Class 11 Hindi Antra Chapter 15 Summary - Jaag Tujhko Door Jaana, Sab Aankho Ke Aansu Ujle Summary Vyakhya

जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 15 Summary

जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले – महादेवी वर्मा – कवि परिचय

प्रश्न :
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं एवं काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। उत्तर :
आज के नारी उत्थान के युग में महादेवी जी ने न केवल साहित्य सृजन के माध्यम से अपितु नारी कल्याण संबंधी अनेकों संस्थाओं को जन्म एवं प्रश्रय देकर इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। महादेवी जी, जहाँ एक श्रेष्ठ कवयित्री थीं वहीं मौलिक गद्यकार भी।

जीवन-परिचय – महादेवी जी का जन्म फरूखाबाद में सन् 1907 ई. में हुआ था। इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा इन्दौर के एक कॉलेज में प्रोफेसर थे। महादेवी जी की प्रारंभिक शिक्षा का श्रीगणेश यहीं से हुआ। माता हेमरानी एक भक्त एवं विदुषी महिला थी। इनकी भक्ति भावना का प्रभाव महादेवी पर भी पड़ा। छठी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् नौ वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह बरेली के डॉ. स्वरूप नारायण वर्मा से हो गया था।

चार-पाँच वर्ष पश्चात् 1920 ई. में प्रयाग में मिडिल पास किया। इसके चार वर्ष बाद हाई स्कूल और 1926 ई. में दर्शन विषय लेकर इन्होंने एम.ए. की परीक्षा पास की। एम.ए, करने के पश्चात् महादेवी जी ‘प्रयाग महिला विद्यापीठ’ में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त हुई और मृत्युपर्यत इसी पद पर कार्य करती रहीं। अपनी साहित्यिक एवं सामाजिक सेवाओं के कारण ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की सदस्या भी मनोनीत की गई। 11 सितंबर 1987 ई. को इलाहाबाद में इनका देहांत हुआ।

रचनाएँ – महादेवी जी की प्रसिद्धि विशेषत: कवयित्री के रूप में है, परंतु ये मौलिक गद्यकार भी हैं। इन्होंने बड़ा चिंतन पूर्ण, परिक्कृत गद्य लिखा है।-महादेवी वर्मा की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं :

नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत और दीपशिखा।
‘यामा’ पर इन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार प्राप्त हुआ।

प्रमुख गद्य रचनाएँ – (1) पथ के साथी, (2) अतीत के चलचित्र, (3) स्मृति की रेखाएँ, (4) शृंखला की कड़ियाँ।

साहित्यिक विशेषताएँ – महादेवी वर्मा की काव्य-रचना के पीछे एक ओर स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा है, तो दूसरी ओर भारतीय समाज में स्त्री जीवन की वास्तविक स्थिति का बोध भी है। यही कारण है कि उनके काव्य में ज़ागरण की चेतना के साथ स्वतंत्रता की कामना की अभिव्यक्ति है और दुःख की अनुभूति के साथ करुणा के बोध की भी। दूसरे छायावादी कवियों की तरह महादेवी वर्मा के गीतों में भी प्रकृति-सौंदर्य के अनेक प्रकार के अनुभवों की व्यंजना हुई है। महादेवी वर्मा के प्रगीतों में भक्तिकाल के गीतों की प्रतिध्वनि है और लोकगीतों की अनुगूँज भी, लेकिन इन दोनों के साथ ही उनके गीतों में आधुनिक बौद्धिक मानव के द्वंद्वों की अभिव्यक्ति ही प्रमुख है।

विषय की दृष्टि से महादेवी जी की रचनाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है-(1) विचारात्मक एवं विवेचना प्रधान, (2) पीड़ा, क्रंदन, अंतरंघर्ष, परदुखकातरता, सहानुभूति एवं संवेदना प्रधान। ‘शृंखला की कड़ियाँ” तथा ‘मह़ादेषी का विवेचनात्मक गद्य’ इनकी विवेचना प्रधान रचनाएँ हैं। कहना न होगा कि महादेवी जी के घरेलू जीवन में दु:ख ही दु:ख था। इन्हीं दुझख, क्लेश और अभावों की काली छाया ने इनके साहित्य में करुणा, क्रंदन एवं संवेदना को भर दिया। वहीं भाकनाएँ गद्य में,भी साकार रूप में मिलती हैं। जहाँ तक विवेचनात्मक गद्य का संबंध है, वह इनके विचारपूर्ण क्षणों की देन है या इन्होंने लिखा है ” विचार के क्षणों में मुझे गद्य लिखना अधिक अच्छा लंगता है। अपनी अनुभूति ही नहीं, बाह्म परिस्थितियों के विश्लेषण के लिए भी पर्याप्त अवकाश रहता है।”

