NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 17 बादल को घिरते देखा है
Class 11 Hindi Chapter 17 Question Answer Antra बादल को घिरते देखा है
प्रश्न 1.
इस कविता में बादलों के सौंदर्य चित्रण के अतिरिक्त और किन दृश्यों का चित्रण किया गया है?
उत्तर :
इस कविता में निम्न दृश्य-चित्रों का सजीव चित्रण किया गया है –
- ओस कणों के कमलों पर गिरने का दृश्य-चित्र
- हंसों के .झील में तैरने का दृश्य-चित्र
- चकवा-चकवी के प्रणय-कलह का दृश्य-चित्र
- कस्तूरी मृग के दौड़ने का दृश्य-चित्र
- किन्नर-किन्नरियों का दृश्य-चित्र।
प्रश्न 2.
प्रणय-कलह से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
‘प्रणय-कलह’ से तात्पर्य है-प्रेम भरी तकरार। इसमें प्रेम की मिठास शामिल होती है। यह प्रेमी-प्रेमिका की प्यार भरी छेड़छाड़ होती है। चकवा-चकवी के संदर्भ में इसका उल्लेख हुआ है।
प्रश्न 3.
कस्तूरी मृग के अपने पर ही चिढ़ने का क्या कारण है?
उत्तर :
कस्तूरी मृग (हिरन) की नाभि में कस्तूरी बसी होती है। उसकी सुगंध उसे मस्त करती रहती है, लेकिन भोला हिरन इस सत्य से अपरिचित होता है। वह उसे ढूँढ़ने के लिए इधर-उधर दौड़ता-फिरता है, पर उसे ढूँढ़ नहीं पाता। कस्तूरी को कहीं भी न पाकर वह चिढ-सा जाता है।
प्रश्न 4.
बादलों का वर्णन करते हुए कवि को कालिदास की याद क्यों आती है ?
उत्तर :
बादलों का वर्णन करते हुए कालिदास की याद कवि को इसलिए आती है कि कालिदास द्वारा रचित ‘मेघदूत’ में धनपति कुबेर ने यक्ष को एक वर्ष का जो निर्वासन दंड दिया था, उस अवधि में यक्ष ने मेघ (बादल) को दूत बनाकर अपनी प्रिया के पास अंपना संदेश भेजा था। कवि ने उन स्थानों को खोजने का प्रयास किया, जिनका उल्लेख ‘मेघदूत’ में है, पर वे कहीं नहीं मिले। न आकाश-गुंगा मिली और न वह मेघ मिला। इसी कारण कवि को उसकी याद आती है।
प्रश्न 5.
कवि ने ‘महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि ने पर्वत प्रदेश में भीषण सर्दी के दौरान गगनचुंबी कैलाश शिखर पर मेघखंडों को तूकानों से टकराते हुए देखा है। पर्वतीय प्रदेश में सघन मेघमाला वहाँ आने वाली तेज हवाओं से टकराती रहती हैं तथा इसके कारण गर्जना भी होती है। ऐसा लगता है कि दोनों में भयंकर टक्कर हो रही है।
प्रश्न 6.
‘बादल को घिरते देखा है’ पंक्ति को बार-बार दोहराए जाने से कविता में क्या-क्या सौंदर्य आया है ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘बादल को घिरते देखा है’ पंक्ति कविता की टेक है। टेक को कविता में हर अंतरा के बाद दोहराया जाता है। इससे कविता का मूल भाव बार-बार सामने आता रहता है और कविता का प्रभाव बना रहता है। इससे काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) निशा काल से चिर-अभिशापित / बेबस उस चकवा-चकई का बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें / उस महान सरवर के तीरे शैवालों की हरी दरी पर । कलह छिड़ते देखा है।
(ख) अलख नाभि से उठनेवाले / निज के ही उन्मादक परिमलके पीछे धावित हो-होकर / तरल तरुण कस्तूरी मृग को अपने पर चिढ़ते देखा है।
उत्तर :
आशय व्याख्या भाग में देखें।
प्रश्न 8.
संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए : देखा है।
(ख) समतल देशों से आ-आकर ………………. हंसों को तिरते देखा है।
(ग) ऋतु वसंत का सुप्रभात था ……………. अगल-बगल स्वर्णिम शिखर थे।
(घ) ढूँढ़ा बहुत परंतु लगा क्या ………… जाने दो, वह कवि-कल्पित था।
उत्तर :
व्याख्या भाग में व्याख्या देखें।
योग्यता-विस्तार –
1. अन्य कवियों की ऋतु संबंधी कव्विताओं का संग्रह कीजिए।
कुबेर धन का देवता माना जाता है। उसने यक्ष को निर्वासन का दंड दिया था, पता नहीं वह कहाँ चला गया? उसकी वैभव नगरी अलकापुरी थी। अब कवि को उसका कोई चिह्न दिखाई नहीं पड़ा।
2. कालिदास के ‘मेघदूत’ का संक्षिप्त परिचय प्राप्त कीजिए।
कालिदास ने ‘मेघदूत’ नामक काव्य की रंचना की है। इसमें यक्ष-यक्षिणी के विरह का चित्रण है। यक्ष ने मेघ को अपना दूत बनाकर अपना प्रेम-संदेश यक्षिणी तक भिजवाया था। इसी कथा को लेकर कालिदास ने ‘मेघदूत’ काव्य की रचना की।
3. बादल से संबंधित अन्य कवियों की कविताएँ याद कर अपनी कक्षा में सुनाइए।
विद्यार्थी कक्षा में स्वयं सुनाएँ।
4. एन.सी.ई.आर.टी. ने कई साहित्यकारों, कवियों पर फिल्में तैयार की हैं। नागार्जुन पर भी फिल्म बनी है। उसे देखिए और चर्चा कीजिए।
फिल्म देखें।
Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 17 बादल को घिरते देखा है
प्रश्न 1.
हिमालय के किन्नर जैसे वन-वासियों के कलात्मक रहन-सहन और सज-धज का जो चित्रण इस कविता में किया गया है, उसके आधार पर एक कलात्मक अनुच्छेद लिखो।
उत्तर :
‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता में नागार्जुन जी ने किन्नर-किन्नरियों की वेशभूषा और साज-सज्जा का बड़ा ही मोहक वर्णन किया है। किन्नर जाति स्वभावत: विलासप्रिय है। वे लाल और श्वेत वर्ण के भोजपत्रों से निर्मित पर्ण-कुटी में निवास करते हैं। उन्होंने रंग-बिरंगे एवं सुगंधित पुष्पों से अपना श्रृंगार किया है। उनके केशों में लाल कमल टँगे हुए हैं। उनकी सुघड़ ग्रीवाओं में इद्रनीलमणि की मालाएँ सुशोभित हैं। कानों में भी कमल झूल रहे हैं। उसकी कुटिया में लाल चंदन की तिपाही है जिस पर चाँदी के बने एवं मणियों से सजे हुए सुरापात्र रखे हुए हैं। वे स्वयं नरम, निदाग बाल कस्तूरी मृग की छाल पर पालथी मारे हुए बैठे हैं और मस्ती से बाँसुरी बजा रहे हैं।
प्रश्न 2.
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता के आधार पर नागार्जुन की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि ने वर्णनात्मक शैली में पर्वत पर घिरते बादल के साथ तथा उसके आश्चर्यपूर्ण सौंदर्य को अंकित किया है। सभी दृश्य वास्तविक प्रतीत होते हैं। कल्पना न तो चित्रण में है, न चित्रण की भाषा में। तत्सम शब्दों का बाहुल्य होते हुए भी भाषा सरल है। समासयुक्त शब्द भी सरल है। तिक्त-मधुर, बालारुण, अगल-बगल, प्रणय-कलह, शत-सहस्र, व्योम-प्रवाही आदि शब्द व्याकरण के अनुसार समास हैं परंतु समास लगते नहीं हैं क्योंकि वे इतने अधिक परिचित से लगते हैं। इसके अतिरिक्त कवि ने बोलचाल के शब्दों जैसे-ऊमस, पलथी, ठिकाना, सुघढ़, निदान आदि शब्दों को भी बेरोक-टोक प्रयोग किया है। मुहावरे इस कविता में नहीं हैं। इसमें कवि भारी भरकम गब्दों से बचा है। यत्र-तत्र, वर्ण मैत्री द्वारा अनुप्रास की छटा बिखेर देती है। जैसे-कवि-कल्पित, रजत-रचित, पान-पात्र, नरम-निदाघ आदि। ‘शंख सरीखे सुघड़ गलों में’ में उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है। ‘शैवालों की हरी दरी पर’ में रूपक अलंकार है।
प्रश्न 3.
