टार्च बेचने वाले Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 3 Summary
टार्च बेचने वाले – हरिशंकर परसाई – कवि परिचय
प्रश्न :
हरिशंकर परसाई के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं के नाम तथा भाषा-शैली की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय – प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1922 ई. को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वहीं हुई। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से एम.ए.(हिंदी) किया। कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य करने के पश्चात् 1947 ई. में स्वतंत्र लेखन को ही जीवन-यापन का माध्यम बना लिया। एक साहित्यिक पत्रिका ‘वसुधा’ का संपादन किया, जिसे निरंतर घाटे के कारण बंद कर देना पड़ा। इसके पश्चात् पूर्णरूपेण स्वतंत्र लेखन में जुट गए। हिंदी की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में इनकी व्यंग्य रचनाएँ प्रकाशित होती रहती थीं। 1995 ई. में परसाई जी का निधन हो गया।
रचनाएँ – परसाई जी ने लगभग दो दर्जन पुस्तकों की रचना की है। इनमें प्रमुख रचनाएँ हैं-हृंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे (कहानी संग्रह), ‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’ (उपन्यास), ‘तब की बात और थी ‘, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेईमानी की परत’, ‘पगडंडियों का जमाना’, ‘सदाचार का ताबीज’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘और अंत में’ (निबंध संग्रह), ‘वैष्णाव की फिसलन’, ‘तिरछी रेखाएँ’, ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ (व्यंग्य-निबंध संग्रह) आदि। परसाई रचनावली (छ: भाग) में उनका समस्त साहित्य संकलित है।
साहित्यिक विशेषताएँ – परसाई जी मुख्यतः व्यंग्य लेखक हैं। उन्होंने केवल मनोरंजन के लिए ही नहीं लिखा है, अपितु वे अपनी सूक्ष्माही दृष्टि से समाज और राजनीति में फैली नैतिक दुर्बलता और भ्रष्टाचार को बेनकाब करते हैं। उन्होंने समाज की कमजोरियों और विसंगतियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उनका साहित्य हिंदी साहित्य में बेजोड़ है। इनका शिष्ट एवं संयत व्यंग्य आलोचनात्मक एवं कटु सत्य से भरपूर होने पर भी पाठकों को ग्राह्म लगता है। परसाई जी ने व्यंग्य विद्या को साहित्यिक प्रतिष्ठा प्रदान की। उनके व्यंग्य लेखों की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि वे समाज में आई विसंगतियों और विडंबनाओं पर करारी चोट तो करते हैं, किंतु मन में कटुता उत्पन्न न करके हमें चितंन और कर्म की प्रेरणा देते हैं।
भाषा शैली – परसाई जी ने साधारण बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। भाषा-प्रयोग में वे कुशल हैं। उन्हें इस बात का सदा ध्यान रहता था कि कौन-सा शब्द अधिक अर्थवत्ता प्रदान करेगा। उनकी भाषा में लोकोक्तियों, मुहावरों एवं विदेशी भाषा के शब्दों का प्रयोग भी देखा जा सकता है। इनके वाक्य छोटे, व्यंग्यपूर्ण एवं अनुभूति की गहराई लिए होते हैं।
