उसकी माँ Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 8 Summary
उसकी माँ – ओमप्रकाश वाल्मीकि – कवि परिचय
प्रश्न :
पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएँ बताइए तथा उनकी रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय – पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का जन्म 1900 ई. में उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर ज़ले के चुनार नामक ग्राम में हुआ था। परिवार में अभाव के कारण उन्हें व्यवस्थित शिक्षा पाने का सुयोग नहीं मिला। मगर अपनी नैसर्गिक प्रतिभा और साधना से उन्होंने अपने समय के अग्रणी गद्य = शिल्पी के रूप में अपनी पहचान बनाई। अपनी शैली और उग्र चेतना के कारण उग्रजी अपने समय के सबसे विवादास्पद लेखक रहे। अपने कवि मित्र निराला की तरह उन्हें भी पुरानी आस्था में जीनेवालों के कठोर विरोध का सामना करना पड़ा, मगर रचना-धर्म से आजीवन जुड़े रहे। उनकी मृत्यु 1967 ई. में हुई।
साहित्यिक विशेषताएँ – पत्रकारिता से उग्र जी का सक्रिय संबंध था। वे ‘आज’, ‘विश्वमित्र’, ‘स्वदेश’, ‘ वीणा’, ‘स्वराज्य’ और ‘विक्रम’ के संपादक रहे लेकिन ‘मतवाला-मंडल’ के प्रमुख सदस्य के रूप में उनकी विशेष पहचान है।
‘चॉकलेट’ उनकी सर्वाधिक चर्चित और विवादास्पद पुस्तक है। आत्मपरक पुस्तक ‘अपनी खबर’ में उनकी गद्य शैली का उत्कृष्ट रूप मिलता है। हिंदी गद्य के विशिष्ट शैलीकार ‘उग्र’ बालमुकुंद गुप्त की परंपरा के तेजस्वी लेखक थे। उग्र जी ने कृत्ञतापूर्वक यह भी स्वीकार किया है कि पं. बाबूराव विष्णु पराड़कर ने उनकी भाषा को व्याकरण की व्यवस्थित पद्धति के अनुसार चलना सिखाया तथा भाषा का नया संस्कार पैदा किया।
रचनाएँ – उग्र जी की अन्य प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं-‘ चंद हसीनों के खतूत’ ‘ ‘फागुन के दिन चार’, ‘सरकार’, ‘तुम्हारी आँखों में’, ‘घंटा’, ‘दिल्ली का दलाल’, ‘शराबी ‘, ‘वह कंचन सी काया’, ‘पीली इमारत’, ‘ चित्र-विचित्र’, ‘काल कोठरी’, ‘कंचन वर’, ‘कला का पुरस्कार’, ‘गालिब और उग्र’, ‘जब सारा आलम सोता है’ आदि।
Uski Maa Class 11 Hindi Summary
यह कहानी देश की दुरवस्था से चिंतित युवा पीढ़ी के विद्रोह को नए रूप में प्रस्तुत करती है। यह पीढ़ी इस अवस्था के लिए शासनतंत्र को दोषी मानती है और उसे उखाड़ फेंकना चाहती है। दुष्ट व्यक्ति नाशक राष्ट्र के सर्वनाश में अपना योगदान ही इस पीढ़ी का सपना है। यथार्थ के तूफानों से बेपरवाह यह पीढ़ी जानती है कि नष्ट हो जाना यहाँ का नियम है। जो सँवारा गया है, वह बिगड़ेगा ही। हमें दुर्बलता से डरकर अपना काम नहीं रोकना चाहिए।
कर्म के समय हमारी भुजाएँ दुर्बल नहीं, भगवान की सहस्र भुजाओं की सखियाँ हैं। जहाँ नई पीढ़ी यह विद्रोही स्वर लिए राज्जसत्ता के विरोध में मशाल लिए खड़ा है, वहीं पूर्ववर्ती बुद्धिजीवी समाज अपनी सुविधा के लिए राजसत्ता के तलवे चाटने को तैयार है। इन दोनों के बीच खड़ी है एक माँ। समाज के दो सिरों के बीच खड़ी माँ अपनी लाख कोशिशों के बावजूद व्यवस्था की चक्की से अपने बेटे को नहीं बचा पाती। इस कहानी में ममतामयी माँ का सजीव चित्रण हुआ है।
शब्दार्थ (Word Meanings) :
- निहारना = देखना (To see)
- बेवक्त = बिना समय के (Untimely)
- देहांत = मृत्यु (Death)
- पुश्त = पीढ़ी (Generation)
- फरमाबरदार = आज्ञाकारी, सेवक (Obedient servant)
- पाजीपन = बदमाशी (Mischief)
- सहपाठी = साथ पढ़ने वाले (Class mate)
- समधुर स्वर = मीठी आवाज (Sweet vioce)
- दुरवस्था = बुरी हालत (Bad condition)
- परतंत्रता = गुलामी (Slavery)
- राजभक्त = शासन के भक्त (Faithful of Govt.)