काव्यगत विशेषताएँ – महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। उनके काव्य में रहस्यानुभूति का रमणीय प्रतिफलन हुआ है। महादेवी के प्रणय का आलंबन अलौकिक प्रियतम है। वह सगुण होते हुए भी साकार नहीं है। वह कहती हैं –

“मुस्काता संकेत भरा नभ,
अलि क्या प्रिय आने वाले हैं?”

कवयित्री का अज्ञात प्रियतम इतना आकर्षक है कि मन उससे मिलने को आतुर हो जाता है। निम्नांकित पंक्तियों में ललकती कामना का प्रभावशाली प्रकाशन हुआ है-

“तुम्हें बाँध पाती सपने में।
तो चिर जीवन-प्यास बुझा
लेती उस छोटे क्षण अपने में।”

कवयित्री के स्वप्न का मूक-मिलन भी इतना मादक और मधुर था कि जागृतावस्था में भी वह रोमांचित होती रही है –

“कैसे कहती हो सपना है
अलि! उस मूक मिलन की बात
भरे हुए अब तक फूलों में
मेरे आँसू उनके हास।”

महादेवी वर्मा ने अपने जीवन को ‘विरह का जलजात’ कहा है-

विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात।

विरह की साधना में अपने स्वयं को जलाने की बात कहती हैं-

‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर।

उनके काव्य में वेदना-पीड़ा का मार्मिक चित्रण हुआ है। वे कहती हैं-

‘मैं नीर भरी दुख की बदली।’

भाषा-शैली – महादेवी जी की भाषा स्वच्छ, मधुर, कोमल, संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त परिमार्जित खड़ी ब्बोली है। शब्द चयन उपयुक्त तथा वाक्यविन्यास मधुर तथा सार्थक है। महादेवी जी का तीक्ष्ण व्यंग्य हुदय में व्याकुलता उत्पन्न कर देने वाला है। मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग ने भाषा के सौन्दर्य को और भी बढ़ा दिया है। भाषा में सर्वत्र कविता की सी सरसता और तन्मयता है। महादेवी के गीत अपने विशिष्ट रचाव और संगीतात्मकता के कारण अत्यंत आकर्षक हैं। उनमें लाक्षणिकता, चित्रमयता और बिंबधर्मिता का चित्रण है। महादेवी जी ने नए बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से प्रगीत की अभिव्यक्ति-शक्ति का नया विकास किया है। उनकी काव्य-भाषा प्रायः तत्सम शब्दों से निर्मित है।

Jaag Tujhko Door Jaana, Sab Aankho Ke Aansu Ujle Class 11 Hindi Summary

यहाँ महादेवी वर्मा के दो गीत संकलित किए गए हैं।
पहला गीत स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा से रचित जागरण गीत है। इसमें भीषण कठिनाइयों की चिंता न करते हुए कोमल बंधनों के आकर्षण से मुक्त होकर अपने लक्ष्य की ओर निरतर बढ़ते रहने का आह्बान है। इस गीत में महादेवी ने मानव को जगृत होने का उद्बोधन करते हुए संदेश दिया है। उनके इस संदेश में गहरी, प्रतीकवत्ता दिखाई देती है। वे कहती हैं कि प्रकृति के कोमल रूपों में लीन होने से अच्छा है कि तूफानों का मुकाबला किया जाए और संघर्ष करते हुए मानव अपनी छाप छोड़ सके। वे कहती हैं कि सामान्य बंधन हमें कर्म-पथ से विचलित करते हैं। इसलिए ये सब हमारे लिए कारागार के समान हैं। इसी उद्बोधन में महादेवी ने मनुष्य को अमरता का सुत कहा है और उसे चेताया है कि वह इस तरह के बंधनों अर्थात मृत्यु का वरण क्यों कर रहा है? इस कविता के अंत में यह भाव भी अभिव्यक्त हुआ है कि जब संघर्ष किया जाता है तब रास्ते में हार भी मिलती है, लेकिन संघर्ष करने वाले के लिए यह पराजय भी जय के समान होती है। मोह-माया के बंधन में जकड़े मानव को इसीलिए जगाते हुए महादेवी ने कहा है-‘ जाग तुझको दूर जाना’।

