CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 3

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CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 3

BoardCBSE
ClassXII
SubjectHindi
Sample Paper SetPaper 3
CategoryCBSE Sample Papers

Students who are going to appear for CBSE Class 12 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme as prescribed by the CBSE is given here. Paper 3 of Solved CBSE Sample Paper for Class 12 Hindi is given below with free PDF download solutions.

समय :3 घंटे
पूर्णांक : 100

सामान्य निर्देश

  • इस प्रश्न-पत्र के तीन खंड हैं-क, ख और ग।
  • तीनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
  • यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (15)

सुभी धर्म हमें एक ही ईश्वर तक पहुँचाने के साधन हैं। अलग-अलग रास्तों पर चलकर भी हम एक ही स्थान पर पहुँचते हैं। इसमें किसी को दुखी नहीं होना चाहिए। हमें सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखना चाहिए। दूसरे धर्मों के प्रति समभाव रखने में धुर्म का क्षेत्र व्यापक बनता है। हमारी धर्म के प्रति अंधुता मिटती है। इससे हमारा प्रेम अधिक ज्ञानुमय एवं पवित्र बुनता है। यह बात लगभुग असंभव है कि इस पृथ्वी पर कभी भी एक धुर्म रहा होगा या हो सकेगा। हमें ऐसे धुर्म की आवश्यकता है जो विविध धुर्मों में ऐसे तृत्त्व को खोजे, जो विविध धर्मों के अनुयायियों के मध्य सहनशीलता की भावना को विकसित कर सके।

हमें संसार के धुर्मग्रंथों को पढ़ना चाहिए। हमें दूसरे धर्मों का वैसा ही आदर करना चाहिए जैसा हम दूसरों से अपने धर्म का कराना चाहते हैं। सत्य के अनेक रूप होते हैं। यह सिद्धांत हमें दूसरे धर्मों को भूली-प्रकार समझने में मदद करता है। सात अंधों के उदाहरण में सभी अंधे व्यक्तुि हाथी का वर्णन अपने-अपने ढंग से करते हैं। जिस अंधे को हाथी का जो अंग हाथ आया, उसके अनुसार हाथी वैसा ही था। जब तक अलग-अलग धर्म मौजूद हैं, तब तक उनकी पृथक् पहचान के लिए बाहरी चिन्ह की आवश्यकता होती है, लेकिन ये चिन्ह जुबु आडंबर बन जाते हैं और अपने धर्म को दूसरे से अलग बताने का काम करने लगते हैं, तब त्यागने के योग्य हो जाते हैं। धर्मों का उद्देश्य तो यह होना चाहिए कि वह अपने अनुयायियों को अच्छा इंसान बनाए। ईश्वर से यह प्रार्थना करनी चाहिए-“तू सभी को वह प्रकाश प्रदान कर, जिसकी उन्हें अपने सर्वोच्च विकास के लिए आवश्यकता है।”

ईश्वर एक ऐसी रहस्यमयी शक्ति है, जो सर्वत्र व्याप्त है। उस शक्ति का अनुभव तो किया जा सकता है, पर देखा नहीं जा सकता। हमारे चारों ओर हो रहे परिवर्तनों के पीछे कोई शक्ति अवश्य है, जो बदलती नहीं। वह शक्तुि नया निर्माण एवं संहार करती रहती है। यह क्रम निरंतर चलता रहता है। यह जीवन देने वाली शक्ति ही ‘पुरमात्मा’ है। उसी का अस्तित्व अंतिम है। मृत्यु के बीच जीवन कायम रहता है, असत्य के बीच सुत्यु टिका रहता है और अंधकार के मध्य प्रकाश स्थिर रहता है। इससे पता चलता है कि ईश्वर जीवन है, सत्य है और प्रकाश है। वह परम कल्याणकारी है।

(क) उपरोक्त गद्यांश के लिए शीर्षक लिखिए।
(ख) हमें सभी धर्मों के प्रति कैसा भाव रखना चाहिए और क्यों?
(ग) हमें कैसे धर्म की आवश्यकता है?
(घ) सत्य के अनेक रूप होते हैं-यह सिद्धांत हमारे लिए क्यों आवश्यक हैं तथा इस सिद्धांत को समझाने के लिए लेखक ने क्या उदाहरण दिया हैं?
(ङ) धर्म के बाहरी चिन्हों की आवश्यकता कब होती है? ये त्यागने योग्य कब बन जाते हैं?
(च) धर्मों का उद्देश्य क्या होना चाहिए?
(छ) ईश्वर कैसी शक्ति है? हमें उससे क्या प्रार्थना करनी चाहिए?
(ज) ईश्वर जीवन है, सत्य और प्रकाश है-कैसे?

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (1 × 5 = 5)

कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी।
अभी इतनी भोली सुरल थी।
की तरह कि उसे सुख का आभास तो होता था।
लेकिन दुख बांचना नहीं आता था
पाठिका थी वृह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

मां ने कहा, पानी में झांककर
अपने चेहरे पर मृत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जुलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों
बंधन है स्त्री-जीवन के
मां ने कहा, लड़की होना।
पर लड़की जैसा दिखाई मृत देना।

(क) उपरोक्त कविता में कौन, किसको शिक्षा दे रही है?
(ख) लड़की के कन्यादान के अवसर पर मां को क्या अनुभूति हो रही थी?
(ग) मां ने चेहरे के बारे में क्या समझाया?
(घ) स्त्री-जीवन में वस्त्र और आभूषणों का क्या महत्त्व है?
(ङ) अंत में मां ने लड़की को क्या कहा और क्यों?

प्रश्न 3.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर निबंध लिखिए (5)

(क) महानगरीय जीवन
(ख) तकनीकी शिक्षा
(ग) बाढ़ की समस्या
(घ) भारतीय रेल

प्रश्न 4.
भारतीय स्टेट बैंक की अनेक शाखाओं को कुछ कार्यालय सहायकों की आवश्यकता है, आप एक योग्य उम्मीदवार हैं। बैंक के क्षेत्रीय प्रबंधक को अपनी उम्मीदवारी पेश करते हुए आवेदन-पत्र लिखिए। (5)
अथवा
चुनाव में अंधाधुंध खर्च होने वाले पैसे पर नियंत्रण लगाने का निवेदन करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त, निर्वाचन आयोग दिल्ली को पत्र लिखिए।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर अभिव्यक्ति और माध्यम के आधार पर लिखिए (1 × 5= 5)

(क) समूह संचार किसे कहते हैं?
(ख) खोजपरक पत्रकारिता किसे कहते हैं?
(ग) बीट क्या है?
(घ) पीत पत्रकारिता किसे कहते हैं?
(ड) रेडियो की भाषा कैसी होनी चाहिए?

प्रश्न 6.
‘महँगाई की समस्या’ अथवा ‘गाँव में दूषित पानी की समस्या के विषय पर एक फ़ीचर तैयार कीजिए। (5)

प्रश्न 7.
‘जन-धन योजना’ अथवा ‘गाँवों से पलायन’ विषय पर आलेख लिखिए। (5)

प्रश्न 8.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)

फिर फिर
बार बार गर्जन
वृर्षण है मूसलाधार
हृदये थाम लेता संसार
सुन-सुन घोर वज्र हुंकार
अशनि पात से शापितु उन्नत शत शत वीर
क्षत विक्षत हत अंचल शरीर
गुगन स्पर्शी स्पर्धा धीर

हंसते है छोटे पौधे लघुभार
शस्य अपार
हिल हिल
खिल खिल
हाथ हिलाते
तुझे बुलाते
विप्लव रव ने छोटे ही है शोभा पाते।

(क) सर्वहारा वर्ग किस प्रकार अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं?
(ख) मूसलाधार वर्षा किसका प्रतीक है? इससे आम लोगों के जीवन में किस प्रकार का परिवर्तन आएगा?
(ग) ‘अशनि पात से शापित उन्नत शत शत वीर’ पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है और क्यों?
(घ) विप्लव रव से आप क्या समझते हैं? छोटे कौन हैं और वे किस प्रकार शोभा पाते हैं?

