ISC Hindi Question Paper 2015 Solved for Class 12

ISC Hindi Previous Year Question Paper 2015 Solved for Class 12

Section-A

Question 1.
Write a composition in Hindi in approximately 400 words on any ONE of the topics given below :- [20]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर लगभग 400 शब्दों में हिन्दी में निबन्ध लिखिये-
(a) नारी : माँ, बहन, पत्नी तथा बेटी हर रूप में आदरणीय है। विवेचन कीजिए।
(b) जीवन में सुख-समृद्धि पाने के लिए हर व्यक्ति अपने लिए किसी व्यवसाय को चुनना चाहता है। आप अपने लिए किस व्यवसाय को चुनना पसन्द करेंगे। उसकी प्राप्ति के लिए आप क्या-क्या प्रयत्न करेंगे तथा उससे देश व समाज को क्या लाभ होगा।
(c) “मानव की अतिमहत्वाकांक्षा ने ही प्रदूषण जैसी विकराल समस्या को जन्म दिया है।” इस कथन के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार प्रकट करें।
(d) आज के युग में टूटते परिवार।
(e) किसी ऐसे चलचित्र का वर्णन कीजिए जिसे आपने अपने परिवार के साथ देखा। उस चलचित्र के निर्देशन, संगीत निर्देशन, कहानी तथा कहानी से मिलने वाली शिक्षा का वर्णन करते हुए बताएं कि वह चलचित्र आपको किस कारण से बहुत अच्छा लगा।
(f) निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर मौलिक कहानी लिखिए

(i) कहानी का अन्तिम वाक्य होगा ……………………….
………………………. “पिताजी के मार्गदर्शन से ही आज मैं
इस योग्य बना हूँ।”

(ii) कहानी की शुरुआत नीचे लिखे वाक्य से कीजिए :
“एक दिन मेरा पड़ोसी” ……………………….
Answer:
(a)

नारी : माँ, बहन, पत्नी तथा बेटी के रूप में

सृष्टि के आदिकाल से ही नारी की महत्ता अक्षुण्ण है। नारी सृजन की पूर्णता है। उसके अभाव में मानवता के विकास की कल्पना असम्भव है। समाज के रचना विधान में नारी के निम्न रूप हैं माँ, प्रेयसी, पत्नी, बहन तथा पुत्री। हम अपने जीवन में नारी के इन विभिन्न रूपों से किसी न किसी तरह सम्बन्ध रखते हैं तथा यह रूप हमारे जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित भी करते हैं।

जब बालक जन्म लेता है तो नारी का ममतामयी माँ का रूप उसका पालन-पोषण करता है। यह नारी का सबसे प्रभावशाली रूप है। माँ को बच्चे की प्रथम शिक्षिका के रूप में जाना जाता है क्योंकि बच्चा सर्वप्रथम संस्कार, विचार या शिक्षा माँ से ही ग्रहण करता है। माँ द्वारा दिये गये संस्कार पर ही यह निर्भर करता है कि उसका भविष्य में कैसा आचरण रहेगा।

नारी का एक और महत्वपूर्ण रूप है— बहन। हमारे सर्वप्रथम मित्र के रूप में हम अपने बहन-भाई को देखते हैं। बाहरी संसार में हमारे मित्र विद्यालय में प्रवेश के बाद बनते हैं, परन्तु बहन एक व्यक्ति की जीवन की सर्वप्रथम मित्र होती है, जो आपकी छोटी-छोटी गलतियों पर सीख देती है, उन गलतियों को माता-पिता से छिपाती है तथा आपको हमेशा गलत राह पर जाने से रोकती है। माँ की तरह आपको डाँटती भी है और एक मित्र की तरह आपकी समस्याओं का समाधान भी करती है। इसलिए हमें कभी भी नारी का अपमान नहीं करना चाहिए तथा हमेशा उसे सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए। नारी का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण रूप को गृहलक्ष्मी, गृहदेवी या गृहणी के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

नारी पत्नी के रूप में भी उतनी ही आदरणीय है जितनी की माँ और बहन के रूप में, पत्नी को जीवनसंगिनी भी कहते हैं अर्थात् जीवन भर साथ देने वाली नारी। एक पत्नी अपने कर्तव्य को पूर्ण करते हुए अपने पति का ही नहीं अपितु पूरे परिवार की सुख-सुविधा तथा उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखती है, मित्र की तरह आपके हर सुख-दुःख में साथ देती है तथा जीवन के हर मोड़ पर हर परेशानी में आपके साथ खड़ी रहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नारी संसार की उत्पत्ति एवं भरण-पोषण का मुख्य कार्य करती है। पुरुष का साथ वह कभी मातृशक्ति बनकर देती है तो कभी बहन, कभी प्रेयसी के रूप में सहायता करती है, तो कभी पत्नी बनकर। हर परिस्थिति में, हर रूप में वह पुरुष का साथ देती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नारी का प्रत्येक रूप आदरणीय तथा सम्माननीय है।

(b)