दूसरी कविता में उन सत्यों की चर्चा हुई है जिन्हें प्रकृति प्रदान करती है। प्रकृति के इस चित्र में महादेवी ने मकरंद, निईर, तारक-समूह और मोती जैसे प्रतीकों के माध्यम से मानव-जीवन के सत्य डो उद्घाटित किया है।

कविता का सार :

‘जाग तुझको दूर जाना’ शीर्षक गीत महादेवी वर्मा द्वारा रचित है। यह गीत स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा से रचित जागरण गीत है। इसमें कवयित्री ने भीषण कठिनाइयों की चिंता न करते हुए और कोमल बंधनों के आकर्षणों से मुक्त होकर अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहने का आह्वान किया है।

कवयित्री निरंतर सजग रहने वाले, पर अब आलस्य में पड़े देशवासियों को निरंतर आगे बढ़ते जाने की प्रेणा देती है। वह उसे समझाती है कि मार्ग में अनेक प्रकार की प्राकृतिक बाधाएँ आएँगी अवश्य, पर तुझे उस नाश के पथ पर अपने चरण-चिह्न अंकित कर आगे बढ़ते चले जाना है। पर्वत काँप सकते हैं, आकाश प्रलय ला सकता है, पृथ्वी पर घनघोर अंधकार छा सकता है। तूफान घिर कर आ सकता है, पर तुझे किसी से भयभीत नहीं होना। इन विध-बाधाओं के अतिरक्त सांसारिक मोह के आकर्षण भी तेरे मार्ग में अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं। प्रेम का बंधन भी तेरे बढ़ते कदमों को पीछे खींच सकता है, पर तुजे किसी रूपाकर्षण के जाल में नहीं उलझना।

मार्ग में रुककर विश्राम तक नहीं करना। तेरे अपने अंदर सुख-भोग की लालसा जागृत हो सकती है। तू जीवन सुधा के बदले दो घूँट मदिरा का सौदा कर सकता है। सुगंध आदि, तुझे पथ-श्रमित कर सकते हैं। पर तुझे यह स्मरण रखना है कि तू अमरता का पुत्र है अतः तुझे मृत्यु को हुदय में स्थान नहीं देगा है। असफलताओं से उत्पन्न निराश को तू अपने निकट मत फटकने दे। तुझे अपने हदय में उत्साह और आँखों में आत्मसम्मान की चमक बरकारारखनी है। ऐसे संघर्षशील जीवन में हार भी जीत का रूप धारण कर लेती है, भला पतंगा राख बनकर भी कभी हारता है। वह दीपक की लौ में जलकर भी अपने को जीता हुआ मानता है। तुझे तो विपरीत परिस्थितियों में भी मन के कोमल भावों को जगाए रखना है।

जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले सप्रसंग व्याख्या

जाग तुझको दूर जाना !

1. चिर सजग आँखें उनीदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
अचल हिमगिरि के द्वदय में आज चाहे कंष हो ले,
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
जागकर विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!

शब्दार्थ :

  • चिर = सदा रहने वाला (Live always)।
  • सजग = सावधान (Alert)।
  • व्यस्त बाना = बिखरा या अस्त-व्यस्त वेश (Not properly dressed up)।
  • अचल = पर्वत (Mountain)।
  • हिमगिरि = बर्फ का पर्वत (Mountain of snow)।
  • प्रलय = तूरान, सर्वनाश (Destruction)।
  • मौन = चुप (Silent)
  • अलसित = आलसी (Lazy)।
  • व्योम = आकाश (Sky)।
  • आलोक = रोशनी (Light)।
  • तिमिर = अंधकार (Darkness)।
  • निठुर = निष्छुर, कठोर (Cruel)
  • चिह्न = निशान (Sign)।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित गीत ‘जाग तुझको दूर जाना’ से अवतरित हैं। यह गीत उनकी रचना ‘सांघ्यगीत’ से संकलित है। यह गीत एक जागरण गीत है जिसमें कवयित्री ने कठिनाइयों की परवाह न करते हुए निरतर आगे बढ़ते रहने की प्रेणां दी है।

