CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 1 are part of CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Here we have given CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 1.
CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 1
Board | CBSE |
Class | IX |
Subject | Hindi A |
Sample Paper Set | Paper 1 |
Category | CBSE Sample Papers |
Students who are going to appear for CBSE Class 9 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme, as prescribed by the CBSE, is given here. Paper 1 of Solved CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A is given below with free PDF download solutions.
समय : 3 घंटे
पूर्णांक : 80
निर्देश
- इस प्रश्न-पत्र के चार खंड हैंक, ख, ग और घ।
- चारों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।
खंड {क} अपठित बोध [ 15 अंक ]
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
साहित्य समाज का दर्पण होता है, किंतु इस कथन का यह आशय नहीं कि साहित्यकार, समाज का फोटोग्राफर है और सामाजिक विद्रूपताओं, कमियों, दोषों, अंधविश्वासों और मान्यताओं का यथार्थ चित्रण करना उसका उद्देश्य है। साहित्य का प्रासाद समाज की पृष्ठभूमि पर ही प्रतिष्ठित होता है। जिस काल की जैसी सामाजिक परिस्थितियाँ होंगी, उसका साहित्य निस्संदेह वैसा ही होगा। साहित्य में समाज का जीवन-स्पंदन विद्यमान रहता है। इसी अर्थ में साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है।
साहित्यकार का दायित्व वस्तुस्थिति का चित्रण-मात्र कर देना ही नहीं, उनके कारणों का विवेचन करते हुए श्रेयस्कर मार्ग की ओर ले जाना है। साहित्य, युग और समाज का होकर भी युगांतकारी जीवन-मूल्यों की प्रतिष्ठा कर सुंदरतम समाज का जो भी रूप हो सकता है, उसका भी रेखाचित्र प्रस्तुत करता है। इसीलिए साहित्यकार एकदेशीय होकर भी सार्वदेशिक होता है। समाज के प्रति साहित्यकार का कर्तव्य आशा का संचार करना है। साहित्यकार समाज में फैले अनैतिक, अवांछनीय एवं असामाजिक तत्वों को उद्घाटित करके सामने लाता है। समाज की गतिविधियों से साहित्य प्रभावित होता है।
(क) “साहित्य समाज का दर्पण है।” से लेखक का क्या आशय है?
(ख) साहित्यकार का समाज के प्रति क्या दायित्व है?
(ग) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि आशा का संचार कौन व कैसे करता है?
(घ) ‘अनैतिक’ समस्त पद में कौन-सा समास है?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
बढ़े चलो, बढ़े चलो, चले चलो।
प्रचंड सूर्य-ताप से न तुम जलो, न तुम गलो।।
पहाड़ से चली नदी, रुकी नहीं कहीं ज़रा।
गई जिधर उधर किया ज़मीन को हरा-भरा।
जली समान रूप से, ज़मीन का न ख्याल कर।
मगन रही निनाद में, ज़मीन पर, पहाड़ पर।
(क) कवि ने किन-किन से प्रेरणा लेने की बात की है?
(ख) काव्यांश का मूल भाव लिखिए।
(ग) ‘बुझे दिलों’ का क्या आशय है?
उसी तरह चले चलो, उसी तरह बढ़े चलो।
जलाओ दिल के दाग से बुझे दिलों के दीप को।
जो दूर हैं उन्हें भी खींच लो ज़रा समीप को।
सही ज़मीन की तरह, डरो न आसमान से।
जलो तो आन-बान से, बुझो तो एक शान से।
अखंड दीप से जलो, सदा बहार से खिलो।
(घ) कवि ने कैसे बुझने के लिए कहा है?
(ङ) “अखंड दीप से जलो” में कौन-सा अलंकार है?
खंड {ख} व्याकरण [ 15 अंक ]
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
(क) “चिरकाल’ शब्द में से उपसर्ग और मूल शब्द अलग कीजिए।
(ख) “तत्’ उपसर्ग लगाकर दो शब्द लिखिए।
(ग) “उतराई’ शब्द में से प्रत्यय और मूल शब्द अलग कीजिए।
(घ) “आवट’ प्रत्यय लगाकर दो शब्द लिखिए।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए
(क) भुखमरा
(ख) पंचतंत्र
(ग) रसोईघर
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के निर्देशानुसार उत्तर दीजिए
(क) नाना साहब का महल बच सकता है। (प्रश्नवाचक वाक्य में बदलिए)
(ख) वे आदेश देते कि मैं उर्दू-फ़ारसी सीखें। (इच्छावाचक वाक्य में बदलिए)
(ग) भारत सरकार ने दुर्दम नाना साहब को पकड़ लिया। (निषेधवाचक वाक्य में बदलिए)
(घ) तुम्हारा जूता फट गया है। (प्रश्नवाचक वाक्य में बदलिए)
प्रश्न 6.
