CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 1

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CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 1

BoardCBSE
ClassXII
SubjectHindi
Sample Paper SetPaper 1
CategoryCBSE Sample Papers

Students who are going to appear for CBSE Class 12 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme as prescribed by the CBSE is given here. Paper 1 of Solved CBSE Sample Paper for Class 12 Hindi is given below with free PDF download solutions.

समय :3 घंटे
पूर्णांक : 100

सामान्य निर्देश

  • इस प्रश्न-पत्र के तीन खंड हैं-क, ख और ग।
  • तीनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
  • यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए (15)

दबाव में काम करना व्यक्ति के लिए अच्छा है या नहीं, इस बात पर प्राय: बहस होती है। कहा जाता है कि व्यक्ति अत्यधिक दबाव में नकारात्मक भावों को अपने ऊपर हावी कर लेता है, जिससे उसे अक्सर कार्य में असफलता प्राप्त होती है। वह अपना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी खो बैठता है। दबाव को यदि ताकत बना लिया जाए, तो न सिर्फ सफलता प्राप्त होती है, बल्कि व्यक्ति कामयाबी के नए मानदंड रचता है। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जब लोगों ने अपने काम के दबाव को अवरोध नहीं, बल्कि ताकत बना लिया। “सुख-दु:ख, सफलता-असफलता, शांति-क्रोध और क्रिया-कर्म हमारे दृष्टिकोण पर ही निर्भर करता है। जोंस सिल्वा इस बात से सहमत होते हुए अपनी पुस्तक ‘यू द हीलर’ में लिखते हैं कि मुन्, मस्तिष्क को चलाता है। और मस्तिष्क शरीर को। इस तरह शरीर मुन के आदेश का पालन करता हुआ काम करता है।

दबाव में व्यक्ति यदि सकारात्मक होकर काम करे, तो वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में कामयाब होता है। दबाव के समय मौजूद समस्या पर ध्यान केंद्रित करने और बोझ महसूस करने की बजाय यदि यह सोचा जाए कि हम अत्यंत सौभाग्यशाली हैं, जो एक कठिन चुनौती को पूरा करने के लिए तत्पर हैं, तो हमारी बेहतरीन क्षमुताएँ स्वयं जागृत हो उठती हैं। हमारा दिमाग जिस चीज़ पर भी अपना ध्यान केंद्रित करने लगता है, वह हमें बढ़ती प्रतीत होती है। यदि हम अपनी समस्याओं के बारे में सोचेंगे, तो वे और बड़ी होती महसूस होंगी। अगर अपनी शक्तियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, तो वे भी बड़ी मुहसूस होंगी। इस बात को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि “जीतना एक आदत है, पर अफसोस! हारना भी एक आदत ही है।”

(क) दबाव में काम करने के नकारात्मक प्रभाव समझाइए। (2)
(ख) दबाव हमारी सफलता का कारण कब और कैसे बन सकता है? (2)
(ग) दबाव में सकारात्मक सोच क्या हो सकती है? स्पष्ट कीजिए। (2)
(घ) काम करने की प्रक्रिया में मन, मस्तिष्क और शरीर के संबंध को अपने शब्दों में समझाइए। (2)
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए-“जीतना एक आदत है, पर अफसोस! हारना भी एक आदत ही है।” (2)
(च) गद्यांश के केंद्रीय भाव को लगभग 20 शब्दों में लिखिए। (2)
(छ) अपनी क्षमताओं को जगाने में या समस्याओं को बड़ा महसूस करने में हमारी सोच की क्या भूमिका है? (2)
(ज) उपरोक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए। (1)

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (1 × 5 = 5)

मन-दीपक निष्कंप जलो रे!
सागर की उतालु तरंगें,
आसमान को छु-छू जाएँ।
डोल उठे डगमग भूमंडल
अग्निमुखी ज्वाला बरसाए,
धूमकेतु बिजली की द्युति से,
धरती का अंतर हिल जाए।
फिर भी तुम ज़हरीले फन को
कालजयी बनु उसे दलो रे।

कदम-कदम पर पत्थर, काँटे
पैरों को छलनी कर जाएँ।
श्रांत-क्लांत करने को आतुर
क्षण-क्षण में जुग की बाधाएँ
मरण गीत आकर गा जाएँ।
दिवस-रात, आपद-विपदाएँ
फिर भी तुम हिमपात तपन में
बिना आह चुपचाप जलो रे।

(क) कविता किसे संबोधित है और उसे क्या करने को कहा गया है?
(ख) कालजयी बनकर कैसी बाधाओं का दलन करने को कहा गया है?
(ग) पत्थर और काँटे किसके प्रतीक हैं? वे क्या कर सकते हैं?
(घ) धरती का अंतर कैसे, क्यों हिल जाता है?
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए-मन-दीपक निष्कंप जलो रे।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबंध लिखिए (5)

(क) पड़ोसी देश
(ख) मनोरंजन की दुनिया
(ग) विकास के पथ पर भारत
(घ) नारी-सशक्तीकरण

प्रश्न 4.
निकट के शहर से आपके गाँव तक की सड़क का रख-रखाव संतोषजनक नहीं है। मुख्य अभियंता, लोक-निर्माण विभाग को एक पत्र लिखकर तुरंत कार्यवाही का अनुरोध कीजिए। समस्या के निदान के लिए एक सुझाव भी दीजिए। (5)
अथवा
किसी पर्यटन स्थल के होटल के प्रबंधक को निर्धारित तिथियों पर होटल के दो मादु (कमरे) आरक्षित करने का अनुरोध करते हुए पत्र लिखिए। पत्र में उन्हें कारण भी बताइए कि आपने वही होटल क्यों चुना।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए (1 × 5 = 5)

(क) ‘संचार का महत्त्व’ दो बिंदुओं में समझाइए।
(ख) “समाचार’ शब्द को परिभाषित कीजिए।
(ग) ‘इंटरनेट’ पत्रकारिता के दो लाभ लिखिए।
(घ) ‘फोन-इन’ का आशय समझाइए।
(ङ) समाचार लेखन के छः ककार क्या हैं?

प्रश्न 6.
‘वन रहेंगे : हम रहेंगे’ अथवा ‘स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत’ विषय पर एक फ़ीचर लिखिए। (5)

प्रश्न 7.
‘कन्या भ्रूण-हत्या की समस्या’ अथवा ‘बेमेल विवाह’ विषय पर एक आलेख लिखिए। (5)

प्रश्न 8.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए (2 × 4 = 8)

अट्टालिका नहीं हे रे
आतंक-भुवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव प्लावन

क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर
रोग-शोक में भी हँसता है।
शैशव का सुकुमार शरीर।

(क) कवि अट्टालिकाओं को आतंक-भवन क्यों मानता है?
(ख) ‘पंक’ और ‘विप्लव’ का प्रतीकार्थ क्या है?
(ग) ‘जलज’ किसे मानेंगे? उसके विशेषणों के प्रयोग सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
(घ) काव्यांश का केंद्रीय भाव समझाइए।

अथवा

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है।
जितना भी उँडेलता हूँ,
भर-भर फिर आता है।
दिल में क्या झरना है?

मीठे पानी का सोता है।
भीतर बृह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर ।
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।

(क) ‘तुम’, ‘तुम्हारा’ सर्वनाम किसके लिए प्रयुक्त हुए हैं? आप ऐसा क्यों मानते हैं?

(ख) उस ‘अनजान रिश्ते’ पर टिप्पणी कर बताइए कि उसका कवि पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?

(ग) आशय स्पष्ट कीजिए
“दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है”

(घ) काव्यांश के आधार पर कवि की मनःस्थिति पर टिप्पणी कीजिए।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 3 = 6)

आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है।
पूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी।

(क) काव्यांश किस छंद में है? उसके लक्षण बताइए।
(ख) काव्यांश में रूपक अलंकार के सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ग) काव्यांश की भाषा की दो विशेषताएँ लिखिए।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 2 = 6)

(क) ‘बच्चन’ के संकलित गीत में दिन ढलते समय पथिकों और पक्षियों की गति में तीव्रता और कवि की गति में शिथिलता के कारण लिखिए।
(ख) ‘बात की चूड़ी मरने और उसे सहूलियत से बरतने से कवि का क्या अभिप्राय है? ‘बात सीधी थी पर कविता के आधार पर लिखिए।
(ग) “धूत कहौ, अवधूत कहौ सवैये में तुलसीदास का स्वाभिमान प्रतिबिंबित होता है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)

इस सद्भाव के ह्रास पर आदमी आपस में भाई-भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे ग्राहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं। मानो दोनों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों। एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखता है और यह बाज़ार का, बल्कि इतिहास का; सत्य माना जाता है। ऐसे बाज़ार को बीच में लेकर लोगों में आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता; बल्कि शोषण होने लगता है, तब कपूट सफल होता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाज़ार मानवता के लिए विडंबना हैं।

(क) सद्भाव का ह्रास कब होता है? उसके क्या परिणाम होते हैं?
(ख) स्वभाव में ग्राहक-विक्रेता व्यवहार क्यों आ जाता है? इसके लक्षण क्या हैं?
(ग) “ऐसे बाज़ार को”-कथन से लेखक का क्या तात्पर्य है? वे मानवता के लिए विडंबना क्यों हैं?
(घ) इस गद्यांश में आज की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति की क्या-क्या विशेषताएँ दिखाई पड़ती हैं?