अथवा

हो जाए न पृथ में रात कहीं
मंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

बच्चे प्रत्याशा में होंगे।
नीड़ों से झांक रहे होंगे।
यह ध्यान पुरों में चिड़ियों के भुरता कितना चंचलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

(क) पंथी क्या सोच रहा है और क्यों?
(ख) बच्चे नीड़ों से क्यों झांकते होंगे?
(ग) कवि को किस बात की चिंता है और क्यों?
(घ) चिड़िया चंचल क्यों हो रही है?

प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए (2 × 3 = 6)

सबसे तेज़ बौछारें गई भादों गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए

अपनी नई चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए जोर-जोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए।
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को

(क) शरद ऋतु के आने के चित्र की सुंदरता स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) काव्यांश में प्रयुक्त बिंब का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

अथवा

बहुत काली सिलु जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मुल दी हो किसी ने

नील जुल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो

(क) उत्प्रेक्षा अलंकार के दो उदाहरण चुनकर लिखिए।
(ख) कविता के भाषिक सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
(ग) काव्यांश का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए (3 × 2 = 6)

(क) ‘रोपाई क्षण की, कटाई अनंतता की’, पंक्ति के भाव को कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
(ख) ‘परदे पर वक्त की कीमत है’ कहकर कविता ने संवेदनहीन व्यवस्था को किस प्रकार स्पष्ट किया है?
(ग) कविता और बच्चे को कविता के बहाने कविता में समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?

प्रश्न 11.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए। (2 × 4 = 8)

यह विडंबना की बात है कि इस युग में भी जातिवाद के पोषकों की कमी नहीं है। इसके पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। समर्थन का एक आधार यह कहा जाता है कि आधुनिक सभ्य समाज कार्य कुशलता के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है और चूंकि जाति प्रथा भी श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है, इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है। इस तर्क के संबंध में पहली बात तो यही आपत्तिजनक है कि जाति प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन को भी रूप लिए हुए है। श्रम विभाजून निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है, पुरंतु किसी भी सभ्य समाज में श्रम विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती। भारत की जाति प्रथा की एक और विशेषता यह है कि यह श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं कुरती, बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है, जोकि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता।

(क) लेखक किस बात को विडंबना मानता है और क्यों?
(ख) भारत की जाति प्रथा विश्व से अलग कैसे है?
(ग) जातिवाद का समर्थन किन आधारों पर किया जाता है?
(घ) लेखक जातिवाद को आपत्तिजनक क्यों मानता है?

अथवा

पिता का उससे अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावतः ईर्ष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मुरणांतूक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए। हाय, लछिमन अब आई, की अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण दृष्टियाँ उसे घर तक ठेल ले गईं। पर वहाँ न पिता का चिन्ह शेष था, न विमाता के व्यवहार में शिष्टाचार का लेश था।

(क) भक्तिन को पिता की मृत्यु का समाचार देर से क्यों मिला?
(ख) सास द्वारा भक्तिन को विदा करने को अप्रत्याशित अनुग्रह क्यों कहा गया है?
(ग) पंख लगाने और झड़ने के भाव को स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘हाय लछिमन अब आई’ में निहित करुणा व सहानुभूति को स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर लिखिए (3 × 4 = 12)

(क) पर्चेजिंग पावर से आप क्या समझते हैं? बाज़ार की चकाचौंध से दूर पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है?
(ख) विभाजन के अनेक स्वरूपों में बटी जनता को मिलाने की अनेक भूमिकाएँ हो सकती हैं-रक्त संबंध, विज्ञान, साहित्य व कला। इनमें कौन सबसे ताकतवर है और क्यों?
(ग) लुट्टन सिंह पहलवान की कीर्ति दूर-दूर तक कैसे फैल गई?
(घ) जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया?
(ङ) लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत की तरह क्यों माना है?

प्रश्न 13.
ऐन की डायरी एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ होने के साथ-साथ भावनाओं की उथल पुथल की अभिव्यक्ति भी है-कैसे? (5)

प्रश्न 14.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए (2 × 5 = 10)

(क) जूझ का कथानायक किशोर विद्यार्थियों के लिए आदर्श प्रेरणास्त्रोत है-कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
(ख) यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशन दा की क्या भूमिका रही?
(ग) सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य बोध है जो राज पोषित या धर्म पोषित न होकर समाज पोषित था-कैसे?

उत्तर

उत्तर 1.
(क) उपरोक्त गद्यांश का शीर्षक है- ‘धर्म, ईश्वर और सत्य’। संपूर्ण गद्यांश में आरंभ से अंत तक धर्म, ईश्वर और सत्य के विषय में ही चर्चा की गई है। अतः यह शीर्षक सर्वाधिक उचित है।

(ख) हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए, क्योंकि इससे धर्म का क्षेत्र व्यापक बनता है। हमारी धर्म के प्रति अंधता मिटती है। इससे हमारा प्रेम अधिक ज्ञानमय एवं पवित्र बनता है।

(ग) हमें ऐसे धर्म की आवश्यकता है, जो विविध धर्मों के अनुयायियों के मध्य सहनशीलता की भावना को विकसित कर सके।

(घ) सत्य के अनेक रूप होते हैं-यह सिद्धांत हमारे लिए इसलिए आवश्यक है, क्योंकि इस सिद्धांत को स्वीकार कर लेने से अन्य धर्मों को भली-प्रकार से समझा जा सकता है। इस सिद्धांत को समझाने के लिए लेखक ने सात अंधे व्यक्तियों और हाथी का उदाहरण दिया है।

(ङ) धर्म के बाहरी चिन्हों की आवश्यकती तब होती है, जब अलग-अलग धर्म मौजूद हो तथा उनकी अलग पहचान करनी हो। जब ये चिन्ह आडंबर बन जाते हैं और अपने धर्म को दूसरे से अलग बताने का काम करते हैं, तब ये त्यागने योग्य हो जाते हैं।

(च) धर्मों का उद्देश्य बाहरी आडंबरों के माध्यम से अपने धर्म को दूसरे धर्म से अलग बताने का काम करना नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह अपने अनुयायियों को अच्छा इंसान बनाए।

(छ) ईश्वर एक रहस्यमयी शक्ति है, जो सभी जगह समाई हुई है। इस शक्ति का अनुभव तो किया जा सकता है, परंतु इसे देखा नहीं जा सकता। हमें ईश्वर से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि-‘”हे ईश्वर! तू सभी को वह प्रकाश प्रदान कर, जिसकी उन्हें अपने सर्वोच्च विकास के लिए आवश्यकता है।”

(ज) ईश्वर जीवन देने वाली शक्ति है। जिस प्रकार मृत्यु के बीच जीवन कायम रहता है, असत्य के बीच सत्य टिका रहता है, ठीक उसी प्रकार अंधकार के बीच प्रकाश स्थिर रहता है। अतः कह सकते हैं कि ईश्वर जीवन, सत्य और प्रकाश है।

उत्तर 2.

(क) उपरोक्त कविता में एक माँ अपनी बेटी का कन्यादान करते समय उसे शिक्षा दे रही है।
(ख) लड़की के कन्यादान के अवसर पर माँ को यह अनुभूति हो रही थी कि अभी उसकी बेटी सयानी नहीं हुई है, वह अभी बहुत भोली है।
(ग) माँ ने चेहरे के बारे में समझाया कि पानी में अपने चेहरे को देखकर उस पर कभी मत रीझना अर्थात् अपनी सुंदरता पर कभी घमंड मत करना।
(घ) स्त्री-जीवन में वस्त्र और आभूषणों का महत्त्व केवल इतना है कि ये शाब्दिक भ्रमों की तरह स्त्री-जीवन के बंधन हैं।
(ङ) अंत में माँ ने लड़की को कहा, कि लड़की होनी पर लड़की जैसी दिखाई मत देना अर्थात् जीवन की विपरीत परिस्थितियों में कभी कमज़ोर मत पड़ना।

उत्तर 3.

