NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 9 भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?
Class 11 Hindi Chapter 9 Question Answer Antra भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?
प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाए वही बहुत कुछ है’-क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि भारत के अधिकांश लोग आलसी हैं, काम करने से बचते हैं। बेरोजगारों की भीड़ लगी हुई है। आलसियों के देश में जो कुछ भी हो जाए, वही बहुत कुछ है। देश की तरक्की के लिए आलस्य को दूर भगाना होगा। भारत के अधिकांश लोगों को निकम्मेपन ने घेर रखा है। यहाँ लेखक ने बलिया के मेले का उल्लेख किया है। लेखक का कहना है कि यदि हम हिंदुस्तानी अपनी खराबियों के मूल कारणों की खोज करें तो देश सुधर जाएगा। ये मूल कारण धर्म की आड़ में, देश की चाल की आड़ में और सुख की आड़ में छिपे हुए हैं। इनको पकड़-पकड़ कर मारना होगा। इस समय जो-जो बातें देश की उन्नति में बाधक हैं, उन्नति-पथ में काँटे बन रही हैं। उनकी जड़ खोदकर फेंकना होगा। इस काम में सौ-दो सौ मनुष्य बदनाम हो सकते हैं, जाति से बाहर निकाले जा सकते हैं, कैद हो सकते हैं, जान से भी मारे जा सकते हैं। इसके बाद ही देश सुधरेगा।
प्रश्न 2.
‘जहाँ राबर्ट साहब बहादुर जैसे कलेक्टर हों, वहाँ क्यों न ऐसा समाज हो ‘ वाक्य में लेखक ने किस प्रकार के समाज की कल्पना की है ?
उत्तर :
लेखक ने इस प्रकार के ऐसे समाज की कल्पना की है जहाँ बहुत सारे लोग उत्साह के साथ एक स्थान पर एकत्रित होते हैं। वे आपस में मिलते-जुलते हैं।
प्रश्न 3.
जिस प्रकार ट्रेन बिना इंजिन के नहीं चल सकती, ठीक उसी प्रकार ‘हिंदुस्तानी लोगों को कोई चलाने वाला हो’ से लेखक अपने देशवासियों के मूल कारण खोजने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर :
लेखक ने हिंदुस्तानी लोगों की रेल की गाड़ी से तुलना इसलिए की है क्योंकि इसे चलाने वाले विदेशी हैं। जैसे रेलगाड़ी में डिब्ये और इंजिन होते हैं। डिब्बे भले ही तरह-तरह के हों और यह कितने ही अच्छे प्रकार हों, पर तब तक नहीं चल सकते जब तक इंजन न चलाए। भारतीय भी स्वयं नहीं चलते, उन्हें चलाने वाला कोई होना चाहिए। यदि कोई चलाने वाला हो तो हिंदुस्तानी भी बहुत कुछ कर सकते हैं। हिंदुस्तानियों में नेतृत्व का अभाव है।
प्रश्न 4.
देश की सब प्रकार से उन्नति हो इसके लिए लेखक ने जो उपाय बताए उनमें से किन्हीं चार का उदाहरण सहित उल्ल्रेख कीजिए।
उत्तर :
देश की सब प्रकार से उन्नति हो इसके लिए निम्नलिखित बातें की जानी चाहिए-
- हमें अपना आलस्य त्यागकर देश की उन्नति के कामों में जुट जाना चाहिए।
- हमें लोगों में शिक्षा का प्रचार करना चाहिए ताकि हम ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़कर आगे बढ़ सकें। विदेशी पुस्तकों से भी ज्ञान लें।
- हमें कुएँ के मेंढक या काठ के उल्लू बनने की प्रवृत्ति त्यागनी होगी।
- भारतवासियों को निकम्मापन छोड़ना होगा तथा प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करना होगा।
- भारतवासियों को आत्मनिर्भर बनना होगा। दूसरों के मुँह की ओर देखना बंद करना होगा।
- हमें अपने व्यक्तिगत सुख को होम करके, धन और मान का बलिदान करके देशहित में लगना होगा।
- समाज में फैली कुरीतियों को मिटाना होगा।
- देश की युवा पीढ़ी को अच्छे संस्कार देने होंगे। उन्हें परिश्रम करना सिखाना होगा।
- हिंदू-मुसलमानों को आपस में सहयोग करना चाहिए।
प्रश्न 5.
