Class 11 Hindi Antra Chapter 4 Summary - Gunge Summary Vyakhya

गूँगे Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 4 Summary

गूँगे – रांगेय राघव – कवि परिचय

प्रश्न :
रांगेय राघव का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। उनकी रचनाओं के नाम भी लिखिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय-रांगेय राघव का जन्म 1923 ई. में आगरा (उ.प्र.) में हुआ था। उनका वास्तविक नाम तिरुमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य था, परंतु उन्होंने रांगेय राघव नाम से साहित्य-रचना की है। उनके पूर्वज दक्षिण् आरकाट से जयपुर-नरेश के निमंत्रण पर जयपुर आए थे। बाद में आगरा में बस गए। वहीं रांगेय राघव की शिक्षा-दीक्षा हुई। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. और पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। 39 वर्ष की अल्पायु में ही (1962 ई.) उनकी मृत्यु हो गई।

साहित्यिक विशेषताएँ-रांगेय राघव ने 1936 ई. से ही कहानियाँ लिखनी शुरू कर दी थीं। उन्होंने अस्सी से अधिक कहानियाँ लिखी हैं। अपने कथा-साहित्य में उन्होंने जीवन के विविध आयामों को रेखांकित किया है। उनकी कहानियों में समाज के शोषित-पीड़ित मानव के जीवन के यथार्थ का बहुत ही मार्मिक चित्रण मिलता है। साथ ही शोषण से मुक्ति का मार्ग भी उन्होंने दिखाया है। सरल और प्रवाहपूर्ण भाषा उनकी कहानियों की विशेषता है।

रचनाएँ – रांगेय राघव ने साहित्य की विविध विधाओं में रचना की है जिनमें कहानी, उपन्यास, कविता और आलोचना मुख्य हैं। उनके प्रमुख कहानी-संग्रह हैं-‘रामराज्य का वैभव’, ‘देवदासी’ ‘समुद्र के फेन’, ‘अधूरी मूरत’, ‘जीवन के दाने’ ‘अंगारे न बुझे’, ‘ऐयाश मुर्दे’, ‘इसान पैदा हुआ’। उनके उल्लेखनीय उपन्यास हैं-‘ घरौंदा, ‘विषाद-मठ’, ‘मुर्दों का टीला’, ‘सीधा-सादा रास्ता’, ‘अंधेरे के जुगनू’, ‘बोलते खंडहर’। सन् 1961 में ‘राजस्थान साहित्य अकादमी’ ने उनकी साहित्य-सेवा के लिए उन्हें पुरस्कृत किया। उनकी रचनाओं का संग्रह दस खंडों में ‘रांगेय राघव ग्रंथावली’ नाम से प्रकाशित हो चुका है।

Gunge Class 11 Hindi Summary

हमारी पाठ्यपुस्तक में रांगेय राघव की कहानी ‘गूँगे’ दी गई है।
‘गूँगे’ कहानी में एक गूँगे किशोर के माध्यम से शोषित एवं पीड़ित मानव की असहायता का चित्रण किया गया है। कभी तो वह मूक भाव से सब अत्याचार सह लेता है और कभी विरोध में आक्रोश व्यक्त करता है।

लेखक ने विकलांगों के प्रति समाज में व्याप्त संवेदनहीनता को रेखांकित किया है। साथ ही यह बताने की कोशिश भी की है कि उन्हें सामान्य मनुष्य की तरह मानना और समझना चाहिए एवं उनके साथ संवेदनशील व्यवहार करना चाहिए, ताकि वे इस दुनिया में अलग-थलग न पड़ने पाएँ।

इस कहानी में गूँगे-बहरे बालक की संवेदना को उभारा गया है। गूँगा बालक मानवीय गुणों से ओतप्रोत है। वह पेट पालने के लिए चोरी नहीं करता, भीख नहीं मांगता श्रम करता है। उस पर दया करके चमेली गूँगे को अपने घर ले आती है, परंतु परिवार उस पर विश्वास नहीं करता और गूँगे की संवेदना को बार-बार चोट पहुँचती है। लेखक ने यह कहा है कि समाज के जो लोग संवेदनहीन हैं, वे भी गूँगे-बहरे हैं, क्योंकि अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति वे सचेत नहीं हैं।

