नींद उचट जाती है Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 16 Summary
नींद उचट जाती है – नरेंद्र शर्मा – कवि परिचय
प्रश्न :
नरेंद्र शर्मा के जीवन एवं साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय – नरेंद्र शर्मा का जन्म 22 फरवरी, 1923 को ग्राम जहाँगीरपुर जिला बुलंदशहर (उ.प्र.) में हुआ था। इनके पिता का नाम पं. पूरनमल शर्मा तथा माता का नाम गंगादेवी था। घर में आर्य समाजी वातावरण था, जिसका प्रभाव इन पर भी पड़ा। इन्होंने 1936 ई. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् दो वर्ष तक पं. जवाहरलाल नेहरू के निजी सहायक रहे। 1940 में काशी विद्यापीठ में शिक्षक नियुक्त हुए। इसी वर्ष स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण दो वर्ष तक इन्हें विभिन्न कारावासों में बंद रखा गया। 1943 में मुंबई के फिल्म जगत ने नरेंद्र शर्मा को आकर्षित किया। वहाँ ये कथानक, संवाद और गीत लिखने लगे। 1953 में आकाशवाणी में विविध भारती कार्यक्रम के संचालक बनकर लोकप्रियता हासिल की। दिल्ली में विविध भारती के चीफ प्रोड्यूसर बने। साठ वर्ष के होने पर इन्होंने नौकरी से अवकाश प्राप्त किया। सन् 1989 में इनका देहांत हो गया।
साहित्य परिचय-नेंद्र शर्मा छोटी उम्र से ही गीत लिखने लगे थे। छात्र-जीवन में ही उनके दो गीत-संग्रह प्रकाशित हुए थे। नेंद्र शर्मा का काव्य-जगत में छायावादी कवि के रूप में आगमन हुआ। उत्तर छायावाद के गीतकारों में उनकी विशिष्ट पहचान है। प्रेम और शृंगार का यह कोमल कवि प्रारंभ में सपनों का सौदागर दिखाई देता था। 1938 ई. में प्रथम प्रकाशित रचना ‘प्रभात फेरी’ थी। ‘प्रवासी के गीत’ भी उनकी लोकप्रिय रचना है। ‘पलाश वन’ प्रकृति काव्य है।
नरेंद्र शर्मा मूलत: गीतकार हैं। उनके अधिकांश गीत यथार्थवादी दृष्टिकोण से लिखे गए हैं। वे प्रगतिवादी चेतना से प्रभावित थे। उन्होंने प्रकृति के सुंदर चित्र उकेरे हैं। व्याकुल प्रेम की अभिव्यक्ति और प्रकृति के कोमल रूप के चित्रण में उन्हें विशेष सफलता मिली है। अंतिम दौर की रचनाएँ आध्यात्मिक और दार्शनिक पृष्ठभूमि लिए हुए हैं। फिल्मों के लिए लिखे गए उनके गीत साहित्यिकता के कारण अलग से पहचाने जाते हैं। नरेंद्र शर्मा की भाषा सरल एवं प्रवाहपूर्ण है। संगीतात्मकता और स्पष्टता उनके गीतों की विशेषता है।
नेंद्र शर्मा धीरे-धीरे प्रगतिशील रचनाओं की ओर मुड़ गए। इसका प्रारंभ होता है ‘मिट्टृी के फूल’ रचना से। ‘लाल निशान’ में मार्स्सवाद का खुला समर्थन है। इसमें गरीबों के उत्थान के लिए क्रांति की अनिवार्यता बताई गई है।
‘रक्तचंदन’ काव्य-रचना का वर्ण्य विषय है-राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का निधन। नरेंद्र शर्मा के काव्य का विषय-क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। व्यक्ति और समाज दोनों ही उनकी कविता के प्रेरक तत्त्व रहे हैं।
भाषा-शैली – नरेंद्र शर्मा की भाषा में कोमल और कठोर दोनों प्रकार के भावों को प्रकट करने की क्षमता है। उनका शब्दकोश व्यापक है। वे संस्कृत की तत्सम शब्दावली से लेकर तद्भव, देशज, आंचलिक शब्दों तथा अरबी-फारसी शब्दों के प्रयोग में सिद्धहस्त हैं। उनके प्रिय अलंकार हैं-उपमा, रूपक, अन्योक्ति, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि। उन्होंने प्रबंध और मुक्तक दोनों शैलियों में काव्य-रचना की है।
रचनाएँ – उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं: प्रभात फेरी, प्रवासी के गीत, पलाश वन, प्रीति कथा, कामिनी, म्डिी के फूल, हंसमाला, रक्तचंदन, कदली वन, द्रौपदी, प्यासा निईर, सुवर्ण, बहुत रात गए, उत्तर जय आदि। उनकी कहानियों का एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ है।
Neend Uchat Jaati Hai Class 11 Hindi Summary
