ICSE Hindi Question Paper 2016 Solved for Class 10

ICSE Hindi Previous Year Question Paper 2016 Solved for Class 10

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  • This paper comprises of two Sections – Section A and Section B.
  • Attempt all questions from Section A.
  • Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
  • The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].

SECTION – A  [40 Marks]
(Attempt all questions from this Section)

Question 1:
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics:— [15]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए
(i) पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से फैशन एवं प्रदर्शन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, जिसके कारण अनेक प्रकार की समस्याओं का जन्म हो रहा है तथा नैतिक मूल्यों का ह्यस हो रहा है। अपने विचारों द्वारा स्पष्ट कीजिये।
(ii) “सादगी भी लोगों के दिलों में अमिट छाप छोड़ सकती है” कथन को ध्यान में रखते हुए अपने देश के किसी ऐसे व्यक्तित्व के विषय में लिखिये जिन्होंने ‘सादा जीवन उच्च विचार’ को आधार मानकर अपना जीवन बिताया, आपके ऊपर उस व्यक्ति का प्रभाव किस प्रकार का रहा यह भी स्पष्ट कीजिये।
(iii) योग के माध्यम से हम शरीर तथा मन दोनों को स्वस्थ कर सकते हैं, जीवन में योग की अनिवार्यता तथा उससे मिलने वाले लाभों का वर्णन करते हुए अपने विचार लिखिये।
(iv) एक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित उक्ति हो –
“मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रख्नना”
(v) नीचे दिये गये चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर उसका परिचय देते हुए कहानी अथवा
लेख लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।
ICSE Hindi Question Paper 2016 Solved for Class 10
Answer:
(i) फैशन की ओर मानव का लगाव आदि काल से ही है। सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भ से लेकर आज तक इसका प्रवाह लम्बा सफर तय करता हुआ विद्यमान है। आधुनिक समाज में फैशन की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ती जा रही है। नवयुवक और नवयुवतियों के द्वारा फैशन का अंधानुकरण करने से अनेक प्रकार की समस्याओं का जन्म हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में स्वयं को दूसरों के समक्ष सुंदर एवं आकर्षक रूप से प्रस्तुत करने की भावना विद्यमान रहती है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति के मन में नवीनता के प्रति एक विशेष आकर्षण रहता है।

समाज में जो व्यक्ति परंपरा प्रिय होने के कारण फैशन से घृणा करते दिखाई देते हैं, उन्हें फैशन से विमुख होने के कारण सामाजिक सम्मान से वंचित रहना पड़ता है। समाज में ऐसे व्यक्तियों को लकीर का फकीर की संज्ञा मिलती है। उसे उपेक्षा की दृष्टि से भी देखा जाता है।

जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा है, मान्यताएँ परिवर्तित हो रही हैं। नैतिक मूल्य समाप्त होते जा रहे हैं। युवा व बच्चों को पढ़ाई व ज्ञानार्जन के समय को फैशन-परस्ती में नहीं गवांना चाहिए। फैशन हमारे संस्कारों का ही ह्रास नहीं करता बल्कि समय व धन का भी अपव्यय करता है। लोग मँहगाई के समय में खर्च का एक हिस्सा फैशन पर व्यय करते हैं। आधुनिक युग में अधिकांशतः पश्चिमी देशों के प्रचलित फैशन की नकल करना गौरव की बात समझी जाती है। आज विदेशी फैशन की होड़ भारतीय संस्कृति के लिए घातक सिद्ध हो रही है। विद्यार्थी विद्या प्राप्त के लक्ष्य से दूर होकर ‘खाओ-पीओ और मौज उड़ाओ’ जैसी मान्यताओं और स्वच्छंद जीवन-प्रणाली की ओर अग्रसर हो रहा है।

आज फैशन सम्पूर्ण विश्व में अपनी जड़ें जमा चुका है। इसके संक्रमण से न ही नगर अछूते हैं न गाँव। यह कटु सत्य है कि विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी ने अपने मन-मस्तिष्क को बलिष्ठ और शक्तिशाली नहीं बनाया तो आगे चलकर समय भी कठोर हो जाता है। अतः अपने समय की कीमत समझते हुए अपने नैतिक मूल्यों, संस्कारों व सामाजिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर अपना जीवन हमें जीना चाहिए।

फैशन से न केवल हमारे संस्कारों का ह्रास होता है, बल्कि समय और धन का भी अपव्यय होता है। बच्चे माता-पिता से फैशन के लिए आए दिन रुपयों की मांग करते हैं। यदि माता-पिता उसे पूरा करने में सक्षम नहीं होते तो वे कुसंगति की ओर उन्मुख हो जाते हैं। चोरी आदि में फंस जाते हैं। बढ़ता फैशन युवाओं को न केवल मूल्यहीन बना रहा है बल्कि अनुशासनहीनता व अपराधिक घटनाओं का जनक भी है। धूम्रपान और मदिरापान की प्रवृत्ति भी फैशन से बढ़ती है। फैशन हमें अपनी संस्कृति से विमुख करके पश्चिमी सभ्यता की ओर ले जाता है।

