ISC Hindi Question Paper 2016 Solved for Class 12

ISC Hindi Previous Year Question Paper 2016 Solved for Class 12

Section-A

Question 1.
Write a composition in Hindi in approximately 400 words on any ONE of the topics given below: [20]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर लगभग 400 शब्दों में हिन्दी में निबन्ध लिखिए
(a) “भूकम्प प्रकृति का वह विनाशकारी रूप है जिसकी कल्पना भी मनुष्य-मन को चोट पहुँचाती है।”- इस कथन को ध्यान में रखते हुए उस समय का वर्णन कीजिए जब आपके नगर में भूकम्प आया, उसका आम जन जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? आपने तथा आपके साथियों ने राहत कार्यों में क्या योगदान दिया। विस्तार से लिखिए।
(b) अपराधी को नहीं बल्कि अपराध को समाप्त करने से एक मजबूत राष्ट्र तैयार होता है। इस विषय के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार लिखिए।
(c) “बालश्रम समाज पर एक अभिशाप है।” इस विषय को ध्यान में रखते हुए उन बच्चों की जरूरतों और मजबूरियों पर एक प्रस्ताव लिखिए।
(d) “अहंकार से वृद्धि रुक जाती है।” इस विचार को अपने जीवन की घटना के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
(e) “योग स्वस्थ जीवन का आधार”- विवेचन कीजिए।
(f) निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर मौलिक कहानी लिखि-

(i) कहानी का अन्तिम वाक्य होगा ……
इस घटना ने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया।
(ii) “जहाँ चाह वहाँ राह।” कहावत को आधार बनाकर
एक कहानी लिखिए।
Answer:
(a)

भूकम्प

पृथ्वी का अपनी धुरी से हिलकर कम्पन करने की स्थिति को भूकम्प या भूचाल कहा जाता है। कभी-कभी तो यह स्थिति बहुत भयावह हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी के ऊपर स्थित जड़-चेतन, हर प्राणी और पदार्थ का या तो विनाश हो जाता है या फिर वह सर्वनाश की-सी स्थिति में पहुँच जाता है। जापान के विषय में तो प्रायः सुना जाता है कि वहाँ तो अक्सर भूकम्प आकर विनाशलीला प्रस्तुत करते ही रहते हैं। इस कारण लोग वहाँ लकड़ियों के बने घरों में रहते हैं। इसी प्रकार का एक भयानक भूकम्प बहुत वर्षों पहले अविभाजित भारत के क्वेटा नामक स्थान पर आया था। उसने शहर के साथ-साथ हजारों घर-परिवारों का नाम तक भी बाकी नहीं रहने दिया था।

अभी कुछ वर्षों पहले गढ़वाल और महाराष्ट्र के कुछ भागों को भूकम्प के दिल दहला देने वाले हादसों का शिकार होना पड़ा था। प्रकृति की यह कैसी लीला है कि वह मानव-शिशुओं के घरघरौंदों को तथा स्वयं उनको भी कच्ची मिट्टी के खिलौनों की तरह तोड़-मरोड़कर रख देती है। पहले यह भूकम्प गढ़वाल के पहाड़ी इलाकों में आया था, जहाँ इसने बहुत नुकसान पहुँचाया था। थोड़े दिनों पश्चात् महाराष्ट्र के लातूर में फिर एक भूकम्प आया जिसने वहाँ सब कुछ मटियामेट कर दिया था।

26 जनवरी, 2001 को गुजरात सहित पूरे भारत ने भूकम्प का कहर देखा। भुज सहित सम्पूर्ण गुजरात में भारी जान-माल का नुकसान हुआ। 8 अक्टूबर, 2005 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और उससे सटे भारतीय कश्मीर में दिल दहला देने वाला भूकम्प आया। उसमें जहाँ एक लाख से अधिक लोग काल के गाल में समा गये, वहीं लाखों लोग घायल हुए तथा अरबों रुपये की सम्पत्ति की भी हानि हुई।

भूकम्प वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी तक ऐसा कोई उपकरण या यन्त्र विकसित नहीं हुआ है जिससे यह बात पता चल सके कि अमुक-अमुक क्षेत्रों में भूकम्प आने वाला है। भूकम्प के आते समय ‘रिक्टर स्केल’ पर सिर्फ उसकी क्षमता का ही माप लिया जा सकता है।

गुजरात के भूकम्प को देखकर वहाँ अफरा-तफरी मच गई। आँखों-देखी इस भयंकर दुर्घटना ने सभी लोगों के मन में एक प्रश्न खड़ा कर दिया कि आखिर गुजरात प्रान्त का क्या होगा? वहाँ जनहानि और धन हानि का अनुमान ही लगाना कठिन था। भूकम्प आने के बाद गुजरात प्रान्त की स्थिति एक श्मशान घाट या कब्रिस्तान की भाँति हो गई थी। हम पाँच छात्र किसी परीक्षा के लिए वहाँ गये थे। हम एक होटल में ठहरे थे। हमें जैसे ही पता लगा तो हम लोग बाहर निकल आये और उस स्थान की तरफ बढ़े जहाँ से चीख-पुकार या भयंकर शोर शराबा हो रहा था। लोग उधर दौड़े जा रहे थे। हम भी भागकर वहाँ पहुँचे और पीड़ित लोगों की मदद की। पुलिस, एम्बुलैंस और फायरब्रिगेड की गाड़ियाँ आ चुकी थीं। उस भयंकर दृश्य को देखकर प्राण सूख रहे थे। हम पाँचों छात्रों ने हिम्मत नहीं हारी और घायलों को एम्बुलैंस में बिठाया। दबे हुए लोगों को मलवा हटाकर बाहर निकाला। मृतकों के ढेर देखकर करुणा भी रोने लगी। ऐसी त्रासदी भगवान किसी देश को न दे।

ऊपरी सतह से लेकर अन्तर्भाग तक पृथ्वी कई परतों से बनी हुई है। पृथ्वी की बाहरी सतह कई कठोर खण्डों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो क्रमशः कई लाख सालों की अवधि में पूरे सतह से विस्थापित होती है। पृथ्वी की आन्तरिक सतह एक अपेक्षाकृत ठोस भूपटल की मोटी परत से बनी हुई है और सबसे अन्दर होता है एक कोर, जो एक तरल बाहरी कोर और एक ठोस लोहे की आन्तरिक कोर से बनी हुई है। बाहरी सतह की जो विवर्तनिक प्लेट हैं वे बहुत धीरे-धीरे गतिमान हैं।