शब्दार्थ (Word Meanings) :

  • वज्र बहरा = जिसे पूर्ण रूप से सुनाई न देता हो (Fully deaf)
  • तमाम = समस्त, बहुत अधिक, सभी (All)
  • अस्फुट = अस्पष्ट (Unclear)
  • इशारा = संकेत (Sign or hint)
  • कुतूहल = उत्कट इच्छा, उत्सुकता, जिज्ञासा (Curiosity)
  • ध्वनियों का वमन = आवाज को प्रयास से निकालना (Try to speak)
  • चीत्कार = चीख (Cry)
  • विक्षुष्य = अशांत (Restless)
  • द्वेष = शत्रुता, बैर, घृणा, नफरत (Hatred)
  • तमाम = समस्त, संपूर्ण, सभी (Total)
  • नतीजा = परिणाम (Result)
  • कांकल = गले के भीतर की घांटी (Cockatoo)
  • पल्लेदारी = पीठ पर अनाज या सामान इत्यादि ढोने का कार्य (Labour)
  • रोष = क्रोध (Anger)
  • पक्षपात = भेद भाव (Favourtism)
  • तिरस्कार = उपेक्षा (To ignore)
  • आनंद = मज़ा (Enjoyment)
  • प्रतिच्छाया = परछाई (Shadow)
  • उदासीन = रुचि न लेना (Not to take interest)
  • निस्संकोच = बिना झिझक (Without hesitation)
  • स्वीकार = मंजूर (To accept)
  • निष्फल = व्यर्थ (Useless)
  • मूक = चुप (Silent)
  • अवसाव = दुख (Pain)

कहानी का सार –

‘गूँगे’ एक मार्मिक कहानी है। इसमें लेखक ने एक गूँगे किशोर की मानसिक व्यथा का कारुणिक चित्रण किया है। वह मूक भाव से सबके अत्याचार सहता जाता है और जब यह सीमा को लांघ जाता है तो वह आक्रोश व्यक्त करते हुए घर से भाग जाता है। पर वह अंत तक ईमानदार बना रहता है। समाज की संवेदनहीनता को इस कहानी में रेखांकित किया गया है।

गूँगा जन्म से ही बहरा है अत: गूँगा भी है। वह हाथ के इशारे से अपनी बात समझाता है। वह अपने हाथ के इशारे से बताता है कि जब वह छोटा था तभी उसकी माँ उसे छोड़कर चली गई क्योंकि उसका बाप मर गया था। पूछने पर वह पालने वाले के बारे में इतना ही समझा पाया कि वे उसे बहुत मारते थे। करुणा सभी को घेर लेती है। वह बोलने की बहुत कोशिश करता है, पर अस्कुट ध्वनियों के अलावा कुछ नहीं निकलता।

चमेली को पहली बार पता चला कि गले के काकल का कितना महत्त्व है। गूँगे के गले का काकल बचपन में किसी ने काट दिया था। अब तो वह ऐसे बोलता है जैसे घायल पशु कराहता है। सुशीला बताती है कि यह गूँगा गज़ब के इशारे करता है, अक्ल बहुत तेज़ है। गूँगा इशारे से बताता है कि वह मेहनत करके खाता है, भीख नहीं लेता। चमेली को उसकी दशा देखकर रोना आ गया। सुशीला ने कहा कि यह सब काम कर देता है, बस इसे इशारे से समझाने की जरूरत है। चमेली ने उससे पूछा-‘ हमारे यहाँ रहेगा?’ गूँगे ने चार रुपए और खाना माँगा। सुशीला ने कहा कि बाद में पछताओगी। पर चमेली को दयां आ गई। उसने उसे नौकर रख लिया। दिन बीतने लगे।

