ICSE Class 10 Hindi Solutions एकांकी-संचय - महाभारत की एक साँझ

ICSE Class 10 Hindi Solutions एकांकी-संचय – महाभारत की एक साँझ

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
कह नहीं सकता संजय किसके पापों का परिणाम है, किसकी भूल थी जिसका भीषण विष फल हमें मिला। ओह! क्या पुत्र-मोह अपराध है, पाप है? क्या मैंने कभी भी…कभी भी…
उपर्युक्त अवतरण के वक्ता कौन है? उनका परिचय दें।

उत्तर:
उपर्युक्त अवतरण के वक्ता धृतराष्ट्र हैं। धृतराष्ट्र जन्म से ही नेत्रहीन थे। वे कौरवों के पिता हैं। दुर्योधन उनका जेष्ठ पुत्र हैं। इस समय वे अपने मंत्री संजय के सामने अपनी व्यथा को प्रकट कर रहे हैं।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
कह नहीं सकता संजय किसके पापों का परिणाम है, किसकी भूल थी जिसका भीषण विष फल हमें मिला। ओह! क्या पुत्र-मोह अपराध है, पाप है? क्या मैंने कभी भी…कभी भी…
यहाँ पर श्रोता कौन है? वह वक्ता को क्या सलाह देता है और क्यों?

उत्तर :
यहाँ पर श्रोता धृतराष्ट्र का मंत्री है। उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त थी। अपनी दिव्य दृष्टि की सहायता से वे धृतराष्ट्र को महाभारत के युद्ध का वर्णन बताते रहते हैं। इस समय वे धृतराष्ट्र को शांत रहने की सलाह देते हैं। संजय के अनुसार जो हो चुका है उस पर शोक करना व्यर्थ है।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
कह नहीं सकता संजय किसके पापों का परिणाम है, किसकी भूल थी जिसका भीषण विष फल हमें मिला। ओह! क्या पुत्र-मोह अपराध है, पाप है? क्या मैंने कभी भी…कभी भी…
यहाँ पर भीषण विष फल किस ओर संकेत करता है स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
यहाँ पर धृतराष्ट्र के अति पुत्र-मोह से उपजे महाभारत के युद्ध की ओर संकेत किया गया है। पुत्र-स्नेह के कारण दुर्योधन की हर अनुचित माँगों और हरकतों को धृतराष्ट्र ने उचित माना। धृतराष्ट्र ने पुत्र-मोह में बड़ों की सलाह, राजनैतिक कर्तव्य आदि सबको नकारते हुए अपने पुत्र को सबसे अहम् स्थान दिया और जिसकी परिणिति महाभारत के भीषण युद्ध में हुई।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
कह नहीं सकता संजय किसके पापों का परिणाम है, किसकी भूल थी जिसका भीषण विष फल हमें मिला। ओह! क्या पुत्र-मोह अपराध है, पाप है? क्या मैंने कभी भी…कभी भी…
पुत्र-मोह से क्या तात्पर्य है?

उत्तर:
पुत्र-मोह से यहाँ तात्पर्य अंधे प्रेम से है। धृतराष्ट्र अपने जेष्ठ पुत्र दुर्योधन से अंधा प्रेम करते थे इसलिए वे उसकी जायज नाजायज सभी माँगों को पूरा करते थे। इसी कारणवश दुर्योधन बचपन से दंभी और अहंकारी होता गया।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जिस कालाग्नि को तूने वर्षों घृत देकर उभारा है, उसकी लपटों में साथी तो स्वाहा हो गए! उसके घेरे से तू क्यों बचना चाहता है? अच्छी तरह समझ ले, ये तेरी आहुति लिए बिना शांत न होगा।
दुर्योधन अपनी प्राण रक्षा के लिए क्या करता है?

उत्तर:
महाभारत के युद्ध में सभी मारे जाते हैं केवल एक अकेला दुर्योधन बचता है। युद्ध तब तक समाप्त नहीं माना जा सकता था जब तक कि दुर्योधन मारा नहीं जाता। इस समय दुर्योधन घायल अवस्था में है और अपने प्राण बचाने के लिए द्वैतवन के सरोवर में छिप जाता है।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जिस कालाग्नि को तूने वर्षों घृत देकर उभारा है, उसकी लपटों में साथी तो स्वाहा हो गए! उसके घेरे से तू क्यों बचना चाहता है? अच्छी तरह समझ ले, ये तेरी आहुति लिए बिना शांत न होगा।
उपर्युक्त कथन किसका का है? कथन का संदर्भ स्पष्ट करें।

उत्तर:
उपर्युक्त कथन भीम का है। प्रस्तुत कथन का संदर्भ दुर्योधन को सरोवर से बाहर निकालने का है। दुर्योधन
महाभारत के युद्ध में घायल हो जाता है और भागकर द्वैतवन के सरोवर में छिप जाता है। वह उसमें से बाहर नहीं निकलता है। तब उसे सरोवर से बाहर निकालने के लिए भीम उसे उपर्युक्त कथन कहकर ललकारता है।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जिस कालाग्नि को तूने वर्षों घृत देकर उभारा है, उसकी लपटों में साथी तो स्वाहा हो गए! उसके घेरे से तू क्यों बचना चाहता है? अच्छी तरह समझ ले, ये तेरी आहुति लिए बिना शांत न होगा।
उपर्युक्त कथन का दुर्योधन ने युधिष्ठिर को क्या उत्तर दिया?