व्याख्या – कवयित्री देशवासियों का आह्नान करती हुई कहती है कि तु जाग जा। तुझे बहुत दूर जाना है। तुम तो निरंतर जागरूक रहते हो। आज तुम्हारी आँखें उनींदी क्यों हैं और तेरी वेशभूषा भी इतनी अस्त-व्यस्त क्यों हो रही है? तेरा लक्ष्य अभी बहुत दूर है और मार्ग भी लंबा एवं बीहड़ है। इस लंबे और कठिन मार्ग पर चलने के लिए आलस्य का त्याग़ करना होगा। मार्ग में चाहे कितनी ही विपपत्तियाँ क्यों न आएँ। अचल और दृढ़ हिमालय के कठोर हददय में भले आज कितने कंप क्यों न होने लगें अथवा मौन आकाश से भले ही प्रलंयकारी आँसू क्यों न बहने लगें (आकाश भले ही रो ले) पर तुझे रकना नहीं है। चाहे चारों ओर अंधकार कितना ही घना होकर क्यों न छा जाए और वह रोशनी को भले ही मिटा दे अथवा बिजली की गड़गड़ाहट और भयंकरता में कठोर एवं नाशवान तूफान क्यों न घिर आए, परंतु तुझे नाश के पथ पर अपना अमर बलिदान देकर अपने अमर निशान छोड़ेने होंगे, ताकि अन्य उनका अनुसरण कर सकें।

विशेष :

  1. कवयित्री ने बलिदानी को मार्ग की कठिनाइयों से विचलित न होने का परामर्श दिया है।
  2. तत्सम शब्द प्रधान बोली का प्रयोग है।
  3. ओज गुण का समावेश है।

2. बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!

शब्दार्थ :

  • पंथ = रास्ता (Way)।
  • विश्व = संसार (World)।
  • क्रंदन = विलाप (Cry)।
  • मधुप = भौरा (Black Bee)।
  • मधुर = मीठी (Sweet)।
  • कारा = जेल (Prison)।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश महादेवी वर्मा द्वारा रचित आढ्बान गीत ‘जाग तुझको दूर जाना’ से अवतरित है। इसमें कवयित्री साधक को मार्ग की बाधाओं एवं आकर्षणों के प्रति सचेत कर रही है।

व्याख्या – कवयित्री स्वाधीनता संघर्ष में भाग लेने जा रहे वीरों को संबोधित करते हुए कहती है-क्या यह मोम के कोमल और सुंदर बंधन तुझे बाँध लेंगे अर्थात् तुझे इनके कोमल बंधनों में नहीं बंधना। रंग-बिरंगी तितलियाँ (सुंदर युवतियाँ) तेरे मार्ग में बाधा डालने का प्रयास करेंगी। उनके बहुरंगी पंख तेरे मार्ग की रुकावट न बन पाए। भौंरों की मद भरी मधुर गुनगुनाहट क्या चारों ओर गूँजते, रोते-चीखते हुए विश्व के रोदन को भुला सकेगी? फूल के दलों पर फैली ओस क्या तुझे डुबो देगी अर्थात् यदि तू दृढ़ प्रतिज्ञ हो तो यह सब आकर्षण धरे के धरे रह जाएँगे। अतः तू अपने लक्ष्य को पाने के लिए अपनी ही परछाई को अपना बंधन मत बना लेना। तुझे तो बहुत आगे जाना है। तुझे तो अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर जागरूक रहकर केवल आगे बढ़ते जाना ही है। यही तुझसे अपेक्षा है।

विशेष :

  1. कवयित्री ने यह बताया है कि मनुष्य अपने लक्ष्य में तभी सफल हो सकता है जब वह मार्ग की विघ्न-बाधाओं से न घबराए।
  2. लक्षणा शब्द शक्ति का प्रयोग है। ‘तितलियों का लक्षणार्थ है-सुंदर युवतियाँ।
  3. ‘मधुप की मधुर’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. ओज गुण का समावेश है।
  5. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।

3. वज्र का उर एक छोटे अश्रु-कण में धो गलाया,
दे किसे जीवन सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया?
सो गई आँधी मलय की वात का उपधान ले क्या?
विश्व का अभिशाप क्या चिर नींद बनकर पास आया?
अमरता-सुत चाहता क्यों मृत् को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना!