एक दिन गूँगा भाग गया। जब बच्चे और वह खाकर उंठ गए तो चमेली बची रोटियाँ कटोरदान में रखने के लिए उठी। उसे दरवाजे पर एक छाया हिलती लगी। वह गूँगा था। हाथ से इशारा किया-‘ भूखा हूँ।’ चमेली ने यह कहकर दो रोटियाँ उसकी ओर फेंक दीं ‘काम तो करता नहीं, भिखारी।’ गूँगे ने रोटियाँ उठा लीं और खाने लगा। चमेली हाथ में चिमटा लेकर उसके पास खड़ी हो गई। उसने कठोर स्वर में पूछा-‘कहाँ गया था।’ गूँगा चुप रहा। चमेली ने एक चिमटा उसकी पीठ पर जड़ दिया, किंतु वह रोया नहीं। चमेली की आँखों से आँसू जमीन पर टपक गया, तब गूँगा भी रो दिया। और फिर यह होने लगा कि गूँगा जब चाहे भाग जाता और फिर लौट आता। उसे जगह-जगह नौकरी करके भाग जाने की आदत पड़ गई थी।

बसंता ने कसकर गूँगे को चपत जड़ दी। गूँगा रोने लगा। उसका रोना सुनकर चमेली चूल्हा छोड़कर आ गई। चमेली देर तक उससे पूछती रही। बसंता ने सफाई दी-‘ अम्मा! यह मुझे मारना चाहता था।’ चमेली ने गूँगे की ओर देखकर कहा-‘ क्यों रे।’ वह चमेली की भाव-भंगिमा से उसके मन का भाव समझ गया। उसने चमेली का हाथ पकड़ लिया। चमेली को लगा कि मानो उसी के पुत्र ने उसका हाथ पकड़ लिया हो। एकाएक घृणा से उसने हाथ छुड़ा लिया। फिर उसके मन में गूँगे के प्रति ममता भर आई। लौटकर वह चूल्हे पर जा बैठी। वह सोच-विचार में पड़ गई। उसे अनुभव हुआ कि गूँगे में बसंता से अधिक शारीरिक बल था। कभी भी गूँगे की भाँति बसंता ने उसका हाथ नहीं पकड़ा था। लेकिन फिर भी गूँगे ने अपना उठा हाथ बसंता पर नहीं चलाया था। इसी से बसंता बसंता है…गूँगा गूँगा है। किंतु पुत्र की ममता ने इस विषय पर चादर डाल दी। चमेली ने गूँगे को रोटी देते हुए कहा-‘ ले खा ले।’ गूँगा इस स्वर की उपेक्षा नहीं कर सकता।

एक बार घृणा से विक्षुब्ध होकर चमेली ने गूँगे से कहा- क्यों रे, तूने चोरी की है। गूँगा चुप हो गया। उसने अपना सिर झुका लिया। चमेली क्रोध से कांप उठी। सोचा-मारने से तो यह ठीक नहीं हो सकता। अपराध को स्वीकार करा दंड न देना ही शायद कुछ असर करे और फिर कौन मेरा अपना है। रहना हो तो ठीक से रहे, नहीं तो फिर जाकर सड़क पर कुत्तों की तरह जूठने पर जिंदगी बिताए। उसने आगे बढ़कर गूँगे का हाथ पकड़ लिया और दरवाजे की ओर इशारा करके बाहर निकल जाने के लिए कहा। गूँगा कुछ समझा नहीं। वह बड़ी-बड़ी आँखें फाड़े हुए देखता रहा। अब की बार चमेली ने कहा-‘ जाओ, निकल जाओ। ढंग से काम नहीं करना है तो तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं।

नौकर की तरह रहना है तो रहो, नहीं तो बाहर जाओ। यहाँ तुम्हारे नखरे कोई नहीं उठा सकता। समझे?’ फिर चमेली क्रोध में आ गई और बोली-‘ मक्कार, बदमाश! पहले कहता था भीख नहीं माँगता और सबसे भीख माँगता है। रोज़-रोज़ भाग जाता है, पत्ते चाटने की आदत पड़ गई है। कुत्ते की दुम कभी सीधी होगी? नहीं। नहीं रखना है हमें, जा, तू इसी वक्त निकल ज…’ चमेली ने हाथ पकड़कर जोर से एक झटका दिया और गूँगे को दरवाजे से बाहर धकेल दिया। गूँगा धीरे-धीरे चला गया। करीब एक घंटे बाद शकुंतला और बसंता यह कहकर चिल्ला उठे-‘अम्मा! अम्मा’। चमेली ने देखा कि गूँगा खून से भीगा था। उसका सिर फट गया था। वह सड़क के लड़कों से पिटकर आया था, क्योंकि वह गूँगा होने के कारण उनसे दबना नहीं चाहता था…..दरवाजे की दहलीज़ पर सिर रखकर वह कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। चमेली चुपचाप देखती रही। चमेली सोचती है-आज के दिन ऐसा कौन है जो गूँगा नहीं है। गूँगा भी स्नेह चाहता है, समानता चाहता है।

