NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 2 दोपहर का भोजन
Class 11 Hindi Chapter 2 Question Answer Antra दोपहर का भोजन
प्रश्न 1.
सिद्धेश्वरी ने अपने बड़े बेटे रामचंद्र से मँझले बेटे मोहन के बारे में झूठ क्यों बोला ?
उत्तर :
रामचन्द्र जब घर खाना खाने आता है तो अपनी माँ सिद्धेश्वरी से अपने मंझले भाई मोहन के बारे में पूछता है। यद्यपि सिद्धेश्वरी को मोहन का कुछ भी अता-पता नहीं था, फिर भी उसने यही कहा, “किसी लड़के के यहाँ पढ़ने गया है, आता ही होगा। दिमाग उसका बड़ा तेज है और उसकी तबीयत चौबीसों घंटे पढ़ने में ही लगी रहती है। हमेशा उसकी बात करता है।” ऐसा करने के पीछे स्थितियों से उपजा क्रूर कारण है। सिद्धेश्वरी का परिवार गरीबी की भयानक मार से गुजर रहा था। परिवार के सदस्य एक-दूसरे का सामना करने से अपने आपको बचाते फिरते हैं।
सिद्धेश्वरी के माध्यम से ही एक दूसरे के बारे में जानने की जिम्मेदारी भी निभाते हैं। बड़ा बेटा रामचन्द्र बड़ा बेटा होने के कारण गरीबी से लड़ने की कोशिश करता हुआ दिखाई देंता है। मँझला बेटा अपनी उम्र के कारण या अपनी संगति के कारण परिवार के प्रति जिम्मेदारी को महसूस नहीं करता है। सिद्धेश्वरी अच्छी तरह जानती है कि उसकी वास्तविक दशा जानकर रामचन्द्र को दुख और पीड़ा ही होगी। वह कठिन समय में किसी को और दुखी नहीं देखना चाहती है। इसीलिए वह अपने बड़े बेटे रामचन्द्र से मँझले बेटे के बारे में झूठ बोलती है।
प्रश्न 2.
कहानी के सबसे जीवंत पात्र के चरित्र की दृढ़ता का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर :
इस कहानी में पाँच पात्र हैं, सिद्धेश्वरी, मुंशी जी, रामचन्द्र, मोहन और प्रमोद। ये सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं। मुंशी जी और सिद्धेश्वरी पति-पत्नी हैं और रामचन्द्र, मोहन और प्रमोद इनके पुत्र हैं। हर भारतीय परिवार की भाँति इस परिवार की धुरी सिद्धेश्वरी ही है। परिवार की आर्थिक स्थिति का सबसे भयानक प्रभाव सिद्धेश्वरी को ही झेलना पड़ता है। कहानी के सबसे जीवन्त पक्ष की पहचान हम ‘सिद्धेश्वरी’ को ही कर सकते हैं। वह परिवार के सभी सदस्यों के लिए उनके हिस्से का खाना बनाती है। सभी सदस्य खाना खाते हैं। उनमें से किसी को पता नहीं चलता कि सिद्धेश्वरी के हिस्से का खाना नहीं है। कहानी के पाठक भी यह बता नहीं सकते कि सिद्धेश्वरी कितने दिनों से भूखी है। बुरी तरह से दुखी सिद्धेश्वरी अपनी पीड़ा अपने पति या बेटों के सामने नहीं आने देती है। उसके आँसू भी अकेले में ही निकलते हैं। वह परिवार के लोगों को एक-दूसरे से बाँधकर रखने की हर संभव कोशिश करती है। इस तरह वह इस कहानी की सबसे जीवन्त पात्र के रूप में सामने आती है।
प्रश्न 3.
