमि किसकी सगुण मूर्ति है? (ईश्वर की, माता की, गुरु की)
उत्तरः
ईश्वर की
प्रश्न 2.
मातृभूमि का मुकट क्या है?
उत्तरः
सूर्य और चंद्र
प्रश्न 3.
कवि मातृभूमि पर बलिहारी होता है। क्यों?
उत्तरः
मातृभूमि और प्रकृति में अटूट संबंध है। इसलिए कवि मातृभूमि को ईश्वर की सगुण मूर्ति मानता है और मातृभूमि पर बलिहारी होता हैं।
प्रश्न 4.
द्विवेदीयुगीन कविता की विशेषताओं पर चर्चा करके कवितांश की आस्वादन-टिप्पणी लिखें।
उत्तरः
द्विवेदी युग में कविता राष्ट्रीयता तथा समाज-सुधार की भावनाओं से मुखरित है। देशप्रेम, मानवतावाद तथा संवच्छंद प्रकृति चित्रण आदि भी देख सकते हैं। इस समय के प्रसिद्ध कवि है मैथिलीशरण गुप्त। साकेत, यशोधरा, पंचवटी आदि आपके प्रसिद्ध रचनायें हैं। मातृभूमि गुप्त जी के एक प्रसिद्ध कविता है। इसमें कवि मातृभूमि के वर्णन किया है। हरित तट में नीलांबर यानी आकाश रूपी वस्त्र सौंदर्य देते हैं। सूर्य और चंद्र पृथ्वी के मुकंट है। समुद्र इस रूप की मेखला है। प्रेम प्रवाह के रूप में नदियाँ हैं। फूल और तारे आभूषण है। खग-वृंद वंदना करतें हैं। सिंहासन रूप में शेषनाग का फण हैं। पयोद पृथ्वी पर अभिषेक करते हैं। सत्य ही मातृभूमि ईश्वर की सगुण मूर्ति हैं और कवि इस वेष की बलिदारी होते हैं।
इस कवितांश में तत्सम शब्दों को इस्तेमाल किया है। प्रकृति, देशप्रेम आदि के प्रमुखता है। आज भी प्रासंगिकता रखते हैं यह छात्रानुकूल कविता।
सूचनाः
निम्नलिखित कवितांश पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर लिखें।
पाकर मुझसे सभी सुखों को हमने भोगा।
तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?
तेरी ही यह देह, तुझी से बनी हुई है।
बस तेरे ही सुरस-सार से सनी हुई है।
फिर अंत समय तू ही इसे अचल देख अपनाएगी।
हे मातृभूमि! यह अंत में तुझमें ही मिल जाएगी।।
प्रश्न 1.
‘मातृभूमि’ किस युग की कविता है? (द्विवेदी युग, छायावादी युग, प्रगतिवादी युग)
उत्तरः
द्विवेदी युग
प्रश्न 2.
‘धुलि’ का समानार्थी शब्द कवितांश से ढूँढ़ें। (सनी, बनी, मिली)
उत्तरः
सनी
प्रश्न 3.
‘तेरा प्रस्तुपकार कभी क्या हमसे होगा’ – कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तरः
हमारा सबकुछ मातृभूमि से मिली है। यह देह, यह जीवन और अंत में हमें स्वीकार करनेवाला भी मातृभूमि है। इसलिए कवि ऐसा कहता है।
प्रश्न 4.
कवि एवं काव्यधारा का परिचय देते हुए कवितांश की आस्वादन टिप्पणी लिखें।
उत्तरः
प्रस्तुत पंक्तियाँ द्विवेदी युग के प्रसिद्ध कवि श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखा गया है। देशप्रेम, वीरता, प्रकृति चित्रण आदि इस समय के विशेषताएँ है। खड़ी बोली का विकास भी इस काल में हुआ है। साकेत पंचवटी यशोधरा आदि गुप्त जी के प्रसिद्ध रचनायें हैं।
प्रस्तुत कवितांश में मातृभूमि के विशेषतायें व्यक्त करते हैं। हमारा सभी सुखों का कारण मातृभूमि है। हमारा यह शरीर भी इस पृथ्वी से मिला है। हमें जीवन दिया है और मृत्यु के बाद वापस स्वीकार करेगा। इसलिए कवि के विचार में मातृभूमि का प्रत्युपकार करना असंभव है। यह छात्रानुकूल और प्रासंगिक कविता से कवि हमारे मन में देशप्रेम, प्रकृति से अटुट संबंध आदि दिखाते हैं। खड़ीबोली के साथ-साथ तत्सम शब्द भी यहाँ प्रयुक्त हुआ है। सभी नागरिकों को जागरित करने केलिए कविता सफल है।
मातृभूमि कवि का परिचय
– मैथिली शरण गुप्त
मैथिली शरण गुप्त राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त का जन्म उत्तर प्रदेश के चिरगांव में 1885 में हुआ। भारतीय पुराणों में उपेक्षित कथा प्रसंग एवं पात्रों को लेकर युगानुरूप काव्य उन्होंने लिखे। साकेत, यशोधरा, जयद्रध वध आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ है।
मातृभूमि गुप्तजी की प्रमुख कविता है। इसमें कवि ने मातृभूमि को हमारी जननी के स्थान देकर उसकेलिए अपने जीवन अर्पित करने का आह्वान करती है।
मातृभूमि Summary in Malayalam
मातृभूमि Glossary