निम्नांकित काव्य-पंक्तियों में निहित अलंकार का नाम बताइए
(क) मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
(ख) उसका मुख मानो चंद्रमा है।
(ग) तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती हैं।
(घ) आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए
खंड {ग} पाठ्यपुस्तक व पूरक पुस्तक [ 30 अंक ]
प्रश्न 7.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
सन् 1857 के सितंबर मास में अर्द्ध रात्रि के समय चाँदनी में एक बालिका स्वच्छ उज्ज्वल वस्त्र पहने हुए नाना साहब के भग्नावशिष्ट प्रासाद के ढेर पर बैठी रो रही थी। पास ही जनरल अउटरम की सेना भी ठहरी थी। कुछ सैनिक रात्रि के समय रोने की आवाज़ सुनकर वहाँ गए। बालिका केवल रो रही थी। सैनिकों के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं देती थी।
(क) गद्यांश में वर्णित बालिका कौन है? वह कब रो रही थी?
(ख) बालिका के रोने का क्या कारण था? सैनिकों के आने पर क्या हुआ?
(ग) सैनिक बालिका तक किस प्रकार पहुँचे?
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
(क) अन्य पक्षी-प्रेमी व सालिम अली के मध्य टकराव का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
(ख) ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ व्यंग्य को पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं?
(ग) जनरल अउटरम और जनरल, ‘हे’ का मैना के प्रति क्या दृष्टिकोण था? स्पष्ट कीजिए।
(घ) तिब्बत में सबसे खतरनाक स्थान कौन-सा है और क्यों? ‘ल्हासा की ओर’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारिन संग फिरौंगी।
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरींगी।
(क) गोपी क्या-क्या करने को तैयार हैं?
(ख) गोपी अपने होंठों पर मुरली क्यों धारण करना नहीं चाहती हैं?
(ग) “या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरींगी” इस काव्य-पंक्ति में निहित अलंकार बताइए।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(क) ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता के आधार पर बताइए कि बच्चों को बाल मजदूरी क्यों करनी पड़ती है?
(ख) कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने कोयल के माध्यम से अपने मन के किन भावों को व्यक्त किया है?
(ग) “चंद्र गहना से लौटती बेर’ कविता के आधार पर ‘हरे चने का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
(घ) वर्तमान युग और माँ के समय में क्या परिवर्तन हो गया है? ‘यमराज की दिशा’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 11.
“जी तोड़ मेहनत करने के उपरांत भी माटी वाली के घर में भोजन का अभाव है।” प्रस्तुत संदर्भ के आधार पर ‘माटी वाली’ की मजबूरी को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रस्तुत एकांकी में उमा के पिता के समक्ष क्या शर्त रखी गई तथा उन्होंने क्या किया? स्पष्ट कीजिए।
खंड {घ} लेखन [ 20 अंक ]
प्रश्न 12.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर संकेत बिंदुओं के आधार पर लगभग 200-250 शब्दों में एक निबंध लिखिए
(क) पर्वतीय प्रदेश की यात्रा
संकेत बिंदू
- जीवन में मनोरंजन की आवश्यकता
- ग्रीष्मावकाश में कार्यक्रम
- पहाड़ी क्षेत्र का मनोहारी दृश्य
- रोचक अनुभव
- उपसंहार
(ख) मनोरंजन के आधुनिक साधन
संकेत बिंदु
- मनोरंजन का तात्पर्य
- मनोरंजन के साधन
- मनोरंजन की आवश्यकता
- आधुनिक साधनों की उपयोगिता
- उपसंहार
(ग) निरक्षरता : एक अभिशाप
संकेत बिंदु
- प्रस्तावना
- निरक्षरता से हानि
- निरक्षरता के कारण
- निरक्षरता दूर करने के उपाय तथा उपसंहार
प्रश्न 13.
आपके नगर में अनाधिकृत मकान बनाए जा रहे हैं। इनकी रोकथाम के लिए जिलाधिकारी को पत्र लिखिए।
अथवा
छात्रावास में रह रहे छोटे भाई के द्वारा की गई मोबाइल फ़ोन की माँग पर, अभी इसका उपयोग न करने के परामर्श देते हुए पत्र लिखिए।
प्रश्न 14.
एक मित्र के बोर्ड में प्रथम आने पर बधाई देते हुए उसके साथ होने वाला संवाद लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
अथवा
वोट माँगने आए नेता और गाँव के प्रधान के मध्य होते संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
जवाब
उत्तर 1.
(क) साहित्य का प्रासादे समाज की पृष्ठभूमि पर ही प्रतिष्ठित होता है। जिस काल की जैसी सामाजिक परिस्थितियाँ होती हैं, उसका साहित्य वैसा ही होता है। साहित्य में, समाज का जीवन-स्पंदन विद्यमान रहता है। इसी अर्थ में साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है।
(ख) साहित्यकार का दायित्व वस्तुस्थिति का चित्रण-मात्र कर देना ही नहीं, अपितु उनके कारणों का विवेचन करते हुए श्रेयस्कर मार्ग की ओर ले जाना है। साहित्य, युग और समाज का होकर भी युगांतकारी जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा कर सुंदरतम, समाज का जो भी रूप हो सकता है, उसका भी रेखाचित्र प्रस्तुत करता है।
(ग) गद्यांश में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि साहित्यकार आशा का संचार करता है। साहित्यकार समाज में फैले अनैतिक, अवांछनीय एवं असामाजिक तत्वों को उद्घाटित करके आशा का संचार करता है।
(घ) ‘अनैतिक’ समस्त पद में ‘नञ् तत्पुरुष समास’ है। क्योंकि ‘अनैतिक’ का प्रथम पद ‘अ’ निषेधात्मक पद है, इसलिए यहाँ ‘नञ् तत्पुरुष समास है।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक ‘साहित्य समाज का दर्पण’ होगा।
उत्तर 2.
