CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 2 are part of CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Here we have given CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 2.
CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 2
Board | CBSE |
Class | IX |
Subject | Hindi A |
Sample Paper Set | Paper 2 |
Category | CBSE Sample Papers |
Students who are going to appear for CBSE Class 9 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme, as prescribed by the CBSE, is given here. Paper 2 of Solved CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A is given below with free PDF download solutions.
समय : 3 घंटे
पूर्णांक : 80
निर्देश
- इस प्रश्न-पत्र के चार खंड हैंक, ख, ग और घ।
- चारों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।
खंड {क} अपठित बोध [ 15 अंक ]
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
हमारे देश में एक ऐसा भी युग था, जब नैतिक और आध्यात्मिक विकास ही जीवन का वास्तविक लक्ष्य माना जाता था। अहिंसा की भावना सर्वोपरि थी। आज पूरा जीवन-दर्शन ही बदल गया है। सर्वत्र पैसे की हाय-हाय तथा धन का उपार्जन ही मुख्य ध्येय हो गया है, भले ही धन उपार्जन के तरीके गलत क्यों न हों? इन सबका असर मनुष्य के प्रतिदिन के जीवन पर पड़ रहा है। समाज का वातावरण दूषित हो गया है, बाह्य वातावरण तो दूषित है ही। आज सब जानते हैं कि पर्यावरण की समस्याएँ कितनी चिंतनीय हो उठी हैं। इन सबके कारण मानसिक और शारीरिक तनाव-खिंचाव और व्याधियाँ पैदा हो रही हैं। पर्यावरण की समस्याओं के कारण मानव-समाज ही नहीं, बल्कि समस्त प्राणियों के सामने जीवन-मरण की भयावह समस्या खड़ी हो गई है। बदलते हुए जीवन-दर्शन के प्रभाव से ही हमारी जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
(क) प्रस्तुत गद्यांश में कैसे युग की बात की जा रही है?
(ख) वर्तमान जीवन-दर्शन में क्या परिवर्तन आया है?
(ग) पर्यावरण की समस्याओं ने किस प्रकार चिंतनीय रूप धारण कर लिया है तथा इससे कौन पीड़ित है?
(घ) ‘जीवन-मरण’ में कौन-सा समास है?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
मिट्टी तन है मिट्टी मन है, मिट्टी दाना-पानी है।
मिट्टी ही तन बदन हमारा, सो सब ठीक कहानी है।
पर जो उल्टा समझ इसे ही बने आप ही ज्ञानी है।
मिट्टी करता है जीवन को और बड़ा अज्ञानी है।
समझ सदा अपना तन मिट्टी, मिट्टी में जो रमाता है।
मिट्टी करके सर बस अपना, मिट्टी में मिल जाता है।
जगत है सच्ची, तनिक न कच्चा, समझो बच्चा इसका भेद
(क) काव्यांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि जगत की सच्चाई हम कैसे जान सकते हैं?
(ख) संसार की रचना में दोष निकालना क्यों व्यर्थ है?
खाओ पीओ कर्म करो नित, कभी न लाओ मन में खेद।
रचा उसी का है यह जग तो, निश्चय उसको प्यारा है।
इसमें दोष लगाना अपने लिए दोष का द्वारा है।
ध्यान लगाकर जो देखो, तुम सृष्टि की सुधराई को
बात-बात में पाओगे तुम उस सृष्टि की चतुराई को
चलोगे सच्चे दिल जो तुम निर्मल नियमों के अनुसार
तो अवश्य प्यारे जानोगे, सारा जगत सच्चाई सार।
(ग) कवि ने क्या करने के लिए प्रेरित किया है?
(घ) ‘अपना तन मिट्टी’ समझने का क्या अर्थ है?
(ङ) ‘दाना-पानी में कौन-सा समास है?
खंड {ख} व्याकरण [15 अंक]
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
(क) “अव’ उपसर्ग से दो शब्दों का निर्माण कीजिए।
(ख) “दुराचार’ शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग और मूल शब्द अलग कीजिए।
(ग) ‘झगड़ालू’ में कौन-सा प्रत्यय है?
(घ) “ऐया’ प्रत्यय से दो शब्दों का निर्माण कीजिए।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह कीजिए और समास का नाम लिखिए
(क) यथासमय
(ख) चक्रपाणी
(ग) जन्मांध
प्रश्न 5.
निम्नलिखित के निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
(क) आपकी यात्रा मंगलमय हो। (अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेद बताइए)
(ख) अरे! तुम फेल हो गए। (अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेद बताइए)
(ग) हो सकता है कि राधा आए। (प्रश्नवाचक वाक्य में बदलिए)
(घ) क्या यह अनुकरणीय उदाहरण नहीं था? (निश्चयवाचक वाक्य में बदलिए)
प्रश्न 6.
निम्नलिखित के निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
(क) अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा लिखिए।
(ख) उपमा अलंकार के चारों अंगों के नाम लिखिए।
(ग) निम्न काव्य पंक्तियों में निहित अलंकार बताइए
“मंगत को देख पट देत बार-बार।”
(घ) चरन-सरोज पखारन लागा।
उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?
