ICSE Hindi Previous Year Question Paper 2010 Solved for Class 10
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- Attempt all questions from Section A.
- Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
- The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].
SECTION – A [40 Marks]
(Attempt all questions from this Section)
Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics : [15]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए
(i) बचपन की मधुर स्मृतियाँ मनुष्य के हृदय पर अंकित हो जाती हैं। उन मधुर स्मृतियों की याद आते ही हृदय अनोखे आनन्द से भर जाता है और मुँह से अपने-आप ये शब्द निकल पड़ते हैं – ‘काश, वे दिन फिर लौट आते!’ अपने बचपन की उन आनन्दमय बातों का वर्णन कीजिए, जिन्हें याद कर आप आज भी आनन्दित होते
(ii) आज के युग में समाचार पत्र हमारी दैनिक आवश्यकताओं में से एक है। समाचार पत्र की उपयोगिता स्पष्ट करते हुए बताइए कि एक आदर्श समाचार पत्र में किन-किन बातों का समावेश होना चाहिए।
(iii) “आजकल की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में रिश्ते-नातों की अहमियत खत्म होती जा रही है” इसके क्या कारण हैं ? आप इन रिश्तों को संजोने के लिए क्या करेंगे?
(iv) एक मौलिक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित उक्ति हो –
“दूर के ढोल सुहावने”
(v) नीचे दिये गये चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर वर्णन कीजिए अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।
Answer:
(i) बचपन की मधुर स्मृतियाँ
बचपन मानव जीवन की सर्वाधिक आनन्दमय अवस्था है। संसार की समस्त बुराई और भलाई से परे अपनी मासूमियत और भोलेपन से भरपूर बचपन अपना अलग ही राग अलापता है। एक पल में रूठ जाना और दूसरे ही पल मान जाना तथा खिलखिलाकर हँस पड़ना। यही बचपन का शुद्ध सात्त्विक स्वरूप है। मन ऐसा कि परमात्मा की स्थिति प्रतीत होती है। सच्चाई और ईमानदारी की मूर्ति बच्चा संसार की मलिनता से अछूता होता है। वह अपने मन का राजा होता है। उसके सारे अवगुण माफ होते हैं। किसी भी गलती पर जरा सी डाँट पड़ी नहीं कि आँसुओं की झड़ी लग जाती है तभी माँ अपनी गोद में भरकर अपने हृदय का सारा प्यार उड़ेल देती है और बच्चा आनन्द से भर जाता है। उसके सारे गिले शिकवे एक पल में समाप्त हो जाते हैं।
मेरा भी बचपन ऐसा ही प्यार भरा था। घर में सबसे छोटा और इकलौता लाड़ला दो बहनों के बीच अकेला भाई। दादाजी का बेहद प्यारा व हृदय समान था। आज भी मुझे याद आता है कि वह किस प्रकार मुझ रोते हुए को मुनक्के व किशमिश खिलाकर चुप करते थे। घर के आराम के सामने मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता.था। जब विद्यालय में जाने का समय आया तो रो-रो के मेरा बुरा हाल था। दादाजी के कहने से एक हफ्ते की तो छुट्टी मिल गई परन्तु स्कूल तो जाना ही था। वे बचपन के दिन आज भी याद करके मैं एकाकी हँसने लगता हूँ जब माँ अंग्रेजी की डिक्टेशन बोलती थीं और मुझे शब्द नहीं आते थे मैं तुरन्त टॉयलेट का बहाना कर पड़ौस के अंकल से पूछ आता था। जब शाम के समय माँ पढ़ने की कहती और मुझे भूख लगती। बचपन की ये मधुर स्मृतियाँ आज भी मुझे मीठी अनुभूति कराती हैं।
