ईदगाह Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 1 Summary
ईदगाह – प्रेमचंद – कवि परिचय
प्रश्न :
प्रेमचंद की साहित्यिक तथा भाषागत विशेषताओं का परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जीवन परिचय- प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 ई. में वाराणसी के समीप लमही नामक गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपतराय था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई। उन्होंने क्वींस कॉलेज, वाराणसी से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1896 ई. में उनके पिता की मृत्यु हो गई, अतः उन्हें एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापन कार्य करने के लिए विवश होना पड़ा। बाद में वे सब डिप्टी इंस्पेक्टर तक पहुँच गए। उन्होंने बी. ए. की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली थी। सन् 1920 में महात्मा गाँधी के प्रभाव में आकर उन्होंने संरकारी नौकरी त्याग दी। इसके पश्चात् वे स्वतंत्र लेखन करते रहे। ‘प्रेमचंद’ नाम उन्होंने लेखन के लिए अपनाया और वही प्रसिद्ध हो गया। प्रारंभ में वह उर्दू में लिखते थे। कुछ वर्षों बाद उन्होंने अपनी उर्दू रचनाएँ हिंदी में अनूदित की। आगे चलकर उन्होंने मूल रूप से हिंदी में ही लिखना शुरू कर दिया।
उन्होंने अपना एक छापाखाना खोला और एक मासिक पत्रिका ‘हंस’ का प्रकाशन प्रारंभ किया। इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने भारत में प्रगतिशील-साहित्य के लेखन और प्रकाशन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रेमचंद आजीवन साहित्य साधना में लगे रहे। सन् 1936 में उनका स्वर्गवास हो गया।
साहित्यिक विशेषताएँ-प्रेमचंद के साहित्य का मुख्य स्वर राष्ट्रीय जागरण और समाज-सुधार है। शहर के साथ-साथ भारतीय गाँवों और उच्च वर्ग के साथ-साथ जन-साधारण को अपने साहित्य का केंद्र बनाने वालों में प्रेमचंद बेजोड़ हैं। उन्होंने भारतीय जीवन में व्याप्त कुरीतियों, शोषण, निर्धनता, नारी-दुर्दशा, वर्ण-व्यवस्था की विसंगति आदि विषयों का प्रभावशाली एवं जीवंत चित्रण किया है।
भाषागत विशेषताएँ-प्रेमचंद की भाषा बड़ी सजीव, मुहावरेदार और बोल-चाल के निकट है। उन्होंने अपने पात्रों की जाति, योग्यता और देश-काल आदि को ध्यान में रखकर उपयुक्त भाषा का प्रयोग किया है। हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने में उनका बहुत योगदान है।
कृतियाँ ( रचनाएँ)-प्रेमचंद द्वारा रचित निर्मला, गबन, प्रेमाश्रय, रंगभूमि, कर्मभूमि, कायाकल्प, प्रतिज्ञा, वरदान, गोदान आदि उपन्यास हिंदी की अमूल्य निधियाँ हैं। ‘सेवा-सदन’ में वेश्यावृत्ति की समस्या को उजागर किया गया है। ‘निर्मला’ में अनमेल विवाह के दुष्परिणाम का जीता-जागता चित्र है। ‘प्रतिज्ञा’ में विधवा जीवन की विषम समस्याओं का चित्रण है। ‘रंगभूमि’, ‘प्रेमाश्रय’, ‘गोदान’ और ‘कायाकल्प’ में समाज के दो विशाल वर्ग-शोषित और शोषण वर्ग का हृदयग्राही चित्रण है।
उपन्यासों के अतिरिक्त इन्होंने लगभग तीन सौ कहानियाँ भी लिखीं। इनकी पहली कहानी संसार का सबसे अनमोल रत्न थी। प्रेभद्वादशी, सप्तसुमन, प्रेमपचीसी, प्रेमपूर्णिमा आदि कहानियों के संग्रह हैं।
ये सभी कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं।
Idgah Class 11 Hindi Summary
‘ईदगाह’ कहानी प्रेमचंद द्वारा रचित एक प्रसिद्ध कहानी है। इस कहानी में ‘ईद’ ‘जैसे महत्त्वपूर्ण त्योहार को आधार बनाकर मुस्लिम समाज के ग्रामीण जीवन की मनोहर झाँकी प्रस्तुत की गई है। बालक हामिद के चरित्र के माध्यम से यह बताया गया है कि अभावग्रस्त बच्चों में उम्र से पहले समझदारी कैसे आ जाती है। मेले में हामिद अपनी इच्छा पर संयम रखकर अपनी बूढ़ी दादी अमीना के कष्ट को याद रखता है।