खंड {ग} पाठ्यपुस्तक व पूरक पुस्तक [ 30 अंक ]
प्रश्न 7.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
बचपन की स्मृतियों में एक विचित्र-सा आकर्षण होता है। कभी-कभी लगता है, जैसे सपने में सब देखा होगा। परिस्थितियाँ बहुत बदल जाती हैं। अपने परिवार में मैं कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्न हुई। मेरे परिवार में प्राय: दो सौ वर्ष तक कोई लड़की थी ही नहीं। सुना है, उसके पहले लड़कियों को पैदा होते ही परमधाम भेज देते थे। फिर मेरे बाबा ने बहुत दुर्गा-पूजा की। हमारी कुलदेवी दुर्गा थीं। मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है। परिवार में बाबा फ़ारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेज़ी पढ़ी थी। हिंदी का कोई वातावरण नहीं था। मेरी माता जबलपुर से आईं, तब वे अपने साथ हिंदी लाईं। वे पूजा-पाठ भी बहुत करती थीं। पहले-पहल उन्होंने मुझको ‘पंचतंत्र’ पढ़ना सिखाया।
(क) लेखिका के परिवार में लड़कियों की स्थिति का इतिहास विचित्र-सा क्यों था? स्पष्ट कीजिए।
(ख) लेखिका के बाबा ने किसकी प्रार्थना की तथा उसका क्या परिणाम हुआ?
(ग) लेखिका को सबसे पहले पंचतंत्र’ पढ़ना किसने सिखाया)
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
(क) पंखों पर सवार साँवले सपनों का हुजूम किसे और क्यों कहा गया है? ‘साँवले सपनों की याद’ पाठ के आधार पर बताइए।
(ख) उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शांत होती, पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया” इस कथन से क्या आशय है? ‘दो बैलों की कथा पाठ के आधार पर बताइए।
(ग) मेरे बचपन के दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि कविता सुनाने पर लेखिका को क्या मिला तथा गांधी जी ने लेखिका से क्या माँगा?
(घ) “ल्हासा की ओर’ पाठ में लेखक ने तिब्बत की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
माँ ने एक बार मुझसे कहा था
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है।
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था –
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में।
(क) यमराज को क्रुद्ध करना कवि की माँ को बुद्धिमानी की बात क्यों नहीं लगती?
(ख) माँ ने कवि को यमराज के विषय में कौन-सी महत्त्वपूर्ण जानकारी दी?
(ग) कवि की माँ ने एक बार उससे क्या कहा था?
प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
(क) “बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि ने किस विडंबना की ओर इशारा किया है?
(ख) चंद्र गहना से लौटती बेर’ कविता के आधार पर अलसी की चंचलता का वर्णन कीजिए।
(ग) गोपियाँ कृष्ण की मुरली को अपने अधरों से क्यों नहीं लगाना चाहतीं? ‘रसखान’ के सवैये के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
(घ) अपने वाखों में ललद्यद ने जिसे सामाजिक सद्भाव एवं समता का संदेश दिया है, वर्तमान लोकतांत्रिक भारत के संदर्भ में उसका क्या महत्त्व है? स्पष्ट करें।
प्रश्न 11.
“लेखिका की माँ परंपरा का निर्वाह न करते हुए भी सबके दिलों पर राज करती थीं।” इस कथन के आलोक में लेखिका की माँ की विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी में लेखक ने किस समस्या को उठाया है? तथा ये समस्याएँ हमें आज किस रूप में दिखती हैं? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
खंड {घ} लेखन [ 20 अंक ]
प्रश्न 12.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर लगभग 200-250 शब्दों में एक निबंध लिखिए
(क) जीवन में अनुशासन का महत्त्व
संकेत बिंदु
- अनुशासन से तात्पर्य
- अनुशासन की आवश्यकता
- अनुशासन से लाभ
- उपसंहार
(ख) देश में असंतुलित होता लिंग अनुपात
संकेत बिंदु
- भूमिका :
- लिंग अनुपात के असंतुलित होने के कारण
- लड़के और लड़कियों की असमान संख्या
- निवारण कैसे
- उपसंहार
(ग) राष्ट्रीय खेल : हॉकी
संकेत बिंदु
- हॉकी का इतिहास
- हॉकी पुरुष मेजर ध्यानचंद
- हॉकी संघ की स्थापना एवं भारत का प्रदर्शन
- उपसंहार
प्रश्न 13.
चुनाव के कारण आपके घर की दीवारें नारे लिखने और पोस्टर चिपकाने से गंदी हो गई हैं। इस समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए नवभारत टाइम्स के संपादक को पत्र लिखिए।
अथवा
राष्ट्रपति द्वारा ‘वीर बालक पुरस्कार’ से सम्मानित अपने मित्र को बधाई पत्र लिखिए।
प्रश्न 14.
आपका नाम अनिल है। आप अपने मित्र रोहन के साथ परीक्षा की तैयारी पर बातचीत कर रहे हैं। इस विषय पर लगभग 50 शब्दों में एक संवाद लेखन कीजिए।
अथवा
रक्तदान करके आए पुत्र और माँ के मध्य होते संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
जवाब
उत्तर 1.
(क) प्रस्तुत गद्यांश में एक ऐसे युग की बात की जा रही है, जहाँ नैतिक और आध्यात्मिक विकास ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य माना जाता था, साथ ही अंहिसा की भावना सर्वोपरि थी।
(ख) वर्तमान समय में मनुष्य स्वयं को आर्थिक रूप से सृदृढ़ करना चाहता है। वह विभिन्न प्रकार के धनोपार्जन में लगा रहता है। फिर चाहे धनोपार्जन का वह तरीका सही हो या गलत।
(ग) आज पर्यावरण की समस्याएँ अधिक चिंतनीय हो गई हैं। इन सबके कारण मानसिक और शारीरिक समस्याएँ और व्याधियाँ उत्पन्न हो रही हैं। पर्यावरण की समस्याओं के कारण मानव-समाज ही नहीं, अपितु समस्त प्राणी जगत भी पीड़ित है।
(घ) “जीवन-मरण’ में द्वंद्व समास है, क्योंकि यहाँ पूर्वपद और उत्तरपद दोनों ही प्रधान हैं और उनके मध्य संयोजक शब्द का लोप हो रहा है, इसलिए यहाँ द्वंद्व समास है।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक ‘जीवन-दर्शन में बदलाव ही होगा।
उत्तर 2.