(क) महानगरीय जीवन

किसी भी देश की सभ्यता, संस्कृति और विकास में नगरों एवं महानगरों का अपना महत्त्व होता है। भारत का विकास ग्रामीण विकास के साथ-साथ नगरों के विकास एवं महानगरीय क्षेत्रों के विकास से जुड़ा है। सामान्यतः लोगों का ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की ओर पलायन ही नगरीकरण कहलाता है। महानगरों में लोग सामान्यतया गैर-कृषि कार्यों में लगे होते हैं; जैसे-निर्माण, वाणिज्य, व्यापार, नौकरी एवं विभिन्न पेशों में। नगरीय समुदाय आकार में बड़े होते हैं। यहाँ जनसंख्या घनत्व अधिक (1,000 व्यक्ति प्रतिवर्ग मील से भी अधिक) होता है। शहरी क्षेत्रों में लोग मानव-निर्मित वातावरण से घिरे एवं प्रकृति से कटे होते हैं। नगरीय समुदाय अधिक विषम एवं वर्ग के आधार पर स्तरीकृत होता है। नगरीय क्षेत्रों की गतिशीलता ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक होती है। शहरी क्षेत्रों में लोगों के बीच के संबंध अवैयक्तिक, आकस्मिक, संविदात्मक एवं अल्पकालिक होते हैं।

नगरों में गाँवों की अपेक्षा स्त्रियों की स्थिति अच्छी होती है। शिक्षित होने के कारण नगरों की स्त्रियाँ न केवल अपने आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूक रहती हैं, बल्कि अपमान एवं शोषण से बचने के लिए वे इन अधिकारों का प्रयोग भी करती हैं। नगरीय क्षेत्रों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार से विवाह की आयु में वृद्धि तथा जन्म दर में कमी हुई है, लेकिन इससे दहेज के साथ परंपरागत विवाह के स्वरूप में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं हुआ है। शहरी स्त्रियाँ नए अवसरों के साथ-साथ सुरक्षा चाहती हैं।

नगरीकरण सामाजिक गतिशीलता के लिए अधिक अवसर प्रदान करता है। आज के युग में व्यक्ति की व्यावसायिक प्रतिष्ठा अधिकतर उसकी शिक्षा पर निर्भर करती है। जितनी ऊँची शिक्षा, उतनी ही ऊँची व्यावसायिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने की संभावना बनती है, क्योंकि नगरीय समुदाय अच्छे शैक्षिक अवसर प्रदान करते हैं, इसलिए यहाँ प्रस्थिति और गतिशीलता के अवसर भी अधिक होते हैं।

नगरीकरण के साथ अनेक समस्याएँ भी जुड़ी हुई हैं। नगरों में रहने के लिए पर्याप्त मकाने का न मिलना एक गंभीर समस्या है। गरीब एवं मध्यम वर्ग के लोगों की मकान की ज़रूरतों से तालमेल करने में सरकार, उद्योगपति, पूँजीपति, उद्यमी, ठेकेदार और मकान मालिक असमर्थ रहे हैं। भारत के बड़े-से-बड़े नगरों की एक-चौथाई आबादी झोंपड़-पट्टियों में रहती है। लाखों लोगों को अत्यधिक किराया देना पड़ता है। भारत के नगरों में परिवहन एवं यातायात की तस्वीर असंतोषजनक है। कारों, मोटरसाइकिलों आदि की बढ़ती संख्या ने यातायात की समस्या को और अधिक भीषण बना दिया है। भीड़ और लोगों की उदासीनता संबंधी समस्या शहरी जीवन की उपज है।

वर्तमान समय में असमान रूप से विकसित होते नगरों के कारण देश में प्रदूषण आदि की समस्या और घर से कार्यस्थल तक उचित एवं सस्ती परिवहन सुविधा, अच्छे मकान, स्वच्छ वायु-पानी की उपलब्धता का अभाव आदि के समाधान के लिए सिर्फ राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों पर निर्भर न रहकर स्थानीय निवासियों को भी अपनी बस्तियों के पुनरूद्धार के लिए प्रभावशाली ढंग से सक्रिय होना होगा।

(ख) तकनीकी शिक्षा

विज्ञान और प्रौद्योगिकी (तकनीक) आधुनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इसने मानव सभ्यता को गहराई में जाकर प्रभावित किया है। आधुनिक जीवन में तकनीकी उन्नति ने पूरे संसार में हमें बहुत अधिक उल्लेखनीय अंतर्दृष्टि दी है। किसी भी क्षेत्र में तकनीकी विकास किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाता है। शिक्षा के क्षेत्र में वैज्ञानिक शोध, विचारों और तकनीकों का परिचय नई पीढ़ी में बड़े स्तर पर सकारात्मक परिवर्तन लाया है और उन्हें अपने स्वयं के हित में काम करने के लिए नए अभिनव के अवसरों की विविधता प्रदान की है। प्रौद्योगिकी के अध्ययन को प्रौद्योगिकी (तकनीकी) शिक्षा कहते हैं। इसमें विद्यार्थी प्रौद्योगिकी से संबंधित प्रक्रमों का अध्ययन करते हैं। तथा प्रौद्योगिकी का ज्ञान प्राप्त करते हैं। तकनीकी शिक्षा का संबंध केवल हार्डवेयर (मशीन) अभियांत्रिकी से नहीं है, वरन शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु, शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु, अनुदेशन को संकलित करने हेतु एवं शिक्षण के प्रभाव का मूल्यांकन करने हेतु आधुनिकतम तकनीकी के प्रयोग से है।

तकनीकी शिक्षा को लेकर भारत में हमेशा एक असमंजस्य का माहौल रहा है। देश में तकनीकी शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत अभियांत्रिक (इंजीनियरिंग), प्रौद्योगिक, प्रबंधन, वास्तुकला (आर्किटेक्चर), फार्मेसी, नगर नियोजन, होटल मैनेजमेंट, शिल्प, अनुप्रयुक्त कला एवं शिल्प इत्यादि आते हैं। भारत में तकनीकी शिक्षा संपूर्ण शिक्षा तंत्र को एक महत्त्वपूर्ण भाग प्रदान करती है। यह हमारे देश में आर्थिक एवं सामाजिक विकास में सक्रिय भूमिका का निर्वहन करती है। भारत में तकनीकी शिक्षा कई भागों में डिप्लोमा, डिग्री, मास्टर डिग्री एवं क्षेत्र विशेष में शोध, आर्थिक वृद्धि व तकनीकी विकास के विभिन्न पहलुओं को प्रबंधन आदि में विभक्त है। भारत में तकनीकी शिक्षा का विकास हाल के वर्षों में बहुत तेज़ी से हुआ है। इसके बावजूद देश के प्रौद्योगिकी संस्थान अपने क्षेत्र में सबसे अच्छे बने हुए हैं, लेकिन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान विश्वस्तरीय संस्थान बनने से अब भी काफी दूर हैं। वर्तमान युग को तकनीकी युग कहा जाता है। जैसे-जैसे शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति होती गई, शिक्षा को अधिकाधिक वैज्ञानिक आधार देने की आवश्यकता अनुभव होने लगी, क्योंकि प्रत्येक तकनीकी विकास का आधार शिक्षा ही है।

तकनीकी शिक्षा समय की आवश्यकता है। यह रोज़गारपरक शिक्षा है। तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वाले युवकों के समक्ष रोज़गार के सभी अवसर प्रदान होते हैं। लड़कों के साथ-साथ लड़कियों में भी तकनीकी शिक्षा के प्रति रूचि अधिक बढ़ रही है। अभिभावकों को भी चाहिए कि वे अपने बच्चों का रूझान इस शिक्षा की ओर और अधिक बढ़ाने का प्रयास करें। वर्तमान समय में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। इंजीनियरिंग संस्थानों के प्रबंधन में केवल विषय के पाठ्यक्रम तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि ऐसे उपाय करने चाहिए, जिससे छात्र पढ़ाई में मन लगीकर सम्मिलित हो सकें। अगर ऐसा संभव हो पाया, तो फिर छात्रों को कंपनी में नौकरी पाने में काफी आसानी होगी और इंजीनियरिंग कॉलेज सही अर्थ में छात्रों के साथ उचित न्याय कर सकेंगे, तभी तकनीकी शिक्षा सही मायनों में उचित शिक्षा होगी।

(ग) बाढ़ की समस्या

प्राचीन समय में महान् साधु-संत प्रकृति का उदाहरण देकर नैतिकता की शिक्षा देते थे।

“वृक्ष कबहुँ नहिं फल भूखे, नदी न संचै नीर,
परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर।”

जब कई बार बालक माँ के कहे निर्देशों के अनुसार नहीं चलता, तो विवश होकर माता को कठोर बनना पड़ता है। इसी प्रकार प्रकृतिरूपी माँ को भी नियमों का उल्लंघन करने का दंड मानव समाज को देना पड़ता है, जो कई रूपों में सामने आता है। बाढ़ उनमें से एक है।

