Class 11 Hindi Antra Chapter 18 Summary - Hastakshep Summary Vyakhya

हस्तक्षेप Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 18 Summary

हस्तक्षेप – श्रीकांत वर्मा – कवि परिचय

प्रश्न :
श्रीकांत वर्मा के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए तथा उनकी प्रमुख रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय – श्रीकांत वर्मा का जन्म 1931 ई. में बिलासपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा बिलासपुर में हुई। सन् 1956 में नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए, करने के बाद उन्होंने एक पत्रकार के रूप में अपना साहित्यिक जीवन शुरू किया। वे ‘श्रमिक’, ‘कृति’, ‘दिनमान’ और ‘वर्णिका’ आदि पत्रों से संबद्ध रहे। मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हे ‘तुलसी पुरस्कार’, ‘आचार्य नंद्दुलारे वाजपेयी पुरस्कार’ और ‘शिखर सम्मान’ से सम्मानित किया। सन् 1984 में उन्हें कविता पर केरल का ‘कुमारन आशान’ राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदांन किया गया।
सन् 1986 ई. में उनका देहांत हो गया।

काव्यगत विशेषताएँ – श्रीकांत वर्मा की कविताओं में समय और समाज की विसंगतियों एवं विद्रूपताओं के प्रति क्षोभ, आक्रोश और अस्वीकार का स्वर मुखरित हुआ है। हिंदी की समकालीन कवि-पीढ़ी में महत्त्वपूर्ण श्रीकांत वर्मा का कविता-संसार उनके पाँच कविता-संग्रहों- ‘भटका मेघ’, ‘दिनारंभ’, ‘मायादर्पण’, ‘जलसाघर’ और ‘मगध’ में फैला हुआ है। इन कविताओं से गुजरते हुए पाठक यह महसूस करता है कि कवि में आद्यंत अपने परिवेश और उसे झेलते मनुष्य के प्रति गहरा लगाव है। उसके आत्मगौरव और भविष्य को लेकर वे लगातार चिंतित हैं।

उनमें यदि परंपरा का स्वीकार है, तो उसे तोड़ने और बदलने की बेचैनी भी कम नहीं है। प्रारंभ में उनकी कविताएँ अपनी जमीन और ग्राम्य-जीवन की गंध को अभिव्यक्त करती हैं किंतु ‘जलसाघर’ तक आते-आते महानगरीय बोध का प्रक्षेपण करने लगती हैं या कहना चाहिए, शहरीकृत अमानवीयता के खिलाफ एक संवेदनात्मक बयान में बदल जाती हैं। इतना ही नहीं उनके दायरे में शोषित-उत्पीड़ित और बर्बरता के आतंक में जीती पूरी-की-पूरी दुनिया सिमट आती है। उनकी कविताओं में अभिव्यक्त यथार्थ हमें अनेक स्तरों पर प्रभावित करता है। उनका अंतिम कविता संग्रह ‘मगध’ तत्कालीन शासक वर्ग के त्रास और उसके तमाच्छन्न भविष्य को बहुत प्रभावी ढंग से रेखांकित करता है।

भाषा-शैली – श्रीकांत वर्मा कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक संकेत देने में सिद्धहस्त कवि हैं। उनकी कविताओं में सहायक क्रियाओं का प्रयोग प्राय: नहीं के बराबर है। उनके वाक्य भागते हुए-से लगते हैं। एक शब्द से दूसरा शब्द निकलता है, एक वाक्य से दूसरा वाक्य और एक चित्र से दूसरा चित्र। जैसे कवि आज की वास्तविकता का जल्दी-से-जल्दी बयान कर जाना चाहता हो। दुनिया-भर की वास्तविकताएँ एक-दूसरे में गड्डमड्ड हो जाती हैं। कभी-कभी संसार स्वप्न जैसा प्रतीत होने लगता है-जिसमें बहुत सारे असंबद्ध चित्र अचानक जुड़ने लगते हैं। शायद इसके द्वारा कवि अपने चारों ओर की अव्यवस्था को व्यक्त करना चाहता है। चित्रात्मकता श्रीकांत वर्मा की कविता की प्रमुख विशेषता है। वे देखे हुए चित्रों को कभी व्यंग्यपूर्ण, कभी विडंबनापूर्ण और कभी नाटकीय बनाकर रखते चलते हैं।

रचनाएँ – उनकी प्रकाशित महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं-‘झाड़ी संवाद’ (कहानी संग्रह), ‘दूसरी बार’ (उपन्यास), ‘जिरह’ (आलोचना), ‘अपोलो का रथ’ (यात्रावृत्तांत), ‘फैसले का दिन’ (अनुवाद), ‘बीसवीं शताब्दी के अंधेरे में’ (साक्षात्कार और वार्तालाप) आदि। यहाँ उनकी ‘हस्तक्षेप’ कविता दी गई है।

Hastakshep Class 11 Hindi Summary

‘हस्तक्षेप’ कविता में सता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होने वाले प्रतिरोध को दिखाया गया है। व्यवस्था को जनतात्रिक बनाने के लिए समय-समय पर उसमें हस्तक्षेप की जरूरत होती है वरना व्यवस्था निरकुश हो जाती है। इस कविता में ऐसे ही तंत्र का वर्णन है जहाँ किसी भी प्रकार के विरोध के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है किंतु कवि बताता है कि हस्कक्षेप तो मुद्या भी कर जाता है फिर जिंदा लोग जुप बैठे रह जाएँगे, यह कैसे संभव है?