ये प्लेट आपस में टकराते भी हैं और एक-दूसरे से अलग भी होते हैं। ऐसी स्थिति में घर्षण के कारण भूखण्ड या पत्थरों में अचानक दरारें फूट सकती हैं। इस अचानक तेज हलचल के कारण जो शक्ति उत्सर्जित होती है, वही भूकम्प के रूप में तबाही मचाती भूकम्प भूस्खलन और हिम स्खलन पैदा कर सकता है, जो पहाड़ी और पर्वतीय इलाकों में क्षति का कारण हो सकता है। भूकम्प के कारण किसी विद्युत लाइन के टूटने के कारण आग लग सकती है। भूकम्प के कारण मिट्टी द्रवीकृत हो सकती है जिससे इमारतों और पुलों को नुकसान पहुँच सकता है। समुद्र के अन्दर भूकम्प से

सुनामी आ सकती है। भूकम्प से क्षतिग्रस्त बाँध के कारण बाढ़ आ सकती है। भूकम्प से जीवन की हानि, सम्पत्ति की हानि, मूलभूत आवश्यकताओं की कमी, रोग इत्यादि होते हैं।

यह एक प्राकृतिक आपदा है। हमें इससे अपनी रक्षा के उपाय करने चाहिए। जापान आदि देशों में जहाँ भूकम्प अधिकतर आते हैं वहाँ लोग लकड़ी या बाँस के मकान बनाते हैं जिससे कि जनहानि कम होती है।

(b)

राष्ट्र विकास के लिए अपराधी नहीं,
अपराध की समाप्ति

पक्ष : अपराधी को अपराध करने से पहले अपराध का बोध होता है और उसके दण्ड का भी आभास होता है। अपनी आत्मा, समाज और कानून व्यवस्था के विरुद्ध जो कार्य किया जाता है वह अपराध की श्रेणी में आता है। कोई इन्सान अच्छा बुरा नहीं होता, बल्कि हालात उसे अच्छा या बुरा बनाते हैं। कुछ अपराध ऐसे होते हैं जो धर्म के विरुद्ध किये जाते हैं, कुछ अपराध समाज के विरुद्ध किये जाते हैं, कुछ व्यक्ति विशेष को हानि पहुँचाने के लिए किये जाते हैं और कुछ अपराध स्वयं को लाभ पहुँचाने के लिए किये जाते हैं। अपराध तो अपराध है वह चाहे किसी भी कारण से किया गया हो। कानून की दृष्टि में प्रत्येक अपराध के लिए दण्ड निहित है।

साधु-सन्तों और मनीषियों ने कहा है कि पापी से नहीं पाप से घृणा करो। कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिनमें अपराधी ने अपराध छोड़कर समाज के हित में कार्य किये। अपराधी को समाज और कानून द्वारा सुधरने का अवसर प्रदान करना चाहिए। यदि वह जुर्म छोड़कर देश हित में कार्य करता है तो इससे राष्ट्र के निर्माण में सहायता मिलेगी। जो उच्चकोटि का अपराधी होता है उसमें मजबूत आत्मिक शक्ति होती है। यदि वह शक्ति देश के निर्माण में लग जाये तो कितना भला होगा राष्ट्र का। अतः अपराधी की स्थिति को समझकर उसकी कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। उसे कानून से भी कुछ सुविधाएँ दी जायें और उसे समाज सेवा का बोध कराया जाये तो अवश्य ही उसका हृदय परिवर्तन होगा और वह जुर्म का मार्ग छोड़कर विकास के मार्ग पर चलेगा।

आजकल बड़े-बड़े डाकू तो अपने अपराध मार्ग से विरत हो गये हैं, लेकिन छोटे-मोटे अपराधी अपने गलत कार्यों में संलग्न हैं।

संत विनोबा भावे ने एक ‘भूदान’ आन्दोलन चलाया जिसमें किसानों से थोड़ी-थोड़ी जमीन लेकर भूमिहीनों को दी जाती थी। यह आन्दोलन सफल रहा। इसी दौर में डाकुओं के आत्मसमर्पण का कार्य भी तेजी से चला। जितने भी नामी डाकू थे उन्होंने अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण किया। कानून ने उदारता से उनका साथ दिया और अपनी सजा काटकर जब वे आये तो उन्हें गाँवों में जमीन और घर दिये गये जिससे कि वे एक साधारण नागरिक की तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगे। यह था विनाश से निर्माण की ओर आना। भगवान बुद्ध के समय एक अंगुलिमाल डाकू हुआ था जिसने एक हजार व्यक्तियों की हत्या करने का प्रण लिया था। संख्या गिनने के लिए वह जो आदमी मारता था उसकी एक अंगुली काटकर उसकी माला बनाकर अपने गले में पहन लेता था। जनता उसके डर के मारे त्राहि-त्राहि कर उठी थी।

जिस जंगल में वह रहता था वहाँ राजा ने एक पहरेदार बैठा दिया था कि उस जंगल से होकर कोई यात्री न जाये। राजा ने भगवान बुद्ध से उसके आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। भगवान बुद्ध उस जंगल में गये और अंगुलिमाल के सामने निडर होकर प्रसन्न मुद्रा में खड़े हो गये। अंगुलिमाल को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उसके सामने आते ही लोगों की घिग्घी बँध जाती है, लेकिन यह व्यक्ति निडर होकर खड़ा है। कहते हैं भगवान बुद्ध ने उसे उपदेश दिया जिसे सुनकर उसने अपनी कटार भगवान बुद्ध के चरणों में रख दी और उनका शिष्य बनकर अहिंसा के मार्ग पर चलने लगा। इससे हमें यह बोध होता है कि भगवान बुद्ध ने भी अपराधी को नष्ट नहीं किया, बल्कि उसके अपराध को नष्ट किया।

इसी सन्दर्भ में एक कहानी याद आती है कि एक बड़े शहर के चर्च में एक सहृदय विशप रहते थे। लोगों का भला करना ही मानो उनके जीवन का उद्देश्य था। एक दिन एक अपराधी जेल से छूटकर आया और कहीं ठिकाने की तलाश में चर्च के द्वार पर आकर बैठ गया। विशप ने जब देखा कि यह कोई दुखियारा है तो उसे अपने कमरे में ले गये। भोजन कराने के बाद उसे सोने के लिए स्थान दिया। जब विशप सो गये तो यह अपराधी उठा तो उसने चाँदी की कैण्डिल स्टिक देखी। वे चार थीं और वजन में भारी। पहले तो उसने सोचा कि विशप को मार दूं और ये कैण्डिल स्टिक ले लूँ। फिर उसके मन में विचार आया कि इस भले आदमी को क्यों मारूँ सिर्फ कैण्डिल स्टिक लेकर चलूँ। उसने ऐसा ही किया, किन्तु रात में पुलिस ने उसे पकड़ लिया और उन कैण्डिल स्टिकों को पहचान लिया।

