Class 11 Hindi Antra Chapter 14 Question Answer संध्या के बाद

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 14 संध्या के बाद

Class 11 Hindi Chapter 14 Question Answer Antra संध्या के बाद

प्रश्न 1.
संध्या के समय प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं ? कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
संध्या के समय प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं :

  • सूर्य की लालिमा पेड़ के शिखरों पर जा बैठती है।
  • ताँने जैसे पीपल के पत्तों से स्वर्णिम झरना झरता प्रतीत होता है।
  • सूर्य का खंभा धरती में धँसता प्रतीत होता है।
  • क्षितिज पर सूर्य ओझल हो जाता है।
  • गंगाजल चितकबरा सा लगता है।

प्रश्न 2.
पंत जी ने नदी के तट का जो वर्णन किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
पंत जी ने नदी के तट पर उपस्थित दृश्य का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। नर्दी तट पर मंदिर बना है। उस मंदिर के कलश की प्रतिच्छया जलंते दीप सा प्रतीत हो रहा है। मंदिर में पूजा-पाठ के लिए आयी बूढ़ी विधवाओं ने सफेद साड़ी पहन रखी है। उनका समूह दूर से सफेद बगुलों जैसा प्रतीत होता है। इसीलिए कवि पंत ने वृद्धाओं की उपमा बगुलों से दी है। बुढ़ापे के कारण कमर झुकी होने और सफेद रंग के कारण उनका समूह दूर से सफेद बगुलों जैसा ही प्रतीत होता है। कवि पंत ने संध्या के वातावरण को इन बूढ़ी-बेसहारा स्त्रियों से जोड़कर गाढ़ा बना दिया है, जो जप-तप में मग्न दिखाई देती हैं। ऊपरी दिखावे के पीछे उनके भीतर का सच छुपा होता है। समाज और परंपरा के कारण उन्हें अकेलेपन और कई कष्टों का सामना करना पड़ता है। उनके हृदय में दुःख की अन्तर्धारा बहती रहती है, जैसे उनके सामने नदी बह रही थी।

प्रश्न 3.
शाम होते ही कौन-कौन घर की ओर लौट पड़ते हैं ?
उत्तर :
शाम होते ही पक्षी, गायें तथा कृषक घर की ओर लौट पड़ते हैं।

प्रश्न 4.
संध्या के दृश्य में किस-किसने अपने स्वर भर दिए हैं ?
उत्तर :
संध्या के समय मंदिरों की आरती में बजने वाले शंख और घंटों की ध्वनि के स्वर सुनाई देते हैं।

  • पक्षियों की चहचहाहट के स्वर।
  • फिर उनके कंठों पर तेज स्वर जो तीर के समान आकाश में गूँज जाता है।

प्रश्न 5.
बस्ती के छोटे-से गाँव के अवसाद को किन-किन उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है ?
उत्तर :
बस्ती के छोटे-से गाँव के अवसाद को निम्नलिखित उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है :

  • घरों में टिन की ढ़बरी जलाई जाती है जो रोशनी कम धुआँ अधिक देती है।
  • लोगों के मन का अवसाद उनकी आँखों में तैरता रहता है, जाला सा बुनता रहता है।
  • दीपक की लौ के संग उनके ह्रदय का कातर क्रंदन, मूक निराशा काँपती रहती है।
  • गाँव का दुकानदार ग्राहको की प्रतीक्षा करता रहता है, ऊँघता रहता है।

प्रश्न 6.
लाला के मन में उठने वाली दुविधा को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लाला के मन में यह दुविधा उठती रहती है कि उसी के जीवन में दीनता, दुःख, उत्पीड़न क्यों है ? उसके मन में सुख क्यों नहीं है ? वह अपने परिजनों के लिए स्वच्छ घर क्यों नहीं बना पाता ? वह शहरी बनियों के समान क्यों नहीं उठ पाता ? वह उनके समान महाजन क्यों नहीं बन पाता ? उसकी तरक्की के साधन किसने रोक दिए हैं ? क्या यह संभव नहीं है कि संसार की व्यवस्था मे ऐसा परिवर्तन आ जाए कि उसे भी (गरीब के भी) उन्नति के अवसर मिल जाएँ।

प्रश्न 7.
सामाजिक समानता की छवि की कल्पना किस तरह अभिव्यक्त हुई है ?
उत्तर :
सामाजिक समानता की छवि की कल्पना इस तरह अभिव्यक्त हुई है :

