ICSE Hindi Question Paper 2007 Solved for Class 10

ICSE Hindi Previous Year Question Paper 2007 Solved for Class 10

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  • This paper comprises of two Sections – Section A and Section B.
  • Attempt all questions from Section A.
  • Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
  • The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].

SECTION – A  [40 Marks]
(Attempt all questions from this Section)

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any ONE of the following topics :
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए
(i) वर्तमान युग में मोबाइल फ़ोन जीवन की आवश्यकता बन गया है। इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए
और बताइए कि मोबाइल फ़ोन जीवन में सुविधा के साथ-साथ मुसीबत किस प्रकार बन जाता है ?
(ii) अपने नगर में आयोजित किसी जादू के तमाशे का आँखों देखा वर्णन कीजिए।
(iii) आपके जीवन का उद्देश्य क्या है ? आज से दस वर्ष बाद की कल्पना कीजिए। बताइए आप स्वयं को कहाँ,
किस रूप में देखना चाहते हैं।
(iv) एक कहानी लिखिए, जिसका आधार निम्नलिखित उक्ति हो
“जैसी करनी वैसी भरनी।”
(v) नीचे दिये गये चित्र को ध्यानपूर्वक देखिए और चित्र को आधार बनाकर वर्णन कीजिए अथवा कहानी लिखिए,
जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।
ICSE Hindi Question Paper 2007 Solved for Class 10
Answer:
(i) मोबाइल फोन : कितना सुविधाजनक
आज से कुछ वर्ष पहले क्या हमने कभी कल्पना भी की थी कि हम फोन हाथ में लेकर घूमेंगे। हमारी टेक्नोलॉजी इतनी तेजी से आगे बढ़ रही है कि मानो पलक झपकते ही विज्ञान का एक नया अद्भुत वरदान हमारे सामने होता है। मोबाइल फोन भी ऐसा ही वरदान है जो केवल कुछ खास लोगों के लिए ही नहीं बल्कि “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय है।” आज हर व्यक्ति के हाथ में इसे देखा जा सकता है-अमीर वर्ग का हो या निम्न वर्ग का, बुजुर्ग हो या बच्चा सबके हाथ में यह समान रूप से शोभा पाता है और हो भी क्यों न यह है ही इतना लाभदायक।

अगर ट्रेफिक जाम में फंस जाएँ, मोबाइल घुमाइए, पत्नी को सूचित कीजिए। अचानक कहीं घूमने जाने का कार्यक्रम बन गया तो चिन्ता की क्या बात है, मोबाइल है न। देर हो रही है, सूचित कीजिए, किसी को जल्दी से बुलाना है, तुरन्त फोन कीजिए। जहाँ भी होगा, तुरन्त दौड़ा चला आएगा। सब्जी चाहिए, नल खराब हो गया, नाली बन्द है, कोई बीमार हो गया, दवाई चाहिए-परेशान मत होइए, सबके पास फोन हैं, आपकी आवाज सुनते ही सम्बन्धित व्यक्ति दौड़ पड़ेगा। बच्चा घर पर अकेला है, कामकाजी महिलाएँ चिन्ता न करें। सफर में हैं या अकेले बोर हो रहे हैं-क्यों फोन पास में है न।

केवल बात करने की नहीं, अनेक अन्य सुविधाएँ भी देता है। तरह-तरह के खेल, केलकुलेटर, फोन बुक की सुविधा, समाचार, चुटकुले, चटपटी बातें, ये तो अन्य सुविधाएँ हैं। एस.एम.एस. सबसे अधिक सस्ता साधन है देशविदेश कहीं भी भेजिए और अपना सन्देश पहुँचाइये। विदेशों में रहने वाले साथियों से बात करना कितना आसान और सस्ता हो गया है। कई लोग मिलकर बात कर सकते हैं। आप कहीं काम में लगे हैं, कोई बात नहीं, वॉइस मेल की सुविधा है। आपके लिए सन्देश आपका मोबाइल स्वयं ले लेगा।

एक नई और महत्वपूर्ण सुविधा जो मोबाइल ने दी है वह है एस.एम.एस.। इसके माध्यम से विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेना और केवल भाग लेना ही नहीं अपितु अब तो प्रतियोगियों के भाग्य का फैसला भी जनता के हाथों में है। जितना गुड़ डालिए उतना ही मीठा होना चाहिए तो कैमरा लीजिए, ई-मेल की सुविधा प्राप्त कीजिए और भी न जाने क्या-क्या।

प्रश्न यह उठता है कि अगर यह इबना लाभकारी है तो फिर विद्यालय में अध्यापक नाराज क्यों होते हैं ? इस पर रोक क्यों लगाते हैं। यहाँ दोष मोबाइल का नहीं, इसका प्रयोग करने वाले विद्यार्थियों का है, जो बिना सोचे-समझे इसका दुरुपयोग करने लगते हैं और यह लाभ देने के स्थान पर हानिकारक हो जाता है। अनेक घटनाएँ सामने आती हैं जब बच्चे पढ़ाई से मन हटाकर मोबाइल पर अपने दोस्तों से बातें करते रहते हैं, अश्लील फोटो खींचकर यहाँ-वहाँ भेज देते हैं।