(क) कवि ने सूर्य, दीप एवं नदी से प्रेरणा लेने की बात की है। प्रचंड सूर्य के ताप से न जलो, न गलो। पहाड़ से निकली नदी के समान कहीं भी रुको नहीं, सदैव चलते रहो।
(ख) काव्यांश का मूल भाव कर्मशील जीवन जीना है अर्थात् कर्म करते हुए सदैव अपने मार्ग (लक्ष्य) पर बने रहो और कर्ममार्ग पर चलकर अखंड दीप की भाँति जलो।
(ग) ‘बुझे दिलों’ का आशय हतोत्साहित (निराश) व्यक्तियों से है। हमें सदैव कर्मशील पथ पर अग्रसर रहने को प्रोत्साहित किया गया है। हमें परिस्थितियों से हारकर नहीं बैठना चाहिए, अपितु उनका डटकर सामना करना चाहिए फिर चाहे हमें हार ही क्यों न प्राप्त हो।
(घ) काव्यांश में कवि ने शान से बुझने के लिए कहा है।
(ङ) “अखंड दीप से जलो’ में उपमा अलंकार है।
उत्तर 3.
(क) उपसर्ग-चिर, मूल शब्द-काल
(ख) तत्काल, तत्सम
(ग) मूल शब्द-उतर, प्रत्यय आई,
(घ) लिखावट, मिलावट
उत्तर 4.
उत्तर 5.
(क) क्या किसी प्रकार नाना साहब का महल बच सकती है?
(ख) वे अवश्य चाहते थे कि मैं उर्दू-फ़ारसी सीख लँ।
(ग) भारत सरकार आज तक उस दुर्दम नाना साहब को नहीं पकड़ सकी।
(घ) तुम्हारा जूता कैसे फट गया?
उत्तर 6.
(क) अनुप्रास अलंकार यहाँ ‘द’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
(ख) वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार यहाँ एक वस्तु में (चन्द्रमा) दूसरी वस्तु (मुख) की संभावना की जा रही है, इसलिए यहाँ वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार है।
(ग) यमक अलंकार यहाँ ‘बेर’ शब्द दो बार आया है। प्रथम का अर्थ ‘बेर’-फल और द्वितीय ‘बेर’ का अर्थ-बार से है। इसलिए यहाँ यमक अलंकार है।
(घ) मानवीकरण अलंकार यहाँ ‘धूल’ को मानव (स्त्री) के रूप में चित्रित किया गया है, इसलिए यहाँ मानवीकरण अलंकार
उत्तर 7.
(क) गद्यांश में वर्णित बालिका नाना साहब की पुत्री मैना है। बालिका सन् 1857 के सितंबर मास में अर्द्ध रात्रि के समय चाँदनी में बैठी रो रही थी।
(ख) बालिका मैना को अपने महले से बहुत लगाव था, लेकिन अंग्रेज़ों ने उसे नष्ट कर दिया था, इसलिए वह रो रही थी। सैनिकों के आने पर भी वह सैनिकों के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दे रही थी।
(ग) बालिका के रोने की आवाज़ सुनकर सैनिक उस तक पहुँच गए।
उत्तर 8.
(क) अन्य पक्षी-प्रेमी व्यक्ति पक्षियों व अन्य प्राकृतिक उपादानों को मनुष्य की दृष्टि से ही देखते थे, जबकि सालिम अली का दृष्टिकोण दूसरा था। यही उनके और अन्य पक्षी-प्रेमियों के बीच टकराव का कारण था। उनका पक्षियों व प्रकृति के साथ विशेष लगाव था| सालिम अली सौ वर्ष की अवस्था तथा शरीर से दुर्बल होने पर भी पक्षियों को खोजने की धुन में लगे रहे।
(ख) हमें लेखक की निम्नलिखित बातें आकर्षित करती हैं।
(i) आत्मसम्मान लेखक की दृष्टि में व्यक्ति का आत्मसम्मान सबसे बढ़कर है। आत्मसम्मान की रक्षा के लिए व्यक्ति को संघर्ष करना चाहिए।
(ii) समझौते की भावना लेखक की यह बात सही है कि जीवन में कई बार समझौता भी कर लेना चाहिए। निरंतर संघर्ष करने वाली व्यक्ति शीघ्र ही थक जाता है। समझौता कर लेना कायरता नहीं है, यह बुद्धिमानी है, जो जीवन में कई बार बड़े युद्ध जीतने में सहायता करती है।
(ग) हमारी दृष्टि में जनरल अउटरम और जनरल ‘हे’ में से जनरल ‘हे’ उचित व्यक्ति था, क्योंकि मैना को पहचानने के बाद उसने कहा था कि मैं जिस सरकार का नौकर हूँ, उसकी आज्ञा नहीं टाल सकता। फिर भी मैं तुम्हारी रक्षा का प्रयत्न करूंगा। दूसरी ओर जनरल अउटरम अत्यंत क्रूर था। उसने मैना की अंतिम इच्छा भी पूरी न होने दी तथा उसे आग में जलाकर मार डाला।
(घ) तिब्बत में सबसे खतरनाक स्थान डाँड़े है। यह सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई पर है। इसके आस-पास दूर-दूर तक कोई गाँव नहीं है। यह स्थान निर्जन है। पहाड़ और नदी के मोड़ पर स्थित होने के कारण डाकुओं के लिए यह स्थान सुरक्षित है। यहाँ न तो पुलिस की कोई व्यवस्था है और न ही कानून व्यवस्था। अतः यहाँ आसानी से हत्याएँ हो जाती हैं और किसी को कुछ पता भी नहीं चलता।
उत्तर 9.