फैशन यदि स्वयं के आकर्षक दिखने हेतु किया जाए तो उसमें कोई बुराई नहीं है। फैशन द्वारा फूहड़पन या निर्लज्जता का प्रदर्शन निंदनीय है। इससे हमारी संस्कृति व मूल्यों का ह्रास नहीं होना चाहिए। फैशन के अन्धानुकरण से धूम्रपान, मदिरापान व धन का अपव्यय न करते हुए आदर्श मार्ग का अनुसरण करते हुए जीवन जीएं। अपनी प्राचीन परम्परा व संस्कृति के सम्वाहक बने व देश की पहचान को अमिट बनाए रखें।

“आधुनिक फैशन ने बदल दी है हमारी सोच,
पालनकर्ता हैं जो हमारे उन्हें ही हम समझते बोझ,
रंगीन वस्त्रों की चमक अब, अपनों पर हावी,
फैशन ने बदल दी चाल अब युवाओं की।”

(ii) ‘सादगी भी लोगों के दिलों में अमिट छाप छोड़ सकती है’
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रहकर साहित्य को पढ़कर लोगों की जीवन शैली से प्रभावित होकर जीवन में प्रेरणा पाता है।
हम सभी जानते हैं कि महान विभूतियाँ सदा ही सम्मान पाती रही हैं। इस प्रकार हम ऐसे लोगों के व्यक्तित्व को अपना आदर्श बना प्रेरित होते हैं। महापुरुषों का यही आदर्श हमारे जीवन की राह पर प्रेरणा बन साथ-साथ चलता है।
हम ऐसे ही व्यक्तियों के जीवन को अपने मन:पटल पर सरल, मधुर एवं उत्साह से भरी प्रति छाया के साथ बसा लेते हैं। ऐसे ही लोगों में मेरी प्रेरणा का स्रोत रहे पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम । जिन्होंने ‘सादा जीवन उच्च विचार’ को अपने जीवन में अपनाया।
हमारे देश को विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में पहुंचाने का स्वप्न देखने वाले डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम हमारे राष्ट्र के बारहवें राष्ट्रपति रहे। जिन्होंने अपने जीवन में कर्मठता को अपनाया। उन्होंने किसी राजनीतिक दल से सम्बन्ध नहीं रखे। साथ ही राष्ट्रपति के पद को शोभायमान करने वाले देश के पहले वैज्ञानिक थे। 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडू राज्य में रामेश्वरम के पास एक मछुआरे परिवार में जन्में डॉ. कलाम एक मध्यवर्गीय परिवार से सम्बन्धित थे। इनका पूरा नाम अब्दुल पाकिर जैनुलबद्दीन अब्दुल कलाम था।

बचपन से ही कहा जाता है कि इनमें आत्मनिर्भरता का जज्बा था। जिस उम्र में बच्चों को खेलकूद में रुचि होती है, कहा जाता है कि उस आयु में अखबार बेचकर परिवार के सहयोगी बन गए थे।
शिक्षा अर्जन के बाद प्रशिक्षु के रूप में बैंगलौर के हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड जा पहुँचे। वहीं उन्हें पुस्तकीय ज्ञान का व्यावहारिक रूप सीखने का अवसर मिला था। अब्दुल कलाम ने सदैव, निराशा के समय भी इस गुरुमन्त्र को आधार बनाया था कि जिस प्रकार रोज सूर्योदय अवश्य होता है, प्रतिवर्ष बसंत अवश्य आता है, उसी प्रकार हमें भी आशा नहीं खोनी चाहिए। ये सभी बातें मुझे भी प्रेरित करती हैं।

ऐसे प्रतिभावान व्यक्तित्व की सादगी व विचारों की श्रेष्ठता मुझे सदैव प्रोत्साहित करती रही। अपने जीवन में डॉ. कलाम ने 20 साल रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला में बिताये। उनकी लगन व स्वप्न हमेशा उनकी प्रेरणा रही। सतह से सतह पर मार करने वाले ‘पृथ्वी’, ‘त्रिशल’, ‘आकाश’ जैसे मिसाइलों को निर्मित कर अपना स्वप्न साकार कर दिखाया था। यही उपलब्धियाँ ही हैं जिन्होंने हमारे देश को विकसित देशों की कतार में स्थान दिलवाया। ऐसे होनहार, ईमानदार, सादगी पसन्द कर्मठ, सचरित्र अनुशासन प्रिय देशभक्त डॉ. कलाम सदा ही मेरे जीवन की प्रेरणा रहेंगे।

