NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 6 खानाबदोश
Class 11 Hindi Chapter 6 Question Answer Antra खानाबदोश
प्रश्न 1.
जसवेव की पिटाई के बाव मजवूरों का समूचा विन कैसे बीता?
उत्तर :
सूबेसिंह द्वारा जसदेव की पिटाई के बाद मजदूरों का समूचा दिन भय और दहशत में बीता। उस दिन की घटना से सारे मजदूर डर गए थे। उन्हें लग रहा था कि सूबेसिंह किसी भी वक्त लौटकर कुछ भी कर सकता है।
प्रश्न 2.
झटों को जोड़कर बनाए चूल्हे में जलती लकड़ियों की चिट-पिट जैसे मन में पसरी दुश्चिंताओं और तकलीफों की प्रतिध्वनियाँ थी जहाँ सब कुछ अनिश्चित था।’ -यह वाक्य मानो की किस मनोस्थिति को उजागर करता है ?
उत्तर :
यह वाक्य मानो के मन की स्थिति को उजागर करता है। उसके मन में भी अपने जीवन की अनिश्चितता और दु:ख-तकलीफों की बातें रह-रहकर उठ रही थीं। पर अभी ये बातें उसके मन में ही रह रही थीं, आग बनकर बाहर नहीं आई थीं।
प्रश्न 3.
मानो अभी तक भटे की जिंदगी से तालमेल क्यों नहीं बैठा पाई थी ?
उत्तर :
मानो की भट्टे की जिंदगी पसंद नहीं थी। वह अपने पति सुकिया के कारण ही वहाँ रह रही थी। साँझ होते ही वहाँ का सारा माहौल भाँय-भाँय करने लगता था। वहाँ साँप-बिच्छू का डर लगा रहता था। उसका इस माहौल में जी घबराता था। यहाँ का वातावरण उसे रास नहीं आ रहा था। अतः वह यहाँ की जिंदगी से तालमेल नहीं बिठा पाई थी।
प्रश्न 4.
खुव के हाथों पथी इंटों का रंग ही बदल गया था। उस दिन इडटों को देखते-देखते मानो के मन में बिजली की तरह एक खयाल कौंधा था।’ -वह क्या खयाल था जो मानो के मन में बिजली की तरह कौंघा ? इस संदर्भ में सुकिया के साथ उसके वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
मानो के मन में यह विचार कौंधा था कि वह भी इसी तरह की इंटों से अपना मकान भी बनाएगी। इस संदर्भ में उसका सुकिया से वार्तालाप :
- मानो : एक घर में कितनी ईेें लग जाती हैं ?
- सुकिया : बहुत” कई हजार “लोहा, सीमेंट, लकड़ी, रेत अलग से।
- मानो : क्या हम इनकी पक्की ईटों से अपना घर नहीं बना सकते ?
- सुकिया : पक्की ईटों का घर दो-चार रुपए में नहीं बनता। इसमें ढेर सारे रुपयों की जरूरत होती है।
- मानो : हम स्वयं भी तो अपने घर के लिए ईेंटे बना सकते हैं।
- सुकिया : हम तो मजदूर हैं और भट्टा मालिक का है।
- मानो : इन इंटों पर हमारा भी हक है। हम हर महीने कुछ ज्यादा ईंटें बनाकर बचत करेंगे।
- सुकिया : मानो, ये खयाली पुलाव मत पका। हमें मजदूरी मिलती है कितनी है जो बचाने की बात सोचें।
- मानो : तुम कुछ भी करो। मैं रात-दिन काम करूँगी मुझे पक्की ईटटों का एक घर चाहिए। अपने गाँव में “लाल सुर्ख इंटों का घर।
प्रश्न 5.
असगर ठेकेदार के साथ जसदेव को आता देखकर सूबेसिंह क्यों बिफर पड़ा और जसवेव को मारने का क्या कारण था ?
