NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 2 हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी
Class 11 Hindi Chapter 2 Question Answer Antral हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी
प्रश्न 1.
लेखक ने अपने पाँच मित्रों के जो शब्द चित्र प्रस्तुत किए हैं, उनसे उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक मिलती है। फिर भी वे घनिष्ठ मित्र हैं, कैसे ?
उत्तर :
पाँच मित्र. ये थे –
- मोहम्मद इब्राहीम गोहर अली – ये इत्र बेचने का काम करने वाले थे। कद छोटा था, पर नजर ठहरी हुई थी। गुणवान थे।
- डॉक्टर मनव्वरी का लड़का अरशद – इसका चेहरा हमेशा हँसता रहता था। यह गाने और खाने का शौकीन था। शरीर पहलवान जैसा कसा हुआ था।
- हामिद कंबर हुसैन – इसे कुश्ती और दंडबैठक का शौक था। गण्प हाँकने में कुशल। बात मिलाने में कुशल था।
- अब्बास जी अहमद – इसका शरीर गठा हुआ था। आँखें जापानी-सी थीं। स्वभाव से बिजनेसमैन लगता था। हँसने का ढंग बड़ा आकर्षक था।
- अब्बास अली फिदा-इसका लहजा बड़ा नरम था। उसका माथा ऊँचा था। वह वक्त का पाबंद था। किताब पढ़ता रहता था।
मित्रता के सूत्र में बाँधने वाले तत्त्व
- सभी एक ही कक्षा के छात्र थे।
- सभी शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ थे।
- सभी खुशमिजाज थे, अतः मित्रता निभ सकती थी।
प्रश्न 2.
आप इस बात को कैसे कह सकते हैं कि लेखक का अपने दादा से विशेष लगाव रहा ?
उत्तर :
लेखक का अपने दादा से विशेष लगाव था। दादा की मृत्यु के उपरान्त भी वह दादा के कमरे में बंद रहता था। सोता भी दादा के बिस्तर और दादा की भूरी अचकन ओढ़कर, जैसे दादा उसके बगल में सो रहे हों। घर में किसी से बातचीत नहीं करता था, बस गुम-सुम रहता था।
प्रश्न 3.
लेखक जन्मजात कलाकार है’- इस आत्मकथा में सबसे पहले यह कहाँ उद्याटित होता है?
उत्तर :
जब स्कूल में ड्राइंग मास्टर मोहम्मद अथर ने ब्लैकबोर्ड पर सफेद चॉक से एक बहुत बड़ी चिड़िया बनाई और लड़कों से कहा- “अपनी-अपनी स्लेट पर इसकी नकल करो- “तब मकबूल ने अपनी स्लेट पर हू-ब-हू वही चिड़िया बना दी। ऐसा लगा कि ब्लैकबोर्ड की चिड़िया मकबूल की स्लेट पर आ बैठी है। उसे दस में से दस नंबर मिले। यहीं से पता चलता है कि मकबूल जन्मजात कलाकार था। इसके बाद तो यह कलाकार निरंतर आगे बढ़ता ही चला गया। गाँधीजी के जन्मदिन पर उसने क्लास के ब्लैकबोर्ड पर गाँधीजी का पोट्रेट बना दिया था।
प्रश्न 4.
दुकान पर बैठे-बैठे भी मकबूल के भीतर का कलाकार उसके किन कार्यकलापों से अभिव्यक्त होता है?
उत्तर :
मकबूल को कई तरह की दुकानों पर बिठाया गया। वह उन दुकानों पर बैठा तो सही, मगर उसका सारा ध्यान ड्राइंग और पेंटिंग पर ही रहता था। उसे न तो चीजों की कीमतें याद रहती थीं और न कपड़ों की पहनाई का पता रहता। हिसाब में दस रुपए लिखता तो किताब में बीस स्केच बनाता था। वह जनरल स्टोर पर बैठे-बैठे सामने से गुजरने वाली मेहतरानी का स्केच बनाता था, बोरी उठाए मजदूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच बनाता था, पठान की दाढ़ी का स्केच, बुरका पहने औरत का स्केच तथा बकरी के बच्चे का स्केच बनाता रहता था। उसके इन क्रिया-कलापों से उसके भीतर का कलाकार अभिव्यक्त होता रहता था।
प्रश्न 5.