कहानी के उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे गरीबी की विवशता झाँक रही हो।
उत्तर :
इस पूरी कहानी से ही गरीबी की विवशता झाँकती है। कुछ प्रसंग इस प्रकार हैं :
ओसारे में अध-टूटे खटोले पर सोये अपने छः वर्षीय लड़के प्रमोद पर जम गई। लड़का नंग-धड़ंग पड़ा था। उसके गले तथा छाती की हड्डियाँ साफ दिखाई देती थीं। उसके हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे और उसका पेट हँडिया की तरह फूला हुआ था। उसका मुँह खुला हुआ था और उस पर अनगिनत मक्खियाँ उड़ रही थीं।
वह उठी, बच्चे के मुँह पर अपना एक फटा, गंदा ब्लाउज डाल दिया।
सिद्धेश्वरी ने खाने की थाली लाकर सामने रख दी और पास ही बैठकर पंखा करने लगी। रामचंद्र ने खाने की ओर दार्शनिक की भाँति देखा। कुल दो रोटियाँ, भर कटोरा पनियाई दाल और चने की तली तरकरी।
अव्वल तो अब भूख नहीं। फिर रोटियाँ तूने ऐसी बनाई हैं कि खाई नहीं जातीं। न मालूम कैसी लग रही हैं।
मुंशी जी के निबटने के पश्चात् सिद्धेश्वरी उनकी जूठी थाली लेकर चौके की जमीन पर बैठ गई। बटलोई की दाल को कटोरे में उँडेल दिया, पर वह पूरा भरा नहीं। छिपुली में थोड़ी-सी चने की तरकरी बची थी, उसे पास खींच लिया। रोटियों की थाली को भी उसने पास खींच लिया, उसमें केवल एक रोटी बची थी। मोटी, भद्दी और जली उस रोटी को वह जूठी थाली में रखने जा रही थी कि अचानक उसका ध्यान ओसारे में सोए प्रमोद की ओर आकर्षित हो गया। उसने लड़के को कुछ देर तक एकटक देखा, फिर रोटी को दो बराबर टुकड़ों में विभाजित कर दिया। एक टुकड़े को तो अलग रख दिया और दूसरे टुकड़े को अपनी जूठी थाली में रख लिया। तदुपरांत एक लोटा पानी लेकर खाने बैठ गई। उसने पहला ग्रास मुँह में रखा और तब न मालूम कहाँ से उसकी आँखों से टपटप आँसू चूने लगे।
प्रश्न 4.
‘सिद्देश्वरी का एक-दूसरे सदस्य के विषय में झूठ बोलना परिवार को जोड़ने का अनथक प्रयास था। -इस संबंध में आप अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
सिद्धेश्वरी परिवार के एक सदस्य के सामने दूसरे के विषय में झूठ बोलकर उसकी कमी को छिपाने का प्रयास करती है। इसका कारण यह है कि वह घोर दरिद्रता में भी परिवार के सदस्यों के बीच एकता को बनाए रखने का प्रयास करती है। वह सच्चाई बताकर उन्हें और दु:खी नहीं करना चाहती। वह इसमें काफी हद तक सफल भी रहती है। हमें उसका प्रयास सही प्रतीत होता है।
प्रश्न 5.
‘अमरकांत आम बोलचाल की ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जिससे कहानी की संवेदना पूरी तरह उभरकर आ जाती है।’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अमरकांत आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हैं। उनकी शैली की सहजता और भाषा की सजीवता पाठकों को आकर्षित करती है। वे आंचलिक मुहावरों और शब्दों का प्रयोग करते हैं। इससे उनकी कहानियों की संवेदना पूरी तरह उभर आती है। ‘दोपहर का भोजन’ इसी प्रकार की कहानी है। उदाहरणार्थ : “उसके (प्रमोद के) हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे और उसका पेट हँंडिया की तरह फूला हुआ था।”
प्रश्न 6.
रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी खाते समय रोटी न लेने के लिए बहाने करते हैं उसमें कैसी विवशता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रामचंद्र का बहाना-मेरा पेट पहले ही भर चुका है। मैं तो यह भी छोड़ने वाला हूँ… अधिक खिलाकर बीमार कर डालने की तबीयत है क्या?…. भूख रहती तो क्या ले नहीं लेता? मोहन का बहाना-अव्वल तो अब भूख नहीं। फिर रोटियाँ तूने ऐसी बनाई हैं कि खाई नहीं जातीं। न मालूम कैसी लग रही हैं। अगर तू चाहती है तो कटोरे में थोड़ी सी दाल डाल दे। दाल बड़ी अच्छी बनी है।
मुंशीजी का बहाना-रोटी….. रहने दो। पेट काफी भर चुका है। अन्न और नमकीन चीजों से तबीयत ऊब भी गई है। तुमने व्यर्थ में कसम धर दी। खैर, कसम रखने के लिए ले रहा हूँ। गुड़ होगा क्या? गुड़ का रस बनाओ पीऊँगा!….. रोटी खाते-खाते नाक में दम आ गया है?