जीवन में सुख-समृद्धि के लिए
किसी व्यवसाय का चुनाव

जीवन में सुख-समृद्धि पाने के लिए हर व्यक्ति अपने लिए किसी व्यवसाय को चुनना चाहता है। मैं अपने जीवन में एक सुयोग्य शिक्षक बनकर देश की प्रगति में योगदान दूंगा। मनुष्य विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, क्योंकि वह मनन, चिन्तन तथा विचारपूर्वक ही कोई कार्य करता है। शिक्षा का क्षेत्र बड़ा व्यापक है। इसमें कार्य करके परोपकार और देश के विकास में सहयोग होगा। मैं एक आदर्श शिक्षक बनूँगा और हर प्रकार से छात्रों की सहायता कर उन्हें शिक्षित करूँगा। जिन देशों की अधिकतर जनसंख्या शिक्षित है, वे निरन्तर उन्नति के पथ पर अग्रसर हो रहे हैं।

मनुष्य एक बौद्धिक प्राणी है। जिसके हृदय में दृढ़ संकल्प, अदम्य साहस और एक निश्चित उद्देश्य हो वह भावी योजनाओं का चिन्तन-मनन करके अपने ध्येय की ओर उन्मुख होता है, वही अपनी मंजिल पाने में सफल होता है। मैं आज एक विद्यार्थी हूँ पर भविष्य में मुझे क्या बनना है? इसके लिए मेरे मन में कई कल्पनायें हैं।

शिक्षण काल से ही मेरी रुचि पढ़ने-पढ़ाने में रही। मेरे गुरुजी ने एक बार मुझसे कहा कि मुझमें एक आदर्श अध्यापक बनने के गुण हैं। उसी दिन से मैंने अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर लिया। इसके लिए मुझे आदर्श विद्यार्थी बनना होगा, तपस्वी के समान तपस्या, सैनिक के समान अनुशासन और पृथ्वी के समान सहनशीलता को अपनाना होगा। तभी आदर्श अध्यापक बन सकता कुछ अध्यापक तो केवल जीविकोपार्जन के लिए ही अध्यापक बने हैं, लेकिन अध्यापक गुरुत्ता और महिमा की प्रतिमा, विद्या का प्रकाशस्तम्भ हैं। उनका पुनीत कर्तव्य शिष्यों के अन्धकार को दूर करना है क्योंकि विद्या ही सर्वोच्च धन है। विद्या दान सबसे बड़ा दान है। गुरु के कर्तव्य के अनुसार उनमें चारित्रिक और नैतिक भावनाओं को भी जगाऊँगा। मैं उनके सामने त्याग, प्रेम, परोपकार और सेवा का आदर्श स्थापित करूँगा। मैं किसी दुर्व्यसन का शिकार नहीं बनूँगा। मेरा रहन-सहन अत्यन्त सरल तथा स्वच्छ रहेगा। इस पुनीत कार्य से मुझे जीवन भर सन्तोष और शान्ति मिलती रहेगी। मैं कबीर के कथनानुसार ऐसा ‘गुरु’ बनूँगा जो शिष्य को बाह्य रूप से ताड़ना देता हुआ भी हार्दिक भावना से उसका मंगल करे।

“गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥”

ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मुझे इतनी सामर्थ्य प्रदान करे कि मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त कर राष्ट्र के नवनिर्माण में अपना सहयोग प्रदान कर सकूँ। दुःखी जनों के दुःख का निवारण कर सत्पथ पर उन्हें चलाने का प्रयास करूं। निराशा का भाव किसी के मन में न आने दूँ और अशिक्षा को दूर कर सभी को शिक्षित करूँ, ऐसी मेरी कामना है। वास्तव में शिक्षक ही राष्ट्र का निर्माता होता है।

कर्म के साथ ईश्वर की अनुकम्पा यदि रहे तो सच्चा मनुष्य अपने पथ पर निर्भीक होकर बढ़ता है। श्रेष्ठ उद्देश्य मन में लेकर जो कार्य करता है, वह हमेशा सफल होता है। प्रार्थना यदि सच्चे मन से की जाय तो वह कभी निष्फल नहीं जाती। मैं अपने शिक्षक होने को राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व मानकर सच्ची भावना से छात्रों को शिक्षा देकर राष्ट्रपक्ष के निर्माण में सहयोग प्रदान करूँगा।

(c)

प्रदूषण की समस्या के लिए उत्तरदायी
मानव की अति महत्वाकांक्षा

पक्ष : “मानव की अति महत्वाकांक्षा ने ही प्रदूषण जैसी विकराल समस्या को जन्म दिया है।” मैं इस कथन से सहमत हूँ। विज्ञान की प्रगति ने जहाँ समाज को अनेक वरदान दिए हैं, वहीं उनके कुछ अभिशाप भी हैं। उनमें एक है प्रदूषण। इसने कुछ वर्षों में विकराल रूप धारण कर लिया है। प्रगति एवं भौतिकवाद की अंधी दौड़ में पर्यावरण दूषित होकर विनाश की ओर जा रहा है। जब हवा, पानी, मिट्टी, रोशनी, समुद्र, पहाड़, जंगल, रेगिस्तान और नदी आदि की स्वाभाविक अवस्था में दोष उत्पन्न हो जाता है, तब प्रदूषण की स्थिति बन जाती है।

जनसंख्या वृद्धि तथा पदार्थों के दुरुपयोग के कारण प्रदूषित गैसें “. वायुमण्डल में घटित हो जाती हैं और प्राणीमात्र के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। इस प्रदूषण में वे सभी पदार्थ एवं ऊर्जा सम्मिलित हैं जो कि प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। प्रदूषण तीन रूपों में सर्वाधिक व्यापक है- वायु, जल और ध्वनि। वायु प्राणियों का जीवन है। वायु प्रदूषण वाहनों के धुएँ, ज्वालामुखी के फटने, लकड़ी, कोयले और खनिज तेल के जलने, औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाली हानिकारक गैसों के निकलने के कारण होता है।

