Class 11 Hindi Antra Chapter 5 Summary - Jyotiba Phule Summary Vyakhya

ज्योतिबा फुले Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 5 Summary

ज्योतिबा फुले – सुधा अरोड़ा – कवि परिचय

प्रश्न :
सुधा अरोड़ा के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी रचनाओं और साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय – सुधा अरोड़ा का जन्म लाहौर (पाकिस्तान) में ( 1948 में) हुआ। उच्च शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से हुई। विश्वविद्यालय के दो कॉलेजों में उन्होंने सन् 1969 से 1971 तक अध्यापन कार्य किया।

रचनाएँ – उनके कई कहानी संग्रह प्रकाशित हैं जैसे-‘ बगैर तराशे हुए’. ‘युद्ध-विराम’, ‘महानगर की भौतिकी’, ‘काला शुक्रवार’, ‘काँसे का गिलास’ तथा ‘औरत की कहानी’ (संपादित) आदि।

साहित्यिक विशेषताएँ – सुधा अरोड़ा की कहानियाँ लगभग सभी भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी, फ्रेंच, पोलिश, चेक और जापानी आदि विदेशी भाषाओं में अनूदित हैं। उन्होंने भारतीय महिला कलाकारों के आत्मकथ्यों के दो संकलन ‘दहलीज को लाँघते हुए’ और ‘पंखों की उड़ान’ तैयार किया। लेखन के स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में भी बराबर उनकी सक्रियता बनी हुई है। पाक्षिक ‘सारिका’ में ‘आम आदमी जिंदा सवाल’ और राष्ट्रीय दैनिक ‘जनसत्ता’ में महिलाओं से जुड़े मुद्दे पर उनका साप्ताहिक कॉलम ‘वामा’ बहुचर्चित रहा। महिला, संगठनों के सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी सक्रियता एवं समर्थन जारी है। महिलाओं पर ही केंद्रित ‘औरत की दुनिया बनाम दुनिया की औरत’ लेखों का संग्रह शीघ्र प्रकाशित होने वाला है। ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’ द्वारा 1978 में उन्हे ‘विशेष पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

सुधा अरोड़ा मूलतः कथाकार हैं। उनकी भाषा सहज, संयत और पठनीय है। सामाजिक और मानवीय सरोकारों को वे रोचक ढंग से विश्लेषित करती हैं।

Jyotiba Phule Class 11 Hindi Summary

प्रस्तुत निबंध में लेखिका ने ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी द्वारा समाज में किए गए शिक्षा और सुधार संबंधी कार्यों के महत्त्व को बतलाया है कि किस तरह समाज और धर्म के पारंपरिक और अनीतिपूर्ण रूढ़ियों का विरोधकर उन्होंने दलितों, शोषितों और स्त्रियों की समानता के हक की लड़ाई लड़ी क्योंकि आधुनिक शिक्षा का लाभ केवल समाज के उच्च वर्ग को ही मिलता था। वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था द्वारा पहले से ही शोषित, दलित और स्त्री के लिए उन्होंने शिक्षा और समानता के महत्व को समझकर संघर्ष किया, जिसके कारण समाज का व्यापक विरोध भी उन्हें झेलना पड़ा। इस अर्थ में उनका संघर्ष बहुत ही प्रेरणाप्रद है। इससे बढ़कर लेखिका ने भी उसे प्रेरणाप्रद ढंग से प्रस्तुत किया है।

शब्दार्थ :