सुबह पुलिस वाले उस चोर को पकड़कर विशप के पास लाये और उनसे पूरी बात कही। विशप समझ गये कि इस गरीब आदमी को उन चाँदी की कैण्डिल स्टिक की ज्यादा आवश्यकता है। उन्होंने पुलिस से कहा कि उस आदमी को छोड़ दें क्योंकि वे कैण्डिल स्टिक उन्होंने ही उसे दी थीं। पुलिस उसे छोड़कर चली गई। अब वह चोर विशप के पैरों में पड़ गया। उसने अब से कोई अपराध न करने की कसम खाई और वहीं चर्च में सेवा करने लगा।

इन तथ्यों से पता चलता है कि अपराधी को नहीं बल्कि अपराध को समाप्त करने से मजबूत राष्ट्र तैयार होता है।

विपक्ष : यह कथन सत्यता से कोसों दूर है क्योंकि अपराधी अपने अपराध को कभी नहीं छोड़ता। यदि ऐसा होता, तो सजा काटकर आये अपराधी फिर से अपराध नहीं करते, सजा काटकर
आया हुआ व्यक्ति और अधिक जुर्म करता है। उसका हृदय इतना – कठोर हो जाता है कि उसे बदलना मुश्किल नहीं असम्भव है।

साधु संन्यासियों की बात आज कौन सुनता और मानता है? यदि अपराध समाप्त करने से अपराधी समाप्त हो जाता तो अब तक भारत में अपराध देखने को नहीं मिलता। भारत क्या सभी देशों में आज आतंकवादी माहौल के कारण साँस लेना भी दूभर हो रहा है। क्या आतंकवादियों का हृदय परिवर्तन सम्भव है? कभी नहीं प्राचीनकाल में अपराध के कठोर दण्ड नियत थे इसलिए अपराधों की संख्या न के बराबर थी। चोरी करने पर चोर के हाथ काट दिये जाते थे। अतः लोग अपने घरों में ताले नहीं लगाते थे। अपराधी को कठोर दण्ड देने या उसे मृत्युदण्ड देने से उसके साथ-साथ उसके साथियों द्वारा किया जाने वाला अपराध भी समाप्त हो जाता है।

प्रात:काल जज साहब भ्रमण के लिए जा रहे थे तभी उन्होंने। देखा कि एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति को चाकू मार दिया और भाग गया। कुछ हफ्तों बाद उसी हत्या का मुकदमा उन्हीं जज साहब के कोर्ट में आया। जज साहब को आश्चर्य हुआ कि खून के इल्जाम में पकड़ा गया आदमी कोई और व्यक्ति है, वह व्यक्ति नहीं जिसको जज साहब ने देखा था। सारे सबूत उस पकड़े गये व्यक्ति के खिलाफ थे। जज साहब ने फैसला देने से पहले उस पकड़े गये व्यक्ति को अकेले में बुलाया और उससे पूछा कि तुम इस केस में कैसे फँस गये। खून तुमने नहीं किसी और ने किया है, लेकिन सारे सबूत तुम्हारे खिलाफ हैं। उस व्यक्ति ने शान्तिपूर्ण ढंग से उत्तर दिया कि जज साहब आप सबूतों के आधार पर अपना निर्णय दें, वह व्यक्ति जिसने खून किया है वह इस बार तो बच गया है, लेकिन आगे पकड़ा जायेगा जैसे मैं कई बार बच गया हूँ, पर इस बार पकड़ा गया। यह सुनकर जज साहब अवाक रह गये और ऊपर भगवान के न्याय की ओर देखने लगे।

यदि हम इस आशा में कि अपराधी सुधर जायेंगे, उन पर दयाकर उन्हें छोड़ दें तो यह कभी सम्भव नहीं है। हम अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। अपराधियों के अपराध समाप्त करने के लिए उनके लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था करनी होगी।

(c)

‘बालश्रम समाज पर एक अभिशाप है’

“बालश्रम समाज पर एक अभिशाप है।” यह कथन इस सत्य को प्रतिपादित करता है कि ‘बालश्रम’ समाज पर एक कलंक है। यह एक अपराध है जिसमें कि बच्चों को जबरदस्ती काम करने पर लगा दिया जाता है और उनको आर्थिक जिम्मेदारी बड़ों की तरह उठाने को मजबूर किया जाता है। ‘इण्टरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन’ (ILO) के अनुसार पन्द्रह वर्ष की उम्र से कम के बच्चों को धन कमाने के कार्यों में लगाना एक अपराध है। इससे बच्चे अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य, मानसिक और सामाजिक स्वतन्त्रता से वंचित रह जाते हैं। इस प्रकार बाल श्रम के चलते हुए उनका भविष्य बर्बाद हो रहा है। इस पर दुनिया के सभी देश गम्भीरता से विचार कर रहे हैं।

बालश्रम की समस्या विकासशील देशों में अधिक पायी जाती है। विकासशील देशों में गरीबी के कारण बच्चों को कम उम्र में ही मजदूरी, घरों में काम आदि करना पड़ता है। जिसके कारण वे अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक स्वतन्त्रता तथा अपने बचपन से वंचित रह जाते हैं। दुनिया के सभी विकासशील देश इस समस्या को . सुलझाने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं, लेकिन चोरी-छिपे यह रोजगार धड़ल्ले से चल रहा है। समाज का बड़ा तबका बाल श्रम का भरपूर फायदा ले रहा है। लाखों बच्चे बालश्रम की चपेट में आकर अपना जीवन चौपट कर रहे हैं। ये बच्चे ही भारत का भविष्य हैं जो बिगड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। भारतीय कानून के अन्तर्गत 15 साल से कम के बच्चों से काम लेना जुर्म है। ये जुर्म बच्चों के माता-पिता, कारखानों के मालिक, रेस्टोरेन्ट के मालिक और घर के मालिक, दुकानदार, दस्तकार, बुक बाइंडर आदि खुले रूप से कर रहे हैं। जिससे बच्चों का जीवन नष्ट हो रहा है और इसकी चिन्ता किसी को नहीं है।