अनेकानेक उपाधियों व उपलब्धियों से झोली भरी होने पर भी पद की गरिमा व इन्सानियत के साकार रूप थे। सदा बच्चों को अपने प्रेम से अभिसिंचित करते थे। वह कभी किसी धर्म व समुदाय के पक्षधर नहीं रहे। मुझे ही नहीं देश के प्रत्येक नागरिक को उनकी मानवतावादी विचारधारा प्रेरणा से भरती रहेगी। सम्पूर्ण जीवन प्रेरणाओं से भरा है उनका। मैं भी उनके जीवन के समान अगर देश व मानवता की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर सकूँ तो श्रेष्ठ बन सकूँगा।
धन के प्रति उदासीनता, मानव मूल्यों के सम्वाहक बन सादगी से जीवन बिताते हुए अन्त समय तक कर्मनिष्ठ का आदर्श प्रस्तुत किया। मेरा जीवन ऐसे ही कर्मनिष्ठ व सादगी से भरा रहे ये प्रेरणा जीवनपर्यन्त मेरे मन में समाहित रहेगी।

(iii) योग का अर्थ होता है जोड़ना। योग जीवन को व्यवस्थित करने की कला सिखाती है। इससे तन-मन स्वस्थ व संतुलित होता है। आज इस महत्वपूर्ण कार्य की ओर आम तौर पर ध्यान नहीं दिया जाता। यही कारण है कि आज का जीवन व्यक्ति और समाज दोनों स्तरों पर अनेक प्रकार के भयानक रोगों का, महामारियों का शिकार होता जा रहा है।

एक कहावत है-स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन तथा आत्मा का निवास हुआ करता है। बुद्धिमतापूर्ण कार्य और सफलता के लिए परिश्रम भी स्वस्थ शरीर द्वारा ही सम्भव हुआ करता है। जीवन जीने के लिए जीवन की हर प्रकार की छोटी बड़ी आवश्यकता पूरी करने के लिए मनुष्य को निरन्तर परिश्रम करना पड़ता है। अगर मनुष्य की धन-सम्पत्ति नष्ट हो जाए तो दुबारा कमा और बना सकते हैं लेकिन अगर उसका स्वास्थ्य नष्ट हो गया तो समझो कि सभी कुछ नष्ट को गया। योग द्वारा व्यक्ति अपने स्वास्थ्यरूपी धन को सुरक्षित बनाए रख सकता है।

योग हमें जीवन जीने की उन्नतता एवं सुख प्रदान करता है। शरीर की स्वस्थता और सुन्दरता योगाभ्यास द्वारा ही कायम रखी जा सकती है। आलस्य मानव का सबसे बड़ा शत्रु है। वह हमें कामचोर बनाता है। धीरे-धीरे हमारे मन में समाकर नीरसता भर देता है। इस आलस्य रूपी महाशत्रु से छुटकारा ‘योग’ द्वारा पाया जा सकता है। प्रतिदिन योग का अभ्यास करने से जीवन से आलस्य समाप्त हो जाता है। योग अभ्यास करने से ही जीवन की धारा को एकदम बदला जा सकता है।

‘योग’ से न केवल हमारा शरीर हष्टपुष्ट व सुन्दर बनता है बल्कि इससे एकाग्रता का भी समावेश होता है। योग-अभ्यास करने वाला व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को वश में रखने का भी अभ्यस्त हो जाता है। उसकी चुस्ती फुर्ती सहज ही उसे सब कुछ पाने का अधिकारी बनाती है। जीवन की सारी खुशियाँ, सारे सुख उसके लिए हाथ पर रखे जान पड़ते हैं। व्यक्ति में मिलजुल कर रहने की प्रवृत्ति को भी बल मिलता है। सामूहिकता व सामाजिकता की भावनाओं का भी अभ्यास होता है।

अत: योग साधना शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ सारे जीवन व समाज को स्वस्थ व सुन्दर रखने में महत्वपूर्ण योगदान करती है। इसलिए.’योग’ बहुत आवश्यक है। पहले की जीवनशैली में प्रायः सभी आयु वर्ग के लोग अपनी-अपनी जरूरत और सुविधा के अनुसार किसी न किसी प्रकार की शरीर अभ्यास प्रक्रिया अपनाते थे किन्तु आज का जीवन कुछ इस प्रकार का हो गया है कि वह अभ्यास लगभग समाप्त प्रायः हो गए हैं।