विद्यालय में मम्मी के द्वारा दिये गये बड़े आकार के आलू के पराँठे जब दोस्तों द्वारा छीन लिए जाते तो मनपसन्द पैटी व कोल्ड ड्रिंक में जो मजा आता था वह आज फाइव स्टार में किये गये भोजन में भी नहीं आता है। बचपन की मस्ती की पूर्ति कभी भी नहीं हो सकती। जन्मदिन के अवसर पर माता-पिता के द्वारा अमूल्य उपहार तथा हृदय का प्यार आज भी याद आता है तो हृदय बाग-बाग हो जाता है। आज भी याद आते हैं विद्यालय की पिकनिक के वे दिन जो मित्रों के साथ मस्ती से बिताये थे।
एक दूसरे का मजाक बनाना, खून गाने गाना मित्रों के तरह-तरह के नाम रखना ये सब बातें आज भी मन को आनन्दित करती हैं। माँ से रोज बन्दूक खरीदवाना फिर उसका पूरा पोस्टमार्टम करके पुनः बनाना। बार-बार गर्मियों के दिनों में पानी में भीगना तथा माँ का डाँटना याद कर आज भी प्रफुल्लित हो उठता हूँ। घर में सबसे छोटा होने पर भी बहनों से झगड़ा करना, उनकी चीजें फेंकना फिर डाँट खाना, फलस्वरूप रोना तभी माँ द्वारा पुचकार कर प्यार करना ऐसा लगता है कितने स्वर्णिम दिन थे। मुझे याद है कि मैं एक बार पापा से बुढ़िया के बाल मांग रहा था। पापा द्वारा यह कहे जाने पर “बुढ़िया के नहीं हम तुझे जवान के बाल दिलवायेंगे यह बात सुनकर वहाँ उपस्थित सभी लोग हँस गये। ये सब याद कर मुझे लगता है – काश वे दिन फिर लौट आते।
(ii) आज के युग में समाचार पत्र
सम् तथा आचार इन दो शब्दों के संयोग से समाचार शब्द की उत्पत्ति हुई है जिसका अर्थ है समान रूप से आचरण करने वाला। अभिप्राय यह है कि समाचार-पत्र का दृष्टिकोण समाज के प्रत्येक वर्ग, जाति, समुदाय तथा धर्म के लिए समान होता है। परमात्मा की सृष्टि में मानव उसकी उत्कृष्ट रचना है क्योंकि वह मस्तिष्क प्रधान है। मस्तिष्क प्रधान होने के कारण ही वह आदिकाल से जिज्ञासु स्वभाव का रहा है, ज्ञान प्राप्त करना उसका स्वाभाविक गुण है यही कारण है वह नित्य नवीन बातों की जानकारी प्राप्त करना चाहता है। समाचार-पत्र मनुष्य की इस जिज्ञासा की पूर्ति का नितान्त सरल और प्रमुख साधन है।
समाचार-पत्र अनेक प्रकार से उपयोगी है। जनतंत्र में समाचार पत्र की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है। समाचार-पत्र के माध्यम से सरकार अपनी नीतियों को जनता तक पहुँचाती है तथा जनता भी अपने विचारों को सरकार तक पहुँचाती है लोकमत का निर्माण समाचार-पत्रों द्वारा ही होता है। इसके द्वारा मनुष्य को साहित्यिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक तथा समाज में प्रतिपल बदलाव की झाँकी प्राप्त होती है। समाचार-पत्र की सीमा व्यापक है। विज्ञान सम्बन्धी, वाणिज्य सम्बन्धी, खेलकूद, मनोरंजन, सामान्य ज्ञान तथा विभिन्न बुद्धिजीवियों व आलोचकों की परिचर्चाओं से अवगत कराने का एकमात्र साधन समाचार-पत्र ही हैं। वर्तमान समय प्रतिस्पर्धाओं का काल है। इस समय तो समाचार-पत्रों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
यह बेरोजगारों की दृष्टि है तो प्रतियोगिताओं में सफलता प्राप्त करने का बड़ा ही सटीक साधन है। एक आदर्श समाचार-पत्र वह है जिसमें समाज के हर वर्ग के लोगों को अपनी आवश्यकता की सामग्री प्राप्त हो सके। उसमें बच्चों के मनोरंजन के लिए कुछ मसाला होना चाहिए। विद्यार्थियों के लिए उनके अनुरूप जानकारी हो। राजनैतिक हलचलों का हवाला, समाज को सुधारने के गुर, कुछ धार्मिक बातें तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी सुझाव दिये गये हों। खिलाड़ियों के लिए खेल सम्बन्धी समाचार हो। फिल्मी दुनिया में रुचि रखने वालों के लिए भी कुछ खबरें समाचार पत्र में होनी चाहिए। व्यापारियों के लिए व्यापारिक सूचनाएँ हों। इन सबके होने पर ही समाचार पत्र सबका प्रिय हो जाता है। ऐसे सन्तुलित समाचार पत्र की माँग निरन्तर बढ़ती है।
