CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 2

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CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 2

BoardCBSE
ClassXII
SubjectHindi
Sample Paper SetPaper 2
CategoryCBSE Sample Papers

Students who are going to appear for CBSE Class 12 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme as prescribed by the CBSE is given here. Paper 2 of Solved CBSE Sample Paper for Class 12 Hindi is given below with free PDF download solutions.

समय :3 घंटे
पूर्णांक : 100

सामान्य निर्देश

  • इस प्रश्न-पत्र के तीन खंड हैं-क, ख और ग।
  • तीनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
  • यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (15)

‘आधुनिक भारतीय भाषाएँ’ सुनकर आप इस भ्रम में न पड़े कि ये सभी ‘आज’ की देन हैं। ये सभी भाषाएँ अति प्राचीन हैं। अनेक तो सीधे संस्कृत या वैदिक भाषा से जुड़ती हैं। वे इस अर्थ में आधुनिक हैं कि समय के साथ चलकर अतीत से वर्तमान तक पहुँची हैं और जीवंत एवं विकासशील बनी हुई हैं। उनके आधुनिक होने का एक कारण यह भी है कि आधुनिक विचारों को वहन करने में वे कभी पीछे नहीं रहीं। इनका साहित्य समय की कसौटी पर खरा उतरा है और ये सभी आधुनिक भारत की प्राणवायु हैं।

किसी भी भाषा का पहला काम होता है दो व्यक्तियों या समूहों के बीच संपर्क स्थापित करने का माध्यम बनाना। यह मानव समूहों के बीच सेतु का काम करती है। इसे चाहे प्रकृति की देन मानिए, चाहे ईश्वर की, भाषा से जुड़ी कोई देन नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों में मानव की समस्त उपलब्धियाँ मूलतः भाषा की देन हैं।

अब जहाँ तक हिंदी का प्रश्न है, उसमें उपरोक्त विशेषताएँ तो हैं ही, साथ ही सबसे निराली विशेषता है, उसकी नमनीयता। इसमें स्वाभिमान है, अहंकार नहीं। हिंदी हर परिस्थिति में अपने आपको उपयोगी बनाए रखना जानती है। यह ज्ञान और शास्त्र की भाषा भी है और लोक की भी, उत्पादक की भी और उपभोक्ता की भी। इसीलिए यह स्वीकार्य भी है।

(क) गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए। (1)
(ख) ‘आधुनिक’ विशेषण से हम किस भ्रम में पड़ सकते हैं? उसे ‘भ्रम’ क्यों कहा गया है? (2)
(ग) आज की भारतीय भाषाएँ किस अर्थ में आधुनिक हैं? दो कारणों का उल्लेख कीजिए। (2)
(घ) कोई भाषा किनके बीच पुल बनाने का काम करती है? कैसे? (2)
(ङ) हिंदी की निराली विशेषता क्या है? उसका आशय समझाइए।(2)
(च) हिंदी की स्वीकार्यता के दो कारण स्पष्ट कीजिए। (2)
(छ) ‘नमनीयता’ से लेखक का क्या आशय है? (2)
(ज) आशय स्पष्ट कीजिए “भाषा से बड़ी कोई देन नहीं है।” (2)

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (1 × 5 = 5)

आज खोले वक्ष
उन्नत शीश, रक्तिम नेत्र
तुझको दे रहा हूँ, ले, चुनौती
गगनभेदी घोष में
दृढ़ बाहुदंडों को उठाए!
क्योंकि मैंने आज पाया है स्वयं का ज्ञान
क्योंकि मैं पहचान पाया हूँ कि मैं हूँ मुक्त, बंधनहीन
और तू है मात्र भ्रम्, मन-जात, मिथ्या वंचना,

इसलिए इस ज्ञान के आलोक के पुल में।
मिल गया है आज मुझको सत्य का आभास
और ओ मेरी नियति!
मैं छोड़कर पूजा
क्योंकि पूजा है पराजय का विनात स्वीकार
बाँधकर मुट्ठी तुझे ललकारता हूँ,
सुन रही है तू?
मैं खड़ा तुझको यहाँ ललकारता हूँ।

(क) कवि की चुनौती देने की मुद्रा कैसी है?
(ख) चुनौती किसे दी जा रही है? उसे कवि क्या मानता है?
(ग) कवि को मिला ज्ञान और उसकी पहचान क्या है?
(घ) कवि पूजा को क्या मानता है और क्यों?
(ङ) काव्यांश का केंद्रीय भाव लिखिए।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबंध लिखिए (5)

(क) भारतीय संस्कृति
(ख) महिला सशक्तीकरण
(ग) मेरा प्रिय लेखक
(घ) कश्मीर समस्या

प्रश्न 4.
सहकारी बैंक की एक शाखा अपने ग्राम में खोलने का अनुरोध करते हुए जिला मुख्यालय में स्थित बैंक के प्रधान प्रबंधक को पत्र लिखिए। बैंक खोलने का औचित्य भी लिखिए।
अथवा
अपने क्षेत्र के सांसद को पत्र लिखकर अनुरोध कीजिए कि आपके ग्राम में एक पुस्तकालय की स्थापना अपनी सांसद निधि से करवाएँ। इसका औचित्य भी समझाइए।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए (1 × 5= 5)

(क) संपादकीय का महत्त्व लिखिए।
(ख) इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की लोकप्रियता के दो कारण लिखिए।
(ग) समाचारों के स्रोत से आप क्या समझते हैं?
(घ) स्टिंग ऑपरेशन के दो लाभ लिखिए।
(ङ) संपादन के सिद्धांतों में तथ्यपरकता’ (एक्यूरेसी) का क्या आशय है?

प्रश्न 6.
‘स्वच्छ भारत अभियान’ अथवा ‘ज़रूरी है जल की बचत’ विषय पर एक आलेख लिखिए। (5)

प्रश्न 7.
“मुझे जन्म देने से पहले ही मत मारो माँ !” अथवा “जाति प्रथा : एक अभिशाप’ विषय पर एक फ़ीचर तैयार कीजिए। (5)

प्रश्न 8.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 2 = 6)

तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुःख की छाया
जुग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावितु माया
युह तेरी रण-तुरी
भुरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सुजुग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचाकर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!