शब्दार्थ (Word Meanings) :
- बला = कष्ट, मुसीबत (Trouble)
- बदहवास = घबराना, होश-हवास ठीक न रहना (Perplexed)
- निगोड़ी = अभागी, निराश्रित (Unfortunate)
- चितवन = किसी की ओर देखने का विशेष/ढंग, दृष्टि (A look, sight)
- वजू = नमाज़ पढ़ने से पहले हाथ-पाँव और मुँह धोना (To wash hands and feet before Namaj)
- सिजदा = माथा टेकना, खुुदा के आगे सिर झुकाना (To bow head)
- हिंडोला = झूला, पालना (Swing)
- मशक – भेड़ या बकरी की खाल से बनाया हुआ थैला (इसमें भिश्ती पानी ढोते हैं) (A bag made ofleather)
- नेमत = बहुत बड़ी चीज (Big thing)
- ज़ाब्त = सहन करना (To bear)
- दामन = पल्लू, आँचल (The skirt of garment)
- कतार = पंक्ति (Line)
- प्रदीप्त = जल उठना, चमकना (Brighten)
- भ्रातृत्व = भाईचारा (Brotherhood)
- अनंत = जिसका अंत न हो (Endless)
- विधर्मी = दूसरे धर्म का (Follower of other religion)।
कहानी का सार –
‘ईदगाह’ कहानी प्रसिद्ध कथाकार प्रेमचंद द्वारा रचित है। इसमें ‘ इद’ त्योहार को कहानी का आधार बनाकर ग्रामीण मुस्लिम समाज की झाँकी प्रस्तुत की गई है तथा बालक हामिद की दादी के प्रति भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति की गई है।
1. रमज़ान के पूरे तीस दिनों के बाद ईद आई है। गाँव में ईद के अवसर पर अच्छी-खासी हलचल दिखाई देती है। सभी ईदगाह जाने की तैयारी में लगे हैं। बच्चों में विशेष उत्साह दिखाई दे रहा है। उन्हें सेवइयाँ खाने की पड़ी है। लड़के बार-बार अपने पैसों को मिनते हैं और मेले से तरह-तरह की चीजें खरीदने की योजना बनाते हैं।
हामिद को बताया गया था कि उसकी अम्मीजान अल्लाह मियाँ के घर से बड़ी अच्छी चीजें लाने गई हैं और अब्बूजान रुपए कमाने गए हैं। हाँ, बूढ़ी अभागिन अमीना कोठरी में बैठी है। आज ईद का दिन है और उसके घर में दाना भी नहीं है। वह अपने मरे बेटे आबिद को याद कर निराशा में डूब जाती है। हामिद के लिए तो वही सब कुछ है। वह तीन कोस कैसे चलेगा ? उसके पास तो जूते तक नहीं हैं। उसके पास कुल दो आने पैसे बचे हैं। तीन पैसे हामिद की जेब में और पाँच पैसे अमीना के बटुए में।
गाँव से बच्चे मेले की ओर चले। इनमें हामिद भी था। रास्ते में फलदार पेड़ तथा बड़ी-बड़ी इमारतें आई। बच्चे उनके बारे में तरह-तरह की कल्पनाएँ करते आगे बढ़ते जाते थे। आगे चलकर हलवाइयों की दुकानें शुरू हो गई। वे खूब सजी हुई थीं। बच्चे जिन्नात के बारे में बातें करते हैं। आगे चले तो पुलिस लाइन आ गई। यहाँ सिपाही कवायद करते हैं। मोहसिन का कहना है कि यही लोग चोरी करवाते हैं। हामिद इस पर आश्चर्य प्रकट करता है। अब बस्ती घनी होने लगी। ईदगाह जाने वालों की टोलियाँ नजर आने लगीं। तरह-तरह के लोग दिखाई देने लगे। सहसा ईदगाह नजर आया। यहाँ फर्श पर जाजिम बिछा हुआ है। रोजेदारों की पंक्तियाँ दूर तक चली गई हैं। यहाँ लाखों सिर सिजदे में झुक जाते हैं। यहाँ भाई-चारे की भावना देखने को मिलती है।
2. नमाज खत्म होने पर लोग आपस में गले मिलने लगे। मेले में खाने व खेलने की अनेक चीजें हैं। महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी घोड़ों और ऊँटों पर बैठते हैं, पर हामिद दूर खड़ा रहता है। उसके पास तो केवल तीन पैसे हैं और इन्हें वह इन कामों पर खर्च नहीं करना चाहता। मेले में तरह-तरह के खिलौने थे। हामिद इन महँगे खिलौनों को भी नहीं खरीदना चाहता। अन्य बच्चे खिलौने खरीदते हैं और उनकी अनेक विशेषताएँ बताते हैं। खिलौनों के बाद मिठाइयों की दुकानें आती हैं। हामिद मिठाइयों की ओर ललचाई दृष्टि से देखता तो है, पर खरीदता नहीं। वह अपने तीन पैसे बचाकर रखता है।