आज के दौर में जब सम्पूर्ण विश्व संघर्ष की स्थिति से गुजर रहा है समाचार-पत्रों का दायित्व और भी अधिक बढ़ जाता है। समाचार-पत्रों में प्रकाशित लेख कभी कभी जातीय दुश्मनी और साम्प्रदायिक सद्भाव के बहुत बड़े साधन होते हैं। अतः किसी राष्ट्र की उन्नति के लिए समाचार-पत्र बहुत उपयोगी हैं।
(iii) आजकल की भागदौड़ भरी जिन्दगी में रिश्ते-नातों की अहमियत
“आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में रिश्ते-नातों की अहमियत खत्म होती जा रही है।” यह कथन अक्षरशः सत्य है और इसका सबसे बड़ा मूल कारण है – समय का अभाव। मनुष्य अपने जीवन को सँवारने में इतना व्यस्त हो गया है कि किसी से मिलने-मिलाने का उसके पास समय ही नहीं है। “मैं और मेरा परिवार” उसका सम्बन्ध यहीं तक सिमट कर रहा गया है। भौतिकवादी आज के युग में मनुष्य की जिन्दगी मशीनी बनकर रह गई है। अधिक से अधिक धन कमाने की होड़ में उसका अपना सुख-चैन ही समाप्त हो गया है। प्रतिस्पर्धा के इस युग में वह प्रात:काल से रात तक व्यस्त रहकर केवल अपने जीवन की सुविधाओं को जुटाने में लगा रहता है। उसकी मानसिकता अत्यधिक स्वार्थी हो गई है। सामाजिकता लुप्तप्राय हो गई है।
प्राचीनकाल में जहाँ संयुक्त परिवार होते थे, बच्चों को सबसे साथ मिलकर रहने में मजा आता था। बच्चों में प्रेम, सहानुभूति, दया, सेवा भाव जैसे मानवीय मूल्यों का स्वतः ही विकास हो जाता था वहीं आज बच्चों के लिए एकल परिवार में माता-पिता के अतिरिक्त भाई-बहन ही उनका सम्पूर्ण जगत है। यही कारण है आजकल बच्चे अपने परिवार के अतिरिक्त अन्य रिश्तों को नहीं जानते क्योंकि वह वातावरण उन्हें मिल ही नहीं रहा है। इससे बालक सामाजिक विकास के बहुत बड़े गुण से वंचित रह जाते हैं।
लोग अपने परिवार में इतने सीमित हो गये हैं कि विवाह के उपरान्त अपने माता-पिता को भी अपने ऊपर बोझ समझने लगते हैं। आज सर्वत्र पितृसत्ता की प्रवृत्ति घटती हुई प्रतीत होती है। बड़े-बूढ़ों का सम्मान घट रहा है। वे अपने को उपेक्षित महसूस करते हैं। आज का मानव इतना स्वार्थी हो गया है कि पड़ौस के दुःख दर्द के विषय में जानने की आवश्यकता महसूस नहीं करता। उसकी इस अलगाववादी प्रवृत्ति ने समाज के ढाँचे को ही बदल डाला है क्योंकि उसमें प्रेम, सहयोग व त्याग जैसे जीवन मूल्यों का अभाव हो गया है।
उसे केवल अपने सुखों की परवाह है। दूसरों के दुःखों के प्रति उसके हृदय में लेशमात्र भी सहानुभूति नहीं है। मानवीयता समाप्त हो गई है। ईश्वर के प्रति आस्था का नामोनिशान नहीं रहा। यही कुछ कारण हैं जिनसे मानवीय रिश्ते नातों की कड़ी कमजोर ही नहीं बल्कि तार-तार हो गई है। इन रिश्तों में फिर से सामन्जस्य स्थापित करने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है प्यार। प्यार ही वह कड़ी है जो रिश्तों को आपस में बाँधती है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना अकेला मनुष्य न तो खुशी में आनन्दित हो सकता है और न दुःख को कम कर सकता है। सुख व दु:ख के समय उन्हें बाँटने के लिए सम्बन्धियों की आवश्यकता होती है। इसलिए अपनी व्यस्त जिन्दगी में से कुछ समय उसे निकालना चाहिये ताकि वह लोगों की खुशी व दुःख में शामिल हो तभी वे उसके सुख-दुःख में भी शामिल होंगे। रिश्तों को बनाने में ही जीवन की सार्थकता है। यदि आपके साथ चार लोग खड़े नहीं होंगे आपके सुख व दुःख में भागीदार नहीं होंगे तो आप में सब गुण होते हुए भी व्यावहारिकता की भारी कमी है इसलिए अपने सद्व्यवहार से रिश्ते नातों को बनाये रखने में ही जीवन की सुन्दरता है।