लोग अपने स्वास्थ्य की ओर उचित ध्यान नहीं दे पाते क्योंकि समय का अभाव रहता है। लोग प्रदूषित वातावरण में रहने को विवश हैं जहाँ बीमारियों ने डेरा जमा रखा है। इन सब से दूरी बनाना अगर हम चाहते हैं तो ‘योग’ को जीवन में आदतन स्वीकारना होगा। इसे अपनाकर हम विषय परिस्थितियों से छुटकारा पा सकते हैं। यदि हमने उदासीनता नहीं त्यागी व योग को अभ्यास न बनाया तो एक स्वस्थ सुन्दर जीवन की कल्पना असम्भव है।

(iv) “मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना”
सभी धर्म या मजहब महान मानवीय मूल्यों को महत्व देते हैं। किसी भी मजहब या धर्म का सम्बन्ध व्यक्ति के मस्तिष्क या तर्कशक्ति के साथ नहीं बल्कि ह्रदय और भावना के साथ स्वीकार किया जाता है। मजहब या धर्म व्यक्ति को सम्मान, सुसभ्य और सुसंस्कृत बनाकर सभी प्रकार के अच्छे गुणों को धारण करने की शक्ति दिया करता है। पर कई बार कुछ कट्टरपंथी मानवीय भावना के स्तर पर असभ्य ही हो जाते हैं।

सभी धर्म एक ही ईश्वर की तरफ जाने का रास्ता दिखाते हैं। हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं। कोई भी धर्म एक दूसरे से ईर्ष्या करना नहीं सिखाता। गोपालपुरा गांव में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे। रहमान और वसेसर। दोनों में बहुत अपनत्व व लगाव था। दोनों के बीच मजहब की दीवार कभी नहीं आयी। वसेसर खेती करता था और रहमान शहर से लाकर सामान बेचा करता। दोनों मित्रों में सगे भाइयों के जैसा स्नेह था। रहमान के घर होली, दीवाली पर मिठाइयाँ आती तो वसेसर के घर ईद पर सिवई दोनों खुशी से दिन काट रहे थे।

किन्तु उनकी दोस्ती की मिठास गाँव के कुछ लोगों के मन में कड़वाहट ला रही थी और कड़वाहट से भरे हृदय से दोनों के बीच झगड़ा कराने की सोचते।जिस तरह पत्थर पर भी हर दिन रगड़ खाने से घिस जाता है, उसी प्रकार दोनों का मन भड़काए में आकर शंकित होने लगा। धीरे-धीरे दोनों की मित्रता शत्रुता में बदलने लगी। अब दोनों एक दूसरे के सामने आने से मुकरने लगे। अब तो दोनों में सलाम-नमस्ते का भी सम्बन्ध नहीं रहा। एक बार शहर में दंगा हो गया और रहमान सामान खरीदने गया था जो दो दिन बीत जाने पर भी नहीं लौटा था।

वसेसर ने छिपी नजरों से जब रहमान के घर पर ताला लटका देखा तो मन विचलित होने लगा। किसी तरह मन पर अंकुश रखकर उसने एक दिन और काट दिया।
दूसरे दिन सुबह-सुबह वह शहर की ओर चल दिया वहाँ उसने रहमान की जानकारी लेनी चाही। बहुत देर ढूँढते रहने पर भी जब रहमान नहीं मिल सका तो वह थाने पहुंचा व शिकायत दर्ज करायी। वहाँ उसे पता चला कि बाजार में हुए दंगे में जो घायल हुए थे तीन दिन पहले उन्हें सरकारी अस्पताल में दाखिल कराया गया है।

अस्पताल के दरवाजे पर पहुँच कर वसेसर ने देखा की रहमान घायल अवस्था में पलंग पर लेटा है। वसेसर की आँखों में अपने प्यारे मित्र को देखकर आँसू भर आए। जानने पर पता चला की उसके सिर में चोट लगी थी। खून काफी बह जाने के कारण वह उठने की हालत में भी नहीं था। रहमान ने जब वसेसर को सामने खड़ा पाया तो मन की कड़वाहट आँसुओं ने धो डाली। दोनों एक दूसरे के प्रति क्षमा मांगना चाहते थे।

वसेसर ने गाँव जाने की व्यवस्था की और रहमान को लेकर गाँव वापस आ गया। अब वह रोज सुबह-शाम रहमान को खाना लाकर देता, उसको अन्य मदद देता। उसने मुसीबत में अपने हृदय की दया के दरवाजे अपने मित्र के लिए खोल दिए थे। जहाँ मजहबी सीमाएँ नहीं थीं। था तो सिर्फ अपनापन। क्योंकि कोई भी मजहब घृणा नहीं सिखाता।