  • सकल आय-व्यय का समान वितरण हो।
  • सबमें सामूहिक जीवन फूँका जाए।
  • सब मिलकर जग का निर्माण करें।
  • सभी मिलकर जीवन का भोग करें।
  • जन शोषण से मुक्त हों।
  • धन का अधिकारी व्यक्ति नहीं समाज बने।
  • सभी को सुंदर आवास, वस्त्र एवं भोजन मिले।
  • जन का श्रम जन में बँट जाए।

प्रश्न 8.
‘कर्म और गुण समान ……….. हो वितरण’ पंक्ति के माध्यम से कवि कैसे समाज की ओर संकेत कर रहा है ?
उत्तर :
कवि इस पंक्ति में समाजवाद की ओर संकेत कर रहा है। आय-व्यय पर किसी एक वर्ग (पूँजीपति-शोषक) का आधिपत्य उसे पसंद नहीं। वह चाहता है कि जैसे कर्म और गुणों का ईश्वर बँटवारा कर देता है, वैसे ही आय-ब्यय का समान वितरण भी होना चाहिए। इसी से समाज में समानता स्थापित हो सकेगी। इससे एक वर्ग का शोषण समाप्त हो जाएगा।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ
विधवाएँ जप ध्यान में मगन
मंथर धारा में बहता
जिनका अदृश्य, गति अंतर-रोदन !
उत्तर :
इन काव्य-पंक्तियों में ग्रामीण जीवन के एक पक्ष का मार्मिक अंकन हुआ है। नदी-तट पर गाँव की विधवाएँ जप-तप में ऐसे निमग्न रहती हैं जैसे नदी में बगुले शिकार पाने के प्रति। नदी की मंथर धारा के समान उनके हृदय में भी दुख की अदृश्य धारा बहती रहती है। सफेद साड़ियाँ पहने होने के कारण ये वृद्धाएँ सफेद बगुलों के समान प्रतीत होती हैं।

  • ‘बगुलों-सी वृद्धाएँ’ में उपमा अलंकार का सटीक प्रयोग है।
  • ‘वृद्धाएँ विधवाएँ’ में’ अनुप्रास अलंकार है।
  • मार्मिकता का समावेश है।
  • तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।

प्रश्न 10.
आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) ताम्रपर्ण, पीपल से, शतमुख/झरते चंचल स्वर्णिम निर्झर।
(ख) दीप शिखा-सा ज्वलित कलशनभ में उठकर करता नीरांजन।
(ग) सोन खंगों की पाँतिः आर्र ध्वनि से नीरव नभ करती मुखरित।
(घ) मन से कढ़ अवसाद श्रांति/आँखों के आगे बुनती जाला।
(ङ) क्षीण ज्योति ने चुपके ज्योंगोपन मन को दे दी हो भाषा।
(च) बिना आय की कलाति बन रही/उसके जीवन की परिभाषा।
(छ) व्यक्ति नहीं, जग की परिपाटी/दोषी जन के दुःख क्लेश
की।
उत्तर :
(क) साँझ की लाली के कारण पीपल के पत्तों का रंग ताँबे जैसा हो गया है। जब हवा के झोंकों से ताँबाई रंग के पहतों में से सूर्य की किरणें झरती हैं तो ऐसा लगता है मानो सैकड़ों मुख वाले झरने सुनहरी धाराओं में बह रहे हैं।
(ख) संध्या की आरती के समय मंदिर की चोटी पर लगा हुआ चमकीला कलश भी सूर्य की लालिमा के प्रकाशस्वरूप दीपक की लौ की भाँति आकाश में ऊपर उठकर आरती करता सा जान पड़ता है।
(ग) संध्या के समय आकाश में दूर सोन पक्षियों की पंक्ति उड़ती जाती है। ये पक्षी अपनी आवाज से शांत आकाश को गुंजार करते जाते हैं।
(घ) गाँव के छोटे गरीब दुकानदार के मन में दु:ख, अवसाद व्याप्त है। उसके मन का वही दु:ख आँखों में उतर आता है और आँखों के आगे जाला सा बन जाता है अर्थात् रोशनी धुँधली पड़ जाती है।
(ङ) संध्या का धीमा प्रकाश ऐसा प्रतीत होता है कि यह मन की बात को भाषा दे रहा है। मन का दुःख इस धुँधले प्रकाश के माध्यम से स्पष्ट होता जान पड़ता है।
(च) गाँव के गरीब दुकानदार की कोई आमदनी नहीं हो पाती। उसका जीवन दुःख और अभाव की कहानी बनकर रह गया है। उसका जीवन दु:खी है।
(छ) लोगों के दुःखी जीवन का कारण व्यक्ति नहीं बल्कि दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्था है। इसमें धन का वितरण असमान है। इसी ने अंतर पैदा किया है।