(क) कवि ने निर्दय किसे कहा है और क्यों?
(ख) सोए हुए अंकुरों के जग जाने का कारण क्या है? उनमें आशाओं का संचार कैसे हुआ?
(ग) बादल को ‘ऐ विप्लव के बादल’ क्यों कहा गया है?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए तिरती है समीर-सागर पुर अस्थिर सुख पर दु:ख की छाया

अथवा

जुन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
छतों के खतरनाक किनारों तक
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत

(क) काव्यांश में ‘वे’/’उनके’ सर्वनाम किनके लिए प्रयुक्त हुए हैं? वे क्या विशेष कर रहे हैं?
(ख) आशय स्पष्ट कीजिए जुन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
(ग) ‘दौड़ते हैं बेसुध’-उनकी बेसुधी के दो उदाहरण लिखिए।
(घ) ‘छतों को नरम बनाना और ‘दिशाओं को मृदंग की। तरह’ बजाना का भाव लिखिए।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 3 = 6)
ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा।
बिबिध जतन कृरि ताहि जुगावा।
जागा निसिचर देखिअ कैसा।
मानहुँ कालु देह धरि बैसा।।

(क) काव्यांश का अलंकार सौंदर्य समझाइए।
(ख) काव्यांश की भाषा की दो विशेषताएँ लिखिए।
(ग) काव्यांश किस छंद में लिखा गया है? उसका लक्षण बताइए।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(क) कैसे कह सकते हैं कि कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता शारीरिक विकलांगता की चुनौती झेल रहे व्यक्ति का उपहास करती है? कविता से दो उदाहरण दीजिए।
(ख) सीधी बात भी कब टेढ़ी होकर उलझती चली जाती है? स्पष्ट कीजिए।
(ग) फिराक की संकलित रुबाइयों में कवि ने जो वात्सल्य का चित्र उकेरा है, उस पर टिप्पणी कीजिए।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)

वह रूप का जादू है, पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो और मुन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मुन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भुरी, तब तो फिर वह मुनु किसकी मानने वाला है !

(क) किस जादू की चर्चा हो रही है? उसे जादू क्यों कहा गया है?
(ख) चुंबक और लोहे का उदाहरण क्यों दिया गया है? स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस जादू के असर में मन की भूमिका क्या है?
(घ) आपके विचार से इस जादू से छुटकारा पाने का उपाय क्या हो सकता है?

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 4 = 12)

(क) डॉ. आंबेडकर जाति प्रथा को श्रम विभाजन का स्वाभाविक विभाजन क्यों नहीं मानते? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
(ख) ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी में कहानीकार ने महामारी फैलने से पूर्व और उसके बाद गाँव के सूर्योदय और सूर्यास्त में अंतर कैसे प्रदर्शित किया है?
(ग) “माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं, पर त्याग का कहीं नामोनिशान नहीं है।” – ‘काले मेघा पानी दे’ कहानी की इस टिप्पणी पर आज के संदर्भ में टिप्पणी कीजिए।
(घ) भक्तिन महादेवी जी की समर्पित सेविका थी, फिर भी लेखिका ने क्यों कहा है कि भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन | होगा? ।
(ङ) जीवन के संघर्षों ने चार्ली चैप्लिन के व्यक्तित्व को कैसे संपन्न बनाया? समझाइए।

प्रश्न 13.
यशोधर अपने परिवार से किन जीवन-मूल्यों की अपेक्षा रखते थे? उनके मूल्य उन्हें ‘समहाउ इंप्रॉपर’ क्यों लगते थे? स्पष्ट कीजिए। (5)

प्रश्न 14.

(क) सौंदलगेकर एक आदर्श अध्यापक क्यों प्रतीत होते हैं? ‘जूझ’ कहानी के आधार पर उनकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
(ख) ‘डायरी के पन्ने पाठ के आधार पर महिलाओं के प्रति ऐन फ्रेंक के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

उत्तर 1.
(क) गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक ‘हिंदी भाषा का स्वरूप एवं विशेषताएँ’ होना चाहिए।

(ख) ‘आधुनिक’ विशेषण से हम इस भ्रम में पड़ सकते हैं कि आधुनिक का संबंध मात्र वर्तमान से है, इसीलिए अधिकांश लोगों को यह भ्रम उत्पन्न हो जाता है कि आधुनिक भारतीय भाषाओं का संबंध आज (वर्तमान) की भाषा से है, जबकि यह भाषाएँ अति प्राचीन हैं। अधिकतर भाषाएँ तो सीधे संस्कृत भाषा से जुड़ती हैं।

(ग) आज की भारतीय भाषाएँ निम्नलिखित कारणों से आधुनिक हैं।

  1. भारतीय भाषाएँ समय के साथ चलकर अतीत से वर्तमान तक पहुँची हैं और जीवंत एवं विकासशील बनी हुई हैं।
  2. भारतीय भाषाएँ आधुनिक विचारों को वहन करने में सदैव अग्रणी भूमिका में रही हैं।

(घ) कोई भी भाषा मानव समूहों के बीच सेतु (पुल) बनाने का काम करती है। भाषा दो व्यक्तियों या दो समूहों के बीच संपर्क स्थापित करने को माध्यम है। भाषा के माध्यम से ही एक व्यक्ति अपने विचारों को दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाता है। इन्हीं विचारों के आदान-प्रदान में भाषी सेतु के रूप में कार्य करती है।

(ङ) हिंदी की निराली विशेषता है, उसकी नमनीयता। नमनीयता से तात्पर्य है कि हिंदी भाषा का स्तर अत्यंत व्यापक एवं विस्तृत होने के पश्चात् भी इसमें अहंकार की भावना नहीं है। यह स्वयं को हर परिस्थिति में उपयोगी बनाए रखना जानती है।

(च) हिंदी की स्वीकार्यता के दो कारण निम्नलिखित हैं।
(i) हिंदी ज्ञान और शास्त्र की भाषा के साथ-साथ लोक की भाषा भी है। आज भारत ही नहीं विश्व भर में हिंदी भाषी लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। हिंदी ज्ञान के क्षेत्र में भी काफी आगे निकल चुकी है। आज विधि, डॉक्टरी, इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई हिंदी भाषा में भी संभव है।

(ii) हिंदी उत्पादक और उपभोक्ता की भाषा भी है। आज किसी फुटकर व्यापारी की दुकान पर रोज़मर्रा की वस्तु खरीदने के लिए जाया जाता है, तो वहाँ भी हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया जाता है। अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग वहाँ उचित नहीं बैठता।

(छ) “नमनीयता’ से लेखक को आशय यह है कि हिंदी आज जन-जन की भाषा है। देश से लेकर विदेश तक यह अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है। यह ज्ञान, शास्त्र, बाज़ार आदि सभी क्षेत्रों में स्वीकार्यता अर्जित कर चुकी है; परंतु इसके बावजूद भी हिंदी में अहंकार की भावना उत्पन्न नहीं हो सकी। यह एक विनम्रता के साथ स्वीकृत भाषा है।।

(ज) भाषा से बड़ी कोई देन नहीं है” से लेखक का आशय यह है कि भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। एक व्यक्ति इसी भाषा के माध्यम से दूसरे व्यक्ति तक अपने विचारों को पहुँचाता है। यदि भाषा न होती तो संसार का विकास संभव नहीं था। इसीलिए भाषा को चाहे प्रकृति की देन मानिए, चाहे ईश्वर की, भाषा से बड़ी कोई देन नहीं है।