(v) चित्र प्रस्ताव
प्रस्तुत चित्र में हम देख सकते हैं कि दो लड़कियाँ हैं जो नल से बहते पानी को हाथों से छूकर बहुत प्रसन्न हो रहीं हैं। लगता है उनके क्षेत्र में पेयजल की समस्या है। बहुत दिनों के बाद नल में आयी पानी की धार उनकी खुशियों का कारण बन गयी है।

जल जीवन का आधार है। जल के अभाव में जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। जल का कोई भी रूप हो या कोई भी प्रकार हो-यह मानव, पशु-पक्षी तथा वनस्पति सब के लिए अनिवार्य है। समुद्र जल का असीम भंडार है, परन्तु इस जल का हम सीधे प्रयोग नहीं कर सकते, क्योंकि यह जल खारा होता है।

लगातार बढ़ती जनसंख्या एवं औद्योगीकरण के कारण पानी की कमी महसूस की जा रही है। नदियों का पानी प्रदूषित हो गया है। पीने के लायक नहीं। न जाने कितने जहरीले रसायन इसमें मिले हुए हैं। शहर हो या गाँव पानी की समस्या हर स्थान पर भयावह होती जा रही है। हमारी सरकारों ने कई योजनाएँ बनाई हैं लेकिन जल समस्या का निराकरण पूर्णतः नहीं दृष्टिगोचर हो रहा। सरकारी योजनाएँ ठीक से क्रियान्वित नहीं हो पा रहीं। उस पर भ्रष्टाचार की सहज प्रवृत्ति ने योजनाओं को असफल रूप प्रदान कर दिया है। योजनाओं का बहुत सारा पैसा लोग चुपचाप हड़प जाते हैं। करोड़ों खर्च करने के बाद भी ढाक के तीन पात।

सूखा व अकाल हर वर्ष की समस्या बन गयी हैं। आवश्यकता से कम वारिश का होना भी जल की समस्या का जनक बन गया है। पीने का पानी तो अधिकांशतः खरीदकर पीते हैं लोग। खेत खलिहान जल को तरसते हैं। आशाएँ भाप बन कर उड़ जाती हैं। विवशता में लोगों को गाँवों से पलायन भी करना पड़ता है। हमें शीघ्र ही इसके समाधान हेतु प्रयास करने होंगे। मुझे लगता है जल का संचय किए बिना हमें इस समस्या का समाधान नहीं मिल सकता।

अनावश्यक पानी का उपयोग हमें रोकना होगा। साथ ही वर्षा के जल को नष्ट होने से बचाया जाए व सुरक्षित रखा जाए। जल के संचय हेतु हम अपने पुराने तरीकों के स्थान पर ‘वाटर हार्वेस्टिंग प्लान्ट’ को अपनाना होगा। पानी को व्यर्थ बहने से रोकने के लिए यहाँ-वहाँ चैक डैमों की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे बर्बाद होते जल को हम धरती में ही संरक्षित रख सकते हैं। वृक्षारोपण को भी व्यापक स्तर पर अपनाएँ। जल ही जीवन है’ इससे यह तो स्पष्ट है

कि जल के बिना जीवन कुछ नहीं। हमारे देश में आधी आबादी को पूर्णतः में पानी नसीब नहीं। सच माना जाए तो हमारे देश की प्रगति में भी जल व्यवस्था एक बाधा बनती है।
आवश्यकता है कि आज की परिस्थितियों में हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य रखते हुए जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। प्रकृति प्रदत्य साधनों का अपनी सूझ-बूझ व समझदारी से प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करके ही हम जल की कमी को अपने प्रयास से दूर कर सकते हैं।
सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति संभव हो सकेगी व जल सभी के जीवन में उपयोग के लिए उपलब्ध हो सकेगा। देश का कोई शहर या गाँव सूखे की मार नहीं झेलेगा। ऐसा प्रयास ही जल की भयावह समस्या का समाधान प्रदान कर सकता है।

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of the topics given below:
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए- [7]
(i) आज टेलीविजन द्वारा विभिन्न चैनलों पर अंधविश्वास तथा तन्त्र-मन्त्र से सम्बन्धित कार्यक्रम दिखाकर जनता को भ्रमित किया जा रहा है। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्री को इसकी जानकारी देते हुए ऐसे कार्यक्रमों पर रोक लगाने का अनुरोध कीजिये।
(ii) आपकी चचेरी बहन जो गाँव में रहती है, उसकी दसवीं के बाद शिक्षा रोक दी गई है अतः उसकी आगे की शिक्षा जारी रखने का निवेदन करते हुए अपने चाचाजी को पत्र लिखिये जिसमें नारी शिक्षा की आवश्यकता और उसके लाभों की भी चर्चा कीजिये।
Answer:
(i) सूचना एवं प्रसारण मंत्री को पत्र