मोबाइल का सबसे बड़ा दोष यह है कि समय-असमय यहाँ-वहाँ बजता ही रहता है। लोग सुरक्षा और शिष्टाचार भूल जाते हैं। गाड़ी चलाते समय फोन पर बात करना असुरक्षित ही नहीं, कानूनन अपराध भी है। सभा, सम्मेलनों, मीटिंगों में इसे बन्द रखना चाहिए, किन्तु तरह-तरह की धुनें लगातार सुनाई पड़ती रहती हैं। यदि हम इसका उपयोग भली-भाँति सबके हित में कर सकें तो यह अन्य आविष्कारों की तरह हमारे लिए उपयोगी सिद्ध होगा, अन्यथा इस वरदान को अभिशाप में बदलते देरी नहीं लगेगी।

(ii) जादू का तमाशा
विद्यालयों में पढ़ने के साथ-साथ छात्रों को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखने के लिए खेलों का भी प्रबन्ध रहता है। कहते हैं “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।” पढ़ाई के साथ खेलों का भी उतना ही महत्व है। किसी-किसी विद्यालय में खेल अनिवार्य होते हैं और उनमें पढ़ाई तथा खेलों को एक-सा महत्व दिया जाता है। हॉकी, क्रिकेट, फुटबाल इत्यादि खेल तो विद्यार्थी खेलते ही हैं। कभी-कभी उनके मन को प्रसन्न करने के लिए मदारी व जादू के खेल भी दिखाये जाते हैं। इससे उनका स्वस्थ मनोरंजन होता है।

एक बार हमारे विद्यालय में एक जादूगर आया। वह अपने काम में बड़ा कुशल था। इससे पहले कई शहरों में कई विद्यालयों में अपना तमाशा दिखा चुका था। उसने अपने प्रशंसापत्र प्रधानाचार्य महोदय को दिखाए। तुरन्त ही उसके तमाशे के लिए बड़े हाल में स्टेज तैयार हो गयी और कक्षा 6 से 12 तक को जादू का तमाशा देखने के लिए बुलाया गया। हम सभी लोग कौतूहल से हॉल में आकर फर्श पर कुर्सियों पर बैठ गये। जादूगर एक काला गाउन पहने हुए था और उसमें अनेक तमगे लगे हुए थे।

उसके पास एक बक्सा था जिसमें सामान भरा हुआ था। खेल प्रारम्भ करने से पहले उसने कहा-“मैं पहले हवन करूँगा। मेहरबान साहेबान जरा ध्यान लगाकर देखिए।” एक लोहे की सलाई के ऊपर कपड़ा लपेटा हुआ था। उसी पर आग लगाई और फिर उसको अपने मुँह में रख लिया। उसके बाद उसने नये ब्लेड लिए और उनको दाँतों से काट-काटकर पानी के साथ निगलता गया। इसके बाद उसने रुपये बनाने शुरू किए। इस खेल को देखकर हमारी तो अक्ल चकरा गई। कुछ लड़के कहने लगे कि इस खेल में हाथ की सफाई जरूर है। अगर यह इसी तरह रुपये बना लिया करे तो इस तरह जगह-जगह तमाशा क्यों दिखाये।

फिर जादूगर ने घड़ी का खेल दिखाया। एक मास्टर साहब से उसने घड़ी माँग ली। फिर उसने मास्टर साहब से पूछा कि आप तो दिलवाले हैं, यह घड़ी टूट जाये या खो जाये तो कोई फर्क नहीं पड़ता। कहते-कहते सबके सामने हथौड़े से घड़ी को तोड़ दिया। तपाक से मास्टर साहब से बोला, ‘मास्टरजी घड़ी तो आपकी टूट गयी। आपकी मर्जी से ही टूटी है। अब आप कॉलेज देर से आये तो मुझसे मत कहिये।’ यह कहते ही पूरा हाल ठहाकों से गूंज गया। मास्टर साहब कुछ चिन्तित न होते हुए बोले, “हमारी घड़ी हमें दो-नहीं तो उसकी कीमत दो।” जादूगर की ओर से जवाब आया-“घड़ी तो आपकी टूट गई। चलो यह फैसला करते हैं आपकी दूसरी घड़ी दिलवा देते हैं।” सभी उसके सहायक ने तालियाँ बजायीं। सभी आश्चर्य भरी नजरों से देखने लगे। उसने वहीं मेज पर रखी एक डिबिया उठाई। उसमें से एक के बाद एक डिबिया निकलती गई। अन्त में सबसे छोटी डिबिया में मास्टर साहब की घड़ी रखी हुई मिली। मास्टर को घड़ी देते हुए उसने कहा-‘यही आपकी घड़ी है।’ मास्टर साहब ने अपनी घड़ी पहचान ली। वही घड़ी थी।