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता के आधार पर वर्षा ऋतु का वर्णन करो।
उत्तर :
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता नागार्जुन द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने शुद्ध प्रकृति का चित्रण किया है। वर्षा ऋतु में जब पर्वत प्रदेश में मेघ घिर आते हैं तो संपूर्ण प्रकृति अत्यंत मोहक हो उठती है। वर्षा की फुहारें प्रकृति की विरहाग्नि को शांत करती हैं। कवि ने विभिन्न बिम्बों के माध्यम से विभिन्न दृश्यों की आयोजना की है। वर्षा की फुहारें कमल दलों पर पड़कर मोतियों की भाँति झिलमिलाती हैं। पावस ऋतु की उमस से घबराकर समतल प्रदेश के हंस यहां की झीलों में जल क्रीड़ा करते हुए कमल नाल को खोंजते रहते हैं। वसंत के प्रभात में रात भर वियोग का दुख झेलने वाले चकवा-चकवी प्रणय कलह करते हुए देखे जाते हैं। इसी प्रकार कस्तूरी मृग अपनी नाभि से उठने वाली सुगंध के पीछे फग्ल होता दिखाई देता है। शीत ऋतु में वर्षा का उल्लेख करता हुआ कवि कहता है कि गरजते मेघ और तूफानी हवाओं में संघर्ष-सा छिड़ा दिखाई देता है। किन्नर-किन्नरियों की विलासपूर्ण लीला यहाँ दिखाई देती है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
उत्तर :
इन काव्य-पंक्तियों में कवि वर्षा ऋतु में हिमालय पर्वत की बर्फीली चोटियों पर अपने अनुभव का वर्णन कर रहा है। यहाँ बादलों के घिरने की छटा का मनोहारी अंकन किया गया है। यहाँ बर्फ के छोटे-छोटे कणों को गिरते हुए भी देखा है। मानसरोवर में खिलने वाले कमलों को स्वर्णिम (सुनहरे) बताया गया है। बर्फ के कण जब कमलों पर गिरते हैं तब वे मोतियों की सी आभा प्रदान करते हैं।
पर्वत-शिखरों को अमल-धवल (स्वच्छ एवं सफेद) बताया गया है।
- ‘छोटे-छोटे में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- ‘छोटे-छोटे मोती जैसे ‘. में उपमा अलंकार का प्रयोग है।
- ‘अमल धवल’ में अनुप्रास अलंकार है।
- अनेक तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है-अमल धवल, तुहिन, स्वर्णिम आदि।
(ख) तुंग हिमालय के कंधों पर छोटी-बड़ी कई झीलें हैं, उनके श्यामल नील सलिल में समतल देशों से आ-आकर पावस की ऊमस से आकुल तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते हंसों को तिरते देखा है। बादल को घिरते देखा है।
उत्तर :
इस काव्यांश में हिमालय क्षेत्र की झीलों का सुंदर वर्णन हुआ है। उनके जल को ‘श्यामल-नील’ बताया गया है। शांत और गहरी झीलों के जल में तैरते हंसों का अत्यंत सुंदर वर्णन किया गया है।
- ‘श्यामल और नील’ विशेषणों का साभिप्राय प्रयोग हुआ है। इनसे जल की गहराई ध्वनित होती है।
- प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। हिमालय को एक उदार पुरुष मानकर उसके कंधे पर कई झीलों की कल्पना की गई है।
- ‘आ-आकर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- ‘तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते ‘ प्रयोग का सौंदर्य देखते ही बनता है।
- संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न 5.
कवि-सत्य किसे कहते हैं? इस कविता में कवि ने किस कवि-सत्य का उल्लेख किया है?
उत्तर :
कवि-सत्य उसे कहते हैं जिसके बीच वह जीता है इसे सामान्य व्यक्ति तो नहीं देख पाता, पर कवि देख लेता है, जो वह (कवि) जीता है वही कवि-सत्य बनकर कविता में अभिव्यक्त होता है। इस कविता में कवि ने बादल की विकरालता, बीहड़ता यानी जिन-जिन रूपों में देखा, जिया, उन रूपों का विशद् वर्णन कविता में किया है।
प्रश्न 6.
चकवा-चकई के संबंधों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
चकवा-चकई के मध्य प्रेम का संबंध होता है। वे रात्रि के समय बिछुड़ जाते हैं और प्रातःकाल होते ही उनका मिलन हो जाता है। तब प्रणय करने में लग जाते हैं। कभी-कभी उनमें कलह भी होता है।
प्रश्न 7.