- सर्वनाश = पूरी बर्बादी (Total destruction)
- वय = आयु (Age)
- दुर्बल = कमजोर (Weak)
- केश = बाल (Hair)
- उत्तेजित = जोश में (Excited)
- हिये = हृदय (Heart)
- नीति मर्दक कानून = नीति को मिटाने वाला कान (against ethics)
- चेष्टा = कोशिश (Effort)
- प्रमाणित = सिद्ध (Prove)
- अमानवी = मनुष्यता रहित (In human)
- जननी = माँ (Mother)
- दिवाकर = सूर्य (Sun)
- क्रूरता = निर्दयता (Cruelity)
- विकल = बेचैन (Restless)
- विवश = मजबूर (Helpless)
- धूमिल = फीका (Faded)
- रवि = सूर्य (Sun)
- प्रतिध्वनि = बदले में आवाज (Echo)
कहानी का सार –
यह कहानी कुछ देशभक्त नौजवानों, उनकी बूढ़ी ममतामयी माँ तथा लेखक (राजभक्त) की है। लेखक के घर पुलिस सुपरिेटेंडेंट पधारे हैं। वे उनसे लाल और उसके परिवार के बारे में लेखक ने जानकारी माँगते हैं। लाल लेखक के मैनेजर रामनाथ का पुत्र है। रामनाथ मरने से पूर्व कुछ हजार रुपए लेखक के पास जमा कर गया था, उसी से लाल के घर का खर्च चल रहा है। लाल कॉलेज में पढ़ रहा है। उसकी माँ जानकी लाल और उसके अन्य साथियों को खिलाती-पिलाती रहती है। लाल और उसके साथी क्रांतिकारी विचारों के हैं। पुलिस उन्हें राजविद्रोही मानती है। अतः पुलिस लेखक को भी चेतावनी देती है कि वह उनसे दूर रहे। लेखक लाल की माँ तथा लाल को इस प्रकार की गतिविधियों से दूर रहने को कहता है, पर लाल उनके विचारों से सहमत नहीं हो पाता। वह सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए षड्यंत्र, विद्रोह तथा हल्ला तक करने को तैयार है। लाल की माँ तो बस उतना जानती है कि लाल के सभी साथी उसे माँ कहकर बुलाते हैं। वे उसमें भारतमाता का रूप देखते हैं।
एक दिन लेखक को पता चलता है कि लाल के घर पुलिस का छापा पड़ा और तलाशी में बड़ी-बड़ी भयानक चीजें निकलीं। लाल के साधियों के यहाँ भी छापे पड़े। सभी को गिरफ्तार करके पुलिस ले गई। सभी पर एक वर्ष तक मुकदमा चला। बूढ़ी माँ जेल में बच्चों को अच्छा खाना लेकर जाती रही। इसमें उसके घर के बरतन तक बिक गए। उसे उम्मीद थी कि अदालत में उसके बच्चे निर्दोष सिद्ध हो जाएँगे। मगर उस दिन उसकी कमर टूट गई जब ऊँची अदालत ने लाल को, बंगड़ लठैत को तथा दो लड़कों को फाँसी और दस को दस वर्ष से सात वर्ष तक की कड़ी सजाएँ सुना दीं। लड़के इन सजाओं से बिल्कुल बेफिक्र थे। उनकी मस्ती अभी भी बरकरार थी।
लाल की माँ के पास लाल का एक पत्र था जिसमें उसने अपनी माँ को जन्म-जन्मातर की जननी कहा था। माँ उस पत्र को लेकर लेखक के पास गई, लेखक ने भी वह पत्र पढ़ा। माँ उस पत्र को लेकर लाठी टेकती-टेकती अपने घर लौट आई। एक दिन लेखक के नौकर ने आकर बताया कि लाल के घर ताला पड़ा हुआ है। बूढ़ी माँ दरवाजे पर पाँव पसारे, हाथ में कोई चिट्वी लिए, मरी पड़ी है।
उसकी माँ सप्रसंग व्याख्या
