Deep Pratyay in Sanskrit - डीप् प्रत्यय: - Deep Pratyay ke Udaharan - परिभाषा, भेद, संस्कृत व्याकरण

डीप् प्रत्यय: – Deep Pratyay in Sanskrit

डीप् प्रत्यय: की परिभाषा

(i) ऋन्नेभ्यो डीप – ऋकारान्त और (स्त्री) नकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग में (प्रत्यय) ङीप् प्रत्यय होता है। इसका ‘ई’ शेष रहता है, जैसे –
कर्तृ+ङीप् = की, धातृ – धात्री, कामिन् – कामिनी, दण्डिन् – दण्डिनी, राजन् राज्ञी आदि।

(ii) उगितश्च – जहाँ पर उ, ऋ, लु का लोप हुआ हो, उन प्रत्ययों से बने हुए शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् (ई) प्रत्यय होता है। यथा–
भवत् + ई = भवती, श्रीमती, बुद्धिमती आदि।

विशेष – किन्तु भ्वादि, दिवादि, तुदादि और चुरादिगण की धातुओं से तथा णिच् प्रत्ययान्त शब्दों से ङीप् करने पर ‘त’ से पूर्व ‘न्’ हो जाता है। जैसे –

भवन्ती, पचन्ती, दीव्यन्ती, नृत्यन्ती, गच्छन्ती आदि।
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(iii) टिड्ढाणद्वयस – टित् शब्दों से तथा ढ, अण् आदि प्रत्ययों से निष्पन्न शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् (ई) प्रत्यय होता है। यथा–

कुरुचरी, नदी, देवी; पार्वती, कुम्भकारी, औत्सी, भागिनेयी, लावणिकी, यादृशी, इत्वरी आदि।
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(iv) वयसि प्रथमे (पा.सू.) – प्रथम वय (उम्र) वाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग में डीप होता है। जैसे –

कुमारी, किशोरी, वधूटी, चिरण्टी आदि।
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(v) षिद्गौरादिभ्यश्च (पा.सू.) – जहाँ ‘ष’ का लोप हुआ हो (षित्) तथा गौर, नर्तक, नट, द्रोण, पुष्कर आदि गौरादिगण में पठित शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा

गौरी, नर्तकी, नटी, द्रोणी, पुष्करी, हरिणी, सुन्दरी, मातामही, पितामही, रजकी, महती आदि।

(vi) द्विगो: – द्विगुसमास में अकारान्त शब्द से डीप् (ई) होता है। जैसे पंचमूली, त्रिलोकी।

  • द्विगुसंज्ञकशब्दाः + ङीप् प्रत्ययः – ङीबन्ताः शब्दाः
  • पञ्चानां पूलानां समाहारः पञ्चपूल + ङीप् – पञ्चपूली
  • पञ्चानां मूलानां समाहारः पञ्चमूल + ङीप् पञ्चमूली
  • त्रयाणां लोकानां समाहारः त्रिलोक + ङीप त्रिलोकी
  • अष्टानाम् अध्यायानां समाहारः अष्टाध्याय + ङीप् अष्टाध्यायी

(vii) पुंयोगादाख्यायाम – पुरुषवाचक अकारान्त शब्द प्रयोग से स्त्रीलिंग हो तो उससे ङीष् (ई) हो जाता है। यथा–

  • गोपस्य स्त्री – गोप+ई = गोपी, शूद्रस्य स्त्री – शूद्र+ई = शूद्री।

(viii) जातेरस्त्रीविषयादयोपधात् – जो नित्य स्त्रीलिंग और योपध नहीं है, ऐसे जातिवाचक शब्द से स्त्रीलिंग में डीष होता है। ङीष का भी ‘ई’ शेष रहता है। यथा–

  • ब्राह्मण+ई ब्राह्मणी, मृग – मृगी, महिषी, हंसी, मानुषी, घटी, वृषली आदि।

(ix) इन्द्रवरुणभवशर्व – इन्द्र आदि शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने पर आनुक् (आन्) और ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा–

  • इन्द्र की स्त्री – इन्द्र + आन्+ई = इन्द्राणी, वरुण – वरुणानी,
  • भव – भवानी, शर्व – शर्वाणी, मातुल – मातुलानी,
  • रुद्र – रुद्राणी, आचार्य – आचार्यानी आदि।

(x) ‘यव’ शब्द से दोष अर्थ में, यवन शब्द से लिपि अर्थ में तथा अर्य एवं क्षत्रिय शब्द से स्वार्थ में आनुक्. (आन्) और ङीष् (ई) होता है। जैसे–

  • यव + आन् + ई = यवानी, यवन + आन् + ई = यवनानी।
  • मातुलानी, उपाध्यायानी, अर्याणी, क्षत्रियाणी – इनमें भी स्त्री अर्थ में डीष् होता है।

(xi) हिमारण्ययोर्महत्त्वे – महत्त्व अर्थ में हिम और अरण्य शब्द से ङीष् और आनुक होता है। यथा–

  • महद् हिमं – हिम + आन् + ई = हिमानी। (हिम की राशि)
  • महद् अरण्यम् अरण्यानी (विशाल अरण्य)

(xii) वोतो गुणवचनात् – गुणवाचक उकारान्त शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए विकल्प से ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा–

  • मृदु से मृद्वी, पटु से पट्वी, साधु से साध्वी।

(xiii) इतो मनुष्यजाते: – इदन्त मनुष्य जातिवाचक शब्द से स्त्रीलिंग बनाने पर ङीष् (ई) होता है। जैसे –

  • दाक्षि + ई = दाक्षी (दक्ष के पुत्र की स्त्री)

(xiv) बहु आदि शब्दों से, शोण तथा कृत्प्रत्ययान्त इकारान्त शब्दों से तथा नासिका – उत्तरपद वाले शब्दों से विकल्प से ङीष् प्रत्यय होता है। यथा–

  • बहु – बह्वी, बहुः – शोण – शोणी, शोणा
  • रात्रि – रात्री, रात्रिः – तुङ्गनासिका – तुङ्गनासिकी
  • अतिकेशा – अतिकेशी – चन्द्रमुखा – चन्द्रमुखी
  • शकट – शकटी, शकटिः – रोहिता – रोहिणी