उत्तर :
सूबेसिंह भटे के मालिक मुख्तार सिंह का बेटा है। असगर उनके भटे पर मजदूरों का ठेकेदार था। सूबेसिंह सामन्ती प्रवृत्ति का व्यक्ति है। वह भटे पर काम करने वाली मजदूरनी किसनी का दैहिक शोषण करता है। किसनी से मन भर जाने के बाद सूबेसिंह की नजर मानो पर पड़ती है। अपनी कुत्सा को पूरा करने के लिए दफ्तर के काम का बहाना बनाता है। वह असगंर से मानो को दफ्तर में बुलवाता है। असगर मानो की झोपड़ी पर पहुँच कर उसे बुलाता है तो वही बगल की झोपड़ी में रहने वाला जसदेव मानो की जगह काम करने की बात कहता है। वह असगर ठेकेदार के साथ सूबेसिंह के पास पहुँचता है। उसे देखकर सूबेसिंह बिफर पड़ता है। वह अपनी मंशा पूरी न होने के कारण गुस्से में आता है। उसे लगता है कि जसदेव उसकी मनमानी को रोकने का दुस्साहस कर रहा है। इसी बात के कारण वह जसदेव को मार-मार कर अधमरा कर देता है।
प्रश्न 6.
मानो किसनी क्यों नहीं बनना चाहती थी ?
उत्तर :
सूबेसिंह अपनी स्थिति और पैसे के बल पर किसनी का जमकर दैहिक शोषण करता है। वह उसके पति को नशे की गर्त में ढकेल देता है। समय बीतने के बाद वह किसनी को भी दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल बाहर करता है। किसनी का जीवन भी नरक जैसा हो जाता है। यह सब मानो के सामने होता है। मानो एक संघर्षशील और संवेदनशील महिला है। वह अपना घर तो बनाना चाहती है, पर उसके लालच नहीं है। वह सूबेसिंह के लालच्र वाले फन्दे को और उसके बाद के परिणाम को अच्छी तरह जानती है। वह अपना शोषण नहीं होने दे सकती है। इसीलिए वह किसनी नहीं बनना चाहती थी।
प्रश्न 7.
‘सुकिया ने मानो की आँखों से बहते तेज अंघड़ों को देखा और उनकी किरकिराहट अपने अंतर्मन में महसूस की। सपनों के दूट जाने की आवाज उसके कानों को फाड़ रही थी।’
प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ बताते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सूबेसिंह जब मानो को अपनी गिरफ्त में लेने में असफल रहा तब वह उन्हें तंग करने के नए-नए बहाने ढूँढने लगा। उसने सुकिया का साँचा जसदेव को दे दिया। मानो सुबह उठकर जब ईंट पाथने गई तब उसने देखा उसकी सारी ईंटें टूटी-फूटी पड़ी हैं। उसकी चीख निकल गई। वह रोने लगी। उसकी इंटें जान-बूझकर तोड़ी गई थीं। मानो का तो पक्का मकान बनाने का सपना ही टूट गया। सुकिया भी दु:खी था। वह भी फटी आँखों से ईटों को देख रहा था। सुकिया की आँखों से जो आँसू बह रहे थे वे आने वाले तूफान के परिचायक थे। अब उनके जीवन में तूफान आने वाला था। सुकिया के मन को इसका अंदाजा लग गया था। मानो का घर बनाने का सपना चकनाचूर हो गया था।
प्रश्न 8.
‘खानाबदोश’ कहानी में आज के समाज की किन-किन समस्याओं को रेखांकित किया गया है? इन समस्याओं के प्रति कहानीकार के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘खानाबदोश’ कहानी में आज के समाज की निम्नलिखित समस्याओं को रेखांकित किया गया है-
- मजदूर वर्ग का सभी शोषण करते हैं और वे इस यातना की झेलने के लिए विवश हैं।
- मजदूर अभी भी नारकीय जीवन जीते हैं। उनके लिए सुविधाओं का अभाव है।
- हमारे समाज में अभी भी जातिवादी मानसिकता हावी है। यह समाज में दरार डालती है।
- समाज में स्त्रियों की इज्जत सुरक्षित नहीं है।
इन समस्याओं के प्रति लेखक का दृष्टिकोण मानो और सुकिया के माध्यम से प्रकट हुआ है। वे शोषण के सम्मुख आत्मसमर्पण नहीं करते बल्कि कष्टपूर्ण जीवन झेलने के लिए कहीं और चल देते हैं। पर यह कोई गारंटी तो नहीं कि वहाँ उन्हें इसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। कहानीकार की श्रमिक वर्ग के प्रति सहानुभूति तो प्रकट हुई है, पर वह कोई तर्कपूर्ण समाधान प्रस्तुत नहीं कर पाया है।
प्रश्न 9.