उत्तर 2.
(क) कवि रौद्र रूप में चुनौती दे रहा है। उसने अपना वक्ष (छाती) खोल दिया है, सिर उठा लिया है तथा क्रोध से आँखें रक्तनुमा हो चुकी हैं।

(ख) कवि द्वारा स्वयं की नियति (भाग्य) को चुनौती दी जा रही है। वह नियति को भ्रम, मिथ्या, वंचना आदि मानता है।

(ग) कवि को आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई है तथा सत्य का आभास हुआ। इसी कारण वह आज स्वयं को नियति के बंधन से स्वतंत्र महसूस कर रहा है।

(घ) कवि पूजा को पराजय की स्वीकृति मानता है, क्योंकि हम कर्म की अपेक्षा पूजा-पाठ पर अधिक भरोसा करते हैं और धीरे-धीरे आशावादी बन जाते हैं।

(ङ) काव्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि हमें नियति के भरोसे नहीं रहना चाहिए, बल्कि कर्म पर अधिक ध्यान देना चाहिए। कर्म करने से ही फल मिलता है, जबकि नियति के भरोसे रहने वालों की पराजय होती है।

उत्तर 3.

(क) भारतीय संस्कृति

भारत देश सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है, जहाँ भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के लोग रहते हैं। भारतीय संस्कृति का एक महान् गुण ‘विविधता में एकता’ है, इसी कारण सभी भारतीय संस्कृति के प्रति आदर भाव रखते हैं। भारत की सांस्कृतिक एकता के विधायक तत्त्व हम भारतवासियों की नस-नस में व्याप्त हैं। बाहरी स्तर पर विभेदं सूचक तत्त्व होते हुए भी अंतरात्मा से हम एक हैं। हमारी सांस्कृतिक परंपरा एक है। हमारे तीर्थ समान हैं और हम मंत्रोच्चारण में बड़ी नदियों का एक समान स्मरण करते हैं।

“गंगे च यमुने चैव, गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिंधु कावेरी, जलेदस्मिन् सन्निधिं कुरु।।”

भारत एक विशाल देश है। उसमें अनेकता होनी स्वाभाविक ही है। धर्म की दृष्टि से देखा जाए तो हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी आदि विविध धर्मावलंबी यहाँ निवास करते हैं। इतना ही नहीं, एक-एक धर्म में भी मान्यताओं का भेद है; जैसे-हिंदू धर्म के अंतर्गत वैष्णव, शैव, शाक्त आदि हैं।

भारत एक ऐसा देश है जहाँ देश के भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। आमतौर पर यहाँ के लोग वेशभूषा, सामाजिक मान्यताओं एवं खाने की आदतों में भी भिन्न हैं। अपने धर्म के अनुसार लोग मान्यताओं, रीति-रिवाज़ और परंपरा को मानते हैं। हम अपने त्योहारों को अपनी रस्मों के हिसाब से मनाते हैं, व्रत रखते हैं तथा अन्य प्रकार के क्रियाकलाप करते हैं। भारतीय संस्कृति में ही यह विशेषता है कि वह विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों सहित राष्ट्रीय उत्सवों को भी एकसाथ मनाते हैं।

भारतीय संस्कृति में सभी धर्मों के प्रति सम्मान का भाव है। यहाँ जितने उत्साह से दीपावली का पर्व मनाया जाता है, उसी उत्साह के साथ ईद, बुद्ध पूर्णिमा, लोहड़ी, महावीर जयंती आदि पर्व भी मनाए जाते हैं।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति ने राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में अमूल्य योगदान दिया है। भारतीय संस्कृति की इस व्यापकता से स्पष्ट है कि आने वाले समय में भारतीय संस्कृति से विश्व भर के देश विविधता में एकता की नीति को आत्मसात् करके अपने देश की संस्कृति को भी समृद्ध बनाएँगे।

(ख) महिला सशक्तीकरण

इसके लिए All India 2017 का प्रतिदर्श प्रश्न-पत्र की प्रश्न संख्या 3 ‘घ’ को देखिए।

(ग) मेरा प्रिय लेखक

प्रस्तावना हिंदी न केवल हमारी राष्ट्रभाषा है, बल्कि अंग्रेज़ी एवं चीन की मंदारिन भाषा के बाद विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी प्रमुख भाषा है। अपनी प्रमुखता के अनुरूप इसका साहित्य भी अत्यंत समृद्ध है। अनेक रचनाकारों और साहित्यकारों ने इसको अपनी साहित्य साधना से समृद्ध बनाया है। हिंदी को अपने साहित्य से सिंचित करने वाले एक ऐसे ही साहित्यकार हैं-मुंशी प्रेमचंद। दुनिया उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ के तौर पर जानती है। साहित्य जगत ने उनके लेखन से प्रभावित होकर उन्हें ‘कलम का सिपाही’ उपनाम देकर सम्मानित किया है।

प्रारंभिक जीवन परिचय प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपतराय था। उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश में वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायब लाल तथा माता का नाम आनन्दी देवी था। प्रेमचंद जब सात वर्ष के थे, तब उनकी माता का निधन हो गया, जिसके पश्चात् उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली। विमाता की अवहेलना एवं निर्धनता के कारण उनका बचपन अत्यंत कठिनाइयों में बीता। प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। जब वे पढ़ाई कर रहे थे, तब ही पंद्रह वर्ष की अल्प आयु में उनका विवाह कर दिया गया। विवाह के बाद घर-गृहस्थी का बोझ उनके कंधों पर आ गया था। घर-गृहस्थी एवं अपनी पढ़ाई का खर्चा चलाने के लिए उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। इसी तरह से संघर्ष करते हुए उन्होंने बी. ए. तक की शिक्षा पूरी की। इस बीच उनका अपनी पत्नी से अलगाव हो गया, जिसके बाद उन्होंने शिवरानी देवी से दूसरा विवाह कर लिया।

पढ़ाई पूरी करने के बाद वे एक अध्यापक के रूप में सरकारी नौकरी करने लगे एवं तरक्की करते हुए स्कूल इंस्पेक्टर के पद पर पहुँच गए। वर्ष 1920 में जब गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया, तो प्रेमचंद ने उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर सरकारी नौकरी त्याग दी। सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद वे साहित्य सेवा में रम गए और ब्रिटिश सरकार के विरोध में जनता को जागरूक करने के लिए लिखना शुरू कर दिया।