कविता का भाव-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य-इस कविता में प्रकृति का अत्यंत मनोहारी चित्रण हुआ है। वर्षा, बसंत और शरद ऋतु में हिमालय के आस-पास एक अनोखा वातावरण होता है। यहाँ के दृश्य अत्यंत लुभावने हैं। बादलों का घिरना और टकराना चित्रित हुआ है। प्राकृतिक सौंदर्य के अतिरिक्त दुर्गम बर्फीली घाटियों, झीलों, झरनों, दुर्लभ वनस्पतियों, जीव-जंतुओं, किन्नर-किन्नरियों तथा वहाँ व्याप्त समस्त जीवन-जगत का यथार्थ चित्रण किया गया है।
प्रश्न 8.
निराला के ‘बादल राग’ कविता और नागार्जुन की ‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में क्या अंतर है ? विस्तार सहित लिखिए।
उत्तर :
निराला की कविता ‘बादल राग’ पर प्रगतिवादी विचारधारा का प्रभाव है।
‘बादल राग’ शीर्षक कविता निराला जी की एक प्रसिद्ध ओजस्वी रचना है। कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक माना है। वह शोषित वर्ग के हित में उसका आह्बान करता है। क्रांति के प्रतीक बादलों को देखकर पूँजीपति वर्ग भयभीत हो जाता है और किसान मजदूर उसे आशा भरी दृष्टि से देखते हैं। बड़े-बड़े महलों में रहने वाले धनिक आतंद. फैलाने का प्रयास करते हैं, पर क्रांति के स्वर उन्हें भी कंपित कर देते हैं। शोषित वर्ग इस क्रांति से लाभान्वित होता है।
अतः समाज में उनका सही अधिकार दिलाने के लिए क्रांति की आवश्यकता है। वायु के सहारे आकाश में तैरने वाले बादल जीवन के अस्थिर सुख पर फैली दु:ख भरी छाया की भाँति प्रतीत होते हैं। बादलों की भीषण गर्जना मानो क्रांति का आड्वान है। क्रांति के इस आह्नान को सुनकर नवजीवन की आकांक्षा से भरे छोटे-छोटे पौधे हर्ष और उल्लास से भर उठते हैं, जबकि विशालकाय पर्वत बादलों की कड़क को सुनकर भय से काँपने लगते हैं। शोषित वर्ग क्रांति का स्वागत करता है, जबकि शोषक वर्ग को उसमें अपना विनाश दिखाई देता है। इसके विपरीत नागार्जुन की कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ पूर्णत: प्रकृति-चित्रण से संबंधित कविता है। इसमें प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर वर्णन किया गया है।
प्रश्न 9.
कवि ने प्रस्तुत कविता में बादल को किस ऋतु में घिरते देखा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने बादल को वर्षा ऋतु में घिरते देखा है। कवि ने अपनी इस कविता में इस संदर्भ में स्पष्ट किया है कि जब समतल क्षेत्रों में वर्षा से उमस हो जाती है तो पक्षी हिमालय की ओर जाते हैं। कवि ने लिखा है –
“पावस की उमस से आकुल, तिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते;
हंसो को तिरते देखा है, बादल को घिरते देखा है।”
प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में इस कविता में “बादल को घिरते देखा है”-पंक्ति को बार-बार दोहराए जाने से कविता में क्या सौंदर्य आया है ?
उत्तर :
यह पंक्ति कविता की टेक है।
टेक को हर काव्यांश में दोहराया जाता है। इससे कविता के सौंदर्य में वृद्धि होती है साथ ही इससे शीर्षक की याद बनी रहती है।
प्रश्न 11.
इस कविता में कवि ने पावस और शरद् काल में बादलों के जिन विशिष्ट रूपों का वर्णन किया है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
इस कविता में कवि ने पावस काल में बादलों को हिमालय पर घिरते हुए देखा है। शरद् काल में बादलों के मोती के ओस कणों को मोती के समान रूप में कमलों पर गिरते देखा जा सकता है। शरद् काल में हिमालय के कैलाश पर्वत पर मेघखंड तूफानों से टकराते हुए देखे जा सकते हैं।
प्रश्न 12.
