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द्वन्द्व समास की परिभाषा – (Dwand samas ki paribhasha)
जिस समास में दोनों पद समानतः प्रधान होते हैं। इसमें समुच्चयबोधक अव्यय का लोप कर दिया जाता है।
द्वन्द्व समास तीन प्रकार के होते हैं–
1. इतरेतर द्वन्द्व : इस कोटि के समास में समुच्चयबोधक अव्यय ‘और’ का लोप हो जाता है।
जैसे–
- सीताराम, गाय–बैल, दाल–भात, नाक–कान आदि।
2. वैकल्पिक द्वन्द्व : इस समास में विकल्प सूचक समुच्चयबोधक अव्यय ‘वा’, ‘या’, अथवा’ का प्रयोग होता है, जिसका समास करने पर लोप हो जाता है ।
जैसे–
- धर्म या अधर्म = धर्माधर्म
- सत्य या असत्य = सत्यासत्य
- छोटा या बड़ा = छोटा–बड़ा
3. समाहार द्वन्द्व : इस कोटि के समास में प्रयुक्त पदों के अर्थ के अतिरिक्त उसी प्रकार का और भी अर्थ सूचित होता है।
जैसे–
- दाल, रोटी वगैरह = दाल–रोटी
- कपड़ा, लत्ता वगैरह = कपड़ा–लत्ता
ध्यातव्य बिन्दु : जब दोनों पद विशेषण हों और उसी अर्थ में आए तब वह द्वन्द्व न होकर कर्मधारय हो जाता है।
जैसे-
- भूखा–प्यासा लड़का रो रहा है।
यहाँ ‘भूखा–प्यासा’ लड़के का विशेषण है। अतः, कर्मधारय के अन्तर्गत आएगा। अव्ययीभाव समास में दो ही पद होते हैं। बहुव्रीहि में दो से ज्यादा, तत्पुरुष में भी दो से अधिक पद देखे जाते हैं; परन्तु द्वन्द्व समास में तो बहुत ज्यादा पद भी हो सकते हैं। जैसे
आज मेहमानों को भात–दाल–तरकारी–तिलौड़ी–पापड़–घी–सलाद–दही आदि खिलाए गए।
रेखांकित पद द्वन्द्व समास के हैं।
आधुनिक नवीन पद्धति :
प्रयोग की दृष्टि से समास के मुख्यतः तीन प्रकार माने गए हैं–
1. संज्ञा समास या संयोगमूलक समास
इसे ‘द्वन्द्व समास’ अथवा ‘संज्ञा समास’ के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार के समास में दोनों पदों पर संज्ञाएँ होती हैं। इसके सभी पद प्रधान होते हैं, परन्तु जहाँ योजक–चिह्न नहीं लगता, वहाँ तत्पुरुष समास होता है।
जैसे-
- माता–पिता : द्वन्द्व समास
- गंगाजल : तत्पुरुष समास
2. आश्रयमूलक या विशेषण समास यह प्रायः कर्मधारय समास होता है। इसका दूसरा पद प्रधान होता है ।
जैसे-
- कच्चामाल = कच्चा माल
3. वर्णनमूलक या अव्यय समास
इस समास के अन्तर्गत बहुव्रीहि और अव्ययीभाव समास आते हैं। इसमें प्रथम पद साधारणतः अव्यय और दूसरा पद संज्ञा का काम करता है।
जैसे–
- प्रतिमास आदि।