साहित्यिक योगदान प्रेमचंद पहले उर्दू भाषा में नवाबराय के नाम से लिखते थे, बाद में वे हिंदी में लिखने लगे। जब उनकी कुछ रचनाओं, जिनमें ‘सोजेवतन’ प्रमुख है, को ब्रिटिश सरकार ने ज़ब्त कर लिया, तो उन्होंने प्रेमचंद के छद्म नाम से लिखना शुरू किया। बाद में वे इसी नाम से प्रसिद्ध हो गए। प्रेमचंद ने सबसे पहले जिस कहानी की रचना की थी, उसका नाम है-‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’। उन्होंने अठारह उपन्यासों की रचना की, जिनमें सेवा-सदन, निर्मला, कर्मभूमि, गबन, प्रतिज्ञा, रंगभूमि उल्लेखनीय हैं। उनके द्वारा रचित तीन सौ से अधिक कहानियों में ‘कफन’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘पूस की रात’, ‘ईदगाह’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘पंच-परमेश्वर’ इत्यादि उल्लेखनीय हैं। साहित्यिक विशेषताएँ प्रेमचंद की दृष्टि बड़ी व्यापक तथा संवेदनशील थी। उन्होंने अपने समय की परिस्थितियों का सूक्ष्म अवलोकन किया तथा उन्हें अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत किया। उन्होंने समाज में उपस्थित विषमताओं की गहरी अनुभूति कर उनका सरल, परंतु मार्मिक चित्रण किया। प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से भारत के दलित एवं उपेक्षित वर्गों का नेतृत्व करते हुए उनकी पीड़ा एवं विरोध को वाणी प्रदान की। उनकी रचनाओं का एक उद्देश्य होता था। अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने न केवल सामाजिक बुराइयों के दुष्परिणामों की व्याख्या की, बल्कि उनके निवारण के उपाय भी बताए। उन्होंने बाल-विवाह, बेमेल-विवाह, विधवा-विवाह, सामाजिक शोषण, अंधविश्वास इत्यादि सामाजिक समस्याओं को अपनी कृतियों का विषय बनाया एवं यथासंभव इनके समाधान भी प्रस्तुत किए।

गाँधीवादी दर्शन की प्रधानता गाँव का निवासी होने के कारण उन्होंने किसानों के ऊपर हो रहे अत्याचारों को नजदीक से देखा था, इसलिए उनकी रचनाओं में यथार्थ के दर्शन होते हैं। उन्हें लगता था कि सामाजिक शोषण एवं अत्याचारों का उपाय गाँधीवादी दर्शन में है, इसलिए उनकी रचनाओं में गाँधीवादी दर्शन की भी प्रधानता है। प्रेमचंद ने गाँव के किसान एवं मोची से लेकर शहर के अमीर वर्ग एवं सरकारी मुलाज़िमों तक को अपनी रचनाओं का पात्र बनाया है। प्रेमचंद को उनके महान् उपन्यासों में उत्कृष्ट कथाशिल्प एवं प्रस्तुतीकरण के कारण ‘उपन्यास सम्राट’ कहा जाता है।

उपसंहार इस महान् साहित्यकार का लंबी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर, 1936 को निधन हो गया, परंतु अपनी रचनाओं के माध्यम से साहित्य-प्रेमियों के हृदय में वे सदा अमर रहेंगे। उन्होंने एक साहित्यकार के रूप में न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि समाज की समस्याओं का वर्णन करते हुए उनके निवारण के उपाय भी सुझाए। उन्होंने साहित्य-सृजन को नवनिर्माण एवं नवजागरण को माध्यम बनाया। उनका साहित्य पूरी तरह से खरा साहित्य है। हिंदी साहित्य जगत सदा उनका ऋणी रहेगा।

(घ) कश्मीर समस्या

कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है, जो भारत के उत्तर में स्थित है। कश्मीर अपने सौंदर्य के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है। कश्मीर भारत और पाकिस्तान के मध्य लड़ाई की जड़ है कश्मीर का भारत में विधिवत् विलय हुआ था। परंतु पाकिस्तान ने भारत पर पाँच बार आक्रमण किया और कश्मीर का अधिग्रहण करने का प्रयास किया। कारगिल युद्ध ने पाकिस्तान को सबक तो सिखाया, परंतु वह कश्मीर को हथियाने का प्रयास अपनी आतंकवादी गतिविधियों; जैसे-घुसपैठ, विस्फोट, हत्या आदि माध्यमों से कर रहा है। पाकिस्तान द्वारा कश्मीरियों में अलगाववादी भावनाओं को भरकर भरपूर लाभ उठाया जा रहा है। कश्मीर समस्या को वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय रंग दिया जा चुका है और भविष्य में इस समस्या के चलते विश्वयुद्ध के छिड़ने की पूर्ण संभावना है। कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान व चीन भारत के विपक्ष में हैं। पाक अधिकृत कश्मीर के अलावा कश्मीर का एक छोटा-सा भाग चीन के पास भी है, यह भाग पाकिस्तान द्वारा चीन को सौंपा गया था। कुल मिलाकर कहा जाए, तो कश्मीर की समस्या काफी गंभीर है।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिटन ने अपनी भारत यात्रा के दौरान पाकिस्तान की नीतियों की भर्त्सना की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान कश्मीर व अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ व आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। परंतु पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने क्लिटन के भारत आगमन के दिन ही अनंतनाग जिले में 35 सिखों की निर्ममता से हत्या कर दी। इस प्रकार की कई घटनाएँ पिछले 40 वर्षों से विश्व का ध्यान आकर्षित कर रही हैं। कश्मीर में आर्थिक व औद्योगिक उन्नति नहीं हो पाई, क्योंकि आतंकवाद के साथ किसी भी प्रदेश की उन्नति नहीं हो सकती। वर्तमान में कश्मीर समस्या एक नया ही गुल खिला रही है। इस प्रदेश में आतंकवादी गुटों का एक आतंक-सा छाया हुआ है। इस आतंकवाद के पीछे पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी का बहुत बड़ा हाथ है। पाकिस्तान की सेना के द्वारा समर्थित भाड़े के उग्रवादी कश्मीर को बर्बाद कर रहे हैं।

देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने गंभीर प्रयासों से इस समस्या को बातचीत द्वारा हल करने का प्रयास अवश्य किया था, परंतु इसमें अपेक्षित सफलता हाथ नहीं लगी। वर्तमान समय में कश्मीर की हालत अत्यंत गंभीर हो चुकी है, आए दिन विद्रोही स्वर उभरने लगे हैं। पत्थरबाजी, सैनिकों पर आत्मघाती हमले कश्मीर में आम बात हो चुकी है। अपने-अपने स्तर पर भारतीय सरकार ने अब तक सैंकड़ों प्रयास किए, परंतु सफलता हाथ नहीं लगी।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि कश्मीर समस्या भारत के लिए एक चुनौती है। इसका सामना करने के लिए हमारे जनसाधारण, सेनानायकों और राजनीतिक प्रतिनिधियों को सदैव तत्पर रहना होगा।

उत्तर 4.