‘हस्तक्षेप’ शीर्षक कविता ‘नई कविता’ के सशक्त कवि श्रीकांत वर्मा द्वारा रचित है। कवि इसमें शासक वर्ग की निरंकुशता को तोड़ने के लिए उसमें नागरिकों के हस्त्ष्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करता है। इसमें ‘मगध’ शासन का प्रतीक है। इस मगध में हर कीमत पर शांति-व्यवस्था बनाए रखने की दुहाई दी जाती है। नागरिकों को इतना भयभीत किया जाता है कि कोई छंकता तक नहीं। इससे शांति में खलल पड़ सकता है। लोग चीखते भी नहीं अर्थात् अपनी बात बलपूर्वक नहीं कहते। उन्हें डर दिखाया जाता है कि इससे शासन-व्यवस्था में दखल हो जाएगा। शासन व्यवस्था निर्विध्न चलनी चाहिए।

व्यवस्था के न रहने पर लोग भी नहीं रह पाएँगे। वैसे लोग चोरी-छिपे तो आलोचना करते हैं कि अब वह पहले वाला मगध नहहंं रह गया, जहाँ लोगों की आवाज सुनी जाती थी। अब कोई सत्ता को टोकता नहीं क्योंकि इसका रिवाज बनने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। यदि एक बार यह हस्तक्षेप की प्रक्रिया शुरू हो जाती है तो फिर यह रुकने का नाम नहीं लेती। मगधवासी इससे बचना भी चाहें तो बच नहीं सकते। उन्हें आतंक और अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठानी ही होगी। इस प्रकार का हस्तक्षेप तो कमजोर, निर्जीव व्यक्ति भी कर जाता है तब जिंदा लोग भला कैसे चुप रह पाएँगे। यह संभव है ही नहीं। लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सचेत होना होगा। उन्हें शासक वर्ग की कमियों और ज्यादतियों पर उँगली उठानी होगी।

हस्तक्षेप सप्रसंग व्याख्या

1. इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए
मगध है, तो शांति है
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए

शब्दार्थ :

  • हस्तक्षेप = रोकना, प्रश्न उठाना (To interfare to ask questions)।
  • व्यवस्था = इंतजाम (Arrangement)।
  • दखल = रोक-टोक, रुकावट (Hindrence)।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश आधुनिक काल के कवि श्रीकांत वर्मा द्वारा रचित कविता ‘हस्तक्षेप’ से अवतरित है।
इस कविता में कवि ने कम से कम शब्दों में सत्ता की क्रूरता और निरंकुशता पर करारा व्यंग्य किया है। इस प्रकार की व्यवस्था विरोध की गुंजाइश ही नहीं छोड़ती। व्यवस्था के नाम पर शासक वर्ग आतंक का वातावरण बनाए रखता है। इसमें हस्तक्षेप की जरूरत तो बनी रहती ही है।

व्याख्या – कवि सत्ताधारी वर्ग की निरंकुशता पर अप्रत्यक्ष रूप से व्यंग्य करते हुए कहता है कि मगध (शासन का प्रतीक) में शांति-व्यवस्था बनी रहनी ही चाहिए। यह शांति-व्यवस्था भंग न हो जाए, इसी डर से कोई छींकता तक नहीं। इस प्रकार का वातावरण बनाया गया है कि यदि मगध को बनाए रखना है तो मगध में शांति बनाए रखनी होगी। शांति के नाम पर शासक वर्ग नागरिकों को चुप कराके रखता है। उनकी अभिव्यक्ति क्षमता पर नियंत्रण रखा जाता है।

मगध है तो शांति बनी रहेगी। कोई भी नागरिक इस प्रतिबंध के विरोध में आवाज नहीं उठाता। उसे डराया जाता है कि इससे मगध की शासन व्यवस्था में विध्न पड़ जाएगा, रुकावट आ जाएगी। उनका कहना है कि मगध में हर कीमत पर व्यवस्था बनी रहनी चाहिए। भाव यह है कि सत्ता जब निरंकुश हो जाती है तब वह किसी नागरिक की विरोधी आवाज सहन नहीं कर पाती। वह नागरिकों को दबा कर रखती है। लोगों को शांति-व्यवस्था के भंग होने का भय दिखाया जाता है।

विशेष :

  1. ‘मगध’ शब्द का प्रयोग प्रतीकात्मक रूप में हुआ है। यह शासक वर्ग का प्रतीक है। यह कोई भी राज्य हो सकता है।
  2. कवि ने शब्दों में मितव्ययता बरती है।
  3. कविता अतुकांत है।
  4. कवि के मन का आक्रोश अभिव्यक्त हुआ है।
  5. लक्षणा शब्द शक्ति का प्रयोग है।

