ICSE Hindi Previous Year Question Paper 2008 Solved for Class 10
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- Attempt all questions from Section A.
- Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
- The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].
SECTION – A [40 Marks]
(Attempt all questions from this Section)
Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any ONE of the following topics : [15]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए
(i) मनुष्य अपने अनुभव से बहुत कुछ सीखता है। अपने बचपन के दिनों की किसी ऐसी सुखद घटना का वर्णन कीजिए, जिसने आपको जीवन की नयी सीख दी हो, यह सीख आपके भावी जीवन में कैसे उपयोगी हो सकती है, इसका विवरण दीजिए।
(ii) “काम को कल पर टालने से मन का भारीपन बढ़ता है, जबकि कल करने वाले काम को आज ही पूरा कर लेने से हमारी कार्यक्षमता बढ़ती है और मानसिक सन्तोष भी प्राप्त होता है।” बताइए कि एक विद्यार्थी के लिए समय का क्या महत्व है ?
(iii) “प्रेम से सामाजिक तथा राष्ट्रीय सम्बन्ध बढ़ते हैं” – प्रस्तुत पंक्ति के आधार पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
(iv) एक मौलिक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित उक्ति हो
“आगे कुआँ पीछे खाई।”
(v) नीचे दिये गये चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर वर्णन कीजिए अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।
Answer:
(i) सुखद घटना जिसने मेरे जीवन को नवीन अनुभव दिया
मानव जीवन घटनाओं का प्रतिफल है। जन्म से अन्तिम श्वास तक निरन्तर उसे घटनाओं से दो-चार होना पड़ता है। प्रत्येक घटना से उसे कोई न कोई शिक्षा या अनुभव प्राप्त होता है। प्रत्येक घटना मानव के व्यक्तित्व एवं जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। सूर्योदय से पूर्व उषाकाल से लेकर रात के अन्तिम प्रहर तक वह कदम-कदम पर कुछ न कुछ सीखता है। यही कारण है कि समाज के समक्ष उपस्थित व्यक्ति ऐसी ही अनेक घटनाओं और अनुभवों का प्रतिफल होता है। ये घटनाएँ – सुखद एवं दुःखद दोनों ही रूप में घटित होती हैं। सुखद घटना जहाँ हमारे जीवन में उत्साह एवं उल्लास का संचार करती है वही दुःखद घटना उसे निरुत्साहित एवं आत्म-विश्वास से हीन बनाती है। यहाँ मैं जीवन की उस सुखद घटना का वर्णन कर रहा हूँ, जिसने मेरे जीवन में एक नवीन उल्लास एवं उत्साह का संचार किया तथा आत्म-विश्वास में दृढ़ता की वृद्धि की।
घटना उन दिनों की है जब मैं छठवीं कक्षा का छात्र था। उन दिनों मेरे मन और मस्तिष्क पर गणित विषय का कुछ ऐसा आतंक था कि उस विषय का नाम ही मुझे पसीने-पसीने कर देता था। कक्षा में गणित के चक्र (घण्टे) में मैं सबसे पीछे ही स्थान ग्रहण करता था। इसका एक कारण था-विषय के अध्यापक का शुष्क एवं कठोर स्वभाव। वह अक्सर कक्षा में प्रवेश के साथ ही चाक तथा श्याम-पट (ब्लैक बोर्ड) का आधार लेकर शिक्षण-कार्य आरम्भ कर देते थे। अगर कोई छात्र किसी भी कारण कक्षा में विलम्ब से प्रवेश करता अथवा विषय के अध्ययन में असावधान दृष्टिगत् होता तो वे बहुत क्रोधित हो जाते थे। सामान्यतः वह छात्र की विषयगत दुर्बलता का कारण ज्ञात करने के स्थान पर उसका उपहास करते थे। इतना ही नहीं विषय के मध्य प्रश्न या शंका समाधान की प्रार्थना को वे ठुकरा दिया करते थे। इस प्रकार मेरे जैसे सामान्य छात्र के मन में उनके प्रति दूरी बढ़ती ही गई। किन्तु एक दिन………..।