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 4 = 12)

(क) भक्तिन लाट साहब तक से लड़ने को तत्पर क्यों थी? इससे उसके स्वभाव की कौन-सी विशेषता उजागर होती है?
(ख) चार्ली चैप्लिन के व्यक्तित्व को निखारने में उसके व्यक्तिगत जीवन के संघर्षों का बड़ा हाथ है। सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
(ग) भारत-पाक के वर्तमान संबंधों को देखते हुए ‘नमक’ कहानी के संदेश की समीक्षा कीजिए।
(घ) हजारीप्रसाद द्विवेदी के द्वारा नेताओं और कुछ पुराने व्यक्तियों की अधिकार सीमा पर किए गए व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
(ङ) जाति प्रथा को श्रम विभाजन का रूप न मानने के पीछे डॉ. आंबेडकर के तर्कों का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न 13.
पुराने होते जा रहे जीवन-मूल्यों और नए प्रचलनों के बीच यशोधर पंत के संघर्ष पर प्रकाश डालिए। (5)

प्रश्न 14.
(क) अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (5)
(ख) जूझ’ पाठ के आधार पर अध्यापक के रूप में सौंदलगेकर के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (5)

उत्तर

उत्तर 1.
(क) दबाव में काम करने से मनुष्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव निम्न हैं।

  1. व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य क्षीण होता है।
  2. व्यक्ति की कार्य क्षमता प्रभावित होती है, जिससे अक्सर उसे कार्यों को भली-भाँति करने में असफलता प्राप्त होती है।

(ख) व्यक्ति जबे दबाव को सकारात्मक रूप में ग्रहण करके उसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार करता है और अपने कार्य को पूर्ण करने के लिए दृढ़ इच्छा से उसमें जुट जाता है, तो दबाव कार्य को सफलतापूर्वक करने में सहायक बनता है।

(ग) दबाव के समय सकारात्मक सोच यह हो सकती है कि हम मौजूद समस्या पर ध्यान केंद्रित करने और उसे बोझ महसूस करने के अलावा यदि यह सोचें कि हम अत्यंत सौभाग्यशाली हैं, हम कठिन चुनौती को पूरा करने के लिए तत्पर हैं, तो हमारी बेहतरीन क्षमताएँ स्वयं जागृत हो उठेगी।

(घ) काम करने की प्रक्रिया में मन, मस्तिष्क और शरीर तीनों परस्पर संबंधित होते हैं। मन में जो भी भाव सकारात्मक अथवा नकारात्मक सक्रिय होते हैं, उन्हीं के अनुरूप मस्तिष्क कार्य करता है और शरीर को कार्य करने का आदेश देता है।

(ङ) “जीतना एक आदत है, पर अफसोस! हारना भी एक आदत ही है”-पंक्ति से लेखक का आशय है कि जीतना या हारना व्यक्ति की मानसिकता पर निर्भर करता है अर्थात् व्यक्ति के मन में सकारात्मक या नकारात्मक जिन भावों की प्रबलता होगी, उसी का परिणाम उसके कार्यों पर पड़ेगा।

(च) गद्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि व्यक्ति को कार्यों को करते समय सामने आने वाली कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उनको चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए।

(छ) अपनी क्षमताओं को जगाने में या समस्याओं को बड़ा महसूस करने में हमारी सोच की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि व्यक्ति जैसा सोचता है, वही उसके कार्यों की परिणति के रूप में परिलक्षित होता है। यदि वह समस्याओं को तुच्छ व सामान्य मानकर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखता है, तो वह लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेता है।

(ज) ‘मानव जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण का महत्त्व’ गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक है।।

उत्तर 2.
(क) प्रस्तुत कविता में कवि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को संबोधित करते हुए कहता है कि जीवन पथ पर तुम्हारे सामने कितनी ही आपदाएँ अथवा विपत्तियाँ आएँ, तुम उन्हें अपनी इच्छाशक्ति से परास्त कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते चलो।

(ख) कवि विपत्ति रूपी सागर की विकराल तरंगों, जिनके वेग से सृष्टि हिलने लगे और ऐसा प्रतीत हो जैसे वे आग बरसा रही हों। ऐसी विपदाओं के जहरीले फन को कालजयी बनकर दलने अर्थात् नष्ट करने के लिए कहता है।

(ग) पत्थर और काँटे जीवन पथ पर आने वाली कठिनाइयों के प्रतीक हैं। ये विपत्ति रूपी पत्थर और काँटे पैरों को छलनी कर जीवन में बाधाएँ उत्पन्न कर सकते हैं।

(घ) धरती का अंतर धूमकेतु की बिजली की चमक अर्थात् निरंतर धरती पर बढ़ने वाले छल-प्रपंच, अत्याचार, अन्याय, एवं बैरभाव के कारण हिल जाता है।

(ङ) ‘मन-दीपक निष्कंप जलो रे’ पंक्ति से आशय यह है कि मन में जलने वाली आशाओं, इच्छाओं व साहस रूपी दीपक तुम निष्कंप अर्थात् पूर्ण दृढ़ता के साथ जलो और दुनिया को प्रकाशित कर उसके मार्ग की बाधाओं को दूर करो।

उत्तर 3.

(क) पड़ोसी देश

भूमिका दक्षिण एशिया में स्थित भारत इस समय विश्व के प्रभावशाली देशों में से एक है। इसके उत्तर में पर्वतराज हिमालय है और दक्षिण में विशाल हिंद महासागर। भौगोलिक रूप से यह जल और थल दोनों से जुड़ा हुआ है। इसके आकार और शांतिपूर्ण छवि के कारण एशिया महाद्वीप में इसका स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस बात से इसके पड़ोसी देश भी भली-भाँति परिचित हैं। इसके वृहत आकार के कारण इसके पड़ोसी देशों की संख्या भी अधिक ही है। भारत के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका तथा मालदीव को सम्मिलित किया जाता है। भारत के लिए उसका प्रत्येक पड़ोसी देश बहुत अहम है, इसलिए भारत का प्रयास रहता है कि उन सभी से उसके संबंध सकारात्मक दिशा में आगे बढ़े।

भारत-पाकिस्तान संबंध पाकिस्तान को छोड़कर भारत के सभी पड़ोसी राज्यों से अच्छे संबंध हैं। पाकिस्तान के साथ खराब संबंधों का कारण वहाँ के शासकों की भारत की ओर कुदृष्टि है। वे जम्मू-कश्मीर को प्राप्त करना चाहते हैं, जिस कारण उन्होंने भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमाओं पर अघोषित युद्ध छेड़ रखा है। भारत में अशांति, हिंसा और उग्रवाद का भी पाकिस्तान बराबर प्रयत्न करता रहा है। पाकिस्तान, भारत के विभाजन का परिणाम है। यह 14 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् पाकिस्तान भारत पर चार बार (वर्ष 1947, 1965, 1971 और 1999 में) आक्रमण कर चुका है और प्रत्येक बार उसे हार का सामना करना पड़ा है। पाकिस्तान से शत्रुतापूर्ण रवैये के बाद भी भारत ने पाकिस्तान के प्रति सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया है।

भारत-चीन संबंध भारत का दूसरा महत्त्वपूर्ण पड़ोसी देश है-एशिया का तेज़ी से उभरता हुआ शक्तिशाली देश चीन’। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की सीमाओं से स्पर्श करता हुआ चीन क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत से बड़ा है। इन दोनों देशों को एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में जाना जाता है। यद्यपि भारत और चीन के संबंध ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक रूप से हज़ारों साल पुराने हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् भी दोनों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध रहे, परंतु वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण करके अरुणाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। चीन के इस कुकृत्य से भारत-चीन संबंधों में कड़वाहट उत्पन्न हो गई। यद्यपि दोनों देशों के मध्य गतिरोधों को दूर करने के प्रयास वर्ष 1968 से ही शुरू हो गए थे। वर्ष 1988 में राजीव गाँधी ने चीन की यात्रा करके मित्रता की पहल की। वर्ष 2008 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी राजीव गाँधी के नक्शेकदम पर चलते हुए दोनों देशों के मध्य संबंध सुधारने की कोशिश की। वर्ष 2014 में श्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात् चीनी राष्ट्रपति श्री शी जिन पिंग की यात्रा के दौरान दोनों देशों के मध्य सीमा विवाद को निपटाने पर चर्चा की गई थी, साथ ही 16 विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे। निःसंदेह चीनी राष्ट्रपति की इस यात्रा से आपसी भाईचारे की भावना का विकास हुआ है, किंतु दोनों देशों के संबंध अभी भी संदेह के वातावरण में ही आगे बढ़ रहे हैं।

भारत-नेपाल संबंध यदि पाकिस्तान और चीन को छोड़ दें, तो भारत के संबंध अपने अन्य सभी पड़ोसी देशों के प्रति काफ़ी अच्छे हैं। बात अगर नेपाल की करें, तो नेपाल के साथ भारत के संबंध बहुत ही अच्छे हैं। उत्तर में नेपाल की सीमा चीन से लगती है, अन्य सभी ओर से यह भारत से घिरा हुआ है। प्राचीनकाल से ही नेपाल और भारत में सांस्कृतिक रूप से बहुत अधिक समानताएँ रही हैं। संभवतः इस कारण दोनों के मध्य कभी कोई विशेष विवाद नहीं रहा और भारत ने सदैव ही नेपाल के विकास में एक अच्छे पड़ोसी की तरह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारत ही सर्वप्रथम वह राष्ट्र था, जिसने नेपाल में आए भयानक भूकंप से भीषण नुकसान के समय अपनी सेना को वहाँ भेजकर उसे सहायता प्रदान की। भारत हमेशा एक अच्छे पड़ोसी के रूप में नेपाल के साथ खड़ा दिखाई दिया है।