(iv) उक्ति : दूर के ढोल सुहावने
उपर्युक्त उक्ति का अर्थ है कि दूर से दिखाई देने वाले पशु सुन्दर प्रतीत होते हैं। समीप आने पर जब उनका आचार व व्यवहार पता चलता है तभी उनकी वास्तविकता का ज्ञान होता है। मेरे एक पड़ौसी थे जिन पर यह उक्ति पूर्णतया चरितार्थ होती है। कुछ वर्ष पहले वे मेरे पड़ौसी थे। हमारा उनके साथ सामान्य सा ही प्रेम था, परन्तु कई बार उनके साथ परेशानियाँ आईं जिनमें हमने उनकी बहुत सहायता की। इस कारण वे हमारे प्रति बहुत कृतज्ञ थे। अचानक ही उन्हें यह शहर छोड़कर उज्जैन जाना पड़ा। वहाँ पहुँचकर भी वे सदैव हमारे द्वारा किये गये उपकारों को बहुत मानते थे और हमेशा कहते आप उज्जैन घूमने आइये। हम यहाँ पर आपको यहाँ के मन्दिरों के दर्शन करायेंगे। अनेक प्रकार से हमारी प्रशंसा करते और बार-बार उज्जैन आने का निमंत्रण देते। उनके बार-बार के निमन्त्रण से हम भी बड़े कृतज्ञ हो गये थे इसलिए हमने सोचा कि बेचारे बहुत बुला रहे हैं। एक बार होकर आते है।
ऐसा विचार बनते ही हमने अपना आरक्षण कराया और मैं तथा मेरे माता पिता उज्जैनी एक्सप्रैस से उज्जैन के लिए निकल गये। दूसरे दिन हम उज्जैन पहुँच गये। वहाँ पहुँच कर हमने पाया कि कार होते हुए भी वे हमें स्टेशन पर लेने नहीं आये। पता पूछते पूछते किसी तरह हम ऑटो से उनके घर पहुँच गये। घर पहुँचने पर हमने देखा कि जिस खुशी से वे हमें अपने घर आने के लिए कहते थे वह उनके चेहरे पर नहीं थी बल्कि हमें ऐसा लगा कि वे हमें अपने घर में एक बोझ महसूस कर रहे थे। हमारी प्रसन्नता भी उदासी में बदल गई और हमें लगा कि हम व्यर्थ ही इतना पैसा खर्च करके उनके घर आये हैं। खैर उन्होंने हमें खाना-वाना खिलाया, फिर हमने थोड़ा आराम किया। संध्या समय वे हमें आस-पास की जगहों पर घुमाने ले गये। हमारी हार्दिक इच्छा महाकालेश्वर महादेव का मन्दिर देखने की थी, जो उनके घर से दूर था।
जब हमने अपनी यह इच्छा उन पर जाहिर की तो वे वहाँ जाने की बात को टाल गये। हम समझ गये कि इनकी इच्छा हमें ले जाने की नहीं है। हमें एक दिन और गुजारना था हम कुल तीन दिन के लिए गये थे। अतः आसपास के मन्दिर देखने के पश्चात् हमने अपना सामान बाँध लिया और चौथे दिन सुबह की रेलगाड़ी से हम अपने नगर आगरा ।। के लिए निकल गये। हमें सोच-सोच कर बड़ा दुःख हो रहा था मनुष्य का असली चेहरा उसके सम्पर्क व सान्निध्य में आने पर ही पता चलता है। दूर से मीठी-मीठी बातें बनाने वाला व्यक्ति इतना नीरस हो सकता है ऐसा हमने सोचा न था। हम ये ही बातें कर रहे थे तभी मेरी माँ ने कहा – बेटा दूर के ढोल सुहावने होते हैं।
(v) चित्र प्रस्ताव
प्रस्तुत चित्र में कुछ बच्चे दिखाई दे रहे हैं जो साधारण स्थान पर बैठकर शिक्षा प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। ये गरीब बच्चे मलिन बस्तियों के प्रतीत होते हैं जो गरीबी के कारण शिक्षा प्राप्त करने की आयु में शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि सरकार द्वारा प्रदत्त अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का लाभ भी ये गरीब नहीं उठा पाते हैं क्योंकि इनके माता-पिता भी अशिक्षित हैं। उनके लिए उनके जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ रोटी-कपड़ा और मकान जुटाना अधिक आवश्यक होता है। पेट भरने की जरूरत में वे अपने मासूमों को समाज के अत्याचार सहकर चन्द पैसे कमाने के लिए भेज देते हैं।