प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और वर्तमान तरीकों में क्या फर्क आया है? पाठ के आधार पर बताएँ।
उत्तर :
पहले ताँगे पर इश्तिहार लगा दिया जाता था। फिल्म का इश्तिहार ताँगे में लगाकर ब्रास बैंड के साथ शहर के गली-कूचों में घुमाया जाता था। तब फिल्मी इश्तिहार रंगीन पतंग के कागज पर हीरो-हीरोइन की तस्वीरों के साथ बाँटे जाते थे। वर्तमान समय में प्रचार-प्रसार के तरीकों में बड़ा अंतर आ गया है। अब टी.वी. के विज्ञापनों से प्रचार-प्रसार किया जाता है। तरह-तरह की इनामी प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। सभी बड़ी कंपनियाँ फिल्मी कलाकारों अथवा खिलाड़ियों को अपना ब्रांड एंबेस्डर नियुक्त करती हैं।
प्रश्न 6.
कला के प्रति लोगों का नजरिया पहले कैसा था? उसमें अब क्या बदलाव आया है?
उत्तर :
आर्ट के प्रति पहले लोगों का नजरिया अच्छा नहीं था। उसे कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता था। कोई भी बाप अपने बेटे को आर्ट की तालीम नहीं दिलाना चाहता था। आर्ट को काम नहीं माना जाता था। इसे समय बर्बाद करने वाला माना जाता था। अब आर्ट के प्रति लोगों का नज़रिया बदला है। अब आर्टिस्ट को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। अच्छे आर्टिस्ट की पेंटिंग काफी महँगे दामों पर बिकती हैं। आर्ट को एक अच्छा व्यवसाय भी मान लिया गया है।
प्रश्न 7.
इस पाठ में मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी बातें उभरकर आई हैं?
उत्तर :
इस लेख में मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की निम्नलिखित बातें उभरकर आती हैं-
1. संतान के भविष्य के प्रति चिंतित – जब मकबूल के दादाजी चल बसे तब मकबूल उनकी ही यादों में खोया रहता था। वह गुमसुम रहने लगा था। मकबूल के पिता ने पुत्र के भविष्य का ध्यान करके उसे बड़ौदा के बोर्डिंग हाउस में भेजने का फैसला किया।
2. धार्मिक व्यक्तित्व – मकबूल के पिता धार्मिक (मज़हबी) थे। वे चाहते थे कि उनका बेटा भी पढ़ाई के साथ-साथ मज़हबी तालीम ले, रोजा-नमाज़ को समझे तथा अपना आचरण अच्छा सीखे। वे पवित्रता पर भी बल देते थे।
3. दूरदर्शी – मकबूल ने प्रसिद्ध चित्रकार बेंद्रे को अपने अब्बा से मिलवाया। बेंद्रे ने मकबूल के काम पर बात की। मकबूल के अब्बा को बात समझ आ गई। दूसरे दिन उन्होंने ‘विनसर न्यूटन’ से ऑयल ट्यूब और कैनवस मँगवाने का ऑर्डर भिजवा दिया। इससे मकबूल के उज्ज्वल भविष्य की नींव रख गई। उन्होंने तमाम पुरानी परंपराओं को तोड़ दिया और बेटे को कहा-” बेटा, जाओ और जिदंगी को रंगों से भर दो।”
Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antral Chapter 2 हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी
प्रश्न 1.
मकबूल को कहाँ छोड़ा जाता है? वहाँ उसकी दोस्ती किन-किन के साथ होती है?
उत्तर :
मकबूल को बड़ौदा के बोर्डिंग के अहाते में छोड़ा जांता है। यहाँ उसकी दोस्ती छः लड़कों से होती है, जो एक-दूसरे के करीब हो जाते हैं। दो साल की नज़दीकी तमाम उमर कभी दिल की दूरी में बदल नहीं पाई। हालाँकि हर एक अलग-अलग दिशाओं में बँटे, छ: हीले और बहाने हुए। एक डभोई का अत्तर व्यापारी बना तो दूसरा सियाजी रेडियो की आवाज़। तीसरा बना कराची का नागरिक, तो चौथा मोती की तलाश में कुवैत पहुँचा। पाँचवाँ पहुँचा बंबई और अपना कोट-पतलून और पीली धारी की टाई उतार फेंकी, अबा-कबा पहन मस्जिद का मेंबर बना। छठा उड़ने वाले घोड़े पर, पैर रकाब में डाले बना कलाकार और दुनिया की लंबाई-चौड़ाई में चक्कर मार रहा है।
प्रश्न 2.