इन सब बहानों में एक ही व्यंग्यार्थ है कि वे यह बात भली प्रकार जानते हैं कि घर में खाना बहुत कम मात्रा में है। माँ घर की गरीबी को छिपाने का प्रयास कर रही है। पर घर की वास्तविकता उनसे छिपी नहीं है। फिर भी सभी इस पर परदा डालने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न 7.
मुंशी जी तथा सिद्धेश्वरी की असंबद्ध बातें कहानी से कैसे संबद्ध हैं? लिखिए।
उत्तर :
मुंशीजी तथा सिद्धेश्वरी बारिश, मक्खियों, फूफा जी की बीमारी तथा गंगाशरण बाबू की लड़की की शादी जैसी असंबद्ध बातें करते हैं। इनका अपने आप में तो कोई महत्त्व नहीं है, पर कहानी की संवेदना की दृष्टि से इनका मतलब है। ये बातें मुंशीजी और सिद्धेश्वरी के मन की व्यथा तथा मन के भटकाव को दर्शाती हैं। शायद वे असंबद्ध बातें करके मूल विषय से बचना चाहते हैं। वे अपने सामने उपस्थित गरीबी और अभाव को छिपाते हैं। संभवतः इससे वे दुख की सघनता को कम करना चाहते हैं।
प्रश्न 8.
‘दोपहर का भोजन’ शीर्षक किन दृष्टियों से पूर्णतया सार्थक स्पष्ट है ?
उत्तर :
किसी भी रचना का शीर्षक कई आधारों पर रखा जाता है। इस कहानी का सारा घटनाचक्र दोपहर के भोजन के समय ही घटित होता है। घटनाक्रम को शीर्षक का आधार बनाया गया है अतः यह शीर्षक पूरी तरह सार्थक है।
प्रश्न 9.
आपके अनुसार सिद्देश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी कैसे हैं ? अपने शब्दों में उत्तर दीजिए।
उत्तर :
यह ठीक है कि सिद्धेश्वरी परिवार के सदस्यों की वास्तविकता को छिपाने के लिए झूठ बोलती है। पर उसका यह झूठ बोलना सौ सत्यों से भारी है। वह सत्य बोलना किस काम का जिससे दूसरे के दिल को दुःख पहुँचे। परिवार के सदस्य वैसे ही दु:खी रहते हैं। वह सच बोलकर उन्हें और दुःखी नहीं करना चाहती।
प्रश्न 10.
आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई।
(ख) यह कहकर उसने अपने मँझले लड़के की ओर इस तरह देखा, जैसे उसने कोई चोरी की हो।
(ग) मुंशी जी ने चने के दानों की ओर इस दिलचस्पी से दृष्टिपात किया जैसे उनसे बातचीत करनेवाले हों।
उत्तर :
(क) सिद्धेश्वरी एकदम अचकचाकर मतवाले की तरह उठी अर्थात् उसे प्यास का एकदम स्मरण हो आया और उस प्यास को बुझाने के लिए गगरे से लोटे में पानी भरकर एकदम पी गई। इससे पता चलता है कि उसे तेज प्यास लगी थी।
(ख) सिद्धेश्वरी ने मोहन के बारे में अपने पति मुंशीजी को झूठ बोला कि यह तुम्हारी बड़ी तारीफ करता रहता है। हमेशा पढ़ता-लिखता रहता है। सच्चाई इसके विपरीत थी। अत: उसने मँझले लड़के मोहन की तरफ इस भाव से देखा कि मानो उसने कोई चोरी की हो।
(ग) तरकारी चने के दानों से बनी थी। मुंशी जी की थाली में रोटी खाने के बाद वे चने के दाने ही शेष बचे थे। मुंशीजी उनकी ओर बड़े ध्यान से देख रहे थे। उनकी दशा को देखकर लगता था कि वे इन दानों से कुछ कहने वाले हैं।
योग्यता-विस्तार –
1. अपने आस-पास मौजूद समान परिस्थितियों वाले किसी विवश व्यक्ति अथवा विवशतापूर्ण घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
यह वर्णन विद्यार्थी स्वयं करें।
2. ‘भूख और गरीबी में प्राय: धैर्य और संयम नहीं टिक पाते हैं।’ इसके आलोक में सिद्धेश्वरी के चरित्र पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
यह कथन बिल्कुल सच है कि सिद्धेश्वरी भूख और गरीबी में भी धैर्य और संयम पर टिकी रहती है। वह घर के अभावों का जिक्र न तो किसी बेटे से करती है, न पति से। वह उनकी भूख मिटाने का हर संभव प्रयास करती है। सारा कष्ट वह स्वयं ही झेल लेती है। वह घर को बिखरने नहीं देती। उसका धैर्य और संयम सराहनीय है।
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प्रश्न 1.
