Kerala Plus One Hindi Textbook Answers Unit 3 Chapter 10 पत्थर की बैंच
प्रश्न 1.
कविता पढ़कर भरें –
जैसे-बच्चा रो रहा है, फिर भी बिस्कुट कुतरता है।
i. युवक थका हुआ है, फिर भी…….
उत्तर:
अपने कुचले सपनों को सहला रहा है।
ii. बूढ़े ने अपनी आँखों को हाथों से ढाँप लिया है, फिर भी….
उत्तर:
भर दोपहरी सो रहा है।
प्रश्न 2.
पत्थर की बैंच के बारे में कवि क्यों आशंकित है?
उत्तर:
उसे उखाड़ ले जाया सकता है अथवा तोड़ भी जा सकता है।
प्रश्न 3.
चित्र-वाचन
उत्तर:
लड़के-लड़कियाँ अपने खेल-खूद, विश्राम आदि के लिए प्रयुक्त पार्क का विनाश देखकर चिंतित हैं। वे शायद यह सोचते होंगे कि ऐसा क्यों हो रहा है, यहाँ पर इसको रोकने के लिए कोई नहीं है आदि… आदि..। पार्क, समुद्र तट, प्रपात, पहाड़ आदि ऐसी सार्वजनिक स्थल हैं, जो आज घटते जा रहे हैं। सार्वजनिक स्थानों के नष्ट होने से मानसिक उल्लास की सुविधा और अवसर कम हो जाते हैं। इससे मनुष्य संघर्ष में पड़ जाता है।
हम इनको यह सांत्वना दें कि ऐसे आगे न होने देंगे। संबंधित अधिकारियों के पास शिकायत देकर इस जगह को संरक्षित रखेंगे। उनके खेल-खूद और मानसिक उल्लास केलिए उचित स्थान ढूँढ देंगे। पोस्टर, पत्र आदि द्वारा जनजागरण और जनमत जगायेंगे।
प्रश्न 4.
‘समाज-निर्माण में सार्वजनिक जगहों का योगदान’ पर लेख लिखें।
उत्तर:
सार्वजनिक जगहों का महत्व
सार्वजनिक जगह सामाजिकता का संगम-स्थान है। पार्क, समुद्र-तट, प्रपात की जगह, पहाड़ आदि इस प्रकार की हैं। हमें उसे संभालना चाहिए। सरकार की ओर से इन सार्वजनिक स्थानों को संभालने के लिए सदा ध्यान होना चाहिए। यदि दूसरों के सुख-दुख पर हमदर्दी है तो, इनका संरक्षण ज़रूर होगा। सार्वजनिक स्थानों का विनाश होते समय मनुष्य का पराजय होता है, स्वार्थ की विजय होती है। सार्वजनिक जगहों का संरक्षण करना आज अत्यंत प्रासंगिक है। यह इसलिए कि सार्वजनिक जगह आज घटती जा रही है।
प्रश्न 5.
कवितांश की आस्वादन टिप्पणी लिखिए।?