सेवा में,
प्रधान प्रबंधक, सहकारी बैंक,
ढका गाँव, दिल्ली।

दिनांक 25 मई 20××

विषय अपने ग्राम में सहकारी बैंक की एक शाखा खोलने हेतु

महोदय,

निवेदन यह है कि मैं ढका गाँव, दिल्ली का निवासी हूँ। हमारे गाँव में एक भी सहकारी बैंक की शाखा उपलब्ध नहीं है, जिस कारण समस्त ग्रामवासियों को बैंकिंग संबंधी कार्य में समस्या होती है। सहकारी बैंक के अतिरिक्त कुछ निजी बैंक हमारे क्षेत्र में अवश्य खुले हुए हैं, परंतु उन निजी बैंकों में खाता खुलवाने हेतु खाताधारक को ₹10,000 की राशि जमा कराना अनिवार्य है। इतनी राशि जमा कराकर खाता खुलवाना हमारे ग्रामवासियों के लिए समस्या बनकर खड़ी हो गई है। गाँव से बहुत अधिक दूरी पर सहकारी बैंक की शाखा अवश्य है, परंतु वहाँ तक जाने में समय का दुरुपयोग होता है। अतः महोदय मेरा अपने ग्रामवासियों की ओर से निवेदन है कि हमारे गाँव में सहकारी बैंक की एक शाखा खोलने का कष्ट करें। आपकी अति कृपा होगी।

धन्यवाद!

भवदीय
अ.ब.स
दिल्ली

अथवा

सेवा में,
सांसद महोदय,
उत्तर-पूर्वी जिला
बुराड़ी गाँव, दिल्ली

दिनांक 25 मई, 20××

विषय अपने ग्राम में पुस्तकालय की स्थापना करवाने हेतु

महोदय,

निवेदन यह है कि मैं बुराड़ी गाँव का पिछले 20 वर्षों से स्थायी निवासी हैं। हमारे मुहल्ले में अनेक समस्याएँ हैं, जिसमें पुस्तकालय का न होना सबसे गंभार समस्या है। हमारे क्षेत्र का युवा वर्ग जो पुस्तकालय के सुख से वंचित है, जिसे पुस्तकालय का उपयोग करने के लिए 10 किमी. का सफ़र तय करना पड़ता है। इस कारण उनका समय बर्बाद होता है और वह पढ़ाई का समय यात्रा में निकाल देते हैं। हमारे क्षेत्र में बुजुर्ग वर्ग की संख्या बहुत अधिक है, जिनका घर में समय व्यतीत करना दूभर हो जाता है। यदि हमारे गाँव में भी पुस्तकालय की सुविधा होती, तो युवा और बुजुर्ग दोनों ही वर्गों को उससे लाभ होता तथा वह अपने समय को सदुपयोग कर पाते।

सांसद महोदय मेरी आपसे विनती है कि हमारे ग्राम में सांसद निधि की राशि से पुस्तकालय की स्थापना कराई जाए। आपकी अति कृपा होगी।

धन्यवाद!

भवदीय
अ.ब.स

उत्तर 5.
(क) एक अच्छा संपादकीय किसी विषय या मुद्दे पर संपादक द्वारा प्रस्तुत उसके विचारों की सजग एवं ईमानदार प्रस्तुति है। यह पाठक वर्ग को समसामयिकी मुद्दों से जोड़े रखता है और ज्ञान विस्तार में सहायक होता है।

(ख) इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की लोकप्रियता के दो कारण निम्नलिखित हैं।

  1. इसके द्वारा हम दूर-दराज में हो रही घटना को प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं और उस पर अपनी प्रतिक्रिया भी तुरंत दे सकते हैं।
  2. इसके द्वारा हम जनसामान्य को मनोरंजन एवं ज्ञान उपलब्ध करा सकते हैं।

(ग) जिन स्रोतों के आधार पर सूचना लोगों तक पहुँचाई जाती है, उन्हें समाचारों के स्रोत कहा जाता है। समाचार पत्र विभिन्न न्यूज़ एजेंसी; जैसे-पी.टी.आई., यूनीवार्ता आदि से समाचार प्राप्त करते हैं।

(घ) स्टिंग ऑपरेशन के दो लाभ निम्नलिखित हैं।

  1. भ्रष्टाचार जैसी व्यापक समस्या को सामने लाने में इसकी भूमिका स्पष्ट है। कई मंत्रियों को इस ऑपरेशन के कारण त्याग-पत्र देना पड़ा है।
  2. स्टिग ऑपरेशन को अंतिम रणनीति के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, जब सत्य को सामने लाने का कोई उपाय नहीं रह जाता है।

(ङ) संपादन के सिद्धांतों में तथ्यपरकता उसका एक महत्त्वपूर्ण गुण है। तथ्यपरकता से तात्पर्य सत्यनिष्ठा से है अर्थात् संपादक को संपादकीय लेखन के समय किसी भी विषय को तथ्यों के साथ उजागर करना चाहिए।

उत्तर 6.
‘स्वच्छ भारत अभियान’ आलेख के लिए All India के Solved paper 2017 का Q. No.6’स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत’ को देखिए।

जरूरी है जल की बचत

कहा जाता है-जल ही जीवन है। जल के बिना न तो मनुष्य का जीवन संभव है और न ही वह किसी कार्य को संचालित कर सकता है। जल मानव की मूल आवश्यकता है। यूँ तो पृथ्वी के धरातल का 71% भाग जल से भरा है, किंतु इनमें से अधिकतर हिस्से का पानी खारा अथवा पीने योग्य नहीं है। पृथ्वी पर मनुष्य के लिए जितना पेयजल विद्यमान है, उसमें से अधिकतर अब प्रदूषित हो चुका है, इसके कारण ही पेयजल की समस्या उत्पन्न हो गई है।

जल-संकट के कई कारण हैं। पृथ्वी पर जल के अनेक स्रोत हैं; जैसे-वर्षा जल, नदियाँ, झील, पोखर, झरने, भूमिगत जल इत्यादि। पिछले कुछ वर्षों में सिंचाई एवं अन्य कार्यों के लिए भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग के कारण भूमिगत जल के स्तर में गिरावट आई है। औद्योगीकरण के कारण नदियों का जल प्रदूषित होता जा रहा है। इन्हीं कारणों से पेयजल की समस्या उत्पन्न हो गई है।

मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का संतुलन बिगाड़ा है और अपने लिए भी खतरे की स्थिति उत्पन्न कर ली है। अब प्रकृति का श्रेष्ठतम प्राणी होने के नाते उसका कर्तव्य बनता है कि वह जल-संकट की समस्या के समाधान के लिए जल-संरक्षण पर जोर दे। जल-संकट को दूर करने के लिए जल के अनावश्यक खर्च से बचना चाहिए। जल के उपयोग को कम करने एवं उसके संरक्षण के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण भी आवश्यक है।

वृक्ष वर्षा लाने एवं पर्यावरण में जल के संरक्षण में सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त वृक्ष वायुमंडल में नमी बनाए रखते हैं और तापमान की वृद्धि को भी रोकते हैं। अत: जल-संकट के समाधान के लिए वृक्षों की कटाई पर नियंत्रण कर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। वृक्षारोपण से पर्यावरण के प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है।