‘चल! ये लोग म्हारा घर ना बणने देंगे।’ -सुकिया के इस कथन के आधार पर कहानी की पूरी संवेदना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पूँजीपति वर्ग नहीं चाहता था कि श्रमिक वर्ग सुख-चैन की जिंदगी जिए। वह उसे अपना मोहताज बनाए रखना चाहता है। मजदूर वर्ग यदि ईमानदारी से मेहनत-मजदूरी करके इज्जत के साथ जीवन जीना चाहता है तो सूबेसिंह जैसे समृद्ध और ताकतवर लोग उन्हें जीने नहीं देते। पूरी कहानी में मानो और सुकिया अपने मकान के लिए प्रयास करते हैं और अंत में यही समृद्ध वर्ग उनके सपनों को चकनाचूर कर देता है। ये उनका घर न बनने देने के प्रयत्न में लगे रहते थे। ये ही मजदूर पूँजीपति वर्ग के आलीशान महलों को खड़ा करते हैं, पर उनके जीवन में एक झोंपड़ी का सपना भी सपना बनकर रह जाता है। यही कहानी की मूल संवेदना है।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) अपने देश की सूखी रोटी भी परदेस के पकवानों से अच्छी होती है।
(ख) इत्ते ढे-से नोट लगे हैं घर बणाने में। गाँठ में नहीं है पैसा चले हाथी खरीदने।
(ग) उसे एक घर चाहिए था – पक्की ईंटों का। जहाँ वह अपनी गृहस्थी और परिवार के सपने देखती थी।
(घ) फिर तुम तो दिन-रात साथ काम करते हो….. मेरी खातिर पिटे….. फिर यह बामन म्हारे बीच कहाँ से आया…..?
(ङ) सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे।
उत्तर :
(क) इस पंक्ति का आशय यह है कि अपना घर, अपना गाँव अच्छा होता है। बाहर की अच्छी चीजें भी अपनी स्वतंत्रता के सामने कोई महत्त्व नहीं रखतीं। परदेश में गुलामी है।
(ख) सुकिया अपनी पत्नी मानो को समझाता है कि अपना घर बनाने में बहुत अधिक रुपए लगते हैं। हमारे पास रुपए तो हैं नहीं और हाथी जैसी बड़ी चीज खरीदने का सपना देखते हैं जो ठीक नहीं है।
(ग) मानो भटे की पकी लाल-लाल ईंटों को देखकर एक ही सपना देखती थी कि उसका घर भी इन्हीं पकी इंटों से बनना चाहिए। इस घर में वह अपनी गृहस्थी जमाना चाहती थी। उसे अपना घर बनाने की बड़ी इच्छ थी।
(घ) मानो ने जसदेव को समझाया कि वह भले ही ब्राह्मण हो और हम निम्न जाति के, पर हैं तो दोनों ही मजदूर ही। हमारी जाति यही है। तुम सूबेसिंह से मेरी खातिर ही पिटे थे। हमारे बीच में यह ब्राह्मण वाली नहीं आनी चाहिए। यह जाति भावना ठीक नहीं है।
(ङ) मानो का अपना घर बनाने का सपना चकनाचूर तब हो गया जब उसकी बनाई इंटों को किसी ने शरारत करके तोड़ दिया। वे भडे मालिक के आतंक से बचने के लिए वहाँ से कहीं और जा रहे थे। उस समय मानो की आँखों के सपने चूर-चूर होकर उसे व्यथित कर रहे थे।
प्रश्न 11.