लेखक जनता से मत-मतांतर छोड़कर आपसी प्रेम बढ़ाने का आग्रह क्यों करता है ?
उत्तर :
लेखक हिंदुओं से आग्रह करता है कि वे मत-मतांकर का आग्रह छोड़ दें और आपस में प्रेम बढ़ाएँ। हिंदुस्तान में रह रहे हिंदू, हिंदू की सहायता करे, चाहे वह किसी भी जाति या मत का क्यों न हो। सभी का हाथ पकड़ो, मुसलमान का भी। इसी से देश की उन्नति होगी।
प्रश्न 6.
आज देश की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में निम्नलिखित वाक्य को एक अनुच्छेद में स्पष्ट कीजिए : “जैसे हजार धारा होकर गंगा समुद्ध में मिली है, वैसे ही तुम्हारी लक्ष्मी हजार तरह से इंग्लैंड, फरांसीस, जर्मनी, अमेरिका को जाती है।”
उत्तर :
गंगा हजार धारा होकर समुद्र में मिलती है। उसी तरह हमारा धन तरह-तरह से विदेश पहुँचता है। जब तक हमें विदेशी वस्तुओं के प्रति क्रेज बना रहेगा तब तक हमारे देश का धन दूसरे देशों में जाता रहेगा। आज की आर्थिक स्थिति में बदलाव है। आज हमारे देश का सामान विदेशों में जा रहा है। वहाँ का धन हमारे यहाँ भी आ रहा है। अब बराबरी के स्तर पर माल का आना-जाना (आयात-निर्यात) चल रहा है।
प्रश्न 7.
(क) पाठ के आधार पर निम्नलिखित का कारण स्पष्ट कीजिए :
- बलिया का मेला और स्नान
- एकादशी का व्रत
- गंगा जी का पानी पहले सिर पर चढ़ाना
- दीवाली मनाना
- होली मनाना
उत्तर :
- बलिया का मेला और स्नान आनंद का दिन होता है। इस दिन बहुत सारे लोग एक स्थान पर एकत्रित होते हैं। वे वहाँ नदी में स्नान करते हैं।
- एकादशी का व्रत इसलिए रखा जाता है ताकि महीने में एक-दो बार उपवास रखने से शरीर की शुद्धि हो जाए।
- गंगा स्नान से पूर्व पानी सिर पर चढ़ाया जाता है तब गंगा में पैर डाला जाता है। इससे तलुए की गर्मी सिर पर चढ़कर गर्मी उत्पन्न नहीं करती।
- दीवाली मनाने से साल भर में एक बार तो घर की सफाई हो जाती है।
- होली इसलिए मनाई जाती है कि वसंत की बिगड़ी हवा स्थान-स्थान पर आग जलाने से स्वच्छ हो जाए।
(ख) उक्त संदर्भ में क्यों कहा गया है कि ‘यही तिह्ववार ही तुम्हारी म्युनिसिपैलिटी है’ ?
उत्तर :
त्तोहार को म्युनिसिपैलिटी कहा गया है। त्योहार मनाने से साफ-सफाई हो जाती है। म्युनिसिपैलिटी भी यही काम करती है।
प्रश्न 8.