सेवा में,
मान्यवर मन्त्री जी
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय,
भारत सरकार,
नई दिल्ली।
विषय: टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की सूचना हेतु पत्र।
महोदय,
मैं नितिन शर्मा आगरा शहर का निवासी हूँ। मैं आपको आजकल टेलीविजन द्वारा विभिन्न चैनलों पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की स्थिति का आभास कराने हेतु व सुधार की आशा में पत्र लिख रहा हूँ।

महोदय आज विज्ञान की गूंज से धरती का कौना-कौना गुंजित है। आज हम समाज को नया रूप प्रदान करने में प्रयासरस हैं। तरक्की की तीव्र धारा चहूँओर बह रही है। ऐसे समय में टेलीविजन के धारावाहिक हम बच्चों के मनमस्तिष्क पर दुष्प्रभाव डाल रहें हैं। झाड़-फूंक के हथकण्डे अपनाकर दूसरों का विनाश, नागिरक की सुन्दर भेषभूषा में बदला लेना व जादू दिखाना हमें काल्पनिक लोक या भ्रामकता में ले जाते हैं। यथार्थ की स्थिति से अनभिज्ञ हम बच्चे इन्हें सच मान बैठते हैं। बड़ों पर भी इसका प्रभाव दिखाई दे रहा है।

ऐसा कार्यक्रम जनता में भ्रम उत्पन्न करते हैं जहाँ शिक्षा का प्रभाव मिटता सा दिखता है। अतः आपसे मेरा अनुरोध है कि लोगों को भ्रामक जाल से मुक्त कराने हेतु ऐसे अन्ध विश्वास को फैलाने वाले कार्यक्रमों पर आप रोक लगवाएँ तथा हम छात्रों व भोली-भाली जनता को इस मानसिक कष्ट से मुक्ति दिलवाएँ।
आपकी अति कृपा होगी।
आशा है आप इसके बदलाव हेतु ठोस कदम उठाएगें।
धन्यवाद

प्रार्थी
(नितिन शर्मा)
5/20 कमला नगर
आगरा।

दिनांक: 2.04.2016
पत्र भेजने का पता
सेवा में,
मान्यवर मन्त्री जी
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय,
भारत सरकार,
नई दिल्ली।

(ii) चाचाजी को पत्र-नारी शिक्षा की आवश्यकता

B-10 जयपुर हाउस,
आगरा
दिनांक: 01 अप्रैल 2016

आदरणीय चाचाजी,
चरण स्पर्श।
मैं यहाँ अच्छी तरह हूँ। आशा करता हूँ आप भी गाँव में अच्छी तरह से होंगे। चाचीजी का स्वास्थ्य भी अब ठीक . ही होगा।
चाचाजी मैंने इस वर्ष अपनी कक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए हैं। मुझे पिताजी के कल गाँव से वापस लौटने पर पता चला की नीता ने भी इस वर्ष बहुत मेहनत से अपनी परीक्षाएँ दी हैं। लेकिन पिताजी ने बताया कि वह अब पढ़ाई जारी नहीं रखेगी। चाचाजी आजकल बेटी और बेटे दोनों के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है। नीता की पढ़ाई पर रोक मत लगाइएँ। बढ़ते कदमों में अवरोध उत्पन्न मत कीजिए।
कल जब उसका विवाह होगा तो परिवार में पढ़ाई करके और अच्छी तरह वह घर चला सकेगी। भगवान न करे किसी प्रकार की आर्थिक समस्या हो पर अगर हुई तो वह स्वयं कुछ काम कर सकती है। चाचाजी उसकी शिक्षा में रोक नहीं लगाइए क्योंकि आज नारी को स्वयं अपने कदमों पर खड़े होने की जरूरत है।
आशा करता हूँ आप मेरी बातों को गहनता से समझते हुए उसे शिक्षा की ओर बढ़ने के लिए सहायता करेंगे। आपके पास मैं छुट्टियों में माताजी के साथ मिलने आऊँगा।

आपका भतीजा
कुनाल

पत्र भेजने का पता
सेवा में,
श्रीमान दामोदर शर्मा
10/105 कुन्दनपुर
गाँव कलार खेडिया,
फतेहाबाद,
आगरा।

Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible:
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िये तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासम्भव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए
बहुत समय पहले एक गाँव में हरिहर नाम का एक दयालु और सीधा-सच्चा किसान रहता था। वह खेती-बाड़ी का काम करता था। वह पूरा दिन अपने खेत में जी-तोड़ मेहनत करता था और शाम का समय ईश्वर की प्रार्थना में बिताता था। जीवन में उसकी मात्र एक इच्छा थी। वह उडुपि के मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहता था। उडुपि दक्षिण कर्नाटक का प्रमुख तीर्थस्थान है। वह अपनी गरीबी के कारण तीर्थयात्रा की इच्छा पूरी नहीं कर पाता था। इसी तरह कुछ वर्ष बीत गए। समय के साथ-साथ हरिहर की आर्थिक स्थिति भी सुधरती गई। अब उसने तीर्थयात्रा की योजना बनाई। उसकी पत्नी ने उसके लिए पर्याप्त भोजन बाँध दिया।

हरिहर तीर्थयात्रियों के एक दल के साथ उडुपि की ओर चल दिया। मार्ग में उसे एक स्थान पर एक बूढ़ा आदमी मिला। उसकी दशा बहुत ही दयनीय थी। वह कई दिनों से भूखा-प्यासा था और पीड़ा के कारण कराह रहा था। जैसे ही हरिहर की नज़र उस पर पड़ी, उसका हृदय करुणा से भर गया। उसने बूढ़े के पास जाकर पूछा, “बाबा, क्या तुम भी तीर्थयात्रा करने उडुपि जा रहे हो ?” बूढ़े आदमी ने उत्तर दिया, “मेरा एक बेटा बीमार है और दूसरे बेटे ने भी तीन दिनों से कुछ नहीं खाया। फिर मैं तीर्थयात्रा कैसे करूँ।”

हरिहर समझता था कि दीन-दुखियों की सेवा ही ईश्वर की सबसे बड़ी सेवा है इसलिए उसने उडुपि जाने से पहले उस बूढ़े के घर पहले जाने का निश्चय किया। उसके साथियों ने उसे बहुत समझाया “बहुत मुश्किल से तुमने धन एकत्र किया है, अगर यह नष्ट हो गया तो फिर तुम कभी तीर्थयात्रा नहीं कर पाओगे।” हरिहर पर उनकी बातों का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बूढ़े के घर जा पहुंचा। उसने सबसे पहले घर के सभी व्यक्तियों को भरपेट भोजन कराया। फिर वह बीमार बच्चे के लिए दवा ले आया। उसने बूढ़े आदमी को खेत में बोने के लिए बीज भी ला दिए। वह कुछ दिन वहाँ रुका। उसने बूढ़े आदमी के बेटे की सेवा की, जिससे वह कुछ दिनों में स्वस्थ हो गया लेकिन इन सारे कार्यों में उसके सारे पैसे खर्च हो गए।

अब उसने अपनी तीर्थयात्रा बीच में ही छोड़कर वापस घर लौटने का निश्चय किया। उसे उडुपि न जा पाने का बिल्कुल भी दुःख न था क्योंकि वह जानता था कि उसने अपना धन दीन-दुखियों की सेवा में खर्च किया था। घर पहुँचकर उसने अपनी पत्नी को सारी बातें बता दी। पत्नी भी इस पर प्रसन्न हुई क्योंकि वह भी धार्मिक स्वभाव की महिला थी। उस रात हरिहर ने सपने में भगवान श्रीकृष्ण को देखा, जो उससे कह रहे थे, “हरिहर तुम मेरे सच्चे भक्त हो। तुमने उस बूढ़े आदमी की सहायता की और अपनी इच्छा का बलिदान कर दिया। वह बूढ़ा आदमी कोई और नहीं मैं ही था। तुम्हारी परीक्षा के लिए ही मैं उस बूढ़े आदमी का वेश धारण कर वहाँ आया था। तुम मेरे सच्चे सेवक हो।” इस तरह हरिहर बगैर तीर्थयात्रा पर गए पुण्य का भागीदार बना।
(i) हरिहर क्या काम करता था? उसकी एकमात्र इच्छा क्या थी? [2]
(ii) हरिहर को तीर्थयात्रा के मार्ग में कौन मिला? उसकी क्या स्थिति थी? [2]
(iii) हरिहर ने बूढ़े व्यक्ति की कैसे सहायता की? [2]
(iv) हरिहर ने घर लौटने का निश्चय क्यों किया? वहाँ लौटने पर हरिहर ने क्या स्वप्न देखा? [2]
(v) इस गद्यांश से आपको क्या शिक्षा मिलती है? [2]
Answer:
(i) हरिहर एक किसान था वह बहुत दयालु व सीधा-साधा था। वह खेती-बाड़ी का काम करता था। उसकी जीवन में मात्र एक इच्छा थी कि वह उडुपि के मन्दिर में भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करना। इस तीर्थस्थान की वह गरीबी के कारण तीर्थयात्रा की इच्छा अधूरी रह जाती थी।