मकबूल के स्कूली जीवन की दो-तीन झलकियाँ प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
मकबूल के स्कूली जीवन की कुछ झलकियौँ प्रस्तुत हैं :
1. मकबूल ने खेल-कूद में हिस्सा लिया, हाई जंप में पहला इनाम, दौड़ में फिसड्डी। जब ड्राइंग मास्टर मोहम्मद अथर ने ब्लैकबोर्ड पर सफेद चॉक से एक बहुत बड़ी चिड़िया बनाई और लड़कों से कहा- “अपनी-अपनी स्लेट पर उसी की नकल करो।” तो मकबूल की स्लेट् पर हू-ब-हू वही चिड़िया ब्लैक बोर्ड से उड़कर आ बैठी। दस में से दस नंबर।
2. दो अक्तूबर, स्कूल गाँधीजी की सालगिरह मना रहा है। क्लास शुरू होने से पहले मकबूल गाँधीजी का पोट्रेट, ब्लैकबोर्ड पर बना चुका है। अब्बास तैयबजी देखकर बहुत खुश हुए।
3. मदरसे के जलसे पर मौलवी अकबर ने मकबूल को ‘इलम’ (ज्ञान) पर दस मिनट का भाषण याद कराया, बाकायदा अभिनय के साथ, उसमें एक फारसी का शेर था। ‘कस्बे कमाल कुन कि अजीजत जहाँ शवी। कस बेकमाल नियारज़द अज़ीज़े मन’ जिसने हुनर में कमाल हासिल किया, वह सारी दुनिया का चहेता, वह जिसके पास कोई हुनर का कमाल नहीं, वह कभी दिलों को जीत नहीं सकता। किसे मालूम यह कस्बे कमाल हुनर का कमाल सारी दुनिया में फैलेगा।
प्रश्न 3.
दुकान पर बैठकर मकबूल का ध्यान कहाँ रहता था?
उत्तर :
छोटे भाई मुरादअली से पहलवानी छुड़वाकर दुकानें लगवाई गई। जनरल स्टोर न चला तो कपड़े की दुकान, वह भी नहीं चली तो तोपखाना रोड पर आलीशान रेस्तराँ। मकबूल उन दुकानों पर बैठा, मगर उसका सारा ध्यान ड्राइंग और पेंटिंग में। न चीज़ों की कीमतें याद, न कपड़ों की पहनाई का पता। हाँ, मुराद चाचा के होटल में घूमती हुई चाय की प्यालियों की गिनती और पहाड़े उसे ज़बानी याद रहते। गल्ले का हिसाब-किताब सही। शाम को हिसाब में दस रुपए लिखे तो किताब में बीस स्केच किए।
प्रश्न 4.
एक दिन सिनेमा का इश्तिहार देखकर मकबूल पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर :
एक दिन दुकान के सामने से फिल्मी इश्तिहार का ताँगा गुज़रा (साइलेंट फिल्मों के ज़माने में शहर में चल रही फिल्म का इश्तिहार ताँगे में ब्रास बैंड के साथ शहर के गली-कूचों से गुजरा। फिल्मी इश्तिहार रंगीन पतंग के कागज़ पर हीरो-हीरोइन की तस्वीरों के साथ छपे, बाँटे गए)। कोल्हापुर के शांताराम की फिल्म ‘सिहंगढ़’ का पोस्टर, रंगीन पतंग के कागज पर छपा, मराठा योद्धा, हाथ में खिंची तलवार और ढाल। मकबूल का जी चाहा कि उसकी ऑयल पेंटिंग बनाई जाए। उसने आज तक ऑयल कलर इस्तेमाल ही नहीं किया था। वही रंगीन चॉक या वॉटर कलर। अब्बा तो बेटे को बिज़नेसमैन बनाने के सपने देख रहे थे, रंग-रोगन क्यों दिलाते। मगर इस पोस्टर ने मकलूल को इस कदर भड़काया कि वह गया सीधा अली हुसैन रंगवाले की दुकान पर और अपनी दो स्कूल की किताबें, शायद भूगोल और इतिहास, बेचकर ऑयल कलर की ट्यूबें खरीद डाली और पहली ऑयल पेंटिंग को चाचा की दुकान पर बैठ कर बनाया। चाचा बहुत नाराज, बड़े भाई तक शिकायत पहुँचाई। अब्बा ने पेंटिंग देखी और बेटे को गले लगा लिया।
प्रश्न 5.