(क) गोपी कृष्ण का पूरा स्वाँग रचने को तैयार हैं। वे अपने माथे पर मोर मुकुट, गले में गुंजों की माला, हाथों में लाठी, तन पर पीले वस्त्र धारण करके गाय चराने के लिए तैयार हैं।
(ख) गोपी अपने होंठों पर मुरली इसलिए धारण नहीं करना चाहतीं, क्योंकि कृष्ण सदैव मुरली बजाने में मग्न रहते हैं। गोपी के प्रेम की ओर ध्यान नहीं दे पाते। ये अपनी सौतन (बाँसुरी) से ईर्ष्या करती हैं।
(ग) प्रस्तुत काव्य-पंक्ति में यमक अलंकार है, क्योंकि मुरली बाँसुरी, मुरलीधर- कृष्ण- ‘मुरली की आवृत्ति से खंडपद यमक तथा अधरान-पर, अधरा + अधर में नहीं सभंगपद यमक अलंकार है’ खंडपद व सभंगपद यमक अलंकार के ही भेद हैं।
उत्तर 10.
(क) समाज की व्यवस्था और गरीबी के कारण बच्चों को बाल मजदूरी करनी पड़ती है। भारत में करोड़ों लोग पेटभर रोटी भी नहीं खा पाते हैं, इसलिए उनके बच्चों को भी बचपन से कामकाज करना पड़ता है, ताकि वे पैसे कमा सकें और पेट भरने के लिए दो समय की रोटी खा सकें। यह उनकी जन्मजात विवशता होती है।
(ख) कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने कोयल के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के कुशासन, उसकी नीयत, देश की चिंताजनक स्थिति, सरकार के प्रति अपना आक्रोश, जेलों तथा स्वतंत्रता सेनानियों की दुर्दशा, अपने मन के दुःख, असंतोष तथा निराशापूर्ण भाव को व्यक्त किया है।
(ग) कवि ने हरे चने के पौधे का वर्णन करते हुए बताया है कि छोटे कद का ठिगना-सा चना देखने में बहुत सुंदर लग रहा है। उसके सिर पर गुलाबी रंग के फूल की सुंदर पगड़ी बँधी हुई है, जिससे उसकी सुंदरता में चार चाँद लग गए हैं।
(घ) माँ के समय में यमराज की केवल एक ही दिशा दक्षिण थी, तब शेष अन्य दिशाएँ भी थीं, यहाँ कोई खतरा नहीं था। अब समय में परिवर्तन आ चुका है। अब सारी दिशाएँ दक्षिण हो चुकी हैं। आज शोषण और विनाश सब ओर व्याप्त है।
उत्तर 11.