बालश्रम बढ़ने के निम्न कारण हैं जो इस श्रम को कम नहीं होने देते-

  1. गरीबी और बढ़ती हुई बेरोजगारी विकासशील देशों में बालश्रम को जन्म दे रही है।
  2. विश्व संगठन की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के एकचौथाई लोग अत्यन्त गरीब हैं।
  3. शिक्षा की कमी है जिसे अधिकतर बच्चे प्राप्त नहीं कर पाते।
  4. विकासशील देश के लोग बालश्रम के कानून को तोड़कर बालश्रम को बढ़ावा दे रहे हैं।
  5. समाज का पूर्ण नियन्त्रण खेती पर काम करने वाले बच्चों पर और घर में काम करने वाले बच्चों पर नहीं है।
  6. बालश्रम करने वाले बच्चे अपने परिवार की दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए इसे महत्व देते हैं और इसके ऊपर वे कुछ और सोचते ही नहीं हैं।
  7. व्यापारिक संगठन और गृह उद्योग छोटे बच्चों को नौकरी पर रख लेते हैं, ताकि कम कीमत में ज्यादा काम ले सकें। वे बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं और छोटे बच्चे उसी को अपना भाग्य मानकर स्वीकार कर लेते हैं।

बाल श्रम की समस्या को सुलझाने के लिए उपाय-

  1. समाज में फैली इस कुप्रथा को बन्द करने के लिए हमें नये सिरे से प्रयास करने होंगे।
  2. बालश्रम को समाप्त करने के लिए समाज में ऐसी इकाइयाँ बनें जो बालकों के श्रम पर ध्यान देकर बालकों को उस काम के प्रति निरुत्साहित करें और उनके पढ़ने की निःशुल्क व्यवस्था करें।
  3. बच्चों के माता-पिता को उनकी पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करें।
  4. समाज में जागृति उत्पन्न की जाये जिसका परिणाम बाल श्रम से छुटकारा हो।
  5. सरकार उन गरीब परिवारों की कुछ आर्थिक सहायता करे जिनके बच्चे गरीबी के कारण बालश्रम में लग जाते हैं।
  6. सरकार बालश्रम समाप्ति के लिए कड़े कानून बनाये जिसमें माता-पिता और जहाँ बच्चे काम करते हैं उनको दण्ड देने का प्रावधान हो।

भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी जिन्होंने बाल श्रम को रोकने के लिए अपना पूर्ण सहयोग दिया तथा इसके लिए उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ सम्मान ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला। ये मध्य प्रदेश में पैदा हुए और अपनी शिक्षक की नौकरी त्यागकर ‘बालश्रम’ की समाप्ति के कार्य में लग गये। 1980 में इन्होंने ‘बचपन बचाओ’ आन्दोलन चलाया। 144 देशों में इन्होंने लगभग 83,000 बच्चों को बालश्रम से उबारा और उनकी शिक्षा आदि का भी सरकारों के सहयोग से प्रबन्ध किया।

बालश्रम एक बड़ी सामाजिक समस्या है। इसको माता-पिता, अध्यापक, सामाजिक कार्यकर्ता और सरकार मिलकर सुलझा सकते हैं। बच्चों को शिक्षित बनाया जाये और उनकी कमाने वाली मानसिकता को सुधारा जाये।

(d)

‘अहंकार से वृद्धि रुक जाती है’

‘अहंकार से वृद्धि रुक जाती है’ यह उक्ति अक्षरशः सत्य है। अहंकार एक ऐसा अवगुण है जो मनुष्य के हृदय और मस्तिष्क पर हावी रहता है और उसे उसका भान भी नहीं होता। वह उसके मार्ग में प्रतिपग बाधा उत्पन्न करता है। अन्य मनुष्य ही समझ पाते हैं कि अमुक मनुष्य अहंकारी है अतः वे उससे दूरी बनाकर रखते हैं। अहंकार न दिखाई देते हुए भी स्पष्ट परिलक्षित हो जाता है। अहंकार अहंकारी व्यक्ति को भरोसा दिलाता है कि उसके सब काम अहंकार के कारण ही होंगे पर होता इसके विपरीत ही है। मनुष्य का जीवन अपने आस-पास के वातावरण से प्रभावित होता है। मूलरूप से मानव के विचारों और कार्यों को उसके संस्कार, वंश परम्पराएँ ही दिशा दे सकती हैं, अहंकार नहीं। यदि उसे अच्छा वातावरण मिलता है तो वह श्रेष्ठ कार्यों को सम्पादित करता है। यदि अपने अहंकार के कारण उसे उचित वातावरण सुलभ नहीं हो पाता है तो उसके कार्य भी उससे प्रभावित होते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व उसकी जीवन शैली और आचरण के रूप में प्रतिबिम्बित होता है। यदि मनुष्य का आचरण नैतिकता के अनुरूप है तो उस मनुष्य की सामाजिक प्रतिष्ठा अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बन जाती है और वह व्यक्ति समाज में सम्मान पाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य का आचरण सामाजिक, सांस्कृतिक, वैधानिक, धार्मिक नियमों के प्रतिकूल और अहंकार से प्रभावित है तो वह समाज में अपमान का पात्र होता है। अतः मनुष्य का जीवन अहंकार हीन और सदाचार में अधिक महत्व रखता है। सदाचार का जीवन में विशेष महत्व है। यदि मनुष्य का आचरण सत्य पर आधारित हो तो मनुष्य, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं भौतिक रूप से समृद्ध रहता है।

अहंकार और दम्भ मनुष्य को यह दर्शाते हैं कि वह सभी मनुष्यों से श्रेष्ठ है और अपने बलबूते पर ही सब काम कर सकता है। यह अभिमान उसके कार्यों में बाधा उत्पन्न करता है। ईश्वर भी अपने भक्तों में अभिमान के अंकुर फूटने नहीं देता। जहाँ अभिमान प्रतिष्ठापित है वहाँ ईश्वर का निवास नहीं होता;

जैसे-

“जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहि।”

भगवान ने नारद के अभिमान को मायानगरी बनाकर नष्ट किया। बाली को अपने बल पर अभिमान था, पर श्रीराम ने उसे मारकर उसका अहंकार तोड़ दिया। एक बार गरुड़ को अपनी गति का अभिमान हुआ था। वह हनुमान जी को बुलाने गये और चाहते थे कि हनुमान जी उनकी पीठ पर बैठकर चलें तो शीघ्र रामजी के पास पहुँच जायेंगे। हनुमानजी ने उनके साथ जाने को मनाकर दिया और कहा कि ‘मैं आता हूँ।’ वापिस लौटने पर गरुड़ ने रामजी के पास जाकर देखा कि हनुमान जी रामजी से वार्ता करके लौट रहे हैं। तब वह अपनी गति के अभिमान पर लज्जित हुआ। इन प्रसंगों से पता चलता है कि अहंकार सबके कार्यों में बाधा डालता है।