जब वर्षा भारी वेग से होती है, तो जल स्तर बढ़ने लगता है और नदियाँ, नाले, तालाब आदि जलमग्न हो जाते हैं। इसका कारण लोगों द्वारा अपने आस-पास के नालों का कूड़ा साफ न कराना, पॉलीथीन की थैलियों का नालियों में एकत्र हो जाना आदि हैं। इससे वे पानी से भर जाते हैं। यही पानी सड़कों पर एकत्र होकर घरों के भीतर जाने लगता है। इसी प्रकार वृक्षों का तेज़ी से कटाव होने के कारण मिट्टी अपना स्थान छोड़ देती है और वर्षा के पानी के साथ बहकर बाढ़ बन जाती है।

बाढ़ में चारों ओर तबाही का दृश्य दिखाई देता है। लोगों के घर, घर का सामान, संपत्ति सब कुछ बाढ़ में या तो बह जाते हैं या नष्ट हो जाते हैं। बाढ़ के कारण मनुष्यों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है। जैसा कि वर्ष 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ और जोशीमठ में हुआ था। इस समय सरकारी, गैर-सरकारी कार्यालय, विद्यालय आदि सब बंद हो जाते हैं। बिजली की आपूर्ति भी बाधित हो जाती है। और पीने के पानी का अकाल पड़ने लगता है। बाढ़ समाप्त होने पर तरह-तरह की बीमारियाँ फैल जाती हैं, जिनसे कई लोगों की मृत्यु भी हो जाती है। जहाँ एक ओर बाढ़ अपने साथ कहर लाती है, वहीं बाढ़ से एक लाभ भी है। इसके साथ बहकर आने वाली उपजाऊ मिट्टी से नदियों के आस-पास का क्षेत्र उर्वर हो जाता है, किंतु यह लाभ इससे होने वाली हानियों की तुलना में नगण्य है। इससे होने वाली हानियों की क्षतिपूर्ति करना बाद में काफी कष्टदायी होता है। बाढ़ से धन-जन की अपार हानि होती है। सड़कें टूट जाती हैं, रेलमार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। सड़कों एवं रेलमार्गों के अवरुद्ध होने से यातायात एवं परिवहन बाधित होता है, जिससे जन-जीवन ठप हो जाता है।

इस तरह एक तरफ तो लोग बाढ़ से परेशान रहते हैं, ऊपर से उन तक खाद्य-सामग्री की पहुँच भी मुश्किल हो जाती है। बाढ़ के कारण लाखों एकड़ क्षेत्र की फसल बर्बाद हो जाती है। बाढ़ में मवेशियों के बह जाने से पशु संसाधन की हानि तो होती ही है, कृषि पर भी। प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बाढ़ में तटबंध टूटने की स्थिति में बड़ी-बड़ी बस्तियाँ अचानक उजड़ जाती हैं। इस तरह, बाढ़ के कारण लोगों को अपने घरों तक से हाथ धोना पड़ता है। बाढ़ का प्रकोप बाढ़ के बाद भी लोगों को प्रभावित करता रहता है। हमें प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। ऐसे उपाय करने चाहिए, जिससे पर्यावरण में संतुलन स्थापित हो सके। प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग बंद करना चाहिए। अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाने चाहिए, जिससे वे जल को एकत्र कर मिट्टी को बहने से रोक सकें। पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों के अनुसार, बाढ़ की समस्या का सबसे अच्छा समाधान होता है-नदी के पानी को नियंत्रित करने की बजाय उसे उसके सही रास्ते पर जाने दिया जाए।

पानी को नियंत्रित करने के कुछ उपाय हो सकते हैं, परंतु पानी के प्रवाह में तीव्रता एवं अत्यधिक जल स्तर की स्थिति में ये उपाय किसी काम के नहीं होते। नदियों को जोड़ने की प्रस्तावित योजना को कार्यरूप देने से इस समस्या का काफी हद तक समाधान हो सकेगा। यदि बाढ़ जैसी आपदा पर प्रभावी नियंत्रण हो जाए, तो धन-जन की अपार हानि के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में होने वाले नुकसान से बचाव हो सकेगा और देश समृद्ध होगा। यदि मनुष्य को बाढ़ की तबाही से बचना है तो उसे प्रकृति को संरक्षित करना होगा, पर्यावरण को स्वस्थ बनाना झेगा। इसके लिए उसे अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा। बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा अवश्य है, परंतु कई बार इसके कारण मानव-जनित ही होते हैं। मनुष्य को प्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़-छाड़ करने से बचना होगा और उसके साथ सामंजस्य स्थापित करना होगा। इसके साथ ही हमें उत्तराखंड की त्रासदी से सबक लेते हुए अपने आपदा प्रबंधन विभाग को भी सक्षम बनाना होगा। बाढ़ तो पहले भी आती रही हैं और भविष्य में भी आती रहेंगी, लेकिन इससे निपटने की तैयारी तो की ही जा सकती है, जिससे इसके दुष्प्रभाव कम किए जा सकें।

(घ) भारतीय रेल

16 अप्रैल, 1853 को जब भारत में पहली रेलगाड़ी ने बंबई (मुंबई) से थाणे के मध्य 34 किमी की दूरी तय की थी, तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि आने वाले दिनों में भारतीय रेल विश्व में परिचालन में अपना दूसरा स्थान बना लेगी, लेकिन यह आज का सच है। तब से लेकर अब तक भारतीय रेलवे ने बहुत तेज़ी से प्रगति की है और इस समय यह एशिया की सबसे बड़ी व विश्व की दूसरी सबसे बड़ी रेल-प्रणाली है। इसमें लगभग 14 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है, जो देश के किसी भी उपक्रम में सबसे अधिक है तथा केंद्रीय कर्मचारियों की कुल संख्या का 40% है।

भारतीय रेल नेटवर्क को 17 क्षेत्रों (zones) में बाँटा गया है। इनके प्रशासन एवं प्रबंधन के लिए 21 रेलवे बोर्डो का भी गठन किया गया है। प्रत्येक रेलवे बोर्ड, केंद्रीय कैबिनेट के रेलवे मंत्रालय के अधीन होता है। भारतीय रेल अंतर्राष्ट्रीय रेल नेटवर्क स्थापित करने की दिशा में प्रयासरत है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर भारत एवं पाकिस्तान के मध्य ‘समझौता एक्सप्रेस’ का परिचालन वर्ष 2004 से प्रारंभ हुआ था। इसके बाद वर्ष 2008 से भारत एवं बांग्लादेश के मध्य मैत्री एक्सप्रेस’ का परिचालन किया गया। भारतीय रेल पिछले कुछ वर्षों से न केवल अपने देश में रेल डिब्बे और इंजन के निर्माण में आत्मनिर्भर बनी है, बल्कि यह अन्य देशों को इसकी आपूर्ति भी करती है। आज देशभर में रेलों का व्यापक जाल बिछा हुआ है। इस समय देश में सात हज़ार से अधिक रेलवे स्टेशन हैं तथा रेलमार्गों की कुल लंबाई 63 हज़ार किमी से अधिक है, जिसके लगभग 28% भाग का विद्युतीकरण हो चुका है। आज भारत की रेल पटरियों पर प्रतिदिन 19 हज़ार से भी अधिक ट्रेनें दौड़ती रहती हैं, जिनमें 12 हज़ार यात्री ट्रेनें और 7 हज़ार मालवाहक ट्रेनें हैं। भारतीय रेलवे में कई प्रकार की रेलगाड़ियाँ हैं। मेल एवं एक्सप्रेस रेलगाड़ियों के अतिरिक्त, पर्यटन के लिए विशेष रेलगाड़ियाँ भी चलाई जाती हैं। पैसेंजर रेलगाड़ियाँ महानगरों की जीवन-रेखा का कार्य करती हैं। महानगरों के अतिरिक्त भी कुछ क्षेत्रों में पैसेंजर रेलगाड़ियों का परिचालन किया जाता है।