भारत-बांग्लादेश संबंध भारत के पूर्व में स्थित बांग्लादेश पहले पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। यह पहले पाकिस्तान का ही हिस्सा था, लेकिन पाकिस्तान सरकार के तानाशाही रवैये के कारण तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को दमन का शिकार होना पड़ा। उस समय बहुत सारे बांग्लादेशियों ने भारत में शरण ली, तब मजबूरन भारत को सैन्य हस्तक्षेप करना पड़ा। भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और अंतर्राष्ट्रीय जगत के सम्मिलित प्रयासों द्वारा 6 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा जल बँटवारा, भारत में रहने वाले प्रवासी बांग्लादेशी, भारत-बांग्लादेश सीमा रेखा इत्यादि जैसे कुछ विवादित मुद्दे हैं, लेकिन इन्हें बातचीत के माध्यम से सुलझाया जा सकता है। आशा है कि आने वाले समय में दोनों देशों के बीच संबंध निश्चित तौर पर बेहतर ही होंगे।

भारत-भूटान संबंध ऐतिहासिक रूप से देखा जाए, तो भारत और भूटान के संबंध काफ़ी घनिष्ठ रहे हैं। अगस्त, 1949 में दोनों देशों ने मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसके अंतर्गत दोनों देश पारस्परिक रूप से शांति बनाए रखने के लिए एक-दूसरे के आंतरिक मुद्दों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

भूटान भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी देश है, इसलिए जून, 2014 में वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भूटान को चुना। उनकी इस यात्रा का उद्देश्ये पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देना था। इस दौरान उन्होंने भूटान के उच्चतम न्यायालय परिसर का उद्घाटन किया और भूटान को सूचना प्रौद्योगिकी एवं डिजिटल क्षेत्र में सहयोग देने का वादा किया। निश्चित रूप से आने वाले समय में भूटान के साथ हमारा रिश्ता और गहरा होगा।

भारत-म्यांमार संबंध भारत के अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम राज्यों से सटा म्यांमार भारत के पूर्व में स्थित है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण म्यांमार भारत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। ऐतिहासिक रूप से भारत और म्यांमार काफ़ी करीबी देश रहे हैं। वर्ष 1948 में म्यांमार की स्वतंत्रता के पश्चात् भारत ने म्यांमार के साथ मज़बूत सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संबंध स्थापित किए। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर, 2014 में आसियान एवं पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान म्यांमार जाकर दोनों देशों की मित्रता को और सुदृढ़ किया है। आशा है कि भविष्य में हम एक-दूसरे के और नज़दीक हो सकेंगे।

भारत-श्रीलंका संबंध हिंद महासागर में स्थित श्रीलंका भारत के दक्षिण में स्थित है। पाक जलडमरूमध्य, दोनों राष्ट्रों के मध्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा है। साधारणत: श्रीलंका और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं, लेकिन श्रीलंका के गृह युद्ध के दौरान भारतीय हस्तक्षेप से दोनों देशों के संबंध बुरी तरह प्रभावित हुए।

भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की हत्या में ‘लिट्टे’ (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम) की महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के कारण श्रीलंका के साथ भारत का संबंध कमज़ोर पड़ गया, हालाँकि बाद में दोनों देशों के संबंध सुधरने शुरू हुए। बीते दशक (वर्ष 2001-10) में दोनों देशों के संबंधों में गुणात्मक और मात्रात्मक परिवर्तन आया है। राजनीतिक संबंधों के साथ-साथ व्यापार, निवेश, रक्षा आदि क्षेत्रों में भी द्विपक्षीय संबंध मज़बूत हुए हैं।

भार-मालदीव संबंध श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम में स्थित मालदीव 1,200 से अधिक छोटे-छोटे द्वीपों का समूह है। हिंद महासागर में स्थित यह देश सामरिक दृष्टि से भारत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसलिए भारतीय विदेश नीति में मालदीव को विशेष स्थान प्राप्त है। वर्ष 1966 में मालदीव की स्वतंत्रता के बाद से ही भारत ने मालदीव के साथ दृढ़ सांस्कृतिक, आर्थिक एवं रक्षा संबंध स्थापित किए हैं। वर्तमान समय में भारत मालदीव को विभिन्न क्षेत्रों में वित्तीय सहायता प्रदान करके उसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

भारत-अफगानिस्तान संबंध पारंपरिक रूप से भारत और अफगानिस्तान के बीच मज़बूत और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से अफगानिस्तान में तालिबान का आतंक रहा है। तालिबानी आतंकवादी हमारे दो राजनयिकों की हत्या कर चुके हैं। वर्ष 2013 में आतंकवादियों ने अफगानिस्तान में रह रही भारतीय लेखिका सुष्मिता बनर्जी को भी अपना शिकार बनाया था। भारत एकमात्र दक्षिण एशियाई देश है, जिसने तालिबान के उन्मूलन के लिए किए गए सोवियत रूस के सैन्य अभियान का समर्थन किया था। इस समय भारत, अफगानिस्तान के विकास के लिए मानवतावादी दृष्टिकोण पर उसे आर्थिक और सैन्य सहायता उपलब्ध करा रहा है और उसके पुनर्निर्माण के लिए सबसे अधिक प्रतिबद्ध है।

उपसंहार यदि सभी पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों की समीक्षा की जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान और चीन के अतिरिक्त अन्य सभी देशों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। भारत दक्षिण एशिया का एक प्रभावशाली राष्ट्र है, लेकिन वह अपने पड़ोसी देशों के साथ मधुर व्यवहार करता है।

(ख) मनोरंजन की दुनिया

भूमिका एक समय था जब मनोरंजन के लिए लोग शिकार खेला करते थे। सभ्यता में विकास के बाद दूसरे खेल लोगों के मनोरंजन के साधन बनें। आज भी खेल मनोरंजन के प्रमुख साधन हैं, किंतु आजकल खेलों को प्रत्यक्ष रूप से देखने की बजाय किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से देखने वालों की संख्या बढ़ी है। इस समय टेलीविज़न, रेडियो, कंप्यूटर एवं इंटरनेट मनोरंजन के प्रमुख एवं हाईटेक साधन हैं। आइए, मनोरंजन के इन हाईटेक साधनों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

टेलीविज़न टेलीविज़न आजकल लोगों के मनोरंजन का एक प्रमुख साधन बन चुका है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि टेलीविज़न पर हर आयु वर्ग के लोगों के लिए कार्यक्रम मौजूद हैं। गृहिणियाँ कुकिंग सहित सास-बहुओं पर आधारित टीवी शो देख सकती हैं। बच्चे कार्टून कार्यक्रम सहित तमाम तरह के गीत-संगीत पर आधारित रियलिटी शो देख सकते हैं। पुरुष न्यूज़ चैनलों के साथ-साथ क्रिकेट मैचों का प्रसारण देख सकते हैं। बुजुर्ग लोग समाचारों, धारावाहिकों के अलावा धार्मिक चैनलों पर सत्संग एवं प्रवचन का आनंद ले सकते हैं।

रेडियो आधुनिक काल में रेडियो मनोरंजन का एक प्रमुख साधन बनकर उभरा है। रेडियो पर गीत-संगीत के अलावा सजीव क्रिकेट कमेंटरी श्रोताओं को आनंदित करती है, परंतु जब से एफएम चैनलों का पदार्पण भारत में हुआ है, रेडियो की उपयोगिता और बढ़ गई है। आजकल लोग मोबाइल फ़ोन के माध्यम से विभिन्न एफएम स्टेशनों को सुनने का आनंद उठाते हैं। रेडियो मिर्ची, रेड एफएम, रेडियो सिटी, रेडियो म्याऊँ इत्यादि चर्चित एफएम स्टेशन हैं। ये श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन कर रहे हैं। आज एफ़एम प्रसारण दुनियाभर में रेडियो प्रसारण का पसंदीदा माध्यम बन चुका है। इसका एक कारण इससे उच्च गुणवत्तायुक्त स्टीरियोफ़ोनिक आवाज़ की प्राप्ति भी है। शुरुआत में इस प्रसारण की देशभर में कवरेज केवल 30% थी, किंतु अब इसकी कवरेज बढ़कर 60% से भी अधिक जा पहुँची है।

कंप्यूटर एवं इंटरनेट आधुनिक मनोरंजन के साधनों में कंप्यूटर एवं इंटरनेट का स्थान अग्रणी है। भारतीय युवाओं में इनका प्रयोग तेज़ी से बढ़ा है। इंटरनेट को तो कोई जादू, कोई विज्ञान को चमत्कार, तो कोई ज्ञान का सागर कहता है। आप इसे जो भी कहिए, किंतु इस बात में कोई संदेह नहीं कि सूचना क्रांति की देन यह इंटरनेट न केवल मानव के लिए अति उपयोगी साबित हुआ है, बल्कि संचार में गति एवं विविधता के माध्यम से इसने दुनिया को बिलकुल बदलकर रख दिया है। इंटरनेट ने सरकार, व्यापार और शिक्षा को नए अवसर दिए हैं। सरकारें अपने प्रशासनिक कार्यों के संचालन, विभिन्न कर प्रणाली, प्रबंधन और सूचनाओं के प्रसारण जैसे अनेकानेक कार्यों के लिए इंटरनेट का उपयोग करती हैं। कुछ वर्ष पहले तक इंटरनेट व्यापार और वाणिज्य में प्रभावी नहीं था, लेकिन आज सभी तरह के विपणन और व्यापारिक लेन-देन इसके माध्यम से संभव हैं। इंटरनेट पर आज पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही हैं, रेडियो के चैनल उपलब्ध हैं और टेलीविज़न के लगभग सभी चैनल भी मौजूद हैं। इंटरनेट के माध्यम से मीडिया हाउस ध्वनि और दृश्य दोनों माध्यमों के द्वारा ताज़ातरीन ख़बरें और मौसम संबंधी जानकारियाँ हम तक आसानी से पहुँचा रहा है। नेता हो या अभिनेता, विद्यार्थी हो या शिक्षक, पाठक हो या लेखक, वैज्ञानिक हो या चिंतक, सबके लिए इंटरनेट उपयोगी साबित हो रहा है।