मकबूल और बेंद्रे के आपसी परिचय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
जब मकबूल इंदौर सर्राफा बाज़ार के करीब ताँबे-पीतल की दुकानों की गली में लैंडस्केप बना रहा था, वहाँ बेंद्रे साहब भी ऑनस्पॉट पेंटिंग करते मिले। मकबूल को बेन्द्रे साहब की टेकनीक बहुत पसंद आई। टिंटेड पेपर पर ‘गोआश वॉटर कलर’। इस इत्तफाकी मुलाकात के बाद मकबूल अकसर बेन्द्रे दे साथ लैंडस्केप पेंट करने जाया करता। 1933 में बेंद्रे ने कैनवस पर एक बड़ी पेंटिंग घर में पेंट करना शुरू की। ‘वैगबांड़’ था इस पेंटिंग का नाम। अपने छोटे भाई को एक नौजवान पठान के कपड़े पहनाकर मॉडल बनाया। सिर पर हरा रूमाल बाँधा, कंधे पर कंबल, हाथ में डंडा। ‘सूरा’ और ‘डेगा’ रू? के ! शं:गन की झलक। रॉयल अकादमी का रूखा रियलिज़्म, उस पर एक्सप्रेशनिस्ट ब्रश स्ट्रोक का ढाँचा। इस पेंटिंग पर बेन्द्रे को बंबई आर्ट सोसाइटी ने चाँदी का मेडल दिया। मकबूल की पेंटिंग की शुरुआत और इंदौर जैसी जगह, सिवाय बेंद्रे के कोई नहीं। वह उनके पास जाता रहा और एक दिन उन्हें अपने घर ले आया। अब्बा से मिलाया। बेन्द्रे ने मकबूल के काम पर बात की। अब्बा इस बातचीत से प्रभावित हुए।
प्रश्न 6.
बड़ौदा के छात्रावास का कैसा दृश्य था?
उत्तर :
दारूलतुलबा (छात्रावास) मदरसा हुसामिया, सिंह बाई माता रोड, गैडी गेट पर स्थित थे। तालाब के किनारे सुलेमानी जमात का बोर्डिंग स्कूल था। यह गुजरात की मशहूर ‘अरके तिहाल’ की ख्याति वाले, जी एम हकीम अब्बास तैयबजी की देख-रेख में चलता था। वे नेशनल कांग्रेस और गाँधीजी के अनुयायी थे, इसीलिए छात्रों के मुँड़े सिरों पर गाँधी टोपी और बदन पर खादी का कुरता-पायजामा नज़र आता था।
प्रश्न 7.
बताएँ कि मकबूल ने पेंटर बनने का सफर किस प्रकार तय किया ?
उत्तर :
मकबूल में आर्ट को समझने की प्रतिभा जन्मजात थी। सबसे पहले उन्होंने बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल के ड्राईंग मास्टर की ब्लैक-बोर्ड पर बनाई चिड़िया की हू-बहू नकल की। उस चिड़िया को देखकर ऐसा लगता था जैसे ब्लैक-बोर्ड से उड़कर चिड़िया मकबूल की प्लेट पर आ बैठी हो। 2 अक्टूबर को मकबूल ने क्लास शुरू होने से पहले ब्लैक-बोर्ड पर गाँधी जी का पोट्रेट बनाया जिसकी तारीफ अब्बास तैयबजी ने की। बड़ौदा का स्कूल छोड़ने पर मकबूल अपने चाचा के साथ खाली समय उनकी दुकान पर बैठते थे।
मकबूल का ध्यान दुकान की चीजों के नाम और दाम पर कम था। उसका सारा ध्यान दुकान के अन्य क्रियाकलापों में अधिक लगता था। अक्सर वह जनरल स्टोर के समाने से गुजरने वाले राहगीरों के स्केच बनाता रहता था। घूँघट निकाले मेहतरानी का स्केच, गेहूँ की बोरी उठाए मजदूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच, पठान की दाढ़ी और माथे पर सिजदे के निशान वाला स्केच, बुरका पहने औरत और बकरी के बच्चे का स्केच।
इस प्रकार मकबूल अपने पेंटिंग के शौक को पूरा करता रहा। एक दिन दुकान के आगे से फिल्मी इश्तिहार (पोस्टर) का ताँगा गुजरा जिसमें कोल्हापुर के शांताराम की फिल्म ‘सिंहगढ़’ के पोस्टर थे। उस पोस्टर पर एक मराठा योद्धा का चित्र था जिसके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढाल थी। उस पोस्टर को देखकर मकबूल का मन उस पर बने चित्र की ऑयल पेंटिंग बनाने का किया। उसने की ऑयल पेंटिंग नहीं बनाई थी।
अपने शोक को पूरा करने के लिए उसने अपनी दो किताबें बेचकर ऑयल कलर ट्यूब खरीदी और चाचा की दुकान पर बैठकर ऑयल पेंटिंग बनाई चाचा ने इस बात की शिकायत अपने बड़े भाई मकबूल के पिता से की। उन्होंने पेंटिंग देखकर उसे गले लगा लिया। मकबूल की मुलाकात इंदौर में बेंद्रे साहब से हुई। वह उनसे अक्सर मिलने लगा और पेंटिंग के तरीके सीखने लगा। उसकी लगन ये देखकर एक दिन बैंद्रे ने उसके कहने पर उसके पिता से मुलाकात की और उसके काम पर बात की। मकबूल के पिता ने भी सारी पुरानी परंपराओं को तोड़ते हुए मकबूल को अपनी जिंदग में रंग भरने की इजाजत दे दी। इस प्रकार मकबूल ने अपना पेंटर बनने का सफर तय किया।
प्रश्न 8.