आज का युग वैज्ञानिक युग है। इसका आनन्द एक ज्ञानी व्यक्ति ही उठा सकता है। अशिक्षित इस युग में जगहजगह पर ठगा जायेगा। इसका मूल कारण उसकी अशिक्षा है। यही कारण है कि गाँव में किसान व नगर में मजदूर हिसाब किताब में कमजोर होने के कारण ऋण चुकाते चुकाते मालिक का बंधुआ मजदूर बन जाता है और ऋण नहीं चुकता, वह मर जाता है। पत्र पढ़ने व लिखने में असमर्थ लोग इधर उधर भागते हैं। सरकार ने गरीबों के लिए अनेक ऋणों की सुविधा प्रदान की है। ये गरीब वहाँ भी मात खा जाते हैं। बीच में आने वाले चालाक लोग इनके पैसे को खा जाते हैं और इन्हें पूरा लाभ नहीं मिलता। दवाओं पर लिखी तिथियाँ तथा तरीके अशिक्षित लोग नहीं जान पाते हैं। देशविदेश के समाचारों के विषय में उन्हें कोई ज्ञान नहीं होता।
ये मासूम बच्चे ही किसी दिन बड़े होकर अशिक्षित रहने के कारण जब जीवन की सच्चाई को समझेंगे तब उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। अपने घर-परिवार से जुड़ी अनेक समस्याओं का समाधान करने में ये असमर्थ होंगे। शिक्षा किसान को कृषि के नये तरीकों से अवगत कराती है। मजदूर यदि शिक्षित है तो वह हिसाबकिताब में ठगा नहीं जा सकता है। समाज के हर व्यक्ति के लिए शिक्षा आवश्यक है। शिक्षित महिलाएँ भी परिवार की उन्नति में बहुत सहयोगी हो सकती हैं। वे अपने परिवार की आर्थिक उन्नति, सदस्यों के स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के विषय में अधिक अच्छा सोच सकती हैं।
शिक्षित समाज देश के लिए हितकर है। पढ़े लिखे लोग ही इस बात का उचित निर्णय कर सकते हैं कि उन्हें किस योग्य व्यक्ति को अपना मत देकर विजयी बनाना चाहिये। जीवन को सैद्धान्तिक मोड़ शिक्षित व्यक्ति ही दे सकता है। किसी भी देश की उन्नति के लिए उस देश के नागरिकों का शिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है।
अतः लोगों को चाहिए कि वे देश के अशिक्षित बच्चों को शिक्षित करने का पुण्य कार्य करें। समाज सेवी संगठनों ने विद्यार्थियों को प्रेरित किया है कि एक व्यक्ति कम से कम एक को शिक्षित करे। उनका नारा था “ईच वन, टीच वन”। एक से एक दीप जलेगा तो सारे दीपक प्रज्जवलित होंगे। देश के निर्माण और विकास में उनका यह सामूहिक योगदान अत्यन्त लाभकारी होगा। निरक्षरता हमारे लोकतांत्रिक देश के नाम पर कलंक है। इस कलंक को मिटाना हर शिक्षित देशवासी के लिए कल्याणकारी कार्य है। सबके सहयोग से ही हम अपने देश की शर्मनाक समस्या का समाधान कर सकते, तभी हमारी वास्तविक प्रगति होगी।
Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of topics given below :
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए- [7]
(i) आप अपने मित्रों के साथ किसी पर्वतीय प्रदेश की यात्रा के लिए गए थे। वहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन करते हुए अपनी माताजी को पत्र लिखिए।
(ii) आप पिछले दो दिनों से विद्यालय में ठीक समय पर उपस्थित नहीं हो पा रहे थे। प्रधानाचार्य को विद्यालय में विलम्ब से पहुँचने का कारण बताते हुए क्षमादान के लिए पत्र लिखिए।
Answer:
(i) प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन करते हुए अपनी माताजी को पत्र
2/37-A, बी. ब्लाक राजामंडी
आगरा।
दिनांक : 16-04-2010
पूजनीया माताजी,
सादर चरण स्पर्श।