इसके बाद उसने मेरमरेजम के कई खेल दिखाये। एक चपरासी को बुलाया जो इंग्लिश बिल्कुल नहीं जानता था। उसने उसकी आँखों से कसकर पट्टी बाँध दी। फिर उस पर मेरमरेजम किया। एक ताश का पत्ता लेकर उसने अंग्रेजी में पूछा-“मेरे पास कितने कार्ड हैं”। उसने अंग्रेजी में उत्तर दिया-“थ्री कॉर्डस।” फिर उसने अन्य प्रश्न किया और चपरासी ने सही-सही जवाब अंग्रेजी में दिया। यह तो वास्तव में कमाल था जिसे देखकर सब हैरान रह गये। पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से पुनः गूंज उठा।

इसके बाद उसने ताश के खेल दिखाये। किसी भी पत्ते को बिना देखे यह बता देना कि यह कौन-सा पत्ता है। पत्ते के टुकड़े को काटकर उसने एक छात्र को दिया और कहीं भी रखने को कहा। फिर उस ताश को जोड़कर दिखा दिया। इसी प्रकार उसने ताश के अनेक मनोरंजक खेल दिखाये।

फिर उस जादूगर ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। उसने भूमि पर एक मोटी साँकल को अपने शरीर पर लपेट लिया। इसके नीचे कम्बल रख लिया और दोनों कुन्दों में ताला लगवा दिया। फिर उसने प्राणायाम किया और अंगड़ाई लेकर उस साँकल को तोड़ दिया। सभी लोग अवाक् रह गये।

उसके खेल, मेसमरेजम के काम तथा योग की क्रियाओं से हम लोग बहुत प्रभावित हुए। उसने यह भी बताया कि योग की क्रियाओं से रोगों को दूर किया जा सकता है। यह जादू का तमाशा सबको बहुत अच्छा लगा। फिर हम अपनी-अपनी कक्षाओं में आ गये और वह दूसरे खेल के लिए अपना मंच तैयार करने लगा। यह खेल छोटे बच्चों के लिए होना था।

(iii) जीवन का उद्देश्य
संसार में हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह जीवन में विशेष कार्य करे। यह इच्छा बचपन से ही मनुष्य के मन में जन्म लेती है और विभिन्न घटनाओं से धीरे-धीरे प्रबल हो जाती है। मनुष्य हर संभव प्रयास करता है कि वह अपना लक्ष्य प्राप्त करे। इस लक्ष्य को ही उसका जीवन-स्वप्न कहा जाता है। यह मनुष्य की रुचि और प्रकृति पर निर्भर करता है कि उसका जीवन स्वप्न क्या है ? कुछ लोग नेता बनकर धन और यश पाने की कामना रखते हैं, तो कुछ लोग अध्यापक बनकर जीवन सार्थक करना चाहते हैं।

इसी प्रकार लोग इंजीनियर, कवि, कलाकार या अभिनेता आदि बनना चाहते हैं। अपने स्वप्न को सच कर पाना अलग बात है परन्तु इच्छा तो सभी रखते ही हैं। मैंने जीवन में एक डॉक्टर बनने का स्वप्न देखा है। मेरे इस स्वप्न का आधार एक दुर्घटना है जो मेरे एक मित्र के साथ घटी। अमित और मैं जा रहे थे, तभी एक ट्रक अमित को गिराता हुआ निकल गया। अमित बुरी तरह घायल हो गया था। कुछ लोगों की सहायता से उसे एक डॉक्टर के पास ले जाया गया। उसने तुरन्त अमित का इलाज किया और उसके प्राण बचाए। उसने न तो पुलिस के आने की प्रतीक्षा की और न ही अपनी फीस के बारे में कुछ सोचा। सफल होने पर उसके चेहरे पर संतोष का भाव झलक रहा था। उसी दिन मैंने सोचा कि मैं एक डॉक्टर बनूँगा।

मैं जानता हूँ कि डॉक्बर बनना बहुत कठिन है। मैडिकल कॉलेज में प्रवेश ही बहुत कठिनाई से मिलता है। अतः मुझे बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ेगा। फिर एम.बी.बी.एस. का पाठ्यक्रम भी बहुत बड़ा होता है, अतः उसके लिए अनेक वर्षों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन मैं वह सब कुछ करूँगा जिससे मैं अपने लक्ष्य को पा सकूँ। आजकल भारत में डॉक्टरों की बहुत आवश्यकता है। बहुत से डॉक्टर इसे व्यवसाय मात्र समझकर इसके द्वारा अधिक से अधिक धन कमाना चाहते हैं। कुछ अन्य डॉक्टर बड़ी नौकरी पाकर धन और यश पाने की इच्छा रखते हैं। मैं इस कार्य को व्यवसाय नहीं समझता। यह तो सेवा-कार्य है। इसीलिए मैं गरीबों का इलाज इसत हरह से करूँगा कि उनका खर्च कम से कम हो। जहाँ तक सम्भव होगा उन्हें दवा भी मुफ्त दूंगा। धनी लोगों से पूरी फीस लूँगा। तभी तो अपने खर्च के साथ निर्धनों के लिए दवाओं का प्रबन्ध कर सकूँगा।