राजधानी एक्सप्रेस, गरीब रथ, जनशताब्दी एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस, दुरंतो इत्यादि यहाँ की कुछ अतिविशिष्ट रेलगाड़ियाँ हैं। भारतीय रेलवे समय-समय पर विशेष प्रकार की रेलगाड़ियों का परिचालन भी करवाता है। भारत में कुछ अति विशिष्ट रेलगाड़ियाँ हैं, जो अपनी विशेषता के लिए विश्वभर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। इनमें डेक्कन ओडिसी, पैलेस ऑन व्हील्स, हेरिटेज़ ऑन व्हील्स, महाराजा एक्सप्रेस, फेयरी क्वीन एवं रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स नामक रेलगाड़ियाँ शामिल हैं। भारतीय रेल अपने यात्रियों को विविध प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करती है, इनमें वे सभी सुविधाएँ भी सम्मिलित हैं, जो हमारे दैनिक जीवन से संबंधित होती हैं; जैसे-भोजन-जलपान, विश्राम गृह, अमानत घर, व्हील चेयर, प्राथमिक उपचार, बुक स्टॉल आदि। भारतीय रेल में लंबी दूरी की यात्राओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी रहती है, ताकि यात्रीगण चिंतामुक्त होकर यात्रा का आनंद ले सकें। उच्च श्रेणी की रेलगाड़ियों में यात्रियों की सुविधा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। धन और समय की बचत रेल यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता है।

रेल यात्रा के दौरान कई बार यात्रियों को लूटपाट, हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। इन स्थितियों से निपटने के लिए भारतीय रेलवे ने रेलवे पुलिस बल की व्यवस्था कर रखी है, जो ऐसी स्थितियों से निपटने में पूरी तरह सक्षम है। भारत में रेल न केवल देश की परिवहन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करती है, बल्कि देश को एक सूत्र में बाँधने एवं राष्ट्र के एकीकरण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति में भारतीय रेल का प्रमुख योगदान रहा है। देश में विभिन्न वस्तुओं की ढुलाई एवं यात्री परिवहन का प्रमुख साधन रेल ही है।

देश के कोने-कोने तक लोगों को आपस में जोड़ने के अतिरिक्त भारतीय रेल ने व्यापार, पर्यटन एवं शिक्षा को भी सुलभ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसकी सहायता से कृषि एवं औद्योगिक विकास को भी गति प्राप्त हुई है। आजादी के बाद से भारतीय रेल ने अनंत उपलब्धियाँ अर्जित की हैं।

उत्तर 4.

सेवा में,
बैंक मैनेजर,
भारतीय स्टेट बैंक,
दिल्ली।

विषय कार्यालय सहायकों की भर्ती हेतु पत्र।

महोदय,

कल दिनांक 14.12.20×× के नवभारत टाइम्स में प्रकाशित विज्ञापन से ज्ञात हुआ है कि आपके बैंक को कुछ कार्यालय सहायकों की आवश्यकता है। मैं इस कार्य के लिए स्वयं को उपयुक्त उम्मीदवार मानता हूँ। योग्यताओं सहित मेरा विवरण निम्नलिखित है।

अथवा

G-112 आज़ादपुर
दिल्ली।
सेवा में
मुख्य चुनाव आयुक्त,
निर्वाचन आयोग,
दिल्ली।

दिनांक-13.12.20××

विषय चुनाव में अंधाधुंध खर्च होने वाले पैसे पर नियंत्रण लगाने के संबंध में।

मान्यवर,

इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान चुनाव के समय अंधाधुंध खर्च होने वाले पैसे की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। चुनाव के समय विभिन्न दलों के नेता अपने प्रचार-प्रसार हेतु विभिन्न स्थानों पर पोस्टर आदि लगाकर धन का व्यय करते हैं। कुछ नेता अधिक वोट पाने के लिए लोगों को विभिन्न प्रकार के लालच देकर एवं पैसा आदि बाँटकर चुनाव में अधिक से अधिक पैसे खर्च करते हैं।

अत: मेरा आपसे निवेदन है कि आप अपने स्तर पर इस समस्या पर विचार करने का प्रयास करें तथा चुनाव के समय विज्ञापन और प्रचार-प्रसार आदि पर अंधाधुंध खर्च होने वाले पैसे को नियंत्रित करने को शीघ्र ही कोई ठोस कदम उठाएँ। आपकी अति कृपा होगी।

धन्यवाद।

भवदीय
कौशल शर्मा।

उत्तर 5.
(क) संचार का वह रूप जिसके अंतर्गत एक व्यक्ति श्रोताओं के एक समूह को संबोधित करता है, उसे ‘समूह संचार’ कहते हैं।

(ख) खोजपरक पत्रकारिता का अर्थ उस पत्रकारिता से है, जिसमें सूचनाओं को सामने लाने के लिए उन तथ्यों की गहराई से छानबीन की जाती है, जिन्हें संबंधित पक्ष द्वारा दबाने या छुपाने का प्रयास किया जा रहा हो।

(ग) समाचार-पत्र अपने संवाददाताओं को उनकी दिलचस्पी एवं ज्ञान के अनुरूप काम का विभाजन करता है, इसे ही ‘बीट’ कहते हैं। यह रिपोर्टर का कार्यक्षेत्र निश्चित करता है।

(घ) सनसनी, चकाचौंध या ग्लैमर फैलाने वाली पत्रकारिता को पीत-पत्रकारिता या पेज-श्री पत्रकारिता कहा जाता है।

(ङ) रेडियो की भाषा सरल, सहज, प्रवाहमय और स्पष्ट होनी चाहिए। वाक्य छोटे-छोटे तथा अपने आप में पूर्ण होने चाहिए।

उत्तर 6.

महँगाई की समस्या

महँगाई या मूल्य वृद्धि से आज समस्त विश्व त्रस्त है। भारत बढ़ती महँगाई की चपेट में बुरी तरह से जकड़ा हुआ है। जीवनोपयोगी वस्तुओं के दाम दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं, जिससे जनसाधारण को अत्यंत कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। महँगाई से देश के आर्थिक ढाँचे पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है। महँगाई के निर्मम चरण अनवरत रूप से अग्रसर हैं, पता नहीं वे कब और कहाँ रुकेंगे? आज कोई भी वस्तु बाज़ार में सस्ते दामों पर उपलब्ध नहीं है। समाज का प्रत्येक वर्ग महँगाई की मार को अनाहूत अतिथि की तरह सहन कर रहा है। इसका सर्वग्राही प्रभाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर पड़ रहा है। सरकारी योजनाओं पर अत्यधिक खर्च हो रहा है। अपने स्वार्थ के लिए लोगों की धार्मिक, सामाजिक तथा नैतिक मान्यताएँ पीछे छूट जाती हैं और भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाता है। अर्थशास्त्र की मान्यता है कि यदि किसी वस्तु की माँग उत्पादन से अधिक हो, तो मूल्यों में स्वाभाविक रूप से वृद्धि हो जाती है। यदि समय रहते महँगाई को वश में नहीं किया गया, तो हमारी अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाएगी और प्रगति के सारे रास्ते बंद हो जाएँगें। भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमा लेगा, फलस्वरूप नैतिक मूल्यों का ह्रास हो सकता है। अतः महँगाई को नियंत्रित किया जाना आवश्यक है।

अथवा

गाँव में दूषित पानी की समस्या

जनसंख्या के तेज़ी से बढ़ने और भूमिगत जल के दोहन तथा जल संरक्षण की कोई कारगर नीति नहीं होने की वजह से पीने के पानी की समस्या प्रतिवर्ष गंभीर होती जा रही है। हमारा समाज ग्रामीण परिवेश का आदी रहा है, लेकिन औद्योगीकरण तथा शहरीकरण हमसे हमारा पानी छीन रहा है। गाँव के निवासियों के लिए शुद्ध पेय जल प्राप्त करना किसी चुनौती से कम नहीं है। शुद्ध और पर्याप्त पेयजल स्वस्थ जीवन की मुख्य ज़रूरत है, परंतु गाँव में यह मुख्य ज़रूरत भी पूरी नहीं हो पा रही है। वहाँ इसका अभाव दिखाई देता है। देश के कई हिस्सों में भू-जल स्तर कम होने के कारण पानी की कमी है। औद्योगिक कचरे के कारण पानी के बहुत से स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। नदियाँ गंदी नालियाँ बन चुकी हैं। पानी के अन्य स्रोत भी प्रदूषित हो चुके हैं। गाँव में असुरक्षित और अपर्याप्त पीने का पानी आधी बीमारियों का कारण बन गया है। अत: इस दिशा में पर्याप्त कदम उठाएँ जाने की आवश्यकता है, ताकि गाँव में दूषित पानी की समस्या से निपटा जा सके।

उत्तर 7.