वार्षिक परीक्षा आरम्भ होने में एक माह का समय शेष था। मेधावी एवं परिश्रमी छात्र आत्म-विश्वास से पूर्ण सतत् परिश्रम में व्यस्त थे। मुझ जैसे छात्र निराशा के गहन उदधि में निमग्न हो रहे थे। एक दिन दैवी-प्रेरणा से मैं कक्षा के बाद उनसे, अध्यापक-कक्ष में मिला। मैंने विषय-सम्बन्धी परेशानी निवेदन की। उन्होंने मुझे उसी दिन से अपने घर आने का सुझाव दिया। मैं प्रतिदिन नियम से उनके घर गया। कुछ दिन तो उन्होंने मुझसे सूत्र रटने को कहा। इसके पश्चात् उनसे सम्बन्धित प्रश्न हल करने में मेरा मार्ग-दर्शन किया। एक महीने की लगन एवं कठोर परिश्रम ने मेरे आत्म-विश्वास को फिर से जाग्रत किया। उस दिन के बाद तो जैसे मेरा जीवन ही बदल गया। मेरे मन में गणित विषय के प्रति आतंक का भाव तथा यह विचार कि मैं इस विषय में कभी सफल नहीं हो सकता, सदैव के लिए खत्म हो गया।
आज मैं कक्षा दशम का छात्र हूँ। आज गणित के कारण ही मैं जीवन में कुछ कर दिखाने में सफल होने के आत्म-विश्वास से पूर्ण हूँ। इतना ही नहीं अब तो विज्ञान एवं कम्प्यूटर वर्ग में भी मुझे किसी प्रकार का भय अनुभव नहीं होता है। यह सब आदरणीय उन गणित अध्यापक जी की अनुकम्पा एवं आशीर्वाद का परिणाम है। उस दिन मैं साहस कर अपने गणित के उन शिक्षक से न मिला होता तो शायद मैं इस स्थिति में न होता। अन्त में मैं गर्व से कह सकता हूँ कि उस एक घटना ने मेरे जीवन में असीमित सुख, शान्ति एवं आत्म-विश्वास भर दिया। इसके लिए आज भी मेरा मन श्रद्धेय उन गणित अध्यापक जी के चरणों में नत है।
(ii) समय का सदुपयोग (महत्व)
जीवन और समय का गहरा सम्बन्ध है। सच तो यह है कि समय का एक रूप ही जीवन है। जैसे-जैसे समय बीतता है, मनुष्य का जीवन काल भी कम होता जाता है, अतः मानव के लिए समय सर्वाधिक मूल्यवान है। जीवन के रूप में उसे जितना समय मिला है, उसी में उसे कुछ करके दिखाना होता है। जो व्यक्ति समय के मूल्य को नहीं जानता, वह अपने जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता, चाहे उसके पास कितनी ही सामर्थ्य क्यों न हो ? समय के मूल्य को पहचानना ही समय का सदुपयोग है। समय बहुत बलवान है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसी कई स्थितियाँ आती हैं। उन क्षणों में यदि मन जरा भी हिचकिचाया या हटा तो जीवन का सब कुछ खो जाता है। जो व्यक्ति आलस और प्रमोद के कारण काम को आगे के लिए छोड़ देते हैं, वे आगे नहीं बढ़ सकते हैं। यदि आज का काम आज कर लिया जाये तो कल और आगे बढ़ने का अवसर हाथ से नहीं जाता है। समय किसी के साथ नहीं चलता, वह अपनी गति से सदा आगे बढ़ता रहता है।
समय का उचित उपयोग ही जीवन में सफलता की कुंजी है। यदि हम अपने जीवन के बीतने वाले एक-एक पल का ठीक से उपयोग कर सकें तो संसार का बड़े से बड़ा कार्य भी हमारे लिए सरल हो सकता है। संसार के जितने भी महान् व्यक्ति हुए हैं, सबने समय के मूल्य को पहचान कर ही आगे कदम बढ़ाया और अन्त में प्रतिष्ठा के उच्च शिखर पर चढ़ने में सफल हुए। नेपोलियन की महती विजय के मूल में समय का ही हाथ रहता था।
समय किसी के लिए रुकता नहीं, बल्कि समय के अनुसार चलना पड़ता है। इसलिए आज जिस काम को करना है, उसे आज ही कर लेना चाहिए। कल तो कभी आता ही नहीं। कबीर दास ने कहा है
“काल करै सो आज कर आ करै सो अब।
पल में परलै होएगी, बहुरि करैगो कब।”
किसी काम को आगे के लिए स्थगित कर देने का तात्पर्य है प्रायः उसे सदा के लिए छोड़ देना। अब करने ही वाला हूँ, का मतलब है, नहीं करने वाला हूँ’ कहा भी है
“अषाढ़ का चूका किसान और डाल का चूका बन्दर कहीं का नहीं रहता।”
इसलिए जो भी आलस्यवश किसी कार्य को चूक जाते हैं, वे कभी फिर उस अवसर को नहीं पा सकते, क्योंकि “गया वक्त फिर वापिस नहीं आता।” समय निकलने पर पश्चाताप ही हाथ आता है। तब वह कहता है-
“उड़ गया मेरा समय जैसे विहंगम,
और खाली हाथ जीवन रह गया।”