(ii) हरिहर को उडुपि की तीर्थयात्रा पर जाते समय मार्ग में एक स्थान पर एक बूढ़ा आदमी मिला। उसकी दशा बहुत ही दयनीय थी। वह कई दिनों से भूखा और प्यासा था। दर्द से कराह रहा था। उसका एक बेटा बीमार था और दूसरे बेटे को तीन दिनों से खाने को कुछ नहीं मिला था।

(iii) हरिहर दीन-दुखियों की सेवा को ईश्वर की सबसे बड़ी सेवा समझता था। वह उडुपि जाने की जगह बूढ़े व्यक्ति के घर चला गया। सबसे पहले उसने घर के सभी व्यक्तियों को भरपेट भोजन कराया। फिर बीमार बच्चे की दवा ले आया। हरिहर ने बूढ़े आदमी को खेत में बोने के लिए बीज लाकर दिए। बूढ़े के बेटे की सेवा की जिससे वह स्वस्थ हो गया। इस प्रकार उसने बूढ़े की सहायता की।

(iv) हरिहर ने बूढे के परिवार की सहायता में तीर्थयात्रा के पूरे पैसे खर्च कर दिए थे। उसने अपनी तीर्थयात्रा बीच में ही छोड़कर वापस घर लौट जाने का निश्चय किया। घर वापस लौटने पर हरिहर ने सपने में भगवान श्रीकृष्ण को देखा, जो उससे कह रहे थे-“हरिहर तुम सच्चे भक्त हो। तुमने उस बूढ़े आदमी की सहायता करने में अपनी इच्छा का बलिदान कर दिया। वह बूढ़ा आदमी मैं ही था। तुम सच्चे सेवक हो। हरिकर को तीर्थयात्रा का पुण्य मिल गया था।

(v) प्रस्तुत गद्यांश हमें सीख देता है कि सच्ची ईश्वर भक्ति व तीर्थयात्रा दीन-दुखियों की सेवा व सहायता से ही पूरी होती है। ईश्वर बाहरी आडम्बर से प्रसन्न नहीं होते बल्कि प्राणीमात्र के दुःख हरने से प्रसन्न होते हैं। दुखियों के दुःख दूर करना व सेवा कार्य करना तीर्थयात्रा से बड़ा पुण्य प्रदान करता है।

Question 4.
Answer the following according to the instructions given:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए
(i) निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाइए: [1]
लोभ, इतिहास।
(ii) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए: [1]
बादल, स्वतंत्र।
(iii) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए: [1]
उपकार, कोमल, नूतन, स्वामी।
(vi) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए: [1]
अपने पैर पर आप कुल्हाड़ी मारना, बाल-बाल बचना।
(v) भाववाचक संज्ञा बनाइए:[1]
अधिक, भक्त।
(vi) कोष्ठक में दिए गए वाक्यों में निर्देशानुसार परिवर्तन कीजिए:
(a) महाराणा प्रताप के साहस की तुलना नहीं की जा सकती है। [1]
(रेखांकित शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कीजिये)
(b) मेरे घर में जो नौकर काम करता है वह भाग गया है। [1]
(सरल वाक्य बनाइये)
(c) राजा का सेवक बहुत बुद्धिमान था। [1]
(लिंग बदलकर वाक्य दोबारा बनाइये)
Answer:
(i) विशेषण शब्द –
लोभ – लोभी
इतिहास – ऐतिहासिक

(ii) पर्यायवाची शब्द –
बादल – जलधर, मेघ
स्वतंत्र – आजाद, मुक्त

(iii) शब्दों के विपरीत शब्द –
उपकार – अपकार
कोमल – कठोर
नूतन – पुरातन
स्वामी – दास/सेवक

(iv) मुहावरों का वाक्य प्रयोग –
अपने पैर पर आप कुल्हाड़ी मारना
वाक्य प्रयोग – रमेश पहले से ही गरीब था, नौकरी छोड़कर उसने स्वयं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली।
बाल – बाल बचना
वाक्य प्रयोग – सीढ़ियों पर चढ़ते समय मेरे भाई का पैर फिसल गया परन्तु वह गिरने से बाल-बाल बच गया।

(v) भाववाचक संज्ञा में परिवर्तन –
अधिक – अधिकता
भक्त – भक्ति

(vi) कोष्ठक में दिए गए वाक्यों में निर्देशानुसार परिवर्तन
(a) महाराणा प्रताप का साहस अतुलनीय है।
(b) मेरे घर में काम करने वाला नौकर भाग गया है।
(c) रानी की सेविका बहुत बुद्धिमती/विदुषी थी।

SECTION-B  (40 Marks)

  • गद्य संकलन: Out of Syllabus
  • चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य: Out of Syllabus
  • एकांकी सुमन: Out of Syllabus
  • काव्य-चन्द्रिका: Out of Syllabus

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