मिठाइयों के बाद लोहे की बनी चीजों की दुकानें आती हैं। हामिद लोहे की दुकान पर रुक जाता है। वहाँ कई चिमटे रखे हुए थे। तभी उसे खयाल आया-‘दादी के पास चिमटा नहीं है। वह जब तवे से रोटियाँ उतारती है तो हाथ जल जाता है। अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे तो वह कितनी प्रसन्न होगी। फिर उनकी उंगलियाँ कभी नहीं जलेंगी। घर में एक काम की चीज हो जाएगी। खिलौनों से क्या फायदा।’ दुकानदार ने चिमटे की कीमत छह पैसे बताई तो हामिद का दिल बैठ गया। हामिद ने तीन पैसे कीमत लगाई तो दुकानदार ने उसे वह चिमटा दे दिया। हामिद चिमटे को कंधे पर बंदूक की तरह रखकर शान से अकड़ता हुआ संगी-साथियों के पास आया। साथियों ने चिमटा खरीदने के लिए उसका खूब मज़ाक उड़ाया। हामिद ने अपने चिमटे की अनेक विशेषताएँ बताईं। उससे अनेक काम लेने की बात बताई। उसके तर्कों से अन्य बालक प्रभावित हो गए। बालकों के दो दल हो गए – मोहसिन, महमूद, सम्मी और नूरे एक तरफ तथा हामिद अकेला दूसरी तरफ। हामिद अपने चिमटे के पक्ष में तर्क देता रहा। हामिद ने अपने तीन पैसों में रंग जमा लिया। दोनों पक्षों में समझौता हो गया।
3. ग्यारह बजे गाँव में हलचल मच गई। मेले वाले वापस आ गए। बच्चे अपने-अपने खिलौने घर में ले गए। कई खिलौने अब तक टूट-फूट चुके थे। अब बारी आई हामिद मियाँ की। दादी अमीना दौड़ी आई और हामिद को गोद में उठाकर प्यार करने लगी। वह हामिद के हाथ में चिमटा देखकर चौंकी और पूछा कि यह कहाँ से, कितने पैसों में लाया। यह सुनकर कि उसने तीन पैसे में इसे मोल लिया, अमीना ने अपनी छाती पीट ली। उसे हामिद बेसमझ लड़का लगा। जब हामिद ने अपराधी भाव से कहा-“तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं; इसीलिए मैने उसे लिया।” इसे सुनते ही बुढ़़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया। उसे लगा कि हामिद में कितना विवेक है। दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा? इसने अपना संयम कैसे किया? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गद्गद् हो गया। इस घटना से बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था और बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई थी। वह दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ दे रही थी।
ईदगाह सप्रसंग व्याख्या
1. रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है। खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग-1’ में संकलित कहानी ‘ईदगाह’ से अवतरित है। इसके रचयिता प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद हैं। इस कहानी में ईद के त्योहार पर मुस्लिम समाज में पाए जाने वाले उत्साह का सजीव चित्रण है। यहाँ वातावरण का प्रभावी अंकन किया गया है।
व्याख्या – लेखक बताता है कि आज पूरे तीस दिनों तक रोजे रखने के बाद ईद का त्योहार आया है। लोग तीस दिन तक ईद की प्रतीक्षा करते हैं। आज ईद का त्योहार है। चारों ओर मनोहारी प्राकृतिक वातावरण की छटा दिखाई देती है। आज की सुबह भी बड़ी ही सुहावनी प्रतीत हो रही है। पेड़ों के ऊपर भी हरियाली छाई हुई है। चारों ओर एक विशेष प्रकार की रौनक दिखाई देती है। आज का आसमान भी अजीब प्रकार की लाली से चमक रहा है। आज सभी कुछ अच्छा प्रतीत हो रहा है। आज का सूर्य भी बड़ा अच्छा और भला लग रहा है। आज का सूर्य गर्मी न देकर शीतलता देता जान पड़ रहा है अर्थात् मन की खुशी के कारण सारा वातावरण ही हर्षमय प्रतीत हो रहा है। यह प्राकृतिक सुंदर वातावरण भी संसार को बधाई देता जान पड़ता है। ईद के अवसर पर गाँव में विशेष हलचल देखी जा रही है। सभी ईदगाह जाने की तैयारी में जुटे हैं। वहाँ जाकर वे नमाज पढ़ेंगे तथा बच्चे मेले का आनंद उठाएँगे।
विशेष :
1. ईद आने की खुशी का प्रभावी चित्रण हुआ है।
2. प्राकृतिक वातावरण का सजीव अंकन हुआ है।
3. भाषा सरल एवं सुबोध है।
2. अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं। आज आबिद होता तो क्या इसी तरह ईद आती और चली जाती। इस अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही है। किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं; लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब? उसके अंदर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दलबल लेकर आए, हामिद की आनंदभरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से अवतरित है। ईद वैसे तो खुशी का त्योहार माना जाता है, पर अभावग्रस्त अमीना के लिए ईद दुख का कारण बन गई। वह अपनी बुरी आर्थिक दशा को लेकर परेशान है।
व्याख्या – अमीना स्वयं को अभागिन मानती है क्योंकि उसके पास ईद का त्योहार मनाने के लिए कुछ भी तो नहीं है। वह अपने पोते हामिद को ईद के अवसर पर कुछ भी दिला पाने में असमर्थ है। आज ईंद होने पर चारों ओर ख्खुशियों की चहल-पहल है, पर बूढ़ी अमीना के घर में तो खाने के लिए अन्न का दाना तक नहीं है। वह कैसे सेवइयाँ पकाकर हामिद को खिलाए? अमीना को अपने मृत बेटे आबिद की याद हो आती है। यदि वह जीवित होता तो क्या ईद बिना खुशियाँ मनाए चली जा पाती। उसका बेटा ईद को शानदार ढंग से मनाता। वह तो अंधकार और निराशा की भावना में डूबती चली जा रही है। वह नहीं चाहती थी कि यह ईद आए। जब उसके पास ईद की खुशी मनाने का कोई साधन ही नहीं है तब भला ईद के आने की प्रतीक्षा ही क्यों करती ? उसके लिए तो यह ईद निगोड़ी (अभागी) है। उसके घर में उसे आना ही नहीं चाहिए था। पर, जब वह हामिद के बारे में सोचती है तब उसे लगता है कि इस बेचांने
बच्चे को इन अभावों से क्या लेना-देना। वह तो ईद को लेकर उत्साहित है, उसे उम्मीद भी है। मुसीबत यदि पूरी ताकत से भी आए, तब भी वह हामिद के आनंद और उत्साह को कम नहीं कर सकती। अमीना और हामिद की मन:स्थितियों में भारी अंतर है।
3. यह कानिसटिबिल पहरा देते हैं। तभी तुम बहुत जानते हो। अजी हजरत, यही चोरी कराते हैं। शहर के जितने चोर, डाकू हैं, सब इनसे मिले रहते हैं। रात को लोग चोरों से तो कहते हैं, चोरी करो और आप दूसरे मुहल्ले में जाकर ‘जागते रहो! जागते रहो!’ पुकारते हैं। जभी इन लोगों के पास इतने रुपए आते हैं। मेरे मामूँ एक थाने में कानिसटिबिल हैं। बीस रुपया महीना पाते हैं; लेकिन पचास रुपये घर भेजते हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से अवतरित हैं। ईद के अवसर पर गाँव के बच्चे मेला देखने इदगाह की ओर जा रहे हैं। रास्ते में पुलिस लाइन आती है। वहाँ कास्टेबल परेड करते दिखाई देते हैं। उनके काम को लेकर हामिद और मोहसिन में बहस छिड़ जाती है।
व्याख्या – हामिद का कहना है कि ये सिपाही रात भर घूम-घूमकर पहरा देते हैं ताकि चोरियाँ न हो जाएँ। मोहसिन उसकी बात का प्रतिवाद करता है। उसका इन सिपाहियों के बारे में उल्टा विचार है। उसकी मान्यता है कि ये सिपाही ही चोरी करवाते हैं। ये स्वयं चोरी नहीं करते, बल्कि चोर-डाकुओं से मिलकर उनसे चोरी करवाते ैैं। साँ समय चोरों को चोरी करने का मौका देते हैं और स्वयं चोरियों की अनदेखी करते हुए दूसरे मुहल्ले में चले जाते हैं और वहाँ जोर-जोर से चिल्लाते रहते हैं-‘ जागते रहो! जागते रहो!’ अर्थात् ये सिपाही पहरा देने का नाटक करते हैं। चोर-डाकू इन्हें चोरी के माल में से इनका हिस्सा दे जाते हैं। तभी तो इनके पास खूब रुपए होते हैं। मोहसिन के मामू एक थाने में सिपाही के तौर पर केवल बीस रुपए महीने वेतन पाते हैं, पर घर पर पचास रुपए भेजते हैं। ये फालतू के रुपए इन चोरों से ही तो आते हैं
4. हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलौनों को देखकर किसी की माँ इतनी खुश न होगी, जितनी दादी चिमटे को देखकर होंगी। तीन पैसों ही में तो उसे सब कुछ करना था और उन पैसों के इस उपयोग पर पछतावे की बिल्कुल जरूरत न थी। फिर अब तो चिमटा रुस्तमे-हिंद है और सभी खिलौनों का बादशाह!
