NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 11 खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति
Class 11 Hindi Chapter 11 Question Answer Antra खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति
प्रश्न 1.
‘खेलन में को काको गुसैयाँ’ पद में कृष्ण और सुदामा के किस बात पर तकरार हुई ?
उत्तर :
प्रस्तुत पद में कृष्ण और श्रीदामा के उस प्रसंग का वर्णन है जब वे खेल रहे थे। इस खेल में श्रीदामा जीत गए और कृष्ण हार गए। इस पर कृष्ण रूठकर खेलना छोड़कर बैठ गए।
प्रश्न 2.
खेल में रूठने वाले साथी के साथ सभी क्यों नहीं खेलना चाहते हैं?
उत्तर :
खेल में रूठने वाले साथी के साथ कोई भी नहीं खेलनो चाहत!। खेल में सभी बराबर हैं। खेल में हार-जीत तो होती ही रहती है। खेल में हार जाने पर रूठकर नहीं बैठ जाना चाहिए। खेल में हारने पर सभी को अपनी बारी देनी ही पड़ती है। बारी न देने वाले को अच्छा नहीं समझा जाता। खेलने में रूठने पर कोई किसी को मनाता नहीं है। रूठने वाले व्यक्ति का बहिष्कार कर दिया जाता है। खेल को खेल-भावना से खेलना चाहिए।
प्रश्न 3.
खेल में कृष्ण को रूठने पर उनके साथियों ने उन्हें डाँटते हुए क्या-क्या तर्क दिए ?
उत्तर :
खेल में कृष्ण के रूठने पर उनके साथियों ने उन्हें डाँटते हुए निम्नलिखित तर्क दिए :
- तुम हारे हो श्रीदामा जीते हैं फिर भी तुम क्यों क्रोध कर रहे हो ?
- तुम (कृष्ण) हमसे जाति-पाँति में बड़े नहीं हो। हम सभी एक ही जाति के हैं।
- हम तुम्हारी शरण में नहीं बसते अतः अकड़ने की जरूरत नहीं है।
- तुम खेलने में रूठते हो तथा बेईमानी करते हो अत: तुम्हारे साथ कोई खेलना नहीं चाहेगा।
प्रश्न 4.
कृष्ण ने नंद बाबा की दुहाई देकर दाँव क्यों दिया?
उत्तर :
कृष्ण ने नंद बाबा की दुहाई देकर दाँव इसलिए दिया क्योंकि अब उन ग्वाल-बालों को हराने के लिए पूरी तरह तैयार हो गए थे। वे यह कहना चाहते थे-मुझे नंद बाबा की कसम जो अबकी बार तुम्हें न हराया। अर्थात् अबकी बार तो मैं तुम्हें हराकर ही दम लूँगा।
प्रश्न 5.
इस पद से बाल-मनोविज्ञान पर क्या प्रकाश पड़ता है ?
उत्तर :
सूर के पहले पद में बाल-मनोविज्ञान का सूक्ष्म चित्रण देखा जा सकता है :
- बच्चे खेलने में हारने पर गुस्सा करने लगते हैं। कृष्ण भी रूठ जाते हैं।
- खेलने में सब बालक एक समान होते हैं। कोई किसी का ज्यादा अधिकार स्वीकार नहीं करता।
- बच्चे ज्यादा देर तक रूठे नहीं रह सकते। वे शीच्र ही खेलने को उत्सुक हो उठते हैं।
प्रश्न 6.
‘गिरिधर नार नवावति’ से सखी का क्या आशय है?
उत्तर :
‘गिरिधर नार नवावति’ से सखी का यह आशय है कि जो कृष्ण गोवर्धन पर्वत को उठाते समय भी नहीं झुके, वही कृष्ण मुरली के वशीभूत होकर अपनी गर्दन झुका देते हैं। वैसे बाँसुरी बजाने में यह एक सामान्य-सी क्रिया है, पर सखी सौतिया डाहवश मुरली को स्त्रीरूप मानकर उससे ईर्ष्या रखती है। उसके कथन में यह व्यंग्य है कि कृष्ण एक साधारण नारी (बाँसुरी के रूप में) के प्रेम में वशीीूत होकर अपनी गर्दन तक नवाने को तैयार हो जाते हैं।
प्रश्न 7.