मुझे भी कई बार यह अभिमान हुआ कि मैं सभी छात्रों से अधिक बुद्धिमान हूँ। इसका परिणाम यह हुआ कि मेरे मित्र भी मुझसे दूरी बनाने लगे। मुझे किसी का सहयोग प्राप्त नहीं हुआ। मैं अपनी कक्षा में भी पिछड़ने लगा। तब मेरे एक हितैषी अध्यापक ने बड़े प्रेम से मुझे समझाया कि मेरे मन में बैठा अहंकार ही मेरे मार्ग में बाधा बन गया है। मैंने धीरे-धीरे अपने अन्दर बैठे अभिमान को दूर किया और पुनः अपने मित्रों का सहयोग मुझे मिलने लगा। कहाँ तो मैं समझता था कि मुझे सब कुछ आता है, लेकिन परीक्षा में बहुत कम अंक आने पर मुझे ज्ञात हुआ कि मेरा अभिमान ही मेरे विकास में बाधा डाल रहा था। अब मैं अभिमान से रहित होकर अपने पथ पर तीव्रगति से अग्रसर हो रहा हूँ।

तुलसीदास जी ने अभिमान को पाप का मूल बताया है–

“दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोड़िये, जब लगि घट में प्रान।”

(e)

‘योग स्वस्थ जीवन का आधार है’

योग भारत की प्राचीन संस्कृति का गौरवमयी हिस्सा है जिसकी वजह से भारत सदियों तक विश्व गुरु रहा है। योग एक ऐसी सुलभ एवं प्राकृतिक पद्धति है जिससे स्वस्थ मन एवं शरीर के साथ अनेक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं। योग को स्वामी रामदेव ने गुफाओं और कन्दराओं से निकालकर आम जन तक पहुँचाया है। भारतीय धर्म और दर्शन में योग का आध्यात्मिक महत्व है। आध्यात्मिक उन्नति या शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए योग की आवश्यकता व महत्व को प्रायः सभी दर्शनों एवं धार्मिक सम्प्रदायों ने एकमत व मुक्तकंठ से स्वीकार किया है। आधुनिक युग में योग का महत्व बढ़ गया है। स्वास्थ्य रक्षा के लिए योग रामबाण दवा है। इसके सहारे मनुष्य स्वस्थ तो रहता ही है साथ ही साथ कई बीमारियों से छुटकारा भी पाता है।

योग भारत और नेपाल में एक आध्यात्मिक प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता है। यह शब्द, प्रक्रिया और धारणा बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बन्धित है। ‘योग’ शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण-पूर्व एशिया और श्रीलंका में भी फैल गया है और इस समय सारे सभ्य जगत में लोग इससे परिचित हैं। प्राचीन जीवन पद्धति लिए योग आज के परिवेश में हमारे जीवन को स्वस्थ और खुशहाल बना सकता है। आज के प्रदूषित वातावरण में योग एक ऐसी औषधि है जिसका कोई साइड इफैक्ट नहीं है, बल्कि योग के अनेक आसन जैसे शवासन हाई ब्लडप्रैशर को सामान्य करता है, जीवन के लिए संजीवनी है अनुलोम-विलोम कपालभाति प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम मन को शान्त करता है। वक्रासन हमें अनेक बीमारियों से बचाता है।

आज कम्प्यूटर की दुनिया में दिनभर उसके सामने बैठे-बैठे काम करने से अनेक लोगों को कमर दर्द एवं गर्दन दर्द होना एक आम बात हो गई है, ऐसे में शलभासन तथा ताड़ासन हमें दर्द से छुटकारा दिलाते हैं। पवन मुक्तासन अपने नाम के अनुरूप पेट से गैस की समस्या को दूर करता है। गठिया की समस्या को मेरुदंडासन दूर करता है। योग में ऐसे अनेक आसन हैं जिनको जीवन में अपनाने से कई बीमारियाँ समाप्त हो जाती हैं और खतरनाक बीमारियों का असर भी कम हो जाता है। 24 घण्टे में से महज कुछ मिनट का ही प्रयोग यदि योग में उपयोग करते हैं तो अपनी सेहत को हम चुस्त-दुरुस्त रख सकते हैं। फिट रहने के साथ योग हमें सकारात्मक ऊर्जा भी देता है। योग से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।

यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि योग हमारे लिए हर तरह से आवश्यक है। यह हमारे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। योग के माध्यम से आत्मिक सन्तुष्टि, शान्ति और ऊर्जावान चेतना की अनुभूति प्राप्त होती है जिससे हमारा जीवन तनावमुक्त तथा हर दिन सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ता है। हमारे देश की ऋषि परम्परा से प्राप्त योग को आज विश्व भी अपना रहा है। गीता में योग के बारे में लिखा है, “योग स्वयं की स्वयं के माध्यम से स्वयं तक पहुँचने की यात्रा है।”

योगासनों से कुछ निम्नलिखित लाभ हैं–

  1. योग का प्रयोग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभों के लिए हमेशा से होता रहा है। आज की चिकित्सा शोधों ने ये साबित कर दिया है कि योग शारीरिक और मानसिक रूप से मानव जाति के लिए वरदान है।
  2. जहाँ ‘जिम’ आदि से शरीर के किसी खास अंग का ही व्यायाम होता है, वहीं योग से शरीर के समस्त अंग-प्रत्यंगों, ग्रन्थियों का व्यायाम होता है जिससे अंग-प्रत्यंग सुचारु रूप से काम करने लगते हैं।
  3. योगाभ्यास से रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है। बुढ़ापे में भी स्वस्थ बने रह सकते हैं। त्वचा पर चमक आती है, शरीर स्वस्थ, निरोग और बलवान बनता है।
  4. जहाँ एक तरफ योगासन माँसपेशियों को पुष्ट करता है जिससे दुबला-पतला व्यक्ति भी ताकतवर और बलवान बन जाता है वहीं दूसरी ओर योग के नित्य अभ्यास से शरीर से फैट भी कम हो जाता है इस तरह योग कृश और स्थूल दोनों के लिए लाभदायक है।
  5. योगासन के नित्य अभ्यास से माँसपेशियों का अच्छा व्यायाम होता है जिससे तनाव दूर होकर अच्छी नींद आती है, भूख अच्छी लगती है, पाचन सही रहता है।