नीचे दिए गए गद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए :
“भ्डुे से उठते काले धुएँ ……….. जिंदगी का एक पड़ाव था, यह भड्डा ।”
उत्तर :
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित कहानी ‘खानाबदोश’ से अवतरित है। मानो और सुकिया एक भडे पर ईंट पाथने का काम करते थे। वे भुुा मालिक सूबेसिंह के शोषण का शिकार हो गए थे अतः उन्होंने भ्टा छोड़कर अन्यत्र जाने का निश्चय किया। वे दिशाहीन यात्रा पर चल पड़े थे।
व्याख्या – उस समय भहटे से काला धुआँ निकल रहा था। उस धुएँ ने आकाश के नीचे एक काली चादर सी फैला दी थी। बादलों के नीचे धुएँ की परत बन गई थी। मानो और सुकिया यहाँ भटे का सब कुछ यहीं छोड़कर चल पड़े थे। उनका जीवन खानाबदोश जैसा था। वे एक घर की इच्छा मन में पाले हुए थे, जिसमें वे निश्चितता के साथ रह सकें। उनका यह सपना चकनाचूर हो गया। उन्होंने परिश्रम करके अपना पसीना बहाया था, पर उन्हें कुछ भी हासिल न हो सका। उनकी इच्छा कभी सफलीभूत नहीं हो पाएगी और न कोई उनको याद रख पाएगा। वे तो अपनी जीवन-यात्रा पर निरंतर चले जा रहे थे। इस खानाबदोश जिंदगी में भुटे का जीवन एक पड़ाव की तरह था। अब यह जीवन और आगे ऐसे ही अनिश्चितता में चलता रहेगा। इस प्रकार के जीवन में कुछ भी निश्चयपूर्वक नहीं हो सकता।
विशेष :
- लेखक वातावरण का चित्रण करने में पूरी तरह सफल रहा है।
- उर्दू शब्दों का प्रयोग प्रसंगानुकूल है-खानाबदोश, बेतरतीब।
- लेखक की भाषा सरल एवं सुबोध है।
योग्यता-विस्तार –
1. अपने आस-पास के क्षेत्र में जाकर ईंटों के भटे को देखिए तथा ईटें बनाने एवं उन्हें पकाने की प्रक्रिया का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
ईंट बनाने के लिए पहले मिट्टी में पानी मिलाकर गारा बनाया जाता है। उसे गाढ़ा करके साँचे में डालकर ईंटें पाथी जाती हैं। फिर उन्हें सूखने दिया जाता है। सूखी ईंटों को भड़े में जमाया जाता है। फिर भूटे में कोयला, लकड़ी, बुरादा भर कर आग लगा दी जाती है। जब ईंटे पक जाती हैं तब भट्टा खोल दिया जाता है और इंटे निकाल ली जाती हैं।
2. भट्टा-मज़दूरों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
भड्डा मजदूरों की सामाजिक और आर्थिक दशा बहुत ही दयनीय है। उन्हें समाज में निम्न दृष्टि से देखा जाता है। उन्हें समाज में किसी प्रकार का सम्मान नहीं मिलता। आर्थिक दृष्टि से भी ये लोग अत्यंत निम्नस्तर का जीवन जीते हैं। इन्हें भरपेट भोजन तक नहीं मिलता। प्राय: इनके मनचले मालिक उनकी बुरी आर्थिक दशा के कारण ही उनका शोषण करते हैं, स्त्रियों को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं।
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प्रश्न 1.
मानो सुकिया की किन बातों से कमजोर पड़ जाती थी?
उत्तर :
जब सुकिया मानो से कहता-‘ बड़े-बूढ़े कहा करे हैं कि आदमी की औकात घर से बाहर कदम रखणें पे ही पता चले है। घर में तो चूहा भी सूरमा बणा रह। कांधे पर्यो लंबा लट्ठ धरके चलणें वाले चौधरी सहर (शहर) में सरकारी अफसरों के आग्गे सीध्धे खड़े न हो सके हैं। बूढढ़ी बकरियों की तरह मिमियाएँ हैं……. और गाँव में किसी गरीब कू आदमी भी न समझे हैं…..।’ तो मानो इन बातों को सुनकर कमजोर पड़ जाती थी।
प्रश्न 2.
सुकिया और मानो की जिंदगी कैसी चलने लगी थी?
उत्तर :
सुकिया और मानो की जिंदगी एक निश्चित ढरें पर चलने लगी थी। दोनों मिलकर पहले तगारी बनाते, फिर मानो तैयार मिट्डी लाकर देती। इस काम में उनके साथ एक तीसरा मज़दूर भी आ गया था। नाम था जसदेव। छोटी उम्र का लड़का था। असगर ठेकेदार ने उसे भी उनके साथ काम पर/लगा दिया था। इससे काम में गति आ गई थी। सुकिया भी अब फुत्ती से साँचे में ईटें डालने लगा था, जिससे उनकी दिहाड़ी बढ़ गंई थी।
प्रश्न 3.
सूबेसिंह के भट्डे पर आते ही कैसा वातावरण हो जाता था?