सिनेमा बात मनोरंजन के आधुनिक साधनों की हो या पूर्व साधनों की, यह सिनेमा के बिना अधूरी है। सिनेमा पहले भी लोगों के मनोरंजन का एक शक्तिशाली माध्यम था और आज भी है। आज पारिवारिक एवं हास्य से भरपूर फ़िल्में दर्शकों को स्वस्थ मनोरंजन कर रही हैं। एक व्यक्ति तनावपूर्ण वातावरण से निकलने एवं मनोरंजन के लिए सिनेमा का रुख करता है। हालाँकि वर्तमान समय में बहुत-सी फ़िल्में हिंसा एवं अश्लीलता का भौंडा प्रदर्शन भी करती हैं, किंतु इन जैसी खामियों को दरकिनार कर दें, तो सिनेमा दर्शकों का स्वस्थ मनोरंजन ही करता है। अभिनेता शाहरुख खान के शब्दों में-“भारत में सिनेमा सिर्फ मनोरंजन के तौर पर नहीं देखा जाता, बल्कि सिनेमा देखना यहाँ जीने का तरीका है।”

उपसंहार इस प्रकार देखा जाए, तो मनोरंजन के इन सभी हाईटेक साधनों से न सिर्फ हमारा मनोरंजन होता है, बल्कि ये हममें ज्ञान का विस्तार करने में भी सहायक हैं। इनकी सहायता से हम कठिन-से-कठिन विषयों को भी बड़ी सुगमता के साथ कम समय में ही ठीक प्रकार से समझ लेते हैं। अतः हमें जीवन की एकरसता दूर करने व मानसिक स्फूर्ति प्रदान करने हेतु मनोरंजन के तौर पर सीमित प्रयोग के साथ-साथ इन साधनों का प्रयोग अपने ज्ञान-विज्ञान को परिष्कृत किए जाने में करना चाहिए, तभी हम इसका अधिकाधिक लाभ ले सकेंगे और तब ये साधन हमारे लिए वरदान साबित होंगे।

(ग) विकास के पथ पर भारत

भूमिका मौजूदा समय में हम दावे के साथ कह सकते हैं कि भारत विश्व में आर्थिक जगत की एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बन चुका है। अनेक वर्षों तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़े रहने के कारण विकसित देशों से टक्कर लेना इतना आसान नहीं था, लेकिन उदारीकरण एवं निजीकरण की नीतियों ने इसे संभव कर दिखाया और ऐसा इसलिए हो सका, क्योंकि हमने अपनी विशाल जनसंख्या को ही अपने विकास का एक कारगर हथियार बना लिया।

अधिक जनसंख्या का एक अर्थ अधिक-से-अधिक उपभोक्ता एवं उत्पादन से भी अधिक प्रक्रिया में कम मजदूरी लागत से भी जुड़ा हुआ है और यही हमारी आर्थिक सफलता का एक मजबूत स्तंभ बना। आज भारत 1 अरब 21 करोड़ की आबादी के साथ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है।

भारत की उदारीकरण की नीति वर्ष 1991-92 में प्रारंभ की गई उदारीकरण की नीति ने भारत को विदेशी निवेश के क्षेत्र में एक सुदृढ़ स्तंभ की तरह खड़ा किया। भारत में विदेशी निवेश के लिए वातावरण अत्यंत अनुकूल बना और भारत ने आर्थिक क्षेत्र में एक नई करवट ली। देश ने पिछले कुछ वर्षों से निरंतर उच्च आर्थिक विकास दर बनाए रखी। घरेलू बाजार अत्यंत व्यापक होने के कारण ही विश्व व्यापार में पिछले दिनों व्याप्त आर्थिक मंदी का भी भारत पर अधिक प्रभाव देखने को नहीं मिला।

महाशक्ति के रूप में भारत वर्ष 2009 में भारत-अमेरिका के बीच संपन्न परमाणु समझौता वास्तव में भारत की बढ़ती वैश्विक शक्ति पर विश्व महाशक्ति द्वारा लगाई गई मुहर थी। भारत अब विश्व की महाशक्ति के सामने याचक की भूमिका में नहीं, बल्कि बराबरी के स्तर पर खड़ा हो गया। पिछले कुछ वर्षों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के पाँचों स्थायी सदस्य देशों-अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस एवं ब्रिटेन के राष्ट्राध्यक्षों ने भारत का दौरा किया तथा अनेक महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय व्यापारिक एवं कारोबारी समझौतों पर हस्ताक्षर किए। भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता के लिए जोरदार कूटनीतिक प्रयास कर रहा है और इस रणनीति में उसे चीन को छोड़कर विश्व की सभी प्रमुख शक्तियों का समर्थन मिल रहा है।

औद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धि भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के अतिरिक्त कंप्यूटर सॉफ्टवेयर एवं बीपीओ के क्षेत्र में अत्यधिक ख्याति प्राप्त हुई है। इनसैट उपग्रह प्रणाली के कारण देश में लगभग 25 हजार से भी अधिक लघु एपर्चर टर्मिनल (वी-सैट) काम कर रहे हैं, जिससे टेलीविजन प्रसारण एवं पुनर्वितरण को काफी लाभ हुआ है। इनसैट के कारण भारत में 1400 से अधिक स्थलीय पुनर्प्रसारण ट्रांसमीटरों से टेलीविज़न की पहुँच अधिक जनसंख्या तक हो गई है। शिक्षा के प्रसार के लिए विशेष उपग्रह एडुसैट (एजुकेशन थू सैटेलाइट) का भी प्रक्षेपण किया गया है। हाल ही में भारत के मंगल अभियान को मिली सफलता ने देश को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी बढ़त दिलाई है।

औद्योगिक क्षेत्र में भारत की भागीदारी भारतीय औद्योगिक घराने अंतर्राष्ट्रीय कारोबारी कंपनियों को खरीदकर दुनिया के बड़े कारोबारी समूह बन गए हैं। लक्ष्मी निवास मित्तल विश्व के सबसे बड़े स्टील उत्पादक हैं, तो मुकेश अंबानी का नाम विश्व के सर्वोच्च पाँच धनी व्यक्तियों की सूची में लगभग प्रत्येक वर्ष शामिल रहा है। टाटा स्टील ने अपने आकार से लगभग छह गुना बड़ी कंपनी ‘कोरस’ को खरीद लिया, तो टाटा मोटर्स ने विश्व प्रसिद्ध ब्रांड जगुआर लैंड रोवर को खरीदकर इसे फोर्ड एवं बीएमडब्ल्यू की प्रतियोगिता में ला खड़ा किया।

एक तरफ बिड़ला की कंपनी ‘नोविलिस’ को खरीदकर वैश्विक एल्युमीनियम कंपनी बन गई, तो दूसरी तरफ दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल प्रमुख १५ अफ्रीकी देशों में दूरंसचार सेवा प्रदान करने लगी। टाटा की ‘नैनो’ ने भारत को दुनियाभर में लोकप्रिय एवं चर्चित बना दिया, तो बजाज ने भी ‘रेनॉल्ट निसान’ के साथ मिलकर ‘नैनो’ को टक्कर देने की तैयारी की। इस संदर्भ में विशेष उल्लेखनीय तथ्य यह रहा कि इस कार के लिए शोध एवं विकास की जिम्मेदारी ‘बजाज’ की रही, ‘रेनॉल्ट निसान’ की नहीं। यह एक नई बात है और इसने पश्चिम के साथ भारत के प्रौद्योगिकी संबंधों को उलट कर रख दिया।

उपसंहार भारत की वैश्विक प्रगति को देखकर अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत ने सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात की दृष्टि से दूसरे देशों में निवेश करने के मामले में विश्व कीर्तिमान कायम किया है। ‘मेक इन इंडिया’ अभियान से देश के आर्थिक विकास को और भी तीव्रता मिलने के आसार हैं। भारत के आर्थिक विकास और प्रौद्योगिकी विकास से अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव में वृद्धि हुई है। यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों एवं वार्ताओं में भारत की बातों को पूरी गंभीरता के साथ सुना एवं समझा जाता है। निश्चित रूप से भारत निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है।

(घ) नारी-सशक्तीकरण

भूमिका वर्तमान समय में देश में नारियों का एक ऐसा भी वर्ग है, जो शिक्षित, सजग और जागरूक है। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए पुरुष रूपी बैसाखी की आवश्यकता नहीं है, उसे अपने अधिकार और सामर्थ्य का पूर्ण ज्ञान है। समाज में महिलाओं की प्रस्थिति एवं उनके अधिकारों में वृद्धि ही महिला सशक्तीकरण है। महिला, जिसे कभी मात्र भोग एवं संतान उत्पत्ति का माध्यम समझा जाता था, आज पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़ी है। ज़मीन से आसमान तक कोई क्षेत्र अछूता नहीं है, जहाँ महिलाओं ने अपनी जीत का परचम न लहराया हो।

प्राचीन समय में नारियों की स्थिति भारतीय समाज में भी प्राचीन नीतिकारों ने स्त्रियों को पिता, पति या पुत्र अर्थात् किसी-न-किसी पुरुष के संरक्षण में रहने की वकालत की है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी प्राप्ते तु दसम् वर्षे, यस्तु कन्या न यच्छसि’ अर्थात् दसवें वर्ष में पहुँचते ही लड़की का विवाह कर देना चाहिए जैसी कुंठित भावनाओं से ग्रसित पुरुष मानसिकता वाली शिक्षाएँ यत्र-तत्र देखने को मिल जाती हैं। सच तो यह है कि पुरुष प्रधान मानसिकता ने स्त्रियों को स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में स्वीकार ही नहीं किया। यहाँ तक कि तथाकथित लोकतांत्रिक एवं आधुनिक मूल्यों वाले पश्चिमी समाज में भी स्त्रियों को लगभग वर्ष 1920 तक ‘व्यक्ति की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया।