(क) काव्यांश में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि सच्चे दिल से नियमों का पालन करके हम जगत की सच्चाई को जान सकते हैं।
(ख) संसार की रचना में दोष निकालना इसलिए व्यर्थ है, क्योंकि ईश्वर जो करता है, वो अच्छा ही करता है।
(ग) कवि ने निरंतर कर्म करने के लिए प्रेरित किया है, साथ ही मन में किसी प्रकार का खेद लाने को मना किया है। कवि ने कहा है कि हमें नित्य कर्म के मार्ग पर बने रहना चाहिए।
(घ) ‘अपनी तन मिट्टी’ समझने का अर्थ ‘शरीर नश्वर है’ से है। क्योंकि एक दिन हमारे शरीर को मिट्टी में ही मिल जाना है।
(ङ) ‘दाना-पानी’ में द्वंद्व समास है, क्योंकि यहाँ पूर्वपद और उत्तरपद दोनों ही प्रधान हैं और उनके मध्य संयोजक शब्द का लोप है।
उत्तर 3.
(क) अवनति, अवशेष
(ख) ‘दुर’ उपसर्ग और ‘आचार’ मूल शब्द
(ग) आलू प्रत्यय
(घ) रखैया, गवैया
उत्तर 4.
(क) समय के अनुसार – अव्ययीभाव समास
यहाँ प्रथम पद (यथा) अव्यय प्रधान है, इसलिए यहाँ अव्ययीभाव समास है।
(ख) चक्र है हाथ में जिसके (कृष्ण) – बहुव्रीहि समास
यहाँ कोई पद प्रधान न होकर किसी अन्य तीसरे (कृष्ण) पद की प्रधानता बताता है, इसलिए यहाँ बहुव्रीहि समास है।
(ग) जन्म से अंधा – करण तत्पुरुष समास
यहाँ ‘करण कारक’ (से) विभक्ति का लोप होने से करण तत्पुरुष समास है।
उत्तर 5.
(क) इच्छावाचक वाक्य यहाँ इच्छा प्रकट की जा रही है कि आपकी यात्रा मंगलमय हो, इसलिए यह इच्छावाचक वाक्य है।
(ख) विस्मयवाचक वाक्य ‘अरे!’ विस्मय शब्द से यहाँ आश्चर्य का बोध हो रहा है कि तुम फेल हो गए। इसलिए यह विस्मयवाचक वाक्य है।
(ग) क्या राधा आएगी?
(घ) यह एक अनुकरणीय उदाहरण है।
उत्तर 6.
(क) जब किसी की प्रशंसा के लिए कोई बात बहुत बढ़ा-चढ़ाकर अथवा लोक-सीमा का उल्लंघन करके कही जाए, तब वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
(ख) उपमा अलंकार के चार अंगों के नाम निम्नलिखित हैं।
- उपमेय
- उपमान
- वाचक शब्द
- समान धर्म
(ग) श्लेष अलंकार यहाँ ‘पट’ शब्द के दो अर्थ हैं- पहला ‘पट’ वस्त्र तथा दूसरा ‘पट’ दरवाजा है। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
(घ) रूपक अलंकार यहाँ ‘चरणों में ‘सरोज’ अर्थात् कमल का आरोप होने से रूपक अलंकार है।
उत्तर 7.
(क) लेखिका के परिवार में लड़कियों की स्थिति का इतिहास बड़ा विचित्र-सा रहा है। उनके परिवार में पिछले दो सौ वर्षों से लड़कियों के साथ अन्याय होता था। उन्हें जन्म लेते ही परमधाम (स्वर्ग) भेज दिया जाता था। इसका मुख्य कारण यह था कि तत्कालीन समाज में लड़कियों को बोझ माना जाता था तथा उनके साथ भेदभाव किया जाता था।
(ख) लेखिका के बाबा द्वारा अपनी कुलदेवी दुर्गा की पूजा तथा प्रार्थना के फलस्वरूप लेखिका का जन्म हुआ। अतः उनके जन्म पर उनकी बहुत सेवा हुई अर्थात् आदर-सम्मान मिला। उन्हें वर्षों से लड़कियों के साथ हो रहे अन्याय और भेदभाव को नहीं सहना पड़ा।
(ग) लेखिका की माँ ने सबसे पहले उसे पंचतंत्र पढ़ना सिखाया। पंचतंत्र नीतिशास्त्र का प्रतिनिधि ग्रन्थ है। इसमें कथाओं की ऐसी रुचिकर श्रृंखला है कि पढ़ने वाला अनचाहे ही उसमें बँधता चला जाता है।
उत्तर 8.