माटी वाली घर-घर जाकर लाल मिट्टी बेचकर अपना और अपने बूढे बीमार पति का पेट भरती है। सुबह से लेकर शाम तक घरों में मिट्टी बेचने के कारण उसे खाना बनाने और खाने का भी समय नहीं मिल पाता है, इसलिए जब कोई गृहिणी उसे दो-तीन रोटी ख़ाने के लिए दे देती है, तो वह उस रोटी में से एक रोटी खाकर शेष को गृहिणी की दृष्टि से छिपाकर अपने बूढे और बीमार पति के लिए रख लेती है।
जब अनेक घरों से उसे रोटी मिल जाती है, तो वह हिसाब लगाकर सोचती है कि कितनी रोटी वह स्वयं खाएगी और कितनी अपने पति को खाने के लिए देगी। ‘माटी वाली’ द्वारा रोटियों का इस प्रकार से हिसाब लगाना उसकी इस विवशता को प्रकट करता है कि जी-तोड़ मेहनत करने के बाद भी उसके घर में भोजन का अभाव है। रोटियों का हिसाब लगाकर वह अपना पेट भरे बिना ही अपने पति के लिए रोटियों का प्रबंध करती है।
अथवा
प्रस्तुत एकांकी में उमा के पिता के सामने शर्त रखी गई थी कि उन्हें अधिक पढ़ी-लिखी लड़की नहीं चाहिए, केवल मैट्रिक पास ही होनी चाहिए। वे लड़कों की पढ़ाई की तो वकालत करते हैं, पर लड़कियों की नहीं। उनके अनुसार पढ़ने-लिखने का कार्य पुरुषों का होता है न कि महिलाओं का और उमा के पिता ने भी शर्त को मानते हुए उमा को कम पढ़ा-लिखा ही बताया अर्थात् लड़के वालों के समक्ष उमा की पढ़ाई-लिखाई को छिपा लिया गया। कहने का तात्पर्य यह है कि उन्होंने उमा को कम पढ़ी-लिखी बताकर घरेलू लड़की की संज्ञा प्रदान की, जबकि उमा एक पढ़ी-लिखी समझदार एवं स्वाभिमानी लड़की थी। उसे इस प्रकार के झूठ से घृणा थी, जो उसके घर वालों ने लड़के वालों से बोला। उसका मानना यह था कि लड़कियों को भी ऊँची शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए। यह आवश्यक नहीं कि पढ़ी-लिखी लड़की अच्छी गृहिणी सिद्ध नहीं हो सकती।
उत्तर 12.
(क) पर्वतीय प्रदेश की यात्रा
जीवन में मनोरंजन की आवश्यकता मनुष्य स्वभाव से मनोरंजन प्रिय होता है। एक स्थान पर एक जैसे वातावरण में रहते हुए वह नीरसता को अनुभव करने लगता है। इस नीरसता को दूर करने के लिए वह किसी सुंदर प्रदेश की यात्रा करना चाहता है। यात्री करने से मनोरंजन तो होता ही है, साथ-साथ अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। घर से बाहर जाने के कारण साहस, स्वावलंबन तथा सहिष्णुता की क्रियात्मक शिक्षा भी मिल जाती है। पारस्परिक सहयोग की भावना बढ़ती है। पर्वत यात्रा तो और भी अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, क्योंकि पर्वतों के दृश्य आनंद प्रदान करने वाले होते हैं। विभिन्न स्थानों की यात्रा से विभिन्न संस्कृतियों का ज्ञान भी होता है।
ग्रीष्मावकाश में कार्यक्रम ग्रीष्मावकाश में मेरा मित्र महेश अपने पिताजी के साथ शिमला जाने का कार्यक्रम बना रहा था। उसने मुझे भी अपने साथ चलने का आग्रह किया। मैं कभी शिमला नहीं गया था, इसलिए वहाँ जाने के लिए मैं भी उत्सुक था। मैंने जाने के लिए पिताजी की आज्ञा ली। हमने एक छोटी-सी गाड़ी से शिमला के लिए प्रस्थान किया।
पहाड़ी क्षेत्र का मनोहारी दृश्य गाड़ी जैसे-जैसे ऊपर शिमला की ओर चढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे वातावरण में ठंडक बढ़ती जा रही थी। सामने मनोहारी दृश्य दिखाई दे रहे थे। सूर्य अपनी किरणों से वातावरण को कुछ गर्म कर रहा था। गाड़ी पर्वतों पर गोलाकार में चल रही थी छोटे-छोटे गाँव तथा उनमें घोड़े, भेड़, बकरियाँ तथा मनुष्य ऊपर से ऐसे दिखाई पड़ते थे, जैसे सजे हुए खिलौने रखे हों। फूल व फलों से लदे वृक्षों से लिपटी हुई लताएँ सुशोभित हो रही थीं। विविध रंगों के पक्षी फुदक-फुदककर मधुर तान सुना रहे थे। पर्वतों के बीच में लंबी-लंबी सुरंगें बनी हुई थीं, जिनमें प्रविष्ट होने पर गाड़ी सीटी बजाती थी तथा गाड़ी में प्रकाश भी हो जाता था। इस प्रकार मनोरम दृश्यों को देखते हुए हम शिमला पहुँच गए।