कविता में चित्रित प्रकृति-चित्रण एवं जन-जीवन को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रकृति-चित्रण-इस कविता में विभिन्न ऋतुओं में पर्वत शिखरों पर बादलों के घिरने की शोभा का वर्णन किया गया है। ओस कणों को मोती के समान बताया गया है। उनका कमल के फूलों पर गिरना बड़ा ही मनोहर दृश्य उपस्थित कर देता है। हिमालय पर स्थित झीलों में हंसों के तैरने का दृश्य भी नयनाभिराम है। वसंत ऋतु के प्रातःकालीन सूर्य की किरणें अनोखी छटा उपस्थित करती हैं। कस्तूरी मृग को अपनी नाभि की सुगंध के पीछे पागल होते देखा जा सकता है।
जन-जीवन – इस प्राकृतिक वातावरण में जन-जीवन मस्ती से परिपूर्ण होता है। किन्नर-किन्नरियाँ मृगछालाओं पर बैठकर वंशी बजाते रहते हैं।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित पंक्तियाँ किन-किन ऋतुओं से संबंधित हैं?
(क) तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते ………….. हंसों को तिरते देखा है।
(ख) निशांकाल से चिर अभिशापित …………. प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
(ग) महामेघ को झंझानिल से ……….. गरज-गरज भिड़ते देखा है।
उत्तर :
(क) उमसभरी पावस ऋतु,
(ख) बसंत ऋतु,
(ग) शरद् ॠतु।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न –
प्रश्न 14.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
अमल धवल गिरि के शिखरों पर
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है
बादल को घिरते देखा है।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इन काव्य-पंक्तियों में कवि वर्षा त्रतु में हिमालय पर्वत की बर्फीली चोटियों पर बादल को घिरते हुए देखा है।वह उसी अनुभव को इन पंक्तियों में अभिव्यक्त कर रहा है। वह स्वच्छ-श्वेत पर्वत चोटियों के बर्फ-ओस कणों को कमल के फूलों पर गिरते देखता है। यह दृश्य अत्यंत मनमोहक प्रतीत होता है। ये कण मोतियों की आभा प्रदान करते जान पड़ते हैं।
शिल्प-सांदर्य :
- पर्वत शिखरों को अमल धवल (स्वच्छ एवं सफेद) बताया गया है।
- छोटे-छोटे में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
- छोटे-छोटे मोती जैसे में उपमा अलंकार का प्रयोग है।
- तत्सम शब्दावली प्रयुक्त हुई है
- माधुर्यगुण का समावेश है।
प्रश्न 15.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बड़ी कई झीलें हैं,
उनके स्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावल की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इस काव्यांश में हिमालय क्षेत्र की झीलों का सुंदर वर्णन हुआ है। जल को श्यामल-नीला बताया गया है। शांत और गहरी झील में हंसों के तैरने का सुंदर वर्णन किया गया है। हंसों को तीखे-मीठे स्वाद वाले कमल नाल को खोजते हुए दर्शाया गया हैं कवि पर्वत पर बादल को घिरते हुए देखता है।
शिल्प-सौंदर्य :
- श्यामल (साँवला) और नील विशेषणों का सटीक प्रयोग किया गया है।
- हिमालय का मानवीकरण किया गया है। उसके कंधे पर कई झीलों की कल्पना की गई है।
- ‘आ-आकर’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
- ‘तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते’ प्रयोग का सौंदर्य देखते बनता है।
- संस्कृतनिष्ठ भाषा अपनाई गई है।
प्रश्न 16.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
एक दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती,
निशा काल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इस काव्यांश में कवि प्रेमी–्रेमिका के विरह काल की वेदना को चकवा-चकवी के माध्यम से व्यंजित करता है। उन्हें शापवश सारी रात पृथक-पृथक होकर बितानी पड़ती है। प्रातःकाल होने पर उनका क्रंदन बंद हो जाता है क्योंकि दोनों का मिलन (संयोग) हो जाता है। संयोगावस्था में प्रणय-कलह का दृश्य भी मनोहारी बन पड़ा है।
शिल्प-सौंदर्य :
- इन पंक्तियों में वसंत ॠतु की सुबह में सरोवर के किनारे शैवाल पर प्रणय-क्रीड़ा करते क्रॉंच-युगल भावपूर्ण चित्रण हुआ है।
- ‘अलग-अलग’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
- ‘चकवा-चकवी’ में अनुप्रास अलंकार है।
- ‘शैवालों की हरी दरी’ में रूपक अलंकार है।
- काव्यांश में श्वृंगार रस के वियोग और संयोग-दोनों का चित्रण हुआ है।
- तत्सम शब्द प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग है।