विद्यार्थी जीवन में समय सर्वाधिक मूल्यवान है। एक-एक क्षण हीरे-मोतियों जैसा कीमती है। प्रत्येक विद्यार्थी को चाहिए किं 24 घण्टों को एक इस प्रकार सुनियोजित रूप में बाँटकर उनका सदुपयोग करे कि उसकी शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक सभी क्षमताओं और शक्तियों का सन्तुलित रूप से विकास हो सके। जो विद्यार्थी अपने आज को कल पर टाल देते हैं तथा जो अपने समय का सन्तुलित नियोजन नहीं करते, वे होनहार व बुद्धिमान होते हुए भी जीवन में बुरी तरह असफल हो जाते हैं। कारण केवल एक ही होता है – ‘समय के प्रति आलस्य।’
समय हाथ में तभी आ सकता है, जब हम अपने आपको नियमित करें, प्रत्येक कार्य के लिए कार्यक्रम बना लें और फिर उस पर अटल होकर आगे बढ़ें। यदि कार्यक्रम बनाकर दीवार पर टाँग दिया और उसके अनुसार आचरण नहीं किया, तो वह कार्यक्रम व्यर्थ है। समय का सदुपयोग रंक को राजा और समय का दुरुपयोग राजा को भिखारी बना देता है। अतः समय के मूल्य को पहचानना ही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। इस प्रकार जीवन में समय का महत्व स्पष्ट है।
(iii) प्रेम से राष्ट्रीय एवं सामाजिक सम्बन्ध बढ़ते हैं प्रत्येक व्यक्ति सुखी रहना चाहता है, लेकिन कुछ ही लोग सुखी रहने का भेद जानते हैं। लोग धन, सत्ता, अधिकार आदि में खुशी की खोज करते हैं जबकि वास्तविक खुशी आपसी प्रेम में है। यदि विश्व में सभी लोग प्रेम को अपने जीवन का लक्ष्य बना लें तो न केवल उनका जीवन सुखद हो जायेगा बल्कि समाज के स्तर पर और उससे आगे देखें तो विश्व के स्तर पर बहुत-सी समस्याएँ स्वतः सुलझ जायेंगी।
जीवन को सुखी बनाने के लिए सभी की अपनी-अपनी अलग-अलग धारणाएँ हैं। अधिकतर लोग अधिक धन व सम्पत्ति में सुख को खोजते हैं। काफी लोग धन कमाने में सफल भी हो जाते हैं। लेकिन इस धन के साथ चिन्ताएँ भी आ जाती हैं और वे सुख की आकांक्षा में स्वयं को सुख से दूर करते चले जाते हैं। इसी प्रकार कुछ लोग राजनैतिक सत्ता में जीवन के सुख को खोजते हैं। कुछ लोग बड़े-बड़े पदों पर पहुँच जाते हैं। कुछ लोग बड़े अधिकारी बन जाते हैं। लेकिन भौतिकवादी दृष्टिकोण रखने वाले ये लोग आपसी प्रेम के अभाव में सुख से दूर ही रहते हैं। कुछ लोग इस भौतिकवादी दृष्टिकोण से दूर हटकर आध्यात्म में शान्ति और सुख की खोज करते हैं। लेकिन प्रेम की भावना जाग्रत किये बिना आध्यात्म में भी सुख नहीं मिल पाता है।
वास्तविक सुख का आधार प्रेम है – यह प्रेम, प्रेमी और प्रेमिका का प्रेम है, माँ और बच्चे का प्रेम है, पति और पत्नी का प्रेम है, भाई और बहिन का प्रेम है, शिक्षक और छात्र का प्रेम है, स्वामी और सेवक का प्रेम है, व्यक्ति और ईश्वर का प्रेम है। प्रेम के द्वारा दोहरे सुख की प्राप्ति होती है। जो प्रेम करता है वह भी प्रसन्न होता है और उसकी प्रसन्नता की अनुभूति उस व्यक्ति को भी सुख देती है जिससे वह प्रेम करता है। इसके विपरीत प्रेम के अभाव में आपसी
मन-मुटाव, शत्रुता आदि का जन्म होता है, जो मानसिक शान्ति को भंग करता है। ऐसा व्यक्ति, जो मानसिक रूप से अशान्त है, सुखी नहीं हो सकता है। प्रेम की भावना एक-दूसरे के प्रति लगाव व सहिष्णुता को जन्म देती है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के लिए बलिदान देने को तैयार रहता है। जिस प्रकार कोई भी माँ अपने बच्चों के लिए हर प्रकार का कष्ट सहने को तैयार रहती है और उनके कष्टों से व्यथित नहीं होती है या एक मित्र दूसरे मित्र के दुःख से दुःखी होता है, उसी प्रकार का भाव सभी प्रकार के सम्बन्धों में स्थापित होने पर वास्तविक सुख की अनुभूति सम्भव है। यदि पड़ोसियों में आपस में प्रेम हो और वे एक-दूसरे के सुख-दुख में भागीदार हों तो कोई भी समस्या इन लोगों के आपसी सम्बन्धों में कटुता पैदा नहीं कर पायेगी। इसी प्रकार विभिन्न राष्ट्रों के मध्य परस्पर प्रेम से आपसी सम्बन्धों में कटुता पैदा नहीं हो पायेगी और विश्व की काफी समस्याएँ अपने आप सुलझ जायेंगी।