जन-धन योजना

सुरक्षित तरीके से पैसों की बचत के उद्देश्य तथा बैंक खातों से प्रत्येक भारतीय नागरिक को जोड़ने के लिए 28 अगस्त, 2014 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जन-धन योजना की शुरुआत की गई। प्रधानमंत्री जन-धन योजना गरीबों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, जिससे उनमें बचत की भावना का विकास हो, साथ ही उनमें भविष्य की सुरक्षा का अहम भाव जागृत हो। इसके अलावा इस कदम से देश का पैसा भी सुरक्षित होगा और जनहित के कार्यों को बढ़ावा मिलेगा। यह योजना केंद्र सरकार का बड़ा और अहम फैसला है। जोकि देश की नींव मजबूत बनाएगा। प्रधानमंत्री जन-धन योजना का नारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ है अर्थात् देश के विकास में ग्रामीण लोगों का अहम योगदान है, जिसे भूला नहीं जा सकता। अब तक जिन भी योजनाओं को सुना जाता था, वह केवल शहरों तक ही सीमित होती थी लेकिन देश का बड़ा भाग ग्रामीण तथा किसान परिवार है जिन्हें जागरूक तथा सुरक्षित करना ही इस योजना का अहम भाग है। इस प्रकार प्रधानमंत्री जन-धन योजना सरकार द्वारा लिया गया अहम निर्णय है जिसके अंतर्गत गरीबों को आर्थिक रूप से थोड़ा सशक्त बनाने की कोशिश की गई है। साथ ही, बैकिंग सिस्टम को देश के हर व्यक्ति तक पहुँचाने की कोशिश की गई है जिसके अंतर्गत उन्हें जीवन बीमा तथा रुपये कार्ड की सुविधा दी जा रही है, जिससे गरीबी रेखा के नीचे आने वाले नागरिकों की स्थिति मज़बूत हो सके।

अथवा

गाँवों से पलायन

वर्तमान में गाँवों से शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कभी रोज़गार की तलाश, कभी चकाचौंध और ग्लैमर के प्रति झुकाव, तो कभी अहम् संतुष्टि के लिए भी गाँव के लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। महानगरों की ओर पलायन करना एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है। प्रत्येक व्यक्ति उन्नत कहलाना चाहता है। महानगरों में उन्नति पाने के अवसरों की कोई कमी नहीं है। स्वयं को बड़े महानगर से जुड़ा देखना स्टेटस सिंबल समझा जाता है। महानगरों में पढ़ाई, नौकरी, व्यवसाय, विकास और मनोरंजन के अनेक साधन एवं अवसर हैं, जिनका लाभ उठाकर व्यक्ति न केवल आर्थिक उन्नति कर सकता है वरन व्यक्तित्व का विकास भी कर सकता है इसीलिए अवसर मिलते ही गाँवों, कस्बों या छोटे नगरों से लोग महानगर की ओर बढ़ चलते हैं और महानगर के सागर में विलीन हो जाते हैं। यहाँ अनेक प्रकार के कष्ट सहकर रहने में भी उन्हें कोई परेशानी नहीं होती। महानगरों की साफ़ चौड़ी सड़कें, चमक-दमक भरे बाज़ार, मॉल, यातायात आदि उन्हें रोमांचित करते हैं। इनकी तुलना में गाँव-कस्बे आदि फीके और पिछड़े दिखाई देते हैं। इस पलायन की प्रवृत्ति ने महानगरों की समस्याओं में वृद्धि की है। वहाँ भीड़ बहुत बढ़ गई है। भोजन, पानी, बिजली, यातायात आदि संसाधन कम पड़ने लगे हैं या उनकी कमी होने लगी है। सरकार को चाहिए कि छोटे शहरों में भी रोज़गार के अवसरों और शैक्षिक संस्थानों में बढ़ोत्तरी के प्रयास करे। वहाँ मनोरंजन और विकास के साधनों को भी बढ़ाया जाना चाहिए, जिससे महानगरों की ओर होता पलायन किसी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

उत्तर 8.
(क) कवि ने छोटे पौधों के माध्यम से सर्वहारा वर्ग की प्रसन्नता को व्यक्त किया है। जिस प्रकार छोटे पौधे बादलों के बरसने से उत्पन्न हरियाली को देखकर हँसते (अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते) हैं, उसी प्रकार सर्वहारा वर्ग क्रांति और परिवर्तन की आशा में अपनी प्रसन्नता हँस कर, खिलकर अर्थात् प्रसन्न मुद्रा में हाथ हिलाकर व्यक्त कर रहे हैं।

(ख) मूसलाधार वर्षा क्रांति का प्रतीक है। इससे आम लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आएगा| क्रांति से शोषित एवं सर्वहारा वर्ग के अभावग्रस्त बच्चे विकास को प्राप्त करेंगे, जो अभाव, दुःख एवं पीड़ा में भी सदैव हँसते रहते हैं।

(ग) ‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में कवि ने क्रांति के विरोधी पूँजीपति-सामंती वर्ग की ओर संकेत किया है, क्योंकि कवि मानता है कि जिस प्रकार क्रांति का प्रतिनिधि बादल अपने से उन्नत पहाड़ की चोटियों को अपने वज्राघात से क्षत-विक्षत कर सकता है, उसी प्रकार समाज के शोषित वर्ग की क्रांतिकारी चेतना शोषक पूँजीवादी सामंती शक्तियों को अपने प्रहार से ध्वस्त कर सकती है।

(घ) विप्लव रव से तात्पर्य है-क्रांति। सामाजिक क्रांति परिवर्तन के लिए होती है। ऐसे परिवर्तन समाज के कमज़ोर, वंचित और शोषण के शिकार लोगों को नई दिशा देने में सक्षम होते हैं। छोटे, समाज के सर्वहारा वर्ग हैं। वे क्रांति के द्वारा आगे बढ़कर शोभा पाते हैं।

अथवा

(क) पंथी सोच रहा है कि दिन तेज़ी से ढल रहा है, कहीं उसके घर पहुँचने से पहले ही रात न हो जाए, इसलिए दिनभर का थका हुआ पथिक सिर्फ अपना लक्ष्य पाने के लिए चलता रहता है।

(ख) बच्चे अर्थात् चिड़ियों के शिशु अपने नीड़ों अर्थात् घोंसलों से सिर निकालकर अपने माता-पिता की प्रतीक्षा करते हैं, जो उनके लिए भोजन एवं स्नेह लेकर लौटते हैं। बच्चे आशावादी होते हैं, वे सुबह से शाम तक आशा एवं धैर्य के साथ अपने स्नेह एवं भोजन की प्रतीक्षा करते हैं।

(ग) कवि को इस बात की चिंता है कि उसके घर पहुँचने से पहले ही कहीं रात न हो जाए, क्योंकि ऐसा होने पर उसकी यात्रा संकटग्रस्त हो जाएगी और वह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाएगा।

(घ) चिड़िया चंचल इसलिए हो रही है, क्योंकि वह अपने बच्चों के लिए अत्यंत चिंतित है। वह दिन ढलने से पहले जल्दी-से-जल्दी अपने बच्चों के पास पहुँचकर उन्हें भोजन, स्नेह और सुरक्षा देना चाहती है।

उत्तर 9.
(क) कवि शरद ऋतु की सुंदरता का वर्णन करते हुए कहता है कि अब खरगोश की आँखों जैसा लाल, सुंदर शरद ऋतु का सवेरा आ गया है। शरद की सुबह का मानवीकरण करते हुए कवि बताता है कि ऐसा जान पड़ता है जैसे कोई अपनी चमकीली साइकिल को तेज़ी से चलाते हुए सबका ध्यान आकर्षित करना चाहता हो। चमकीली साइकिल चलाते एवं उसकी घंटियाँ बजाते हुए शरद की यह सुबह अपने चमकीले इशारों से बच्चों के झुंड को बुला रही है।

(ख) काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार सौंदर्य इस प्रकार है।