योग आज एक थैरेपी के रूप में भी उपयोगी सिद्ध हो चुका है। हर एक रोग के लिए विशेष आसन है। रोग विशेष के उपचार के लिए विशेष आसन है। कई ऐसे रोग जिसके उपचार से डॉक्टर जवाब दे देता है उसके लिए भी योग लाभदायक हो सकता है। आसन करना किसी दक्ष व्यक्ति से ही सीखना चाहिए। रोगों से लड़ने के लिए हमारे शरीर में भी प्रतिरोधात्मक शक्ति होती है तथा इस शक्ति को योगासन द्वारा बढ़ाया जा सकता है।

(f) (i)

इस घटना ने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया

भारतीय इतिहास में अनेक ऐसे प्रसंग मिलते हैं जिनमें किसी घटना से प्रभावित होकर व्यक्ति का हृदय परिवर्तन हो गया। हृदय परिवर्तन किसी सद्मार्ग पर चलने के लिए हुआ हो या अपने को परोपकार में लगाने के लिए हुआ हो या फिर दान आदि के द्वारा धार्मिक प्रोत्साहन के लिए हुआ। मनुष्य का हृदय अत्यन्त कोमल, दयापूर्ण, प्रेम से भरा और मनोबल से परिपूर्ण होता है।

मनुष्य के मनोभावों के साथ ही हृदय की क्रिया रहती है। मनुष्य का कोई दृढ़ संकल्प उसके हृदय को परिवर्तित कर देता है। महर्षि वाल्मीकि अपनी युवावस्था में डाकू रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे। एक बार ऋषियों ने अपने उपदेश से उनका हृदय परिवर्तन कर दिया और अपने कल्याण के लिए ‘राम-राम’ जपने का उपदेश दिया। वे ‘रामराम’ का उल्टा ‘मरा-मरा’ जपने लगे और आगे चल कर महर्षि वाल्मीकि हुए जिन्होंने संस्कृत में वाल्मीकि रामायण लिखी। इनके बारे में एक चौपाई इस प्रकार हैं

“उल्टा नाम जपा जग जाना। वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना।”

दूसरा उदाहरण है सम्राट अशोक का जिन्होंने ‘कलिंग’ देश के युद्ध में भीषण नरसंहार के बाद बौद्ध भिक्षु के उपदेश से अपना हृदय परिवर्तन कर लिया और आगे युद्ध न करने की प्रतिज्ञा की। उन्होंने अपनी तलवार रख दी और फिर कभी उसे नहीं उठाया। यह भी मानवता के कल्याण में किया गया ‘हृदय परिवर्तन’ था।

एक दिन छमाही परीक्षा के बाद मैंने बाजार में घूमने का निश्चय किया और अपनी साइकिल उठाकर बाजार की तरफ चल दिया।

तभी मुझे याद आया कि पिताजी की कुछ दवा लेनी थी। इमरजैन्सी के पास एक मेडीकल की बड़ी दुकान है। मैं वहाँ जाकर खड़ा हुआ तो देखा कि गाँव का एक वृद्ध व्यक्ति डॉक्टर का पर्चा लेकर दुकान पर आया और बताया कि उसके बेटे का ऑपरेशन हो रहा है इसलिए उसे शीघ्र इन दवाइयों की आवश्यकता है।

दुकानदार ने दवा निकालकर दे दी और पैसे माँगे। उस वृद्ध के पास 50 रुपये कम थे। इस पर दुकानदार ने दवा वापस लेकर एक तरफ रख दी। वृद्ध गुहार करता रहा कि वह पैसे बाद में दे जायेगा इस समय ऑपरेशन चल रहा है। मुझे उस पर दया आई और उसके शब्दों में सत्यता का आभास हुआ। दवा लेकर जाना उसके लिए कितना आवश्यक था यह समझ में आ रहा था। उसने कातर दृष्टि से देखा पर किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। वह रुआँसा हो गया। मैंने दुकानदार से कहा कि वह उसको दवा दे दे बाकी के पैसे मैं दे दूंगा। दुकानदार ने उसे दवा दे दी। उसने धन्यवाद सूचक दृष्टि से देखा और चला गया। मैंने अपनी जेब देखी तो उसमें उतने पैसे नहीं थे। अतः मैंने अपने हाथ की घड़ी उतारकर दुकानदार को दी। __ उसने आश्चर्य से मुझे देखा और घड़ी लेकर एक लिफाफे में रख दी। मैंने उससे कहा कि रुपये देकर घड़ी ले जाऊँगा।

मैं घर आ गया और यह घटना पिताजी को सुनाई। वे मेरे इस कृत्य पर बहुत खुश हुए और हर्ष के मारे मुझे गोद में उठा लिया। वे बड़े सहृदय हैं और इस प्रकार की मदद करते रहते हैं। मैंने पिताजी से 1050 रुपये माँगे। उन्होंने तुरन्त ही ग्यारह सौ रुपये मुझे दे दिये और यह भी नहीं पूछा कि किसके लिए रुपये चाहिए।

इस घटना ने मेरे हृदय को झकझोर दिया था कि किसी जरूरत के समय पैसा न होने से किस संकट से गुजरना पड़ सकता है। मैं उसी मेडीकल की दुकान पर गया और पचास रुपये देकर अपनी घड़ी वापस ली।

फिर उस दुकानदार को विश्वास में लेकर एक हजार रुपये उसके पास जमा कराये कि इस प्रकार का परेशान कोई भी व्यक्ति उसकी दुकान पर दवा लेने आये और उसके पास रुपये कम हों तो इन रुपयों में से उसकी पूर्ति कर दे। उसने हर्षित होकर मुझे धन्यवाद दिया। मैंने उसको अपना मोबाइल नम्बर दिया कि रुपये समाप्त हो जायें तो मुझे फोन कर दे। मैं तुरन्त ही पैसे जमा करा दिया करूँगा। इस प्रकार यह छोटी-सी मदद मेरी तरफ से चलती रहेगी।

इस घटना ने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया।

(ii)

‘जहाँ चाह वहाँ राह।’

मनुष्य के सभी कार्य मन से ही संचालित होते हैं। मन में मनन की शक्ति है। मननशीलता के कारण ही मनुष्य को चिन्तनशील प्राणी कहा जाता है। संस्कृत में एक कहावत है- ‘मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयो’ अर्थात् मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। यदि मन न चाहे तो मनुष्य बड़े-से-बड़े बन्धनों की उपेक्षा कर सकता है। मन के चाहने से ही राह बनती है। शंकराचार्य ने कहा है ‘जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत को जीत लिया।’ मन की संकल्पशक्ति से व्यक्ति को राह मिल जाती है अर्थात् वह अपने कार्य में सफल हो जाता है। अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिसमें मन की संकल्पशक्ति के द्वारा व्यक्तियों ने अपनी हार को विजय में परिवर्तित कर दिया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की जीत का कारण था कि श्रीकृष्ण ने उनके मनोबल को दृढ़ कर दिया था। नचिकेता ने चाहा कि वह मृत्यु पर विजय प्राप्त करे और आत्मा का रहस्य जान सके।

