Kerala Plus One Hindi Textbook Answers Unit 2 Chapter 8 चाँद और कवि
प्रश्न 1.
‘आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है’, चाँद क्यों ऐसा कह रहा है?
उत्तर:
आदमी स्वयं उलझनें बनाकर अपने आप को उसमें फँस देता है। फिर, बैचेन होकर वह न जगता है, न सोता है।
प्रश्न 2.
आदमी का स्वप्न जल का बुलबुला है- अपना मत प्रकट करे।
उत्तर:
कवि रामधारी सिंह दिनकर के अभिप्राय में आदमी का स्वप्न जल का बुलबुला है। वह आज बनता है और कल फूट जाता है। कभी कभी यह बात ठीक है। लेकिन सदा ऐसा नहीं होता। स्वप्न को आदमी यथार्थ में ले आकर महान कार्य करता है। हमें व्यर्थ में स्वप्न न देखना चाहिए। यथार्थ में फलनेवाले स्वप्न देखना चाहिए। अब्दुल कलाम जी ने कहा है: ‘महान सपने देखनेवालों के महान सपने हमेशा पूरे होते हैं।
प्रश्न 3.
कवि के बदले रागिनी क्यों बोल उठी?
उत्तर:
स्पप्न को ठीक रूप से समझने में असमर्थ होकर कवि मौन रहा। इसलिए रोगिनी बोल उठी।
प्रश्न 4.
मनु-पुत्र की कल्पना कैसी है?
उत्तर:
धारवाली।
प्रश्न 5.
स्वर्ग का सम्राट कौन हो सकता है?
उत्तर:
व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं विश्व की सकारात्मक प्रगति के विरुद्ध खड़ी होनेवाली समस्त नकारात्मक शक्तियों को स्वर्ग के सम्राट के रूप में प्रतीकात्मक रीति से कविता में प्रस्तुत किया गया है।
चाँद और कवि अनुवर्ती कार्य
प्रश्न 6.
समान भाववाली पंक्ति चुनकर लिखें।
a. स्वप्नों को आग में गलाकर लोहा बनाता है।
b. मनु पुत्र के कल्पना भरे सपने तीखे होते हैं।
c. चाँद इतना पुराना है कि उसने मनु का जन्म और मरण देखा है।
d. आदमी स्वयं उलझनें बनाकर चैन खो बैठता है।
उत्तर:
a. आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ।
b. जिसकी कल्पना की जीभ में भी धार होती है।
c. मैं कितना पूराना हूँ?, मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते।
d. उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता है और फिर वैचैन हो जगता न सोता है।
प्रश्न 7.
विश्लेषणात्मक टिप्पणी लिखें।
मनु नहीं मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी,
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
प्रश्न 8.
विश्लेषणात्मक टिप्पणी की परख, मेरी ओर से
- पंक्तियों का विश्लेषण किया है।
- अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है।
- पंक्तियों के विचार से अपने विचार की तुलना की है।
प्रश्न 9.
कविता की आस्वादन-टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कवितांश ‘चाँद और कवि’ कविता से अवतरित है। इसके कवि हैं सुप्रसिद्ध देशभक्त कवि रामधारी सिंह दिनकर। ‘चाँद और कवि’ दिनकरजी का प्रगतिशील कविता है। कवि से चाँद कहता है कि मनुष्य विचित्र जीव है। यह इसलिए है कि आदमी जान-बूझकर उलझनें उत्पन्न करता है, उसीमें फंस रहता है, फिर बेचैन होकर उसको नींद तक दुस्सह होता है ।चाँद सृष्टि के पुराने पदार्थ होने पर अहं करता है। चाँद कहता है कि उसने आदि मानव मनु के जन्म और मरण देखा है। चाँदनी में पागल की तरह बैठ स्वप्नों को यथार्थ में परिवर्तन करने का परिश्रम करनेवाले कवि को चाँद तुच्छ मानता है। हमारे समाज में कई प्रकार की रूढ़ियाँ हैं। वे सदा परिवर्तन के विरुद्ध खड़ी रहती हैं। कवितांश में चाँद रूढ़ियों का प्रतिनिधि है। परिवर्तन एक क्षण में नहीं होता। उसके पीछे दशकों की कल्पनाएँ और स्वप्न समाहित हैं। परिवर्तन केलिए कल्पना करनेवालों और स्वप्न देखनेवालों का प्रतिनिधि हैं कवि। कवितांश की भाषा सरल है। पंक्तियाँ प्रतीकात्मक और बिम्ब-प्रधान हैं। कवितांश का भाव हममें लाने में कवि सफल हो गए हैं। कवि ने यहाँ मानव की क्रियात्मक प्रतिभाशक्ति को महत्व दिया है।
प्रश्न 10.
