Kerala Plus One Hindi Textbook Answers Unit 4 Chapter 15
निम्नलिखित कवितांश पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर लिखें।
कहना नहीं आता
तुम्हें कहना नहीं आता
कहने क्यों चले आए
पहले कहना सीखो
फिर अपनी बात कहना
जिनके पास कहने को है
जो कहना चाहते हैं
जिन्हें कहना नहीं आता
मैं उनमें से एक हूँ।
प्रश्न 1.
‘तुम्हें कहना नहीं आता’
‘तुम्हें’ किन-किनका प्रतिनिधित्व करते हैं?
उत्तर:
भारत के शोषित और उपेक्षित लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
प्रश्न 2.
‘पहले कहना सीखो
फिर अपनी बात कहना’
ऐसा कौन कह रहा है?
उत्तर:
समाज का शक्तिशाली शोषक वर्ग
प्रश्न 3.
‘मैं उनमें से एक हूँ’
‘मैं’ किन-किनका प्रतिनिधि है?
उत्तर:
भारत में हाशिए पर छोडे गये शोषित और उपेक्षित जनता का प्रतिनिधि है।
प्रश्न 4.
कविता की आस्वादन-टिप्पणी लिखें।
उत्तरः
निशब्द जनता
‘कहना नहीं आता’ एक प्रतीकात्मक कविता है। यह आधुनिक काव्य-शैली की कविता है। इसके कवि सुप्रसिद्ध हिंदी कवि पवन करण हैं।
भारतीय समाज के लगभग 80 प्रतिशत लोग हाशिए पर जीनेवाले हैं। वे शोषित और उपेक्षित हैं। वे अपनी पीड़ा और व्यथा मौन सहती हैं। वे अपनी बात कहना चाहते हैं, लेकिन उसे कहने का अवसर नहीं दिया जाता है। वे अपने संघर्ष कहने की कोशिश करते हैं, तो दुत्कारते हुए कहा जाता है ‘तुम्हें कहना कहाँ आता है।’ उनसे यह चेतावनी दी जाती है ‘जाओ पहले कहना सीखकर आओ। तब आकर अपनी बात कहना।’ कवि कहते हैं कि कवि भी इन बेचारों में से एक है जो कहना चाहते हैं, लेकिन चुप रहते हैं।
‘कहना नहीं आता’ भारत के विविधता भरे समाज के एक बड़ा भाग, जो शोषित और उपेक्षित है, उसका प्रतिनिधित्व करती है। कविता की भाषा सरल है, लेकिन प्रतीकात्मकता के कारण सशक्त है। छोटी कविता द्वारा बड़े यथार्थ को कवि ने प्रस्तुत किया है। भाषा प्रवाहमयी एवं साधारण जनता की समझ की है। कविता प्रासंगिक है। शीर्षक अत्यन्त प्रभावमय है।
Plus One Hindi कहना नहीं आता Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘हाशिएकृत नारी’ संगोष्ठी संबन्धी बातें;
उत्तरः
विषयः भगवान ने मनुष्य को नर और नारी दोनों की सृष्टि की। नर और नारी परस्पर पूरक हैं। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं है। लेकिन संसार में समय की गति में नारी तिरस्कृत अवस्था में पड़ गयी। संसार-भर यह दुरवस्था लोक-सृष्टि के आरंभ से उपस्थित है। परिवर्तन तो ज़रूर हुए हैं। लेकिन आज भी नारी तिरस्कृत अवस्था में है। इस अवस्था को चर्चा के मुख्य विषय बनाकर संगोष्ठी चलाना सचमुच उचित है।
उपविषय -1 नारी की पार्श्ववत्कृत अवस्था का ऐतिहासिक दृष्टिकोण में।
उपविषय -2 नारी की पर्श्ववत्कृत अवस्था भारतीय दृष्टिकोण में।
उपविषय -3 धार्मिक ग्रन्थों में नारी संबंधी सिद्धान्त।
उपविषय -4 भारत की कुछ आदर्श महिलाएँ।
उपविषय -5 नारी ही नारी का शत्रु है।
उपसंहार : कुछ ऐसी महिलायें भारत में और अन्य देशों में ज़रूर हैं जो समाज की मुख्यधारा में श्रद्धेय हो गयी हैं। लेकिन बड़े पैमाने पर विशेषकर भारत में अधिकांश नारियाँ हाशिए पर ही है। आयोजनाएँ अनेक तो हो रही हैं, जिनसे नारी की अवस्था सुधर जाये । नारी के पार्श्ववत्कृत अवस्था से मोचित कराने के लिए हम साथ दें। नारी को अपने ही पैरों पर खड़ी रहने के लिए हम सदा साथ दें। ‘How old are you’ जैसी फिल्मों में प्रस्तुत निरुपमा जैसी नारियों की ओर आगे बढ़ने के लिए नारी सत्ता को हम जगायें। नारी होना अभिशाप नहीं, वरदान है। नारी हाशिए पर नहीं, मुख्यधारा में उपस्थित होनी चाहिए।