(क) ‘पंखों पर सवार साँवले सपनों का हुजूम’ प्रसिद्ध पक्षी-विज्ञानी सालिम अली के लिए प्रयुक्त किया गया है। मृत्यु के पश्चात् वे अपनी सभी यादों को मृत्यु की शांत वादी की ओर ले जाते से लग रहे हैं, जहाँ कोई रोक-टोक संभव नहीं है। मृत्यु के पश्चात् आज भी ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वे पक्षियों की खोज में निकले हैं और परिणाम के साथ ही लौटेंगे।
(ख) हीरा और मोती गया की निष्ठुरता और अपमानपूर्ण व्यवहार से क्षुब्ध थे। इसलिए गया द्वारा दिए जाने वाला सूखा भूसा उन्हें स्वीकार नहीं था। जब दोनों बैल भूखे थे, उसी समय गया के घर में रहने वाली छोटी लड़की दो रोटियाँ दोनों बैलों के मुँह में देकर चली गई। उस रोटी से हीरा और मोती के पेट की भूख तो नहीं मिटती थी, पर उस लड़की का स्नेह मिल जाता था, जिससे उनकी स्नेह पाने की भूख शांत हो जाती थी। इस एक रोटी के मिलने से हीरा और मोती को ऐसा लगता था, जैसे उन्हें संतुष्ट करने योग्य भोजन मिल गया हो।
(ग) कविता सुनाने पर लेखिका को कटोरा मिला था। गांधीजी ने लेखिका से कहा ‘अच्छा दिखा तो मुझको।’ ‘मैंने कटोरा उनकी ओर बढ़ा दिया, तो उसे हाथ में लेकर बोले, ‘तू देती है इसे?’ अब मैं क्या कहती? मैंने दे दिया और लौट आई।
(घ) तिब्बत की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं।
- यहाँ जाति-पॉति, छुआछूत तथा पर्दा-प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयाँ नहीं थीं।
- भारत की तुलना में यहाँ स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्छी थी।
- यहाँ यात्रियों के आराम व सुविधा का ध्यान रखा जाता था।
- भिखमंगों का देश होने पर भी ठहरने के लिए अच्छे स्थान मिल जाते थे।
- समाज में अपरिचित अतिथियों का भी सेवा-सत्कार होता था।
उत्तर 9.
(क) यमराज को क्रुद्ध करना कवि की माँ को बुद्धिमानी की बात नहीं लगती, क्योंकि यदि यमराज क्रुद्ध हो गए, तो उसका परिणाम बहुत ही भयंकर हो सकता है, इसलिए यमराज को क्रोधित करने में कोई समझदारी नहीं है।
(ख) माँ ने कवि को यमराज के विषय में यह महत्वपूर्ण जानकारी दी कि तुम जहाँ भी रहो, वहाँ से जो दक्षिण की दिशा होगी, वह यमराज का घर होगा। इसलिए कभी भी दक्षिण की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए।
(ग) कवि की माँ ने उसे सलाह देते हुए कहा था कि दक्षिण की। ओर पैर करके कभी मत सोना।
उत्तर 10.
(क) ”बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कविता में कवि ने बाल मज़दूरी की विडंबना की ओर संकेत किया है। वास्तव में, यह एक बहुत गंभीर समस्या है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए। बचपन में बच्चों को शारीरिक एवं मानसिक विकास के पर्याप्त अवसर मिलने चाहिए, न कि उनसे कार्य (मज़दूरी) कराना चाहिए।
(ख) ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ कविता में कवि ने अलसी पौधे की तुलना नारी से की है। अलसी का शरीर पतला और कमर (तना) लचीली है उसकी चंचलता इस बात से प्रमाणित होती है कि वह अपने नीले रंग के फूल को अपने सिर पर चढ़ाकर कह रही है कि जो इस फूल को छू लेगा, वह उसे अपने हृदय का दान दे देगी।
(ग) गोपियाँ कृष्ण से अटूट प्रेम करती हैं, लेकिन कृष्ण सदैव मुरली बजाने में खोए रहते हैं, वे गोपियों की ओर ध्यान नहीं देते। इसी कारण गोपियाँ कृष्ण की मुरली से ईष्र्या करती हैं। उन्हें कृष्ण की मुरली पर क्रोध आता है। अतः वे मुरली को अपने अधरों से नहीं लगाना चाहतीं।
(घ) किसी भी सामाजिक व्यवस्था का स्वरूप एवं उसका अस्तित्व मूलतः सामाजिक सद्भाव एवं समता पर ही टिका होता है, जिसे अपनाने की प्रेरणा ललद्यद द्वारा अपने वाखों में दी गई है। वर्तमान लोकतांत्रिक भारत में इस विचार का महत्त्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि लोकतंत्र में जनता और उसकी आशा-आकांक्षाएँ ही सर्वोपरि होती हैं। ऐसे में यदि नागरिक भेदभाव भुलाकर सद्भाव और समता के गुणों को अपनाएँगे, तो इससे लोकतंत्र को सुदृढ़ता मिलेगी।
उत्तर 11.