योग्यता-विस्तार –

1. ग्राम्य जीवन से संबंधित कविताओं का संकलन कीजिए।
उत्तर :
यह कार्य विद्यार्थी स्वयं करें।

2. कविता में निम्नलिखित उपमान किसके लिए आए हैं, लिखिए-
(क) ज्योति स्तंभ-सा
(ख) केंचुल-सा
(ग) दीपशिखा-सा
(घ) बगुलों-सी
(ङ) स्वर्ण चूर्ण-सी
(च) सनन् तीर-सा
उत्तर :
(क) सूर्य, (ख) गंगाजल, (ग) कलश, (घ) वृद्धाएँ, (ङ) गोरज, (च) कंठों का स्वर।

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 14 संध्या के बाद

प्रश्न 1.
‘संध्या के बाद’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर :
‘संध्या के बाद’ कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत ने ग्रामीण जन-जीवन के सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष को रेखांकित किया है। सबसे पहले वह ग्रामीण वातावरण में संध्या के बाद के प्राकृतिक दृश्य को उकेरता है। कवि को संध्या के समय तरु-शिखर, स्वर्णिम निई्ईर, मंदिर का शंख-घंट वादन, नील लहरियों पर साँझ का प्रभाव आकर्षित करता है। फिर वह पक्षियों, पशुओं और खेतों में काम करके लौटते किसानों की दशा बताता है। इसके बाद वह गाँव की गिरती आर्थिक स्थिति पर अपनी चिंता प्रकट करता है। गाँव के छोटे दुकानदार के माध्यम से वह ग्रामों की बिगड़ती आर्थिक दशा का यथार्थ अंकन करता है। कवि पर कार्ल मार्क्स की विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव लक्षित होता है। वह पूँजी तथा अन्य सभी साधनों का सभी में समान वितरण चाहता है।

प्रश्न 2.
इस कविता के आधार पर ग्रामीण जीवन का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
ग्रामीण जीवन में घोर दरिद्रता का वास है। वहाँ न तो रहने को अच्छे मकान हैं, न पहनने को अच्छे वस्त्र हैं और न खाने की वस्तुएँ। लोगों की आय अत्यंत सीमित है। गाँव के दुकानदार अपनी दुकानों पर बैठकर खाली ऊँघते रहते हैं। उनकी दशा चिंताजनक है। गाँव के लोगों के मन दुख से भरे हैं। उनको कोई वाणी देने वाला नहीं है। गाँव का छोटा दुकानदार झूठ बोलने और बेईमानी करने को विवश है। वह भी शेषण का एक अंग बन जाता है।

प्रश्न 3.
इस कविता पर किस वाद का प्रभाव लक्षित होता है और कैसे?
उत्तर :
इस कविता पर प्रगतिवाद का प्रभाव लक्षित होता है। प्रगतिवाद में किसान-मजदूरों की विविध समस्याओं को उठाकर उनके प्रति सहानुभूति प्रकट की गई है। इस कविता में गाँव के छोटे दुकानदारों और गाँव के लोगों के प्रति सहानुभूति एवं चिंता प्रकट की गई है। यह कविता कार्ल मार्स्स के विचारों से प्रभावित है। यह पंत जी के काव्य जीवन के दूसरे दौर की कविता है।

प्रश्न 4.
कवि ने पहले अनुच्छेद में साँझ का वर्णन किस तरह किया है?
उत्तर :
कवि ने पहले अनुच्छेद में संध्या अर्थात् सूर्य के छिपने के दृश्य का मनोहारी चित्रण किया है। साँझ की लाली को एक पक्षिणी के रूप में चित्रित किया गया है। ऐसा लगता है कि वह वृक्ष की चोटी पर जा बैठा है। पीपल के पत्तों को ताँबे के रंग के समान गहरे लाल बताया गया है क्योंकि उनके ऊपर सूर्य की लालिमा बिखर गई है। कवि क्षितिज पर ओझल होते हुए सूर्य को ज्योति के स्तंभ के समान बताता है। गंगाजल भी चितकबरा प्रतीत होने लगता है।