निम्नांकित कथन पर अपना विचार प्रस्तुत करें
“महान सपने देखनेवालों के महान सपने हमेशा पूरे होते हैं।”
– डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम
उत्तर:
सपनों का महत्व
जीवन को आगे बढ़ाने के लिए स्वप्ने होना आवश्यक है। दिवास्वप्नों से कोई उपयोग नहीं। ये जल के बुलबुले समान है। यथार्थ से इनको कोई संबंध नहीं है। हमें सच्छे स्वप्न देखना चाहिए। महान व्यक्ति ही महान सपने देखते हैं। महान स्वप्नों से ही महान कार्य निकलते हैं। महान लोग व्यर्थ स्वप्नों को कभी प्रधानता नहीं देते। महान लोग अपने स्वप्नों को यथार्थ में बदल देने के लिए उत्सुक रहते हैं। अब्दुल कलामजी ने ठी कहा है कि: ‘महान सपने देखनेवालों के महान सपने हमेशा पूरे होते हैं।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित कवितांश पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर लिखें।
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है।
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बैचैन हो जगता न सोता है।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हैं देख मनु को जनमते-मरते?
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी पर बैठ स्वपनों पर सही करते।
i) यह कवितांश किस कविता से लिया गया है?
उत्तर:
रामधारी सिंह दिनकर की ‘चाँद और कवि’ से।
ii) यहाँ किन के बीच बातचीत हो रही है?
उत्तर:
चाँद और कवि के बीच।
iii) कविता के ‘अनोखा’ शब्द का समानार्थी शब्द लिखें?
उत्तर:
विचित्र।
iv) निम्नलिखित शब्दों के लिए कविता में प्रयुक्त शब्द छाँटकर लिखें? आसमान, विचित्र, मानव
उत्तर:
गगन, अनोखा, आदमी
प्रश्न 12.
निम्नलिखित कवितांश पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर लिखें।
आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का,
आज बनता और कल फिर फूट जाता है,
किंतु, तो भी धन्य; टहरा आदमी ही तो!
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।
मैं न बोला, किंतु, मेरी रागिनी बोली,
चाँद! फिर से देख, मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? हे यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू!
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ।
और उसपर नींव रखती हूँ नए घर की,
इस तरह, दीवार फ़ौलादी उठाती हूँ।
i) चाँद के अनुसार मनुष्य का स्वप्न किसके समान है?
उत्तर:
जल के बुलबुले के समान।
ii) बुलबुलों से खेलकर कविता बनाता, कौन?
उत्तर:
कवि।
iii) कवि केलिए कौन बोलने लगी?
उत्तर:
कवि की रागिनी। (कवि की काव्य चेतना, कविता)
iv) कवि आग में किसको गलाकर लोहा बनाता है?