जमीन पर लेटे रहने के बाद सिद्धेश्वरी की नजर कहाँ-कहाँ गई?
उत्तर :
लगभग आधे घंटे तक वहीं उसी तरह पड़ी रहने के बाद सिद्धेश्वरी के जी में जी आया। वह बैठ गई, आँखों को मल-मलकर इधर-उधर देखा और फिर उसकी दृष्टि ओसारे में अध-टूटे खटोले पर सोये अपने छ: वर्षीय लड़के प्रमोद पर जम गई। लड़का नंग-धड़ंग पड़ा था। उसके गले तथा छाती की हड्डियाँ साफ दिखाई देती थीं। उसके हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे और उसका पेट हँडिया की तरह फूला हुआ था। उसका मुँह खुला हुआ था और उस पर अनगिनत मक्खियाँ उड़ रही थीं।
प्रश्न 2.
रामचंद्र की बेजान-सी अवस्था देखकर सिद्धेश्वरी पर क्या गुजरी?
उत्तर :
सिद्धेश्वरी की पहले हिम्मत ही नहीं हुई कि बेटे रामचंद्र के पास जाए और वह वहीं से भयभीत हिरनी की भाँति सिर उचका-घुमांकर बेटे को व्यग्रता से निहारती रही। किंतु लगभग दस मिनट बीतने के पश्चात् भी रामचंद्र नहीं उठा, तो वह घबरा गई। पास जाकर पुकारा, ‘बड़कू, बड़कू!’ लेकिन उसके कुछ उत्तर न देने पर डर गई और लड़के की नाक के पास हाथ रख दिया। साँस ठीक से चल रही थी। फिर सिर पर हाथ रखकर देखा, बुखार नहीं था। हाथ के स्पर्श से रामचंद्र ने आँखें खोलीं। पहले उसने माँ की ओर सुस्त नजरों से देखा, फिर झट से उठ बैठा। जूते निकालने और नीचे रखे लोटे के जल से हाथ-पैर धोने के बाद वह यंत्र की तरह चौकी पर आकर बैठ गया।
प्रश्न 3.
रामचंद्र का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
रांनचंद्र की उम्र लगभग इक्कीस वर्ष थी। लंबा, दुबला-पतला, गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आँखें तथा होठों पर झुर्रियाँ। वह एक स्थानीय दैनिक समाचार-पत्र के दफ्तर में अपनी तबीयत से प्रूफ-रीडरी का काम सीखता था। पिछले साल ही उसने इंटर पास किया था।
प्रश्न 4.
सिद्धेश्वरी ने प्रमोद के बारे में क्या झूठ बोला?
उत्तर :
प्रमोद के बारे में सिद्धेश्वरी झूठ बोल गई, ‘आज तो सचमुच नहीं रोया। वह बड़ा ही होशियार हो गया है। कहता था बड़का भैया के यहाँ जाऊँगा। ऐसा लड़का….’।
प्रश्न 5.
मँझला लड़का कौन था? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
मोहन मँझला लड़का था। वह कुछ साँवला था और उसकी आँखें छोटी थीं। उसके चेहरे पर चेचक के दाग थे। वह अपने भाई की तरह दुबला-पतला था, किंतु लंबा न था। उंग्र की तुलना में वह गंभीर और उदास दिखाई देता था। वह प्राइवेट रूप से हाईस्कूल की परीक्षा की तैयारी कर रहा था।
प्रश्न 6.
मुंशीजी की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मुंशीजी की उम्र पैंतालीस वर्ष के लगभग थी, किंतु पचास-पचपन के लगते थे। शरीर का चमड़ा झूलने लगा था, गंजी खोपड़ी आईने की भाँति चमक रही थी। गंदी धोती के ऊपर अपेक्षाकृत कुछ साफ बनियान तार-तार लटक रही थी।
प्रश्न 7.