जहाँ समाज की आधी आबादी को ‘व्यक्ति को दर्जा ही प्राप्त न हो, वहाँ उसके साथ ‘व्यक्ति’ जैसे व्यवहार की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? फलस्वरूप स्त्रियों को केवल एक ‘अवैतनिक श्रमिक’ एवं ‘उपभोग की वस्तु के रूप में देखा गया। ‘मनुष्यता’ की अपेक्षा एक मनुष्य के प्रति हो सकती है, एक वस्तु के प्रति नहीं, इसलिए कभी समाज ने उसे ‘नगर वधू’ बनाया, तो कभी ‘देवदासी’, कभी चाहरदीवारी में कैद रहने वाली कुलीन मर्यादापूर्ण ‘घर की बहू’ बनाया, तो कभी बाज़ार में बिकने वाली ‘वेश्या’| पुरुष मानसिकता ने कभी भी उसे एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में नहीं देखा।

नारी मुक्ति आंदोलन फ्रांस से प्रारंभ ‘नारी मुक्ति आंदोलन (Feminist Movement)’ ने स्त्रियों को जीवन की एक नई परिभाषा प्रदान की, उन्हें पुरुषों का सहचर बनने की प्रेरणा दी तथा अपनी स्वतंत्रता एवं अधिकारों के साथ खुलकर गरिमापूर्ण जीवन जीने की सीख दी। घर से बाहर निकलने एवं कामकाज करने वाली स्त्री, घरेलू स्त्रियों से अलग अपनी एक भाषा चाहती है, एक संस्कृति चाहती है, एक परिवेश चाहती है और इसे हासिल करने के लिए संघर्ष भी करना चाहती है, इसलिए पुरुषों की दुनिया में खलबली है। कई बार पुरुषों ने स्त्रियों की ज्यादती की भी शिकायतें कीं। यह संभव है कि कुछ अति उत्साही स्त्रियाँ अपनी स्वतंत्रता का अनुचित इस्तेमाल करती हों, उन्हें यह पता नहीं कि ‘स्वतंत्रता हमेशा प्रतिमानों में निहित होती है, लेकिन ऐसी स्त्रियाँ कितनी हैं? एक प्रतिशत भी नहीं, जबकि दूसरी तरफ़ प्रताड़ना देने वाले पुरुष कितने हैं, संभवतः 50% से भी अधिक। आज के क्रांतिकारी दर्शन; जैसे-नारीवाद, पर्यावरणवाद, मानवाधिकार आदि पुरुष वर्चस्व वाली सत्ता को चुनौती देते हैं। स्त्री यह काम बेहतर ढंग से कर सकती है, क्योंकि वह सत्ता एवं सत्ताहीनता के अधिकतम रूपों को जानती है। महिला सशक्तीकरण की दिशा में अन्य प्रयास, ‘महिला दिवस’ के आयोजन को माना जाता है, जिसकी शुरुआत अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर पहली बार 28 जनवरी, 1909 को की गई, जिसे बाद में फरवरी महीने के अंतिम रविवार को आयोजित किया जाने लगा। आगे चलकर वर्ष 1917 में रूस की महिलाओं ने महिला दिवस’ पर रोटी एवं कपड़े के लिए हड़ताल की। रूस के तानाशाह शासक जार ने सत्ता छोड़ी और बोल्शेविक क्रांति के बाद सत्ता में आई अंतरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया।

उस समय तत्कालीन रूस में जूलियन कैलेंडर का प्रचलन था, जबकि शेष विश्व में ग्रेगेरियन कैलेंडर प्रचलित था। दोनों कैलेंडरों की तारीखों में भिन्नता थी| जूलियन कैलेंडर के अनुसार, वर्ष 1917 में फरवरी महीने का अंतिम रविवार 23 फरवरी को था, जबकि ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार, वह दिन 8 मार्च था, चूँकि वर्तमान समय में पूरे विश्व में (रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलेंडर प्रचलित है, इसलिए आज विश्वभर में 8 मार्च को महिला दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, लेकिन केवल महिला दिवस का आयोजन करना तब तक सार्थक नहीं हो सकता, जब तक महिलाओं के प्रति सामाजिक सोच एवं संस्कृति में सकारात्मक परिवर्तन न लाया जाए।

नारी सशक्तीकरण के लिए उठाए गए कदम भारतीय समाज में भी अन्य प्रगतिशील समाजों की तरह महिलाओं की स्थिति को ऊँचा उठाने के लिए कई प्रभावकारी कदम उठाए गए।

वर्ष 2010 में देश की संसद और राज्य विधानसभाओं में एक-तिहाई महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने संबंधी विधेयक राज्यसभा ने तो पारित कर दिया, पर लोकसभा ने अभी इसे पारित नहीं किया है। महिलाओं की स्थिति को ऊँचा उठाने के लिए किए गए अनेक प्रावधानों के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण अधिनियम घरेलू हिंसा सुरक्षा अधिनियम, 2005 है, जिसमें सभी प्रकार की हिंसा-शारीरिक, मानसिक, दहेज संबंधी प्रताड़ना, कामुकता संबंधी दुर्व्यवहार आदि से महिलाओं के बचाव के उपाय किए गए हैं, लेकिन लिंग के आधार पर सबसे अधिक योगदान ‘पर्सनल लॉ’ में विद्यमान है, इसलिए समान सिविल संहिता (Uniform Civil Code) अपनाने की आवश्यकता है।

आज 21वीं शताब्दी में ‘जेंडर न्याय’ (Gender Justice) की दिशा में बहुत कुछ हासिल किया गया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना शेष है। नारीवादी या नारी मुक्ति आंदोलन आज ‘ईको-फेमिनिज्म’ की अवधारणा को आगे बढ़ा रहा है, जिसे वंदना शिवा तथा मारिया माइस नामक नारीवादियों ने विकसित किया है। इस अवधारणा के अंतर्गत यह स्वीकार किया जाता है कि जिस प्रकार प्रकृति पुनरुत्पादन का कार्य करती है, ठीक वैसे ही स्त्री भी पुनरुत्पादन की प्रक्रिया को संपन्न करती है। ऐसी स्थिति में हमें इस सभ्यता एवं संस्कृति के अंतर्गत सबसे अधिक महत्त्व स्त्री समुदाय को देना चाहिए और उसकी पुनरुत्पादन की क्षमता की पूजा करनी चाहिए, जो सभ्यता एवं संस्कृति के अस्तित्व के लिए अपरिहार्य है, लेकिन आज हम उसके इसी महान् नैसर्गिक वरदान को अभिशाप के रूप में परिवर्तित करने की कोशिश करते हैं, फलस्वरूप आज कितनी ही स्त्रियाँ पुरुषों की क्रूरता का शिकार हो रही हैं बलात्कार एक शारीरिक प्रताड़ना से अधिक मानसिक प्रताड़ना है।

उपसंहार आज की स्त्री न केवल पुरुषों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलना चाहती है, बल्कि वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बहुत आगे तक जाना चाहती है, जहाँ उन्मुक्तता, सृजन एवं सबलता का अहसास हो, जहाँ उसकी प्रतिभा की पहचान हो और जहाँ उसके व्यक्तित्व का निर्माण हो। आज आवश्यकता है भारत की एक-एक नारी को ‘सुभाषचंद्र बोस’ की इस पंक्ति से प्रेरणा लेने की-“ऐसा कोई भी कार्य नहीं, जो हमारी महिलाएँ नहीं कर सकतीं।”

उत्तर 4.

सेवा में
मुख्य अभियंता,
लोक निर्माण विभाग,
दिल्ली।

दिनांक 15 अप्रैल, 20××

विषय सड़कों के रख-रखाव हेतु।

महोदय,

सविनय निवेदन यह है कि मैं राम प्रसाद, झड़ौदा गाँव का निवासी हूँ। महोदय, निकट के शहर से हमारे गाँव को जो सड़क जोड़ती है। उसका अभी कुछ ही दिनों पूर्व लोक निर्माण विभाग की ओर से निर्माण करवाया गया था। सड़क का उचित रख-रखाव न करने के कारण सड़क पर दोनों ओर गंदगी फैली रहती है, लोग अपने घर का कूड़ा वहाँ डालने लगे हैं। इसके अतिरिक्त सड़क भी बीच-बीच में कई जगहों से टूट गई है, जिससे आने-जाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

अत: महोदय मेरा आपसे अनुरोध है कि सड़क पर कूड़ा डालने वाले लोगों को चेतावनी देकर वहाँ पर कूड़ा न डालने का निर्देश दिया जाए और सड़क का पुनः निर्माण करके उसे उपयोग करने के लायक बनाया जाए।

अतः आशा है कि आप मेरे इस पत्र द्वारा प्राप्त सूचना पर शीघ्रातिशीघ्र कदम उठाएँगे।

धन्यवाद!
भवदीय
राम प्रसाद
झड़ौदा गाँव

अथवा

सेवा में,
प्रबंधक महोदय,
स्टार हेवन होटल,
नैनीताल, उत्तराखंड

दिनांक 20 अप्रैल, 20××

विषय होटल में कमरे आरक्षित करवाने हेतु।

महोदय,

मैं जय प्रकाश खुराना, दिल्ली का निवासी हूँ। महोदय, मैंने आपके होटल की आवभगत के विषय में बहुत प्रशंसा सुनी है इसी कारण मैं और मेरा परिवार दिनांक 15 मई, 20XX से 17 मई, 20XX तक नैनीताल में पर्यटन के उद्देश्य से आ रहे हैं, इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप 15 और 16 मई, 20×× की दिनांक के लिए मेरे नाम से दो कमरे आरक्षित कर दीजिए।