आपके विचार से देश की उन्नति किस प्रकार संभव है ? कोई चार उदाहरण तर्क सहित दीजिए।
उत्तर :
देश की उन्नति निम्न प्रकार से संभव है :
- देशवासी आलस्य को त्यागकर काम करने में जुट जाएँ। जिस प्रकार जापानी और चीनी अपनी कार्यक्षमता के बलबूते पर विश्व भर में छाए हुए हैं।
- देश की अंधाधुंध बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण किया जाए। जनसंख्या पर रोक आवश्यक है अन्यथा सारी योजनाओं पर पानी फिरता रहेगा।
- देश की उन्नति के लिए एकता की भावना की बड़ी आवश्यकता है। एकता के अभाव में देश गिरावट की ओर जाता है।
- देश की उन्नति के लिए सभी को साक्षर बनाना होगा अन्यथा अशिक्षित लोग तरक्की में बाधा पहुँचाते रहेंगे।
- देश की तरक्की के लिए नागरिकों के मन में देशप्रेम की भावना का होना जरूरी है।
प्रश्न 9.
भाषण की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए कि पाठ ‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?’ एक भाषण है।
उत्तर :
भाषण की चार विशेषताएँ :
- भाषण में संबोधन शैली अपनाई जाती है। भाषण का प्रारंभ ही संबोधन से होता है।
- भाषण में उदाहरण दिए जाते हैं। इससे कथन को बल मिलता है।
- भाषण में श्रोताओं को ऐसी बातें बताई जाती हैं जो उनके लिए नई हों। इससे उनकी जिज्ञासा बनी रहती है।
- भाषण में ऐसे प्रसंग लाए जाते हैं जिन पर श्रोता तालियाँ बजाएँ।
‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?’ भारतेंदु जी का एक प्रसिद्ध भाषण है। इसमें ब्रिटिश शासन की मनमानी पर व्यंग्य है तो उनकी परिश्रमी प्रवृत्ति की सराहना भी है। लेखक/भाषणकर्ता ने भारतवासियों के आलस्य, रूढ़िग्रस्त होने तथा गलत जीवन शैली पर व्यंग्य किया गया है। उन्होंने भाषण की रोचकता को बनाए रखा है।
प्रश्न 10.
‘अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो’ से लेखक का क्या तात्पर्य है ? वर्तमान संदर्भों में इसकी प्रासंगिकता पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
लेखक के इस कथन का तात्पर्य यह है कि देश की उन्नति के लिए अपनी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। परदेशी भाषा का भरोसा मत करो। वर्तमान संदर्भों में भी यह बात बिल्कुल सही है, पर हमारी मानसिकता इस प्रकार की हो गई है कि हम अंग्रेजी का प्रयोग करके गर्व का अनुभव करते हैं। यह हमारी हीन भावना का परिचायक है। देश की राष्ट्रभाषा हिंदी है अतः हमें इसी भाषा का सर्वत्र प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न 11.
पाठ में कई वर्ष पुरानी हिंदी भाषा का प्रयोग है, इसलिए चाहैं, फैलावैं, सकैगा आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है जो आज की हिंदी में चाहे, फैलाएँ, सकेगा आदि लिखे जाते हैं।
निम्नलिखित शब्दों को आज की हिंदी में लिखिए जैसे -मिहनत, छिन-प्रतिछिन, तिहवार।
इसी प्रकार पाठ में से अन्य दस शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
मेहनत, क्षण-प्रतिक्षण, त्योहार।
दस शब्द-दिलावै – दिलाए, फैलावैं – फैलाएँ, सकैगा सकेगा, देखै – देखे, बोलै – बोले, रक्खो – रखो, हूस – गँवार, जंगली, तावे – तवे, इक्क – एक, सुधरैगा – सुधरेगा, बेर – बार, ब्याह – विवाह।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) राजे-महाराजों को अपनी पूजा, भोजन, झूठी गप से छुट्टी नहीं।
(ख) सबके जी में यही है कि पाला हमीं पहले छू लें।
(ग) हमको पेट के धंधे के मारे छृद्टी ही नहीं रहती बाबा, हम क्या उन्नति करें।
(घ) उन चोरों को वहाँ-वहाँ से पकड़-पकड़ कर लाओ, उनको बाँध-बाँध कर कैद करो।
(ङ) यह तो वही मसल हुई कि एक बेफिकरे मँगनी का कपड़ा पहिनकर महफिल में गए।
उत्तर :
(क) इस पंक्ति का आशय यह है कि दे राजा-महाराजाओं (संपन्न वर्ग-शासक वर्ग) को सिर्फ अपने से मतलब होता है। वे लोगों से अपनी पूजा करवाते हैं, अच्छा भोजन खाते हैं और झूठी गप्पें हाँककर समय गंवाते हैं। वे कोई काम नहीं करते। वे निकम्मे हैं।