शब्दार्थ :

  • वज्र = पत्थर (Stone)।
  • उर = हृदय (Heart )।
  • अश्रु-कण = आँसूं (Tears)।
  • सुधा = अमृत (Nectar)।
  • मदिरा = शराब ( Wine)।
  • मलय की वात = चंदन की सुर्गंधित हवा (Scented air)।
  • उपधान = सहारा (Shelter)।
  • सुत = बेटा (Son)।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश महादेवी वर्मा द्वारा रचित गीत ‘जाग तुझको दूर जाना’ से अवतरित है। इस आह्नान गीत में कवयित्री पूछती है-

व्याख्या – आज यह निराशा, उदासीनता और अकर्मण्यता तुझमें क्यों समा गई है? बता, क्या कारण है कि विभिन्न प्रकार के कष्टों को झेल जाने वाला तेरा यह कठोर मन किसी करुणामयी याद को लेकर आँसू रूपी मोती से धुलकर गल रहा है? तू अपने जीवन की अमरता, सुख, शांति और आनंद देकर किससे और कहाँ से दो घूँट शराब की माँग लाया है?

क्या आज जीवन की सारी भावनाओं की आँधी सुगंधित पवन का सहारा लेकर सो गई है। तू कोमलता के आगोश में आकर अपनी क्रांतिकारी प्रवृत्ति को खो बैठा है। आज तुम्हारी तीव्र अनुभूतियों में शीतलता और धीमापन क्यों आ गया है? क्या समस्त विश्व का दुख ही चिरतर, निद्री और आलस्य बनकर तुम्हारे पास आ गया है? क्या कारण है कि यह जीवात्मा जो अमरता का ही अंश है, उसे त्याग कर मृत्यु अथवा नाश को अपने हृदय में बसा लेना चाहता है? अत: तुझे तो निरंतर अपने पथ पर अग्रसर होते चले जाना है। तेरा रास्ता बहुत लंबा है। तुझे बहुत दूर तक जाना है।

विशेष :

  1. कवयित्री सांसारिक आकर्षणों में न उलझने का परामर्श देती है।
  2. ‘जीवन सुधा’ में रूपक अलंकार है।
  3. तत्सम शब्दावली का बहुलता के साथ प्रयोग किया गया है।
  4. ‘मदिरा माँग’ में अनुप्रास अलंकार है।

4. कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी!
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना!

शब्दार्थ :

  • दृग = नेत्र (Eyes)।
  • पताका = झंडा (Flag)।
  • अंगार-शय्या = अंगारों की सेज (Bed offlames)।
  • मृदुल = कोमल (Tender)।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश महादेवी वर्मा द्वारा रचित गीत ‘जाग तुझको दूर जाना’ से अवतरित है। कवयित्री प्रत्येक दशा में निरंत् आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

व्याख्या – कवयित्री ऐसे प्राणियों से जो वेदना, पीड़ा और करुणा को ही जीवन का आधार मानते हैं, उनसे कहती है कि उस विरह वेदना तथा व्यथा की कहानी को भुला दो और बिना ठंडी आठे भरे, बिना किसी को कुछ कहे अपने मार्ग की ओर बढ़ते रहो। यदि तुम्हारे हददय में आग (उत्साह) होगी तभी तुम्हारी आँखों में आँसू सज पाएँगे, क्योंकि मन में जितनी दृढ़ता होगी, उतना ही आँखों में आत्म सम्मान की भावना आएगी। यदि ऐसी स्थिति में तुझे हार का भी सामना करना पड़ा तो भी वह तेरे लिए स्वाभिमानी की विजय-पताका के समान होगी। तेरा स्वाभिमान हार के बावजूद बना रहेगा। प्रेमी पतंगे के बलिदान के बाद उसकी राख ही उसके अमर दीप के प्रेम का संकेत है। तुझे भी पतंगे के समान अपना बलिदान देना है। हे क्रांतिकृारी! तुझे तों अंगारों की सेज पर कोमल कलियों (भावनाओं) को बिछाना है। बलिदान के पथ पर अपनी कोमल भावनाओं को न्यौछावर कर देना होगा। तू जाग जा, तुझे अभी बहुत दूर जाना है।

विशेष :

  1. कवयित्री कोमल भावनाओं को त्यागकर बलिदान-पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।
  2. ‘अंगार शय्या पर मधुर कलियाँ बिछना’ में विरोधाभास है।
  3. तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है।

2. सब आँखों के आँसू उजले –

1. सब आँखों के आँसू उजले सबके सपनों में सत्य पला!
जिसने उसको ज्वाला सौंपी
उसने इसमें मकरंद भरा,
आलोक लुटात्म वह घुल-घुल
देता झर यह सौरभ बिखरा!
दोनों संगी पथ एक किंतु कब दीप खिला कब फूल जला?