बीमारियों का इलाज करना एक समस्या है किन्तु इसका समाधान दवा देने से हो जाता है। डॉक्टर का काम केवल दवा देना नहीं है। उसे लोगों को बीमारियों से बचाकर स्वस्थ रहने के सम्बन्ध में जानकारी भी देनी चाहिए। अनपढ़ मजदूरों और किसानों को इस जानकारी की विशेष आवश्यकता होती है। इसीलिए समय-समय पर मैं निकट के गाँवों या झुग्गी-झोंपड़ी वाली बस्तियों में जाकर वहाँ के लोगों को स्वस्थ रहने के उपाय बताऊँगा। आमतौर पर होने वाली छोटी-मोटी बीमारियों को अनेक घरेलू नुस्खों से ठीक किया जा सकता है। इन नुस्खों की जानकारी निर्धन लोगों को दूंगा। इससे वे डॉक्टर के पास जाने की भागदौड़ से बचेंगे।
ये सब कार्य आसान नहीं हैं। किन्तु मेरा निश्चय भी कमजोर नहीं है। मैंने डॉक्टर बनने का स्वप्न देखा है, इस . स्वप्न को मैं सच करके दिखाऊँगा।

(iv) जैसी करनी वैसी भरनी
हम जो भी कार्य करते हैं उसे ‘करनी’ या कर्म कहते हैं। कर्मों के आधार पर हमें फल मिलता है। कर्मों का फल हर हालत में भोगना ही पड़ता है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्म फलहेतुर्भूमति सङ्गत्व कर्मणि ॥

अर्थात मनुष्य का कर्म पर अधिकार है। कर्म के अनुसार फल देना तो ईश्वर का काम है। प्रायः काम करते समय मनुष्य यह भूल जाता है कि अच्छे और बुरे कर्मों का फल मनुष्य को स्वयं भोगना पड़ता है। जब परिणाम सामने आता है जैसे किसी का जवान बेटा चला जाना, अपंग पैदा होना, दरिद्र होना आदि तब मनुष्य सोचता है यह क्या हुआ? हम बीज बोकर भूल जाते हैं किन्तु बीज उगना नहीं भूलता। उदाहरणार्थ-भीष्म पितामह ने एक दुमुँही को तीर की नोंक से उठाकर बेरिया के पेड़ पर पटक दिया जहाँ उसे छ: महीने तड़पना पड़ा। वही फल शर-शैया पर सोकर उन्हें छः महीने तक भोगना पड़ा।

विद्यार्थी जीवन में कर्म का विशेष महत्व है कवि वृन्द का कहना है कि विद्या रूपी धन को बिना परिश्रम के कोई प्राप्त नहीं कर सकता। जो विद्यार्थी अनुशासन बनाये रखने में सहयोग करते हैं, पढ़ने में मेहनत करते हैं, वे अच्छे अंकों से पास होते हैं और सबके आशीर्वाद के पात्र बनते हैं। जो विद्यार्थी शैतानी में, खेल में व्यर्थ जीवन बिताते हैं वे अक्सर परीक्षा के समय बीमार हो जाते हैं और परीक्षा में अनुत्तीर्ण होकर जीवन की दौड़ में पीछे रह जाते हैं। ऐसे बच्चों का कहीं आदर-सम्मान नहीं होता।

इतिहास ऐसे असंख्य उदाहरणों से भरा पड़ा है जिससे सिद्ध होता है कि जो व्यक्ति अपने जीवन का उद्देश्य ऊँचा बनाकर चलते हैं, वे ऊँचा प्रयास करते हैं और ऊँचाइयों पर पहुँच जाते हैं, जैसे-तुलसीदास, कबीरदास, गुरुनानक, चन्द्रशेखर आजाद, राजा हरिश्चन्द्र, महात्मा गाँधी आदि। इन महापुरुषों ने शुभ कर्म करके यह सिद्ध कर दिया कि जो जैसी करनी करता है उसका फल उसे वैसा ही मिलता है। दूसरों को सुख पहुँचाने वाला सुखी और दूसरों को दुः ख पहुँचाने वाला हमेशा दुःखी ही रहता है। कहा भी गया है-जैसा बोओगे, वैसा काटना पड़ेगा ‘As you sow, so you reap’. कर्म करके मनुष्य भूल जाता है किन्तु कर्म मनुष्य को नहीं भूलते। वे उसे जन्म-जन्म में वैसे ही ढूँढ लेते

हैं जैसे हजारों गायों के बीच में छोटा बछडा अपनी माँ को ढूँढ लेता है। कर्म फल से कोई भी बच नहीं सकता। जैसी करनी होगी, वैसी ही भरनी होगी। तुलसीदास जी ने कहा है
“कर्म प्रधान विश्व करि राखा।
जो जस करइ तो तख फल चाखा॥”