प्रेम के माध्यम से ही समाज की बहुत-सी बुराइयों को दूर किया जा सकता है और सुखद जीवन की कल्पना की जा सकती है। यदि विश्वस्तर पर इसे अपनाया जा सके तो विश्व-बन्धुत्व की भावना के माध्यम से युद्धों, हत्याओं और विनाश को टाला जा सकता है।
(iv) सूक्ति : आगे कुआँ पीछे खाई
मानव जीवन अनेक विविधताओं और विभिन्नताओं का संगम है। कभी तो वह उत्साह से पूर्ण होकर कठिन से कठिन परिस्थिति में भी त्वरित निर्णय लेने में सक्षम होता है तो कभी सामान्य निर्णय लेने में भी हिचकिचाता है। कभीकभी तो ऐसा भी होता है कि वह स्वयं को असमंजस और अनिर्णय की स्थिति में अनुभव करता है। इस दशा में उसके आगे कुआँ और पीछे खाई की स्थिति होती है। इसका तात्पर्य न आगे बढ़ने और न पीछे लौटने की स्थिति या दशा से है। यह एक कहावत है जो मानव समाज का एक अनिवार्य अंग बन गई है। यह बात सत्य भी है क्योंकि हमारा जीवन केवल फूलों की सेज ही नहीं काँटों का ताज भी है। मानव के विचार, निर्णय तथा आत्म विश्वास और दृढ़ता आदि गुणों का ज्ञान एवं उनकी परीक्षा भी होती है। कठिन परिस्थिति में अक्सर व्यक्ति स्वयं को निर्णय लेने में असमर्थ या असहाय अनुभव करते हैं और आगे कुआँ, पीछे खाई’ वाली स्थिति में पाते हैं। इस उक्ति को सत्य और स्पष्ट करने के लिए मैं निम्नलिखित कहानी लिखने जा रहा हूँ।
रामदास एक सामान्य स्थिति का ईश्वर-विश्वासी और सरल चित्तवाला व्यक्ति था। वह ब्रज-प्रदेश के किसी गाँव में रहता था। वह अक्सर भिक्षा के द्वारा स्वयं के साथ परिवार का पालन करता था। एक बार वह वन-प्रदेश से होकर निकल रहा था। मौसम सामान्य था। उसे पूर्ण विश्वास था कि परमात्मा की अनुकम्पा से वह समय पर ही अपने परिवार में वापस आ जायेगा। किन्तु प्रभु को कुछ और ही स्वीकार था। अचानक आकाश काले बादलों से भर गया। शीतल वायु प्रवाह के साथ हल्की-हल्की बूंदें गिरने लगीं। शीघ्र ही बूंदों की गति ने तीव्र व भयानक रूप धारण कर लिया। सुरक्षा के लिए रामदास निकट के घने वृक्ष की शाखा पर चढ़कर पत्तों के बीच छिप गया। कई घण्टों के बाद अचानक पानी की गति कम होने पर जब उसने अपने आस-पास दृष्टि दौड़ाई तो वह घबरा गया।
वृक्ष के नीचे एक चीता बैठा था, जब उसने ऊपर को देखा तो एक भयानक विषधर उसकी ओर धीरे-धीरे बढ़ रहा था। अब रामदास बुरी तरह घबरा गया। उसकी समझ में नहीं आया कि वह कहाँ जाये और क्या करे। उसकी आगे कुआँ और पीछे खाई वाली स्थिति थी। अगर वह नीचे उतरता तो चीता उसे शिकार बना लेता और यदि वह अपना स्थान नहीं छोड़ता तो साँप उसे शिकार बना लेता। जब उसकी समझ में नहीं आया तो उसने ईश्वर से प्रार्थना की। उसने कहा –
अबके राखि लेहु भगवान
हौं अनाथ बैठो द्रुम डरियाँ चीता तकता प्राण
सिर के ऊपर विषधर लटक्यौ, कौन उबारै प्राण
अचानक उसका आत्म-विश्वास जागा। उसने प्राण खतरे में डालकर मुँह पकड़कर साँप को फुर्ती से नीचे फेंक दिया। चीते पर गिरते ही साँप ने उसे डस लिया। उधर मरते-मरते चीते ने साँप को दाँतों से चबाकर खत्म कर दिया। इस प्रकार अपने आत्म-विश्वास और ईश्वर भक्ति के कारण रामदास आगे कुआँ पीछे वाली स्थिति से बाहर आया।
(v) चित्र प्रस्ताव
भारत विविधताओं से भरा राष्ट्र है। यहाँ सभ्यता एवं संस्कृति के साथ ही मौसम की विविधता दृष्टिगोचर होती रहती है। कभी ग्रीष्म का भीषण ताप तो कभी वर्षा की उमस, कभी शीत की हाड़ कँपाने वाली ठण्डक तो कभी बसन्त का मादक मौसम परिवर्तन के प्राकृतिक नियम को प्रकट करने के साथ सौन्दर्य को भी स्पष्ट करते हैं।