यमराज के द्वारा उसे आत्मा का रहस्य समझाया गया। सावित्री ने अपने मनोबल की चाह से यमराज से अपने मरे हुए पति की आत्मा को वापस प्राप्त कर लिया। महाराणा प्रताप ने अपनी दृढ़ मनःशक्ति से अकबर की सेना से लोहा लिया। तेनसिंह चाहता था कि वह एवरेस्ट की चोटी पर चढ़कर विजय प्राप्त करे। उसने कोशिश की और एवरेस्ट की चोटी पर विजय प्राप्त कर ली।

मेवाड़ का इतिहास वीरता से भरा पड़ा है। वहाँ का क्रूर शासक बनवीर निष्कंटक राज करना चाहता था। उसने यह योजना बनाई कि शहर में एक रात दीपदान और नाच-गान के उत्सव का आयोजन करवाया जाये। उसका लक्ष्य था कि जब जनता इस उत्सव में व्यस्त होगी तब वह महाराणा और मेवाड़ के उत्तराधिकारी बालक उदयसिंह को मार देगा और निष्कंटक राज्य करेगा। शहर में यह उत्सव चल रहा था और लोग आनन्द में व्यस्त थे।

इधर राजमहल में उदयसिंह की धाय ‘पन्ना’ उसकी रक्षा और देखभाल के लिए थी। वह एक देशभक्त क्षत्राणी थी। वह बनवीर की क्रूरता से परिचित थी। पन्ना धाय का बेटा चन्दन उदयसिंह की आयु का ही था और वे दोनों उसी राजमहल में पन्ना की देखरेख में रहते थे। पन्ना को शक था कि दीपदान के उत्सव में बनवीर कुछ काण्ड कर सकता है। तभी एक दासी ने उसे बताया कि बनवीर ने महाराणा का कत्ल कर दिया है और वह उदयसिंह के महल की तरफ आ रहा है। पन्ना प्राणपण से उदयसिंह को बचाना चाहती थी। उसने अपने पुत्र चन्दन को उदयसिंह के राजसी वस्त्र पहनाकर कुँवर उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। तभी कीरत बारी एक बड़ी टोकरी लेकर जूठी पत्तल उठाने के लिए आया। वह भी मेवाड़ को बहुत प्रेम करता था।

पन्ना ने उससे कहा कि वह मेवाड़ के कुँवर की रक्षा करे। तब पन्ना ने सोते हुए उदयसिंह को कीरत की टोकरी में रख दिया और ऊपर से पत्तलों से ढक दिया तथा उसे बताये हुए स्थान पर मिलने को कहा। महल के बाहर अनेक सैनिक तैनात थे, लेकिन कीरत को किसी ने टोका नहीं और वह वहाँ से आसानी से निकल गया। उसके बाद बनवीर हाथ में तलवार लेकर आया और पन्ना को लालच देकर उदयसिंह के बारे में पूछा। पन्ना ने उससे बहुत गुहार लगाई, लेकिन वह नहीं माना। तब पन्ना ने उँगली के इशारे से पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र चन्दन सो रहा था। बनवीर ने एक ही बार में उस बालक का काम तमाम कर दिया। पन्ना चीत्कार करके वहीं गिर पड़ी। उसका ऐसा बलिदान इतिहास में स्वर्ण-अक्षरों में लिखा गया।

फिर पन्ना उस स्थान पर पहुँची जहाँ कीरत को पहुँचने को कहा था। फिर वह कुँवर उदयसिंह को लेकर पड़ोसी मित्र राज्य में चली गई जहाँ उदयसिंह का पालन हुआ। पन्ना ने सच्चे मन से जो चाहा वह पूरा हुआ। अतः हम कह सकते हैं-

‘जहाँ चाह वहाँ राह।’

Question 2.
Read the following passage and briefly answer the questions that follow :
निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर, अन्त में दिये गए प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर लिखिए-

विनम्रता तथा सरलता ऐसे गुण हैं जो हमें सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाते हैं। विनम्रता मानव को उसके दिव्य स्वभाव से जोड़ती है। उसे दूसरों के प्रति सहृदय बनाती है। वह सरलता से प्रेरित होकर विपत्ति में पड़े मनुष्यों की मदद करता है। स्वयं अभाव में रहकर भी दूसरों की यथासंभव सहायता करता है। विनम्र व्यक्ति की वाणी बड़ी मधुर होती है। इनके मृदुवचन मन की कटुता को समाप्त करते हैं। वाणी की मिठास के कारण इनके अनेकानेक मित्र बन जाते हैं। लोग इस प्रकार के व्यक्तियों से चाहे जितने भी क्रोध में बात करें, विनम्रता का जादू क्षणभर में क्रोध को शांत कर देता है। अतः इस प्रकार विनम्रता बड़ी सहजता से क्रोध जैसे बड़े मनोविकार पर भी विजय प्राप्त कर लेती है। ये व्यक्ति समाज के लिए मार्गदर्शक बन जाते हैं। इनकी सरलता में जो स्वाभाविकता होती है वह लोगों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करती है। इनका अनुकरण करने का प्रयास सभी करते हैं। जिससे वे भी विनम्रता को अपने जीवन में अपनाकर अपना जीवन सफल बना सकें। ईर्ष्या, द्वेष, घृणा जैसे मनोविकार को पराजित कर पाएं।

अनेक महान विभूतियों का जीवन सरलता तथा विनम्रता का प्रत्यक्ष उदाहरण है। विश्वप्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात शक्ल से अत्यंत ही कुरूप थे। एक दिन अकेले में वे दर्पण हाथ में लेकर अपना मुंह देख रहे थे, तभी उनका प्रिय शिष्य आया और सुकरात को दर्पण देखता पाकर बहुत आश्चर्य में पड़ गया। वह कुछ बोला नहीं मात्र मुस्कुराने लगा। सुकरात ने उससे कहा “शायद तुम सोच रहे हो कि मुझ जैसा असुंदर व्यक्ति आखिर शीशा क्यों देख रहा है?” सुकरात ने उसे समझाया “वत्स शायद तुम नहीं जानते कि मैं यह शीशा क्यों देखता हूँ? मैं कुरूप हूँ। इसलिये प्रतिदिन शीशा देखता हूँ। शीशा देखकर मुझे अपनी कुरूपता का ज्ञान होता है। मैं अपने रूप को जानता हूँ। इसलिए प्रतिदिन प्रयत्न करता हूँ कि ऐसे, अच्छे कार्य करूँ जिनसे मेरी यह कुरूपता ढक जाए।” यह सरलता शिष्य के हृदय को छू गई। उसे गहरा जीवन दर्शन बड़ी आसानी से उसके गुरु ने सिखा दिया।