रोचक अनुभव पहाड़ियों पर चढ़ते, नीचे उतरते तथा मार्ग में पानी के झरने देखकर हम बड़े प्रसन्न हो रहे थे। ऊपर बैठे हुए हम देख रहे थे कि नीचे बादल बरस रहे हैं। लोग भागकर घरों में घुस जाते। कहीं धूप, कहीं छाया| इस विचित्र मौसम को देखकर हम अपने को देवलोक में आया समझ रहे थे। हमने वहाँ (शिमला में) ‘जाखू मंदिर’ देखा। वहाँ बहुत सारे बंदर थे। हम उनके लिए चने ले गए थे। छुट्टी समाप्त हुई और हम घर वापस लौट आए। विभिन्न स्थानों की यात्रा करने से हमारा अनुभव बढ़ता है। कष्ट सहन करने तथा स्वावलंबी बनने का अवसर मिलता है। कुछ दिनों के लिए दैनिक कार्यचक्र से मुक्ति मिल जाती है, जिससे जीवन में आनंद की लहर दौड़ जाती है और व्यक्ति तनावमुक्त हो जाता है। यात्रा करने से विभिन्न जातियों व स्थानों के रीति-रिवाज़ों, भाषाओं आदि से हम परिचित हो जाते हैं। पहाड़ी (पर्वतीय) प्रदेश की यात्रा से एक रोचक अनुभव की प्राप्ति होती है।
उपसंहार शिमला की यह आनंदमयी यात्रा आज भी मेरे मानस पटल पर अंकित है। जब भी मैं इस यात्रा का स्मरण करता हूँ, तो मैं आनंद-विभोर हो उठता हूँ। सारे दृश्य इस प्रकार सामने आ जाते हैं, जैसे मैं साक्षात् आँखों से देख रहा हूँ। इस प्रकार के अवसर कभी-कभी मिलते हैं, जो जीवन की मधुर-सुखद स्मृति बन जाते हैं।
(ख) मनोरंजन के आधुनिक साधन
मनोरंजन से तात्पर्य मनोरंजन से तात्पर्य ‘मनोविनोद’ से है। वह साधन जिससे मन का बहलाव हो, हृदय हरा-भरा हो जाए तथा मनुष्य नए उत्साह के साथ पुनः कार्य करने में लग जाए, मनोरंजन का साधन कहलाता है। मनोरंजन के साधन की आवश्यकता मनुष्य को सृष्टि के आरंभ से ही रही है। जैसे-जैसे मनुष्य की सभ्यता का विकास होता गया, वैसे-वैसे उसके मनोरंजन के साधनों में भी परिवर्तन और परिष्करण होता गया।
मनोरंजन के साधन वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण मनोरंजन के साधनों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। मनोरंजन इंद्रियों की सुखानुभूति पर ही निर्भर होता है। अतः ऐसे कर्म जो आँख, कान, हाथ, मुँह आदि इंद्रियों के लिए आनंदमय होते हैं, वे मनोरंजन के सोधन होते हैं।
मनोरंजन के साधनों को हम दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं।
- शारीरिक मनोरंजन के साधन।
- मानसिक मनोरंजन के साधन।
शारीरिक मनोरंजन के साधन, वे साधन हैं जिनके लिए हाथ, पैर तथा शरीर के विभिन्न अवयवों का उपयोग करना पड़ता है। खेल शारीरिक मनोरंजन के साधनों का एक मुख्य अंग है। मानसिक मनोरंजन में मनुष्य को अपने मस्तिष्क का प्रयोग करना पड़ता है।
फुटबॉल, हॉकी, घुड़सवारी, घुड़दौड़, कबड्डी इत्यादि खुले मैदान में खेले जाने वाले खेल हैं। सर्कस का खेल, कुश्ती, तैराकी आदि खेल भी इन्हीं के अंतर्गत आते हैं। इन खेलों में एक ओर जहाँ खिलाड़ियों का स्वस्थ मनोरंजन होता है, तो दूसरी ओर दर्शकों का भी कम मनोरंजन नहीं होता। कमरे के अंदर बैठकर खेले जाने वाले खेलों में शतरंज, ताश, चौपड़ आदि प्रमुख हैं। यद्यपि कमरे में बैठकर खेले जाने वाले खेल मनुष्य का मनोरंजन तो करते हैं, किंतु ये मनुष्य को आलसी बना देते हैं।
मनोरंजन की आवश्यकता सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनोरंजन के साधनों की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है। जैसे-जैसे मनुष्य सभ्य और शिक्षित होता जाता है, वैसे-वैसे उसके मनोरंजन के साधनों में भी परिष्कार होता जाता है। अशिक्षित मज़दूरों की बस्तियों में मनोरंजन के साधनों के अभाव में ही मज़दूरों को शराब पीने के लिए विवश होना पड़ता है, जिससे वे बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं। यद्यपि मनोरंजन के साधनों के उपयोग से थकान दूर होती है। नए उत्साह का संचरण होता है, किंतु किसी वस्तु का अमर्यादित उपयोग अहितकर भी होने लगता है। मनोरंजन के साधनों का उपयोग समय पर मस्तिष्क की थकान के बाद ही करना उपयोगी होता है।
आधुनिक साधनों की उपयोगिता रेडियो, टेलीविजन या सिनेमा का बराबर प्रयोग व्यक्ति को आलसी और अनेक दुर्गुणों का अभ्यस्त बना देता है। आज सिनेमा व्यक्ति के मनोरंजन का विशेष महत्त्वपूर्ण साधन होते हुए भी समाज के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है। छात्र विद्यालय की कक्षाओं को छोड़कर सिनेमा देखने निकल जाते हैं।