Torch Bechne Wale Class 11 Hindi Summary
एक व्यंग्य रचना ‘टार्च बेचनेवाले’ में परसाई ने टार्च बेचनेवाले दो मित्रों के माध्यम से बताया है कि दोनों में से एक किस प्रकार अपनी चालाकी से टार्च बेचते-बेचते प्रवचनकर्ता बन जाता है। वह संतों की वेशभूषा में ऊँचे आसन पर बैठकर भोली-भाली जनता के भीतर का अँधेरा मिटाने के लिए रोशनी बाँटने लगता है। जैसे पहले वह लोगों में अँधेरे का डर पैदा करते हुए टार्च बेचता था, उसी तरह अब वह आत्मा के उजाले के लिए लोगों को जीवन और संसार का घना अंधकार दिखाता है। दूसरा दोस्त उसके लाभप्रद धंधे को देखकर अचंभित और प्रभावित होता है। इस प्रकार समाज में ठगने-भरमाने का गरिमामय धंधा चलता रहता है। इस रचना में पाखंड पर कड़ा प्रहार है।
शब्दार्थ (Word Meanings) :
- हरामखोरी = मुफ्तखोरी (Laziness)
- कठोर वचन = अप्रिय बातें, कष्ट देनेवाली बातें (Harsh words)
- गुप्त = छिपा हुआ (Hidden)
- अंदाज = अनुमान (To guess)
- बयान = कहना, वक्तव्य, कथन (Statement)
- हताश = निराश (Hopeless)
- गुरु गंभीर वाणी = विचारों से पुष्ट वाणी (Serious voice)
- सर्वग्राही = सबको ग्रहण करनेवाला, सबको समाहित करने वाला (One who accepts all)
- उदर = पेट (Stomach)
- स्तब्ध = हैरान (Surprised)
- आह्वान = पुकारना, बुलाना (To call)
- शाश्वत = चिरंतन, हमेशा रहने वाली (Always)
- प्रवचन = उपदेश (Preaching)
- मौलिक = बिना किसी बनावट के मूल रूप में (Original)
- वैभव = ठाट-बाट, ऐश्वर्य (Majesty)
- सनातन = सदैव रहने वाला (Perpetual)
- असार संसार = सारहीन, सत्वहीन संसार (World)
- घायल = जखमी (Wounded)
- पीड़ा = तकलीफ (Pain)
- दीक्ष = किसी से गुरुमंत्र लेना (Consecration)
- प्रकाश = रोशनी (Light)
- रहस्यमय = रहस्यपूर्ण (Mysterious)
- त्रस्त = डरी हुई (Terrorized)
- ज्योतिहीन = रोशनी के बिना (Without light)
- दार्शनिक = दर्शनशास्त्र का ज्ञाता (Philosopher)
- सूक्ष्म = छोटी (Narrow)
पाठ का सार –
यह एक व्यंग्य लेख है। इसमें एक व्यक्ति पहले ‘सूरज छाप’ टार्च बेचा करता था। बहुत दिनों बाद वह दाढ़ी बढ़ाए तथा लंबा कुरता पहने हुए दिखाई दिया। लेखक उससे दाढ़ी बढ़ाने का कारण पूछता है तो वह बताता है कि उसने टार्च बेचने का धंधा बंद कर दिया है अब तो आत्मा के भीतर टार्च जल उठी है अर्थात् उसे आत्मा का प्रकाश मिल गया है। लेखक इसे हरामखोरी कहता है तो वह ऐसे शब्द को आत्मा पर चोट बताता है। लेखक उसके बारे में तरह-तरह की आशंकाएँ प्रकट करता है-क्या उसे बीवी ने त्याग दिया है? क्या उसे उधार मिलना बंद हो गया है। साहूकार तंग कर रहे हैं अथवा चोरी के मामले में फँस गया है? वह व्यक्ति इन सभी संभावनाओं को नकार देता है। वह बताता है कि एक घटना ने उसका जीवन बदल दिया। यद्यपि वह उसे गुप्त रखना चाहता है, पर आज यहाँ से दूर जाने के कारण सारा किस्सा इस प्रकार सुना देता है।