प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और नवीन तरीकों में आपको कौन-सा तरीका पसंव है और क्यों?
उत्तर :
प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों में पोस्टर चिपकाना, लाउडस्पीकर पर उसके बारे में बताना, इश्तिहार ताँगे या रिक्शे पर लगाकर ब्रास बैण्ड के साथ शहर के गली-कूचों में घुमाना आदि शामिल रहा है। अखबारों में विज्ञापन प्रकाशन भी प्रचार-प्रसार का एक तरीका है। जो आज भी जारी है।
नये तरीकों में अब टी.वी. का बड़ा योगदान हो गया है। टी. वी. पर विज्ञापनों के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। इसके अलावा इवेंट का आयोजन, इनामी प्रतियोगिताएँ, ब्रान्ड स्बेस्डरों की नियुक्ति आदि के साथ-साथ इन्टरनेट पर विज्ञापन आदि नये तरीके अपनाए जा रहे हैं। मुझे नये तरीके अच्छे लगते हैं क्योंकि यह हमारे समय के हिसाब से अपनी बात रखते हैं। नये प्रचार-प्रसार के नये तरीके से अपनी बात रखते है। प्रचार-प्रसार के नये तरीके से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचा जा सकता है।
प्रश्न 9.
लेखक मकबूल के मन में अपने दादा के प्रति विशेष लगाव था। छोटे बच्चों को अपने दादा-दावी के साथ विशेष लगाव होता ही है-ऐसा क्यों ? क्या आपका भी अपने दादा-दादी के साथ विशेष लगाव है ? अपना अनुभव लिखिए।
उत्तर :
यह बात सही है कि मकबूल के मन में अपेन दादा के प्रति विशेष लगाव था। वह अपने दादा की मृत्यु से अत्यंत दुखी हो गया था। दादा की मृत्यु’क उपरांत वह पूरे दिन दादा के कमरे में बंद रहता था। वह घर में किसी से बात नहीं करता था और गुमसुम रहने लगा था। वह अपने दादा के बिस्तर पर उनकी भूरी अचकन ओढ़कर सोता था। उस समय वह ऐसा अनुभव करता था कि वह दादाजी की बगल में ही सोया हुआ है। उसके इस व्यवहार से पता चलता है कि उसका दादा जी के साथ विशेष लगाव था। छोटे बच्चों को अपने दादा-दादी से विशेष लगाव होता ही है। उनसे बच्चों को प्यार तथा अपनत्व मिलता है। यही कारण है कि बच्चे उन्हें अपने माता-पिता से भी अधिक चाहते हैं। दादा-दादी के पास समय की कोई कमी नहीं होती। वे उनके साथ खेलते हैं, कहानियाँ सुनाते हैं। हाँ, मुझे भी अपने दादा-दादी से विशेष लगाव है। मैं उनसे अपनी सभी बातें साझा करता हूँ। वे मुझे प्यार भी करते हैं और मेरा मार्गदर्शन भी करते हैं। उनकी छत्रछाया में मैं स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता हूँ।
प्रश्न 10.