उत्तर:
यह कवितांश गद्य कविता ‘पत्थर की बैंच’ से प्रस्तुत है। ‘पत्थर की बैंच’ समकालीन कविता है। इस कविता के कवि हैं सुप्रसिद्ध समकालीन कवि चद्रकांत देवताले।
कवि देखते हैं कि पार्क में वर्षों पुरानी एक पत्थर की बैंच पड़ी है। कवि उस बैंच के चार दृश्य हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं। एक दृश्य में एक रोनेवाला बच्चा पत्थर की बैंच पर बैठ कर रोता है। लेकिन वह विस्कुट कुतरते हुए चुप हो जाता है। दूसरे दृश्य में एक थका हुआ युवक अपने कुचले हुए सपनों को सहलाकर बैंच पर बैठा है। तीसरे दृश्य में एक रिटायर्ड बुढ़ा भरी दोपहरी में हाथों से आँखें ढाँपकर सो रहा है। चौथा दृश्य एक प्रेम-जोड़ा का है जो बैंच पर बैठकर जिंदगी के सपने बुन रहे हैं।
कवितांश प्रतीकात्मक है। पत्थर की बैंच सार्वजनिक स्थल का प्रतीक है। उसपर बैठे चार प्रकार के लोग साधारण आमजनता का प्रतीक है। पत्थर की बैंच जैसे सार्वजनिक स्थलों के संरक्षण करने की आवश्यकता की सूचना कवितांश में निहित है। सार्वजनिक स्थलों का संरक्षण करना आवश्यक है, क्योंकि ऐसे स्थल साधारण लोगों के अनियंत्रित संवेदनाओं से भरी हुई है।
कवितांश गद्यकविता की शैली में है। भाषा सरल और प्रवाहमय है। कवितांश द्वारा कवि के आशय हममें लाने में कवि सफल हुए हैं।
Plus One Hindi पत्थर की बैंच Important Questions and Answers
निम्नलिखित कवितांश पढ़कर प्रश्नों का उत्तर लिखें।
पत्थर की बैंच
जिसपर रोता हुआ बच्चा
बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है
जिसपर एक थका युवक
अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है
जिसपर हाथों से आँखें ढाँप
एक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है
जिसपर वे दोनों
जिंदगी के सपने बुन रहे हैं।
प्रश्न 1.
यह कवितांश किस कविता का है?
उत्तर:
पत्थर की बैंच ।
प्रश्न 2.
पत्थर की बैंच पर कौन-कौन बैठे हैं?
उत्तर:
बच्चा, चुवक, बूढ़ा, प्रेमी-प्रेमिका आदि बैठे हैं।
प्रश्न 3.
बच्चा क्या कर रहा है?
उत्तर:
रोता हुआ बच्चा बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है।
प्रश्न 4.
युवक क्या कर रहा है?
उत्तर:
अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है।
प्रश्न 5.
रिटायर्ड बूढ़ा क्या कर रहा है?
उत्तर:
हाथों से आँखें ढाँप भर दोपहरी सो रहा है।
प्रश्न 6.
‘वे दोनों’ कौन-कौन हैं?
उत्तर:
वे दोनों प्रेमी-प्रेमिका हैं।
प्रश्न 7.
‘वे दोनों’ क्या कर रहे हैं?
उत्तर:
अशा जिंदगी के सपने बुन रहे हैं।
प्रश्न 8.
सबों ने पत्थर की बैंच का सहारा लिया। क्यों?
उत्तर:
पत्थर की बैंच किसी की निजी सामग्री नहीं है। बैंच पार्क में उपस्थित है। कोई उस पर जाकर बैठ सकता है। बच्चा, युवक और बूढा तीनों अपने अपने विकट समय में है। विश्राम करने के लिए तीनों पार्क की बैंच का आश्रय लेते हैं।
प्रश्न 9.
पत्थर का बैंच किसका प्रतीक है?
उत्तर:
घटती सार्वजनिक जगह का प्रतीक है।
निम्नलिखित कवितांश पढ़कर प्रश्नों का उत्तर लिखें।
पत्थर की बैंच
जिसपर अंकित हैं आँसू, थकान
विश्राम और फ्रें की स्मृतियाँ
इस पत्थर की बैंच के लिए भी
शुरु हो सकता है किसी दिन
हत्याओं का सिलसिला
इस उखाड़ कर ले जाया
अथवा तोड़ा भी जा सकता है
पता नहीं सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा
इस पत्थर की बैंच पर!
प्रश्न 1.
इस पंक्तियों के कवि कौन हैं?
उत्तर:
चंद्रकांत देवताले।
प्रश्न 2.
पत्थर की बैंच के लिए क्या शुरु हो सकता हैं?
उत्तर:
हत्याओं का सिलसिला।
प्रश्न 3.
पत्थर की बैंच पर क्या-क्या अंकित हैं?
उत्तर:
कवि ने देखा, पत्थर की बैंच के इतिहास में आँसू, थकान, विश्राम, प्रेम जैसे अनेक मानुषिक विकार अंकित हैं।
प्रश्न 4.
कवि को किस बात का पता नहीं है?
उत्तर:
पता नही कि सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा उस पत्थर की बैंच पर।
प्रश्न 5.