सिद्धेश्वरी ने क्या अटपटे प्रश्न किए और मुंशीजी ने क्या उत्तर दिया ?
उत्तर :
सिद्धेश्वरी ने पहला अटपटा प्रश्न किया- ‘मालूम होता है, अब बारिश नहीं होगी।’ मुंशी जी ने एक क्षण के लिए इधर-उधर देखा, फिर निर्विकार स्वर में राय दी, ‘मक्खियाँ बहुत हो गई हैं। सिद्धेश्वरी ने फिर प्रश्न किया-‘फूफा जी बीमार हैं, कोई समाचार नहीं आया।’ मुंशी जी ने चने के दानों की ओर इस दिलचस्पी से दृष्टिपात किया, जैसे उनसे बातचीत करने वाले हों। फिर उत्तर दिया -‘गंगाशरण बाबू की लड़की की शादी तय हो गई। लड़का एम.ए. पास है।
प्रश्न 8.
कहानी के प्रारंभ में सिद्धेश्वरी की मनःस्थितियों का विवरण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कहानी के प्रारंभ में ही बताया गया है कि वह एक अजीब सी मनःस्थिति में रहती है। वह खोई-खोई सी रहती है। उसे अपनी प्यास तक की याद नहीं रहती। कभी वह मतवाले की तरह उठ खड़ी हो जाती है। कभी वह जमीन पर लेट जाती है। कभी वह वहीं पड़ी रहना चाहती है तो कभी बैठ जाती है। वह इधर-उधर नजर घुमाती है। उसे अपने छः वर्षीय बेटे प्रमोद की दशा देखकर दुख होता है, पर वह विवश है कि घर की आर्थिक दुर्दशा उसे हर समय चिंतित रखती है। वह अपने मन की सच्ची बात कह नहीं पाती। वह हर छोटी बात से घबरा जाती है। उसे अनिष्ट की आशंका बनी रहती है।
प्रश्न 9.
सिद्धेश्वरी और मुंशीजी के संवादों को विवरण के रूप में लिखो।
उत्तर :
मुंशी जी – बड़का दिखाई नहीं दे रहा?
सिद्देश्वरी – अभी-अभी खाना खाकर काम पर गया है। कह रहा था कि कुछ दिनों में नौकरी लग जाएगी। हमेशा बाबूजी-बाबूजी किए रहता है।
मुंशीजी – ऐं, क्या कहता था कि बाबूजी देवता के समान हैं? बड़ा पागल है।
सिद्धेश्वरी – पागल नहीं है, बड़ा होशियार है। उस जमाने का कोई महात्मा है। मोहन तो उसकी बड़ी इज्ज़त करता है।
मुंशीजी –
बड़का का दिमाग तो खैर काफी तेज है वैसे लड़कपन में बड़ा नटखट भी था।
सिद्धेश्वरी – मालूम होता है, अब बारिश नहीं होगी।
मुंशीजी – मक्खियाँ बहुत हो गई हैं।
सिद्धेश्वरी – बड़का की कसम, एक रोटी देती हूँ। अभी बहुत-सी रोटियाँ हैं।
मुंशीजी – रोटी …… रहने दो, पेट काफी भर चुका है …. गुड़ होगा क्या?
प्रश्न 10.
सिद्धेश्वरी एक मतवाले की भाँति क्यों उठी?
उत्तर :
सिद्धेश्वरी को प्यास लगी थी, पर वह जमीन पर चलते चींटे-चींटियों को देखने में लगी हुई थी। जब उसे प्यास की याद आई तो वह पानी पीने के लिए मतवाले की तरह उठी।
प्रश्न 11.
सिद्धेश्वरी के चेहरे पर व्यग्रता का भाव कब पैदा हुआ?
उत्तर :
सिद्धेश्वरी के चेहरे पर तब व्यग्रता का भाव पैदा हुआ जब वह 10-15 मिनट तक दरवाजे के किवाड़ की आड़ से गली में आने-जाने वालों को निहार रही थी। बाहर बहुत तेज धूप थी। वह अपने पति और बच्चों का ख्याल करके व्यग्र हो गई। वे घर से बाहर थे।
प्रश्न 12.
रामचंद्र का मुँह लाल तथा चढ़ा हुआ क्यों था?