उत्तर :
भुटे का मालिक मुखतार सिंह की जगह उनका बेटा सूबेसिंह भट्टे पर आने लगा था। मालिक कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर चले गए थे। उनकी गैरहाजिरी में सूबेसिंह का रौब-दाब भुटे का माहौल ही बदल देता था। इन दिनों में असगर ठेकेदार भीगी बिल्ली बन जाता था। दफ्तर के बाहर एक अर्दली की ड्यूटी लग जाती थी। जो कुर्सी पर उकडू बैठकर दिन-भर बीड़ी पीता था तथा आने-जाने वालों पर निगरानी रखता था। उसकी इजाज़त के बगैर कोई अंदर नहीं जा सकता था।
प्रश्न 4.
सूबेसिंह की नज़र किस पर गई थी?
उत्तर :
सूबेसिंह की नज़र महेश की पत्नी किसनी पर पड़ गई थी। उसकी शादी पाँच-छः महीने पहले ही हुई थी। सूबेसिंह ने किसनी को अपने दफ्तर में सेवा-टहल के काम पर रख लिया था। प्रश्न 5. किसनी के व्यवहार में क्या परिवर्तन आ रहा था? उत्तर-किसनी महेश की उपेक्षा करने लगी थी और सूबेसिंह के साथ रहती थी। अब वह हैंडपंप के नीचे बैठकर साबुन से रगड़-रगड़ कर नहाती थी। ट्रांजिस्टर पर फिल्मी गाने सुनती थी तथा अच्छे फपड़े पहनती थी।
प्रश्न 6.
सुकिया क्या देखकर हैरान रह गया?
उत्तर :
सुबह के जरूरी कामों से निपटकर जब सुकिया ने झोपड़ी में झाँका तो वह हैरान रह गया था। इतनी देर तक मानो कभी नहीं सोती। वह परेशान हो गया था। गहरी नींद में सोई मानो का माथा उसने छूकर देखा, माथा ठंडा था। उसने राहत की सांस ली। मानो को जगाया, “इतना दिन चढ़ गया है….उठने का मन नहीं है?”
प्रश्न 7.
सूबेसिंह ने किसनी के जीवन में क्या बदलाव ला दिया था?
उत्तर :
सूबेसिंह किसनी को शहर भी लेकर जाने लगा था। किसनी के रंग-ढंग में बदलाव आ गया था। अब वह भट्डे पर गारे-मिट्टी का काम नहीं करती थी। महेश रोज़ रात में शराब पीकर मन की भड़ास निकालता था। दिन में भी अपनी झोपड़ी में पड़ा रहता था या इधर-उधर बैठा रहता था। किसनी कई-कई दिनों तक शहर से लौटती नहीं थी। जब लौटती-थकी, निढाल और मुरझाई हुई कपड़ों-लत्तों की अब कमी नहीं थी।
प्रश्न 8.
सूबेसिंह ने जसदेव को क्या धमकी दी?
उत्तर :
सूबेसिंह ने जसदेव को धमकी देते हुए कहा-” साले, भुटे की आग में झोंक दूँगा। किसी को पता भी नहीं चलेगा। हड्डियाँ तक नहीं मिलेंगी राख से। समझा?” सूबेसिंह ने उसे धकिया दिया। जसदेव गिर पड़ा था।
प्रश्न 9.
मानो ने जसदेव से उस समय क्या कहा जब उसने रोटियाँ लेने से मना कर दिया?
उत्तर :
रोटियाँ लेने से इंकार करने पर मानो ने जसदेव से कहा-” तुम्हारे भइया कह रहे थे कि तुम बामन हो?….इसीलिए मेरे हाथ की रोटी नहीं खाओगे। अगर यो बात है, तो मैं जोर ना डालूँगी…. थारी मर्जी…. औरत हूँ… पास में कोई भूखा हो…. तो रोटी का कौर गले से नीचे नहीं उतरता है।…. फिर तुम तो दिन-रात साथ काम करते हो…., मेरी खातिर पिटे… फिर यह बामन म्हारे बीच कहाँ से आ गया….?” मानो रुआँसी हो गई थी। उसका गला रुँध गया था।
प्रश्न 10.
सूबेसिंह से मार खाकर जसदेव ने रात कैसे काटी और अंत में उसने क्या निश्चय कर लिया?
उत्तर :
सूबेसिंह से मार खाकर जसदेव ने पूरी रात जागकर काटी थी। सूबेसिंह का गुस्सैल चेहरा बार-बार सामने आकर दहशत पैदा कर रहा था। उसे लगने लगा था कि जैसे वह अचानक किसी षड्यंत्र में फंस गया है। उसे यह अंदाजा नहीं था कि सूबेसिंह मारपीट करेगा। ऐसी कल्पना भी उसे नहीं थी, वह डर गया था। उसने तय कर लिया था कि चाहे जो हो, वह इस पचड़े में नहीं पड़ेगा।
प्रश्न 11.