1. दोपहर को जरा आराम करके उठा था। अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में खड़ा-खड़ा बड़ी-बड़ी अलमारियों में सजे पुस्तकालय की ओर निहार रहा था। किसी महान लेखक की कोई कृति उनमें से निकालकर देखने की बात सोच रहा था। मगर, पुस्तकालय के एक सिरे से लेकर दूसरे तक मुझे महान ही महान नजर आए। कहीं गेटे, कहीं रूसो, कहीं मेजिनी, कहीं नीसे, कहीं शेक्सपीयर, कहीं टॉलस्टाय, कहीं हूगो, कहीं मोपासाँ, कहीं डिकेंस, स्पेंसर, मैकाले, मिल्टन, मोलियर उउफ! इधर से उधर तक एक-से-एक महान ही तो थे! आखिर मैं किसके साथ चंव मिनट मनबहलाव करूँ, यह निश्चय ही न हो सका, महानों के नाम ही पढ़ते-पढ़ते परेशान सा हो गया।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा’ भाग-1 में संकलित कहानी ‘उसकी मा’ से अवतरित है। इसके रचयिता पांडेय बेचन शमर् ‘उग्र’ हैं। इस कहानी में देश की युवा की आजादी के लिए बेचैनी तथा बुद्धिजीवी वर्ग की अपनी सुविधा के लिए राजसत्ता की तलवे चाटने की प्रवृत्ति को उजागर किया गया है।
व्याख्या- लेखक दोपहर के समय थोड़ा विश्राम करके उठा था। वह अपने लिखने-पढ़ने के कमरे में खड़ा हुआ अपने पुस्तकालय की अलमारियों में रखी पुस्तकों को निहार रहा था। वह किसी महान लेखक की रचना पढ़ना चाह रहा था। उसके पुस्तकालय में अनेक महान लेखकों की रचनाएँ थीं। उसे एक सिरे से दूसरे सिरे तक महान लेखक नजर आए। इनमें रूसो, गेटे, मेजिनी, नीश्रे, शेक्सपीयर, टॉलस्टाय, ह्यूगो, मोपासाँ, डिकेंस, स्पेंसर, मैकाले, मिल्टर, मोलियर आदि का उल्लेख किया जा सकता है। इस सिरे से उस सिरे तक महान ही महान लेखकों की रचनाएँ भरी पड़ी थीं। लेखक यह निश्चय नहीं कर पा रहा था कि वह किसके साथ कुछ मनबहलाव करे अर्थात् किसकी रचना पढ़कर अपना मनोरंजन करे। महान लेखकों की सूची इतनी लंबी थी कि वह उनके नाम पढ़-पढ़कर ही परेशान हो गया।
विशेष :
1. लेखक का पुस्तक-प्रेम प्रकट होता है।
2. भाषा सरल, सुबोध एवं प्रवाहमयी है।
2. “इस पराधीनता के विवाद में, चाचा जी, मैं और आप दो भिन्न सिरों पर हैं। आप कद्टाराजभक्त, मैं कद्ट राजविद्रोही। आप पहली बात को उचित समझते हैं – कुछ कारणों से, मैं दूसरी को – दूसरे कारणों से। आप अपना पद छोड़ नहीं सकते – अपनी प्यारी कल्पनाओं के लिए, मैं अपना भी नहीं छोड़ सकता।”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग-1’ में संकलित पाठ ‘उसकी माँ’ से अवतरित है। इसके रचयिता पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ हैं। इसमें लेखक ने स्वतंंत्रता पूर्व की क्रांतिकारियों की गतिविधियों का उल्लेख किया गया है। युवा पीढ़ी देशभक्ति का परिचय दे रही थी। वहीं कुछ बुद्धिजीवी अपनी सुविधा के लिए अंग्रेजी सत्ता की चापलूसी में लगे थे।