धन्यवाद।
भवदीय जय
प्रकाश खुराना
दिल्ली

उत्तर 5.
(क) संचार के महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है।

  1. यह देश-विदेश में घटने वाली सूचनाओं के प्रसार का साधन है।
  2. यह शिक्षा प्राप्ति का भी माध्यम है।।

(ख) “समाचार’ का अंग्रेज़ी पर्याय NEWS चारों दिशाओं को संकेतित करता है। अपने आस-पास के समाज एवं देश-दुनिया की घटनाओं के विषय में तात्कालिक एवं नवीन जानकारी, जो पक्षपात रहित एवं सत्य हो, समाचार कहलाती है।

(ग) ‘इंटरनेट’ पत्रकारिता के दो लाभ निम्नलिखित हैं।

  1. इंटरनेट पत्रकारिता के द्वारा कुछ ही क्षणों में समाचार को संशोधित किया जा सकता है।
  2. इंटरनेट पत्रकारिता द्वारा सूचनाओं को बहुत शीघ्रता से लोगों तक पहुँचाया जा सकता है।

(घ) ‘फ़ोन-इन’ कार्यक्रम रेडियो या टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाले वे कार्यक्रम होते हैं, जिनमें किसी सामाजिक, सांस्कृतिक या जागरूकतापरक कार्यक्रम में दर्शकों को फ़ोन करके जानकारी ग्रहण करने या अपना विचार प्रस्तुत करने का अधिकार होता है।

(ङ) किसी घटना के संदर्भ में क्या, कहाँ, कब, कैसे, क्यों और कौन समाचार लेखन के छः ककार हैं। कोई भी समाचार मूलतः इन्ही प्रश्नों का उत्तर प्रस्तुत करता है।

उत्तर 6.
मनुष्य और प्रकृति में गहरा संबंध रहा है। मानव अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पूर्णतः प्रकृति पर ही निर्भर है। वन संपदा भी प्रकृति की एक अद्भुत और अत्यंत उपयोगी देन है।

वन तथा पेड़-पौधे पर्यावरण से कार्बन डाइऑक्साइड सोख कर, उसे प्राणदायिनी ऑक्सीजन में बदलते हैं। वृक्षों का प्रत्येक अंग-फल, फूल, पत्तियाँ, छाल यहाँ तक कि जड़ भी उपयोगी है। इनसे हमें स्वादिष्ट फलों के साथ-साथ जीवनरक्षक औषधियाँ भी मिलती हैं। वने बादलों को रोककर वर्षा कराने में सहायक सिद्ध होते हैं।

वन पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। वनों से प्राप्त लकड़ियाँ भवन निर्माण और फर्नीचर बनाने के काम आती हैं। वन बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का कुप्रभाव कम करते हैं तथा मृदा अपरदन को रोकते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वन पर्यावरण को संतुलित कर सभी जीवों के अस्तित्व की रक्षा करते हैं।

वनों से होने वाले लाभों के कारण मनुष्य ने उनकी अंधाधुंध कटाई की है, जिसके कारण अनेक गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। इनमें मौसम में अचानक परिवर्तन होना, कृषि का प्रभावित होना, अनेक वनस्पतियों तथा जीव-जंतुओं की प्रजातियों का लुप्त होना, पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होना, हिमनदों का पिघलना, समुद्री जल स्तर में वृद्धि इत्यादि प्रमुख हैं।

मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तथा विकास के लिए वन संपदा का प्रयोग करता है, इसलिए हमें यह बात समझनी होगी कि विकास और पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि वृक्ष ही न रहें, तो संपूर्ण मानव जगत का अस्तित्व ही मिट जाएगा। यह भी सही है कि विकास के लिए वृक्ष काटना आवश्यक है। इसके लिए हमें वृक्षारोपण को अपना कर्तव्य समझ, इसका पालन करना चाहिए। इसके साथ ही हमें सतत पोषणीय विकास की विचारधारा को अपनाना चाहिए।

अथवा

स्वच्छता हर एक की पहली और प्राथमिक ज़िम्मेदारी होनी चाहिए। सभी को ये समझना चाहिए कि भोजन और पानी की तरह ही स्वच्छता भी अति आवश्यक है, बल्कि हमें स्वच्छता को भोजन और पानी से ज़्यादा प्राथमिकता देनी चाहिए। हम केवल तभी स्वस्थ रह सकते हैं, जब हम सब कुछ बहुत सफाई और स्वास्थ्यकर तरीके से लें। बचपन सभी के जीवन का सबसे अच्छा समय होता है, जिसके दौरान स्वच्छता की आदत में कुशल हो सकते हैं। जैसे चलना, बोलना, दौड़ना, पढ़ना, खाना आदि अभिभावक के नियमित निगरानी और सतर्कता में होते हैं, वैसे बच्चों में स्वच्छता की आदत का विकास होना चाहिए। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ एक राष्ट्र स्तरीय अभियान है। गाँधीजी की 145वीं जयंती के अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस अभियान के आरंभ की घोषणा की। यह अभियान प्रधानमंत्री जी की महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है। 2 अक्टूबर, 2014 को मोदी जी ने राजपथ पर जनसमूह को संबोधित करते हुए सभी राष्ट्रवासियों से स्वच्छ भारत अभियान में भाग लेने और इसे सफल बनाने की अपील की। साफ-सफाई के संदर्भ में देखा जाए, तो यह अभियान अब तक का सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान है।

आज पूरी दुनिया में भारत की छवि एक गंदे देश की है। जब-जब भारत की अर्थव्यवस्था, तरक्की, ताकत और प्रतिभा की बात होती है, तब इस बात की भी चर्चा होती है कि भारत एक गंदा देश है। पिछले ही वर्ष हमारे पड़ोसी देश चीन के कई ब्लॉगों पर गंगा में तैरती लाशों और भारतीय सड़कों पर पड़े कूड़े के ढेर वाली तस्वीरें छाई रहीं। वर्तमान समय में स्वच्छता हमारे लिए एक बड़ी आवश्यकता है, इसलिए हमें जीवन में स्वच्छता के महत्त्व और जरूरत के बारे में जागरूक होना बेहद आवश्यक है। हजारों जीवन को बचाने और उन्हें स्वस्थ जीवन देने के लिए हम सभी को मिलकर स्वच्छता की ओर कदम बढ़ाने की ज़रूरत है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने एक अभियान चलाया, जिसे ‘स्वच्छ भारत’ अभियान कहा गया। भारतीय नागरिक के रूप में हम सभी को इस अभियान के उद्देश्य और लक्ष्य को पूरा करने में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए।

उत्तर 7.
कन्या भ्रूण-हत्या आज एक ऐसी अमानवीय समस्या का रूप धारण कर चुकी है, जो कई और गंभीर समस्याओं की भी जड़ है। इसके कारण महिलाओं की संख्या दिन-प्रतिदिन घट रही है। वर्ष 2011 की जनगणना में प्रति हज़ार पुरुषों पर 940 महिलाएँ पाई गईं। सामाजिक संतुलन के दृष्टिकोण से देखें, तो यह वृद्धि भी पर्याप्त नहीं है। वर्ष 2011 में हरियाणा में प्रति हज़ार लड़कों पर केवल 834 लड़कियाँ थीं, किंतु वर्ष 2013 में लड़कियों की यह संख्या थोड़ी बढ़कर 900 तक जा पहुँची। इन आँकड़ों को देखकर हम यह सोचने के लिए विवश हो जाते हैं कि क्या हम वही भारतवासी हैं, जिनके धर्मग्रंथ ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवताः’ अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का वास होता है, जैसी बातों से भरे पड़े हैं। संसार का हर प्राणी जीना चाहता है और किसी भी प्राणी के प्राण लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, पर अन्य प्राणियों की बात कौन करे, आज तो बेटियों की जिंदगी कोख में ही छीनी जा रही है।

भारत में कन्या भ्रूण-हत्या के कई कारण हैं। प्राचीनकाल में भारत में महिलाओं को भी पुरुषों के समान शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध थे, किंतु विदेशी आक्रमणों एवं अन्य कारणों से महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने से वंचित किया जाने लगा तथा समाज में पर्दा प्रथा और सती प्रथा जैसी कुप्रथाएँ व्याप्त हो गईं। महिलाओं को शिक्षा के अवसर उपलब्ध नहीं होने का कुप्रभाव समाज पर भी पड़ा। लोग महिलाओं को अपने सम्मान का प्रतीक समझने लगे। धार्मिक एवं सामाजिक रूप से पुरुषों को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा एवं महिलाओं को घर की चाहरदीवारी तक ही सीमित कर दिया गया। इसके कारण संतान के रूप में नर शिशु की कामना करने की गलत परंपरा समाज में विकसित हुई। भारत में वर्ष 2004 में लिंग चयन प्रतिवेद अधिनियम (पीसीपीएनडीटी; प्री-कंसेप्शन एंड प्री-नेटल डाइग्नोस्टिक टेक्निक एक्ट) लागू कर भ्रूण-हत्या को अपराध घोषित कर दिया गया। इसके बाद भी कन्या भ्रूण-हत्या पर नियंत्रण नहीं हो सका है। लोग चोरी-छिपे एवं पैसे के बल पर इस कुकृत्य को अब भी अंजाम देते हैं। कन्या भ्रूण-हत्या एक सामाजिक अभिशाप है और इसको रोकने के लिए हमें लोगों को जागरूक करना होगा। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर ही इस कुकृत्य को रोका जा सकता है। आवश्यकता बस इस बात की है कि जनता भी अपने कर्तव्यों को समझते हुए कन्या भ्रूण हत्या जैसे सामाजिक कलंक को मिटाने में समाज का सहयोग करे। सच ही कहा गया है।

‘आज बेटी नहीं बचाओगे, तो कल माँ कहाँ से पाओगे?’