प्रश्न 5.
गंगाजल चितकबरा क्यों लगता है?
उत्तर :
जब गंगाजल पर सूर्य की लालिमा और तट की बालू-रेत की कालिमा की मिली-जुली झलक पड़ती है तब वह चितकबरा दिखाई देने लगता है।

प्रश्न 6.
मंदिरों में शंख, घंटे कब बजने लगते हैं?
उत्तर :
मंदिरों में शंख, घंटे संध्या के समय बजने लगते हैं। यह समय मंदिर की आरती का होता है।

प्रश्न 7.
सियार के ‘हुआँ हुआ’ करने से कवि को क्या आभास होता है?
उत्तर :
रात के समय सियार हुआँ-हुआँ करके आवाज करते हैं और इससे कवि को लगता है कि थकी-दुखी रात्रि को स्वर दे रहे हैं।

प्रश्न 8.
‘विधवाओं का अंतर रोदन’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
‘विधवाओं का अंतर रोदन’ से कवि का यह तात्पर्य है कि विधवा स्त्रियाँ वैधव्य के कारण दुखी रहती हैं। उनके ह्ददय में हाहाकार होता रहता है। उनका रोना भले ही बाहर दिखाई न दे, पर उनका दिल रोता रहता है। उनके दिल में रोना समाया रहता है।

प्रश्न 9.
संध्या के समय किस-किस के घर लौटने का वर्णन कविता में किया गया है?
उत्तर :
संध्या के समय पक्षी, गाएँ, किसानों, व्यापारियों के घर लौटने का वर्णन कविता में किया गया है। व्यापारी ऊँट, घोड़ों के साथ घर लौटते हैं। पक्षी दिन भर उड़ान भरने के बाद संध्या के समय अपने घोंसलों में लौट जाते हैं। गाएँ बाहर घास चरकर सायंकाल घर लौट आती हैं, किसान खेतों पर काम करके घर लौट आते हैं। व्यापारी दिन भर व्यापार करने के उपरांत अपने ऊँट, घोड़ों के साथ घर लौट आते हैं।

प्रश्न 10.
खेत, बाग, गृह, तरु इत्यादि निष्प्रभ विषाद में क्यों डूब रहे हैं?
उत्तर :
संध्या के धुँधले प्रकाश में खेत, बाग, घर और पेड़ों की चमक छिप जाती है। तब वे निष्प्रभ अर्थात् आभाहीन से लगते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि गहरे विषाद (दुख) में डूबे हुए हैं। इसका कारण है चारों ओर का सन्नाटा भरा वातावरण। कहीं कोई हलचल दिखाई नहीं देती। अंधकार का साम्राज्य सभी को प्रभा (चमक) हीन बना देता है।

प्रश्न 11.
गोपन मन को भाषा देने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
‘गोपन मन’ से कवि का आशय है-गुप्त मन, चुप रहने वाला मन। ऐसा मन सोचता तो बहुत है, पर कह कुछ नहीं पाता। जब दीपक की लौ की ज्योति काँप-काँप उठती है तब उसके साथ दुःखी हृदयों में भी कंपन होने लगता है। इससे मन की भावनाएँ अभिव्यक्ति पा जाती हैं। तब लगता है कि गोपन मन को मानो भाषा मिल गई है।

प्रश्न 12.
कवि सभी के सुंदर अधिवास की कामना क्यों करता है?
उत्तर :
कवि सभी के लिए सुंदर निवास स्थान (मकान) चाहता है। आवास मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता है। इसके बिना समानता की कल्पना नहीं की जा सकती।

प्रश्न 13.
संध्या के समय सौ मुखोंवाला किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर :
संध्या के समय सौ मुखों वाला स्वरूप झरनों का हो जाता है क्योंकि वे अनेक धाराओं में बहते हैं।

प्रश्न 14.
वृद्धाओं को कवि ने बगुलों-सा क्यों कहा है?
उत्तर :
वृद्धाओं को कवि ने बगुलों-सा इसलिए कहा क्योंक बगुले सफेद होते हैं और वृद्धाओं के वस्त्र भी सफेद होते हैं, क्योंकि उनमें अधिकांश विधवाएँ होती हैं। बगुले भी ध्यान-मग्न रहते हैं और वृद्धाएँ भी जप-ध्यान में मग्न रहती हैं।