उत्तर :
रामचंद्र गर्मी की तेज धूप में चलकर आया था। वह बुरी तरह थका हुआ था। अत: उसका मुँह लाल तथा चढ़ा हुआ था।
प्रश्न 13.
रामचंद्र ने खाने की ओर दार्शनिक की भाँति क्यों देखा?
उत्तर :
जैसे कोई दार्शनिक किसी भी घटना को बड़ी गंभीरतापूर्वक देखता तथा उसका विश्लेषण करता है, उसी प्रकार जब रामचंद्र के सामने खाने की थाली आई तब उसने इसी नजर से उसे देखा। थाली में केवल दो रोटियाँ, एक कटोरा पनियाई दाल और चने की तली तरकारी थी।
प्रश्न 14.
मुंशीजी ने पत्नी की ओर अपराधी भाव से क्यों देखा?
उत्तर :
मुंशीजी ने पत्नी की ओर अपराधी भाव से इसलिए देखा क्योंकि वह उन्हें और रोटी लेने के लिए जिद कर रही थी और कह रही थी कि अभी बहुत-सी हैं। पग मुंशीजी जानते थे कि अब पत्नी के लिए खाना बचा ही न होगा। अत: वे स्वयं को इस दशा के लिए जिम्मेदार मान रहे थे।
प्रश्न 15.
सिद्धेश्वरी रोटी लेने के लिए रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी से जो इसरार करती है, उसके मर्म का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सिद्धेश्वरी रोटी लेने के लिए रामचंद्र, मोहन और मुंशीजी से बहुत इसरार करती है। इसके पीछे उसकी यह भावना छिपी है कि वे घर की बुरी अवस्था से परिचित न हों। वह उन्हें व्यथित नहीं देख सकती। वे सभी अफ्ते-अपने कारणों से पहले ही परेशान हैं। वह घर का रोना रोकर और दुखी नहीं करती। वह सारी व्यथा स्वयं झेलती है और सभी के सामने एक-दूसरे को अच्छा सिद्ध करती है। वह पूरे परिवार को जोड़े रखती है और गरीबी के एहसास को मुखर नहीं होने देती।
प्रश्न 16.
सही उत्तर पर सही का चिद्न (✓) लगाइए :
(क) खाली पानी किसके कलेजे में लग गया?
-प्रमोद, सिद्धेश्वरी
(ख) किसका पेट हाँडिया की तरह फूला हुआ था?
-रामचंद्र, प्रमोद
(ग) फटे पुराने जूतों पर गर्द जमी हुई थी?
-बाबू जी, रामचंद्र
(घ) हाईस्कूल का प्राइवेट इम्तहान देने की तैयारी कौन कर रहा था?
– मोहन, प्रमोद
(ङ) किसके चेहरे पर चेचक के दाग थे?
-रामचंद्र, मोहन
(च) किसकी तबीयत अन्न और नमकीन चीजों से ऊब गई थी? -बाबू जी, सिद्धेश्वरी
उत्तर :
(क) सिद्धेश्वरी
(ख) प्रमोद
(ग) रामचंद्र
(घ) मोहन
(ङ) मोहन
(च) बाबूजी
प्रश्न 17.
निम्नलिखित गद्यांश को संक्षेप में लिखिए :
“सिद्धेश्वरी पर जैसे नशा चढ़ गया था। उन्माद की रोगिणी की भाँति बड़बड़ाने लगी, पागल नहीं है, बड़ा होशियार है। उस जमाने का कोई महात्मा है। मोहन तो उसकी बड़ी इज्ज़त करता है। आज कह रहा था कि भैया की शहर में बड़ी इज्ज़त होती है, पढ़ने-लिखने वालों में बड़ा आदर होता है और बड़का तो छोटे भाइयों पर जान देता है। दुनिया में वह सब कुछ सह सकता है, पर यह नहीं देख सकता कि उसके प्रमोद को कुछ हो जाए।”
उत्तर :
सिद्धेश्वरी पुत्र-प्रेम में उन्मुक्त होकर उसका गुणगान करने लगी। वह उसे होशियार, महात्मा, बड़े भाई की इज्जत करने वाला बताने लगी। वह बड़े बेटे की भी अच्छाइयाँ गिनाने लगी।
प्रश्न 18.