कविता का संक्षिप्त परिचय :
इस पाठ्यपुस्तक में नरेंद्र शर्मा की ‘नींद उचट जाती है’ कविता दी गई है। इस कविता में कवि ने ऐसी लंबी रात का वर्णन किया है जो समाप्त होने का नाम नहीं ले रही और कवि को प्रकाश की कोई किरण भी नहीं दिखाई दे रही है। कविता का यह अँधेरा दो स्तरों पर है व्यक्ति के स्तर पर यह दु:स्वप्न और निराशा का अँधेरा है तथा समाज के स्तर पर विकास, चेतना और जागृति के न होने का अँधेरा है। कवि जागरण के द्वारा इन दोनों अँधेरों से मुक्त होने और प्रकाश का कपाट खोलने की बात करता हैं। कवि करवटें बदलता है पर किसी भी करवट नींद नहीं आती अर्थात् कोई विकल्प नहीं बचा है सिवाय परिवर्तन के।
कविता का सार :
नेंद्र शर्मा द्वारा रचित कविता ‘नींद उचट जाती है’ में कवि ने ऐसी रात का वर्णन किया है जो नींद उचट जाने के कारण बहुत लंबी प्रतीत होती है। नींद में बुरे-भयानक स्वप्न देखकर कवि चौंक-चौंक उठता है। वह डर भी जाता है। भीतर के दु;:्वप्नों से भी अधिक खतरनाक बाहर का अँधेरा होता है। यह अधिक भयावह होता है। व्यक्ति प्रातःकालीन सूर्य की प्रतीक्षा ही करता रह जाता है। उसकी बस आहट ही सुनाई देती है। इस अंधेरे को देखते-देखते व्यक्ति के नयन दुखने लगते हैं और बुरी बातों की आशंकाओं में प्राण सूखने लगते हैं। चारों ओर गहरा सन्नाटा छाया होता है।
इस सन्नाटे को कुत्ते और सियारों का भूँकना और भी डरावना बना देता है। तब मन में भय की भावना समाई रहती है। सुनहली भोर आँखों के निकट तक नहीं आ पाती। मन और तन में निराशां की भावना व्याप्त रहती है। ऐसे में कवि यह चाहने लगता है कि वह किसी न किसी प्रकार पुन: सो जाए और गहरी नींद की गोद में चला जाए। ऐसी दशा में चेतन न रहकर जड़ हो जाएगा और वह इस भयावह स्थिति से छुटकारा प जाएगा। करवट बदलने पर भी नींद नहीं आ पाती है। मन में उतावलापन बना रहता है। नयनों की दशा बड़ी विचित्र हो जाती है लेकिन मन आशा में रात भर भटकता रहता है। कवि जागकर भय रूपी रात्रि को बिता देना चाहता है। धरती पर अंधकार फैला हुआ है। प्रकाश चारों ओर चक्कर काटता रहता है। कवि के मन की आँखों के आगे से अंधकार की शिला नहीं हट पाती।
नींद उचट जाती है सप्रसंग व्याख्या
नींद उचट जाती है –
1. जब तब नींद उचट जाती है
पर क्या नींद उचट जाने से
रात किसी की कट जाती है?
देख-देख दुःस्वज्न भयंकर,
चौंक चौंक उठता हूँ डर कर;
पर भीतर के दुसस्वज्नों से
अधिक भयावह है तम बाहर!
आती नहीं उषा, बस केवल
आने की आहट आती है।
देख अँधेरा नयन दूखते,
दुश्चिता में प्राण सूखते!
सन्नाटा गहरा हो जाता,
जब जब श्वान श्रृगाल भूँकते!
भीत भावना, भोर सुनहली
नयनों के न निकट लाती है!
शब्दार्थ :
- नींद उचटना = असमय नींद से जाग जाना (To wake up suddenly)।
- दुःस्वप्न = खराब/डरावने सपने (Terrible dreams)।
- भयावह = डरावना (Fearful)
- तम = अँधेरा (Darkness)।
- आहट = हल्की आवाज (Slow sound)।
- उषा = प्रातःकाल (Early morning)।
- नयन = आँखें (Eyes)।
- दुश्चिंता = दुख देने वाली चिंता (Worries of sadness)।
- श्वान = कुत्ता (Dog)।
- भृगाल = सियार (Jackal)।
- भीत = डर (Terror)।
- भोर = सवेरा (Mor ing)।
- नयन = नेत्र (Eyes)।
- निकट = पास (Near)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश नरेंद्र शर्मा द्वारा रचित कविता ‘नींद उचट जाती है’ से अवतरित है। इस कविता में कवि ने ऐसी लंबी रात का वर्णन किया है जो समाप्त होने का नाम नहीं ले रही और कवि को प्रकाश की कोई किरण दिखाई नहीं दे रही।
याख्या – कवि उस स्थिति की कल्पना करता है जब रात को हमारी नींद उचट जाती है। पर इस नींद के उचट जाने के फलस्वरूप हमारी रात तो नहीं कट पाती। यह रात बीतने का नाम ही नहीं लेती।