कृष्ण के अधरों की तुलना सेज से क्यों की गई है ?
उत्तर :
कृष्ण के अधरों की तुलना सेज से की गई है। सेज कोमल होती है और कृष्ण के होंठ भी कोमल हैं। सेज सोने के काम आती है और अधरों रूपी सेज पर मुरली सोई रहती है। बाँसुरी को अधरों पर रखकर ही बजाया जाता है। अधरों की तुलना सेज से करना अत्यंत सटीक है।
प्रश्न 8.
पठित पदों के आधार पर सूरदास के काव्य की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
पठित पदों के आधार पर सूरदास के काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
- सूरदास के काव्य में बाल-लीलाओं का सहज वर्णन है। उनकी क्रीड़ाएँ मनोहारी हैं। इनका चित्रण भी स्वाभाविक है।
- दूसरे पद में शृंगार रस का वियोग पक्ष मुखर है। इसमें सौतिया डाह का मार्मिक चित्रण है।
- सूर ने अपने काव्य में अनुप्रास, उपमा, उत्र्रेक्षा आदि अलंकारों का कुशलता के साथ प्रयोग किया है।
- सूर की भाषा ब्रजभाषा है। इसे उन्होंने परिक्कृत कर साहित्यिक रूप प्रदान. किया है।
- सूर के पद गेय हैं।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए :
(क) जाति-पाँति …………… तुम्हारै गैयाँ।
(ख) सुनि री ……… नवावति।
उत्तर :
इन्हें व्याख्या भाग में देखें।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
खेल में हारकर भी हार न माननेवाले साथी के साथ आप क्या करेंगे ? अपने अनुभव कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
खेल में हारकर भी हार न मानने वाले साथी के साथ हम यह व्यवहार करेंगे कि उसे खेल से बाहर कर देंगे। जब तक वह अपनी गलती नहीं मान लेता तब तक उसे अपने साथ नहीं खिलाएँगे।
प्रश्न 2.
पुस्तक में संकलित ‘मुरली तक गुपालहिं भावति’ पद में गोपियों का मुरली के प्रति ईर्ष्या-भाव व्यक्त हुआ है। गोपियाँ और किस-किस के प्रति ईष्ष्या-भाव रखती थीं, कुछ नाम गिनाइए।
उत्तर :
गोपियाँ कुज्जा के प्रति भी ईं्ष्या-भाव रखती थीं। श्रीकृष्ण ने उसका कुबरापन दूर कर दिया था तथा उसे अपने महल में विशेष स्थान दिया था।
Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 11 खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति
प्रश्न 1.
श्रीदामा और अन्य ग्वाल-बालों ने कृष्ण के सम्मुख क्या-क्या तर्क दिए?
उत्तर :
श्रीदामा और अन्य ग्वाल-बालों ने कृष्ण के सम्मुख ये तर्क दिए-
- जाति-पाँति में तुम हमसे बड़े नहीं हो।
- हम तुम्हारे आश्रय में नहीं रहते, जो तुमसे दबें।
- तुम हमारे स्वामी नहीं हो।
- ज्यादा गाएँ हो जाने से तुम बड़े नहीं हो जाते।
- रूठने वाले के साथ कोई खेलना पसंद नहीं करता।
प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण पर मुरली का प्रभाव किन-किन रूपों में दृष्टिगोचर होता है?
उत्तर :
श्रीकृष्ण पर मुरली का प्रभाव अनेक रूपों में दिखाई देता है-
- यह मुरली श्रीकृष्ण को अत्यधिक प्रिय है।
- मुरली कृष्ण को एक पैर पर खड़ा रखती है।
- मुरली कृष्ण से अपनी आज्ञा का पालन करवाती है।
- मुरली बजाते हुए कृष्ण की कमर टेढ़ी हो जाती है।
- मुरली श्रीकृष्ण की अधर-शय्या पर लेटी रहती है।
- श्रीकृष्ण मुरली के चरण दबाते-से प्रतीत होते हैं।
प्रश्न 3.