शब्दार्थ :

  • सत्य = सच्चाई (Truth)।
  • ज्वाला = आग (Fire)।
  • मकरंद = फूलों का रस (Nectar)।
  • आलोक = प्रकाश, रोशनी (Light) ।
  • सौरभ = सुगंध, खुशबू (Fragrance)।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश प्रसिद्ध छायावादी कवस्त्री महादेवी वर्मा द्वरा रचित गीत ‘सब आँखों के आँसू उजले’ से अवतरित है। इसमें कवयित्री ने प्रकृति के विभिन्न प्रतीकों के मीध्यम से मानक-जीवन के सत्य को उद्घाटित किया है।

व्याख्या – कवयित्री बताती है कि सभी लोगों की आँखों में जो आँसू होते हैं उनमें उजलापन अर्थात् पवित्रता होती है। उनकी कल्पनाओं (सपनों) में सत्य पलता रहता है अर्थात् ये कोरे आधारहीन नहीं होते। हाँ, इतना अवश्य है कि जो इन सपनों को ज्वाला अर्थात् उत्साह का संचार करता है, वही इसमें खुशबू ला सकता है। दीपक जलकर प्रकाश फैलाता है तो फूल खिलकर सुगंध फैलाता है। दोनों पक्के संगी-साथी हैं। इसके बावजूद दोनों में एक मूलभूत अंतर भी है। दीप कभी खिल नहीं सकता और फूल कभी जल नहीं सकता। सभी के अपने-अपने सत्य हैं। कुछ समानता होने के बावजूद व्यक्तित्व की पृथकता तो बनी ही रहती है। सच्चाई सभी में होती है।

विशेष :

  1. कवि ने उस सत्य की चर्चा की है जो प्रकृति ने प्रदान किया है।
  2. कवयित्री सभी में पवित्रता एवं सत्यता की झलक देखती है।
  3. अनेक स्थलों पर अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है-
    सबके सपवों में संत्य
  4. ‘घुल-घुल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  5. भाषा तत्सम शब्द प्रधान खड़ी बोली है।

2. वह अचल धरत को भेंट रहा
शत-शत निझर में हो चंचल,
चिर परिधि बना भू को घेरे
इसका नित उर्मिल करुणा-जल!
कब सागर उर पाषाण हुआ, कब गिरि ने निर्मम तन बदला?

शब्दार्थ :

  • अचल = पर्वत (Mountain)।
  • निझर = झरना (Spring)।
  • परिधि = गोल घेरा (Circle)।
  • भू = धरती (Earth)।
  • उर्मिल = पवित्र (Pure)।
  • सागर = समुद्र (Sea)।
  • पाषाण = पत्थर (Stone)।
  • गिरि = पर्वत (Mountain)।
  • निर्मम = कठोर (Hard)।
  • तन = शरीर (Body)।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश महादेवी वर्मा के दूसरे गीत से अवतरित है। कवयित्री प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से मानव-जीवन के सत्य का उद्घाटन करती है।

व्याख्या – कवयित्री बताती है कि यह पर्वत अपने अंदर से सौ-सौ झरनों में बहकर धरती से भेंट करता है। यही पर्वत धरती को घेरकर एक परिधि-सी बना लेता है। यह पर्वत बाहर से जरूर कठोर हृदय का प्रतीत होता है, पर इसका जल अत्यंत पवित्र एवं करुणा से भरा हुआ है। कठोर स्वभाव का लगने वाले व्यक्ति का हृदय भी करुणा की भावना से पूरित हो सकता है। यह एक जीवन-सत्य है। समुद्र का हृदय पत्थर नहीं हो सकता और पर्वत कभी अपने कठोर शरीर को बदल नहीं सकता। दोनों का अपना-अपना स्वभाव है। इसमें परिवर्तन की गुंजायश नहीं है। दोनों के जीवन के अपने-अपने सत्य हैं।

विशेष :

  1. ‘शत-शत’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  2. कवयित्री ने सागर और पर्वत के प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट कर दी है।
  3. तत्सम शब्द बहुला भाषा का प्रयोग किया है।

3. नभ-तारक-सा खंडि: पुलकित
यह सुर-धारा को चूम रहा,
वह अंगारों का मधु-रस पी
केशर-किरणों-सा झूम रहा!
अनमोल बना रहने को कब दूटा कंचन हीरक, पिघला ?