(ख) सभी लोग इस प्रयास में लगे हुए हैं कि वे ही सब कुछ सबसे पहले प्राप्त कर लें। बाकी लोग उनसे पीछे ही रहें।
(ग) भारतीयों के आलस्य पर कटाक्ष करते हुए लेखक कहता है कि यहाँ के लोग अपनी रोटी-रोजी की समस्या में ही उलझे रहते हैं। उनका कहना है कि हमें रोटी कमाने से ही फुर्सत नहीं है तो हम भला उन्नति कैसे.कर सकते हैं। यह उनका बहाना मात्र है।
(घ) लेखक ने खराबी के कारणों को चोर कहा है। ये चोर धर्म की आड़ में, देश की चाल की आड़ में तथा कोई सुख की आड़ में छिपे पड़े हैं। इन चोरों को पकड़ना होगा और बाँधकर कैद करना होगा। इसका आशय यह है कि बुराइयाँ जहाँ-जहाँ छिपी हैं वहाँ से निकालकर बाहर करनी होंगी।
(ङ) इस कथन का आशय यह है कि बेफिक्र लोग माँगकर कपड़ा पहनकर महफिल में आ जाएँ अर्थात् दूसरों के साधनों से अपनी शोभा बढ़ाने का प्रयास करना।
ऐसा प्रयास कभी सफल नहीं होता। स्वयं अपने प्रयासों से वस्तु प्राप्त करो। आत्मनिर्भर बनो।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए :
(क) सास के अनुमोदन से फिर परदेस चला जाएगा।
(ख) दरिद्र कुटुंबी इस तरह वही दशा हिंदुस्तान की है।
(ग) वास्तविक धर्म. शोधे और बदले जा सकते हैं।
उत्तर :
(क) प्रसंग-यह गद्यांश भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा रचित लेख ‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?’ से अवतरित है। यह निबंध मूल रूप से उनके भाषण का अंश है। व्याख्या-लेखक हिंदुस्तानियों के आलस्य पर कटाक्ष करते हुए एक उदाहरण देकर अपनी बात स्पष्ट करता है। एक रात अपनी सास से आज्ञा लेकर नायिका अपने प्राणों से प्यारे विदेशी पति से मिलने रंगमहल में तो जा पहुँचती है पर उसका मिलन नहीं हो पाता।
यद्यपि एकांत रात थी अर्थात् वातावरण भी अनुकूल था, पति भी था, पति से मिलकर प्यार करने की इच्छा भी थी पर लज्जा उस पर हावी रही। वह लज्जावश न तो प्रिय का मुँह देख सकी और न बात कर सकी। यह उसका अभाग्य ही कहा जाएगा। पति तो कल फिर परदेस चला जाएगा अर्थात् मिलन का फिर अवसर न आएगा। इस उदाहरण के माध्यम से लेखक यह समझाना चाह रहा है कि राज्य में सभी प्रकार के सामान और अवसर उपलब्ध हैं पर हम भारतवासी आलस्यवश उनका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। मौका चूक जाने पर सिर्फ पछताते ही रह जाएँगे।
(ख) गरीब परिवार में अपनी इज्जत बचाए रखनी अत्यंत कठिन होती है। लेखक उदाहरण देकर समझाता है कि कुलीन वधू अपनी इज्जत बचाने के लिए फटे वस्त्रों में ही अपने अंग छिपाती रहती है अर्थात् अत्यंत सीमित साधनों में गुजारा करती है। हिंदुस्तानी भी गरीबी की मार झेल रहे हैं। चारों ओर दरिद्रता है। लोगों को अपनी इज्जत बचाए रखना कठिन हो रहा है।
इस गद्यांश में लेखक ने भारत की गरीबी का मार्मिक चित्रण किया है।
(ग) लेखक इस गद्यांश में धर्म के वास्तविक स्वरूप पर प्रकाश डालता है। उसके अनुसार धर्म का असली उद्देश्य तो भगवान के चरण-कमलों का भजन करना है। इस बात को हम सब भारतवासियों को समझना चाहिए। बाकी बातें जो धर्म के साथ जोड़ दी गई हैं वे समाज-धर्म हैं। इन्हें देश और काल के अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है। धर्म का मूल रूप तो सदा एक समान रहता है, पर उसके व्यावहारिक पक्ष में बदलाव लाया जा सकता है।
योग्यता-विस्तार –
1. देश की उन्नति के लिए भारतेंदु ने जो आह्बान किया है उसे विस्तार से लिखें।
पाठ का सार देखें।
2. पंक्ति पूरी कीजिए, अर्थ लिखिए और इन्हें किन कवियों-शायरों ने लिखा है, उनका नाम लिखिए :
(क) अजगर करै न चाकरी, पंछी करे न काम
(ख) अबकी चढ़ी कमान, को जानै फिर कब चढ़ै
(ग) शौक तिफ्ली से मुझे गुल की जो दीदार का था ….