लेखिका की माँ भारतीय परंपरावादी माँओं जैसी नहीं थीं। वे परिवार एवं बच्चों के लिए आदर्श परंपराओं का निर्वाह कर पाने में समर्थ नहीं थीं। घर-परिवार संभालना उनके वश की बात नहीं थी, लेकिन फिर भी वे सबके दिलों पर राज करती थी। ससुराल पक्ष में सभी सदस्य उनका सम्मान करते थे, सभी उन्हें चाहते थे, किसी प्रकार के कार्य को करने की ज़िम्मेदारी उन्हें नहीं सौंपते थे। इन सबके पीछे उनके व्यक्तित्व की निम्न विशेषताएँ थीं।
वे साहबी खानदान से आई थीं, जिससे सभी प्रभावित थे। लेखिका के नाना अंग्रेज़ों की भाँति लगते थे, इसलिए लेखिका की माँ का बहुत यश था।
वे सुंदर और शांत स्वभाव की थीं।
वे हमेशा सच का साथ देती थीं। उनकी ईमानदारी से लोग प्रभावित रहते थे।
वे किसी की गोपनीय बात”एक-दूसरे पर प्रकट नहीं करती थीं।
वे स्वतंत्रता आंदोलन के लिए कार्य करती थीं।
संगीत व पुस्तक प्रेमी थीं। इन्हीं कारणों से घर के अंदर बाहर उनका बहुत सम्मान था।
अथवा
‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी में मुख्यतः स्त्री-शिक्षा एवं सफ़ेदपोश लोगों की रूढ़िवादिता की समस्या को उठाया गया है। इसी के माध्यम से स्त्री – अस्तित्व या स्त्री – व्यक्तित्व की समस्या भी उभरकर सामने आई है। समाज में रूढ़िवादी दृष्टिकोण बनाए रखने वाले लोग दोहरा व्यक्तित्व रखते हैं। घर के अंदर कुछ और तथा घर के बाहर कुछ और, लड़कों के बारे में कुछ और तथा लड़कियों के बारे में कुछ और। दोहरा व्यक्तित्व रखने वाले ऐसे लोगों को जन-प्रत्यक्ष (सामने लाना) करने की आवश्यकता है। यह समस्या पहले भी थी और आज भी विद्यमान है।
स्त्री-शिक्षा का विरोध संबंधी रूढ़िवादी दृष्टिकोण जितना प्रबल पहले था, आज वह उतने प्रबल स्वरूप में नहीं दिखाई देता। आज लोगों के लड़के-लड़कियों की समानता संबंधी दृष्टिकोण में वृद्धि हुई है। लोग लड़कियों को भी लड़कों जैसी ही शिक्षा एवं सुविधाएँ देने में पहले की अपेक्षा काफी उदार हुए हैं, लेकिन आज भी लड़कियों को स्वतंत्र व्यक्तित्व वाला प्राणी मानने में अनेक लोगों को आपत्ति होती है। अभी भी अनेक लोग लड़कियों को एक ‘वस्तु’ के रूप में देखते हैं और लड़कियों का अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना उन्हें पसंद नहीं आता।
उत्तर 12.
(क) जीवन में अनुशासन का महत्त्व
अनुशासन से तात्पर्य अनुशासन शब्द का अर्थ है- ‘शासन के पीछे चलना’ अर्थात् सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक सभी प्रकार के आदेशों और नियमों का पालन करना। ‘शासन’ शब्द में दंड की भावना छिपी हुई है, क्योंकि नियमों का निर्माण लोक कल्याण के लिए होता है। चाहे वे किसी भी प्रकार के नियम हों, उनका शासन करना उन सब व्यक्तियों के लिए अनिवार्य होता है, जिनके लिए वे बनाए गए हैं।
अनुशासन की आवश्यकता व्यावहारिक जीवन में अनुशासन का होना नितांत आवश्यक है। अनुशासन के बिना व्यावहारिक जीवन ठीक प्रकार से नहीं चल सकता। यदि हम । घर के नियमों का उल्लंघन करेंगे, बाज़ार में बाज़ार के नियमों का उल्लंघन करेंगे, विद्यालय में विद्यालय के नियमों का उल्लंघन करेंगे, तो सभी हमारे व्यवहार से असंतुष्ट हो जाएँगे। हमें अशिष्ट और असभ्य समझ लिया जाएगा। पग-पग पर हमें अपमान सहना पड़ेगा। अतः हमारे व्यवहार से अनुशासन का गहरा संबंध है।
सामाजिक जीवन में अनुशासन का अत्यधिक महत्त्व है। किसी भी समाज की व्यवस्था ठीक तब ही रह सकती है, जब उस समाज के सभी सदस्य अनुशासित तथा नियमित हों। यदि समाज में अनुशासनहीनता आ जाए, तो सारा समाज दूषित हो जाता है। उसके सदस्य स्वेच्छाचारी हो जाते हैं। समाज छिन्न-भिन्न हो सकता है।
अनुशासन से लाभ राजनीतिक दृष्टि से तो किसी देश का आधार ही अनुशासन है। जिस देश में अनुशासन नहीं, वहाँ शासक और शासित दोनों परेशान रहते हैं। शासक वर्ग दंड विधान में लगा रहता है और शासितों को दंड भोगने से मुक्ति नहीं मिलती। राष्ट्र का वातावरण अशांत हो जाता है और विकास के मार्ग में बाधा उत्पन्न हो जाती है।
अनुशासनहीनता की दशा में सैन्य शक्ति दुर्बल हो जाती है। अनुशासन सेना का प्राण है। अनुशासन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। प्रश्न यह उठता है कि अनुशासन की भावना जगाई कैसे जाए? अनुशासन सख्ती (कठोरता) से उत्पन्न करने की वस्तु नहीं है। यह वातावरण तथा अभ्यास पर निर्भर करता है। जन्म लेते ही बच्चे को ऐसा वातावरण मिले, जिसमें सब कार्य नियमित और अनुशासित हों, जहाँ सभी लोग अनुशासन का पालन करते हों, तो उस बच्चे को आयु बढ़ने के साथ-साथ अनुशासन का अभ्यास हो जाता है।