प्राय: ऐसा माना जाता है कि पक्की दोस्ती उन्हीं लोगों में होती है, जिनके स्वभाव और आदतें एक जैसी होती हैं, लेकिन मकबूल और दोस्तों के संपर्क में यह बात सच नहीं थी। क्यों ? आपकी दृष्टि में किन जीवन-मूल्यों के कारण आपसी दोस्ती बनी रहती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रायः ऐसा ही माना जाता है कि पक्की दोस्ती के लिए स्वभाव और आदतों को एक जैसा होना आवश्यक है, पर मकबूल और उनके पाँच दोस्त बोडिंग में परस्पर दोस्त थे। वे दो वर्षों तक साथ-साथ पढ़े थे। दोस्त उनके बावजूद इन सभी की आदतें तथा स्वभाव अलग-अलग थे। लेकिन उनमें दोस्ती उम्र भर बनी रही। वे बड़ौदा के सिंह बाई माता रोड पर बने ‘मदरसा हुसामिया’ में पाए जीवन-मूल्यों के कारण आजीवन दोस्त बने रहे।
उनमें से एक डमोई का अत्तर व्यापारी बना, दूसरा सियाजी रेडियो की आवाज, तीसरा कराची का नागरिक बन गया तो चौथा मोतियों की तलाश में कुवैत पहुँच गया। पाँचवां मुंबई में मस्जिद का मेंबर बन गया और स्वयं मकबूल हुसैन विश्व प्रसिद्ध चित्रकार बन गए। इन सभी दोस्तों ने अंडम्बार रहित वातावरण में सहजता-सरलता और अनुशासन के वातावरण में अपने अध्यापकों से अच्छे संस्कार पाए थे। सभी की रुचियों स्वभाव में भिन्नता थी फिर भी इनकी दोस्ती उत्र भर बनी रही।
हमारी दृष्टि में शिक्षा के दौरान पाए जीवन-मूल्यों की बदौलत उनकी दोस्ती आजीवन बनी रही।
प्रश्न 11.
मकबूल को उनकी मंजिल तक पहुँचाने में आप उनके पिता का कितना योगबान मानते हैं ? क्या वे दूरदर्शी थे ? आप मकबूल के पिता के चरित्र के किस गुण को अपनाना चाहेंगे ?
उत्तर :
यह सही है कि मकबूल को उनकी मंजिल तक पहुँचाने में उनके पिता का बहुत बड़ा योगदान था। अधिकांश माता-पिता अपने मन की अधूरी इच्छा को अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे उनके अधूरे कामों को पूरा करें। मकबूल के पिता ने अपने बेटे की इच्छा को पूरा करने के लिए उसे बोडिंग स्कूल मेजा। उन्होंने पुत्र की चित्रकला में गहरी रुचि देखी और उसे उसी दिशा में आगे बढ़ा दिया। वैसे उन दिनों चित्रकला (पेंटिंग) को बहुत सम्मान प्राप्त नहीं था, फिर भी मकबूल के पिता ने कदम-कदम पर पुत्र का साथ दिया। यही कारण था मकबूल ने अपनी कला को विश्वभर में मशहूर कर दिया। पिता ने अपने पुत्र में छिपी कला को ताशने का पूरा प्रयास किया तथा उसे अवसर प्रदान किया।
हम मकबूल के पिता के चरित्र से निम्नलिखित गुण अपनाना चाहेंगे।
दूरदर्शिता-मकबूल के पिता दूरद्शी थे। उन्होंने पुत्र की प्रतिमा को पह्चान कर उसे विकास करने का पूरा अवसर दिया। हम भी ऐसा करना चाहेंगे।
यथार्थवादी वृष्टिकोण-मकबूल के पिता ने यधार्थवादी दृष्टिकोण अपना कर पुत्र की पीड़ा (दादा से बिहुड़ने की) को समझा और उससे उबरने के लिए बड़ौदा के बोडिंग स्कूल मेजा। यह सही उपचार था।
प्रश्न 12.
मकबूल फ़िवा हुसैन की आत्मकथा ‘हुसन की कहानी अपनी जुबानी’ से संकलित अंश उनके विद्यालयी जीवन से जुड़ा है। क्या आपके जीवन में कुछ ऐसा घटित हुआ है जिसका आप वर्णन करना चाहेंगे ?