अथवा

बेमेल विवाह एक सामाजिक अभिशाप है। इसकी रोकथाम के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को आगे आना चाहिए। लोगों को जागरूक होकर इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। बेमेल विवाह का सबसे बड़ा कारण लिंगभेद और अशिक्षा : है। साथ ही, लड़कियों को महत्त्व न दिया जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना भी इसके अन्य कारण हैं।

तीव्र आर्थिक विकास, बढ़ती जागरूकता और शिक्षा का अधिकार कानून के लागू होने के बाद भी अगर यह स्थिति है, तो स्पष्ट है कि बालिकाओं के अधिकारों और कल्याण की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है। क्या विडंबना है कि जिस देश में महिलाएँ राष्ट्रपति जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर आसीन हों, वहाँ बेमेल विवाह जैसी कुप्रथा के चलते बालिकाएँ अपने अधिकारों से वंचित कर दी जाती हैं। बेमेल विवाह न केवल बालिकाओं के स्वास्थ्य की दृष्टि से, बल्कि उनके व्यक्तिगत विकास के दृष्टिकोण से भी खतरनाक है। शिक्षा जो कि उनके भविष्य को उज्ज्वल द्वार माना जाता है, हमेशा के लिए बंद भी हो जाता है। शिक्षा से वंचित रहने के कारण वे अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पातीं।

कम उम्र में विवाह लगभग हमेशा लड़कियों को शिक्षा या अर्थपूर्ण कार्यों से वंचित करता है, जो उनकी निरंतर गरीबी का कारण बनता है। बेमेल विवाह लिंगभेद, बीमारी एवं गरीबी के भंवरजाल में फँसा देता है। जब वे शारीरिक रूप से परिपक्व न हों, उस स्थिति में कम उम्र में लड़कियों का विवाह कराने से मातृत्व संबंधी एवं शिशु मृत्यु की दरें अधिकतम होती हैं। बेमेल विवाह का दुष्परिणाम केवल व्यक्ति, परिवार को ही नहीं, बल्कि समाज और देश को भी भोगना पड़ता है। इससे जनसंख्या में वृद्धि होती है, जिससे विकास कार्यों में बाधा पड़ती है। जो भी हो इस कुप्रथा का अंत होना बहुत ज़रूरी है। वैसे हमारे देश में बेमेल विवाह रोकने के लिए कानून मौजूद है, लेकिन कानून के सहारे इसे रोका नहीं जा सकता। बेमेल विवाह एक सामाजिक समस्या है। अतः इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही संभव है। अतः समाज को आगे आना होगा तथा बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। आज युवा वर्ग को आगे आकर इसके विरुद्ध आवाज़ उठानी होगी और अपने परिवार व समाज के लोगों को इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए जागरूक करना होगा।

उत्तर 8.
(क) काव्यांश में अट्टालिकाएँ धनी एवं शोषक वर्ग के निवास स्थान के रूप में चित्रित की गई हैं। कवि कहता है कि इनमें समाज को अपने धन एवं सामर्थ्य के बल से आतंकित कर उसका शोषण करने और उसे दीन-हीन बना देने वाला धनी एवं सुविधाजीवी वर्ग रहता है, इसलिए ये अट्टालिकाएँ ‘आतंक-भवन’ का पर्याय हैं।

(ख) ‘पंक’ और ‘विप्लव’ शब्द यहाँ दुहरी अर्थ व्यंजना के साथ प्रयुक्त हुए हैं। कवि कहना चाहता है कि बादल जल के रूप में जो विप्लव उपस्थित करते हैं, उससे छोटे पौधे अर्थात् समाज का निम्न वर्ग लाभान्वित होता है। दूसरा अर्थ क्रांति से संबंधित है। समाज का छोटा अर्थात् शोषित, वंचित एवं निम्न वर्ग ही सामाजिक क्रांति का सूत्रधार बनता है और वही इसके फलस्वरूप हुए परिवर्तनों से लाभान्वित होता है।

(ग) काव्यांश में ‘जलज’ से अभिप्राय निम्न वर्ग से है, जिनके लिए कवि ने क्षुद्र अर्थात् ‘छोटे’ और प्रफुल्ल अर्थात् सदैव प्रसन्न रहने वाले विशेषणों का प्रयोग करके उनकी जिजीविषा को उजागर किया है।

(घ) काव्यांश में कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि समाज में होने वाली प्रत्येक क्रांति से सबसे अधिक निम्न वर्ग ही प्रभावित होता है। शोषक वर्ग की अट्टालिकाओं, जहाँ क्रांति से उत्पन्न भय के आवेश में वह रहता है, पर क्रांति का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता।

अथवा

(क) कवि ने काव्यांश में ‘तुम’ और ‘तुम्हारा’ सर्वनाम अपनी प्रियतमा के लिए प्रयुक्त किए हैं। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि उसके भीतर व्याप्त कोमल भावनाएँ, प्यार, संवेदनाओं का कारण उसके अंदर की आत्मीयता एवं प्रेम का अक्षय स्रोत है, जिसे वह जितना बाहर निकालता है, वह उतना ही भरता जाता है। यह सब केवल उसको अपनी प्रियतमा से अत्यधिक प्रेम करने के कारण ही है।

(ख) उस ‘अनजान रिश्ते’ का कवि पर यह प्रभाव पड़ता है कि उसके प्रिय का प्रेम उसे अनंत निर्झर झरने के समान महसूस होता है, जिसका मीठा पानी अर्थात् प्रेम बार-बार उसे पूरी तरह भिगो देता है।

(ग) प्रस्तुत पंक्तियों से आशय यह है कि कवि अपनी प्रेयसी के प्रेम की गहराई को महसूस करते हुए उसकी यादों को झरने के समान अनुभव करता है, जिससे निरंतर प्रेम, स्नेह, आत्मीयता के भाव उत्पन्न होते रहते हैं।

(घ) काव्यांश में कवि की मनःस्थिति प्रेम के भावों से ओत-प्रोत है। उसके जीवन में घटने वाली घटनाएँ, खट्टे-मीठे अनुभव सभी उसकी अनजान प्रेयसी से संबंधित हैं, जो कवि के प्रेम में डूबे होने की पराकाष्ठा की मनःस्थिति को उजागर करते हैं।

उत्तर 9.
(क) काव्यांश रुबाई छंद में है। यह उर्दू और फ़ारसी भाषा का छंद है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। इसकी पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति में तुक मिलाया जाता है तथा तीसरी पंक्ति स्वतंत्र होती है।

(ख) काव्याश में ‘चाँद के टुकड़े’ में रूपक अलंकार है, जिसमें महिला के बच्चे के रूप सौंदर्य को चाँद के टुकड़े के समान बताया गया है।

(ग) काव्याश की भाषा में तुकांतता और अलंकारों का सहज प्रयोग हुआ है, जिससे भाव सहजता से प्रकट होते हैं।

उत्तर 10.
(क) दिन जल्दी-जल्दी अर्थात् शीघ्रता से ढल रहा है। पथिक इसी कारण यह सोच रहा है कि रास्ते में ही कहीं रात न हो जाए इसलिए दिनभर का थका हुआ पथिक अपनी मंजिल तक शीघ्र पहुँचना चाहता है। पक्षियों की गति में तीव्रता का कारण यह है कि दिन को शीघ्रता से ढलता देखकर और यह ध्यान करके कि बच्चे दाना पाने और अपनी माँ के शीघ्र लौट आने की आस में घोंसलों से झाँक रहे। होंगे। इसके विपरीत कवि के मन में यह विचार आता है कि उसका अपना कोई भी नहीं है, जो घर में उसकी प्रतीक्षा कर रहा हो इसलिए कवि की गति में शिथिलता आ जाती है।

(ख) ‘बात की चूड़ी मरने और उसे सहूलियत से बरतने’ से कवि का अभिप्राय यह है कि कथ्य के भाव या अभिव्यक्ति के अनुरूप ही माध्यम का चुनाव करना चाहिए। भाषा हमारे भावों को अभिव्यक्त करने का साधन या ज़रिया मात्र है। मूल बात कथ्य की स्पष्ट अभिव्यक्ति है, जो सहज भाषा के चुनाव और प्रयोग से अधिक बेहतर ढंग से होती है। कठिन और बोझिल भाषा का प्रयोग करने से हमारे अभीष्ट भाव अधिक स्पष्टता के साथ हमारी समझ में नहीं आते।

(ग) ‘धूत कही, अवधूत कहौ’ सवैये में तुलसीदास विषादग्रस्त समाज से संघर्ष करते दृष्टिगत होते हैं। वे हर प्रकार की विभाजनकारी शक्तियों से टकराते हैं। तुलसी सही अर्थ में समन्वयकारी तथा मानवतावादी रचनाकार हैं। वे धूत-अवधूत, राजपूत-जुलाहा जैसे सामाजिक विभाजन को अनर्थकारी मानते हैं। उन्होंने समाज में अपनी स्थिति देखी थी। एक ब्राह्मण होते हुए भी उन्हें सामाजिक अपवादों से दो-चार होना पड़ा था। सामाजिक यथार्थ यही था कि समाज का विभाजन प्रायः आर्थिक आधार पर निर्धारित हो गया है। धन तथा प्रभुत्व रखने वाले लोग ही सामाजिक मान्यताओं के निर्माता तथा नियंत्रक होते हैं। ऐसे में तुलसीदास माँगकर खाने और मस्जिद में सोने जैसी बात कर उक्त सामाजिक व्यवस्था को दो टूक जवाब देते हैं, यह तुलसीदास के स्वाभिमान को प्रतिबिंबित करती है।