पाँच साल पहले की बात है, वह अपने एक दोस्त के साथ इस सवाल पर विचार कर रहा था कि पैसा कैसे पैदा किया जाए? दोनों काफी माथापच्ची करते रहे पर कोई सटीक उत्तर नहीं सूझ रहा था। दोनों ने पैसा पैदा करने के लिए कोई काम-धंधा शुरू करने का विचार किया। वे अपनी-अपनी किस्मत अजमाने के लिए अलग-अलग दिशाओं में निकल पड़े। पाँच साल बाद इसी तारीख को इसी वक्त यहीं मिलने का निश्चय हुआ। वे दोनों अलग-अलग दिशाओं में चल पड़े। इस व्यक्ति ने टार्च बेचने का धंधा शुरू कर दिया। वह लोगों को चौराहे या मैदान में इकट्ठा कर लेता और बड़े नाटकीय ढंग से लोगों को यह कहकर प्रभावित करता -आजकल सब जगह अंधेरा छाया रहता है। रातें बेहद काली होती हैं। आदमी भटक जाता है। उसे रास्ता नहीं सूझता। वह गिरकर लहूलुहान हो जाता है। शेर-चीते चारों ओर घूम रहे होते हैं। अंधेरे में साँप पर पाँव पड़ जाता है। साँप उसे डस लेता है, वह मर जाता है। इस प्रकार वह लोगों को खूब डराता था। जब लोग डर जाते, तब वह कहता-भाइयों, यह सही है कि अंधेरा है, मगर प्रकाश भी है। वही प्रकाश मैं आपको देने आया हूँ। हमारी सूरज छाप टार्च में वह प्रकाश है जो अंधकार को दूर भगा देता है। इसी वक्त ‘सूरज छाप’ टार्च खरीदो और अंधेरे को दूर करो। इस प्रकार उसकी टार्च खूब बिक जातीं और उसका गुजारा मजे से चलने लगा।
वायदे के मुताबिक वह पाँच साल बाद अपने मित्र को ढूँढने निकला, क्योंकि वह नियत स्थान पर नहीं आया था। उसने एक स्थान पर देखा कि मैदान में खूब रोशनी है, मंच सजा है। लाउडस्पीकर लगा है, हजारों लोग श्रद्धा से झुके बैठे हैं। मंच पर एक व्यक्ति सुंदर रेशमी वस्त्रों में सजा गुरु-गंभीर वाणी में प्रवचन दे रहा है-‘मैं आज मनुष्य को धने अंधकार में देख रहा हूँ। उसके भीतर कुछ बुझ गया है। यह सर्वग्राही अंधकार विश्व को अपने उदर में समाए हुए है। आज आत्मा में भी अंधकार है। मैं देख रहा हूँ कि मनुष्य की आत्मा भय और पीड़ा से त्रस्त है।’ इस प्रकार वह लोगों को डराता और फिर सांत्वना देते हुए कहता-डरो मत, जहाँ अंधकार है, वहीं प्रकाश है। प्रकाश को बाहर नहीं अंतर में खोजो। अंतर में बुझी ज्योति को जगाओ। मैं तुम्हारे भीतर की शाश्वत ज्योति को जगाना चाहता हूँ। हमारे ‘साधना मंदिर’ में आकर उस ज्योति को अपने भीतर जगाओ।’ लेखक उसकी इस प्रकार की बातें सुनकर खिलखिलाकर हँस पड़ता है तो पास के लोग धक्का देकर उसे भगा देते हैं।
तभी उसने देखा कि वह भव्य पुरुष मंच से उतरकर कार पर चढ़ने जा रहा था। उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। उसने इस व्यक्ति को पहचान लिया और अपने साथ कार में बिठा लिया। बँगले पर पहुँचकर दोस्त के साथ खुलकर बातें हुई। यह वही दोस्त था जो पाँच साल पहले काम-धंधे की तलाश में अलग हुआ था। उसने बताया-मैं कोई टार्च नहीं बेचता। मैं साधु, दार्शनिक और संत कहलाता हूँ। पहले मित्र ने अपने और उसके धंधे में काफी समानता बताई-दोनों अंधकार मिटाने की बात करते हैं। दोनों लोगों के जीवन में प्रकाश लाने का वायदा करते हैं। पर दूसरे मित्र की टार्च किसी कंपनी की बनाई हुई नहीं है’ वह बहुत सूक्ष्म है मगर उसकी कीमत बहुत अधिक मिल जाती है। लोगों को डराकर ज्ञान की