उत्तर:
उपर्युक्त कथन का दुर्योधन ने उत्तर दिया कि वह सभी बातों को भली-भाँति जानता है लेकिन वह थककर चूर हो चुका है। उसकी सेना भी तितर-बितर हो गई है, उसका कवच फट गया है और उसके सारे शस्त्रास्त्र चूक गए हैं। उसे समय चाहिए और उसने भी पांडवों को तेरह वर्ष का समय दिया था।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जिस कालाग्नि को तूने वर्षों घृत देकर उभारा है, उसकी लपटों में साथी तो स्वाहा हो गए! उसके घेरे से तू क्यों बचना चाहता है? अच्छी तरह समझ ले, ये तेरी आहुति लिए बिना शांत न होगा।
‘घृत देकर उभारा है’ से क्या तात्पर्य है स्पष्ट करें।

उत्तर:
घृत उभारा है से तात्पर्य दुर्योधन की ईर्ष्या से है। भीम दुर्योधन से कहता है कि वर्षों से तुमने इस ईर्ष्या का बीज बोया है तो अब फसल तो तुम्हें ही काटनी होगी। कितनों को उसने इस ईर्ष्या रूपी अग्नि में जलाया है लेकिन आज स्वयं उन आग की लपटों से बचना चाहता है।

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जिस राज्य पर रत्ती भर भी अधिकार नहीं था, उसी को पाने के लिए तुमने युद्ध ठाना, यह स्वार्थ का तांडव नृत्य नहीं तो और क्या है? भला किस न्याय से तुम राज्याधिकार की माँग करते थे?
उपर्युक्त अवतरण के वक्ता तथा श्रोता के बारे में बताइए।

उत्तर:
उपर्युक्त अवतरण के वक्ता युधिष्ठिर और श्रोता दुर्योधन है। इस समय वक्ता युधिष्ठिर मरणासन्न श्रोता दुर्योधन को शांति प्रदान करने के उद्देश्य से आए हैं। इस समय दोनों के मध्य उचित अनुचित विचारों पर वार्तालाप चल रहा है।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जिस राज्य पर रत्ती भर भी अधिकार नहीं था, उसी को पाने के लिए तुमने युद्ध ठाना, यह स्वार्थ का तांडव नृत्य नहीं तो और क्या है? भला किस न्याय से तुम राज्याधिकार की माँग करते थे?
उपर्युक्त अवतरण में किस अधिकार की बात की जा रही है?

उत्तर:
उपर्युक्त अवतरण में राज्य के वास्तविक उत्तराधिकारी के संदर्भ में बात की जा रही है। यहाँ पर युधिष्ठिर का कहना है कि राज्य पर उनका वास्तविक अधिकार था यह जानते हुए भी दुर्योधन यह मानने के लिए कभी तैयार नहीं हुआ और इस कारण परिवार में ईर्ष्या और और झगड़े बढ़कर अंत में महाभारत के युद्ध में तब्दील हो गए।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जिस राज्य पर रत्ती भर भी अधिकार नहीं था, उसी को पाने के लिए तुमने युद्ध ठाना, यह स्वार्थ का तांडव नृत्य नहीं तो और क्या है? भला किस न्याय से तुम राज्याधिकार की माँग करते थे?
प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य लिखिए।

उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य यह है कि आप चाहे कितने भी कूटनीतिज्ञ, बलवान और बुद्धिमान क्यों न हो परंतु यदि आप का रास्ता धर्म का नहीं है तो आपका अंत होना निश्चित है। साथ यह एकांकी मनुष्य को त्याग और सहनशीलता का पाठ भी पढ़ाती है। यही वे दो मुख्य कारण थे जिसके अभाव में महाभारत का युद्ध लड़ा गया। इसके अतिरिक्त इस एकांकी का एक और उद्देश्य यह भी दिखाना था कि इस युद्ध के लिए कौरव और पांडव दोनों ही पक्ष बराबर जिम्मेदार थे।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जिस राज्य पर रत्ती भर भी अधिकार नहीं था, उसी को पाने के लिए तुमने युद्ध ठाना, यह स्वार्थ का तांडव नृत्य नहीं तो और क्या है? भला किस न्याय से तुम राज्याधिकार की माँग करते थे?
महाभारत के युद्ध से हमें कौन-सी सीख मिलती है?

उत्तर:
महाभारत का युद्ध तो शुरू से लेकर अंत तक सीखों से ही भरा पड़ा हैं परंतु मुख्य रूप से यह युद्ध हमें यह सीख देता है कि कभी भी पारिवारिक धन-संपत्ति के लिए अपने ही भाईयों से ईर्ष्या और वैमनस्य नहीं रखना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के लड़ाई-झगड़े में जीत कर भी हार ही होती है।