(क) अजगर करै न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम।। – मलूकदास
(ख) अबकी चढ़ी कमान, को जानै फिर कब चढ़ै। जिनि चुक्के चौहान, इक्के मारय इक्क सर॥ -कवि चंद वरदाई
(ग) शौक तिफ्ली से मुझे गुल की जो दीदार का था।
न किया हमने गुलिस्तां का सबक याद कभी॥ -शौक तिफ्ल
3. भारतेंदु उर्दू में किस उपनाम से कविताएँ लिखते थे ? उनकी कुछ उर्दू कविताएँ ढूँढकर लिखिए।
छात्र पुस्तकालय से पुस्तक लेकर इसके बारे में जानकारी प्राप्त करें।
4. पृथ्वीराज चौहान की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
पृथ्वीराज चौहान दिल्ली का राजा था। उसने कन्नौज के राजा की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर लिया था। उससे बदला लेने के लिए जयचंद ने मोहम्मद गौरी को भारत बुलवाया। 16 बार हारने के बाद उसे सफलता मिल ही गई और पृथ्वीराज गिरफ्तार हो गया। गौरी ने उसकी आँखें फोड़ दीं, पर राजदरबार में शब्दभेदी बाण चलाकर पृथ्वीराज चौढान ने गौरी को मार डाला। चौहान के मित्र कवि चंद वरदाई ने यह दोहा बोलकर उसे गौरी के स्थान का संकेत कर द्थिया –
चार हाथ चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमान।
ताहू पर सुलतान है मत’ छूके चौहान।
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प्रश्न 1.
लेखक भारतवासियों को क्या बताकर उन पर व्यंग्य करता है?
उत्तर :
लेखक बताता है कि हमारे हिंदुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं। यद्यपि फर्स्ट क्लास, सेकेंड क्लास आदि गाड़ी बहुत अच्छी-अच्छी और बड़े-बड़े महसूल की इस ट्रेन में लगी हैं पर बिना इंजिन ये सब नहीं चल सकतीं, वैसे ही हिंदुस्तानी लोगों को कोई चलाने वाला हो, तो ये क्या नहीं कर सकते। इनसे इतना कह दीजिए, “का चुप साधि रहा बलवाना” फिर देखिए कि हनुमान जी को अपना बल, कैसे याद आ जाता है। सो बल कौन याद दिलावे या हिंदुस्तानी राजे-महाराजे या नवाब रईस या हाकिम। राजे-महाराजों को अपनी पूजा, भोजन, झूठी गप से छुट्टी नहीं।
प्रश्न 2.
विद्या और नीति को फैलाने का काम पहले किनके जिम्मे था, फिर बाद में क्या हुआ?