उपसंहार विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का उतना ही महत्त्व है, जितना जीवन में भोजन का। जिस प्रकार भोजन के बिना जीवित रहना असंभव है, उसी प्रकार अनुशासन के बिना सामाजिक, राजनीतिक, व्यावहारिक क्षेत्रों में सफलता पाना भी संभव नहीं है। कोई विद्या, कला और शक्ति अनुशासन के बिना प्राप्त नहीं होती। अतः जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का होना अत्यंत आवश्यक है।
(ख) देश में असंतुलित होता लिंग अनुपात
भूमिका प्रकृति की प्रायः सभी देनों में स्वाभाविक संतुलन देखा जाता है, किंतु मानव ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए प्रकृति का दोहन कर इस संतुलन को बिगाड़ने का कार्य किया है। आज के इस तकनीकी युग में गर्भस्थ शिशु के लिंग का परीक्षण करना काफी आसान हो गया है। गर्भस्थ शिशु के लिंग परीक्षण के बाद मादा भ्रूण होने की स्थिति में उसे माँ के गर्भ में ही नष्ट कर देना, कन्या-भ्रूण हत्या कहलाता है। भारत में पिछले कुछ दशकों में स्त्री-पुरुष लिंगानुपात में आए असंतुलन का मुख्य कारण कन्या भ्रूण हत्या है।
लड़के और लड़कियों की असमान संख्या समाज में लड़के और लड़कियों की संख्या में निरंतर असमानता बढ़ती जा रही है। लिंग अनुपात में बढ़ती असमानता के कारण महिलाओं की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है।
भारत में वर्ष 1901 में प्रति 1,000 पुरुषों पर 972 महिलाएँ थीं तथा वर्ष 1991 में महिलाओं की यह संख्या घटकर 927 हो गई। वर्ष 1991-2011 के बीच महिलाओं की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई। फलस्वरूप वर्ष 2011 की जनगणना में प्रति 1,000 पुरुषों पर 940 महिलाएँ हो गईं। सामाजिक संतुलन के दृष्टिकोण से देखें, तो यह वृद्धि भी पर्याप्त नहीं है।
वर्ष 2001 में हरियाणा में प्रति 1,000 लड़कों पर केवल 861 लड़कियाँ थीं, किंतु वर्ष 2011 में लड़कियों की यह संख्या बढ़कर 879 तक जा पहुँची। राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में भी यही स्थिति है। इन आँकड़ों को देखकर हम यह सोचने के लिए विवश हो जाते हैं कि क्या हम वही भारतवासी हैं, जिनके धर्मग्रंथ ‘यंत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तन्त्र देवता’ अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का वास होता है, जैसी बातों से भरे पड़े हैं। संसार का प्रत्येक प्राणी जीना चाहता है और किसी भी प्राणी के प्राण लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, पर अन्य प्रणियों की बात कौन करे, आज तो बेटियों का जीवन कोख में ही छीना जा रहा है।
लिंग अनुपात के असंतुलित होने के कारण लिंग अनुपात के असंतुलित होने का मुख्य कारण कन्या-भ्रूण हत्या है। दहेज प्रथा, लड़कियों को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाना, धार्मिक कर्म-कांडों में पुत्र की भूमिका को महत्त्व देना आदि कुछ ऐसे कारण हैं, जिनसे कन्या-भ्रूण हत्या को बल मिलता है और लिंग अनुपात में असंतुलन बढ़ता है। लोग लड़कियों को पराया धन समझते हैं। उनकी शादी के लिए दहेज की व्यवस्था करनी पड़ती है। दहेज एकत्रित करने के लिए अनेक परिवारों को ऋण भी लेना पड़ता है, इसलिए भविष्य में इस प्रकार की समस्याओं से बचने के लिए लोग गर्भावस्था में ही लिंग परीक्षण करवाकर कन्या-भ्रूण होने की स्थिति में उसकी हत्या करवा देते हैं।
भारतीय समाज में यह अवधारणा रही है कि वंश पुरुष से ही चलता है, महिला से नहीं, इसलिए सभी लोग अपनी वंश परंपरा को बनाए रखने के लिए पुत्र की चाह रखते हैं.एवं उसे पुत्री की । तुलना में अधिक लाड़-प्यार देते हैं, किंतु वे भूल जाते हैं कि उनकी पुत्री भी आगे चलकर मदर टेरेसा, पीटी ऊषा, लता मंगेशकर, कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स आदि बनकर उनके कुले और देश का गौरव बन सकती है।
निवारण कैसे लड़के-लड़कियों की संख्या में बढ़ते असंतुलन को रोकने के लिए हमें शीघ्र ही कठोर कदम उठाने होंगे। सरकार ने कन्या-भ्रूण हत्या रोकने के लिए कानून भी बनाया है, ताकि लिंग अनुपात के असंतुलन को रोका जा सके, परंतु इसका कोई उत्साहजनक परिणाम सामने नहीं आया है। इसका कारण यह है। कि सरकार के प्रयासों को जनता का सहयोग नहीं मिल पा रहा है।
कानून तब तक प्रभावी नहीं होता, जब तक कि उसे जनता का सहयोग न मिले। इस कार्य में मीडिया भी अपनी सशक्त भूमिका निभा रही है। आवश्यकता बस इस बात की है कि जनता भी अपने कर्तव्यों को समझते हुए कन्या भ्रूण हत्या जैसे सामाजिक कलंक को मिटाने में समाज का सहयोग करे।
उपसंहार किसी भी देश की प्रगति तब तक संभव नहीं है, जब तक वहाँ की महिलाओं को प्रगति के पर्याप्त अवसर न मिलें। जिस देश में महिलाओं का अभाव हो, उसके विकास की कल्पना कैसे की। जा सकती है? अतः समाज की संरचना को बनाए रखना हमारा कर्तव्य है और इसके लिए लैंगिक अनुपात में संतुलन बनाना अति आवश्यक है।
(ग) राष्ट्रीय खेल : हॉकी