बातें कहना इस धंधे का गुरुमंत्र है। यह व्यक्ति उस तथाकथित संत के पास दो दिन रहा तो सारा रहस्य उसकी समझ में आ गया। उसने ‘सूरज छाप’ टार्च की पेटी नदी में फेंककर यह नया धंधा शुरू कर दिया है। अब उसने दाढ़ी बढ़ा ली है तथा लंबा कुरता पहन लिया है। बस एक महीने की देर है तब लोगों को दूसरे ढंग की टार्च बेचूँगा। बस कंपनी बदल जाएगी अर्थात् अब वह लोगों के हृदयों में प्रकाश फैलाने की बात कह कर उन्हें आसानी से ठग सकेगा।
टार्च बेचने वाले सप्रसंग व्याख्या
1. मैंने कहा-‘तुम कुछ भी कहलाओ, बेचते तुम टार्च हो। तुम्हारे और मेरे प्रवचन एक जैसे हैं। चाहे कोई दार्शनिक बने, संत बने या साधु बने, अगर वह लोगों को अँधेरे का डर दिखाता है, तो जरूर अपनी कंपनी का टार्च बेचना चाहता है। तुम जैसे लोगों के लिए हमेशा ही अंधकार छाया रहता है। बताओ, तुम्हारे जैसे किसी आदमी ने हजारों में कभी भी यह कहा है कि आज दुनिया में प्रकाश फैला है? कभी नहीं कहा। क्यों? इसलिए कि उन्हें अपनी कंपनी का टार्च बेचना है।’ मैं खुद भर-दोपहर में लोगों से कहता हूँ कि अंधकार छाया है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हरिशंकर परसाई के व्यंग्य लेख ‘टार्च बेचनेवाले’ से अवतरित है। लेखक धर्म के नाम पर लोगों को डराकर ज्ञान का प्रकाश बेचने वालों का पर्दाफाश करता है।
व्याख्या – पहला दोस्त सूरज छाप कंपनी के टार्च बेचता था और लोगों को अंधकार से बचाने का दावा करता था। दूसरा दोस्त धर्म के नाम पर आत्मा के प्रकाश का टार्च बेचकर अपना धंधा चमकाता है। दोनों के काम में पर्याप्त समानता है। पहला दोस्त उस प्रवचनकर्ता दोस्त की असलियत बताते हुए कहता है कि तुम चाहे साधु-संत भले ही कहला लो, पर तुम भी मेरी तरह ही टार्च बेचने का धंधा करते हो। तुम्हारी और मेरी बातों में समानता है। दार्शनिक और साधु-संत लोगों को अंदर के अंधेरे का डर दिखाते हैं। ऐसी दशा में वे अपने स्वार्थ की टार्च बेचने का काम करते हैं। ऐसे ढोंगी साधुओं के लिए तो इस संसार में सदा अंधकार छाया रहता है। (यदि प्रकाश हो गया तो प्रवचन कौन सुनेगा) ये लोग कभी यह नहीं कहते कि आज दुनिया में अंधकार नहीं है, प्रकाश फैल गया है। वे ऐसा कभी नहीं कहते। इसका कारण यह है कि सभी को अपना-अपना धंधा करना है। वे लोगों को भय दिखाकर और मूख्ख बनाकर ही अपनी बात उनके गले उतार सकते हैं। वह दोस्त कहता है कि मैं स्वयं लोगों को यही कहकर टार्च बेचता हूँ कि बाहर अंधकार छाया है।
विशेष :
- व्यंग्यपूर्ण भाषा-शैली का अनुसरण किया गया है।
- ‘टार्च बेचने ‘ में व्यंग्य निहित है।
- भाषा सरल एवं सुबोध है।
2. “मगर यह बताओ कि तुम एकाएक ऐसे कैसे हो गए? क्या बीवी ने तुम्हें त्याग दिया? क्या उधार मिलना बंद हो गया? क्या साहूकारों ने ज्यादा तंग करना शुरु कर दिया? क्या चोरी के मामले में फँस गए हो? आखिर बाहर का टार्च भीतर आत्मा में कैसे घुस गया।”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य लेख ‘टार्च बेचनेवाले’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने टार्च बेचनेवाले दो मित्रों के माध्यम से बताया है कि वे किस प्रकार अपने-अपने तरीकों से भोली जनता को बेवकूफ बनाते हैं।