उत्तर :
पहले भी जब आर्य लोग हिंदुस्तान में आकर बसे थे, राजा और ब्राह्मणों ही के जिम्मे यह काम था कि देश में नाना प्रकार की विद्या और नीति फैलावैं और अब भी ये लोग चाहैं तो हिंदुस्तान प्रतिदिन कौन कहै, प्रतिछिन बढ़ै। पर इन्हीं लोगों को सारे संसार के निकम्मेपन ने घेर रक्खा है। “बौद्धारो मत्सरग्रस्ता अभव: स्मरदूषिताः।”
प्रश्न 3.
लेखक किसे सब उन्नतियों का मूल बताता है और क्यों?
उत्तर :
लेखक का कहना है कि सब उन्नतियों का मूल धर्म है। इससे सबके पहले धर्म की ही उन्नति करनी उचित है। देखो, अंग्रेजों की धर्मनीति और राजनीति परस्पर मिली है, इससे उनकी दिन-दिन कैसी उन्नति है। उनको जाने दो, अपने ही यहाँ देखो! तुम्हारे यहाँ धर्म की आड़ में नाना प्रकार की नीति, समाज-गठन, वैद्यक आदि भरे हुए हैं।
प्रश्न 4.
लोगों ने धर्म के बारे में क्या खराबी की?
उत्तर :
धर्म के बारे में एक खराबी यह हुई कि उन्हीं महात्मा बुद्धिमान ऋषियों के वंश के लोगों ने अपने बाप-दादों का मतलब न समझकर बहुत से नए-नए धर्म बनाकर शास्त्रों में धर दिए। बस सभी तिधि व्रत और सभी स्थान तीर्थ हो गए। सो इन बातों को अब एक बेर आँख खोलकर देख और समझ लीजिए कि फलानी बात उन बुद्धिमान ऋषियों ने क्यों बनाई और उनमें देश और काल के जो अनुकूल और उपकारी हों, उनको ग्रहण कीजिए। बहुत सी बातैं जो समाज-विरुद्ध मानी हैं, किंतु धर्मशास्त्रों में जिनका विधान है, उनको चलाइए। जैसे जहाज का सफर, विधवा-विवाह आदि।
प्रश्न 8.
हिंदू और मुसलमानों को भारतेंदु ने क्या सलाहें दीं ?
उत्तर :
हिंदू और मुसलमानों को भारतेंदु ने निम्नलिखित सलाहें दी हैं-
हिंदुओं को सलाह | मुसलमानों को सलाह |
1. हिंदू अपने मत-मतांतर का आग्रह छोड़ें। आपस में प्रेम बढ़ाएं। | 1. हिंदुओं को नीचा समझना छोड़ दें। |
2. रंग, जाति का भेद त्यागकर हिंदू, हिंदू की सहायता करे। | 2. हिंदुओं से ऐसा बर्ताव न करें जो उनके जी को दुखाए। |
3. तुम्हारा रुपया देश में ही रहे। | 3. आपसी ईर्ष्या-भावना का त्याग करें। |
4. आत्मसम्मान बढ़ाओ, परिश्रमी बनो। | 4. मुसलमानों को अपनी दशा सुधारनी चाहिए। |
5. परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो। अपनी भाषा की उन्नति करो। | 5. गंदी, बुरी पुस्तकें पढ़ाकर अपने लड़कों का नाश मत कराआ। |
6. अपने लड़कों को पढ़ाई तथा परिश्रम की आदत डालो। | 6. अपने लड़कों को रोजगार सिखाओ। |
प्रश्न 9.
उस समय हिंदुस्तान की दशा कैसी थी?
उत्तर :
उस समय हिंदुस्तान की दशा बहुत खराब थी। लोग निकम्मे हो गए थे। लोगों को छोटी-छोटी चीजों के लिए विदेशी माल पर निर्भर रहना पड़ता था। यहाँ तक कि दियासलाई तक बाहर से आती थी। बिना काम करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी। चारों ओर दरिद्रता की आग लगी हुई थी। जनसंख्या बढ़ती जा रही थी, पर आमदनी घटती जा रही थी। लोगों में अनेक कुरीतियाँ घर कर चुकी थीं।
प्रश्न 10.