उत्तर 7.
“मुझे जन्म देने से पहले ही मत मारो माँ” फ़ीचर के लिए All India प्रश्न पत्र 2017 का Q. No. 7’भ्रूण हत्या की समस्या’ विषय को देखें।

जाति प्रथा : एक अभिशाप

कहा जाता है, ‘जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान……!’ कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति की पहचान उसके ज्ञान से होनी चाहिए, किसी अन्य आधार पर नहीं, किंतु जाति आधारित व्यवस्था ने एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से भिन्न बना दिया है। कुछ ऐसी कुरीतियों एवं कुप्रथाओं ने जन्म लिया, जो समाज द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखाओं के कारण पनपीं और उनके उल्लंघन को समाजों के इन तथाकथित कर्णधारों ने दंडनीय अपराध घोषित कर दिया। सामाजिक बहिष्कार का दंड-विधान और समाज से बहिष्कृत होने का भय किसी मुस्लिम को हिंदू से या हिंदू को मुस्लिम से या फिर एक जाति के सदस्य को किसी अन्य जाति के सदस्यों से प्रेम या विवाह करने से रोकता है।

संभवतः मानव समाजों में स्तरीकरण का विकास वंशागत और सामाजिक दोनों कारणों से हुआ है। वंशागत स्तरीकरण जातिगत स्तरीकरण है, जबकि सामाजिक स्तरीकरण गैर-जातिगत स्तरीकरण वंशागत स्तरीकरण से दो भिन्न समाजों के विलय का बोध हो जाता है। जब एक जाति समूह दूसरे जातीय समूह या समूहों पर स्थायी रूप से न्यूनाधिक प्रबल हो जाता है, तो वंशागत स्तरीकरण निर्मित हो जाता है। भारत में हिंदू जाति व्यवस्था इसी प्रकार के स्तरीकरण का उदाहरण है।

अनेक सामाजिक अधिनियमों ने भी जाति व्यवस्था की स्थिरता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है। स्वयं जाति व्यवस्था से उत्पन्न दोषों ने भी लोगों में इसकी उपयोगिता के बारे में संदेह उत्पन्न कर दिया है। जातिगत विभेद को दूर करके ही एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है। इसलिए यह व्यवस्था की गई कि राज्य किसी भी नागरिक के प्रति धर्म, वंश अथवा जाति के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव \ नहीं करेगा।

जाति प्रथा के संदर्भ में पंडित जवाहरलाल नेहरू की बातें आज भी प्रासंगिक हैं-” भारत में जाति-पाँति प्राचीनकाल में चाहे कितनी भी उपयोगी रही हों, पर आज सभी प्रकार की उन्नति के रास्ते में भारी बाधा और रुकावट बन गई है। आज इसे जड़ से उखाड़कर अपनी सामाजिक रचना को नया रूप देने की आवश्यकता है।”

उत्तर 8.
(क) कवि ने बादल को निर्दय कहा है, क्योंकि कवि को बादल ऐसे दुःख दग्ध संसार के वायुमंडल में मँडराते, उमड़ते-घुमड़ते हुए निर्दयी माया के समान दिखाई देते हैं। कवि का आशय यह है कि बादल दुःख, अभाव व शोषण से ग्रस्त संसार के ऊपर जल बरसाकर शोषण के विरुद्ध क्रांति का उद्घोषणा करने वाले क्रांतिदूत की भूमिका में हैं, जो संपूर्ण शोषक वर्ग का बड़ी निर्ममता से विनाश करेगा।

(ख) कवि के अनुसार बादल दुःख का नाश करने वाले वीर योद्धा की भाँति हैं, जिसके युद्ध वाद्य की गर्जना से पृथ्वी के भीतर सोए अंकुर अपनी निद्रा तोड़कर जागने को तत्पर हो गए हैं। वे नवजीवन प्राप्ति की आशा में सिर उठाकर बादल के बरसने की प्रतीक्षा करने लगे हैं।

(ग) बादल को ‘ए विप्लव के बादल’ इसलिए कहा गया है, क्योंकि यहाँ बादल को क्रांतिकारी रूप में वर्णित किया गया है। कवि का उद्देश्य शोषण के विरुद्ध आह्वान करना है। इसीलिए बादल यहाँ केवल जल बरसाने वाले प्राकृतिक तत्त्व नहीं हैं, बल्कि वे संसार में व्याप्त अमानुषिक कृत्यों एवं अत्याचार आदि को अपने प्रलयंकारी रूप से नष्ट कर नवजीवन की चेतना प्रसारित करने के रूप में हैं।

(घ) प्रस्तुत काव्य पंक्तियों से आशय है कि बादल वायु रूपी सागर के ऊपर अस्थिर अर्थात् क्षणिक सुख पर दुःख की छाया के समान लहराते हुए मँडरा रहे हैं। कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि संसार को हृदय दुःख के कारण जला हुआ है।

अथवा

(क) काव्यांश में ‘वे’/’उनके’ सर्वनाम बच्चों के लिए प्रयुक्त हुए हैं। वे हर समय भागते-दौड़ते रहते हैं, सक्रिय रहते हैं, जीवंत रहते हैं। वे कठोर पत्थरों एवं सतहों वाली छतों को भी मुलायम ही समझते हैं। उनकी उमंग इतनी उत्कट, धुने इतनी तीव्र एवं सक्रियता इतनी | बलवती है कि सभी दिशाएँ उनकी सक्रियता की ताल से मृदंग की तरह बजती दिखाई देती हैं।

(ख) कपास का रेशा कोमल एवं लचीला होता है। कवि की दृष्टि में बच्चे कपास के समान ही हल्के, श्वेत (स्वच्छ), मासूम एवं कोमल भावनाओं तथा लचीले शरीर वाले होते हैं। उनमें कपास जैसा आकर्षण भी होता है। दोनों के गुणों में समानता के कारण कवि ने बच्चों का संबंध कपास से जोड़ा है।

(ग) कवि ने बच्चों के ‘बेसुध होकर दौड़ने के निम्नलिखित उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।

बच्चे कठोर पत्थरों एवं सतहों वाली छतों को भी मुलायम ही समझते हैं तथा बेसुध होकर संपूर्ण पृथ्वी को अपने पैरों से दौड़कर नाप देना चाहते हैं। दूसरी ओर कवि कहता है कि बच्चे इतने उत्साहित होते हैं कि वे दिशाओं को अपनी बोलियों से मृदंग की भाँति झंकृत और कंपायमान कर देते हैं। कोमल एवं लचीला शरीर लिए हुए ये बच्चे जब दौड़ते हैं, तो कवि को उनका दौड़ना झूले के पेंग की भॉति प्रतीत होता है।