वायु की भाँति जल भी प्राणी के लिए आवश्यक है। जल के अन्दर अनेक कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें पाई जाती हैं। इनकी असन्तुलित मात्रा, जल को प्रदूषित कर देती है। जल और वायु की भाँति ध्वनि भी वातावरण को प्रदूषित करके श्रवण इन्द्रियों को हानि पहुँचाती है। लाउडस्पीकर, औद्योगिक संस्थानों की मशीनों का शोरगुल तथा विविध प्रकार के संवाहनों की कर्कश आवाज ध्वनि प्रदूषण के कारण हैं।

यद्यपि प्रदूषण जैसी विकराल समस्या मानव की अति महत्वाकांक्षा के कारण ही उत्पन्न हुई है, लेकिन इस समस्या से निजात पाने के लिए हमें और सरकार को शीघ्रातिशीघ्र उपाय करने चाहिए। वृक्षारोपण पर जोर दिया जाये, नगरों और गाँवों की सफाई रखी जाय, पेयजल को प्रदूषण से बचाया जाय, अधिक धुआँ छोड़ने वाले वाहनों पर रोक लगाई जाये तथा नदियों को प्रदूषण से बचाया जाय। केन्द्र सरकार इस समय प्रदूषण के निराकरण के लिए बहुत से उपाय कर रही है।

विपक्ष : “मानव की अति महत्वाकांक्षा ने ही प्रदूषण जैसी विकराल समस्या को जन्म दिया है।” मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ। आधुनिक युग विज्ञान का युग है। विज्ञान ने हमें सुख-सुविधा के अनेक साधन दिए हैं। सृष्टि के समस्त जीव अपने जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए सन्तुलित वातावरण की अपेक्षा करते हैं। हमारे जीवन में जितने भी सुख-सुविधा के साधन हैं, वे हमारी प्रगति में और देश की प्रगति में सहायक हैं। हाँ उनके प्रयोग से थोड़ा-बहुत प्रदूषण अवश्य होता है, लेकिन उसको नजरअन्दाज कर दिया जाता है। तेल से चलने वाले वाहनों से प्रदूषण न हो अतः इसके लिए अधिकतर वाहन सी. एन. जी. से या बिजली द्वारा चलाए जाते हैं। अधिकतर रेलगाड़ियाँ भी बिजली द्वारा संचालित होती हैं।

भौतिकवाद के प्रसार में कारखाने महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनसे लोगों को रोजगार मिलता है और समाज के लिए अनेक उपयोगी वस्तुएँ उत्पादित होती हैं। सरकार ऐसे प्रयास कर रही है कि उनसे प्रदूषण न हो और वे अपना कचरा नदियों में न डालकर अन्य तरीकों से नष्ट कर दें। नदियों को भी जल प्रदूषण से बचाने के लिए अनेक योजनाएँ सरकार ने बनायी हैं।

वृक्षारोपण से शुद्ध वायु प्राप्त होती है। थोड़े से प्रदूषण के भय से मानव अपनी प्रगति नहीं छोड़ सकता है। जनसंख्या के बढ़ने से उनके आवास और रोजगार के प्रबन्ध भी करने पड़ते हैं। ऐसे उपाय किए जा रहे हैं कि प्रदूषण से लोग कम से कम प्रभावित हों। सरकार का भी प्रयास है कि समाज को प्रदूषण से राहत दिलाई जाय।

(d)

आज के युग में टूटते परिवार

आज के युग में भौतिकता, अदूरदर्शिता एवं स्वार्थ-सुख के प्रलोभन में परिवार टूटते जा रहे हैं। संयुक्त परिवार धीरे-धीरे एकल परिवार की ओर बढ़ रहे हैं। परिवार न केवल मानव-जीवन के प्रवाह को जारी रखने वाला अखण्ड स्रोत है, बल्कि मानवोचित गुणों की प्रथम पाठशाला भी है। परिवार को ‘सामाजिक जीवन की अमर पाठशाला’, सामाजिक गुणों का पालना या पाठशाला आदि कहा गया है। इस प्रकार परिवार मानव समाज की आधारभूत एवं सार्वभौमिक सामाजिक संरचना है।

भारत में परिवार की प्रकृति आदिकाल से ही संयुक्त रही है। इसके अन्तर्गत समस्त कुटुम्बीजन सम्मिलित रूप से ही एक मकान में ही निवास करते थे तथा जहाँ पर एक अनुभवशील वयोवृद्ध की सत्ता होती थी। उस परिवेश में प्रेम, सहयोग, सहानुभूति एवं परस्पर त्याग की भावना पूरे परिवार को एक सूत्र में बाँधे रहती थी।

संयुक्त परिवार में रहने के अपरिमित लाभ हैं। बड़े-बूढों के अनुभव का फायदा अन्य लोगों को मिलता है। एक-दूसरे के साथ मिलकर सुख-दुःख में सहायता करते हैं। हारी-बीमारी में एक-दूसरे की सहायता मिल जाती है। छोटे बच्चे दादा-दादी के साथ बड़े चाव से रहते हैं। दूसरी तरफ विभक्त परिवार में पति-पत्नी और बच्चे रहते हैं। इस एकल परिवार में यदि पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो बच्चों को कहाँ छोड़ें, यह समस्या सामने आती है। जो परिवार अकेले रहते हैं, उन्हें भी संयुक्त परिवार में ही रहने की आवश्यकता अनुभव होती है।