कुशलपूर्वक रहकर घर पर सभी की कुशलता की कामना करता हूँ। आगे समाचार यह है कि जैसे ही मेरी परीक्षाएँ समाप्त हुई, मेरे मित्रों ने कहीं घूमने की योजना बनाई। योजना के अन्तर्गत यह निश्चय किया गया कि गर्मी से कुछ दिन राहत पाने के लिए किसी पर्वतीय प्रदेश की यात्रा की जाये। सुझाव के अनुसार हमने नैनीताल घूमना उचित समझा। मैं और मेरे चार मित्रों ने शीघ्र पाँच टिकिट आरक्षित कराई और हम आठ अप्रेल को नैनीताल के लिए बस से निकल पड़े। दिन भर की यात्रा के बाद हम लगभग रात के दस बजे नैनीताल पहुंचे। थके होने के कारण रात को एक होटल में कमरा लेकर हम जाकर सो गये। प्रातःकाल जब उठे तो खिड़की में से वहाँ का नजारा देखकर मन बाग-बाग हो गया। चारों तरफ छाई हुई हरियाली, ऊँची-ऊंची पर्वत श्रेणियाँ और उन पर जमी हुई बर्फ बहुत ही सुन्दर प्रतीत हो रही थी।
ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह धरती का स्वर्ग हो। ठंड के कारण कंपकंपी छूट रही थी। हम जल्दी से तैयार होकर घूमने निकले। पास ही नैनी झील बह रही थी। हमने उसमें बोटिंग की तथा नेपालियों के बाजार का आनन्द लिया। नैनी देवी के मंदिर के दर्शन के बाद हम भीमताल देखने गये। पहाड़ों पर उगे हुए ऊँचे-ऊंचे वृक्ष बड़े सुहावने लगते थे। आकाश बादलों से घिरा था। दिन भर घूमने के बाद हम फिर से नैनी झील का सौन्दर्य देखने गये। पहाड़ों पर टिमटिमाते लटू का प्रकाश झील में बड़ा ही सुन्दर लग रहा था। ऐसा लगता था मानो यह कोई चमत्कारी परियों का देश हो हमारा मन वहाँ से आने का नहीं हो रहा था। माँ! मैंने यह पत्र आपको नैनीताल के प्राकृतिक सौन्दर्य से अवगत कराने के लिए ही लिखा है। आशा है आपको मेरा पत्र पढ़कर नैनीताल घूमने का मन करेगा। मेरे प्रश्नपत्र अच्छे हुए हैं। पिताजी को मेरा चरण स्पर्श कहिये। छोटे भाई को मेरा प्यार कहिये।
पत्र की प्रतीक्षा में,
आपका आज्ञाकारी पुत्र
वरुण
(ii) प्रधानाचार्य को पत्र
सेवा में
श्रीमान् प्रधानाचार्य,
सेंट पीटर्स कॉलेज,
आगरा।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं वरुण भारद्वाज आपके विद्यालय में कक्षा दस का छात्र हूँ। दो दिन से निरन्तर विद्यालय विलम्ब से पहुंच रहा हूँ। इसका मुख्य कारण मेरी साइकिल है। आगरा की सड़कों में इतने गड्ढे हैं और कूड़ा कर्कट पड़ा रहता है जिसके कारण लगातार कई पंचर ठीक कराने के बाद भी उसमें न मालूम कितने पंचर हो गये हैं। हर रोज उसकी हवा निकल जाने से मुझे साइकिल घसीटकर ले जानी पड़ रही है। महोदय, मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे इस गलती के लिए क्षमा करें। मैं अपनी साईकिल के टायर व ट्यूब अति शीघ्र बदलवाकर समय पर विद्यालय पहुँचने का प्रयास करूँगा।
आशा है कि आप मुझे क्षमा कर देंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
वरुण भारद्वाज,
कक्षा दस ‘अ’
Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible:
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िये तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासम्भव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए –
बादशाह अकबर एक दिन शिकार खेलते हुए जंगल में भटक गए। शाम हो रही थी, अतः वह घोड़े को एक पेड़ से बाँधकर नमाज़ पढ़ने बैठ गए। बादशाह अकबर ने नमाज़ पढ़ना आरम्भ ही किया था कि एक औरत उनसे टकराती हुई, उनके पास से निकल गई। बादशाह का ध्यान भंग हो गया। आँख खोलकर देखा, एक बदहवास औरत तेजी से भागी चली जा रही थी। उसका धक्का खाकर बादशाह अकबर को बहुत बुरा लगा। उन्होंने जल्दी-जल्दी नमाज़ पढ़ी और फिर घोड़े पर सवार होकर उस औरत के पीछे भागे। वह औरत बादशाह अकबर की बात सुनकर हैरान हुई। उसने पूछा, “कौन हैं आप? कैसा धक्का ? कब लगा? कहाँ थे आप?”