प्रसंग – प्रस्तुत परंक्तियाँ मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी ‘ईदगाह’ से उद्धृत हैं। हामिद मेले से खिलौने न खरीदकर चिमटा ले आता है। वह अपने तरों से अपने चिमटे की श्रेष्ठता सिद्ध भी कर देता है। मोहसिन और महमूद को समझ आ गया कि मेले से मिट्री के खिलौने खरीदकर उन्हें घर पर डाँट पड़ेगी।
व्याख्या – हामिद को अन्य बच्चों की इस बात को स्वीकार करना पड़ा कि उसने चिमटा खरीदकर सबसे अच्छा काम किया है। मिट्टी के खिलौनों को देखकर किसी की माँ इतनी प्रसन्न नहीं होगी जितनी उसकी दादी उसके चिमटे को देखकर होगी। यह उसके लिए बड़े काम की चीज है। हामिद के पास पैसे भी तो सीमित ही थे। उन तीन पैसों में ही उसे सब कुछ करना था। उसने इन पैसों से जो कुछ खरीदा, उसके लिए उसे बिल्कुल पछतावा नहीं है। उसने एक सही निर्णय लिया था और अब तो उसके साथी भी उसकी खरीद को सही ठहरा रहे हैं। उसके द्वारा खरीदा गया चिमटा रुस्तमे-हिंद की तरह अजेय है। इसका सिक्का सभी पर जम गया है। यह तो सभी खिलौनों का बादशाह है। अन्य बालक अपने खिलौनों को इस चिमटे के सामने तुच्छ मान रहे हैं।
विशेष – सरल एवं सुबोध भाषा में हामिद के मन के विचारों की अभिव्यक्ति हुई है।
5. बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद में भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा ? इतना ज़ब्त इससे हुआ कैसे ? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गद्गव हो गया। प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग-1’ में संकलित ‘ईयगाह’ से अवतरित है। इसके रचयिता प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद हैं। हामिद मेले से जब चिमटा खरीदकर अपनी दादी अमीना को देता है तब पहले तो वह क्रोधित होती है पर पूरी बात सुनकर उसका क्रोध बालक हामिद के प्रति स्नेह में बदल जाता है।
व्याख्या : जब अमीना अपने पोते हामिद का यह तर्क सुनती है कि वह उसके (दादी के) हाथों को जलने से बचाने के लिए ही यह चिमटा खरीदकर लाया है, तब अमीना का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल जाता है। यह स्नेह गंभीर और मूक था। वह हामिद का तर्क सुनकर वह इतनी भावुक हो गई कि शब्दों में कुछ न कह सकी। वह उस स्नेह का प्रदर्शन आँखों के आँसुओं से करने लगी। उसका स्नेह अत्यधिक ठोस, रस और स्वाद से परिपूर्ण था। इसमें दृढ़ता, आनंद एवं सद्-इच्छा थी। वह यह सोचकर भाव-विभोर था कि इस बच्चे में त्याग की कितनी भावना है। उसमें अत्यधिक सद्भाव व विवेक (भला-बुरा सोचने का भाव) है। जब दूसरे बच्चों ने खिलौने खरीदे होंगे और मिठाई खाई होगी, तब इसका मन भी इनके लिए ललचाया होगा। पता नहीं इसने स्वयं पर कैसे नियंत्रण किया होगा ? मेले के वातावरण में भी इसे अपनी बूढ़ी दादी की याद बनी रही, उसके कष्ट का अनुभव होता रहा। यह सोचकर अमीना का मन आनंदविभोर हो उठा।
विशेष :
1. इन पंक्तियों में बूढ़ी अमीना का अपने पोते के प्रति असीम स्नेह की अभिव्यक्ति हुई है।
2 . सरल-सुबोध भाषा का प्रयोग है।