प्रश्न 15.
सोन खगों की पंक्ति कवि को कैसी लगती है?
उत्तर :
सोन खगों की पंक्ति कवि को ऐसी लगती है कि वह अपनी आर्द्र (गीली-मधुर) ध्वनि से आकाश को मुखरित कर रही है अर्थात् आकाश की चुप्पी को तोड़ रही है।

प्रश्न 16.
‘पीला जल रजत जलद से बिंबित’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
‘पीला जल रजत जलद से बिंबित’ से कवि का यह आशय है कि गंगा नदी के जल पर पहले तो छिपते सूर्य का पीला रंग फैल जाता है. इससे वह जल पीला-पीला दिखाई देने लगता है। बादलों को रजत अर्थात् सफेद बताया गया है। इस पीले जल पर जब बादलों की चाँदी की सी परछाई पड़ती है तब एक अनोखे दृश्य की सृष्टि हो जाती है। दोनों रंगों का मिश्रण एक अनोखी छटा बिखेर देता है।

प्रश्न 17.
सिकता, सलिल, समीर, किसके स्नेह-सूत्र में बँधे हुए हैं?
उत्तर :
सिकता (बालू रेत), सलिल (पानी), समीर (हवा) सदा से आपस में स्नेह-पाश में बँधे हुए हैं। तीनों एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं।

प्रश्न 18.
आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) धुआँ अधिक देती है ………. आगे बुनती जाला।
(ख) कँप-कँप उठते ……….. दे दी हो भाषा!
(ग) घुसे घरौंदों ………….. सबमें सामूहिक जीवन ?
उत्तर :
(क) गाँव में रोशनी करने के लिए टिन की ढिबरी में तेल भर कर ऊपर बत्ती लगा दी जाती है। जब इसे जलाया जाता है तो यह रोशनी तो कम करती है, धुआँ अधिक देती है।

(ख) इन काव्य – पंक्तियों का यह आशय है कि ग्रामीण जीवन में दरिद्रता एवं निराशा का वातावरण उपस्थित रहता है। गाँव का छोटा दुकानदार मिट्टी के तेल की ढिबरी जलाकर दुकान पर खाली बैठा रहता है। दीपक की लौ के इर्द-गिर्द उसके सुख-दुख मैंडराते रहते हैं। जैसे-जैसे दीपक की लौ काँपती है वैसे ही उसके ह्ददय का क्रंदन एवं निराशा की भावना भी काँपने लगती है।

(ग) इन काव्य – पंक्तियों का आशय यह है कि दरिद्रता में व्यक्ति केवल अपने बारे में ही सोचता है। वे अपने मिट्टी से बने घरों में घुसकर केवल अपनी-अपनी बात सोचते हैं। कवि विचार करता है कि क्या ऐसा नही हो सकता कि सभी में मिलकर सामूहिकता की बात आ जाए अर्थात् सब सभी के बारे में सोचें। सभी में सामूहिक उन्नति की बात सोची जाए।

प्रश्न 19.
कवि ने रात की भयावहता का कैसे चित्रण किया है ?
उत्तर :
कुत्ते परस्पर लड़-झगड़ कर रात की भयानकता को और अधिक भयानक बना रहे हैं। झोंपड़ों से निकलता हुआ धुआँ तथा हल्का प्रकाश वातावरण में उदासी भर रहा है चारों ओर व्याप्त निस्तब्धता वातावरण को और भी भयानक बना रही है।

प्रश्न 20.
पंत जी को कौन-कौन से पुरस्कार प्राप्त हुए ?
उत्तर :
पंत जी को सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए थे।

काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न – 

प्रश्न 21.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंवर्य स्पष्ट कीजिए :
ज्योति स्तंभ-सा धँस सरिता में
सूर्य क्षितिज पर होता ओझल,
बृहद् जिह्म विश्लथ केंचुल-सा
लगता चितकबरा गंगाजल!
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इन काव्य-पंक्तियों में कवि ने सान्ध्यकालीन प्राकृतिक वातावरण का सजीव अंकन किया है। साँझ की लालिमा का प्रभाव समस्त प्रकृति पर पड़ रहा है। क्षितिज पर डूबते सूरज की झलक जब नदी के जल पर पड़ती है तब यह नदी के जल में धैसते ज्योति-स्तंभ के समान प्रतीत होता है। गंगाजल भी विविध रंगों की छटा के कारण चितकबरा दिखाई देता है।

शिल्प-सौंदर्य :