एक बार मैं रास्ते में जा रहा था। एक बहुत बुजुर्ग व्यक्ति अचानक सड़क पर गिर पड़ा। सड़क पर चलने वाले लोग इतने व्यस्त थे कि किसी को भी उसके पास रुकने तक की फुर्सत नहीं थी। मुझे विद्यालय पहुँचने के लिए देर हो रही थी किन्तु दया उत्पन्न हो जाने के कारण मैंने स्कूल की चिन्ता छोड़कर उसे उठाया, देखा बहुत बुखार था। वह व्यक्ति काँपते स्वर में बोला बेटा इस दुनिया में मेरा कोई नहीं, मेरा अन्त समय निकट है अन्त में तुमने ही मुझे सहारा दिया हे, अतः ये मेरे मकान के कागज, 2,000 की नगदी मेरी अलमारी में रखी है तुम ले लेना। इस घटना से मैंने अनुभव किया कि जैसी करनी वैसी भरनी होती है। अच्छे कर्म का फल अच्छा और बुरे कर्म का फल हमेशा बुरा होता है। हमारे नीतिग्रन्थों में भी कहा गया है –
“बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होइ।”

(v) चित्र प्रस्ताव
प्रस्तुत चित्र नगर के किसी मुख्य एवं सार्वजनिक मार्ग का है। इसमें नागरिकों की वर्तमान असावधानी को दिखाया गया है। इस असावधानी के कारण स्थान-स्थान पर कूड़े के ढेर एवं बाजार में चाट-पकौड़ी तथा पेय-पदार्थ लेने के पश्चात् जूठे दौने-पत्ते तथा प्लास्टिक या थर्माकोल के गिलास आदि को लोग चाहे जहाँ फेंक देते हैं। फल खाने के बाद उनके छिलके भी असावधानी से इधर-उधर फेंक दिए जाते हैं। इससे जहाँ दुर्घटना की संभावना बढ़ती है, वहीं गंदगी के कारण हमारे स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं इससे विदेशी पर्यटक भी हमारे विषय में गलत धारणाएँ ले जाकर देश की अनुचित छवि प्रस्तुत करते हैं। अतः सरकार द्वारा प्रसार के सभी साधनों द्वारा नियमित स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के विषय में जनता को जागरूक किया जाता है। इस कार्य में व्यक्तिगत रूप में हम सभी को भाग लेना चाहिए। एक सदनागरिक के रूप में यह हमारा कर्तव्य है।

इस चित्र में भी हमें ऐसे ही एक सामूहिक प्रयास के दर्शन होते हैं। यहाँ पर विद्यालय के छात्रछात्राएँ अपनी शिक्षिका के साथ नगर को स्वच्छ बनाने के प्रयास में सफाई के कार्य में व्यस्त हैं। एक छात्र के हाथ में लम्बी झाडू है। वह इससे कूड़ा इकट्ठा कर रहा है। छात्रा भी अपनी अपेक्षाकृत छोटी झाड़ से इस कार्य में सक्रिय योग दे रही है। एक छात्र फुटपाथ पर बिखरी गंदगी एवं कूड़े को झाड़ से एक स्थान पर एकत्रित कर रहा है। वे सभी उस कूड़े को निकट ही रखी प्लास्टिक की एक बाल्टी में भरकर किसी सार्वजनिक कूड़ाघर में डाल देंगे। वहाँ से सरकार की कूड़ा गाड़ी उसे एकत्रित कर नगर के बाहर ले जाकर खत्ते में डाल देगी। वहाँ पर कूड़े की उपयोगिता के विचार से उसका प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में तो कूड़े से बिजली उत्पादन की योजना भी विचाराधीन है।

ये सभी छात्र किसी अच्छे विद्यालय से संबद्ध प्रतीत होते हैं । वे सभी छात्र पेंट-शर्ट, जूते-मोजे के साथ टाई भी धारण किए हैं। छात्रा स्कर्ट-ब्लाउज और जूते-मोजों में हैं। उनके साथ शिक्षिका खड़ी होकर उन्हें स्वच्छता के सम्बन्ध में निर्देश दे रही है। उपस्थित सभी छात्र-छात्राएँ उनकी आज्ञा का पालन कर रहे हैं। प्रयास प्रशंसनीय है। अच्छा होता यदि अध्यापिका भी उनके सम्मुख स्वयं कार्य करके आदर्श प्रस्तुत करतीं।

Question 2.
Write a letter in Hindi on any ONE of the topics given below : [7]
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में पत्र लिखिए :
(i) स्वतन्त्रता दिवस पर आयोजित एक भाषण प्रतियोगिता में, स्वतन्त्रता दिवस के महत्त्व पर आपने अपने विचार प्रस्तुत किये थे। विदेश में रहने वाले अपने मित्र को पत्र लिखकर इस कार्यक्रम की जानकारी दीजिए।
(ii) आप किसी पत्रिका के नियमित ग्राहक बनना चाहते हैं। पत्रिका के प्रकाशक से पत्र लिखकर पूछिए कि पत्रिका का वार्षिक मूल्य क्या है और आपको वह पत्रिका क्यों पसन्द है ?
Answers.
(i) विदेश में रहने वाले मित्र को पत्र