सुकिया चुपचाप लेटा क्या सोच रहा था?
उत्तर :
सुकिया भी चुपचाप लेटा हुआ था। उसकी भी नींद उड़ चुकी थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था, कि क्या करे, इन्हीं हालात में गाँव छोड़ा था। वे ही फिर सामने खड़े थे। आखिर जाएँ तो कहाँ? सूबे सिंह से पार पाना आसान नहीं था। सुनसान जगह है कभी भी हमला कर सकता है। या फिर मानो को…. विचार आते ही वह काँप गया था। उसने करवट बदली। मानो जाग रही थी। उसे अपनी ओर खींचकर सीने से चिपटा लिया था।
प्रश्न 12.
सुकिया और मानो किसलिए दिन-रात काम में जुटे थे?
उत्तर :
सुकिया और मानो दिन-रात काम में जुटे थे। फिर भी हर महीने वे ज़्यादा कुछ बचा नहीं पा रहे थे। पिछले दिनों उन्होंने दुगुनी ईटें पाथी थीं। उनके उत्साह में कोई कमी नहीं थी। एक ही उद्देश्य था-पक्की ईटों का घर बनाना है। इसीलिए सूबेसिंह की ज्यादतियों को वह सहन कर रहे थे। लेकिन एक तड़प थी दोनों में, जो उन्हें संभाले हुए थी।
प्रश्न 13.
मानो क्या दृश्य देखकर अवाक् रह गई थी और क्यों?
उत्तर :
मानो सुबह-सुबह भुटे पर पहुँच गई थी। अभी वहाँ इक्का-दुक्का मज़दूर ही इधर-उधर दिखाई पड़ रहे थे। वह तेज़ कदमों से ईट पाथने की जगह पर पहुँच गई थी। वहाँ का दृश्य देखकर अवाक् रह गई थी। सारी ईेे टूटी-फूटी पड़ी थी। जैसे किसी ने उन्हें बेदर्दी से रौंद डाला था। ईंटों की दयनीय अवस्था देखकर उसकी चीख निकल गई थी। वह दहाड़ें मार-मार कर रोने लगी थी। आवाज़ सुनकर मज़दूर इकट्ठा हो गए थे।
प्रश्न 14.
सूबेसिंह और किसनी की कहानी की क्या स्थिति थी?
उत्तर :
किसनी और सूबेसिंह की कहानी अब काफी आगे बढ़ गई थी। सूबेसिंह के अर्दली ने महेश को शराब की लत डाल दी थी। शराब पीकर महेश झोंपड़ी में पड़ा रहता था। किसनी के पास एक ट्रांजिस्टर भी आ गया था। सुबह-शाम भटटे की खामाशी में ट्रांजिस्टर की आवाज़ गूँजने लगी थी। ट्रांजिस्टर वह इतने ज़ोर से बजाती थी कि भदे का वातावरण फिल्मी गानों की आवाज से गमक उठता था। शांत माहौल में संगीत-लहरियों ने खनक पैदा कर दी थी।
प्रश्न 15.
ईंटों के दूटने पर मचे हल्ले को सुनकर सुकिया पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर :
सुकिया भी हो-हल्ला सुनकर मोरी का काम छोड़कर आया था। ईंटों की हालत देखकर उसका भी दिल बैठने लगा था। उसकी जैसे हिम्मत टूट गई थी। वह फटी-फटी आँखों से ईटों को देख रहा था। सुकिया को देखते ही मानो और जोर-जोर से रोने लगी थी। सुकिया ने मानो की आँखों में बहते तेज़ अंधड़ों को देखा और उनकी किरकिराहट अपने अंतर्मन में महसूस की। सपनों के टूटे जाने की आवाज़ उसके कानों को फाड़ रही थी।
प्रश्न 16.
चूल्हे में जलती लकड़ियों की चिट-चिट से लेखक को क्या भान होता है?