खेल में किसकी हार और किसकी जीत हुई थी?
उत्तर :
खेल में श्रीकृष्ण की हार और श्रीदामा की जीत हुई था।
प्रश्न 4.
खेल में अपनी हार कौन स्वीकार नहीं करता है?
उत्तर :
खेल में श्रीकृष्ण अपनी हार स्वीकार नहीं करते।
प्रश्न 5.
अधर-सज्जा में निहित अलंकार बताइए।
उत्तर :
रूपक अलंकार।
प्रश्न 6.
श्रीदामा के रुष्ट होने का क्या कारण है?
उत्तर :
श्रीदामा के रुष्ट होने का यह कारण है कि कृष्ण खेल में अपनी बारी नहीं दे रहे हैं।
वैसे रुष्ट तो श्रीकृष्ण हुए थे क्योंकि वे खेल में हार गए थे और हार उनसे हजम नहीं हो पा रही थी। वे तो हर हालत में जीतना चाहते थे। श्रीदामा की जीत ने उन्हें और भी चिढ़ा दिया था। श्रीकृष्ण रुष्ट होकर खेल छोड़कर बैठ गए। शायद वे अन्य ग्वाल-बालों को धमकी देना चाहते थे, पर ग्वाल-बालों पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
प्रश्न 7.
श्रीदामा यह क्यों कहते हैं कि जाँति-पाँति में तुम हमसे बड़े नहीं हो?
उत्तर :
खेल में श्रीकृष्ण के हारने पर रूठ जाने पर श्रीदामा और अन्य ग्वाल-बाल उनसे कहते हैं कि तुम जाति-पाँति में हमसे बड़े नहीं हो। तुम भी ग्वाले, हम भी ग्वाले। हमारी जाति एक ही है। यहाँ कोई छोटा-बड़ा नहीं है। सभी बराबर हैं। यह बात उन्होंने इसलिए कही क्योंकि श्रीकृष्ण हारने पर ऐंठकर एक ओर बैठ गए थे। श्रीदामा और ग्वाल-बाल श्रीकृष्ण को समझाने का प्रयास करते जान पड़ते हैं कि खेल में सब बराबर होते हैं। खेल पर जाति-पाँति, स्वामी-सेवक या संपन्नता-विपन्नता का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रश्न 8.
‘सूरदास शृंगार और वात्सल्य के अद्वितीय कवि हैं’-सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सूरदास शृंगार एवं वात्सल्य के अद्वितीय कवि हैं। कृष्ण भक्त कवियों में उनका स्थान सर्वोपरि है। उन्होंने ‘सूर-सागर’ नामक अमर काव्य की रचना की है। इसमें सवा लाख पद बताए जाते हैं, पर छः-सात हजार पद ही उपलब्ध हुए हैं। सूरदास द्वारा रचित पद विनय, भक्ति, शृंगार, वात्सल्य, बाललीला आदि से संबंधित हैं। सूरदास वात्सल्य का तो कोना-कोना झाँक आये हैं। उन्होंने बालक कृष्ण की सरलता, चपलता, चंचलता, मातृस्नेह का सहज चित्रण किया है। उनके वात्सल्य वर्णन में बालक की विविध भंगिमाओं और क्रीड़ाओं का ही वर्णन नहीं है, अपितु उसमें मातृ-हृदय के उत्साह और उल्लास का भी चित्रण है –
‘जो सुख सूर अमर मुनि दुर्लभ, सो
नंदभामिनी पावै।’
माता यशोदा बालक को सुलाने का प्रयास करती है –
“जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावे दुलरावै, मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै।”
सूर का शृंगार वर्णन भी बड़ा ही सुंदर बन पड़ा है। उनका संयोग शृंगार वर्णन भी आकर्षक रूप लिए हुए है। राधा-कृष्ण के प्रथम मिलन का वर्णन करते हुए सूर ने लिखा है –
“प्रथम सनेह दुहंनि मन जान्यौ।
नैन-नैन कीन्हीं सब बातें, गुप्त प्रीति प्रकटान्यौ।”