कवितांश की आस्वादन टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
यह कवितांश गद्य कविता ‘पत्थर की बैंच’ से प्रस्तुत है। ‘पत्थर की बैंच’ समकालीन कविता है। इस कविता के कवि हैं सुप्रसिद्ध समकालीन कवि चद्रकांत देवताले।
कवि ने देखा कि पत्थर की बैंच के इतिहास में आँसू, थकान, विश्राम, प्रेम जैसे अनेक मानुषिक विकार अंकित हैं। लेकिन यह सब जाननेवाला कवि आशंकित हो जाता है। यह इसलिए है कि किसी दिन इस पत्थर की बैंच के लिए हत्याओं का सिलसिला शुरु हो सकता है। उसे उखाड़ कर ले जाया सकता है। अथवा तोड़ भी जा सकता है। कवि को यह नहीं मालूम है कि सबसे पहले इस पत्थर की बैंच पर कौन आसीन हुआ होगा? अर्थात कवि डरता है कि इस पत्थर की बैंच के बारे में अधिकार स्थापित करने केलिए कब लड़ाई शुरु हो जायेगी।
कवितांश प्रतीकात्मक है। पत्थर की बैंच सार्वजनिक स्थल का प्रतीक है। उसपर बैठे चार प्रकार के लोग साधारण आमजनता का प्रतीक है। पत्थर की बैंच जैसे सार्वजनिक स्थलों के संरक्षण करने की आवश्यकता की सूचना कवितांश में निहित है। सार्वजनिक स्थलों का संरक्षण करना आवश्यक है, क्योंकि ऐसे स्थल साधारण लोगों के अनियंत्रित संवेदनाओं से भरी हुई है। जाति, धर्म, राजनीति, स्वार्थता आदि के नाम पर और उनकी सस्ती प्रतिस्पर्धा के लिए सार्वजनिक स्थलों का शिकार बनकर उन्हें सत्यनाश न करना चाहिए।
कवितांश गद्यकविता की शैली में है। भाषा सरल और प्रवाहमय है। कवितांश द्वारा कवि के आशय हममें लाने में कवि सफल हुए हैं।
सूचना : निम्नलिखित कवितांश पढ़ें और 1 से 4 तक के प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
इस पत्थर की बेंच के लिए भी
शुरू हो सकता है किसी दिन
हत्याओं का सिलसिला
इसे उखाड़कर ले जाया
अथवा तोड़ा भी जा सकता है
पता नहीं सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा
इस पत्थर की बेंच पर।
प्रश्न 1.
यह कवितांश के कवि कौन है?
उत्तर:
चन्द्रकांत देवताले
प्रश्न 2.
कविता के ‘आसीन’ शब्द का समानार्थी शब्द कोष्ठक से चुनकर लिखिए।
(खड़ा, बैठा, सुना)
उत्तर:
बैठा
प्रश्न 3.
कवि को किसका संदेह है?
उत्तर:
कवि का संदेह यह है कि इस पत्थर की बेंच पर सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा।
प्रश्न 4.
कवितांश की आस्वादन टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चंद्रकांत देवताले हिंदी का विख्यात कवि है। समकालीन कविता के क्षेत्र में वे अत्यंत ख्याति प्राप्त है। ‘पत्थर की बेंच’ समकालीन सामाजिक समस्याओं को सूचित करनेवाली एक कविता है।
सार्वजनिक जगहों के नाश पर कवि आशंकित है। कवि की आशंका यह है कि पत्थर की बेंच के लिए भी किसी दिन हत्याओं का सिलसिला शुरू हो सकता है। अपनी स्वार्थता के लिए कोई भी, किसी भी समय ऐसे सार्वजनिक जगहों का सर्वनाश कर सकता है। कवि का डर यह है कि इन जगहों के नाश होने पर साधारण जनता अपनी संवेदनाओं को कैसे शांत कर सकेगा।
‘पत्थर की बेंच’ एक समकालीन कविता है जिसमें सार्वजनिक जगहों के नाश पर आशंकित कवि को हम देख सकते हैं।
पत्थर की बैंच Summary in Malayalam
पत्थर की बैंच शब्दार्थ