यह बात सुनकर बादशाह अकबर उत्तेजित हो गये। उस औरत की यह गुस्ताखी उन्हें अच्छी नहीं लगी। उन्हें अपने सम्राट् होने का अहसास था, इसलिए आँखें लाल करके बोले-“अरी गुस्ताख ! मैं नमाज़ पढ़ रहा था, तू पास से भागती हुई आई और धक्का देकर निकल गई। तूने मेरी नमाज़ में खलल डाल दिया।”
औरत ने घबराये बिना सहज स्वभाव में कहा, “इस बारे में मुझे कुछ नहीं मालूम। मैंने आपको नहीं देखा। हो सकता है, भागते हुए मेरा धक्का आपको लग गया हो, मगर आपका धक्का तो मुझे नहीं लगा। धक्के का लगना और उसका अनुभव दोनों ओर से होता है, एक तरफ से नहीं होता। आपको मेरा धक्का लगा, मगर मुझे तो कुछ भी पता नहीं।”
बादशाह अकबर और भी अधिक क्रोधित होकर बोले, “तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ ? नमाज़ पढ़ते हुए धक्का दे गई और अब ऊपर से बदज़बानी और मुंहजोरी करती है।” वह औरत हंसते हुए बोली, “मुझे क्या पड़ी है, आपको धक्का देने की ! मैं तो अपने प्रिय पुत्र से मिलने जा रही हूँ, जो समुद्री-यात्रा से लौटा है। पुत्र से मिलने के विचार से, पुत्र-प्रेम में अपना आपा खोकर हो सकता है मैं आपसे टकरा गई होऊँगी, मगर ताज्जुब तो इस बात का है कि आप दुनिया के मालिक, सबसे बड़े प्रेमी के ध्यान में, उनके प्रेम में कैसे कच्चे ढंग से बैठे थे कि आपको मेरे धक्के का पता लग गया, जबकि मैं अपने प्रिय पुत्र के ध्यान में, उसके प्रेम में किसी भी धक्के को न जान सकी।”
वह प्रेम ही क्या जो संसार की अनेकरूपता को मिटाकर प्रेम-पात्र के प्रति समानता न स्थापित कर सके। लम्बे समय के बाद पुत्र से मिलने की प्रेम-भावना ने माँ के सामने पुत्र के अतिरिक्त सब कुछ ओझल कर दिया था। उस समय वह बड़े-छोटे, बादशाह या प्रजा सभी भेदों को मिटा चुकी थी।
अकबर के लिए यह आँख खोलने वाली घटना थी। वह अल्ला की इबादत करते हुए भी, उसके प्रति प्रेम-भाव प्रकट करते हुए भी एकाग्र न हो सका था। वास्तव में सब कुछ छोड़कर केवल ईश्वर को पाने की इच्छा जगाना ही, उसके प्रति सच्ची भक्ति होती है, सच्चा प्रेम होता है। अपने अहम् से मुक्ति पाये बिना व्यक्ति परमात्मा से एकरूपता स्थापित नहीं कर सकता, परमात्मा को नहीं पा सकता। जिस व्यक्ति के हृदय में प्रेम-भाव उत्पन्न नहीं होता, वह जीवित होते हुए भी मृत के समान है। प्रेम परायों को भी अपना बनाता है, जबकि घृणा और अभिमान मनुष्य को मनुष्य से दूर करता है।
(i) बादशाह अकबर कहाँ नमाज़ पढ़ रहे थे और क्यों ? [2]
(ii) औरत तेजी से क्यों भागी जा रही थी ? उसका धक्का लगने पर बादशाह अकबर को कैसा अनुभव हुआ? [2]
(iii) औरत की किस बात को सुनकर बादशाह अकबर उत्तेजित हुए और क्यों? [2]
(iv) बताइए कि बादशाह अकबर ने धक्के को क्यों महसूस किया तथा औरत ने धक्के को क्यों महसूस नहीं किया? [2]
(v) प्रस्तुत गद्यांश से आपको क्या शिक्षा मिली ? [2]
Answer:
(i) बादशाह अकबर एक पेड़ के नीचे नमाज पढ़ रहे थे क्योंकि एक दिन एक जंगल में शिकार खेलते हुए वह
रास्ता भूल गये। शाम हो रही थी यही उनकी नमाज का समय था अतः उन्होंने घोड़े को पेड़ से बाँध दिया और वहीं वह नमाज़ पढ़ने लगे।
(ii) औरत तेजी से इसलिए भागी जा रही थी क्योंकि उसका प्यारा पुत्र समुद्री यात्रा से वापस आया था। अत: उससे मिलने की खुशी में वह बेतहाशा भागी चली जा रही थी। उसका धक्का लगने से बादशाह अकबर जो शाम की नमाज अदा कर रहे थे, उनके ध्यान में विघ्न पड़ गया जिसके कारण उन्हें बहुत बुरा लगा और उस औरत पर उन्हें क्रोध आया।