सूर का हृदय वियोग में अधिक रमा है। सूर का वियोग वर्णन रीतिकालीन कवियों के आत्मकथाओं से ऊपर है। ‘भ्रमर गीत’ शीर्षक पदों में गोपियों के हृदय की पीड़ा मार्मिकता के साथ उभरी है-
“मधुकर प्रीति किये पछितानी।”
+ + + +
“निसि दिन बरसत नैन हमारे।”
+ + + +
“पियु बिनु नागिनि कारी रात।”
गोपियाँ मुरली के माध्यम से अपने सौतिया डाह की अभिव्यक्ति करती हैं-
‘मुरली तऊ गुपालहिं भावति।’
सूरदास ने श्रीकृष्ण की भक्ति संबंधी अनेक पदों की रचना की है जिनमें उनका विनय भाव प्रकट हुआ है। उन्होंने सगुण भक्ति भावना अपनाने पर बल दिया है। उनका भाव-सौंदर्य पदों में देखते ही बनता है। उनके बारे में कहा गया है-
‘तत्त्व-तत्त्व सूरा कही और कही सब झूठी।’
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) खेलत में को काको गुसैया।
हरि हारे जीते श्रीदामा, बरबस ही कत करत रिसैयाँ।
उत्तर :
श्रीकृष्ण ग्वाल-बालों के साथ खेलते हुए हार जाते हैं, पर वे इस हार को पचा नहीं पाते। उनका रूठकर बैठ जाना इसी भावना का प्रकटीकरण है। खेल में कोई किसी का स्वामी या दास नहीं होता। यहाँ समानता की भावना रहती है। श्रीकृष्ण इस बात को भूलकर गुस्सा करके बैठ जाते हैं।
इन काव्य-पंक्तियों में ‘को काको गुसैया’ में मुहावरे का सटीक प्रयोग है। ‘कत करत’ तथा को काको में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति है और ‘हरि हारे’ में ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति है, अत: अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है।
ब्रज भाषा का प्रयोग देखते ही बनता है।
(ख) अति आधीन सुजान कनौड़े, गिरिधर नार नवावति। आपुन पौढ़ि अधर सज्जा पर, कर पल्लवे पलुटावति। उत्तर-इन पंक्तियों में कृष्ण के ऊपर मुरली के व्यापक प्रभाव को चित्रित किया गया है। कवि मुरली को सौत के रूप में चित्रित करता है और यह कृष्ण को अपने वश में करने में पूरी तरह सफल हो जाती है। चतुर कृष्ण भी उसके सामने अपनी कृतजता व्यक्त करते हैं। कवि मुरली का मानवीकरण करता है। उसे नायिका के रूप में चित्रित करते हुए कृष्ग की अधर रूपी शय्या पर लिटाता है। कृष्ण अपने हाथों से उसके चरण दबाते प्रतीत होते हैं।
- इन काव्य पंक्तियों में रूपक एवं अनुप्रास अलंकारों का अत्यंत सुंदर प्रयोग हुआ है-
- रूपक-‘अधर सज्जा’, ‘कर-पल्लव’ में।
- अनुप्रास-‘नार नवावति ‘, ‘पल्लव पलुटावति’ में।
- ब्रज भाषा का माधुर्य छलकता है।
- मानवीकरण अलंकार का भी प्रयोग है।
- श्रृंगार रस का वियोग पक्ष चित्रित है (सौतिया डाह)।
प्रश्न 10.
हार जाने पर भी कृष्ण के क्रोध करने का क्या कारण था?
उत्तर :
हार जाने पर भी कृष्ण के क्रोध का कारण यह था कि वे अपने को दूसरों से बड़ा समझते थे तथा उनके पास अधिक गाएँ थीं।
प्रश्न 11.
‘मुरली तऊ गुपालहिं भावति’ पद में एक सखी दूसरी सखी से क्या कहती है?
उत्तर :
एक सखी दूसरी सखी से यह कहती है कि यह मुरली कृष्ण को तरह-तरह से तंग करती है, फिर भी कृष्ण को यह मुरली अच्छी लगती है। यह मुरली ही हम पर कृष्ण का क्रोध करवाती है।
प्रश्न 12.