  • अप्रत्याशित = जिसकी उम्मीद भी न हो (Unaccepted)
  • बदलाव = परिवर्तन (Change)
  • शुमार = गिनती, शामिल (Included)
  • उच्चवर्गीय = ऊँची जाति के (Upper class)
  • वर्चस्व = दबदबा, प्रधानता (Importance)
  • कायम रखना = बनाए रखना, स्थिर रखना (To maintain)
  • पूँजीवादी = जो पूँजी को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान करता है (Capitalist)
  • पूरक = एक-दूसरे पर निर्भर (Complimentary)
  • पर्दाफाश = भंडाफोड़, उजागर करना (To expose)
  • गुलामगिरी = लोगों से गुलामी कराना, लोगों के साथ
  • असलियत = वास्तविकता (Reality)
  • दासों जैसा व्यवहार करना (Slavery)
  • पूर्णविराम = किसी बात को खत्म करना (Full stop)
  • मठाधीश = जो धर्म तथा वर्ग के नाम पर समूह बनाते हैं और अपना निर्णय उन पर थोपते हैं (Priest)
  • आमादा होना = किसी कार्य को करने के लिए दृढ़ होना
  • मिसाल = उदाहरण, आदर्श (Example)
  • सामाजिक विकास = समाज का विकास
  • सामाजिक मूल्य = समाज की मान्यताएँ (Social values)
  • मानसिकता = मन की दशा (Mentality)
  • शोषण = दबाना (Exploitation)
  • आधिपत्य = अधिकार जमाना (To control)
  • संगृहीत = एकत्रित (Collected)
  • अवधारणा = मान्यता (Concept)
  • सर्वांगीण = पूरी तरह से (Fully)
  • संभ्रांत = उच्च वर्ग (Higher class)
  • मति = बुद्धि (Intelligence)
  • बहुचर्चित = जिसकी चर्चा अधिक हो, लोकप्रिय (Popular)
  • वित्त = धन (Finance)
  • पक्षपात = भेदभाव (Favourtism)
  • प्रतिष्ठित = सम्मानित (Respected)
  • आकांक्षा = मन की इच्छा (Desire)
  • अग्रसर = आगे बढ़ना (To goforward)
  • ग्राह्य शक्ति = ग्रहण करने की शक्ति हाट (Grasping power)
  • बहिष्कार = बाजार (Market)
  • व्यवधान = रुकावट (Hinderance)
  • आग्रह = हठ (Request)
  • प्रतिबंधक = रुकावट (Forbidden)
  • प्रबुद्ध = पढ़े-लिखे विद्वान (Intellectual
  • प्रतिस्पर्द्धात्मक = मearned)
  • मुकाबले में (Competitive revalry)

पाठ का सार –

इस पाठ में लेखिका ने प्रसिद्ध समाज-सुधारक ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी के शिक्षा एवं सामाजिक कार्यों का उल्लेख किया है। उनका नाम सामाजिक विकास और बदलाव के आंदोलन के पाँच प्रमुख लोगों में नहीं लिया जाता है। इसका कारण है कि इस सूची को बनाने वाले उच्च वर्ग के प्रतिनिधि थे। ज्योतिबा फुले ब्राहमण वर्चस्व और सामाजिक मूल्यों को कायम रखने वाली शिक्षा के समर्थक नहीं थे। उन्होंने पूँजीवाद्वी और पुरोहितवादी मानसिकता पर खुला हमला बोला। उनके प्रयासों से विद्या शूद्रों के घर तक पहुँच गई।

ज्योतिबा फुले ने वर्ण, जाति और वर्ग व्यवस्था में निहित शोषण प्रक्रिया को एक-दूसरे का पूरक बताया। उनका कहना था कि इस शोषण-व्यवस्था के विरुद्ध दलितों और स्त्रियों को आंदोलन करना चाहिए। उनके मौलिक विचार ‘गुलामगिरी’, ‘शेतकरयाचा आसूड’ (किसानों का प्रतिशोध) तथा ‘सार्वजनिक सत्यधर्म’ आदि पुस्तकों में संकलित हैं। फुले के विचार अपने समय से बहुत आगे थे। आदर्श परिवार के बारे में उनका मत था-” जिस परिवार में पिता बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्यधर्मी हो, वह परिवार एक आदर्श परिवार है।”

आधुनिक शिक्षा के बारे में फुले का कहना था कि यदि आधुनिक शिक्षा का लाभ उच्च वर्ग को मिलता है, तो उसमें शूद्रों का क्या स्थान रहेगा? भला ऐसी शिक्षा से क्या लाभ जो गरीबों से टैक्स उगाह कर अमीरों के बच्चों को शिक्षा दी जाए। यही कारण है कि महात्मा फुले के विचारों को संभ्रांत समीक्षकों और विकसित वर्ग कां प्रतिनिधित्व करने वालों ने कोई महत्त्व नहीं दिया।

महात्मा फुले ने स्त्री शिक्षा पर बल देते हुए लिखा है कि स्त्री-शिक्षा के दरवाजे पुरुषों ने इसलिए बंद कर रखे हैं ताकि यह वर्ग मानवीय अधिकारों को समझ न पाए और न ही पुरुषों के समान स्वतंत्रता ले सके। ज्योतिबा फुले ने स्त्री-समानता को प्रतिष्ठित करने वाली नई विवाह-विधि की रचना की। उन्होंने अपनी इस विधि से ब्राह्मण का स्थान ही हटा दिया। उन्होंने पुरुष प्रधान संस्कृति के समर्थक और स्त्री की गुलामगिरी सिद्ध करने वाले सारे मंत्र हटा दिए। उनके स्थान पर ऐसे मंत्र रखे जिन्हें वर-वधू आसानी से समझ सकें। स्त्री के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए ज्योतिबा फुले ने हरसंभव प्रयत्न किए।

