Apadan Karak in Sanskrit - अपादान कारक (से) - पंचमी विभक्ति - Apadan Karak ke Udaharan - संस्कृत

अपादान कारक – Apadan Karak in Sanskrit

अपादान कारक – पंचमी विभक्तिः – Apadan Karak in Sanskrit 

(1) ध्रुवमपायेऽपादानम् अपादाने पञ्चमी – पृथक् होने पर जो स्थिर है (कारक) उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा-

वृक्षात् पत्रं पतति। (वृक्ष से पत्ता गिरता है।)
नृपः ग्रामात् आगच्छति। (राजा गाँव से आता है।)

(2) भीत्रार्थानां भयहेतुः – भय और रक्षा अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में भय का जो कारण है उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा-

बालकः सिंहात् विभेति। (बालक सिंह से डरता है।)
नृपः दृष्टात् रक्षति/त्रायते। (राजा दुष्ट से रक्षा करता है।)।

(3) आख्यातोपयोगे – जिससे नियमपूर्वक विद्याग्रहण की जाती है उस शिक्षक आदि मनुष्य की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा-

शिष्यः उपाध्यायात् अधीते।
छात्रः शिक्षकात् पठति।

(4) जुगुप्साविरामप्रमादार्थानामुपसंख्यानम् – जुगुप्सा, विराम, प्रमाद अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में जिससे घृणा आदि की जाती है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा-

महेशः पापात् जुगुप्सते।
कुलदीपः अधर्मात विरमति।
मोहनः अध्ययनात् प्रमाद्यति।।

(5) भुवः प्रभवः – भू धातु के कर्ता का जो उत्पत्ति स्थान है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति होती है। यथा-

गंगा हिमालयात् प्रभवति।।
कश्मीरेभ्यः वितस्तानदी प्रभवति।

(6) जनिकर्तुः प्रकृतिः – ‘जन्’ धातु का जो कर्ता है, उसका जो कारण है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा-

गोमयात् वृश्चिकः जायते।
कामात् क्रोधः जायते।

(7) अन्तर्धी येनादर्शनमिच्छति – जब कर्ता जिससे अदर्शन (छिपना) चाहता है तब उस कारक की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है।

बालकः मातुः निलीयते। (बालक माता से छिपता है।)
महेशः जनकात् निलीयते। (महेश पिता से छिपता है।)

(8) वारणार्थानामीप्सितः – वारणार्थक (दूर करना) धातुओं के प्रयोग में जो इच्छित अर्थ होता है, उस कारक की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति होती है। यथा-

कृषक: यवेभ्यः गां वारयति।
[किसान यवों (जौ) से गाय को हटाता है।]

(9) पञ्चमी विभक्तेः – जब दो पदार्थों में से किसी एक पदार्थ की विशेषता प्रकट की जाती है, तब विशेषण शब्दों के साथ ईयसुन् अथवा तरप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है और जिससे विशेषता प्रकट की जाती है उसमें पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है। यथा-

रामः श्यामात् पटुतरः अस्ति।
माता भूमेः गुरुतरा अस्ति।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात् अपि गरीयसी।

(10) निम्नलिखित शब्दों के योग में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा-

  • ऋते (बिना) – ज्ञानात् ऋते मुक्तिः न भवति।
  • प्रभृति (से लेकर) – सः बाल्यकालात् प्रभृति अद्यावधि अत्रैव पठति।
  • बहिः (बाहर) – छात्राः विद्यालयात् बहिः गच्छन्ति।
  • पूर्वम् (पहले) – विद्यालयगमनात् पूर्वं गृहकार्यं कुरु।
  • प्राक् (पूर्व) – ग्रामात् प्राक् आश्रमः अस्ति।
  • अन्य (दूसरा) – रामात् अन्यः अयं कः अस्ति।
  • अनन्तरम् (बाद) – यशवन्तः पठनात् अनन्तरं क्रीडाक्षेत्रं गच्छति।
  • पृथक् (अलग) – नगरात् पृथक् आश्रमः अस्ति।
  • परम् (बाद) – रामात् परम् श्यामः अस्ति।