कृष्ण को ‘सुजान कनौड़े’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
‘सुजान’ का अर्थ है- चतुर और ‘कनौड़ै’ का अर्थ है- कृपा से दबे रहने वाला। कृष्ण को ‘सुजान कनौड़” इसलिए कहा गया है क्येंकि वे मुरली के अधीन होंकर कार्य करते हैं। मुरली चतुर कृष्ण को भी अपना कृतज्ञ बना लेती है। वे मुरली की आज्ञा का पालन करते हैं।
प्रश्न 13.
बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की छवि किस प्रकार हो जाती है?
उत्तर :
बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की छवि अत्यंत मनमोहक एवं विचित्र प्रकार की हो जाती है। उनकी यह छवि त्रिभंगी लाल वाली हो जाती है। बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की कमर टेढ़ी हो जाती है। उनकी गर्दन झुक जाती है। वे बाँसुरी को अपने अधरों पर रखकर बजाते हैं तथा छिद्रों पर उँगली फिराते जाते हैं। कभी-कभी उनकी भौंहे टेढ़ी हो जाती हैं तथा नेत्र नाक की सीध में आ जाते हैं। बाँसुरी बजाते-बजाते वे अपना शीश हिलाने-डुलाने लगते हैं। इस प्रकार कृष्ण की छवि गतिशील रूप ले लेती है।
प्रश्न 14.
सिद्ध कीजिए कि सूरदास वात्सल्य वर्णन में अनूठे हैं।
उत्तर :
सूर का बाल वर्णन विश्व-साहित्य में अद्वितीय माना जाता है। यह सर्वमान्य एवं निश्चित है कि हिंदी काव्य-साहित्य में यदि वात्सल्य को स्वतंत्र रस की संज्ञा दी जाती है तो उसका पूरा श्रेय सूरदास को ही है क्योंकि बाल चरित्र उनके काव्य की आत्मा है। वैसे तो कृष्ण का बाल वर्णन भागवत् में भी है पर जितना प्रभावशाली चित्रण सूरदास ने किया है वैसा वहाँ नहीं है। उन्होंने बाल चित्रण प्राय: दो प्रकार से किया है-बाल रूप चित्रण और बाल प्रकृति चित्रण। एक कुशल चित्रकार की तरह उन्होंने श्रीकृष्ण के अंग-प्रत्यंग को अंकित किया है। सूर बाल मनोविज्ञान के अद्भुत चितेरे हैं। उन्होंने माँ के हृदय में मानो स्वयं बैठ कर कृष्ण की लीलाओं को देखा है। प्रायः माना जाता है कि वह जन्मांध थे लेकिन उन्होंने श्रीकृष्ग के बाल रूप का जितना सूक्ष्म चित्रण किया है वैसा चित्रण तो आँखों वाले भी नहीं कर पाते।
प्रश्न 15.
सूरदास की भक्ति-भावना का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
उत्तर :
वल्लभाचार्य ने सूर को दीक्षा प्रदान की थी और उन्हें पुष्टि मार्ग का अनुयायी बनाया था। ये सदा ही परमात्मा की कृपा को लालायित रहते थे और उनकी कृपा की अभिलाषा करते थे। इन्होंने वात्सल्य, सख्य और माधुर्य भाव-भेदों के आधार पर भक्ति के प्रेममूलक स्वरूप का सरस चित्रण किया। उन्होंने संयोग और वियोग पक्ष की मनोहारी लीलाओं की झांकी प्रस्तुत की। सूर की भक्ति में भक्त और भगवान एक ही सामाजिक स्तर पर हैं। सूर ने भक्ति के रूप में समतामूलक जीवन-दर्शन की स्थापना की है जिसमें भेद-भाव की खाइयाँ पट जाती हैं। उनकी भक्ति-भावना आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समतावाद की योजना थी।
प्रश्न 16.