  • दो स्थलों पर उपमा अलंकार का सटीक प्रयोग किया गया है : ‘ज्योति-स्तंभ-सा’, ‘विश्लथ केंचुल-सा’ (गंगाजल)।
  • कविता पर छायावादी तत्वों का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
  • दृश्यबिंब की अवतारणा की गई है।
  • तत्सम शब्द प्रधान खड़ी बोली अपनाई गई है।

प्रश्न 22.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंवर्य स्पष्ट कीजिए :
दीप-शिखा-सा ज्वलित कलश,
नभ में उठकर करता नीरांजन।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इस काव्य-पंक्तियों में कवि ने ग्रामीण परिवेश के मंदिर के संध्याकालीन वातावरण को साकार किया है। मंदिर का कलश दीप-शिखा के समान दर्शाया गया है। वह आरती करता-सा जान पड़ता है। ऐसा लगता है कि मंदिर का कलश ड्रबते सूर्य की आभा से प्रकाशमय होकर स्वयं आरती कर रहा है।

शिल्प-सौंदर्य :

  • ‘दीप-शिखा-सा’ में उपमा अलंकार का सटीक प्रयोग हुआ है।
  • ज्वलित, नीरांजन, दीपशिखा जैसे तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।
  • चित्रात्मक शैली का अनुसरण किया गया है।

प्रश्न 23.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ
विधवाएँ जप ध्यान में मगन,
मंथर धारा में बहता
जिनका अदृश्य, गति अंतर-रोदन!
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इन पंक्तियों में कवि ने गंगा तट पर जप-ध्यान में लीन विधवाओं को बगुलों के समान बताया है। यहाँ कवि ने विधवाओं के श्वेत वस्त्र धारण किए होने तथा ध्यानमग्न होने के कारण आँखें बंद करने की अवस्था की तुलना नदी में शिकार की तलाश में एकाग्र भाव से खड़े बगुलों के साथ की है। गंगा नदी की धारा में उन विधवाओं के हुदय का दुख भी बहता जान पड़ रहा है।

शिल्प-सौंदर्य :

  • ‘तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ’ में उपमा अलंकार का प्रयोग है।
  • ‘वृद्धाएँ विधवाएँ” में ‘व’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार की छटा है।
  • दृश्यबिंब साकार हो उठा है।
  • चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है।
  • तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 24.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
दूर तमस रेखाओं-सी,
उड़ती पंखों की गति-सी चित्रित
सोन खगों की पाँति
आर्द्र ध्वनि से नीरव नभ करती मुखरित!
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इन काव्य-पंक्तियों में कवि ने
संध्याकालीन वातावरण का सजीव चित्रण करते हुए बताया है कि इस समय पक्षियों की पंक्तियाँ काली रेखाओं के समान उड़ती हुई अपने घोसलों की ओर जा रही हैं। पक्षियों के पंख़ काले होने के कारण काली पंक्ति से समानता दर्शाई गई है। सोन पक्षी कलरव करते हुए मधुर स्वर गुँजाते जाते हैं।

शिल्प-सौंदर्य :

  • कवि ने प्रथम पंक्ति में ‘तमस रेखाओं-सी’ में उपमा अलंकार का प्रयोग किया गया है।
  • ‘नीरव नभ’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • खग (पक्षियों) के लिए ‘सोन’ विशेषण सटीक बना पड़ा है।
  • चित्रात्मक शैली अपनाई गई है।
  • तमस, आर्र्र, नीरव, मुखरित आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  • खड़ी बोली अपनाई गई है।

प्रश्न 25.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
माली की मँडई से उठ,
नभ के नीचे नभ-सी धूमाली
मंद पवन में तिरती
नीली रेशम की-सी हलकी जाली!
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : कवि की सूक्ष्म दृष्टि माली की मँड़ई तक जा पहुँचती है। वहाँ से उठता धुआँ घर में चूल्हा जलने का संकेत है। यह धुआँ आकाश में हवा के साथ मिलकर नीले रंग की रेशम की जाली-सी बुन देती है। यह जाली आकाश में तैरती रहती है। कवि धुएँ में भी रेशम की जाली की कल्पना कर लेता है।

शिल्प-सौंदर्य :

  • ‘नभ-सी धूमाली’ तथा ‘रेशम की-सी हल्की जाली ‘ में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  • ‘नभ के नीचे नभ-सी’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
  • ‘मड़ई’ देशज शब्द का प्रयोग सटीक है।
  • दृश्यबिंब साकार हो उठा है।
  • खड़ी बोली का प्रयोग है।

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