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Bhakti Ras – भक्ति रस परिभाषा
भक्ति रस शान्त रस से भिन्न है। शान्त रस जहाँ निर्वेद या वैराग्य की ओर ले जाता है वहीं भक्ति ईश्वर विषयक रति की ओर ले जाते हैं यही इसका स्थायी भाव भी है। भक्ति रस के पाँच भेद हैं-शान्त, प्रीति, प्रेम, वत्सल और मधुर। ईश्वर के प्रति भक्ति भावना स्थायी रूप में मानव संस्कार में प्रतिष्ठित है, इस दृष्टि से भी भक्ति रस मान्य है। उदाहरण-
“मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
साधुन संग बैठि बैठि लोक-लाज खोई।
अब तो बात फैल गई जाने सब कोई।।”
यहाँ स्थायी भाव ईश्वर विषयक रति, आलम्बन श्रीकृष्ण उद्दीपन कृष्ण लीलाएँ, सत्संग, अनुभाव-रोमांच, अश्रु, प्रलय, संचारी भाव हर्ष, गर्व, निर्वेद, औत्सुक्य आदि हैं, अत: यहाँ भक्ति रस है।