प्रस्तुत चित्र किसी पर्वतीय प्रदेश की बर्फवारी (Snowfall) तथा कुहरे के वातावरण को स्पष्ट करता है। बर्फ गिरने के पूर्व वर्षा के चिह्न भी यत्र-तत्र दृष्टिगोचर हो रहे हैं। सड़क के दोनों ओर वृक्ष एवं झाड़ियों पर बर्फ के चिह्न भी स्पष्ट रूप में दिखाई दे रहे हैं। मेघाच्छादित आकाश तथा भयानक कुहरा भी वातावरण में व्याप्त है। ऐसे वातावरण में एक साइकिल सवार तथा बच्चों का ही बड़ा समूह मार्ग पर उल्लास एवं उत्साहपूर्ण चेहरे लिये आगे बढ़ रहा है। वे सभी प्रकृति के इस असीमित सौन्दर्य का रसास्वादन करते हुए बढ़ रहे हैं। पीछे पहाड़ियों पर स्थानीय निवासी भी सिर पर गोल टोप लगाये हुए दिखाई दे रहे हैं।
10 वर्ष पूर्व जनवरी के प्रथम सप्ताह का समय था। लगभग एक सप्ताह पूर्व हमारे कक्षाध्यापक ने प्रस्ताव किया कि 25 जून को कक्षा पंचम (5) यदि चाहे तो उसे दो दिन के लिए नैनीताल में स्नोफाल का आनन्द लेने के लिए ले जा सकते हैं। समय कम है। अतः अगले दिन तक धन तथा परिवार की ओर से अनापत्ति का पत्र जमा करना होगा। सभी छात्रों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। शीघ्र ही धन जमा करने के साथ परिवार वालों की स्वीकृति का पत्र भी जमा कर दिया।
कक्षाध्यापक ने बस तथा अन्य अनिवार्य वस्तुओं का प्रबन्ध किया। 24 जनवरी की शाम सात बजे सभी छात्र विद्यालय परिसर में एकत्र हुए। उपस्थिति तथा सामान आदि की जाँच के बाद सभी बस में सवार हुए। लगभग आठ बजे रात को बस-यात्रा आरम्भ हुई। सभी का हृदय एक नवीन आह्लाद एवं उत्साह से पूर्ण था। बालकोचित चंचलता के कारण बर्फ-गिरना (Snowfall) का आनन्द लेने की उत्सुकता थी। मौसम के विचार से सभी ने आवश्यक वस्त्र तथा अन्य वस्तुएँ साथ में ली थीं। आवश्यक दवाओं का भी पर्याप्त प्रबन्ध किया था। मार्ग में दो स्थानों पर रुककर चाय-पान के साथ आराम से लगभग 3 बजे नैनीताल पहुँचे। बस पूर्व निर्धारित होटल के प्रांगण में रुकी। हम सभी अपने निश्चित स्थान पर जाकर निद्रामग्न हो गये। अगले दिन 8 बजे प्रातः जागे। दैनिक कार्य सम्पन्न करने के बाद स्वल्पाहार लेकर पर्यटन हेतु निकल पड़े। हमारे आग्रह पर होटल की ओर से साइकिल का प्रबन्ध किया गया।
बाहर मौसम मस्त करने वाला था। आकाश मेघाच्छन्न था। आस-पास की पर्वत श्रेणियाँ तुषार-मण्डित दिखाई दे रही थीं। सूर्य-देव के दर्शन दुर्लभ थे। चारों ओर घना कोहरा था। उत्साह से सराबोर सभी बच्चे आगे बढ़े। एक बच्चा साइकिल पर था जबकि अधिकतर पैदल ही उस पथरीले मार्ग पर उछलते-कूदते आगे बढ़ रहे थे। मौसम के कारण मार्ग पूर्णतः नीरव था। बच्चों के मन-मस्तिष्क पर इस एकांत एवं नीरवता का कोई प्रभाव न था। वे हँसते-गाते, नाचतेकूदते आगे बढ़ते जा रहे थे।
लगभग दो घण्टे तक प्रकृति के इस सौन्दर्य का आनन्द लेने के बाद सभी बच्चे होटल वापस आये। दोपहर का भोजन लेकर दो घण्टे विश्राम किया। शाम को स्थानीय बाजार तथा पर्यटन-केन्द्रों में घूमे। दूसरे दिन सभी नैना देवी मन्दिर तथा झील देखने गये। शाम को खाना खाकर सभी घर वापस आ गये। इस प्रकार हमने पर्वतीय प्रदेश में बर्फवारी एवं कोहरे का आनन्द लिया।
Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any ONE of topics given below:
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए [7]
(i) आपके बड़े भाई ने आपको किसी शर्त पर एक खास भेट देने की बात कही थी। आप वह शर्त जीत गये हैं, उन्हें नम्रतापूर्वक शर्त की याद दिलाते हुए पत्र लिखिए।
(ii) अपने नगर के स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए जिसमें आपके क्षेत्र में फैली गन्दगी तथा उसके दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित कीजिए।