कवि कहता है कि मैं बुरे-डरावने सपने देखकर डर जाता हूँ और बार-बार चौंक पड़ता हूँ। कवि यह अनुभव करता है कि हृदय में जो बुरे सपने आते हैं उनसे ज्यादा डरावना अंधेरा तो बाहर फैला हुआ है। यह अंधकार हमें अधिक भयभीत करता है। जीवन में उषा काल नहीं आ पाता, केवल उसके आने का संकेत भर होता है अर्थात् जीवन में सुख वास्तव में आता नहीं बल्कि ऐसा लगता है कि वह आने वाला है।
अंधेरे को देखकर हमारी आँखें दुखने लगती हैं। हम बुरी-बुरी चिंताओं में उलझकर अपने प्राण सुखाते रहते हैं। अँधेरे में बाहर गहरी चुप्पी समाई होती है। इस अँधेरे में केवल सियार और कुत्तों के भौंकने की आवाजें सुनाई पड़ती हैं। मन में डर समाया होता है और आशावादी सुबह आंखों के पास तक नहीं फटकती। आँखें जिस सुखद क्षण की प्रतीक्षा करती हैं, वह निकट नहीं आ पाती।
विशेष :
- कवि ने जीवन में व्याप्त निराशा का चित्रण किया है।
- कवि द्वारा वर्णित यह अंधेरा व्यक्ति के स्तर पर दु:स्वप्न और निराशा का अंधेरा है।
- अनुग्रास अलंकार-भीत भावना, किसी की कट, श्वान शृंगाल।
- ‘जब-जब’, ‘चौंक-चौंक’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. मन होता है फिर सो जाऊँ,
गहरी निद्रा में खो जाऊँ;
जब तक रात रहे धरती पर,
चेतन से फिर जड़ हो जाऊँ!
उस करवट अकुलाहट थी, पर
नींद न इस करवट आती है!
करवट नहीं बदलना है तम,
मन उतावलेपन में अक्षम!
जगते अपलक नयन बावले,
थिर न पुतलियाँ, निमिष गये थम!
साँस आस में अटकी, मन को
आस रात भर भटकाती है!
जागृति नहीं अनिद्मा मेरी,
नहीं गई भव-निशा अँधेरी!
अंधकार केंदित धरती पर,
देती रही ज्योति चकफेरी!
अंतर्नयनों के आगे से
शिला न तम की हट पाती है!
शब्दार्थ :
- निद्रा = नींद (Sleep)।
- चेतन = जानदार (Living being)।
- जड़ = बेजान (Lifeless)।
- अकुलाहुट = बेचैनी (Restlessness)।
- तम = अंधेरा (Darkness)।
- अक्षम = असमर्थ (Incapable)।
- यन = आँखें (Eyes )।
- थिर = स्थिर (Stable)।
- निमिष = पल, क्षण (Moment)।
- जागृति = जागना (To wake up)।
- भव-निशा = संसार रूपी भयावह रात (Terrible night)।
- चकफेरी = चारों ओर चक्कर काटना (To move round)।
- अंतर्नयनों = अंदर की दृष्टि (Inner sight) ।
- शिला = पत्थर (Stone)।
- तम = अंधकार (Darkness)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश नरेंद्र शर्मा द्वारा रचित कविता ‘नींद उचट जाती है’ से अवतरित है। रात के समय जब कवि की नींद उचट जाती है तब उसकी बेचैनी बढ़ जाती है।
व्याख्या – कवि. रात के समय नींद उचट जाने पर यह चाहता है कि उसे फिर से नींद आ जाए, वह फिर से सो जाए। वह गहरी नींद में खो जाना चाहता है। उसकी इच्छा है कि इस धरती पर जब तक रात का अंधकार बना रहे तब तक वह अपनी चेतना भूलकर फिर से निर्जीव बन जाए अर्थात् नींद की गोद में जाकर अपना सब कुछ भूल जाए। एक करवट से उसे बेचैनी लगती है पर दूसरी करवट से भी उसे चैन नहीं आता। बार-बार करवटें बदलना मन के उतावलेपन को दर्शाता है। इससे मन की अक्षमता भी प्रकट होती है। वह अपलक जागता रहता है क्योंकि उसकी आँखें बावली हैं। उसकी पुतलियाँ स्थिर नहीं हैं, पर उसके पल थम गए से लगते हैं। उसकी आशा साँस-साँस में अटकी रहती है और यही आशा कवि के मन को रातभर भटकाती है। यह जागृति (जागरण) नहीं है वरन् नींद न आने की समस्या है। अभी तक संसार रूपी रात गई नहीं अर्थात् समाप्त नहीं हुई। इस धरती पर अंधकार समाया रहता है। यहाँ रोशनी चारों ओर चक्कर लगाती रहती है। कवि कहता है कि मेरे मन की आँखों के सामने से अंधकार शिला (पत्थर) के समान जम गया है। वह हटने का नाम हीं नहीं लेता। कवि करवटें बदलता है, पर किसी भी करवट नींद नहीं आती अर्थात् विकल्प नहीं बचा है सिवाय परिवर्तन के।
विशेष :
- कवि परिवर्तन की आवश्यकता दर्शाता है।
- ‘करववट बदलना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
- सरल भाषा का प्रयोग है।