उत्तर :
चूल्हे में जलती लकड़ियों की चिट-चिट से लेखक को यह भान होता है कि सब कुछ अनिश्चित-सा है। चिट-चिट की ध्वनियाँ जैसे मन में पसरी दुशिंचताओं और तकलीफों की प्रतिध्वनियाँ हों। इनके द्वारा मन की चिंता प्रकट होती जान पड़ती थी।
प्रश्न 17.
सुकिया के मन में कौन-सी बात बैठ गई थी?
उत्तर :
सुकिया के मन में यह बात बैठ गई थी कि यदि नरक की जिंदगी से बाहर निकलना है तो कुछ छोड़ना भी पड़ेगा। आदमी को कुछ पाने के लिए घर से बाहर कदम रखना ही पड़ता है। बाहर जाकर ही आदमी की औकात का पता चलता है।
प्रश्न 18.
भडे की जिंदगी कैसी थी?
उत्तर :
भुटे की जिंदगी एक बंधे-बंधाए ढरें पर चलती थी। वहाँ दिन भर ईंट बनाने (पाथने) का काम चलता रहता था। दिन भर की गहमा-गहमी के बाद रात को भुा अंधेरे की गोद में समा जाता था। सभी मजदूर अपने दड़बेनुमा झोपड़ी में घुस जाते थे। तब औरतें चूल्हा-चौका संभाल लेती थीं। ज्यादातर लोग रोटी के साथ गुड़ या लाल मिर्च की चटनी ही खाते थे। दाल-सब्जी तो कभी कभार ही बनती थी।
प्रश्न 19.
मानो किसनी क्यों नहीं बनना चाहती थी?
उत्तर :
मानो किसनी इसलिए नहीं बनना चाहती थी क्योंकि वह किसनी का हाल देख चुकी थी। वह सूबेसिंह की बुरी नज़रों को जान चुकी थी। वह उसके झाँसे में नहीं आना चाहती थी। किसनी जैसी स्त्री की समाज में कोई इज्जत नहीं होती। इन्हें तो उपभोग करके फेंक दिया जाता है। मानो सुकिया के प्रति वफादार बनी रहना चाहती थी अतः उसने किसनी न बनने का निश्चय किया था।
प्रश्न 20.
‘खानाबदोश’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
‘खानाबदोश’ कहानी का शीर्षक पूरी तरह सार्थक है। इस कहानी के प्रमुख पात्र मानो और सुकिया खानाबदोश जीवन बिताते हैं। पहले वे इस भुटे पर खानाबदोश बनकर आए थे, पर यहाँ का ढर्रा उन्हें रास नहीं आया अतः वे कहानी के अंत में फिर से खानाबदोश बन जाते हैं और अगले पड़ाव की तलाश में एक दिशाहीन यात्रा पर चल पड़ते हैं। यह शीर्षक कहानी की मूल भावना को भली प्रकार स्पष्ट करता है अतः सर्वथा उचित है। यह आकर्षक भी है।
प्रश्न 21.
पाठ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यों का अर्थ अपने शब्दों में लिखिए :
(क) भुटे का सबसे खतरेवाला काम था मोरी पर काम करना।
(ख) दिनभर की गहमा-गहमी के बाद यह भुुा अंधेरे की गोद में समा जाता था।
(ग) अब कपड़े-लतों की कमी नहीं थी।
(घ) नहीं…….. भद्धा नहीं छोड़ना है।
(ङ) एक शीत-युद्ध जारी था उनके बीच।
उत्तर :
(क) भुटे पर अनेक काम होते हैं, पर मोरी से कोयला, बुरादा डालने का काम बहुत खतरे वाला होता है। इसे सब नहीं कर सकते।
(ख) भुटे पर दिन भर तो चहल-पहल रहती है पर रात के समय भटे पर पूरी तरह अंधेरा छा जाता है। तब लगता है उसका अस्तित्व ही नहीं है।
(ग) किसनी जब से सूबेसिंह के संपर्क में आई है तब से उसे पहनने को खूब नए-नए कपड़े मिलते हैं। अब उसे कपड़ों की कोई कमी नहीं रही। सूबेसिंह यह सब उसका शारीरिक शोषण करने के बदले में देता था।
(घ) मानो सूबेसिंह के अत्याचार के बारे में सोचती है तो उसे अपना पति सुकिया महेश से भिन्न प्रतीत होता है। सुकिया भले ही भट्डा छोड़ दे, पर उसकी इज्जत को बचाकर रखेगा। पर भट्ठा छोड़ने का विचार उसे दुखी कर देता है क्योंकि भूटे पर काम करने से ही तो वह अपना घर बनाने का सपना साकार कर पाएगी। अतः भटे को नहीं छोड़ने का निश्चय करती है।
(ङ) सुकिया और सूबेसिंह के मध्य बिना कुछ कहे-सुने ही एक प्रकार का युद्ध जारी था। सूबेसिंह तरह-तरह के उपायों से सुकिया को तंग करता था। सुकिया कुछ भी नहीं कह पाता था।
प्रश्न 22.