उपसंहार इस प्रकार मनोरंजन की सबसे बड़ी विशेषता यह होनी चाहिए कि वे सस्ते और सर्वसुलभ हों। उनमें स्वस्थ मनोरंजन हो तथा ज्ञान वृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी हों। मनोरंजन के साधनों में शारीरिक और आध्यात्मिक विकास की पूर्ण क्षमता हो। मनोरंजन के साधने आधुनिक युग के अनुकूल, उपयोगी और वैज्ञानिक हों।
(ग) निरक्षरताः एक अभिशाप
प्रस्तावना सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि निरक्षरता क्या होती है और निरक्षर कौन है? संयुक्त राष्ट्र संघ की कल्याणकारी संस्था यूनिसेफ के अनुसार, वह व्यक्ति जिसकी आयु सात वर्ष या इससे अधिक है तथा किसी भी भाषा में लिखने-पढ़ने में समर्थ तथा सक्षम है, साक्षर कहलाता है। इस योग्यता पर खरा न उतरने वाला व्यक्ति निरक्षर कहलाता है। भारत सरकार ने भी इसी परिभाषा को मान्यता प्रदान की है। इस प्रकार, लिखने और पढ़ने की योग्यता का न होना ही निरक्षरता कहलाता है।
निरक्षरता से हानि पढ़ाई-लिखाई का ज्ञान सचमुच मनुष्य के लिए एक महावरदान है। ‘काला अक्षर मैंस बराबर’ की कहावत चरितार्थ करने वाले व्यक्ति इस महावरदान का लाभ ही नहीं उठा पाते। जीवन तो सभी जीव जीते हैं, लेकिन फिर भी उसमें और मनुष्य में बहुत अंतर है। इस अंतर का कारण है-शिक्षा| मनुष्य ने शिक्षा द्वारा अपने बौद्धिक-स्तर को इतना ऊँचा उठा लिया है कि वह समस्त जीवों पर शासन करने लगा है। शिक्षा और शिक्षा पर आधारित ज्ञान के कारण ही वह सभी प्राणियों में विशिष्ट है। पशु से मनुष्य बनने के लिए शिक्षा अत्यंत अनिवार्य है।
“साहित्य-संगीत-कलाविहीनः,
साक्षात् पशु-पुच्छ-विषाणहीनः”
अर्थात् एक निरक्षर व्यक्ति और पशु में कोई अंतर नहीं रह जाता। वह पश समान माना जाता है। वह ज्ञान रूपी मोती की चमक कभी अनुभव नहीं कर पाता। जो व्यक्ति पढ़-लिख नहीं सकता, वह पुस्तकों में संचित ज्ञान से वंचित रह जाता है। निरक्षर व्यक्ति शिक्षा से दूर ही रहता है, फलस्वरूप उसके व्यक्तित्व एवं मानसिकता का उचित विकास नहीं हो पाता। निरक्षरता के कारण न केवल वैयक्तिक हानि उठानी पड़ती है, बल्कि राष्ट्र को भी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। निरक्षर व्यक्ति राष्ट्र के लिए भार स्वरूप होता है। निरक्षर व्यक्ति की आत्मा अज्ञान के अंधकार में भटकती रहती है। वह अपने पारिवारिक और राष्ट्रीय कर्तव्यों के प्रति उदासीन रहता है।
निरक्षरता के कारण वर्तमान में हमारे देश की साक्षरता दर 74.04% (2011 की जनगणना के अनुसार) है, जो विश्व साक्षरता दर से लगभग 10% कम है। स्पष्ट है कि हमारे यहाँ निरक्षर व्यक्तियों की भीड़ पूरे विश्व की तुलना में अधिक है। प्राचीन समय में हमारे यहाँ समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने गुण और कर्मों के अनुसार उचित शिक्षा प्राप्त करता था। भारत को जगद्गुरु का सम्मान प्राप्त था, परंतु दासता ने हमारी जड़ों को हिला दिया, विशेषकर अंग्रेज़ों की दासता ने हमारे मानसिक विकास को अवरुद्ध कर दिया। इसी का परिणाम है कि स्वतंत्रता के अनेक वर्षों बाद भी हमारी जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग न केवल शिक्षा की पहुँच से बाहर है, बल्कि शिक्षा के प्रति बहुत उदासीन भी है।
निरक्षरता दूर करने के उपाय तथा उपसंहार निरक्षरता एक अभिशाप है, एक पिछड़ेपन की खुली घोषणा है। अतः इसका उन्मूलंन अति आवश्यक है। इसके लिए सरकारी और गैर सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना होगा। लोगों को इस विषय में जागरूक बनाना होगा और शिक्षा के प्रति उनकी उदासीनता के कारणों को जड़ से मिटाना होगा। ‘शिक्षा का अधिकार’ इस दिशा में एक सराहनीय प्रयास है। इसके लिए सभी देशवासियों को मिल-जुलकर शिक्षा के प्रयासों को सार्थकता प्रदान करनी होगी, तभी हम ‘निरक्षरता के अभिशाप से मुक्त हो पाएँगे।
उत्तर 13.