हमें भी अपने जीवन में इस अच्छे गुण को अपनाना चाहिए। यह एक बहुत बड़ी शक्ति है। इससे हम अपने केन्द्र से जुड़ते हैं। हमारी जीवनदृष्टि विशाल तथा भव्य बनती है। हम मानवता को नई ऊँचाई प्रदान करते हैं। हमारी विनम्रता तथा सरलता एक स्वस्थ समाज को जन्म देती है।

Questions.
(a) विनम्रता किस प्रकार मनुष्य के स्वभाव को दिव्यता प्रदान करती है? [4]
(b) सरल तथा विनम्र मनुष्यों की वाणी की विशेषता तथा प्रभाव का वर्णन करें। [4]
(c) सामान्य लोग सरल और विनम्र लोगों का अनुसरण करने का प्रयास क्यों करते हैं? [4]
(d) सुकरात की प्रतिदिन शीशा देखने वाली घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिये।
(e) इस गद्यांश से आपको क्या शिक्षा मिलती है? [4]
Answer:
(a) विनम्रता सच्चे अर्थ में मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है। वह मनुष्य को उसके दिव्य स्वभाव से जोड़ती है। विनम्र व्यक्ति में ही सहृदयता आती है जिससे वह दूसरे मनुष्यों की सहायता करता है। विनम्र व्यक्ति का कोई शत्रु नहीं होता। वह सबको अपना प्रिय बना लेता है। विनम्रता मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है। विनम्र व्यक्ति ही सबका चहेता होता है।

(b) सरल तथा विनम्र मनुष्यों की वाणी मधुर होती है। वे सामने वाले व्यक्ति के अनुरूप ही सद्व्यवहार करते हैं। सरल व्यक्ति किसी से धोखाधड़ी नहीं करता। विनम्र व्यक्ति सरल हृदय तो होता ही है साथ-साथ वह अपनी मधुर वाणी से सुनने वाले को सन्तोष और सुख प्रदान करता है। उसके मृदुवचन मन की कटुता को समाप्त करते हैं। वाणी की मधुरता के कारण इनके अनेकानेक मित्र बन जाते हैं। विनम्र व्यक्ति की मधुर वाणी क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को भी शान्त कर देती है।

(c) सामान्य लोग सरल और विनम्र लोगों का अनुसरण करने का प्रयास इसलिए करते हैं क्योंकि वे भी उन लोगों की तरह विनम्रता को अपनाकर अपने जीवन को महान और सफल बना सकें। विनम्रता से ईर्ष्या, द्वेष, घृणा जैसे मनोविकार धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं और मनुष्य सद्गुणों की ओर प्रेरित होता है।

(d) विश्वप्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात शक्ल में अत्यन्त कुरूप थे। एक दिन वे दर्पण में अपना मुख देख रहे थे। तभी एक शिष्य वहाँ आया तो उसे आश्चर्य हुआ कि कुरूप होते हुए भी गुरुजी अपना मुख दर्पण में क्यों देख रहे हैं? लेकिन वह कुछ बोला नहीं। गुरु ने उसके मन के विचारों को जानकर उससे कहा कि वत्स मैं कुरूप हूँ इसलिए शीशा देखकर मैं यह प्रयत्न करता हूँ कि ऐसे अच्छे कार्य करूँ जिससे मेरी कुरूपता ढक जाये। संसार में रूप का नहीं बल्कि विद्वता और सत्कर्मों का ही महत्व है। शिष्य की समझ में यह बात आ गई।

(e) इस गद्यांश से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने जीवन में अच्छे गुणों को अपनाना चाहिए। इससे हमारी जीवनदृष्टि विशाल तथा भव्य बनती है। हम मानवता को नई ऊँचाई प्रदान करते हैं। हमारी विनम्रता तथा सरलता एक स्वस्थ समाज को जन्म देती है। हमारे जीवन में सद्गुणों का विकास होता है और सत्पुरुषों का संग मिलता है।

Question 3.
(a) Correct the following sentences, [5]
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए
(i) मुझे आपसे अनेकों बात करनी हैं।
(ii) हमें अपनी मातृभूमि पर अहंकार है।
(ii) मेरी बात राकेश हँसी से टाल गया।
(iv) जो काम करो वह पूरा जरूर करो।
(v) यह सारा कार्य मैंने करा है।

(b) Use the following idioms in sentences of your own to illustrate their meaning- [5]
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
(i) आँच न आना।
(ii) कान खड़े होना।
(iii) घी के दीये जलाना।
(iv) चेहरे का रंग उड़ना।
(v) राई का पहाड़ बनाना।
Answer:
(a) (i) मुझे आपसे अनेक बातें करनी हैं।
(ii) हमें अपनी मातृभूमि पर गर्व है।
(iii) मेरी बात राकेश हँसी में टाल गया।
(iv) जो काम करो उसे पूरा जरूर करो।
(v) यह सारा कार्य मैंने किया है।

(b) (i) आँच न आना-कोई नुकसान न होना।
प्रयोग शेयरों की उलटफेर में करीब-करीब सभी को घाटा हुआ, लेकिन रमेश भाग्यशाली रहा कि उसको कोई आँच न आई।

(ii) कान खड़े होना–सावधान हो जाना।
प्रयोग– जब से सुशील को चाँदी के काम में घाटा हुआ है तब से उसके कान खड़े हो गये और अब वह सावधानी से चलता है।

(iii) घी के दिये जलाना- बहुत खुशी मनाना।
प्रयोग– व्यापार में उम्मीद से ज्यादा मुनाफा होने पर सेठ लक्ष्मीचन्द के यहाँ घी के दिये जल रहे हैं।

(iv) चेहरे का रंग उड़ना-घबरा जाना।
प्रयोग-चोर ने चोरी के माल को ऐसी जगह छिपा दिया कि किसी को पता न चले; लेकिन जब पुलिस ने उसको पकड़ लिया तो उसके चेहरे का रंग उड़ गया।

(v) राई का पहाड़ बनाना-बड़ा-चढ़ा कर कहना।
प्रयोग-रमेश की तो आदत है कि वह हर घटना को राई का पहाड़ बनाकर बताता है।

Section B is not given due to change in Present Syllabus.

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