संयुक्त परिवार के टूटने के निम्न कारण हैं- कुछ लोग तो माता-पिता के टोकने के कारण उनका दखल नहीं चाहते और अकेले रहना पसंद करते हैं। दूसरा कारण अलग होने का यह है कि बेटे की नौकरी दूसरे शहर में या विदेश में लग गई है तो वह अपनी पत्नी को लेकर चला जाता है और माँ-बाप पुराने स्थान पर ही रहते हैं। कुछ मनचले युवक-युवती, माता-पिता को एक बोझ समझने लगते हैं इसलिए अलग हो जाते हैं कि उनकी स्वतन्त्रता में बाधा न पड़े, परन्तु उनकी यह सोच गलत है।

परिवार का विभाजन आधुनिक काल में ही हुआ। लोगों में स्वार्थ की प्रवृत्ति का बढ़ना और घूमने-फिरने की आजादी की चाह होना, माता-पिता को अपने परिवार में न माना जाना, इन्हीं कारणों से विभाजित परिवार का चलन बढ़ा। जैसे-जैसे बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता से दूर रहने लगे, वैसे-वैसे ही वृद्धाश्रम खुलते चले गए। विदेशों में तो वृद्धाश्रम बहुत पहले से ही उपयोग में लाए जा रहे हैं, लेकिन भारत में तो अभी हाल में ही इनका उदय हुआ है। संयुक्त परिवार एक आदर्श परिवार है। यहाँ एक-दूसरे की आवश्यकता का ध्यान रखा जाता है। परिवार के मुखिया का पूरे परिवार पर नियन्त्रण रहता है। वह सभी का उचित मार्ग-दर्शन करता है। सब लोग उसका आदर करते हैं और उसकी बात मानी जाती है। ऐसे परिवार में लोग कोई गलत काम नहीं करते और न उन्हें अति की स्वतन्त्रता होती है। उनके परिवार का खर्चा बड़ों की राय के अनुसार होता है और फिजूलखर्ची नहीं होती। बुजुर्गों के पास अपने जीवन का अनुभव होता है। वे अपने बच्चों का मार्गदर्शन करते रहते हैं। –

  1. भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली ही सर्वोत्तम प्रणाली है। यह आगे आने वाले समय तक अपना महत्त्व रखेगी।
  2. सन्त समाज भी संयुक्त परिवार प्रणाली की ही वकालत करता है। सद्गृहस्थ वही है जो अपने पूरे परिवार को मिलाकर चलता है।
  3. यदि किसी संयुक्त परिवार में किसी बात को लेकर दरार पड़ जाती है तो भी वह परिवार विभाजित हो जाता है और लोग अलग-अलग रहने लगते हैं।
  4. भारत का युवावर्ग पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होकर भारतीय संस्कृति को भूला जा रहा है और एकल परिवार की ओर दौड़ रहा है।
  5. पहले भारत में जितने भी महापुरुष हुए हैं वे संयुक्त परिवार में ही रहते थे और संयुक्त परिवार में रहने की सभी को प्रेरणा देते थे। अंग्रेजी संस्कृति और शिक्षा ने बहुत से परिवारों को विभाजित कर दिया।

(e)

चलचित्र का वर्णन

विज्ञान ने आज मनुष्य को मनोरंजन के साधन भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराए हैं, जिनमें सिनेमा प्रमुख है। हमारे परिवार में पाँच लोग हैं-मैं, मम्मी, पापा और दादा-दादी। इस समय हमारे शहर में धार्मिक फिल्म ‘हरिदर्शन’ लगी हुई थी। उसकी बड़ी प्रशंसा हम लोगों ने सुनी। अतः रविवार को हम सभी ने जाने का विचार बनाया।

अगले दिन हम सब अपनी गाड़ी से उस सिनेमा हॉल में पहुँचे जहाँ ‘हरिदर्शन’ नामक चलचित्र लगा हुआ था। तीन बजकर कुछ मिनट पर फिल्म शुरू हई। हरिदर्शन’ फिल्म में भक्त प्रह्लाद की कथा प्रारम्भ हुई। शीर्षक गीत से ही मधुर संगीतमय प्रस्तावना शुरू हुई। संगीत कर्णप्रिय था और हृदय में ईश्वर के प्रति भक्ति भावना जागृत कर रहा था। राक्षसराज हिरण्यकश्यप के यहाँ भक्त प्रह्लाद का जन्म हुआ था।

प्रह्लाद बचपन से ही श्री हरि (भगवान विष्णु) का उपासक था और उसके पिता भगवान विष्णु से शत्रुता मानते थे, क्योंकि भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था। प्रह्लाद के पिता ने उसके ऊपर अनेक बन्धन लगाए, लेकिन प्रह्लाद ने अपनी हठ नहीं छोड़ी। उसने बार-बार अपने पिता को समझाने का प्रयत्न किया कि श्री हरि भगवान हैं, उनसे शत्रुता नहीं मित्रता करो, लेकिन हिरण्यकश्यप स्वयं को ही भगवान मानता था और प्रजा से अपनी पूजा करने के लिए कहता। प्रजाजन भयवश राक्षसराज को ही सिर झुकाते थे। प्रह्लाद ने भी अपनी मधुर वाणी से भक्तिपूर्ण गीत गाकर प्रजाजनों और अपने सहपाठियों में विष्णु भक्ति का संचार कर दिया था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे फिकवा दिया, लेकिन प्रभु ने उसे अपनी गोद में ले लिया और सुरक्षित महल में पहुँचा दिया।