1888 में ज्योतिबा फुले को ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित किया गया तो उन्होंने कहा- ‘ मुझे ‘ महात्मा’ कहकर मेंरे संघर्ष को रोकने का काम मत कीजिए। किसी उपाधि से सम्मानित हो जाने के बाद व्यक्ति संघर्ष नहीं कर पाता है”। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे जो कहते थे, उसे अपने आचरण और व्यवहार में उतार कर दिखाते थे। उनका पहला कदम था-अपनी पत्नी सावित्री बाई को शिक्षित करना। ज्योतिबा ने उन्हें मराठी के अतिरिक्त अंग्रेजी लिखना-पढ़ना और बोलना सिखाया। बचपन में एक बार एक लाट साहब ने उन्हें एक पुस्तक भेंट की थी। उन्होंने उसे पिता को दिखाया तो वे आगबबूला हो उठे। सावित्री ने वह पुस्तक छिपा दी। 1840 में जयोतिबा से विवाह होने पर वे उस पुस्तक को ससुराल ले गई और वहाँ शिक्षित होने पर ही उस पुस्तक को पढ़ पाई।

14 जनवरी, 1848 को पुणे के बुधवार पेठ निवासी भिड़े के बाड़े में पहली कन्यापाठशाला की स्थापना हुई। यह पूरे भारत में लड़कियों की शिक्षा की पहली पाठशाला थी। इसके लिए ज्योतिबा और सावित्री बाई को अनेक रुकावटों, लांछनों और बहिष्कार का सामना करना पड़ा। ज्योतिबा के धर्मभीरु पिता ने भी बेटे-बहू को घर से निकाल दिया। सावित्री को तरह-तरह से अपमानित किया जाता था, पर उन्होंने 1840-1890 तक पचास वर्षों तक एक प्रण होकर अपना मिशन पूरा किया। उन्होंने मिशनरी महिलाओं की तरह किसानों और अछूतों की झुग्गी-झोंपड़ी में जाकर काम किया। वे दलितों और शोषकों के हक में खड़े हो गए। महात्मा फुले और सावित्री बाई का अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन एक मिसाल बन गया।

ज्योतिबा फुले सप्रसंग व्याख्या

1. यह अप्रत्याशित नहीं है कि भारत के सामाजिक विकास और बदलाव के आंदोलन में जिन पाँच समाज-सुधारकों के नाम लिए जाते हैं, उनमें महात्मा ज्योतिबा फुले के नाम का शुमार नहीं है। इस सूची को बनाने वाले उच्चवर्णीय समाज के प्रतिनिधि हैं। ज्योतिबा फुले ब्राहमण वर्चस्व और सामाजिक मूल्यों को कायम रखनेवाली शिक्षा और सुधार के समर्थक नहीं थे। उन्होंने पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता पर हल्ला बोल दिया। उनके द्वारा स्थापित ‘सत्यशोधक समाज’ और उनका क्रांतिकारी साहित्य इसका प्रमाण है।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश सुधा अरोड़ा द्वारा रचित संस्मरणात्मक निबंध ‘ज्योतिबा फुले’ से अवतरित है। इसमें लेखिका ने ज्योतिबा फुले के सामाजिक कायों की झाँकी प्रस्तुत की है। यहाँ ज्योतिबा का महत्त रेखांकित किया गया है।

व्याख्या-लेखिका बताती है कि ज्योतिबा फुले का नाम भारत के पाँच प्रमुख समाज-सुधारकों में नहीं लिया जाता है। यह कोई अचानक हुई घटना का परिणाम नहीं है। भारत के सामाजिक विकास और बदलाव के आंदोलन में ज्योतिबा की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। पर इसे उन लोगों को दिखाई नहीं दिया जिनका संबंध उच्च वर्ग से है। इस सूची को बनाने वाले लोग उच्चवर्णीय समाज के प्रतिनिधि होने के कारण उन्हें नजरदांज कर पाए।

ब्राहमण उनसे चिढ़ते थे क्योंकि ज्योतिबा फुले ब्राह्मणों के वर्चस्व को तोड़ना चाहते थे। वे उस शिक्षा के हिमायती नहीं थे जो परंपरागत सामाजिक मूल्यों को ही कायम रखना चाहती थी। ज्यौतिबा फुले ने पूँजीवादी व्यवस्था और पुरोहितवादी मानसिकता पर करारी चोट की। इन पुरोहितों ने ही निम्न वर्ग को शिक्षा और अधिकारों से वंचित कर रखा था। वे उनके वर्चस्व को तोड़ने में लगे थे। ज्योतिबा फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थाषना-की और क्रांतिकारी साहित्य की रचना की। इनके माध्यम से उनके विचारों की अभिव्यक्ति हुई।

विशेष :
1. लेखिका ने ज्योतिबा फुले के साथ उच्चवर्णों द्वारा की गई उपेक्षा का उल्लेख किया है।
2. ज्योतिबा की विचारधारा का स्पष्ट वर्णन हुआ है।
3. भाषा-शैली सहज, सरल और सुबोध है।