Answer:
(i) बड़े भाई को खास भेंट की याद दिलाकर उसे देने के लिए पत्र
10, A, राधा विहार
कमला नगर
आगरा।
दिनांक : 12-04-08
आदरणीय भाई साहब
प्रणाम
मैं यहाँ पर कुशलतापूर्वक हूँ। आशा करता हूँ आप सब भी कुशलता से होंगे। मैं सदैव ईश्वर से आपके मंगल की कामना करता हूँ। आपसे मिले हुए मुझे काफी समय हो गया।
भाई साहब, आपको यह सूचित करते हुए मुझे बड़ी खुशी हो रही है कि आपके आशीर्वाद तथा मार्गदर्शन से मुझे परीक्षा में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। सभी विषयों में 90% अंक प्राप्त हुए हैं। भाई साहब, यहाँ मैं आपको उस शर्त का स्मरण दिलाना चाहता हूँ जो आपने गत दिसम्बर में मुझसे लगायी थी। आपने कहा था कि यदि मेरे वार्षिक परीक्षा में अंक 90% के लगभग आये तो आप मुझे एक खास भेंट दिलायेंगे। मैं चाहता हूँ कि आप इस खास भेंट को देकर अपनी शर्त पूरी कीजिए। मुझे आपकी इस अमूल्य भेंट की प्रतीक्षा है। सभी की कुशलता का समाचार देना। माताजी एवं पिताजी को चरण स्पर्श तथा छोटों को स्नेह ।
आपका अनुज
राकेश
(ii) स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र
सेवा में
नगर स्वास्थ्य अधिकारी
आगरा।
विषय – क्षेत्र में गन्दगी तथा उसके दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकर्षण हेतु।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि विगत दो माह से हमारे क्षेत्र में काफी गन्दगी फैली हुई है। नगर निगम के कर्मचारी यहाँ पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। सफाई कर्मचारी यहाँ कभी-कभी आते हैं। आने पर गन्दगी एक स्थान से दूसरे स्थान पर डाल देते हैं। स्थान-स्थान पर गन्दगी एवं कूड़े के ढेर लगे हुए हैं। इस कारण यहाँ मक्खी-मच्छर पनप रहे हैं। अनेकों प्रकार के कीटाणुओं के उत्पन्न होने से बीमारी फैलने की सम्भावना है। सारा वातावरण इसी समस्या से त्रस्त है।
अतः आपसे निवेदन है कि अपने विभाग के अधिकारियों को यहाँ निरीक्षण करने हेतु आदेश दें जिससे वे नगरपालिका के कर्मचारियों को सजग कर सकें व आपके विभाग के कर्मचारी यहाँ दवाओं के छिड़काव कर सकें जिससे कीटाणु, मक्खी-मच्छर की समस्या से मुक्त हुआ जा सके। हमें पूर्ण विश्वास है कि आप हमारे निवेदन पर अवश्य ध्यान देंगे व उचित कार्यवाही करेंगे। हम इस कार्य के लिए आपके आभारी होंगे।
सधन्यवाद
दिनांक : 03-05-08
प्रार्थी
क्षेत्र के सभी निवासी
कमला नगर, आगरा
Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible:
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िये तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासम्भव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए
काशीनरेश ने कोसल पर आक्रमण कर दिया था। कोसल के राजा की चारों ओर फैली कीर्ति उन्हें असह्य हो गयी थी। युद्ध में उनकी विजय हुई। पराजित नरेश वन में भाग गये थे; किन्तु प्रजा उनके वियोग में व्याकुल थी और विजयी को अपना सहयोग नहीं दे रही थी। विजय के गर्व से मत्त काशीनरेश प्रजा के असहयोग से क्रुद्ध हुए। शत्रु को सर्वथा समाप्त करने के लिए उन्होंने घोषणा करा दी-“जो कोसलराज को ढूँढ़ लायेगा, उसे सौ स्वर्ण-मुद्राएँ पुरस्कार में मिलेंगी।”
इस घोषणा का कोई प्रभाव नहीं हुआ। धन के लोभ में धार्मिक राजा को शत्रु के हाथ में देने वाला अधम वहाँ कोई नहीं था।
कोसलराज वन में भटकते घूमने लगे। जटाएँ बढ़ गयीं। शरीर कृश हो गया। वे एक वनवासी के समान दीखने लगे। एक दिन उन्हें देखकर एक पथिक ने पूछा-‘यह वन कितना बड़ा है ? वन से निकलने तथा कोसल पहुँचने का मार्ग कौन-सा है ?’ .