उत्तर:
स्वप्न को।
v) कवितांश की आस्वादन टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कवितांश ‘चाँद और कवि’ कविता से अवतरित है। इसके कवि हैं सुप्रसिद्ध देशभक्त कवि रामधारी सिंह दिनकर। ‘चाँद और कवि’ दिनकरजी का प्रगतिशील कविता है।
आदमी के स्वप्न की तुलना जल के बुलबुलों से चाँद करता है। बुलबुलों से खेलकर कवि कविता बनाता है। क्षण में टूट जानेवाले बुलबुलों को सच मानकर कविता करनेवाले कवि पर चाँद यहाँ व्यंग्य करता है।
चाँद का व्यंग्य -परिहास सुनकर कवि चुप रहा। पर, परिवर्तन की आग मन में छिपाई हुई कवि की काव्य चेतना आर्थात कविता चुप नहीं रह सकी। वह चाँद को ललकारने लगी। अपनी शक्ति की घोषणा करती हुई काव्य चेतना चाँद से सही पहचान करने को बताती है। काव्य चेतना की घोषणा थी कि वह केवल स्वप्न को सच माननेवाली नहीं है, परंतु स्वप्न को आग में गला-गलाकर लोहे में परिवर्तित करती है। फिर, उस मज़बूत नींव पर नए निर्माण की फौलादी दीवार खड़ा करती है।
कवितांश की भाषा सरल है। पंक्तियाँ प्रतीकात्मक और बिम्ब-प्रधान हैं। कवितांश का भाव स्पष्ट करने में कवि सफल हो गए हैं। कवि ने यहाँ मानव की क्रियात्मक प्रतिभाशक्ति को महत्व दिया है।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित कवितांश पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर लिखें।
मनु नहीं मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी,
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न को भी हाथ में तलवार होती है
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोड़ ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं ते
रोकिए, जैसे बने, उन स्वप्नवालों को
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं ये।
i) कवितांश के ‘धार’ शब्द का समानार्थि शब्द लिखिए।
उत्तर:
तेज़।
ii) मनु-पुत्र की कल्पना कैसी होती है?
उत्तर:
मानव है मनु-पुत्र। उस में असीम शक्ति है। उसकी कल्पना धारवाली होती है। इसमें विचारों के बाण ही नहीं, हाथों में सपनों के तीक्ष्ण तलवार भी रहती है। आर्थात, मानव के सपने और विचार में असीम शक्ति होती है।
iii) कवितांश की आस्वादन टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कवितांश ‘चाँद और कवि’ कविता से अवतरित है। इसके कवि हैं सुप्रसिद्ध देशभक्त कवि रामधारी सिंह दिनकर। ‘चाँद और कवि’ दिनकरजी का प्रगतिशील कविता है।
कवितांश की भाषा सरल है। पंक्तियाँ प्रतीकात्मक और बिम्ब-प्रधान हैं। कवितांश का भाव स्पष्ट करने में कवि सफल हो गए हैं। कवि ने यहाँ मानव की क्रियात्मक प्रतिभाशक्ति को महत्व दिया है।
कवितांश मनुपुत्र मानव की अपार शक्ति से चाँद को परिचित कराती है। मानव के मन, वचन और कर्म की अपार समन्वयशक्ति की घोषणा करके चाँद को ललकारती है कि मानव अपनी मननशक्ति के सहारे रूढ़ियों पर विजय प्राप्त करता आ रहा है। जिस को स्वप्नजीव कहकर परिहास करते हो, उसे रोकने की क्षमता किसी में नहीं है।
कवितांश की भाषा ओजस्वी है। पंक्तियाँ प्रतीकात्मक और बिम्ब-प्रधान हैं। व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं विश्व की सकारात्मक प्रगति के विरुद्ध खड़ी होनेवाली समस्त नकारात्मक शक्तियों को स्वर्ग के सम्राट के रूप में प्रतीकात्मक रीति से कवितांश में प्रस्तुत किया गया है। कवितांश का भाव हममें लाने में कवि सफल हो गए हैं। कवि ने यहाँ मानव की क्रियात्मक प्रतिभाशक्ति को महत्व दिया है।
प्रश्न 14.
उलझनों में फँसकर कौन बेचैन हो जाता है?
उत्तर:
आदमी।
प्रश्न 15.
कौन उलझनें बनाता है?
उत्तर:
प्रणा मानव।
प्रश्न 16.
आदमी किस में फँसकर बेचैन हो जाता है?
उत्तर:
उलझनों में
प्रश्न 17.
किसने मनु को जनमते -मरते देखा है?
उत्तर:
चाँद ने।
प्रश्न 18.
‘पागल कहकर चाँद किसका उपहास करता है?
उत्तर:
स्वपनों को यथार्थ में परिवर्तित करने का परिश्रम करनेवाले दिनकरजी जैसे कवि को।
प्रश्न 19.
बुलबुलों से खेलकर कविता बनाता, कौन?