हॉकी का इतिहास भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी विश्व के । लोकप्रिय खेलों में से एक है। इसकी शुरुआत कब हुई, यह तो। निश्चित आधार पर नहीं कहा जा सकता, किंतु सैकड़ों वर्ष पहले भी इस प्रकार का खेल होन के ऐतिहासिक साक्ष्य मिलते हैं। आधुनिक हॉकी खेलों का जन्मदाता इंग्लैंड को माना जाता है। भारत में भी आधुनिक हॉकी की शुरुआत का श्रेय अंग्रेज़ों को ही जाता है। हॉकी के अंतर्राष्ट्रीय मैचों की शुरुआत 19वीं शताब्दी में हुई थी। इसके बाद बीसवीं शताब्दी में वर्ष 1924 में अंतर्राष्ट्रीय हॉकी संघ की स्थापना हुई। विश्व के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय खेल के आयोजन ‘ओलंपिक’ के साथ-साथ ‘राष्ट्रमंडल खेल’ एवं ‘एशियाई खेलों में भी हॉकी को सम्मिलित किया जाता है। वर्ष 1974 में पुरुषों के हॉकी विश्वकप की एवं वर्ष 1974 में महिलाओं के हॉकी विश्वकप की शुरुआत हुई। न्यूनतम निर्धारित नियत समय में परिणाम देने में सक्षम होने के कारण ही इस खेल ने विश्व को सदैव आकर्षित किया है।
हॉकी पुरुष मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय खेल हॉकी की बात आते ही मेजर ध्यानचंद का स्मरण हो आता है, जिन्होंने अपने करिश्माई प्रदर्शन से पूरी दुनिया को अचंभित कर खेलों के इतिहास में अपना । नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा लिया। हॉकी के मैदान पर जब वह खेलने उतरते थे, तो विरोधी टीम को हारने में देर नहीं लगती थी। उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे किसी भी कोण से गोल कर सकते थे। यही कारण है कि सेंटर फॉरवर्ड के रूप में उनकी तेज़ी और जबरदस्त फुर्ती को देखते हुए उनके जीवनकाल में ही उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा था। उन्होंने इस खेल को नवीन ऊँचाइयाँ दीं।
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त, 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था। वे बचपन में अपने मित्रों के साथ पेड़ की डाली की स्टिक और कपड़ों की गेंद बनाकर हॉकी खेला करते थे। 23 वर्ष की आयु में ध्यानचंद वर्ष 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में पहली बार भाग ले रही भारतीय हॉकी टीम के सदस्य चुने गए थे। उनके जन्मदिन 29 अगस्त को ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की गई। मेजर ध्यानचंद के अतिरिक्त धनराज पिल्लै, दिलीप टिर्की, अजितपाल सिंह, असलम शेर खान, परगट सिंह इत्यादि भारत के अन्य प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी रहे हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय हॉकी टीमों (पुरुष व महिला) में सरदार सिंह, पी. आर. श्रीजेश, मनदीप सिंह, रमनदीप सिंह, रानी रामपाल आदि खिलाड़ी भारतीय हॉकी के स्वर्णिम इतिहास को दोहराने में अपना सराहनीय योगदान दे रहे हैं।
हॉकी संघ की स्थापना व भारत का प्रदर्शन देश में राष्ट्रीय खेल हॉकी का विकास करने के लिए वर्ष 1925 में ‘अखिल भारतीय हॉकी संघ’ की स्थापना की गई थी। ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम के प्रदर्शन की बात करें तो ओलंपिक में अब तक भारत को कुल 18 पदक प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 11 पदक अकेले भारतीय हॉकी टीम ने ही प्राप्त किए हैं। हॉकी में प्राप्त 11 पदकों में से 8 स्वर्ण, 1 रजत एवं 2 कांस्य पदक सम्मिलित हैं। वर्ष 1928 से लेकर 1956 तक लगातार छ: बार भारत ने ओलंपिक खेलों में हॉकी का स्वर्ण पदक जीतने में सफलता पाई। इसके अतिरिक्त वर्ष 1964 एवं 1980 में भी स्वर्ण पदक प्राप्त किया। लंबी प्रतीक्षा के बाद अंततः भारतीय हॉकी ने 2003 में पाकिस्तान को 4-2 से हराकर ‘छठी एशिया कप’ अपने नाम किया। भारतीय टीम ने 2015 का ‘हॉकी वर्ल्ड लीग’ 2013 में कांस्य पदक जीता। वर्ष 2016 चैंपियंस ट्रॉफी में भारतीय हॉकी टीम ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर रजत पदक जीता। हाल ही में आयोजित चैंपियंस ट्रॉफी 2018 में भारतीय हॉकी टीम दूसरे स्थान पर रही थी, जिसे विशेषज्ञ भारतीय हॉकी का पुर्नजन्म मान रहे हैं।
उपसंहार विशेषज्ञों का कहना है कि 1970 के दशक के मध्य से हॉकी के मैदान में एस्ट्रो टर्फ अर्थात् कृत्रिम घास के प्रयोग के बाद से भारतीय हॉकी टीम के प्रदर्शन में गिरावट आने लगी, क्योंकि भारत में ऐसे मैदानों का अभाव था। अब भारत में ऐसे हॉकी के मैदानों के विकास पर बल दिया जा रहा है। जिसके बाद पिछले कुछ वर्षों में भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीमों (पुरुष व महिला) ने एशिया कप सहित अनेक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सराहनीय प्रदर्शन किया है। आशा है, आने वाले वर्षों में भारतीय हॉकी अपने | स्वर्णिम अतीत को दोहराने में सफल रहेगी।
उत्तर 13.