भूख और गरीबी से जुड़ी कोई घटना जो आपने देखी, सुनी हो उसके बारे में लिखिए।
उत्तर :
भूख और गरीबी से जुड़ी एक घटना मेरे सामने घटी। एक गरीब भिखारी भूख से व्याकुल होकर बड़ी करुण आवाज से भीख माँग रहा था। उसके दो छोटे बच्चे भी उसके साथ थे। वे भूख से व्याकुल थे अतः पेट पर हाथ फिरा रहे गे। धनी लोग उनकी पुकार को अनसुनी कर रहे थे।
प्रश्न 19.
“उसने पहला ग्रास मुँह में रखा और तब न मालूम कहाँ से उसकी आँखों से टपटप आँसू चूने लगे।” इस कथन के आधार पर सिद्धेश्वरी की व्यथा समझाइए।
उत्तर :
घर के सब सदस्यों को खाना खिलाने के बाद अंत में सिद्धेश्वरी खाना खाने के लिए बैठी। केवल थोड़ी सी दाल बची थी क्योंकि उससे पूरा कटोरा भरा नहीं, बहुत थोड़ी सी तरकारी बची थी और केवल एक रोटी शेष थी। अभी प्रमोद ने खाना नहीं खाया था अतः उसने आधी रोटी उसके लिए बचाकर रख दी। उसके अपने हिस्से में केवल आधी रोटी आई। वह एक लोटा पानी लेकर खाने बैठ गई। उसने पहला ग्रास ही मुँह में रखा था कि उसकी आँखों से आँसू टप्टप बहने लगे। सिद्धेश्वरी घर की ऐसी दुर्दशा देखकर अत्यंत व्यथित थी। वह घर की गरीबी को छिपाने का प्रयास तो बहुत करती है, पर वास्तविकता को कहाँ तक छिपाए। उसे मालूम है कि घर के किसी भी सदस्य ने भरपेट भोजन नहीं किया है। एक गृहिणी के लिए यह स्थिति निश्चय व्यथित करती है।
प्रश्न 20.
कहानी के अंतिम अनुच्छेद “सारा घर मक्खियों से …… कहीं जाना न हो” के आधार पर इस कहानी की मूल संबेदना को प्रकट कीजिए।
उत्तर :
इस कहानी की मूल संवेदना यह है कि घर में न तो सफाई है न साफ कपड़ों की व्यवस्था। गरीबी ने सभी कुछ बिगाड़ दिया है। घर की स्त्री ही इस स्थिति से चिंतित है। लड़के उतने परेशान नहीं हैं, उनका कहीं पता भी नहीं है। पति मुंशी चंद्रिकाप्रसाद भी खाना खाकर निश्चिंतता पूर्वक सोए पड़े हैं। इस समय उन्हें भविष्य की कोई चिंता नहीं है। घर की भूख का निर्मम सत्य उजागर होता है। कहानी में घर की बिगड़ती जा रही आर्थिक दशा का मार्मिक अंकन हुआ है।
प्रश्न 21.
इस कहानी के आधार पर अमरकांत की कहानी कला की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
अमरकांत की कहानी कला की मुख्य विशेषताएँ :
- अमरकांत की कहानियों में शहरी और ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण किया गया है।
- इनकी कहानियों में मुख्यतः मध्यम वर्ग के जीवन की विसंगतियों को उभारा गया है।
- अमरकांत ने सामाजिक जीवन और उसके अनुभवों की यथार्थवादी ढंग से अभिव्यक्ति की है।
- उनकी कहानियों में शैली की सजीवता एवं भाषा की सजीवता है।
- अमरकांत की कहानियों का शिल्प चमत्कृत करने वाला न होकर सहज है। शिल्प में सादगी और सहजता है।
- इनमें पात्रों की संख्या सीमित है।
प्रश्न 22.
कहानी में रामचंद्र कौन है तथा उसका सिद्धेत्वरी से क्या संबंध है ?
उत्तर :
रामचंद्र सिद्धेश्वरी का बड़ा पुत्र है। उसकी उम्र लगभग इक्कीस वर्ष की है। उसका कद लंबा है। वह दुबला-पतला, गोरे रंग का है। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हैं तथा होठों पर झुर्रियाँ हैं। वह एक स्थानीय दैनिक समाचार पत्र के दफ्तर में प्रूफ-रीडरी का काम सीखता है। पिछले वर्ष उसने इंटर की परीक्षा पास की थी।