प्रजा को ईश्वर की सत्ता और महत्ता का पता लगा और गुप्त रूप से भगवान को पूजने लगे। प्रह्लाद को मारने के प्रयास में प्रह्लाद की बुआ होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई। उसके पास देव-आशीर्वाद के रूप में एक चादर थी जिसके ओढ़ने से वह आग लगने पर जलेगी नहीं। यह सोचकर प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप ने लकड़ियों में आग लगवा दी। चारों ओर लोग इकट्ठे होकर इस दृश्य को दुःखी होकर देखने लगे। हिरण्यकश्यप बड़ा प्रसन्न था, क्योंकि प्रह्लाद को वह अपना शत्रु मानने लगा था। प्रह्लाद तो प्रसन्नचित्त होकर भगवान का कीर्तन करने लगा। भगवान की ऐसी कृपा हुई कि उस समय ऐसी हवा चली कि होलिका की चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई और होलिका जलने लगी और प्रह्लाद बच गया। आग बुझने पर प्रह्लाद ‘हरि’ का नाम लेता हुआ नीचे उतर आया। लोग खुशी से नाचने गाने लगे। उसी दिन की याद में आज भी होली का उत्सव मनाया जाता है।

अन्त में विष्णु भगवान ने नृसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का अन्त किया। प्रह्लाद ने भगवान से अपने पिता के उद्धार के लिए प्रार्थना की।

इस प्रकार मधुर संगीत और गीत के साथ फिल्म समाप्त हुई। फिल्म रंगीन थी और कुशल निर्देशक द्वारा निर्मित थी। संगीत के निर्देशक ने अपनी संगीतात्मक रचना द्वारा दर्शकों को मोहित ही कर दिया। इस फिल्म को देखकर सभी लोग अति प्रसन्न थे। इस फिल्म से हमें भगवान की भक्ति का उपदेश मिला। हमारे हृदय में श्रद्धा उत्पन्न हुई। सभी को यह फिल्म बहुत अच्छी लगी क्योंकि भक्ति भावना के साथ मनोरंजक भी थी। संगीत कर्णप्रिय था। निर्देशन अति उत्तम था और प्राकृतिक मनोहारी छटा हमारे नेत्रों को सुख दे रही थी। ऐसे चित्र देखने लायक होते हैं जो हमें सद्मार्ग पर चलने का उपदेश देते हैं।

(f) (i) मैं एक मध्यम परिवार से सम्बन्धित अंग्रेजी माध्यम विद्यालय का 12वीं कक्षा का छात्र हूँ और अभी मार्च में मेरी परीक्षा समाप्त हुई है। अपने परिवार में हम दो भाई-बहन और माता-पिता हैं। मेरी माता एक सुशिक्षित गृहणी हैं और मेरे पिता एक स्थानीय विद्यालय में अध्यापक हैं। बहन दसवीं कक्षा की छात्रा है और अपनी परीक्षा से मुक्त होकर बुआ के यहाँ चली गई है। मेरी बहन के ऊपर माताजी का नियन्त्रण और मार्गदर्शन रहा और मेरे ऊपर मेरे पिताजी का नियन्त्रण और मार्गदर्शन रहा।

मेरे पिताजी की शिक्षा-दीक्षा हिन्दी माध्यम विद्यालयों में हुई, लेकिन विज्ञान के अलावा अन्य विषयों का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था। अंग्रेजी तो उनका प्रिय विषय रहा। उनका मानना था कि विज्ञान के साथ-साथ अंग्रेजी में भी दक्षता होना आवश्यक है। इसी विचार से उन्होंने मुझे अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में नर्सरी से प्रवेश दिलवाया। विद्यालय पहुँचाने के लिए वह मुझे साइकिल पर बिठाकर ले जाते थे और दोपहर को मुझे लेने भी आते थे। उनके आने-जाने में विद्यालय में व्यवधान पड़ता था इसलिए उन्होंने मेरे लिए रिक्शा लगवा दिया। हालांकि इससे घर के खर्च में कटौती करनी पड़ी थी। मैं तो उस समय इस बात को समझता नहीं था। बाद में मुझे यह बात ज्ञात हुई तो मन को दुःख भी हुआ कि हमारे उत्थान के लिए हमारे पिताजी ने स्वयं कष्ट सहकर हमारी शिक्षा के लिए सहयोग किया। मेरे पिताजी ने पग-पग पर मेरी सहायता की और मेरा मार्गदर्शन किया। बिना उनके सहयोग के मेरा इतना पढ़ना सम्भव ही नहीं था।

जब मैं कक्षा 6 में आया तो मुझे पढ़ने में दिक्कत का सामना करना पड़ा। उस समय हमारी स्थिति ऐसी नहीं थी कि ट्यूशन का प्रबन्ध कर सकें। इसका हल यह निकाला कि पिताजी ने स्वयं मेरी किताबों से देखकर मेरे लिए नोट्स बनाए और मुझे पढ़ाया। मेरी मुसीबत कम हुई और मैं पास हो गया। सातवीं कक्षा से लेकर नौवीं कक्षा तक मेरे पिताजी मेरी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देते थे। यहाँ तक कि उन्होंने मेरा पढ़ने और खेलने का टाइम-टेबिल बना दिया था। वह पूरा ध्यान रखते कि मैं उसका पालन कर रहा हूँ या नहीं। सन्तुलित भोजन के भी वह पक्षधर रहे। आज मैं इस बात को याद करता हूँ कि पिताजी का मार्गदर्शन कितना महत्वपूर्ण है।