(घ) ‘छतों को नरम बनाना और ‘दिशाओं को मृदंग की तरह’ बजाना का भाव यह है कि बच्चे उत्सुकता में कठोर छतों पर भी बेसुध होकर ऐसे दौड़ते हैं मानों बच्चों के स्वभाव की भाँति छतें कितनी नरम हो गई हों। दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने से तात्पर्य यह है कि जब बच्चों के पैर छत पर पड़ते हैं, तो उन पैरों की पदचाप मृदंग जैसी ध्वनि करती है।

उत्तर 9.
(क) प्रस्तुत काव्यांश में अंत्यानुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है, जबकि ‘मानहुँ कालु देह धरि बैसा’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग किया गया है।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश की भाषा संबंधित विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. प्रस्तुत काव्यांश में अवधी भाषा की सुंदर शब्दाभिव्यक्ति का प्रयास किया गया है।
  2. भाषा में चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है।

(ग) काव्यांश में 16 मात्राओं वाले चौपाई छंद का प्रयोग हुआ है। यह एक सम-मात्रिक छंद है, जो तुलसी जी की रचनाओं में बहुलता से देखने को मिलता है।

उत्तर 10.
(क) ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता वास्तव में मीडिया द्वारा लोगों की पीड़ा बेचने की स्थिति को दर्शाती है। तथाकथित संवेदनशील कार्यक्रमों का संचालन करने वाले स्वयं संवेदनहीन होते हैं। वे पीड़ित व्यक्ति से अर्थहीन एवं मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछते हैं, क्योंकि उनकी उद्देश्य सिर्फ ऐसे प्रश्न करना है, जिससे पीड़ित की वेदना, आँसुओं के रास्ते छलक उठे और दर्शक उनके कार्यक्रम में रुचि लें। किसी भी तरह उनका टी.आर.पी. बढ़े और उन्हें इसका व्यावसायिक लाभ प्राप्त हो सके। उनका एकमात्र उद्देश्य अपाहिज या पीड़ायुक्त व्यक्ति की वेदना को दूरदर्शन के माध्यम से बेचना होता है।

इन उदाहरणों के माध्यम से कहा जा सकता है कि यह कविता शारीरिक विकलांगता की चुनौती झेल रहे व्यक्ति का उपहास करती है।

(ख) सीधी बात भी तब टेढ़ी होकर उलझती जाती है, जब बात को बेवजह घुमाकर, आडंबरपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इस कारण उसका प्रभाव नष्ट हो जाता है। जिस प्रकार पेंच की चूड़ी मरने से, उसका यथास्थान निर्मित खाँचे के नष्ट होने से कसाव नष्ट हो जाता है, वैसे ही भाषा के अनावश्यक विस्तार से बात का प्रभाव कम हो जाता है। मूल बात शब्दजाल में उलझ कर रह जाती है। फिर बात कील की तरह ठोंक भले ही दी जाए, उसका वैसा प्रभाव नहीं रह जाता। वह श्रोता या पाठक के हृदय तक नहीं पहुँच पाती। अतः बात को सरल भाषा और कम-से-कम शब्दों में सटीक ढंग से कहा जाना चाहिए, तभी वह प्रभावशाली रहती है।

(ग) फिराक गोरखपुरी ने अपनी रुबाइयों में उच्च कोटि का वात्सल्य चित्रण किया है, जिसमें एक माँ अपने प्रिय पुत्र को आँगन में लिए खड़ी है। उसे हाथों के झूले पर झुला रही है, बालक प्रसन्नता से किलकारियाँ मार रहा है। माँ बच्चे को नहलाकर तैयार करती है, घुटनों में दबाकर उसे कपड़े पहनाती है। तब बच्चा माँ का मुख निहारता है। दीवाली के त्योहार पर माँ चीनी- मिट्टी के खिलौने लाती है, दीये जलाती है। उसके घरौंदे पर दीया जलाते समय माँ के मुख पर गर्व और वात्सल्य की अनोखी चमक रहती है। माँ बच्चे को शीशे में चाँद दिखाकर बहलाती है। वास्तव में, फिराक की रुबाई में हिंदी का एक घरेलू रूप दिखता है। उनकी सहज भाषा एवं प्रसंग सूरदास के वात्सल्य वर्णन की सादगी की याद दिलाते हैं।

उत्तर 11.
(क) प्रस्तुत गद्यांश में बाज़ार के जादू की चर्चा हो रही है। बाज़ार को जादू इसलिए कहा गया है, क्योंकि उसमें रूप और आकर्षण का बोलबाला होता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को बाज़ार में उपस्थित सभी वस्तुएँ आवश्यक लगती हैं। यही बाजार के जादू का असर है।

(ख) लेखक ने बाज़ार के आकर्षण की तुलना चुंबक से की है। जिस प्रकार चुंबक लोहे को अपनी ओर खींचता है, उसी प्रकार बाज़ार का जादू चढ़ने पर मनुष्य रूपी लोहा उसकी ओर आकर्षित होता है। उसे लगता है कि सभी वस्तुएँ खरीद ली जाएँ। उसे सभी वस्तुएँ अनिवार्य तथा आराम बढ़ाने वाली लगने लगती हैं।

(ग) लेखक ने बाज़ार के जादू को ऐसा बताया है कि लोगों के पास भले ही धन की कमी हो लेकिन बाज़ार का आकर्षण उन्हें इस कदर व्याकुल कर देता है कि उनका मन बाज़ार से अनावश्यक वस्तुओं का आयात करने के लिए भी व्यग्र हो उठता है।

(घ) जादू से छुटकारा पाने का उपाय यह है कि व्यक्ति को बाज़ार तभी जाना चाहिए, जब उसे अपनी आवश्यकता के बारे में पूर्ण जानकारी हो, बिलकुल भगत जी की भाँति, क्योंकि अपनी आवश्यकता का ज्ञान होने पर ही हम बाज़ार को तथा बाज़ार हमें वास्तविक लाभ दे पाएगा।

उत्तर 12.
(क) डॉ. आंबेडकर जाति प्रथा को श्रम विभाजन का स्वाभाविक विभाजन नहीं मानते हैं, जिसके पीछे उन्होंने निम्नलिखित तर्क दिए हैं।
(i) जाति-प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन भी कराती है। सभ्य समाज में श्रमिकों को विभिन्न वर्गों में विभाजन अस्वाभाविक है। इसे कभी भी नहीं माना जा सकता।
(ii) जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि मनुष्य के प्रशिक्षण एवं उसकी निजी क्षमता पर विचार किए बिना किसी दूसरे के द्वारा उसके लिए व्यवसाय निर्धारित कर दिया जाए।
(iii) जाति-प्रथा मनुष्य को जीवनभर के लिए एक व्यवसाय में बाँध देती है। भले ही वह व्यवसाय उसके लिए अनुपयुक्त या अपर्याप्त क्यों न हो? भले ही इससे उसके भूख से मरने की नौबत आ जाए।