नरेश चौंके ! उन्होंने पूछा-‘आप कोसल क्यों जा रहे हैं ?’
पथिक ने कहा – ‘विपत्ति में पड़ा व्यापारी हूँ। माल से लदी नौका नदी में डूब चुकी है। अब द्वार-द्वार कहाँ भिक्षा माँगता भटकता डोलूँ। सुना है कि कोसल के राजा बहुत उदार हैं, अतः उनके पास जा रहा हूँ।’
‘तुम दूर से आये हो, वन का मार्ग बीहड़ है। चलो, तुम्हें वहाँ तक पहुँचा आऊँ।’ कुछ देर सोचकर राजा ने पथिक से कहा।
पथिक के साथ वे काशीनरेश की सभा में आये। अब उन जटाधारी को कोई पहचानता न था। काशीनरेश ने पूछा-‘आप दोनों कैसे पधारे ?’ तब उस महात्मा ने कहा- ‘मैं कोसल का राजा हूँ मुझे पकड़े के लिए तुमने पुरस्कार घोषित किया है। अब पुरस्कार की वे सौ स्वर्ण-मुद्राएँ इस पथिक को दे दो।’.
सभा में सन्नाटा छा गया। सब बातें सुनकर काशीनरेश अपने सिंहासन से उठे और बोले-‘महाराज ! आप जैसे धर्मात्मा, परोपकार-निष्ठ को पराजित करने की अपेक्षा उसका चरणाश्रित होने का गौरव कहीं अधिक है। यह सिंहासन अब आपका है। मुझे अपना अनुचर स्वीकार करने की कृपा कीजिए।’
व्यापारी को मुँहमाँगा धन प्राप्त हुआ। कोसल और काशी उस दिन से मित्र राज्य बन गये।
मानव जीवन की सार्थकता परहित के लिए बलिदान करने की भावना में निहित है। मनुष्य के चरित्र की परीक्षा उसके परोपकारी कामों के आधार पर होती है, न कि व्यक्तिगत वैभवअर्जन पर। जो मनुष्य सबके दुःख दूर करने में जितना प्रयत्नशील होता है, वह उतना ही सभ्य, सुसंस्कृत एवं उच्च विचारों वाला माना जाता है; क्योंकि परोपकार का विशद भाव ही मानव की अन्तरात्मा की महानता की कसौटी है।
(i) कोसल पर आक्रमण किसने और क्यों किया ? [2]
(ii) काशीनरेश ने क्या घोषणा, क्यों करायी थी? [2]
(iii) पथिक ने कोसलराज से क्या कहा था ? उसके कथन को सुनकर कोसलराज ने क्या निर्णय लिया ? [2]
(iv) कोसलराज को सभा में कोई क्यों न पहचान पाया था ? सभा में सन्नाटा क्यों छा गया था ? [2]
(v) प्रस्तुत गद्यांश से आपको क्या शिक्षा मिली ? [2]
Answer:
(i) तत्कालीन काशीनरेश ने कोसल पर आक्रमण कर दिया क्योंकि कोसलनरेश की सभी दिशाओं में व्याप्त कीर्ति उनके लिए असहनीय हो गई थी। इससे काशीनरेश के अहं को चोट पहुँच रही थी।
(ii) विजयी काशीनरेश ने यह घोषणा करा दी कि जो व्यक्ति पराजित कोसलनरेश को खोजकर लायेगा, उसे सौ स्वर्ण-मुद्राएँ पुरस्कार के रूप में प्राप्त होंगी। उन्होंने ऐसा किया क्योंकि प्रजा उनसे असहयोग कर रही थी तथा वे अपने शत्रु को सदैव के लिए समाप्त करना चाहते थे।
(iii) पथिक ने कोसलनरेश से कहा कि वह विपत्ति में पड़ा व्यापारी है। माल से लदी उसकी नौका नदी में डूब चुकी है। अब वह द्वार-द्वार भिक्षा माँगते हुए नहीं भटकना चाहता। उसने सुना है कि कोसल के महाराज बहुत उदार हैं। अत: सहायता प्राप्त करने के लिए वह उनके पास जा रहा है। व्यापारी के कथन को सुनकर कोसलनरेश ने स्वयं को काशीनरेश के सामने दरबार में प्रस्तुत कर व्यापारी को नरेश से पुरस्कार दिलाने का निश्चय दिया।