दसवीं कक्षा में आकर मेरे पिताजी ने मुझे विज्ञान और गणित पर विशेष ध्यान देने को कहा क्योंकि वह चाहते थे कि मैं 12वीं कक्षा के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करूँ। 10वीं कक्षा में अच्छे अंकों से पास होने के बाद मैंने 11वीं कक्षा में पिताजी के निर्देशानुसार विज्ञान और गणित के विषय में ही प्रवेश लिया। हिन्दी के स्थान पर मैंने कम्प्यूटर विषय लिया। इसमें मेरे पिताजी का ही मार्गदर्शन रहा। इस कक्षा में भी आर्थिक परेशानियाँ आईं, लेकिन मैंने हिम्मत न हारी और कठिन परिश्रम करता रहा। आखिर वार्षिक परीक्षा आईं और मैंने अपने कठिन परिश्रम का परिचय देकर प्रश्न-पत्र अच्छी तरह हल किए। आशा है कि परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करूँगा। अब मैंने बी. टेक की तैयारी शुरू कर दी है और प्रवेश परीक्षाओं में भाग लूँगा। आशा है कि मुझे कहीं न कहीं सफलता मिल जाएगी। पिताजी के मार्गदर्शन से ही आज मैं इस योग्य बना हूँ।

(ii) एक दिन मेरा पड़ोसी भागता हुआ मेरे पास आया। वह हाँफ रहा था जैसे किसी भयावह दृश्य को देखकर घबराहट में मेरे पास आया हो। मैं उसे अपने कमरे में लेकर आया और कुर्सी पर बैठाकर उसे पानी लाकर दिया। उसने पानी पीकर कुछ राहत पाई और बोलने में समर्थ हुआ। हम दोनों पड़ोसी परस्पर प्रेम करते हैं और एक दूसरे की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। मैंने उससे पूछा कि आखिर क्या बात है? जिसके कारण तुम इतना घबराए हुए हो। कुछ देर बाद उसने बोलने की हिम्मत दिखाई और कहा कि मित्र कल रात मुझे अपने कमरे की दीवार पर किसी औरत का चेहरा दिखाई दिया। मैं बहुत डर गया और तुरन्त ही मैंने बिजली जलाई। बिजली के जलते ही वह चेहरा गायब हो गया। फिर मैं बहुत देर तक दीवार की तरफ देखता रहा, लेकिन फिर वह चेहरा मुझे दिखाई नहीं दिया। मैंने सोचा कि यह मेरा भ्रम होगा। मैं सो गया, बिजली जलती रही।

आज मैं अपने कमरे में सोफा पर बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था। चाय पीते हुए मैं अपने देश की समस्याओं में उलझा हुआ था। टी. वी. मेरे कमरे में एक मेज पर रखा हुआ है, लेकिन मैं कम ही देखता हूँ। समाचार, एक दो सीरियल और धार्मिक कार्यक्रम ही देखता हूँ। आज सुबह 9 बजे मुझे वही औरत का चेहरा दीवार पर दिखाई दिया। इस समय वह चेहरा मुस्करा रहा था, लेकिन था निश्चल। मेरे भय और आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मैं डरता हुआ एकटक पाँच मिनट तक उसे देखता रहा। कुछ देर में ही वह चेहरा गायब हो गया। मुझे तुम्हारा स्मरण हो आया और मैं तुम्हारे पास आ गया। उसकी बातें सुनकर मैं भी दहल गया कि आखिर यह क्या बला है?

मैं और मेरा पड़ोसी तुरन्त उसके घर पहुँचे और उसके कमरे में ही बैठ गए। पड़ोसी ने नौकरानी से चाय नाश्ता लगाने को कहा। मैं उस दीवार की ओर ही देखता रहा, लेकिन मुझे चेहरे के कोई लक्षण परिलक्षित नहीं हुए। चाय पीकर भी मैं करीब एक घण्टे तक बैठा रहा एक अनजाने भय को हृदय में सँजोए हुए, परन्तु कोई घटना घटित नहीं हुई। मैं पड़ोसी से विदा लेकर अपने घर के दरवाजे तक पहुँचा ही था कि मेरा पड़ोसी भागता हुआ बदहवास-सा आया और बोला ‘मोहन फिर वही चेहरा मुझे दिखाई दिया’ मैं तुरन्त उसके साथ ही लौट पड़ा तो देखा कि वह चेहरा स्पष्ट रूप से मुझे भी दिखाई दिया। उसकी मुस्कान यह संकेत दे रही थी कि वह जो भी है, प्रसन्न है और कोई नुकसान नहीं पहुँचाना चाहती है। उससे डरना नहीं चाहिए, परन्तु ऐसी अप्रत्याशित घटनाएँ मन में डर का स्थान बना ही देती हैं। मुझे पूरा विश्वास हो गया कि इस घर पर किसी आत्मा का साया है। मैंने अपने पड़ोसी से विचार-विमर्श कर एक तांत्रिक को बुलाया। तांत्रिक के आने पर वह चेहरा उसके सामने प्रकट नहीं हुआ। उसने घर में हवन किया और मंत्रों से सम्पूर्ण घर को कील दिया। उसके बाद आज तक मेरे पड़ोसी को वह चेहरा दिखाई नहीं दिया।