(ख) गाँव में फैली बीमारी ने अब महामारी का रूप ले लिया था। इसने इस तरह गाँव में हाहाकार मचा दिया था कि सभी के चेहरे पर रुदन के अलावा अन्य कोई भी चिन्ह यदा-कदा ही दृष्टिगोचर होता था। सूर्य निकलने के साथ ही लोग काँपते-कराहते घरों से निकलकर अपने आत्मीयजनों तथा मित्रों को समय बलवान होना समझाकर ढाँढस बँधाते थे और कहते थे कि समय परिवर्तित होता रहता है, बुरा समय भी जल्दी समाप्त हो जाएगा। लोग सूर्य के अस्त होने के साथ ही अपनी-अपनी झोंपड़ियों में चले जाते और उनकी चूँ तक की आवाज़ भी नहीं आती। उनकी बोलने की शक्ति भी बिलकुल समाप्त हो जाती। केवल रुग्ण गाँववासियों के रोने-कराहने और बच्चों की माँ-माँ करने की आवाजें ही आतीं।।

(ग) वर्तमान समाज की स्थिति ऐसी हो चुकी है कि वह केवल किसी वस्तु की माँग कर सकता है, परंतु जब त्याग की बात आती है तो वह कोसो दूर पीछे हट जाता है। यह मनुष्य की स्वार्थ प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है। शिक्षा, खेल, उद्योग-धंधे आदि भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में स्वार्थ सिद्धि हेतु मनुष्य कभी माता-पिता से तो कभी देश की व्यवस्था से माँग करता हुआ नज़र आता है, परंतु जब हमारी ज़रूरत किसी बेसहारा को पड़ती है, तो हम उससे मुँह चुराकर भाग खड़े होते हैं। इन्हीं बातों को लेखक ने ‘काले मेघा पानी दे’ कहानी के माध्यम से उजागर करने का प्रयास किया है।

(घ) भक्तिन अच्छी है, पर उसके दुर्गुणों को तीन तर्कों के आधार पर बताया गया है, जैसे—वह सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं है। वह रुपयों-पैसों को मटकी में रख देती है और पूछने पर बताती है कि उसने उन्हें सँभालकर रखा हुआ है। वह लेखिका को प्रसन्न रखने के लिए बात को इधर-उधर घुमाकर कहती है। इसे आप झूठ कह सकते हैं। भक्तिन सभी बातों और कामों को अपनी सुविधा के अनुसार ढालने में निपुण है, जो कई बार दूसरों को नापसंद होता है।

(ङ) लेखक ने चार्ली के जीवन के बारे में बहुत ही सुंदर ढंग से उदाहरण देते हुए बताया है कि चार्ली भीड़ का एक बच्चा है, जो इशारे से बताना जानता है कि राजा भी उतना ही नंगा है, जितना कि मैं हूँ। यह सुनकर भीड़ हँस देती है। वे स्वयं को भी हास्यास्पद बता देते हैं और राजा गुस्सा भी नहीं हो पाते।

चार्ली ने जीवन के हर कदम पर संघर्षों में लड़ते हुए भी हँसना सीखा है। एक परित्यक्ता (तलाकशुदा) और दूसरे दर्जे की अभिनेत्री का बेटा था चार्ली, जिसने भयंकर गरीबी देखी, फिर माँ का पागल हो जाना देखा, फिर औद्योगिक क्रांति, पूँजीवाद और सामंतवाद से भरे घमंडी समाज की उपेक्षा तथा तिरस्कार सहे। इन सभी परिस्थितियों से चार्ली चैप्लिन को जीवन मूल्य प्राप्त हुए।

उत्तर 13.
यशोधर बाबू पुराने रीति-रिवाज़ों को मानने वाले एक आदर्श व्यक्ति थे। आधुनिक युग का प्रभाव उन्होंने अपने ऊपर नहीं पड़ने दिया था। वे अपने ही सिद्धांतों पर चलना चाहते थे और अपने परिवार से भी इन्हीं जीवन-मूल्यों की अपेक्षा रखते थे। उनको इस बात की परवाह नहीं थी कि नई पीढ़ी को मेरे जीवन मूल्य पसंद हैं या नहीं। उनके द्वारा जबरन नई पीढ़ी पर अपने सिद्धांत थोपना ही उनकी समस्या का कारण बना था। वे चाहते थे कि नई पीढ़ी मेरे सिद्धांतों और मेरे जीवन मूल्यों को अंगीकृत करे, परंतु नई पीढ़ी को यह बात जरा भी पसंद नहीं थी। आज नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के मध्य विघटन का प्रमुख कारण आधुनिकता बनाम परंपरा की अवधारणा है। यशोधर बाबू को नई पीढ़ी के क्रियाकलाप अनुचित लगते थे। वे ‘समहाउ इप्रॉपर’ का प्रयोग इसलिए करते थे, क्योंकि वे आजकल के नए विचारों के पक्ष में नहीं थे। वस्तुतः वे पुराने नियमों में कोई बदलाव नहीं चाहते। वे अपना तकिया कलाम ‘समहाउ इंप्रॉपर’ बोलकर नए युग का विरोध करना चाहते थे।

उत्तर 14.
(क) सौंदलगेकर मराठी भाषा के अध्यापक थे। वे मराठी भाषा को अत्यंत रुचि लेकर पढ़ाते थे। उनका पढ़ाने का तरीका विशिष्ट था। अध्यापन के कार्य में वे पूरी तरह रम जाते थे। उन्हें छंद तथा सुरों का विशिष्ट ज्ञान था। वे पहले कविता गाकर सुनाते, फिर गायन के साथ अभिनय करते। श्री सौंदलगेकर की अध्यापन शैली ने लेखक को अत्यधिक प्रभावित किया। अपने शिक्षक की प्रतिभा से प्रेरणा ग्रहण कर रचनाकार ने कविता लिखने का प्रयास प्रारंभ किया। पढ़ाई के बाद खेतों पर काम करते हुए लेखक को काफी समय मिल जाता। इस समय का सदुपयोग करते हुए वह कविता लिखकर अपने अध्यापक को दिखाता, ताकि उसमें मौजूद कमियों को दूर किया जा सके। इस प्रकार लेखक के मन में कविता लिखने के प्रति रुचि जगाने में उनके अध्यापक सौंदलगेकर की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रही।

इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि सौंदलगेकर एक आदर्श अध्यापक प्रतीत होते हैं।

(ख) ऐन ने समाज में स्त्रियों की दशा को बहुत ही दयनीय बताया है। वह ऐसा मानती है कि पुरुष स्त्रियों की शारीरिक अक्षमता को ढाल बनाकर उन्हें अपने से नीचे ही रखते हैं, पर उसे लगता है कि आमतौर पर औरतें युद्ध में लड़ने वाले वीरों से अधिक तकलीफें झेलती हैं। औरत ही हैं, जो मानव जाति की निरंतरता को बनाए रखने के लिए सिपाहियों से भी अधिक परिश्रम करती हैं। ऐन ने स्त्री जीवन को बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। वह स्त्री जीवन के अनुभव को अतुलनीय बताती है।

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