  1. मानवीकरण अलंकार ‘खरगोश की आँखों जैसा लाल’ पंक्ति में मानवीकरण अलंकार है।
  2. पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार ‘घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर’ पंक्ति में ज़ोर-ज़ोर में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  3. उपमा अलंकार ‘खरगोश’ की आँखों जैसा लाल सवेरा’ में प्रातः कालीन सवेरे के लिए खरगोश की आँखों जैसा लाल उपमान का प्रयोग किया गया है। अतः यहाँ उपमा अलंकार है।

(ग) कविता में बिंब योजना अत्यंत नवीन एवं आकर्षक है। दृश्य, श्रव्य एवं स्पर्श बिंबो का प्रयोग किया गया है।

  1. दृश्य बिंब सबसे तेज़ बौछारें गई, खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा, शरद आया पुलों को पार करते हुए, अपनी नई चमकीली साइकिल तेज़ चालते हुए, चमकीले इशारों से बुलाते हुए।
  2. अव्य बिंब घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से।
  3. स्पर्श बिंब आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए।

अथवा

(क) उत्प्रेक्षा अलंकार के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं।

  1. ‘स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
  2. ‘नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो।’

(ख) कविता की भाषा सहज तथा संस्कृतनिष्ठ हिंदी है। बिंबात्मक भाषा में रचित इस कविता में मुक्त छंद का सुंदर प्रयोग हुआ है। लघु शब्दावलियों के साथ दृश्य-शैली का भी प्रयोग हुआ है। नए बिंबों, नवीन प्रतीक और नए उपमानों के माध्यम से भाषा ध्वन्यात्मक बन गई है। देशज तथा तत्सम शब्दों के सुंदर समन्वय के साथ कवि ने कविता को अद्भुत गति प्रदान करने में सफलता पाई है।

(ग) कवि उषाकाल के सौंदर्य का वर्णन करता हुआ कहता है कि उषाकाल में ऐसा लगा रहा है, मानो आकाश रूपी काली सिल थोड़े से लाल केसर से धुल गई है। वस्तुतः यह सूर्योदय के पूर्व आकाश में फैलती हल्की लालिमायुक्त आभा का बिंब है या किसी बालक ने काली स्लेट पर थोड़ी लाल खड़िया या चॉक मेल दी है। उषाकाल में सूर्योदय के समय ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आकाश रूपी नीले जल में किसी युवती की गोरी देह झिलमिलाती हुई दिखाई दे रही है। वास्तव में, कविता में प्रातःकालीन आकाश में होने वाले सूर्योदय का गतिशील चित्रण हुआ है।

उत्तर 10.
(क) फसल की रोपाई तो क्षणभर में संपन्न की जाती है। इसी प्रकार विचारों की अभिव्यक्ति के लिए कवि के द्वारा भोगा हुआ अनुभव-सत्य किसी क्षण-विशेष में ही उपस्थित होता है, जिसे कागज़ पर अंकित कर दिया जाता है, किंतु कविता रूपी फसल की कटाई तो अनंतकाल तक चलती रहती है। इसका रस और आनंद असीमित होता है। यह तो वह अक्षयपात्र है, जिसका रस जितना लुटाओं, वह कम नहीं होता। एक प्रकार से कविता कालजयी होती है। वह पाठकों को अनंतकाल तक आनंद प्रदान करती रहती है।

(ख) ‘परदे पर वक्त की कीमत है’ कहकर कवि परोक्ष रूप से यह कहना चाह रहा है कि परदे पर किसी की भावना, संवेदना, दुःख-दर्द, मान-अपमान अन्य किसी भी बात की कोई कीमत नहीं है। इस कविता में कवि ने मीडिया व समाज की संवदेनहीनता पर तीखा कटाक्ष किया है। कवि मीडिया द्वारा किए जाने वाले इस तरह के कार्यों की निंदा करता है। किसी की हीनता, अभाव, दुःख और कष्ट सदा से करुणा के कारण उद्दीपन रहे हैं, मगर इन कारणों को सार्वजनिक कार्यक्रम के रूप में प्रसारित करना और अपने चैनल की श्रेष्ठता साबित करने के लिए तमाशा बनाकर उसे फूहड़ ढंग से प्रदर्शित करना क्रूरता है।

(ग) कवि ने बच्चे और कविता को समानांतर रखा है, क्योंकि जिस प्रकार बच्चों के सपने असीम होते हैं, बच्चों के खेल का कोई अंत नहीं होता, बच्चे की प्रतिभा, बच्चे में छिपी संभावना का कोई अंत नहीं है, ठीक वैसे ही कविता असीम होती है। कविता के खेल अर्थात् कविता में किए जाने वाले सार्थक शब्दों का समुचित प्रयोग असीम है। जिस प्रकार बच्चे अपने-पराए का भेद नहीं करते, उन्हें सभी घर अपने ही प्रतीत होते हैं; ठीक उसी प्रकार कवि के लिए यह सारा संसार अपना है, उसका लक्ष्य सिर्फ मानवता के धर्म का प्रसार करना है, आत्मीयता का संदेश घर-घर पहुँचाना है।

कविता प्रकृति, मनुष्य, जीव, निर्जीव, काल, इतिहास, भावी जीवन अनेक विषयों पर लिखी जा सकती है अर्थात् इसके विषय एवं क्षेत्र भी असीम हैं। कविता में मौजूद भावों और रचनात्मकता के गुण व्यक्ति की चेतना में वैसे ही जान फेंक देते हैं, जैसे कभी न थकने वाला, सदा कुछ-न-कुछ करने वाला रचनात्मक तत्त्व बच्चे में।

उत्तर 11.
(क) लेखक इस बात को विडंबना मानता है कि आधुनिक युग में भी जातिवाद के पोषकों की कमी नहीं है, क्योंकि वे (जातिवाद के पोषक) इस प्रथा को बनाए रखने के लिए कई प्रकार के तर्क भी देते हैं।

(ख) भारत की जाति प्रथा श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन करने के साथ-साथ उन्हें एक-दूसरे की तुलना में ऊँच-नीच अर्थात् : असमान स्तर वाला भी बना देती है। यह विश्व के किसी भी समाज में नहीं होता। इस प्रकार भारत की जाति प्रथा विश्व से अलग है।

(ग) जातिवाद का समर्थन निम्नलिखित आधारों पर किया जाता है।

  1. आधुनिक सभ्य समाज कार्य कुशलता के लिए श्रम को आवश्यक मानता है।
  2. जाति प्रथा भी श्रम विभाजन को ही दूसरा रूप है, इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है।

(घ) लेखक जातिवाद को आपत्तिजनक इसलिए मानता है, क्योंकि जाति-प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन का भी रूप लिए हुए है। यह तार्किक है कि श्रम विभाजन सभ्य समाज की आवश्यकता है, परंतु कोई भी सभ्य समाज श्रमिकों का विभिन्न श्रेणियों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करता है।

अथवा

(क) भक्तिन के पिता उससे बहुत प्रेम करते थे, किंतु उसकी सौतेली माँ ईष्र्यालु स्वभाव की थी। उसे यह डर हमेशा सताता रहता था कि भक्तिन के पिता कहीं सारी जायदाद उसके (भक्तिन) नाम ही न कर दें। इसी कारण सौतेली माँ ने न तो उनकी बीमारी की सूचना भेजी, न ही मृत्यु का संदेश समय पर दिया। इसलिए भक्तिन को पिता की मृत्यु का समाचार देर से मिला।

(ख) सास द्वारा भक्तिन को विदा करने को अप्रत्याशित अनुग्रह इसलिए कहा गया है, क्योंकि जब सास ने भक्तिन से कहा कि बहुत दिनों से मायके नहीं गई, इसलिए जाकर अपने पिता को देखा आ| सास ने उसे पहना उढ़ाकर विदा किया, जिसकी भक्तिन ने आशा नहीं की थी। अतः सास द्वारा किए गए इस कार्य को अप्रत्याशित अनुग्रह कहा गया है।

(ग) अचानक मायके जाने की खुशी ने भक्तिन के पैरों में पंख लगा दिए अर्थात् वह शीघ्र ही अपने मायके पहुँचना चाहती थी, किंतु अपने गाँव की सीमा पर पहुँचते ही उसे किसी अनहोनी के होने की आशंका हुई जिस कारण गाँव पहुँचते ही उसके पंख झड़ गए अर्थात् उसकी खुशी निराशा में बदल गई।