गूँगे सप्रसंग व्याख्या

1. घर पर बुआ मारती थी, फूफा मारता था, क्योंकि उन्होंने उसे पाला था। वे चाहते थे कि बाज़ार में पल्लेदारी करे, बारह-चौदह आने कमाकर लाए और उन्हें दे दे, बदले में वे उसके सामने बाजरे और चने की रोटियाँ डाल दें। अब गूँगा घर भी नहीं जाता। यहीं काम करता है। बच्चे चिढ़ाते हैं। कभी नाराज़ नहीं होता। चमेली के पति सीधे-सादे आदमी हैं। पल जाएगा बेचारा, किंतु वे जानते हैं कि मनुष्य की करुणा की भावना उसके भीतर गूँगेपन की प्रतिच्छाया है, जब वह बहुत कुछ करना चाहता है, किंतु कर नहीं पाता।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश रांगेय राघव द्वारा रचित मार्मिक कहानी ‘गूँगे’ से अवतरित है। इस कहानी में एक गूँगे लड़के की कारुणिक कहानी द्वारा सामान्य लोगों की संवेदनहीनता को उजागर किया गया है।

व्याख्या – जब गूँगे से चमेली ने उसके घर के बारे में पूछा तो उसने बताया कि पिता के मरने के बाद माँ उसे छोड़कर चली गई थी अत: वह बुआ-फूफा के यहाँ रहा। वे दोनों उसे मारते थे। उनका अहसान यह था कि उन्होंने उसे पाला था। वे उससे मजदूरी करवाना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि वह (गूँगा) बाजार में सामान ढोने का काम करके कुछ पैसे (12-14 आने) कमाकर लाए और उन पैसों को उन्हें दे दे। इसके बदले में वे उसे बाजरे और चने की रोटियाँ देते थे। अब वह कभी घर नहीं जाता। यहीं कहीं काम करता है। यद्यपि बच्चे उसे चिढ़ाते हैं, पर वह उनसे कभी नाराज़ नहीं होता। चमेली के पति सीधे सरल स्वभाव के हैं अतः यहाँ चमेली के पास रहकर पल जाएगा। इसके बावजूद वे (चमेली के पति) इस बात को भी जानते हैं कि मनुष्य के अंदर करुणा की भावना विद्यमान रहती है और यही भावना उसके भीतर गूँगेपन की छाया है अर्थात् व्यक्ति चाहकर भी कुछ नहीं कह पाता। वह करना भी बहुत कुछ चाहता है पर कर नहीं पाता। मनुष्य करुणा भावना के वशीभूत होकर करना तो बहुत चाहता है पर वह कर नहीं पाता।

विशेष :
1. लेखक ने लोगों की स्वार्थपरता पर कटाक्ष किया है।
2. भाषा सीधी-सरल एवं सुबोध है।

2. सुशीला ने आगे बढ़कर इशारा किया-‘मुँह खोल!’ और गूँगे ने मुँह खोल दिया-लेकिन उसमें कुछ दिखाई नहीं दिया। पूछा, गले में कौआ है, गूँगा समझ गया। इशारे से ही बता दिया-‘किसी ने बचपन में गला साफ करने की कोशिश में काट दिया’ और वह ऐसे बोलता है जैसे घायल पशु कराह उठता है, शिकायत करता है, जैसे कुत्ता चिल्ला रहा हो और कभी-कभी उसके स्वर में ज्वालामुखी के विस्फोट की-सी भयानकता थपेड़े मार उठती है। वह जानता है कि वह सुन नहीं सकता। और बता-बताकर मुस्कराता है। वह जानता है कि उसकी बोली को कोई नहीं समझता फिर भी बोलता है। प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ रांगेय राघव की कहानी ‘गूँगे’ से अवतरित हैं। चमेली गूँगे को घर पर काम कराने के लिए रखना चाहती है। उसे उस पर दया आती है।