2. मगध में न रहा!
तो कहाँ रहेगी.
क्या कहेंगे लोग?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज़ न बन जाए

शब्दार्थ :

  • टोकना = पूछना, रोकना (To ask)।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर श्रीकांत वर्मा द्वारा रचित कविता ‘हस्तक्षेप’ से अवतरित है। इसमें कवि राज-सत्ता की निरकुशता के प्रति अपना आक्रोश व्यक्त करता है। यहाँ ‘मगध’ शब्द का प्रयोग प्रतीकात्मक रूप से हुआ है।

व्याख्या – सत्ता पक्ष शांति-व्यवस्था के नाम पर अपने नागरिकों के अधिकारों का शोषण करता है। लोगों की जायज़ आवाज़ को भी दबाकर रखा जाता है और इसके लिए दुहाई दी जाती है-शांति व्यवस्था की। उनसे कहा जाता है कि यदि यह व्यवस्था मगध में नहीं तो और कहीं नहीं रह सकती। और यदि भंग हो गई तो लोग क्या कहेंगे? सत्ताधारी वर्ग के लिए लोगों की आड़ लेना मात्र बहाना है। लोग तो दबे मुँह यह भी आलोचना करते हैं कि मगध अब वह नहीं रहा जो कभी था।

पहले यहाँ लोगों की बात सुनी जाती थी, पर अब उनकी परवाह कोई नहीं करता। इस प्रकार अब मगध का स्वरूप बदल गया है। अब तो इसका सिर्फ नाम ही बचा है। अब यह रहने लायक नगर नहीं रहा। यहाँ अब कोई किसी को (सत्ता एो) इस भय से नहीं टोकता कि कहीं मगध में टोकने का रिवाज़ ही न बन जाए। सत्ता पक्ष ने टोकने या हस्तक्षेप कर, की गुंजाइर ही नहीं छोड़ी है। कवि अप्रत्यक्ष रूप में कहना चाहता है कि व्यवस्था को जनतांत्रिक बनाए रखने के लिए समय-समय पर उसमें हस्तक्षेप करने की जरूरत रहती है अन्यथा व्यवस्था निरंकुश हो जाती है।

विशेष :

  1. कवि ने व्यंजना शब्द शकित का प्रयोग कर अपने कथ्य को स्पष्ट करने में सफलता पाई है।
  2. प्रश्न-शैली अपनाई गई है।
  3. शब्दों के प्रयोग में मितब्ययता बरती गई है।
  4. भाषा सीधी-सरल है।
  5. कविता अतुकांत है।
  6. कई स्थलों पर अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है-क्या कहेंगे, कहने होते।

3. एक बार शुरू होने पर कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप-
वैसे तो मगधनिवासियों
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से-
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुजरता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है-
मनुष्य क्यों मरता है?

शब्दार्थ :

  • हस्तक्षेप = दखल (Interference)।
  • कतराओ = बचो (To go safe)।
  • मुर्दा = मृत व्यक्ति (Dead body)।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश नई कविता के प्रमुख कवि श्रीकांत वर्मा द्वारा रचित कविता ‘हस्क्षेप’ से अवतरित है। सत्ता पक्ष अपनी निरंकुशता बनाए रखने के लिए लोगों को शांति-व्यवस्था के नाम पर चुप रहने को बाध्य करता है। यदि यह हस्तक्षेप एक बार शुरू हो जाए तो फिर इसका सिलसिला चल निकलता है।

व्याख्या – कवि व्यवस्था को जनतांत्रिक बनाए रखने के लिए उसमें समय-समय पर हस्तक्षेप की आवश्यकता बताता है। नागरिकों को व्यवस्था के नाम पर ज्यादा देर तक चुप नहीं रखा जा सकता। यदि एक बार नागरिक अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो जाएँ तो वे शासक वर्ग से प्रश्न पूछने शुरू कर देते हैं। उनका हस्तक्षेप करना उचित भी है। यह सिलसिला फिर रुकने का नाम नहीं लेता। नागरिक (मगध वासी) चाहे कितना बच-बचकर चलें पर वे इस हस्तक्षेप से बच नहीं सकते। जब लोग हस्तक्षेप करने से बचते हैं तब नगर के बीच से गुजरने वाला मुर्दा भी हस्तक्षेप कर जाता है, तब जिंदा लोग चुप बैठे रह जाएँगे, यह कैसे संभव है?

कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि जनतांत्रिक शासन व्यवस्था में शासक वर्ग की कमियों और ज्यादतियों की ओर उँगुली उठाना नागरिकों का अधिकार है। इस अधिकार का प्रयोग करना आवश्यक है वरना शासक वर्ग निरंकुश हो जाएगा। मनुष्य इससे बचना चाहे तो भी वह बच नहीं सकता।

विशेष :

  1. कवि ने व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग किया है।
  2. शब्दों में मितव्ययता बरती गई है।
  3. कविता अतुकांत है।
  4. कवि का व्यंग्य मुखर है।
  5. नई कविता की सभी विशेषताएँ उभरी हैं।

Hindi Antra Class 11 Summary