Question 2.
Read the following passage and answer the questions that follow : –
निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर, अन्त में दिये गये प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर लिखिए-

पहला सुख निरोगी काया अर्थात् सबसे बड़ा सुख स्वस्थ शरीर है। अस्वस्थ व्यक्ति न अपना भला कर सकता है, न घर का, न समाज का और न ही देश का।

प्राचीनकाल से ही उत्तम स्वास्थ्य के लिए व्यायाम के महत्व को पहचाना गया है। बड़े-बड़े मनीषियों ने व्यायाम को उत्तम स्वास्थ्य का आधार बताया है।

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों का मूल आधार स्वास्थ्य है। जहाँ तक इस सफलता की बात करें तो मानव-जीवन की सफलता भी इसी सूत्र में छिपी है।

बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य तथा सफलता के लिए परिश्रम भी स्वस्थ शरीर से ही सम्भव होता है। अतः स्वस्थ मस्तिष्क तथा स्वस्थ बुद्धि के लिए हमें शरीर को स्वस्थ रखना चाहिए।

स्वास्थ्य और सफलता का गहरा नाता है। सफलता के लिए व्यक्ति को परिश्रम करना आवश्यक है और अस्वस्थ व्यक्ति परिश्रम नहीं कर सकता। स्वस्थ मस्तिष्क से ही मनुष्य में सोचने -विचारने की शक्ति आती है, वह अपना हानि-लाभ सोच सकता है। जिस देश के व्यक्ति कमजोर व अस्वस्थ होंगे वह देश कभी उन्नत नहीं हो सकता। एक विद्यार्थी तभी श्रेष्ठ विद्यार्थी होगा जब वह स्वस्थ होगा। चाहे विद्यार्थी हो या अध्यापक, व्यापारी हो या वकील, कर्मचारी हो या शासक, नौकर हो या स्वामी, प्रत्येक को अपने कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए स्वस्थ होना आवश्यक है।

इसं स्वास्थ्य की रक्षा के लिए मनीषियों ने, वैद्यों-डॉक्टरों ने तथा योगी-महात्माओं ने अनेक साधन बताए हैं– जिसमें शुद्ध वायु, प्रातः भ्रमण, संयमित जीवन, सच्चरित्रता, निश्चिन्तता, सन्तुलित भोजन, गहरी नींद तथा व्यायाम प्रमुख है। इनमें भी व्यायाम ही उत्तम स्वास्थ्य की मूल जड़ है। आलस्य रूपी महारिपु से छुटकारा पाने के लिए भी व्यायाम को अपनाना आवश्यक है। व्यायाम व्यक्ति को चुस्त-दुरुस्त रखता है। व्यायाम शारीरिक व बौद्धिक दो प्रकार का होता है। शारीरिक व्यायाम के लिए दण्ड-बैठक, खुली हवा में दौड़ लगाना, तैरना, घुड़सवारी करना, कुश्ती लड़ना तथा विभिन्न प्रकार के खेल, जैसे- हॉकी, कबड्डी, रस्साकसी, बैडमिण्टन आदि खेले जा सकते हैं। बौद्धिक व्यायाम के अन्तर्गत शब्द पहेलियाँ, बुद्धिपरीक्षण के प्रश्न तथा शतरंज आदि खेल आते हैं।

स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने के कारण ही आज व्यक्ति फिर योग की ओर मुड़ रहे हैं। योगासनों का महत्व बढ़ता जा रहा है। इन योगासनों के द्वारा शरीर की माँसपेशियाँ पुष्ट होती हैं। साथ ही मनुष्य को एकाग्रचित्तता की शक्ति प्राप्त होती है। व्यायाम करने व योगासनों से मनुष्य जल्दी बूढ़ा नहीं होता। उसकी पाचन क्रिया ठीक रहती है, रक्त-संचार नियमित होता है जिससे मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। मनुष्य में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता जैसे गुणों का समावेश होता है जो मनुष्य की सफलता की कुंजी है।

जो सुखों का उपभोग करना चाहता है तथा जीवन में सफलता रूपी कुंजी पाना चाहता है उसे स्वास्थ्य नियमों का पालन करना चाहिए।

Questions.
(a) ‘पहला सुख निरोगी काया’ से आप क्या समझते हैं? स्वास्थ्य नियमों का पालन करने से क्या लाभ होता है? [4]
(b) स्वास्थ्य और सफलता का आपस में गहरा नाता किस प्रकार है? [4]
(c) स्वास्थ्य रक्षा के लिए किसने और क्या साधन बताए? [4]
(d) शारीरिक व बौद्धिक व्यायाम से आप क्या समझते हैं? ये किस प्रकार किये जाते हैं?
(e) योग साधनों का महत्व क्यों बढ़ रहा है तथा इस योग साधना के क्या लाभ हैं? [4]
Answer:
(a) ‘पहला सुख निरोगी काया’ से तात्पर्य है मनुष्य शरीर का। स्वस्थ और निरोगी होना। यदि शरीर में कोई रोग नहीं है और उसे शुद्ध और पौष्टिक आहार मिल रहा है तो वह स्वस्थ रहेगा। स्वस्थ जीवन ही संसार में पहला सुख बताया गया है। निरोगी व्यक्ति ही प्रसन्न रहता है और स्फूर्तिपूर्वक अपना काम कर सकता है। स्वस्थ व्यक्ति ही अपना, घर का, समाज का और देश का भला कर सकता है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों का मूल आधार स्वास्थ्य ही है। मानव जीवन की सफलता भी इसी सूत्र में सन्निहित है। श्रेष्ठ बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य तथा सफलता के लिए परिश्रम भी स्वस्थ शरीर से ही सम्भव है। अतः स्वस्थ मस्तिष्क तथा स्वस्थ बुद्धि के लिए हमें शरीर को स्वस्थ रखना चाहिए।