व्याख्या – चमेली की पड़ोसन सुशीला ने आगे बढ़कर गूँगे से इशारे से मुँह खोलने के लिए कहा तो उसने अपना मुँह खोल दिया। सुशीला को उसके मुँह में कुछ दिखाई नहीं दिया। सुशीला ने पूछा कि गले में कौआ है अथवा नहीं। गूँगा उसकी बात समझ गया और उसने इशारे से बताया कि जब वह बच्चा था तब किसी ने उसका गला साफ करने की कोशिश में कौआ काट दिया। इसी कारण अब वह ऐसे बोलता है जैसे कोई घायल पशु कराह उठता है। जब वह शिकायत करता है तो ऐसे लगता है कि जैसे कोई कुत्ता चिल्ला रहा हो। कभी-कभी तो उसकी आवाज़ में ज्वालामुखी की सी भयानकता दिखाई देती है। वह इस बात को भली प्रकार जानता है कि वह सुन नहीं सकता और वह उसे बता-बता कर मुस्कराता है। उसे यह भी पता है कि उसकी बोली को कोई नहीं समझता, इसके बावजूद वह बोलता रहता है।

विशेष :
1. गूँगे के बारे में काफी बातें पता चलती हैं।
2. भाषा सरल एवं सुबोध है।

3. कहीं उसका भी बेटा गूँगा होता तो वह भी ऐसे ही दुख उठाता! वह कुछ भी नहीं सोच सकी। एक बार फिर गूँगे के प्रति ह्रदय में ममता भर आई। वह लौटकर चूल्हे पर जा बैठी, जिसमें अंदर आग थी, लेकिन उसी आग से वह सब पक रहा था जिससे सबसे भयानक आग बुझती है-पेट की आग, जिसके कारण आदमी गुलाम हो जाता है। उसे अनुभव हुआ कि गूँगे में बसंता से कहीं अधिक शारीरिक बल था। कभी भी गूँगे की भाँति शक्ति से बसंता ने उसका हाथ नहीं पकड़ा था। लेकिन फिर भी गूँगे ने अपना उठा हाथ बसंता पर नहीं चलाया।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश रांगेय राघव द्वारा रचित कहानी ‘गूँगे’ से उद्धृत है। एक बार गूँगे ने चमेली का हाथ पकड़ लिया तो चमेली को लगा कि जैसे उसी के पुत्र ने उसका हाथ पकड़ लिया है। उसके मन में करुणा भाव जाग उठता है।

व्याख्या – चमेली सोचती है कि यदि उसका अपना बेटा बसंता भी इसी तरह गूँगा होता तो क्या वह भी इसी प्रकार दुख उठाता? वह इससे आगे कुछ न सोच सकी। चमेली के मन में एक बार पुनः ममता का भाव भर गया। अब वह पुनः खाना पकाने के लिए चूल्हे पर जा बैठी। चूल्हे में आग थी और उसी आग से वे सभी चीजें पक रही थीं, जिन्हें खाकर पेट की आग (भूख) शांत होती है। यह पेट की आग (भूख) ही होती है जिससे आदमी विवश हो जाता है और दूसरे की दासता करने को तैयार हो जाता है। गूँगे की भी यही विवशता है। जब गूँगे ने चमेली का हाथ पकड़ा तब चमेली को लगा कि इस गूँगे में उसके अपने बेटे बसंता से अधिक शारीरिक ताकत है। उसके अपने बेटे बसंता ने कभी भी गूँगे जितनी ताकत से उसका हाथ नहीं पकड़ा था। गूँगा ताकतवर था, फिर भी उसने बसंता पर अपना हाथ नहीं उठाया। गूँगा सहनशील भी था।

विशेष :
1. चमेली के मन में व्याप्त ममता का मार्मिक चित्रण हुआ है।
2. ‘पेट की आग’ भूख का प्रतीक है।
3. सरल एवं सुबोध भाषा-शैली का अनुसरण किया गया है।

Hindi Antra Class 11 Summary