उत्तर :
यह सच हे कि संकलित अंश मकबूल फ़िदा हुसेन के बड़ौदा स्कूल के विद्यालयी जीवन से जुड़ा है। वहीं रहकर उनकी रचनात्मकता के अंकुर प्रस्पुलित हुए। वहीं उसकी चित्रकला परवान चड़ी। उसी कला के कारएा वे विश्व भर में प्रसिद्ध हुए। पहले हुसैन की व्यापार की ओर मोड़ा जा रहा था किन्तु उनकी चित्रकारी का जादू वहाँ भी अपनी राह तलाशता रहा। अंत में उनके अब्बा की रोशन ख्याली ने उन्हें महान चित्रकार बना दिया। उनके ये घटनाक्रम विद्यार्थी-जीवन से डुड़े हुए है। प्रतिभा को यदि सही दिशा मिल जाए तो जीवन सफल हो जाता है। जहाँ तक मेरी स्कूली जीवन का संबंध है, मैं एक अच्छा क्रिकेट खिलाड़ी बनना चाहता था। मेरे स्कूल में क्रिकेट के एक अच्छे कोच थे। उनहोंने मुझे भी क्रिकेट के गुण सिखाए और जमकर अभ्यास भी करवाई। धीरे-धीरे में अच्छा क्रिकेटर बन गया। अब मैं अंतराज्यीय टीमों में भी खेलता हूँ।
प्रश्न 13.
बड़ौदा के बोरिंग स्कूल में मकबूल ने अपनी पढ़ाई पूरी की उनके स्कूल की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
बड़ौदा के बोडिंग स्कूल में मकबूल ने अपनी पढ़ाई पूरी की। बड़ौदा महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ का साफ-सुथरा शहर था। वहीं के सुलेमानी जमात के बोडिंग स्कूल में मकयूल ने शिक्षा पाई। यह स्कूल बड़ौदा में दारुलुंलबबा (छात्रावास) मदरसा हुसामिया, सिंह बाई माता रोड, गैडी गेट के एक तालाब के किनारे स्थित था। इस स्कूल की देखरेख महात्मा गाँधी के अनुयायी जी.एम. हकीम अब्बास तैयब जी करते थे। यही कारण था वहाँ के छत्रों के सिर मुँडे रहते थे और वे सिर पर गाँधी टोपी तथा शरीर पर खादी का कुरता-पायजामा पहनते थे।
उस मदरसे में मौलवी अकबर धार्मिक विद्वान, कुरान और उर्दू साहित्य के उस्ताद थे। केशवलाल गुजराती पढ़ाते थे। मेजर अब्ुुला स्काउट मास्ट थे। गुलजमा खान बैंड मास्टर थे। वहाँ खाने को बावर्ची गुलाम की रोटियाँ तथा बीबी नरगिस का पकाया सालन-गोश्त मिलता था मदरसे में सालाना जलसा भी होता था। मकबूल वहाँ के खेल-कूद में हिस्सा लेता था। उसे हाई जंप में पहला इनाम मिला था। वहीं उसे फोटोग्राफी का शौक लगा। वहीं उसने एक जलसे में इस्लाम पर दस मिनट का भाषण अभिनय के साथ दिया था तथा फारसी का एक शेर भी पढ़ा था।
प्रश्न 15.
पाठ के आधार पर बताइए कि मकबूल ने पेंटर बनने का सफर कैसे तय किया ?
उत्तर :
मकबूल में पेंटर बनने की प्रतिमा जन्मजात थी। उन्होंने स्कूल में द्राइंग मास्टर की नकल करके ब्लैकबोर्ड पर उनकी बनाई जैसी चिड़िया को अपनी स्लेट पर बनाकर दिखा दिया था। अक्तूबर के अवसर पर मकबूल ने ब्लैकबोर्ड पर गाँधी जी का पोस्टर भी बनाया था, जिसकी तारीफ अब्बास तैयब जी ने मी की थी। बड़ौदा का स्कूल छोड़ने के बाद मकबूल अपने चाचा के साथ खाली समय में उनकी दुकान पर बैठता था। वहीं बैठकर आते-जाते राहगीरों के चित्र बनाया करता था। वहीं उन्नोंने घूँषट निकाले मेहतरानी का चित्र, गेहूँ की बोरी उठाए मजदूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच, पठान की दाढ़ी वाला चित्र, बुर्का पहने औरत और बकरी के बच्चे का चित्र बनाया था। एक दिन डुकान के आमे से वी. शांतराम की फिल्म सिंहगढ़ का पोस्टर गुजारा। उनके मन में उसकी ऑयल पेटिंग बनाने का विचार आया। दुकान से वे सीधे अली हुसैन रंगवाले की दुकान पर गए और अपनी दो किताबें बेचकर ऑयल कलर की ट्यूें खरीदीं। वहीं चाचा की दुकान पर पफ्ली ऑयल पेंटंग बनाई। इस प्रकार उन्होंने पोस्टर बनने का सफर तय किया।
प्रश्न 16.