25/141 पटेल नगर,
मोती कटरा, आगरा
दिनांक : 16.04.2007

प्रिय सुमंत,
हम सब यहाँ सकुशल हैं । तुम्हारी कुशलता की परमात्मा से कामना करते हैं।
विगत सप्ताह तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ। पत्र से ज्ञात हुआ कि तुम वहाँ सकुशल तथा निर्विघ्न अध्ययन में लीन हो। तुमने पत्र में यह भी बताया था कि तुमने अपने कॉलेज में होने वाली नाट्य-प्रतियोगिता में भाग लेकर श्रेष्ठ अभिनेता का सम्मान प्राप्त किया था। यह समाचार पाकर मन-मयूर नृत्य कर उठा। हार्दिक बधाई। सुमंत! तुम्हें सुनकर हर्ष का अनुभव होगा कि तुम्हारा यह मित्र (मैं) भी गत स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त के अवसर पर विद्यालय में होने वाली वाद-विवाद (भाषण) प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर चुका है।

मित्र! स्वतंत्रता दिवस से एक सप्ताह पूर्व कॉलेज के सूचनापट को देखने से हमें 15 अगस्त के दिन होने वाली इस भाषण प्रतियोगिता के विषय में ज्ञात हुआ। कक्षाध्यापक तथा हिन्दी-शिक्षक के आदेश में मैंने भी नाम देकर तैयारी आरम्भ कर दी। विषय था-“भ्रष्ट राजनीतिज्ञ कभी राष्ट्र का हित चिंतन नहीं करते।” मैंने तैयारी की मित्रों ने प्रोत्साहन दिया तथा विषय अध्यापक ने सीमित मार्गदर्शन किया। 15 अगस्त को प्रातः 10.30 पर प्रतियोगिता का आरम्भ हुआ। कॉलेज के उप-प्रधानाचार्य, सभापति तथा विषय अध्यापक इस प्रतियोगिता के संचालक थे। मुख्य अतिथि नगर के जिलाधिकारी तथा निर्णायक मंडल में सभी सदस्य ख्यातिप्राप्त विद्वान थे।

प्रतियोगिता का आरम्भ मुख्य अतिथि ने दीप जलाकर किया। अपने-अपने क्रम पर वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किए। मैंने भी यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि जिस खेत का रक्षक तथा बाग का माली ही भ्रष्ट हो, उसे नष्ट होने से ईश्वर भी नहीं बचा सकता। अन्त में उप-प्रधानाचार्य ने निर्णय घोषित करने हुए मुझे प्रथम, राखी को द्वितीय तथा विलियम को तृतीय घोषित किया। पुरस्कार के साथ सभी से बधाई प्राप्त कर मैं प्रसन्नतापूर्वक घर आया। परिवार एवं सभी ने मुझे साधुवाद दिया।
शेष कुशल। नवीन समाचार से सूचित करना।
डी. 16/369
फ्लीट स्ट्रीट
ब्रिटेन

अभिन्न
राघव पण्डित

(ii) नियमित ग्राहक बनने को पत्र

30/8, मॉडल टाउन
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

दिनांक : 12.5.2007

सेवा में,
श्रीमान प्रसार प्रबंधक,
हिन्दुस्तान साप्ताहिक,
नई दिल्ली।

विषय : पत्रिका का निमित ग्राहक बनने के लिए पत्र महोदय, मैं आपकी साप्ताहिक पत्रिका को अब तक नियमित रूप से माँग कर या विक्रय केन्द्र से खरीद कर पढ़ता रहा हूँ। मुझे यह पत्रिका हर दृष्टि से रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक लगी है। अब मैं आपकी इस पत्रिका का नियमित ग्राहक बनना चाहता हूँ। इसके लिए निर्धारित 1,000/- (एक हजार रुपये मात्र) का ड्राफ्ट भेज रहा हूँ। मुझे एक वर्ष के लिए नियमित ग्राहक बनाने की कृपा करें। आप हिन्दुस्तान साप्ताहिक की प्रति हर सप्ताह उपरोक्त पते पर भिजवाने का कष्ट करें। धन्यवाद।