उत्तर:
परिवर्तन के लिए परिश्रम करनेवाले दिनकरजी जैसे कवि।
प्रश्न 20.
स्वप्न जल का बुलबुला है या नहीं, क्यों?
उत्तर:
स्वप्न केवल जल का बुलबुला नहीं। यह इसलिए कि परिवर्तन का तूफान सपनों में समावेश हुआ है।
प्रश्न 21.
चाँद का उपहास सुनकर कौन चुप रहा?
उत्तर:
कवि।
प्रश्न 22.
रागिनी ने चाँद से क्या-क्या कहा?
उत्तर:
अपनी शक्ति की घोषणा करती हुई चाँद से सही पहचान करने को रागिनी बताती है। रागिनी की घोषणा थी कि वह केवल स्वप्न को सच माननेवाली नहीं है, परंतु स्वप्न को अपने मनन की आग में गला-गलाकर लोहे में परिवर्तित करती है। फिर, उस मज़बूत नींव पर नए निर्माण की फौलादी दीवार खड़ी करती है।
प्रश्न 23.
स्वप्नो को गलाकर रागिनी (कविता) क्या बना देती है?
उत्तर:
लोहा बनाती है।
प्रश्न 24.
लोहे की नींव पर किसकी स्थापना होती है?
उत्तर:
नए घर की फौलादी दीवार की।
प्रश्न 25.
नए घर की दीवार कैसे होती है?
उत्तर:
फौलादी।
प्रश्न 26.
यहाँ दीवारों को फौलादी क्यों कहा गया है?
उत्तर:
मन में उठनेवाले विचार चाहे शुरु में अस्पष्ट दिखते हो, परंतु मन रूपी धौंकिनी में गल-गलाकर वे सुदृढ़ बनते जाते हैं। वे विचार समाज को सुदृढ़ बनाने में काम आते हैं।
प्रश्न 27.
मनु के स्थान पर आज कौन है?
उत्तर:
मानव।
प्रश्न 28.
मनु-पुत्र के हाथ में बाण और तलवार के रूप में क्या-क्या है?
उत्तर:
विचार और स्वप्न।
प्रश्न 29.
मनु-पुत्र की कल्पना कैसी है?
प्रश्न 30.
जिह्वा, तीर, खड़ग- आदि शब्दों के समानार्थी पद कविता से छाँटकर लिखें।
उत्तर:
जिह्वा = जीभ, तीर = बाण, खड़ग = तलवार
प्रश्न 31.
स्वर्ग के सम्राट को क्या खबर पहूँचाना है?
उत्तर:
जिस को स्वप्नजीव कहकर उपहास करता है, उसे रोकने की क्षमता किसी में नहीं है।
प्रश्न 32.
स्वर्ग के सम्राट से क्या ललकार किया जाता है?
उत्तर:
मानव अपनी मननशक्ति के सहारे रूकियों पर विजय प्राप्त करता आ रहा है।
प्रश्न 33
स्वर्ग का सम्राट कौन हो सकता है?
Plus One Hindi चाँद और कवि Important Questions and Answers
सूचनाः
निम्नलिखित कवितांश पढ़िये और 1 से 4 तक के प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
आदमी का स्वप्न? वह बुलबुला जल का,
आज बनता और कल फिर फूट जाता है;
किंतु, तो भी धन्य; ठहरा आदमी ही तो!
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।
मैं न बोला, किंतु मेरी रोगिनी बोली,
चाँद! फिर से देख, मुझको जानता है तूऊ
स्वप्न मेरे बुलबुले है? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू!
प्रश्न 1.
यह कवितांश किस कविता से लिया गया है?
उत्तर:
चाँद और कवि
प्रश्न 2
कविता के ‘रागिनी’ शब्द का समानार्थी शब्द कोष्ठक से चुनकर लिखिए। (उपन्यास, नाटक, कविता, कन्या)
उत्तर:
कविता
प्रश्न 3.
जल के बुलबुले की विशेषता क्या है?
उत्तर:
जल के बुलबुले आज बनते हैं और कल फिर टूट जाते हैं।
प्रश्न 4.