उत्तर 11.
(क) जब व्यक्ति आपस में ग्राहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं, तब सद्भाव का ह्रास होता है। इसका परिणाम यह होता है कि बाज़ार में वस्तुओं के आदान-प्रदान की जगह शोषण होने लगता है।

(ख) स्वभाव में ग्राहक-विक्रेता व्यवहार बाज़ार में अधिकाधिक लाभ कमाने की इच्छा के कारण आ जाता है। इसका लक्षण अपने भाई-बंधु या पड़ोसियों की हानि में लाभ देखना है।

(ग) “ऐसे बाज़ार को कथन से लेखक का तात्पर्य शोषणकारी छल-प्रपंच के भाव युक्त बाज़ार को तुच्छ दृष्टि से देखना है। यह मानसिकता मानवीयता के लिए अति हानिकारक है, क्योंकि इससे आत्मीयता, प्रेम, विश्वास जैसे सद्गुणों का ह्रास होता है।

(घ) इस गद्यांश में उपभोक्तावादी प्रवृत्ति की निम्न विशेषताएँ दिखाई पड़ती हैं।

  1. दूसरों की हानि में स्वयं का लाभ दिखाई देना।
  2. आत्मीयजन और पड़ोसी ग्राहक के समान दिखाई देते हैं।

उत्तर 12.
(क) भक्तिन को कारागार से यमलोक की ही भाँति डर लगता था। जब उसे यह कहा जाता है कि उसकी मालकिन को जेल में डाल दिया जाएगा, तो वह इस बात को अन्यायपूर्ण मानकर लाट साहब से लड़ने के लिए तत्पर रहती। भक्तिन के रूप में लेखिका ने एक भारतीय नारी का दिलचस्प और संवेदनशील चित्रण करने का प्रयत्न किया है। भक्तिन एक संघर्षशील तथा स्वाभिमानी स्त्री है। वह परिस्थितियों से डरती नहीं, बल्कि उनका मुकाबला करती है। पति की मृत्यु के बाद वह खेत में कड़ा परिश्रम करके अपनी बेटियों का पालन-पोषण करती है। वह शास्त्रों के तर्को द्वारा दूसरों को अपने मन के अनुकूल बना लेने में भी निपुण थी। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भक्तिन कर्तव्य-परायण, संघर्षशील, स्वाभिमान आदि गुणों से युक्त होने के साथ-साथ सामान्य मनुष्य की भाँति असत्य वादन, हेरा-फेरी आदि दुर्गुणों से भी युक्त थी।

(ख) जीवन में सामाजिक और आर्थिक संघर्षों ने चार्ली के व्यक्तित्व को निखारने में सहायता की। चार्ली की माँ दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री तथा एक परित्यक्ता (तलाकशुदा) स्त्री थीं। बाद में उसकी माँ विक्षिप्त हो गई थीं तथा घर में दरिद्रता का अंधकार छा गया था। समाज की ओर से चार्ली को अपमान ही मिला। चार्ली पर नानी का प्रभाव भी था। वह खानाबदोश समुदाय के परिवार की सदस्य थीं। इन जटिल परिस्थितियों ने चार्ली को एक घुमंतू चरित्र बना दिया था। चार्ली की माँ ने गरीबी के मध्य भी चार्ली को स्नेह, करुणा और मानवता का पाठ पढ़ाया| इन सबका चार्ली के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

(ग) ‘नमक’ कहानी की मूल संवेदना लोगों के दिलों में बसी हुई है। राजनैतिक तथा सत्ता लोलुपता ने मानचित्र पर एक लकीर खींचकर देश को दो भागों में तो बाँट दिया है, परंतु अंतर्मन का विभाजन नहीं हो पाया। राजनैतिक यथार्थ ने देश की पहचान बदल दी है, परंतु यह उनका हार्दिक यथार्थ नहीं बन पाया। जनता के दिल न आज तक बँटे हैं और न ही बँटेंगे। मानचित्र पर खींची गई लकीर लोगों के दिलों को नहीं बाँट सकती, यही नमक कहानी की मूल संवेदना है।

(घ) लेखक को शिरीष के नए फूल-पत्तों और पुराने फूलों को देखकर उन नेताओं की याद आती है, जो बदले हुए समय को नहीं पहचानते हैं तथा जब तक नई पीढ़ी उन्हें धक्का नहीं मारती, तब तक वे अपने स्थान पर जमे ही रहते हैं। नेताओं को स्वयं ही समय की गति को देखते हुए अपने स्थान को रिक्त कर देना चाहिए, पर वे ऐसा करते नहीं।

(ङ) जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप मानने से डॉ. आंबेडकर इनकार करते हैं। उनके अनुसार यह विभाजन अस्वाभाविक है, क्योंकि

  1. यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है।
  2. इसमें व्यक्ति की क्षमता की उपेक्षा की जाती है।
  3. यह केवल माता-पिता के सामाजिक स्तर का ध्यान रखती है।
  4. व्यक्ति के जन्म से पहले ही उसका श्रम विभाजन होना अनुचित है।
  5. जाति प्रथा व्यक्ति को जीवनभर के लिए एक ही व्यवसाय से बाँध देती है। व्यवसाय उपयुक्त हो या अनुपयुक्त, व्यक्ति को उसे ही अपनाने के लिए बाध्य किया जाता है।
  6. विपरीत परिस्थितियों में भी पेशा बदलने की अनुमति नहीं दी जाती, भले ही भूखा क्यों न मरना पड़े?

उत्तर 13.
‘सिल्वर वैडिंग’ यथार्थ में वर्तमान युग के बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। कहानी के केंद्रीय चरित्र यशोधर बाबू पाश्चात्य सभ्यता से विरक्ति रखते हैं। उनका व्यवहार अपनी पत्नी एवं बच्चों के प्रति उनके विरोध की भावना को दर्शाता है, क्योंकि वे पुराने विचारों का समर्थन करते हैं, जबकि उनका परिवार आधुनिक विचारों के पक्ष में रहता है।

वर्तमान समय पूरी तरह अर्थ पर आधारित हो गया है। आजकल परिवार में धन की अधिकता रहने पर ही पारिवारिक संबंध ठीक से निभ पाते हैं, अन्यथा परिवार को बिखरते देर नहीं लगती।

यशोधर बाबू को धन से विशेष लगाव नहीं है, इसलिए वे अधिक धन कमाने पर ध्यान नहीं देते। उनका बड़ा बेटा भूषण विज्ञापन कंपनी में ₹1500 प्रतिमाह पर काम करता है और उसमें अमीर व्यक्ति बनने की आकांक्षा है। वह यशोधर बाबू के विचारों के विपरीत सामाजिक संबंधों की मर्यादा को नकारता है। इसी कारण वह अपनी बुआ को पैसे नहीं भेजता। उसे न अपने माता-पिता की इच्छा की परवाह है और न रिश्तेदारी की। बदलते जीवन-मूल्य के साथ आज की पीढ़ी सामाजिक परंपराओं को दकियानूसी मानकर छोड़ रही है। पुरानी पीढ़ी निस्तेज होकर हाशिए पर लाचार खड़ी नज़र आती है। नई और पुरानी पीढ़ी के बीच वैचारिक अंतर बहुत गहरा हो गया है। अत: कहा जा सकता है। कि ‘सिल्वर वैडिंग’ वर्तमान युग में हो रहे पारिवारिक मूल्यों के विघटन का यथार्थ चित्रण है।

उत्तर 14.
(क) सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सिंधु सभ्यता के सामाजिक वातावरण को बहुत अनुशासित होने का अनुमान लगाया गया है। वहाँ को अनुशासन ताकत के बल पर नहीं था। नगर योजना, वास्तुशिल्प, मुहर, पानी या साफ़-सफ़ाई जैसी सामाजिक व्यवस्था में एकरूपता से यह अनुशासन प्रकट होता है। सिंधु सभ्यता में सुनियोजित नगर थे, पानी की निकासी व्यवस्था अच्छी थी। सड़कें लंबी व चौड़ी थीं, कृषि भी की जाती थी तथा यातायात के साधन के रूप में बैलगाड़ी भी थी। प्रत्येक नगर में मुद्रा, अनाज भंडार, स्नानगृह आदि थे तथा पक्की ईंटों का प्रयोग होता था। सिंधु सभ्यता में प्रदर्शन या दिखावे की प्रवृत्ति नहीं है। यही विशेषता इसको अलग सांस्कृतिक धरातल पर खड़ा करती है। यह धरातल संसार की दूसरी सभी सभ्यताओं से पृथक् है।

(ख) श्री सौंदलगेकर मराठी भाषा को बड़े ही आनंद के साथ पढ़ाते थे। वे कविता को अत्यधिक मधुर स्वर में गाते थे। वे भाव, छंद, लय के जानकार थे। पहले वे एकाध कविता गाकर सुनाते थे, फिर बैठे-बैठे अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण कराते। उनके इसी भाव को देखकर लेखक के मन में भी रुचि जागी कि काश! वह भी कविताएँ लिखता। श्री सौंदलगेकर द्वारा कविताएँ पढ़ाने के ढंग से ही लेखक के मन में कविताएँ लिखने की इच्छा जागृत हुई।

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