भवदीय
राघवेन्द्र सिंह

Question 3.
Read the passage given below carefully and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible :
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िये तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए –
जापान में समुद्रतट के समीप ही एक टीले पर एक परिवार बसता था। उसके खेत भी टीले पर ही थे। समुद्र के तट पर टीले से नीचे एक गाँव था। शीतकाल समाप्त हो गया था। वसन्त ऋतु ने चारों ओर अपना उल्लास बिखेर दिया था। खेतों में फसलों की सुनहरी बालियाँ झूम रही थीं। ऐसे आनन्दपूर्ण समय में उस गाँव में प्रतिवर्ष के समान वसन्त ऋतु के स्वागत के लिए एक मेले का आयोजन किया गया।
आसपास की बस्तियों से स्त्री-पुरुष, बालक-युवा रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर मेले में आए थे। एक विशाल जन-समुदाय एकत्रित हुआ था। लोग खाने-पीने, वस्तुएँ खरीदने, गाने-बजाने तथा आनन्द मनाने में मस्त थे। गाँवों में कतिपय वृद्ध-जन घर तथा खेतों की रखवाली के लिए बच गए थे।

समुद्रतट के समीप के टीले पर जो परिवार रहता था; उसके सदस्यों में भी कुछ सज-धजकर नीचे मेले में चले गए थे। कुछ ऊपर बैठे-बैठे मेले का आनन्द ले रहे थे। उस परिवार का वृद्ध सदस्य हागामुची घर से बाहर बैठा अपने पौत्र को गोद में खिला रहा था, साथ ही मेले पर भी दृष्टि डाल लेता था।

हागामुची अचानक चौंक गया ! उसकी दृष्टि मेले से हटकर समुद्र पर पड़ी, पौत्र को गोद से उतारकर, उसे नीचे बैठाकर वह उठ खड़ा हुआ। समुद्र का जल अकस्मात अस्वाभाविक रूप से बहुत पीछे हट गया था। हागामुची के मन में प्रश्न उठा-“यह क्या हुआ? समुद्र का जल इस प्रकार एक-साथ पीछे क्यों हटा ?”

समुद्र में पहले जहाँ जल था, वहीं रेत दिख रही थी। हागामुची को अपने बचपन की एक घटना का स्मरण हुआ और वह काँप गया। तब वह बहुत छोटा था, उस समय भी समुद्र पीछे हटा था, रेत भी दिखाई पड़ी थी। उसके बाद ही आकाश छूती लहरें उमड़ पड़ी थीं। समुद्रतट से दूर तक के गाँव जलमग्न हो गए थे। हागामुची की दृष्टि दूर समुद्र पर ही टिकी थी। उसे लगा कि बहुत दूर जल में भारी उथल-पुथल मची है।

हागामुची ने लोगों को पुकारना प्रारम्भ किया; किन्तु मेले के शोरगुल में उसकी पुकार कौन सुनता ? एक ही उपाय था, लोगों की प्राणरक्षा का, कि सब लोग अविलम्ब टीले पर चढ़ जाएँ; किन्तु यह कैसे हो ? हागामुची के मन में एक विचार आया। उसने चूल्हे से जलती लकड़ी निकाली और अपने खेतों में आग लगाने दौड़ पड़ा। खड़ी पकी फसल-वर्ष भर के निर्वाह का आधार; किन्तु मनुष्यों के प्राणों का मूल्य कहीं अधिक था।
हागामुची ने क्षितिज को छूती समुद्र की लहरें देखीं। उसे लगा कि खेतों के जलने पर मेले के राग-रंग में डूबे लोग ध्यान नहीं दे रहे हैं; तभी हागामुची ने बिना क्षण भर गँवाए अपने घर में आग लगा दी, घर धू-धू करके जलने लगा।

“यह क्या ? क्या करते हैं आप?” घर के जो सदस्य टीले पर थे, चिल्लाते हुए घर से बाहर भागे। उन्हें लगा कि बूढ़ा पागल हो गया है; किन्तु लोग रोकें, इससे पूर्व ही घर से ऊँची लपटें उठने लगी थीं। मेले में सुरक्षा के लिए आए दमकलों के घंटे घनघनाने लगे। भीड़ ने लपटें देखीं, लोग टीले पर दौड़े। दुकान, सामान सब छोड़कर लोग हागामुची के घर की अग्नि बुझाने टीले पर चढ़े। इतने में तो जैसे प्रलयकाल आ गया। समुद्र एक साथ उमड़ पड़ा। आस-पास मीलों तक लहरें हाहाकार करती दौड़ पड़ी। टीले पर मेले के प्रायः सभी मनुष्य पहुँच चुके थे, उनका जीवन सुरक्षित हो गया था। अपने सर्वस्व की आहुति देकर हागामुची ने उन्हें बचा लिया था। हागामुची की मूर्ति बनाकर बाद में लोगों ने मन्दिर में रखी।
(i) मेला कहाँ और क्यों आयोजित किया जाता था ? [2]
(ii) मेले में कौन आए थे ? वे किस प्रकार आनन्द मना रहे थे ? [2]
(iii) हागामुची को बचपन की किस घटना का स्मरण हुआ और क्यों ? [2]
(iv) लोगों की प्राण-रक्षा के लिए हागामुची ने क्या उपाय किए ? [2]
(v) लोगों ने हागामुची की मूर्ति बनाकर मन्दिर में क्यों रखी? [2]
Answer:
(i) मेला, जापान के उस गाँव में पहाड़ी के नीचे समुद्र तट पर आयोजित किया गया जहाँ हागामुची रहता था। मेले का आयोजन वसंत ऋतु के स्वागत में प्रतिवर्ष के समान आनन्द और उल्लास प्रकट करने के लिए किया गया।