किन लोगों को निकम्मेपन ने घेर रखा है और क्यों?
उत्तर :
हिंदुस्तान में वैसे तो अधिकांश लोगों को निकम्मेपन ने घेर रखा है, पर राजा और ब्राह्मणों को निकम्मेपन ने अधिक घेर रखा है। इनके अतिरिक्त जिनके पास पैसा है, वे बहुत निकम्मे हो गए हैं। यहाँ के लोग जितने निकम्मे हों, उतना ही उन्हें अमीर समझा जाता है। वैसे लोगों को रोजगार का अभाव है। उनके पास अमीरों की गुलामी करना, दलाली करना, अमीरों के लड़कों को खराब करना या किसी की जमा-पूँजी मार लेना; इसके सिवा उनके पास कोई काम नहीं है। न तो वे कोई काम करना चाहते हैं, न कोई काम उनके पास है।
प्रश्न 11.
हमारे देश में छाए आलस्य पर भारतेन्दु ने क्या कहा है?
उत्तर :
हमारे देश में छाए आलस्य पर भारतेंदु ने चिंता प्रकट की है। उनका कहना है कि हमें आलस्य छोड़कर कमर कसनी होगी। यदि हमने ऐसा नहीं किया तो हम मूर्ख और कमजोर रह जाएँगे। समय के चूक जाने पर हमारे हाथ कुछ नहीं लगेगा। इस समय आलस्य में पड़े रहे तो रसातल को पहुँचोगे। लोगों को कमर कसके उठना होगा।
प्रश्न 12.
पाठ में आए श्लोकों का अर्थ लिखिए।
उत्तर :
पाठ में आए श्लोक और उनके अर्थ :
(i) ‘भागवत’ में एक श्लोक है
“नृदेहमाद्यं सुलभं सुदुर्लभ’ प्लवं सुकल्पं गुरु कर्णधारं।
मयाग्नुकूलेन नभः स्वतेरितुं पुमान् भवाब्धिं न तरेत् स आत्महा।”
अर्थ-भगवान कहते हैं कि पहले तो मनुष्य जनम ही बड़ा दुर्लभ है, सो मिला और उस पर गुरु की कृपा और मेरी अनुकूलता। इतना सामान पाकर भी जो मनुष्य इस संसार-सागर के पार न जाए, उसको आत्महत्यारा कहना चाहिए।
(ii) अपमान पुरस्कृत्य मानं कृत्वा तु पृष्ठतः।
स्वकार्य्यं साधयेत् धीमान् कार्य्यध्वंसो हि मूर्खता।
अर्थ-अपमानित होकर और मान को पीछे छोड़कर भी बुद्धिमान को अपना कार्य सिद्ध कर लेना चाहिए। कार्यसिद्धि न होने पर मूर्खता ही कहलाती है।
प्रश्न 13.
देश का रुपया और बुद्धि बढ़े, इसके लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर :
देश का रुपया और बुद्धि बढ़े इसके लिए लोगों को राजा-महाराजाओं का मुँह देखना बंद करना होगा अर्थात् उन पर निर्भरता खत्म करनी होगी। अपने बल के भरोसे काम करना होगा। पंडित जी: की कथा से भी यह काम नहीं हो सकता। हमें अपने आप ही कमर कसनी होगी, आलस्य छोड़ना होगा। हमें अब जंगली हूस, मूर्ख और कमजोर नहीं कहलवाना होगा। हमें रुपया पाने की होड़ में आगे बढ़ना होगा। एक बार पीछे पड़ने पर फिर उठ नहीं सकेंगे। इस समय में सरकार का राज्य पाकर और उन्नति का इतना सामान पाकर भी न सुधरे तो फिर कभी सुधर नहीं पाएँगे। यह सुधार भी ऐसा हो जो सभी क्षेत्रों में उन्नति हो। हमें ऐसी सभी बातों को छोड़ना होगा जो हमारी उन्नति के रास्ते में काँटे बिद्धाता है। हमें अपने सुख को होम करना होगा।