(घ) ‘हाय लछिमन अब आई’ में निहित करुणा गाँव वालों की है। जब लक्ष्मी ने गाँव की सीमा में प्रवेश किया तब इन शब्दों को उसने बार-बार सुना। गाँव वालों की उसके प्रति सहानुभूति का भाव भी यहाँ स्पष्ट दिखाई देता है। पिता की मृत्यु के इतने दिनों बाद आने पर गाँव वालों ने इन शब्दों का प्रयोग किया है, क्योंकि पिता के अंतिम समय में भी उनकी प्रिय पुत्री उनसे मिल नहीं पाई थी।

उत्तर 12.
(क) ‘पर्चेजिंग पावर’ का अर्थ पैसे की उस पावर से है, जिससे आप कभी भी महँगी-से-महँगी वस्तुएँ खरीद सकते हैं। मॉल की संस्कृति, सामान्य बाज़ार और हाट की संस्कृति सभी पर्चेजिंग पावर से चलते हैं। बाज़ार की चकाचौंध से दूर पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक उपयोग नए मकान और संपत्ति खरीद कर किया जा सकता है। साथ ही संयमी लोग पैसे की बचत करके पैसे की पावर का रस प्राप्त कर सकते हैं।

(ख) विभाजन के अनेक स्वरूपों में बटी जनता को मिलाने की अनेक भूमिकाओं में से साहित्य व कला’ सबसे अधिक ताकतवर है, क्योंकि इसके माध्यम से समाज में जागृति उत्पन्न की जा सकती है। साहित्य समाज का प्रतिबिंब होता है। समाज की प्रत्येक स्थिति का वर्णन साहित्य में किया जाता है। साहित्य एवं कला के माध्यम से जनता को एकजुट करके उनमें चेतना पैदा की जा सकती है कि सभी मिलकर विभाजन की दीवारों को तोड़े तथा उनमें एकता और बंधुत्व की भावना का विकास करें।

(ग) लुट्टन सिंह ने चाँद सिंह पहलवान को कुश्ती लड़ने की चुनौती दे दी। चाँद सिंह पंजाब का पहलवान था तथा अपनी आयु के सभी पहलवानों को चित्त कर चुका था, इसलिए उसे ‘शेर के बच्चे’ की उपाधि दी गई थी। लुट्टन सिंह ने उसे हरा दिया तथा कुश्ती जीत गया। इस प्रकार चाँद सिंह को हराकर उसे राज दरबार के पहलवान के रूप में स्थान मिला। अतः लुट्टन पहलवान की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई।

(घ) जीजी के अनुसार, इंदर सेना पर पानी फेंका जाना इसीलिए सही है, क्योंकि यह पानी की बर्बादी नहीं है, बल्कि इंद्र भगवान को अर्घ्य देना है। वे कहती हैं कि मनुष्य जो चीज़ पाना चाहता है, पहले उसे देना पड़ा है। इसी कारण दान को बड़ा माना जाता है। दूसरों के कल्याण के लिए दिया गया दान ही फल देता है और सच्चा त्याग तभी कहलाता है, जब आप जिस वस्तु का दान कर रहे हों, वह वस्तु आपके पास अधिक मात्रा में न हो। इसे ही सही अर्थों में दान माना जाता है।

(ङ) काल के समक्ष (सामने) भी विजयी रहने वाला कालजयी कहलाता है। शिरीष का वृक्ष अवधूत की भाँति वसंत के आने से लेकर भाद्रपद मास तक बिना किसी परेशानी के पुष्पित होता रहता है। जब ग्रीष्म ऋतु में सारी पृथ्वी अग्निकुंड की तरह जलने लगती है, लू के कारण हृदय भी सूखने लगता है। तो उस समय भी शिरीष का वृक्ष कालजयी अवधूत की तरह जीवन में विजेता होने का प्रदर्शन कर रहा होता है। वह संसार के सभी प्राणियों को धैर्यशील, चिंता रहित व कर्तव्यशील बने रहने के लिए प्रेरित करता है। यही कारण है कि लेखक इसे कालजयी अवधूत की तरह मानता है।

उत्तर 13.
ऐन ने हॉलैंड की खराब होती व्यवस्था के बारे में विस्तार से बताया है। उसने बताया कि लोगों को सब्ज़ियाँ और सभी प्रकार की वस्तुओं के लिए लाइनों में खड़ा होना पड़ता है। वहाँ चोरी इतनी बढ़ गई थी कि लोग थोड़ी देर के लिए भी घर नहीं छोड़ सकते ‘थे, क्योंकि उतनी ही देर में सारे सामान चोरी हो जाते थे। लोगों की साइकिलें तथा कारें खड़ी करते ही चोरी हो जाती थीं। चोरी के डर से डच लोगों ने अँगूठी तक पहनना छोड़ दिया था। इसी प्रकार सार्वजनिक टेलीफ़ोन की भी चोरी हो जाती थी। सरकारी कर्मचारियों पर हमलों की घटना बढ़ती ही जा रही थी। अतः ऐन की डायरी एक ऐतिहासिक दौर का जीवांत दस्तावेज़ है। ऐन को अपने जीवन के दो वर्ष गुप्त वास में व्यतीत करने पड़े, जहाँ उसे कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वहाँ उसे सुनने और समझने वाला कोई नहीं था, इसलिए वह अपने सारे व्यक्तिगत अनुभव और मानसिक उथल-पुथल को डायरी के पन्ने पर लिख दिया करती थी और अपने मन की हलचल को शांत कर लेती थी। अतः कह सकते हैं कि ‘ऐन की डायरी’ ऐतिहासिक दस्तावेज़ होने के साथ-साथ भावनाओं की उथल-पुथल भी है।

उत्तर 14.
(क) ‘जूझ’ का कथानायक किशोर छात्रों के लिए एक आदर्श प्रेरणास्रोत कहा जा सकता है। वह जटिल परिस्थितियों में भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए कठिन प्रयास करता है। वह अपने पिता से किसी तरह पढ़ने की अनुमति लेता है तथा पढ़ाई के साथ वह खेती का काम भी करता है। उसके पास धन का नितांत अभाव है। उसके सहपाठी भी उसके पहनावे को लेकर उसकी खिल्ली उड़ाते हैं, फिर भी वह शिक्षा प्राप्त करने में सफल होता है। उसके चरित्र से समस्त किशोर विद्यार्थियों को शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

(ख) यशोधर बाबू जब दिल्ली में आए, तब उनकी आयु सरकारी नौकरी के अनुरूप नहीं थी। इस कठिन परिस्थिति में किशन दा ने यशोधर को ‘मेस’ का रसोइया बना दिया। उन्होंने यशोधर बाबू को 50 भी दिए, जिससे वे नए कपड़े सिलवा सकें और कुछ पैसे गाँव भी भेज सकें। किशन दा ने उनकी शिक्षा में भी मदद की और नौकरी भी उन्होंने ही दिलवाई। किशन दा ने जीवन के हर सुख-दुःख में यशोधर बाबू का मार्गदर्शन किया था। वे यशोधर बाबू को भाऊ अर्थात् बच्चा कहते थे। शादी के बाद भी किशन दा यशोधर बाबू का बहुत ध्यान रखते थे। इस प्रकार किशन दा ने यशोधर पंत जी की बहुत सहायता की थी।

(ग) मोहनजोदड़ों की सभ्यता साधन संपन्न थी। यहाँ के लोगों की रुचि कला से जुड़ी थी। यहाँ से प्राप्त पत्थर की मूर्तियाँ, मृदभांड, पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, खिलौने, केश विन्यास, आभूषण इत्यादि सिंधु सभ्यता को तकनीकी रूप से अधिक सिद्ध होने की अपेक्षा उसके कला प्रेम को अधिक दर्शाते हैं। यह सभ्यता धर्म तंत्र या राज तंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महलों, उपासना स्थलों आदि का निर्माण नहीं करती थी। सिंधु सभ्यता समाज पोषित संस्था का समर्थन करती थी। सभ्यता में आडंबर को स्थान नहीं दिया गया था, अपितु चारों ओर से सुंदरता ही दिखाई देती थी। इन्हीं बातों के आधार पर हम कह सकते हैं कि सिंधु सभ्यता राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर पूरी तरह से समाज-पोषित थी।

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