2. महात्मा ज्योतिबा फुले ने वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था में निहित शोषण-प्रक्रिया को एक-दूसरे का पूरक बताया। उनका कहना था कि राजसत्ता और ब्राह्मण आधिपत्य के तहत धर्मवादी सत्ता आपस में साँठ-गाँठ कर इस सामाजिक व्यवस्था और मशीनरी का उपयोग करती है। उनका कहना था कि इस शोषण-व्यवस्था के खिलाफ दलितों के अलावा स्त्रियों को आंदोलन करना चाहिए।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश सुधा अरोड़ा के संस्मरणात्मक निबंध ‘ज्योतिबा फुले’ से उद्धृत है। लेखिका ज्योतिबा के समाज-सुधारों और विचारधारा पर प्रकाश डालती है।

व्याख्या – लेखिका ज्योतिबा फुले की विचारधारा को स्पष्ट करते हुए बताती है कि उन्होंने वर्ण, जाति और वर्ग व्यवस्था (उच्च वर्ग और निम्न वर्ग) में शोषण को उजागर किया। वे इस व्यवस्था में समाई शोषण की प्रक्रिया को एक-दूसरे का पूरक बताते थे। ये सभी बातें एक-दूसरे से जुड़ी थीं। उनका मत था कि राज की सत्ता (शासक वर्ग) और ब्राह्मणों के वर्चस्व के अंतर्गत धर्म की सत्ता (मठाधीश) आपंस में सांठ-गांठ रखते हैं। वे अपना-अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं और इस काम में एक-दूसरे की मदद करते हैं। उनके इस काम में सामाजिक मशीनरी भी सहयोग करती है। वे समाज की व्यवस्था का उपयोग अपने हित में करते हैं। यही क्रिया दलितों और स्त्रियों का शोर्षण करती हैं। अतः दलितों और स्त्रियों को ही इसके खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए तभी उनका भला हो सकेगा।

विशेष :
1. ज्योतिबा फुले ब्राह्मणवादी, पूँजीवादी तथा धर्मवादी मानसिकता के विरुद्ध थे।
2. लेखिका ज्योतिबा के विचारों को स्पष्ट करने में पूर्णतः सफल है।

3. हर काम पति-पत्नी ने डंके की चोट पर किया और कुरीतियों, अंध-श्रद्धा और पारंपरिक अनीतिपूर्ण रूढ़ियों को ध्वस्त कर दलितों-शोषितों के हक में खड़े हुए। आज के प्रतिस्पद्र्धात्मक समय में, जब प्रबुद्ध वंर्ग के प्रतिष्ठित जाने-माने, दंपत्ति साथ रहने के कई बरसों के बाद अलग होते ही एक-दूसरे को संपूर्णतः नष्ट-भष्ट करते और एक-दूसरे की जड़ें खोदने पर आमादा हो जाते हैं, महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई कुले का एक-दूसरे के प्रति और एक लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन एक आदर्श दांपत्य की मिसाल बनकर चमकता है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश सुधा अरोड़ा के निबंध ‘ज्योतिबा फुले’ से अवतरित है। ज्योतिबा और उनकी पत्नी सावित्री बाई दोनों ने पूरे सहयोग के साथ समाज सुधार का महान कार्य कियां; वे पूरी तरह निडर थे। यहाँ उसी का उल्लेख है।

व्याख्या – लेखिका बताती है कि ज्योतिबा और सावित्री बाई ने अपने काम पूरे साहस के साथ खुलकर किए। वे किसी से डरते न थे और न कामों को छिपाते थे। वे समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधी भक्ति भावना तथा पहले से चली आ रही रूढ़ियों को मिटाने में जुटे थे। वे दलितों और शोषितों के पक्ष में काम करते थे। आज का युग प्रतिस्पर्धा का है। हर व्यक्ति दूसरे से आगे निकल जाने के प्रयासों में जुटा है। पढ़े-लिखे वर्ग, जो प्रतिष्ठा पाए हुए हैं, अपने घर-परिवार को ही नष्ट-भ्रष्ट करने के उपाय करते रहते हैं। एक-दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयासों में लगे रहते हैं, तब महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई ने एक-दूसरे के प्रति पूरे समर्पण से काम किया। वे एक-दूसरे की प्रतिस्पर्धा में नहीं थे। वे लक्ष्य के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। उनका जीवन एक आदर्श दंपति का उदाहरण था। वह आज भी हमें प्रेरणा देता है।

विशेष :
1. ज्योतिबा और सावित्री के साहसपूर्ण कार्यों का परिचय दिया गया है।
2. भाषा सरल एवं सुबोध है।

Hindi Antra Class 11 Summary