संगोष्ठीः आलेख
भागवान ने मनुष्य को नर और नारी के रूप में सृष्टि की। नर और नारी बराबर के हैं। वे परस्पक पूरक हैं। एक के अलावा दुसरे का अस्तित्व नहीं है।
संसार के विकास के आरंभ से ही नारी तिरस्कृत अवस्था में है। भारत में नारी को ‘देवी माँ’ समझा जाता है। ‘मनुस्मृति’ में नारी के बारे में विकल दृष्टिकोण रखने पर भी भारतीय संस्कृति में नारी ज़रूर बड़े महत्वपूर्ण स्थान में है। फिर भी, दुनिया में सबसे पार्श्ववत्कृत नारीगण भारत में ही है। रानी लक्ष्मी बाई, कल्पना चौला, मदर तेरेसा जैसी अनेक आदर्श महिलाओं को भारत ने ही जन्म दिया है। फिर भी, कुटुंब, समाज, रोज़गार आदि सभी क्षेत्रों में भारत के नारीगण बड़े पैमाने पर पार्श्ववत्कृत अवस्था में ही है। बालिका भ्रूणहत्या, अशिक्षित स्त्री संख्या, बालिका विवाह, नारी आत्महत्या, दहेज-प्रथा आदि अनेक क्षेत्र हैं, जिनसे हमें मालूम होता है कि भारतीय नारी तिरस्कृत और उपेक्षित अवस्था में फँस गयी है।
नारी को विशेषकर भारतीय नारी को पार्श्ववत्कृत अवस्था से उठायें। नारी कभी भी नारी का शत्रु न बन जाये। स्त्री सत्ता की खूबियों से भारत का भविष्य उज्ज्वल बनायें।
निम्नांकित गद्यांश पढ़ें और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर लिखें।
एक दिन विष्णुजी के पास गए नारदजी। उसने विष्णुजी से पूछा, ‘मर्त्यलोक में वह कौन है भक्त तुम्हारा प्रधान?’
विष्णुजी ने कहा, ‘एक सज्जन किसान है, प्राणों से प्रियतम।’ नारद ने कहा, ‘मैं उसकी परीक्षा लूंगा’। यह सुनकर विष्णु हँसे और कहा कि, ‘ले सकते हो।’ नारदजी चल दिए। पहूँचे भक्त के यहाँ।
उसने देखा – हल जोतकर आया दुपहर को एक किसान को । किसान अपने घर के दरवाज़े पहूँ च क र रामजी का नाम लिया; स्नान-भोजन करके फिर चला गया काम पर ।
शाम को फिर वह आया दरवाज़े, फिर नाम लिया; प्रातःकाल चलते समय एक बार फिर उसने राम का मधुर नाम स्मरण किया। ‘बस केवल तीन बार!’ नारद चकरा गए- “दिवारात जपते हैं नाम ऋषि-मुनि लोग किंतु भगवान को किसान ही यह याद आया।”
प्रश्न 1.
‘मानव की दुनिया’ इस अर्थ में प्रयुक्त शब्द कौन-सा हैं।
उत्तर:
मर्त्यलोक
प्रश्न 2.
नारदजी के आश्चर्य का क्या कारण था?
उत्तर:
ऋषि-मुनि लोग दिवारात भगवान का नाम जपते हैं।
लेकिन, भगवान को किसान की याद आती है।
प्रश्न 3.
गद्यांश के आधार पर नारदजी और विष्णुजी के बीच के वार्तालाप लिखें।
उत्तर:
नारद : जय हो!
विष्णु : कहिए नारदजी।
नारद विष्णु : मर्त्यलोक में …..
विष्णु : हाँ… आगे कहिए……
नारद : आप का प्रधान भक्त कौन है?
विष्णु : किसान है।
नारद : यह तो आश्चर्य की बात है।
विष्णु : मेरा नाम जपते हैं।
नारद : कौन-कौन?
विष्णु : दिवारात ऋषि-मुनि।
नारद : हाँ…. हाँ
विष्णु : लेकिन मैं केवल…..
नारद : केवल?
विष्णु : किसान को याद करता हूँ।
नारद : यह क्यों?
विष्णु : किसान अन्नदाता है।
नारद : ओहो! यह तो महान बात है।
कहना नहीं आता Summary in Malayalam