शब्दार्थ :

  • नभ = आकाश (Sky)।
  • तारक = तारा (Star)।
  • खंडित = टूटा-फूटा (Broken )।
  • पुलकित = प्रसन्नचित्त (Happy)।
  • सुर = देवता (God)।
  • मधु = शहद (Honey)।
  • कंचन = सोना (Gold)।
  • हीरक = हीरा (Diamond)।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश महादेवी वर्मा द्वारा रचित गीत से अवतरित है। कवयित्री ने प्रकृति के विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कही है।

व्याख्या – कवयित्री बताती है कि एक तो आकाश के तारों के समान दूटे-फूटे रूप में भी प्रसन्नचित्त होकर देवताओं की धारा को चूम रहा है दूसरा अंगारों के मधु-रस को पी रहा है और केशर की किरणों के समान झूम रहा है। सभी अपने-अपने ढंग से जीवन-सत्य को अपना रहे हैं। अनमोल बना रहने की चाह में कंचन (सोना) भला कब टूटता है और हीरा कब पिघलता है। दोनों अपना-अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं।

विशेष :

  1. प्रथम पंक्ति में उपमा अलंकार है-‘नभ तारक-सा खंडित’।
    चौथी पंक्ति में – ‘केशर किरणों सा’।
  2. ‘केशर किरणों में अनुप्रास अलंकार है।
  3. तत्सम शब्द प्रधान भाषा का प्रयोग किया गया है।

4. नीलम मरकत के संपुट दो
जिनमें बनता जीवन-मोती,
इसमें बलते सब रंग-रूप
उसकी आभा स्पंदन होती।
जो नभ में विद्युत मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला

शब्दार्थ :

  • मरकत = पन्ना (A precious stone)।
  • आभा = चमक (Lust)।
  • स्पंदन = धड़कन (Wavering)।
  • नभ = आकाश (Sky)।
  • मेघ = बादल (Clouds)।
  • रज = रेत (Dust)।
  • संपुट = दल, कली (Leaves folded form of cup)।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश महादेवी वर्मा के गीत से अवतरित है।

व्याख्या – कवयित्री बताती है कि नीलम और पन्ना के दो दलों के बीच जीवन रूपी मोती बनता रहता है। इसमें जीवन के सभी रूप-रंग ढलते रहते हैं। इस पले-बढ़े जीवन में नीलम-पन्ना जैसे बहुमूल्य पदार्थों की आभा (चमक) झलकती रहती है। जो आकाश में बिजली बनकर बादल का रूप धारण कर लेता है वही मिट्टी में से अंकुर बनकर बाहर निकलता है। सभी में जीवन-सत्य की झलक मिलती है।

विशेष :

  1. जीवन-सत्य का उद्षाटन किया गया है।
  2. ‘रंग-रूप’ में अनुप्रास अलंकार है।
  3. ‘जीवन-मोती’ में रूपक अलंकार है।
  4. तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है।

5. संसुति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेंरे बनने-मिटने में नित
अपनी साधों के क्षण गिन लो।
जलते खिलते बढ़ते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला।
सपने-सपने में सत्य बला!

शब्दार्थ :

  • संसुति = संसार, सुष्टि (World)।
  • पग = कदम (Foot)।
  • नव = नया (New)।
  • एकाकी = अकेला (Lonely)।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश प्रसिद्धि कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित गीत से अवतरित है।

व्याख्या – कवयित्री बताती है कि इस संसार के प्रत्येक पग में मेरी आहट सुनी जा सकती है। इनमें मेरी साँसों का अंकन स्पष्ट लक्षित होता है। कवयित्री बताती है कि मेरे बनने और बिगड़ने में अपनी साधों को गिना सकता है। यह संसार जलता है तो कभी फूल की तरह खिलता है। इसी में अकेले व्यक्ति के प्राण भी निहित रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के सपने में कुछ न कुछ सच्चाई अवश्य छिपी रहती है। हमें उसे समझना और मानना चाहिए।

विशेष :

  1. कविता पर छायावादी प्रभाव स्पष्ट है।
  2. भाषा सरल एवं सुवोध है।

Hindi Antra Class 11 Summary