कवितांश की आस्वादन-टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री रामदारी सिंह दिनकर के प्रसिद्ध कविता ‘चाँद और कवि’ से है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि हे दिनकर। उर्वशी, रेणुका, कुरुक्षेत्र आदि आपके प्रसिद्ध रचनायें है। चाँद कवि को मानव के पागलपन के बारे में कहते हैं। कवि जवाब के रूप में कहते हैं कि आदमी का स्वप्न जल का बुलबुला जैसा है – आज बनता हैं कल टूट जाते हैं। फिर भी वह धन्य है क्योंकि आदमी ऐसे स्वप्नों से खेलकर कविता बनाता है।
अर्थात् नये नये सृजन करते है। कवि के अंतर की रागिनी बोलती है कि चाँद तुम जो पानी और बुलबुले कहकर पुकारनेवाला मानव का स्वप्न असल में आग हैं। तुम इसे ठीक तरह से पहचानते नहीं। .. यहाँ कवि सरल भाषा में समाज को आह्वान कर रहे हैं कि हम मानव किसी भी बात में पीछे नहीं होना चाहिए। हम जिसे स्वप्न के रूप में देखते हैं कह कर भी डालते हैं। छात्रों को जागरित होकर प्रयत्न करने का प्रोत्साहन देनेवाले कविता है यह।
सूचनाः
निम्नलिखित कवितांश पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर लिखें।
मनु नहीं मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी,
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न को भी हाथ में तलवार होती है
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोड़ ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं ते
रोकिए, जैसे बने, इन स्वप्नवालों को
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं ये।
1. यह कवितांश किस कविता से लिया गया है?
2. कवितांश के ‘धार’ शब्द का समानार्थि शब्द कोष्ठक से चुनकर लिखिए। (तलवार, तेज, बाण, रोज़)
3. मनु-पुत्र की कल्पना कैसी होती है?
4. कवितांश की आस्वादन टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
i) कवितांश के ‘धार’ शब्द का समानार्थि शब्द लिखिए।
उत्तर:
तेज़।
ii) मनु-पुत्र की कल्पना कैसी होती है?
उत्तर:
मानव है मनु-पुत्र। उस में असीम शक्ति है। उसकी कल्पना धारवाली होती है। इसमें विचारों के बाण ही नहीं, हाथों में सपनों के तीक्ष्ण तलवार भी रहती है। आर्थात, मानव के सपने और विचार में असीम शक्ति होती है।
iii) कवितांश की आस्वादन टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कवितांश ‘चाँद और कवि’ कविता से अवतरित है। इसके कवि हैं सुप्रसिद्ध देशभक्त कवि रामधारी सिंह दिनकर। ‘चाँद और कवि’ दिनकरजी का प्रगतिशील कविता है।
कवितांश की भाषा सरल है। पंक्तियाँ प्रतीकात्मक और बिम्ब-प्रधान हैं। कवितांश का भाव स्पष्ट करने में कवि सफल हो गए हैं। कवि ने यहाँ मानव की क्रियात्मक प्रतिभाशक्ति को महत्व दिया है।
कवितांश मनुपुत्र मानव की अपार शक्ति से चाँद को परिचित कराती है। मानव के मन, वचन और कर्म की अपार समन्वयशक्ति की घोषणा करके चाँद को ललकारती है कि मानव अपनी मननशक्ति के सहारे रूढ़ियों पर विजय प्राप्त करता आ रहा है। जिस को स्वप्नजीव कहकर परिहास करते हो, उसे रोकने की क्षमता किसी में नहीं है।
कवितांश की भाषा ओजस्वी है। पंक्तियाँ प्रतीकात्मक और बिम्ब-प्रधान हैं। व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं विश्व की सकारात्मक प्रगति के विरुद्ध खड़ी होनेवाली समस्त नकारात्मक शक्तियों को स्वर्ग के सम्राट के रूप में प्रतीकात्मक रीति से कवितांश में प्रस्तुत किया गया है। कवितांश का भाव हममें लाने में कवि सफल हो गए हैं। कवि ने यहाँ मानव की क्रियात्मक प्रतिभाशक्ति को महत्व दिया है।
चाँद और कवि Summary in Malayalam
‘
चाँद और कवि Glossary