(ii) जापान में, उस गाँव के आस-पास की बस्तियों के स्त्री-पुरुष, बालक-युवा रंग-बिरंगे कपड़ों में उस मेले में आए थे। एक बड़े जनसमुदाय के रूप में एकत्र हुए थे। वे लोग खाने-पीने, वस्तुएँ खरीदने, गाने-बजाने तथा अन्य प्रकार के आनन्द मना रहे थे।

(iii) हागामुची को बचपन की एक ऐसी घटना का स्मरण हो आया। उस समय वह छोटा था। उस समय भी समुद्र पीछे हटा था, रेत भी दिखाई पड़ी थी। उसके बाद ही आकाश छूती लहरें उमड़ पड़ी थीं तथा समुद्र तट के अनेक गाँव जलमग्न हो गए थे। इसका कारण यह था कि उस समय भी विनाश के प्रारम्भ से पूर्व समुद्र का जल इसी प्रकार अचानक हटा तथा रेत दिखाई दी थी। इसके बाद ही समुद्र के जल में वैसी ही उथल-पुथल मची थी।

(iv) लोगों की प्राण रक्षा के लिए सबसे पहले हागामुची ने उन्हें जोर-जोर की आवाज दी कि वे शीघ्र से शीघ्र टीले पर आ जाएँ। यह समझकर कि लोग उसकी आवाज सुनने में असमर्थ हैं, उसने चूल्हे से जलती लकड़ी निकाली और तैयार फसल से पूर्ण अपने खेतों में आग लगा दी। इस प्रकार भी जब राग-रंग में डूबे बोलों ने ध्यान नहीं दिया तो आकाश छूती समुद्री लहरों से लोगों की प्राण रक्षा के लिए उसने अपने घर में भी आग लगा दी।

(v) लोगों ने हागामुची की मूर्ति बनाकर मन्दिर में लगा दी क्योंकि उसने अपना सर्वस्व बलिदान करके सभी एकत्रित लोगों के जीवन को बचा लिया था। इस प्रकार उन सभी ने हागामुची के नि:स्वार्थ त्याग के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।

Question 4.
Answer the following according to the instructions given :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए
(i) निम्न शब्दों से विशेषण बनाइए – [1]
अच्छाई, बुद्धि।
(ii) निम्न शब्दों में से किसी एक शब्द से दो पर्यायवाची शब्द लिखिए – [1]
इच्छा , रात।
(iii) निम्न शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए – [1]
बूढ़ा, साधारण, मूक, समझदार।
(iv) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए – [1]
दोनों हाथों में लड्डू होना, कान भरना।
(v) भाववाचक संज्ञा बनाइए [1]
घबराना, चिकित्सक।
(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार, वाक्यों में परिवर्तन कीजिए
(a) उनका जीवन सुरक्षित था। [1]
(नहीं का प्रयोग कीजिए, किन्तु वाक्य का अर्थ न बदले)
(b) कृपया मुझे घर पहुँचाने की कृपा करें। [1]
(वाक्य शुद्ध कीजिए)
(c) इन फूलों का रंग कितना निराला है। [1]
(वचन बदलिए)।
Answer:
(i) विशेषण शब्द
अच्छा – अच्छाई,
बुद्धि – बुद्धिमान।

(ii) पर्यायवाची शब्द
इच्छा – चाहत, आकांक्षा
रात – रात्रि, रजनी

(iii) विपरीतार्थक शब्द –
बूढ़ा – जवान
साधारण – असाधारण, विशेष
मूक – वाचाल, बातून
समझदार – नासमझ।

(iv) मुहावरों का वाक्य प्रयोग –
दोनों हाथों में लड्डू होना – हर प्रकार लाभ होना
वाक्य प्रयोग – सेनापति ने कहा कि हमारे दोनों हाथों में लड्डू हैं, क्योंकि शहीद होने पर स्वर्ग मिलेगा और विजयी होने पर संसार के सुख प्राप्त होंगे।
कान भरना – चुगली करना, शिकायत करना।
वाक्य प्रयोग – राजू इन दिनों सबके कान भरने की आदत के कारण ही मित्रों में कुख्यात है।

(v) भाववाचक संज्ञाघबराना-घबराहट –
चिकित्सक – चिकित्सा।

(vi) कोष्ठक में दिये गये निर्देशानुसार वाक्य परिवर्तन –
(a) उनका जीवन सुरक्षित नहीं था
(b) मुझे घर पहुँचाने की कृपा करें।
(c) इस फूल का रंग कितना निराला है।

Section – B (40 Marks)

  • गद्य संकलन : Out of Syllabus
  • चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य : Out of Syllabus
  • एकांकी सुमन : Out of Syllabus
  • काव्य-चन्द्रिका : Out of Syllabus

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