व्याख्या – जब लेखक उस व्यक्ति को एक नए रूप में देखता है, जो पहले टार्च बेचने का धंधा करता था, तो वह उसके रूप-परिवर्तन पर अनेक आशंकाएँ जताते हुए प्रश्न करता है।
लेखक उससे दाढ़ी रखने और लंबा कुरता पहनने का कारण जानना चाहता है। उसे लगता है कि कहीं उसे उसकी बीवी ने तो नहीं त्याग दिया? यह भी हो सकता है कि उसे उधार मिलना बंद हो गया हो। उसे साहूकार कर्ज चुकाने के लिए तंग भी कर सकते हैं। या वह किसी चोरी के मामले में फँस गया हो। ये सभी कारण व्यक्ति को साधु-संन्यासी का रूप धारण करने को विवश करते हैं। वह टार्च बेचकर लोगों के जीवन में प्रकाश भरने का दावा करता था। अब वह यह जानना चाहता है कि आखिर बाहर का टार्च भीतर उसकी आत्मा में कैसे घुस गया, क्योंकि अब वह आत्मा के प्रकाश की बातें करने लगा है। व्यंग्यार्थ यह है कि आदमी बाहरी दुनिया के प्रपंचों से तंग आकर आंतरिक ज्ञान और प्रकाश की बातें करने लगता है।
विशेष :
- प्रश्नात्मक शैली अपनाई गई है।
- भाषा सीधी एवं सरल है।
- व्यंग्यात्मक भाषा-शैली का प्रयोग है।
3. “मैं आज मनुष्य को एक घने अंधकार में देख रहा हूँ। उसके भीतर कुछ बुझ गया है। यह युग ही अंधकारमय है। यह सर्वग्राही अंधकार संपूर्ण विश्व को अपने उदर में छिपाए है। आज मनुष्य इस अंधकार से घबरा उठा है। वह पथभ्रष्ट हो गया है, आज आत्मा में भी अंबकार है। अंतर की आँखें ज्योतिहीन हो गई हैं, वे उसे भेद नहीं पातीं। मानव-आत्मा अंघकार में घुटती है। मैं देख रहा हूँ मनुष्य की आत्मा भय और पीड़ा से त्रस्त है।”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंय लेख ‘टार्च बेचनेवाले’ से अवतरित है। यहाँ उस मित्र का उल्लेख है जो साधु-संत का रूप धारण करके लोगों को मूख्ख बना रहा था।
व्याख्या – वह ढोंगी प्रवचनकर्ता लोगों को भयभीत करते हुए कहता है कि आज का मनुष्य गहन अंधकार में भटक रहा है। उसके भीतर की आत्मा भी मर गई है। उसमें जलने वाली ज्योति भी बुझ गई है। सर्वत्र अंधकार ही अंधकार है। यह सारा युग ही अंधकारमय है। यह अंधेरा सभी को निगल रहा है। आज का मनुष्य इस अंधकार से घबरा उठा है। वह अपना रास्ता भी भूल गया है। आज तो उसकी आत्मा भी अंधकार में डूबी है। मनुष्य के अंदर की आँखें भी प्रकाश से वंचित हैं। वे अंधकार को भूद पाने में असमर्थ हैं। आज मानव की आत्मा इस अंधकार में घुटती चली जा रही है। प्रवचनकर्ता श्रोताओं के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करते हुए कहता है कि आज मनुष्य की आत्मा डर और दुख के चक्र में फँसी हुई छटपटा रही है।
इस प्रकार तथाकथित संत लोगों के सामने बाहरी और आंतरिक दुनिया का हव्वा खड़ा करने की कोशिश करता है ताकि लोग उस अंधकार से छुटकारा पाने के लिए उसकी शरण में आएँ।
विशेष :
- भयात्मक वातावरण का सजीव चित्रण किया गया है।
- तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।
- व्यंग्यपूर्ण भाषा-शैली का अनुसरण किया गया है।