भटे की पकी इंटों को देखकर मानो के हृदय में कौन-सी आकांक्षा ने जन्म लिया?
उत्तर :
भुटे की पकी ईंटों को देखकर मानो के हृदय में अपना घर बनाने की आकांक्षा ने जन्म लिया। मानो उसी प्रकार की पकी लाल ईंटों से अपने परिवार के लिए घर बनाना चाहती थी।
प्रश्न 23.
सूबेसिंह ने जसदेव को क्यों मारा?
उत्तर :
सूबेसिंह ने जसदेव को इसलिए मारा क्योंकि वह मानो के स्थान पर स्वयं उसके पास आया था। सूबेसिंह की बुरी निगाह तो मानो पर थी। सूबेसिंह के अपशब्दों पर जसदेव ने उसे टोका तो उसके गाल पर झन्नाटेदार थम्पड़ पड़ा। फिर सूबेसिंह ने उसे धक्का देकर गिरा दिया और अधमरा कर दिया।
प्रश्न 24.
मानो के विलो-विमाग पर ईंटों का लाल रंग क्यों छा गया था?
उत्तर :
मानो भुटे पर ईंट पाथने का काम करने वाली एक मजदूरिन थी। जब उसने अपने और पति सुकिया की पाथी गई इटों को भुटे में पककर बाहर निकलते देखा तो उन ईंटों का लाल रंग मानो के दिल-दिमाग पर छा गया। उसकी खुशी की कोई इंतहा नहीं थी। उसकी बनाई गई ईंटों का रंग ही बदल गया था। इन ईंटों को देखकर उसके मन में एक खयाल कॉँध गया। वह इसी प्रकार की लाल-लाल ईंटों से अपना घर बनाने का सपना संजोने लगी। उसने सुकिया से पूछ्छा भी-‘ एक घर में कितनी इंटें लग जाती हैं।’ मानो के दिल-दिमाग में लाल ईटों का रंग कुछ ऐसे छा गया कि वह उसी में उलझ कर रह गई। वह ज्यादा ईटें बनाकर अपना घर बनाना चाहने लगी।
प्रश्न 25.
‘खानाबदोश’ कहानी की मूल संवेदना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘खानाबदोश’ कहानी की मूल संवेदना है-मजदूर वर्ग का शोषण। वे शोषक वर्ग की यातना को झेलने को विवश होते हैं। सूलेसिंह जैसे समृद्ध और ताकतवर लोग उन्हें जीने नहीं देते। हमारे समाज में व्याप्त जातिवादी मानसिकता भी समाज को बाँटने में अहम भूमिका का निर्वाह करती है और शोषक वर्ग इसको एक हथियार के रूप में अपने पक्ष में करता है। शोषित वर्ग कभी भी अपने लिए कुछ भी नहीं कर पाता। वह तो रोटी-रोजी की समस्या में ही उलझकर रह जाता है। उनका जीवन खानाबदोश ही बना रहता है।
प्रश्न 26.
भद्ठे के मजदूरों का रहन-सहन कैसा था ? ‘खानाबदोश’ कहानी के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
‘खाना बदोश’ कहानी में बताया गया है कि भट्ठ पर काम करने वाले मजदूरों का जीवन बहुत ही साधारण किस्म का था। वे दयनीय दिशा में जी रहे थे। उनकी आमदनी बहुत कम थी। वे लोग दड़बेनुमा झोंपड़ी में रहकर रात बिताते थे। वहाँ साँप-बिच्छू का भी डर बना रहता था। ईटों को जोड़कर चूल्हा बनायाजाता था और उसी पर रोटियाँ पकाई जाती थीं। भट्ठे के मजदूरों की स्त्रियों पर मालिक या ठेकेदार की बुरी नीयत रहती थी। वे उनका शोषण करते थे। इन मजदूरों का जीवन अनिश्चताओं और अभावों के बीच झूलता रहता था।