(iv) सभा में कोसलनरेश को कोई नहीं पहचान सका क्योंकि वन में भटकने से वे दुर्बल हो गये थे तथा उनकी जटाएँ बढ़ गई थीं। वे एक वनवासी के समान दिखाई देने लगे। कोसलराज की उदारता तथा परोपकार के लिए जीवन को संकट में डालने की भावना को समझकर सभा में सन्नाटा छा गया।
(v) उपरोक्त गद्यांश से हमें शिक्षा मिलती है कि परोपकार के लिए हमें सर्वस्व बलिदान करना चाहिए क्योंकि मानव के चरित्र की परीक्षा उसके परोपकारी कार्यों के आधार पर होती है, व्यक्तिगत वैभव से नहीं। इसी में मानवजीवन की सार्थकता निहित है। जो मानव दुःखी के दुःखों को दूर करने के लिए जितना प्रयत्नशील होता है वह उतना ही सभ्य एवं उच्च-विचारों वाला माना जाता है क्योंकि यही मानव की महानता की कसौटी है।
Question 4.
Answer the following questions according to the instructions given :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए
(i) निम्न शब्दों से विशेषण बनाइए –
अहिंसा, दर्शन। [1]
(ii) निम्न शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए –
उन्नति, पुत्री। [1]
(iii) निम्न शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए –
सहयोगी, शीतल, त्यागी, एकता। [1]
(iv) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए –
सिर नीचा होना, कान खड़े होना। [1]
(v) भाववाचक संज्ञा बनाइए –
पूर्ण, प्रतिनिधि। [1]
(vi) कोष्ठक में दिये गये निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए –
(a) कर्तव्य का पालन नहीं करने में दुःख है।
(‘नहीं’ हटाइए, किन्तु वाक्य का अर्थ न बदले) [1]
(b) गर्मियों की छुट्टियों में मैंने अपने मित्रों के साथ मसूरी घूमने जाने का निर्णय किया।
(रेखांकित के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कीजिए।) [1]
(c) मुसाफिर धर्मशाला में विश्राम करते हैं।
(भूतकाल में बदलिए) [1]
Answer:
(i) विशेषण में परिवर्तन –
अहिंसा – अहिंसक
दर्शन – दार्शनिक।
(ii) पर्यायवाची शब्द –
उन्नति – विकास, प्रगति, उत्थान।
पुत्री – आत्मजा, तनया, सुता, दुहिता।
(iii) शब्दों के विपरीत शब्द –
सहयोगी – विरोधी।
शीतल – उष्ण।
त्यागी – भोगी।
एकता – अनेकता।
(iv) मुहावरों का वाक्य प्रयोग –
सिर नीचा होना – वीजिंग में होने वाले ओलम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम के भाग न ले पाने के समाचार को सुनकर सभी भारतवासियों का सिर नीचा हो गया।
कान खड़े होना – उत्तर प्रदेश में आतंकी समूहों के प्रवेश की सूचना प्राप्त होते ही सभी के कान खड़े हो गये।
(v) भाववाचक संज्ञा में परिवर्तन –
पूर्ण – पूर्णता या पूर्णत्व।
प्रतिनिधि – प्रतिनिधित्व।
(vi) कोष्ठक में दिये गये निर्देशानुसार वाक्य परिवर्तन –
(a) कर्तव्य का पालन करने में ही सुख है।
(b) गीष्मावकाश में मैंने अपने मित्रों के साथ मसूरी घूमने जाने का निर्णय किया।
(c) मुसाफिरों ने धर्मशाला में विश्राम किया।
Section – B (40 Marks)
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