परीक्षा भवन,
नई दिल्ली।
दिनांक 19 जनवरी, 20××
सेवा में,
संपादक महोदय,
नवभारत टाइम्स,
बहादुरशाह जफर मार्ग,
नई दिल्ली।
विषय चुनाव के प्रचार से होने वाली गंदगी के संदर्भ में।
मान्यवर,
सविनय निवेदन है कि मैं चुनाव प्रचार की अव्यवस्था से होने वाली गंदगी की ओर आपके समाचार-पत्र के माध्यम से दिल्ली सरकार का ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ। महोदय, जैसा कि आप भी जानते हैं कि आजकल शहर में चुनाव का वातावरण है। लगभग सभी पार्टियों के प्रचारकर्ता अपने-अपने चुनाव चिह्न एवं नारों के पर्यों को दीवारों पर चिपकाते फिर रहे हैं। वे यह भी ध्यान नहीं देते कि दीवार घर की है या किसी अन्य दार्शनिक स्थान की। यहाँ तक कि काले रंग के पेंट से दीवारों पर नारों को भी लिख देते हैं। ये किस समय ऐसा करते हैं, पता भी नहीं चल पाता है। इससे हमारे घर की दीवारें भद्दी और गंदी हो गई हैं।
आपके पत्र के माध्यम से दिल्ली सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है कि जनता को किसी भी प्रकार से इस प्रकार की आपत्ति न हो। पार्टियाँ अपने प्रचारकर्ता को कुछ विशेष निर्देश अवश्य दें।
धन्यवाद!
भवदीय
क,ख,ग
कनॉट प्लेस, दिल्ली।
अथवा
सी-410
पार्क न्यू अपार्टमेंट
नई दिल्ली।
दिनांक 19 जनवरी, 20××
प्रिय मित्र अनुज
सप्रेम नमस्कार!
आज के समाचार-पत्र में यह समाचार पढ़कर मुझे अत्यंत हर्ष हुआ कि तुम्हें राष्ट्रपति द्वारा ‘वीर बालक पुरस्कार’ हेतु चुना गया है। अब वह दिन दूर नहीं, जब अगले 15 दिनों के बाद राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति अपने हाथों से तुम्हें सम्मानित करेंगे। मित्र तुम्हें बहुत-बहुत बधाई। आज तुम्हें बधाई देते हुए मुझे अत्यंत ही गर्व अनुभव हो रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जिस बहादुरी का परिचय तुमने दिया है, वह साहस का अनोखा उदाहरण है। यह हम सबके लिए प्रेरणास्पद है। आग की लपटों में कूदकर किसी अनजान बच्चे को बाहर लाना आसान नहीं है, जबकि तुम भी अभी बच्चे ही हो। यह सबके वश की बात नहीं है।
मेरे माता-पिता तुम्हें बधाई एवं आशीर्वाद दे रहे हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम इसी प्रकार आगे भी प्रशंसनीय उपलब्धियों को प्राप्त करने में सफल रहोगे।
एक बार पुनः बधाई।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
शुभम
उत्तर 14.
अनिल मित्र रोहन! बहुत दिनों के बाद दिख रहे हो। क्या हाल है ?
रोहन मैं ठीक हूँ। मैं आजकल पढ़ाई पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा हूँ, क्योंकि परीक्षाएँ निकट हैं।
अनिल हाँ, मित्र! तुम सही कह रहे हो। तुम कितने घंटे तक पढ़ाई कर रहे हो?
रोहन मैं घंटों पर ध्यान नहीं देता। प्रत्येक दिन के लिए मैं अपना लक्ष्य अर्थात् पाठ्यक्रम निश्चित कर लेता हूँ और उसे उसी दिन अवश्य पूरा करता हूँ।
अनिल ये तो बहुत अच्छी रणनीति है।
रोहन हाँ, मैं इस बात का भी ध्यान रखता हूँ कि सभी विषयों को संतुलित एवं पर्याप्त समय मिले।
अनिल आज से मैं इसी रणनीति पर चलूंगा और विभिन्न विषयों में अपने कमज़ोर क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देंगा। अच्छा, अब चलते हैं। तुमसे मिलकर बहुत अच्छी जानकारी मिली। धन्यवाद!
रोहन अच्छा मित्र, नमस्कार।
अथवा
माँ बेटा! ये तेरे हाथ में क्या हुआ?
बेटा माँ! आज मैं रक्तदान करके आ रहा हूँ।
माँ क्यों बेटा, तूने रक्तदान क्यों किया? रक्तदान करने से शरीर में कमजोरी आ जाती है।
बेटा नहीं माँ, रक्तदान करने से ऐसा कुछ भी नहीं होता, क्योंकि रक्तदान के समय जितना रक्त लिया जाता है, वह 24 से 72 घंटों के अंदर ही पूरा बन जाता है।
माँ किंतु बेटा शरीर में कमजोरी तो आ ही जाती है।
बेटा नहीं माँ, रक्तदान करने से डोनर (रक्तदाता) के अंदर छुपी सभी बीमारियों के बारे में पता चल जाता है।
माँ अच्छा! यह तो बहुत अच्छी बात है। बेटा इसका मतलब यह है कि रक्तदान करने से न केवल किसी दूसरे की जान बचाई जा सकती है, अपितु इससे रक्तदान करने वाले के स्वास्थ्य को भी बहुत सारे लाभ होते हैं।
बेटा हाँ माँ!
माँ ठीक है, बेटा समझ गई मैं तेरी बात।
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