परीक्षा भवन,
गौतमबुद्ध नगर।
दिनांक 27 अप्रैल, 20××
सेवा में,
जिलाधिकारी,
नोएडा, गौतमबुद्ध नगर।
विषय अनाधिकृत निर्माण के संदर्भ में।
महोदय,
मैं आपका ध्यान गौतमबुद्ध नगर में हो रहे अनाधिकृत निर्माण की ओर दिलाना चाहता हूँ। यहाँ नगर निगम का एक अविकसित पार्क है। इसमें लोगों ने अपनी डेरियाँ खोल रखी हैं। ये डेरियाँ अवैध रूप से बसी हुई हैं। अब तो डेरी मालिकों ने उसमें अपने पक्के मकान बना लिए हैं।
महोदय, यह स्थान पार्क के लिए छोड़ा गया है। इस दृष्टि से देखें, तो इस पर सभी नागरिकों का समान अधिकार है। आपसे निवेदन है कि आप इस निर्माण को हटवाएँ तथा जनता के लिए सुंदर पार्क का निर्माण करवाएँ।
आशा है, आप इस ओर ध्यान देंगे।
सधन्यवाद!
भवदीय
आदित्य विक्रम
नोएडा, गौतमबुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश।
अथवा
24 B, लखनऊ
दिनांक 27 जुलाई, 20××
प्रिय सुधीर,
असीम स्नेह!
मैं यहाँ ठीक हूँ और आशा करता हूँ कि तुम भी छात्रावास में सकुशल होंगे। पिछले दिनों तुम्हारा पत्र मिला। पत्र पढ़कर अत्यंत प्रसन्नता हुई कि तुम छात्रावास के वातावरण में पूरी तरह घुल-मिल गए हो तथा तुम्हारे अनेक मित्र भी बन गए हैं। छात्रावास के व्यवस्थित जीवन से लाभ उठाकर छात्र अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
पत्र में तुमने एक मोबाइल फ़ोन की माँग की है, जो मेरी दृष्टि में अभी अनावश्यक है, क्योंकि इससे समय की व्यर्थता के अतिरिक्त कुछ और लाभ नहीं है। तुम्हें तो समय का सदुपयोग करना है। तुम्हें अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए छात्रावास भेजा गया है। इसके अतिरिक्त, मोबाइल फ़ोन से निकलने वाली विकिरण हानिकारक होती हैं।
आशा है कि तुम मोबाइल फ़ोन की माँग छोड़कर अपना मन पढ़ाई में पूरी एकाग्रता से लगाओगे। छुट्टियों में घर आने पर और बातें होंगी।
तुम्हारा भाई
अर्जुन
उत्तर 14.
अनुराग हैलो मधुप, बधाई हो!
मधुप धन्यवाद!
अनुराग पूरे बोर्ड में प्रथम आकर तुमने कमाल कर दिया! बहुत-बहुत बधाई!
मधुप धन्यवाद अनुराग! मुझे सचमुच स्वयं विश्वास नहीं हो रहा।
अनुराग परंतु मुझे खुशी है कि मेरा विश्वास आज सच हो गया। मैं कहा करता था न कि एक-न-एक दिन तू कोई-न-कोई प्रशंसनीय कार्य अवश्य करेगा।
मधुप बस, यह तुम जैसे दोस्तों और भला चाहने वालों की कामनाएँ हैं, अन्यथा मैं किस योग्य हूँ!
अनुराग यही! यही तुममें जो विनम्रता का भाव है, मैं इससे प्रभावित हूँ। अरे, यह तो बताओ कि मिठाई कब खिलाओगे?
मधुप जब तुम्हारे पास समय हो। अभी चलो।
अनुराग हाँ, चलो।
अथवा
नेता जी नमस्ते, प्रधान जी! हम आपके पास आपकी सहयोग माँगने आए हैं।
प्रधान नमस्ते, नेता जी! हमारे धन्य भाग्य जो आपके दर्शन हुए।
नेता जी मैं तो कई बार आपके गाँव आया हूँ, लेकिन आप ही नहीं मिलते।
प्रधान नेता जी, आप झूठ मत बोलिए। मैं तो गाँव का प्रधान हूँ, गाँव से बाहर कहाँ जाऊँगा? मेरा सारा समय गाँव में ही व्यतीत होता है। आप, कभी आए ही नहीं गाँव। आपको तो किसी गाँव वाले ने भी नहीं देखा गाँव में।
नेता जी आप मुझे शर्मिंदा मत कीजिए।
प्रधान नेता जी! हमारे देश के नेताओं ने शर्म बेच दी है।
नेता जी देखिए! आप बिलकुल चिंता मत कीजिए। इस बार मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं आपके गाँव की सारी शिकायतें दूर करूंगा।
प्रधान नेता जी, धन्यवाद! आपको जितना कार्य करना था वो कर लिया, अब हमें आपसे न कोई शिकायत है और न ही हमारी कोई माँग है। अब हमने चुनाव का बहिष्कार करने का निश्चय किया है।
नेता जी प्रजातंत्र में ऐसा करना उचित नहीं।
प्रधान हमारे नेता लोग जो करते हैं वो प्रजातंत्र में उचित है क्या? नमस्ते, नेता जी। हमारा निर्णय अटल है। कृपया आप यहाँ से चले जाएँ।
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