व्याख्या – लाल के बारे में जब पुलिस पूछ्ताछ करने आई तब लेखक ने उसी से जानना चाहा कि वह किस प्रकार की गतिविधियों में लिप्त रहता है। लेखक स्वयं को लाल का संरक्षक मानते थे क्योंकि उसका पिता उनकी जमींदारी का मुख्य मैनेजर था। लाल और लेखक में वैचारिक भिन्नता है। लाल यह बात कहता भी है – पराधीनता के विवाद ने उन्हें दो सिरों पर खड़ा कर दिया। लेखक कट्टर राजभक्त था और लाल राजविद्रोही था। अतः दोनों की पटरी बैठ नहीं सकती थी। दोनों के ऐसा होने के अपने-अपने कारण थे। लेखक सुख-सुविधा पूर्ण जीवन तभी बिता सकता था जब अंग्रेजी शासन की चापलूसी करता। लाल और उसके साथी भारत से|अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंक देना चाहते थे। उनकी विचारधारा में जमीन-आसमान का अंतर था। दोनों अपनी-अपनी जिद पर अड़ थे। लेखक (चाचा) अपना पद बनाए रखना चाहते थे जबकि लाल भारत को आजाद कराकर अपनी कल्पनाओं को साकार करना चाहता है। लाल और उसके युवा साथी परदेसी शासन का नाश चाहते थे।
विशेष :
1. चाचा (लेखक) और लाल के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान की दो विरोधी प्रवृत्तियों का उल्लेख़ किया गया है।
2. तर्कपूर्ण शैली अपनाई गई है।
3. ‘अजी, ये परदेसी कौन लगते हैं हमारे, जो बरबस राजभक्ति बनाए रखने के लिए हमारी छाती पर तोप का मुँह लगाए अड़े और खड़े हैं। उफ! इस देश के लोगों के हिये की आँखें मुँद गई हैं। तभी तो इतने जुल्मों पर भी आदमी आदमी से डरता है। ये लोग शरीर की रक्षा के लिए अपनी-अपनी आत्मा की चिता सँवारते फिरते हैं। नाश हो इस परतंत्रवाद का!’
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ की कहानी ‘उसकी माँ’ से अवतरित हैं। लेखक के पूछने पर लाल की माँ, लाल और उसके साधियों की बातों के बारे में बता रही है।
व्याख्या – लाल के एक साथी ने उत्तेजना में भरकर अंग्रेजों को बुरा-भला कहा। वह बोला – ये अंग्रेज परदेसी हैं, ये हमारे कुछ नहीं लगते। ये जबर्दस्ती हमसे राजभक्ति कराना चाहते हैं। इन्होंने भयभीत करने के लिए हमारी छाती पर तोप का मुँह लगा रखा है अर्थात् शक्ति का प्रदर्शन करके हमें गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं। इससे इनका स्वार्थ सिद्ध होता है। उस युवक को इस बात पर अफसोस होता है कि हमारे ही कुछ लोगों के ह्वदय की आँखें मुँद गई हैं अर्थात् वे वास्तविकता की अनदेखी कर रहे हैं। ये लोग डरपोक किस्म के हैं। ये अंग्रेजी शासक हम पर इतने जुल्म (अत्याचार) करते हैं, फिर भी आदमी आदमी की मदद करने की बजाय एक-दूसरे से डरता है। ये सब मिलकर ब्रिटिश सत्ता से संघर्ष नहीं करते। इन्हें अपना शरीर प्यारा है, ये उसी की रक्षा में जुटे हैं। इन्हें आत्मा की परवाह नहीं है। आत्मा भले ही मर जाए, पर इनका शरीर बचा रहना चाहिए। लड़के ऐसे परतंत्रवाद गुलामी के नाश की कामना करते हैं।
विशेष :
1. परदेसी सत्ता का डटकर विरोध किया गया है।
2. भाषा में प्रभाव पैदा करने की शक्ति है।