(iii) औरत के द्वारा धक्का लगने पर जब बादशाह अकबर की नमाज में विघ्न उत्पन्न हुआ तब नमाज पूरी कर वह घोड़े पर सवार होकर वह औरत के पास जाकर बोले कि उसने उन्हें धक्का क्यों दिया? उस औरत के यह पूछे जाने पर कि “कौन हैं आप? कैसा धक्का ? कब लगा? कहाँ थे आप ? उसने कहा हो सकता है मेरा धक्का आपको लग गया होगा परन्तु मुझे तो आपका धक्का नहीं लगा। धक्के का अनुभव तो दोनों को होना चाहिय”। यह सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ और उत्तेजित हो गये क्योंकि उन्हें लगा कि उस स्त्री ने जान बूझ कर गलती की है और उसे उस गलती का पश्चाताप भी नहीं है।
(iv) बादशाह अकबर ने धक्के की अनुभूति इसलिए की क्योंकि संसार के मालिक खुदा के प्रति उनका ध्यान कमजोर और प्यार गहरा नहीं था जबकि औरत को धक्के का अनुभव इसलिए नहीं हुआ क्योंकि उसे केवल प्रिय पुत्र से मिलन की लगन थी जो समुद्री यात्रा से लौट रहा था। अपने पुत्र से प्यार के गहरेपन ने उसे बादशाह से लगे धक्के को अनुभव ही नहीं होने दिया।
(v) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्चा प्रेम पवित्र होता है। उसमें अनेकरूपता नहीं बल्कि प्रेम-पात्र के प्रति साम्यता का भाव होता है। सच्चा प्यार भक्ति से पूर्ण और एकरूपता से परिपूर्ण होता है। अहम से मुक्ति पाये बिना परमात्मा से मिलन सम्भव नहीं है।
Question 4.
Answer the following according to the instructions given :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए
(i) निम्न शब्दों से विशेषण बनाइए –
नमक, ईमानदारी। [1]
(ii) निम्न शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए
कपड़ा, मछली। [1]
(iii) निम्न शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए
भाग्यवान, बंधन, सगुण, संध्या। [1]
(iv) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए
चेहरा उतरना, गले का हार। [1]
(v) भाववाचक संज्ञा बनाइए
उड़ना, देव। [1]
(vi) कोष्ठक में दिये मये निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए
(a) विष्णुशर्मा अच्छे कुल में जन्म लेने वाले ब्राह्मण थे। [1]
(रंखांकित शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कीजिए) :
(b) आसमान में चिड़िया उड़ रही है। [1]
(बहुवचन में बदलिए)
(c) बालक गुड्डे से खेल रहा है। [1]
(रेखांकित शब्दों के लिंग बदल कर वाक्य दोबारा लिखिए।)
Answer:
(i) विशेषण में परिवर्तन –
नमक – नमकीन
ईमानदारी – ईमानदार।
(ii) पर्यायवाची शब्द –
कपड़ा – वस्त्र, वसन
मछली – मत्स्य, मीन।
(iii) शब्दों के विपरीत शब्द –
भाग्यवान – भाग्यहीन
बंधन – मुक्ति
सगुण – निर्गुण
संध्या – प्रातःकाल।
(iv) मुहावरों का वाक्य प्रयोग –
चेहरा उतरना – मेरे मित्र ने जब मित्रों के सामने मेरे गणित में अनुत्तीर्ण होने की बात बता दी तो मेरा चेहरा उतर गया।
गले का हार – मैं अपने घर में इकलौता सबसे छोटा पुत्र हूँ इसलिए पूरे परिवार का गले का हार हूँ।
(v) भाववाचक संज्ञा में परिवर्तन –
उड़ना – उड़ान
देव – देवत्त्व
(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन –
(a) विष्णुशर्मा कुलीन ब्राह्मण थे।
(b) आसमान में चिड़ियाँ उड़ रही हैं।
(c) बालिका गुड़िया से खेल रही है।
Section – B (40 Marks)
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