मकबूल की मुलाकात बेंद्रे से हुं। उसका वर्णन अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
मकबूल की मुलाकात बेंद्रे साइब से इंदौर के सर्राफा बाजार में हुई। यह मुलाकात ताँबे-पीतल का सामान बेचने वाली दुकानों की गली में हुई। वहों बेंद्रे साहब ऑनस्पॉट पेंटिंग करते हुए मिले। मकबूल को बेंद्रे साहब की टेकनिक बहुत पसंद आई। वे टिंटे पेपर पर ‘गोआश वाटर कलर’ का प्रयोग करते थे। इस मुलाकात के बाद मकबूल अक्सर बेंद्र साहब के साथ लैंडस्केप पेंट करने जाया करते थे। 1933 में बेंद्रे साहब ने एक बड़ी पेंटिंग बनानी शुरू की ‘वैबांड’। इस पेंटंग में उन्होंने रॉंयल अकादमी का रूखा रिपलिज्म झलकाया था। इस पर उन्हें मुम्बई आर्ट सोसायटी ने चाँदी का मैडल दिया था। मकबूल उनकी पेटिंग से बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने ही मकबूल को पेंटंग की दुनिया में आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया।
प्रश्न 17.
एक विन एक सिनेमा का इश्तिहार वेकर मकबूल पर उसकी क्या प्रतिक्रिया हुड ?
उत्तर :
एक दिन मकबूल चाचा की दुकान पर बैठा हुआ था। उसके सामने से एक साइलेंट फिल्म ‘सिंहगढ़’ के इश्तिहार वाला ताँगा गुजरा। उन दिनों फिल्म के इश्तिहार ताँगे में ब्रास बैंड के साथ शहर की गली-कूँचों में गुजरते थे। इस पोस्टर में एक मराठी योद्धा को हाथ में तलवार और बाल लिए दर्शाया गया था। मकबूल ने मी उस पोस्ट्र को देखा। इस पोस्टर की उस पर तीव्र प्रतिक्रिया हईई। उन्होंने निश्चय किया कि इस पोस्टर की असली पेंटंग बनाई जाए। अभी तक किसी ने ऑयल कलर का इस्तेमाल नहीं किया था। इस पोस्टर ने मकबूल को इस कदर भड़काया कि वे सीधे अलीहुसैन रंग वाले की कुकान पर गए। वहाँ उन्होंने इतिहास और भूगोल की किताबें बेचकर ऑयल कलर की ट्यूबें खरीदीं। मकबूल ने अपनी पहली ऑयल पेंटिंग चाचा की दुकान पर बैठकर बनाई। चाचा तो पेंटिंग देखकर नाराज हुए पर अब्बा ने गले लगा लिया।
प्रश्न 18.
बड़ौदा के बोडिंग स्कूल में मकबूल को क्या अनुभव हुए ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल मकबूल फिदा हुसैन को अपने दादा की मृत्यु से उबरने के लिए भेजा गया था। वहाँ उन्हें अनेक अच्छे अनुभव हुए। महाराजा सियाजी राव गायकवाड़ का बड़ौदा शहर साफ-सुथरा था। वहाँ का राजा मराठी था तो प्रजा गुजराती। वहाँ के छात्रों के सिर पर गाँधी टोपी रहती थी तथा वे खादी का कुरता-पायजामा पहनते थे। वहाँ अनेक योग्य अध्यापक थे। छात्रावास में बावर्ची गुलाम की बनाई रोटियाँ तथा बीवी नरगिस का बनाया सालन गोश्त मिलता था। वहाँ लेकर मकबूल को कई अनुभव हुए। वहाँ उनकी दोस्ती पाँच लड़कों से हुई। यह दोस्ती जीवन भर चली वहीं मकबूल की कला परवान चढ़ी। वहीं उन्होंने ब्लैकबोर्ड पर गाँधी जी का पोट्रेट बनाया। वहाँ वे खेल-कूद में भी भाग लेते रहे। उन्हें ऊँची कूद में प्रथम स्थान मिला। वहीं उन्हें जलसे में भाषण देने का अनुभव भी मिला।