(b) स्वास्थ्य और सफलता का गहरा रिश्ता है। कार्य की सफलता के लिए मनुष्य को परिश्रम करना आवश्यक है, जबकि अस्वस्थ व्यक्ति परिश्रम नहीं कर सकता। स्वस्थ मस्तिष्क ही मनुष्य में सोचने-विचारने की शक्ति और हानि-लाभ का विचार देता है। जिस देश के नागरिक कमजोर और अस्वस्थ होंगे, वह देश कभी उन्नति नहीं कर सकता। श्रेष्ठ विद्यार्थी के लिए उसका स्वस्थ होना आवश्यक है। व्यक्ति के कार्य का कोई भी क्षेत्र हो, उसे उसके कार्य में सफलता पाने के लिए उसका स्वस्थ होना आवश्यक है।

(c) स्वास्थ्य की रक्षा के लिए मनीषियों ने, वैद्य-डॉक्टरों ने तथा योगी-महात्माओं ने अनेक साधन बताए हैं- जैसे शुद्ध वायु, प्रातः कालीन भ्रमण, संयमित जीवन, सच्चरित्र होना, निश्चिन्तता, सन्तुलित भोजन, गहरी नींद तथा व्यायाम। इनमें से व्यायाम ही उत्तम स्वास्थ्य की संजीवनी है। आलस्य शरीर का महान् शत्रु है। इससे छुटकारा पाने के लिए व्यायाम करना अत्यन्त आवश्यक है। व्यायाम व्यक्ति को चुस्त-दुरुस्त और प्रसन्नचित्त रखता है।

(d) शारीरिक व्यायाम से शरीर स्वस्थ रहता है और बौद्धिक व्यायाम से मस्तिष्क की बुद्धि विकसित और तीव्र होती है। शारीरिक व्यायाम के लिए दण्ड-बैठक, कुश्ती लड़ना, खुली हवा में दौड़ना, साइकिल चलाना, तैरना, घुड़सवारी करना तथा विभिन्न प्रकार के खेल, जैसे – हॉकी, कबड्डी, रस्साकसी, बैडमिण्टन, बालीबॉल आदि खेले जाते हैं। बौद्धिक व्यायाम के अन्तर्गत शब्द पहेलियाँ, बुद्धि परीक्षण के प्रश्न तथा शतरंज, लूडो आदि खेल आते हैं।

(e) स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने के लिए आज व्यक्ति फिर योग की ओर अग्रसर हो रहे हैं। योगासनों का महत्व बढ़ता जा रहा है। योगासनों के द्वारा शरीर की माँसपेशियाँ पुष्ट होती हैं तथा मनुष्य को एकाग्रता की शक्ति प्राप्त होती है। व्यायाम करने व योगासन करने से मनुष्य का बुढ़ापा जल्दी नहीं आता। उसकी पाचन क्रिया ठीक रहती है और रक्त संचार नियमित रहता है जिससे मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है। मनुष्य में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता जैसे गुणों का समावेश होता है जो उसकी सफलता की कुंजी है।

Question 3.
(a) Correct the following sentences : [5]

निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए:
(i) जो काम करो वह पूरा जरूर करो।
(ii) पिता का पुत्र में विश्वास है।
(iii) उसे मृत्युदण्ड की सजा मिली है।
(iv) वह गुणवान महिला है।
(v) सभी कार्यालय में उपस्थिति कम है।

(b) Use the following idioms in sentences of your own to illustrate their meaning : [5]
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
(i) फूला न समाना।
(ii) कान भरना।
(iii) पानी में आग लगाना।
(iv) श्री गणेश करना।
(v) लोहे के चने चबाना।
Answer:
(a) (i) जो काम करो उसे पूरा जरूर करो।
(ii) पिता को पुत्र पर विश्वास है।
(iii) उसे मृत्युदण्ड मिला।
(iv) वह गुणवती महिला है।
(v) सभी कार्यालयों में उपस्थिति कम है।

(b) (i) फूला न समाना (बहुत खुश होना)– पी. सी. एस. की परीक्षा में सफल होने पर अभय फूला न समाया।
(ii) कान भरना (भड़काना)- जिस व्यक्ति की आदत दूसरों के कान भरने की होती है वह समाज में अच्छा नहीं माना जाता।
(iii) पानी में आग लगाना (असम्भव को सम्भव करना)– मोहन और सोहन के परिवारों में दस साल से दुश्मनी चली आ रही है। लोग जानते हैं कि उनमें सुलह कराना पानी में आग लगाने के समान है।
(iv) श्री गणेश करना (शुरुआत करना)- हमारे पड़ोसी शिवलाल जी ने अपने व्यवसाय का श्री गणेश विशेष पूजापाठ के साथ कराया।
(v) लोहे के चने चबाना (कठिनाई होना)- देश में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करना एक तरह से लोहे के चने चबाने के समान है।

Section B is not given due to change in Present Syllabus.

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