गोपियाँ किस बात को कदापि सहन नहीं कर पाती हैं ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण जब बाँसुरी बजाने में मग्न हो जाते हैं तो गोपियों की सुध भी नहीं लेते। इस बात को गोपियाँ कदापि सहन नहीं कर पातीं कि बाँसुरी के कारण उनकी अवहेलना हो। उन्हें लगता है कि बाँसुरी उनकी सौत है, जो प्रिय को उनके पास आने ही नहीं देती। सूरदास ने गोपियों के द्वारा सौत भावना से बाँसुरी की आलोचना की है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न –
प्रश्न 17.
निम्नलिखित काव्यांशों का काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए :
खेलन में को काको गुसैयाँ।
हरि हरि जीते श्री दामा बख्सहिं कत करत रिसैयाँ॥
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इस पद में सूरदास ने बाल-लीला के अंतर्गत कृष्ण और ग्वाल-बालों के बीच हो रहे खेल का चित्रण है। इस खेल में कृष्ण हार जाते हैं और सुदामा जीत जाते हैं। इस पर कृष्ण रूठ कर बैठ जाते हैं। इसमें कृष्ण की खीझ व्यक्त हुई है। ग्वाल-बालों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया व्यंजित है। ग्वाल-बाल तर्क देते हैं कि खेल में रूठने वाले के साथ भला कौन खेलना चाहेगा? अर्थात् कृष्ण रूठना छोड़ो और अपनी बारी दो।
शिल्प-सौंदर्य :
- अनेक स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है-क् कानो, हुरि हारे कत करत।
- ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
- देशज शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं-बख्खसत, रिसैयाँ।
- गेयता और संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है।
- बसंत नहीं तुम्हारी छैयाँ में मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
प्रश्न 18.
निम्नलिखित काव्यांशों का काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए :
खेलन में को काको गुसैयाँ।
हरि हारे जीते श्रीदामा, बरबस हीं कत करत रिसैयाँ।
जाति-पाति हमतैं बड़ नाहीं, नाहीं बसत तुम्हारी छैयाँ।
अति अधिकार जनावत यातै जातैं अधिक तुम्हारे गैयाँ।
रूठहिं करै तासौं को खेलै, रहे बैठि जहँ-तहँ ग्वैयाँ।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इस पद में सूरदास ने कृष्ण और ग्वाल-बालों के बीच हो रहे खेल का चित्रण किया है। इसमें कृष्ण के हारने और श्रीदामा के जीतने पर कृष्ण की खीझ तथा ग्वाल-बालों की प्रतिक्रिया का स्वाभाविक वर्णन किया गया है। ग्वाल-बालों कीक तार्किकता देखते ही बनती है, खेलने में रूठने वाले के साथ कोई भी खेलना नहीं चाहता।
शिल्प-सौंदर्य :
- इस काव्यांश में का काको, हरि हारे, कत करत आदि स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छठा है।
- ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
- देशज शब्द का भी प्रयोग है।
- गेयता और संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है।
- ‘बसंत नहीं तुम्हारी छैयाँ’ में मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
प्रश्न 19.
निम्नलिखित काव्यांशों का काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए :
अति आधीन सुजान कनौडे, गिरिधर नार नवावति।
आपुन पौंढ़ि अधर सज्जा पर, कर पल्लव पलुटावति।
भुकुटि कुटिल, नैन नासा-पुट, हम पर कोप-करावति।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य : इन काव्य-पंक्तियों में सूर ने गोपियों की दृष्टि में कृष्ण के ऊपर मुरली के व्यापक प्रभाव का चित्रण किया है। कवि मुरली को गोपियों की सौत के रूप में चित्रित करता है। मुरली (सौत) कृष्ण को पूरी तरह से अपने वश में करने में सफल रहती है। उसे नायिका के रूप में दर्शाया गया है।
शिल्प-सौंदर्य :
- मुरली का सौत का रूप में मानवीकरण किया गया है।
- ‘अधर सज्जा’ तथा ‘कर पल्लव’ में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।
- नार नवावति, पल्लव पलुटावति, नैन नासा, कोप-करावति में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
- ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
- भृंगार रस के वियोग पक्ष का चित्रण हुआ है।